Menu

Why Students Avoid Being Fashionstas?

Contents hide

1.विद्यार्थी फैशनपरस्त बनने से क्यों बचें? (Why Students Avoid Being Fashionstas?),विद्यार्थी आडम्बर न करें (Students Should Not Be Ostentatious):

  • विद्यार्थी फैशनपरस्त बनने से क्यों बचें? (Why Students Avoid Being Fashionstas?) नीति में कहा है कि विद्यार्थी इन आठ अवगुणों काम,क्रोध,लोभ,स्वाद,श्रृंगार (फैशन),खेल-तमाशे,बहुत ज्यादा सोना और अत्यधिक सेवा कार्य करना आदि से दूर रहे।विद्या प्राप्ति करने वाला जो छात्र-छात्रा वास्तव में विद्या प्राप्त करना चाहता है वह निश्चित ही इन आठ अवगुणों से बचकर रहेगा।
  • इस आर्टिकल में श्रृंगार,फैशन व आडम्बर के बारे में बताया गया है कि विद्यार्थी श्रृंगार क्यों ना करें,आडंबर क्यों न करें?
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Students Should Stay Away From Fashion

2.आडंबर व श्रृंगार करने से बचें (Avoid ostentation and makeup):

  • कई विद्यार्थियों की दिखावा करने की आदत होती है।वे अपने माता-पिता की आय की तुलना में बहुत अधिक मूल्य के मोबाइल फोन,महंगा फर्नीचर,सोफा सैट आदि खरीदने का दबाव डालते हैं।यदि माता-पिता असमर्थता जाहिर करते हैं तो वे ऋण से या किस्तों पर लेकर रखते हैं और रईसों की तरह अपने स्टडी रूम को सजाते हैं।बहुमूल्य सिंथेटिक वस्त्र पहनते हैं।मूल्यवान विदेशी घड़ियां पहनकर वे ऐसा अनुमान लगाकर चलते हैं कि देखने वालों पर रईस और पैसे वाले होने का कैसा प्रभाव पड़ेगा? अथवा लड़कियों को आकर्षित करने के लिए ऐसा करते हैं ताकि लड़कियां उनके चारों तरफ तितलियों की तरह मंडराती रहें।
  • अपनी औकात से अधिक खर्च करना आडंबर होता है।विद्यार्थी अपने माता-पिता की आय के अनुकूल कपड़े पहने,मकान में रहे और सजाकर रखे और वैसा ही व्यवहार करे,तो स्वाभाविक मालूम पड़ता है,किंतु जब बहुमूल्य फर्नीचर,साधन सामग्री येन-केन प्रकारेण जुटाकर मूल्यवान वस्त्र व उपकरण उधार या कर्ज पर लेकर इकट्ठे किए जाते हैं और देखने वालों पर रईस घर का होने का प्रभाव डालने का प्रयास किया जाता है,तो यही बात विद्यार्थी की उथली मनोवृत्ति की परिचायक हो जाती है।हानियाँ भोगनी पड़ती है सो अलग।
  • आडंबर एक प्रकार की मानसिक विलासिता है।अपनी स्थिति नहीं है,स्वयं ऊँचे मूल्य के सामान-साधनों का व्ययभार वहन नहीं कर सकते,तो भी किसी प्रकार जुटा कर दिखावा करना,मानसिक विलासिता नहीं तो और क्या है? इस झूठी महत्त्वाकांक्षा का जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • जब विद्यार्थी आय से अधिक व्यय करता है,ऋण लेकर अथवा किस्तों पर महंगी वस्तुएं खरीदता है,कपड़े पहनता है,तो माता-पिता के आय-व्यय का संतुलन बिगड़ जाता है,परिणामस्वरूप गृहस्थी के अनेक आवश्यक कार्य छूट जाते हैं।जब मूल आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं होने पाती,तो बड़ी कठिनाइयां बढ़ जाती है और इनकी पूर्ति के लिए माता-पिता को और लोगों से कर्ज लेना पड़ता है।कर्ज लेने से उसके ब्याज का भार भी बढ़ जाता है और कर्ज लौटाने की समस्या भी ज्यों की त्यों बनी रहती है।
  • यहाँ तक कि विद्यार्थी प्राइवेट महँगे पब्लिक स्कूलों में पढ़ने की जिद करते हैं जो माता-पिता की क्षमता के बाहर होता है।यदि दबाव में आकर माता-पिता ऐसा कर भी देते हैं तो इससे गृहस्थी में कई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं।
  • इस प्रकार घर में बनावटीपन और खींचतान बढ़नी प्रारम्भ हो जाती है।यदि घर में एक से अधिक बच्चे-बच्ची होते हैं तो उनमें आपस में होड़ लग जाती है अपनी ख्वाहिशें पूरी करने की।
  • इस प्रकार पारिवारिक जीवन में बनावटीपन और खींचतान बढ़नी प्रारंभ हो जाती है।पारिवारिक जीवन में होने वाली आर्थिक कमियों का प्रभाव बहुधा गृहिणी पर पड़ता है।उसे ही किसी प्रकार घर चलाना पड़ता है,आए-गए का स्वागत करना पड़ता है।उसे ही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करनी पड़ती है।किसी प्रकार समस्याओं को सुलझाती रहती है।उसके साहस का बांध उस समय टूटने लगता है,जब बाहर के लेने वालों के पैसा लेने का तकाजिया लोग आते हैं।
  • बच्चों को इन सबसे कोई मतलब नहीं होता है और माँ को ही अनेक प्रकार के बहाने बनाकर टालना पड़ता है।पौष्टिक आहार की कमी के कारण बच्चों का स्वास्थ्य नष्ट हो रहा होता है,तब उसे बच्चों की जिद पूरी करने,दिखावे के सामान काँटे की तरह खलने लगते हैं और बच्चों की नासमझी पर तरस आने लगता है।समझाने पर भी जब बच्चे नहीं मानते तो घर में कटुता पैदा हो जाती है।परस्पर मनमुटाव होने लगता है।पारिवारिक जीवन नीरस लगने लगता है।

3.आडंबर और श्रृंगार से हानि (Harm from ostentation and makeup):

  • आडंबर से विद्यार्थी तथा उसके माता-पिता न तो सुख-शांति से रहते हैं और ना परिवार ही चैन से रह पाता है।जिस माता-पिता के सिर पर ढेर सा ऋण देने का भार हो,जिनकी मासिक आवश्यकताएँ सुगमता से न जुट पाती हों,उसे कहाँ सुख और कैसी शांति? वे तो सदैव चिन्ताओं से ग्रस्त रहते हैं।चिन्ताओं के कारण मानसिक तनाव बढ़ता है और उस अवस्था में व्यक्ति कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाता।स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।सहनशक्ति समाप्त हो जाती है।यदि बच्चों की फरमाइश पूरी नहीं करते हैं तो वे घर छोड़ने की धमकी दे डालते हैं।
  • समय पर सामान की किस्त का पैसा न पटने,ऋण लेने और पारिवारिक खर्च की पूर्ति हेतु लिए गए सामानों का बिल बकाया रहने से व्यक्ति का सामाजिक सम्मान नष्ट होता है और कभी-कभी तो अपमानित भी होना पड़ता है।इस प्रकार आडंबर और दिखावा व्यक्ति को हर क्षेत्र में दुःखी बनाता है।
  • दिखावे और आडंबर में विद्यार्थी ही संलग्न हो,ऐसी बात नहीं है।बहुत से माता-पिता,घर की महिलाएं भी इसमें अग्रणी पाई जाती है।घर की आर्थिक स्थिति कैसी भी हो,परंतु उन्हें तो मूल्यवान आभूषण और ऊँचे दामों की साड़ियाँ पहनकर दूसरों को दिखाए बिना चैन नहीं पड़ता।चाहे आभूषणों का ऋण चुकाते पति परेशान हो,कीमती साड़ियों की उधारी के कारण घर की आवश्यक वस्तुएँ भी नहीं खरीदी जा पाती हों।यह आदत किसी की भी हो,विद्यार्थी की,पति की या पत्नी की अच्छी नहीं मानी जा सकती।इसे सुधारा जाना चाहिए।फिर एक बात और विचारणीय है कि जिन लोगों को आडंबर और दिखावे के द्वारा प्रभावित करने को व्यक्ति या विद्यार्थी सोचता है,यह आवश्यक तो नहीं है कि वह प्रभावित हो जाए।उल्टे जब लोगों को इस बात की जानकारी होती है कि यह सारा सरंजाम ऋण लेकर,कर्ज के द्वारा बनाया गया है,तो रौब के स्थान पर उपेक्षा ही प्राप्त होती है।
  • इस ठाठ-बाट की पोल उस समय बुरी तरह खुल जाती है,जब किसी बीमारी के कारण या दुर्घटना के अवसर पर आवश्यकता होने पर थोड़े-थोड़े पैसे के लिए दूसरों के पास दौड़ता देख लिया जाता है।इस प्रकार वह अप्रतिष्ठा और आलोचना का पात्र बनता है।
  • आजकल अधिकांश घरों में यही स्थिति चल रही है।कहीं विद्यार्थी लड़कों पर रौब जमाने,लड़कियों को पटाने,कहीं पिता अपनी सनक में घर फूंक तमाशा देख रहा है,तो कहीं माता आभूषण,बहुमूल्य वस्त्रों के दिखावे और शौक में अनावश्यक खर्च करके घर की आर्थिक स्थिति बिगाड़े हुए है।ना कोई स्थायी संपत्ति है और ना समर्थ आजीविका।बस घर में दिखावे का ही वातावरण है,अनावश्यक दिखावे के सामान भरे दिखाई देते हैं।

4.घर की आय के अनुसार खर्च हो (Expenses should be incurred according to the income of the household):

  • समझदारी तो इस बात में समझी जाती है कि परिवार का संचालन व्यवस्थित ढंग से करने के लिए अपनी आय का आय-व्यय ब्यौरा (बजट) बनाकर विषयवार संतुलित खर्च किया जाए।प्रत्येक मद में बजट के अनुसार ही मर्यादित रहने की व्यवस्था बन सकती है।अमर्यादित अपव्यय करने से बजट अस्त-व्यस्त हो जाता है और उसकी कोई उपलब्धि नहीं हो पाती।बजट के अनुसार मर्यादापूर्वक खर्च करने से अर्थव्यवस्था संतुलित रहती है,जिससे भोजन,वस्त्र,आवास,संतान की शिक्षा तथा स्वास्थ्य की विधि व्यवस्था ठीक रहती है।आकस्मिक निधि व्यवस्थित रहने से कभी दुःख तकलीफ या अन्य कारण से धन की आवश्यकता होने पर वह निधि ऐन मौके,आड़े समय पर काम आती है।इस प्रकार व्यवस्थित अर्थव्यवस्था से घर के प्रति लोगों का विश्वास जागता है और उसके प्रति सम्मान की भावना निर्मित होती है।
  • व्यवस्थित अर्थव्यवस्था के अनुसार चलने वाले व्यक्तियों के बच्चों की शिक्षा और शादी-ब्याह के अवसर पर भी अधिक कठिनाई नहीं उठानी पड़ती,क्योंकि उन्होंने बजट में उसका भी प्रावधान किया होता है।जब बच्चे छोटे होते हैं,उस समय बचत आसानी से हो जाती है।भविष्य के लिए उन दिनों कुछ इकट्ठा किया जा सकता है।जब बच्चे बड़े हो जाते हैं,परिवार का खर्च सामान्यतः बढ़ जाता है,पढ़ाई,पुस्तकें और वस्त्रादि का खर्च भी उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है और बचत के मद में कमी हो जाती है।अतः भविष्य का ध्यान रखकर बचत की आदत डालनी चाहिए।
  • आवश्यक नहीं कि आवश्यक वस्तुओं के मद में कमी करके बचत की जाए।बहुत से अनावश्यक व्यय रोककर भी बचत की जा सकती है।आडंबर और दिखावे की प्रवृत्ति यदि छोड़ दी जाए,तो व्यक्ति उन सारी कठिनाइयों से मुक्त हो सकता है,जो उसे आडंबर और दिखावे के कारण उठानी पड़ती है।
  • महापुरुषों के जीवन से आदर्श के रूप में हमें सादा जीवन-उच्च विचार की प्रेरणा मिलती है।हमारा जीवन तो सादा हो,किंतु विचार-भावनाएं उच्च हों।हम उच्च आदर्शो को अपनाएं।सादा जीवन अपने आप में एक उत्तम जीवन-पद्धति है,जिसके अनुसार व्यक्ति का जीवन सुव्यवस्थित और सुविकसित बन सकता है।

5.विद्यार्थी जीवन को सफल बनाने का तरीका (How to make student life successful):

  • श्रृंगार,विलासिता की चीजें विद्यार्थी या तो दूसरे विद्यार्थियों की देखादेखी करता है।महंगे स्कूल में वह इसलिए पढ़ना चाहता है ताकि अन्य विद्यार्थियों पर रौब जमा सके,दिखावा कर सके अथवा लड़कियों को प्रभावित,आकर्षित किया जा सके।
    परंतु वास्तविकता कभी भी छिपाई नहीं जा सकती है।देर-सवेर विद्यार्थी की असलियत का पता चल जाता है।फिर उसके संगी-साथियों और लड़कियों में उसकी प्रतिष्ठा और सम्मान नहीं रह जाता है।
  • विद्यार्थी बनाव-श्रृंगार,महंगे मोबाइल फोन,महंगे वस्त्र आदि में अपना समय व्यतीत करेगा तो इन चीजों की तरफ मन आकर्षित होने से मन चंचल और विलासी हो जाएगा।और जाहिर सी बात है कि चंचल मन से अध्ययन नहीं किया जा सकता है।अध्ययन करने के लिए मन की एकाग्रता,कठिन परिश्रम,लगन और निष्ठा आदि की दरकार होती है।
  • इन सब कामों को करने के लिए समय नष्ट होगा सो अलग और विद्यार्थी के पास वैसे ही समय की कमी रहती है।दरअसल मोबाइल फोन से विद्यार्थी सहपाठियों,गर्लफ्रेंड से घंटों चैटिंग करने,वीडियो कॉल करने,फोन करने में व्यतीत कर देता है।वह विद्यार्थी जीवन को मौज-मस्ती,मटरगश्ती मजा लेने का समय होता है ऐसा मानता है।जबकि ये सारे काम बाद में भी किए जा सकते हैं परंतु विद्याध्ययन का कार्य विद्यार्थी जीवन में ही किया जा सकता है।
  • विद्यार्थी जीवन पूरे जीवन की नींव का काम करता है।विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी अपने फैशनपरस्त,विलासी प्रकृति को बना लेता है तो ये आदतें आगे भी जारी रहती हैं।फिर व्यक्ति अपनी आय से अधिक खर्च करने में संकोच नहीं करता है।ये आदतें उसके जीवन को बर्बाद करके रख देती हैं।जबकि विद्या अर्जित करने पर विद्या उसका पूरे जीवन भर साथ देती है।
  • नीति में विद्या के बारे में कहा गया है कि “विद्या मनुष्य का बड़ा भारी सौंदर्य है।यह गुप्त धन है।विद्या भोग,यश और सुख को देनेहारी है।विद्या गुरुओं का गुरु है।विदेश जाने पर विद्या ही मनुष्य का बंधु सहायक है।विद्या एक सर्वश्रेष्ठ देवता है।विद्या राजाओं के लिए भी पूज्य है।इसके समान और कोई धन नहीं।जो मनुष्य विद्या से विहीन है,वह पशु है।”
  • और भी कहा है कि “विद्या माता की तरह रक्षा करती है,पिता की तरह हित के कामों में लगाती है,स्त्री की तरह खेद को दूर करके मनोरंजन करती है,धन को प्राप्त कराकर चारों ओर यश फैलाती है।विद्या कल्पलता के समान क्या सिद्ध नहीं करती? अर्थात् सब कुछ करती है।”
  • विद्यार्थी जीवन तपपूर्ण जीवन और ब्रह्मचर्य की रक्षा करके विद्या अर्जित करने का समय है।विद्या अर्जित ही  तभी की जा सकती है जब तप और कष्टों का जीवन व्यतीत किया जाए।इसका अर्थ यह नहीं है कि घर में सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हैं तो उनका उपयोग नहीं करना चाहिए।सुख-सुविधाओं का भोग त्याग के साथ करना चाहिए अर्थात् सुख-सुविधाओं में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।मिल जाए तो ठीक,नहीं मिले तो भी ठीक।अपने जीवन को संतुलित रखना चाहिए।परंतु विलासिता की आदत नहीं डालना चाहिए।चाहे घर में विलासिता की चीजें मौजूद हों।क्योंकि विलासिता की चीजों से मन चंचल हो जाता है और अध्ययन कार्य में व्यवधान पैदा होता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी फैशनपरस्त बनने से क्यों बचें? (Why Students Avoid Being Fashionstas?),विद्यार्थी आडम्बर न करें (Students Should Not Be Ostentatious) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Why Do Students Shirk From Studies?

6.पढ़ाने का दिखावा (हास्य-व्यंग्य) (Pretending to Teach) (Humour-Satire):

  • छात्र (शिक्षक से):श्रीमान आजकल पढ़ा हुआ समझ में नहीं आ रहा है,पूर्ण समर्पण के साथ नहीं पढ़ा रहे हो।तथा कक्षा में पढ़ाने की सामग्री,व्हाइटबोर्ड,महंगी बेंच आदि की व्यवस्था तो कर रहे हो।यह तो दिखावा है,सच्ची विद्या तो समर्पण के साथ पढ़ाने पर ही ग्रहण की जा सकती है।
  • शिक्षक:आज गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तरफ ध्यान कौन देता है,सब तरफ दिखावा तो हो रहा है,इसलिए जरूरी है।

7.विद्यार्थी फैशनपरस्त बनने से क्यों बचें? (Frequently Asked Questions Related to Why Students Avoid Being Fashionstas?),विद्यार्थी आडम्बर न करें (Students Should Not Be Ostentatious) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या आजकल की शिक्षा को विद्या कहा जा सकता है? (Can today’s education be called vidya?):

उत्तर:आजकल की शिक्षा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं है।इसमें भौतिक विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता है,जो जाॅब प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।परंतु जीवन को सफल बनाने के लिए व्यावहारिक शिक्षा,आध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता है।यदि शिक्षा संस्थान में विद्या,गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं कराई जा रही है और नहीं ही करा ही जा रही है।अतः अपने प्रयत्नों से विद्या अर्जित करनी चाहिए।

प्रश्न:2.विलासितापूर्ण चीजें कौनसी हैं? (What are luxury things?):

उत्तर:एसी,फ्रिज का पानी पीना,महंगे सोफा सेट,फर्नीचर आदि विलासिता की चीजें हैं।इनका विद्यार्थी को आदी नहीं बनना चाहिए क्योंकि इनका इस्तेमाल करके विद्याध्ययन नहीं किया जा सकता है।ऊपर जो आठ अवगुण बताए गए हैं इनसे सख्ती से बचाव करके अपने भावी जीवन को सफल और श्रेष्ठ बनाने का प्रयास एक विद्यार्थी को अवश्य करना चाहिए।

प्रश्न:3.सिनेमा और टीवी जैसे साधनों का प्रयोग करने की मनाही क्यों हैं? (Why is it forbidden to use media like cinema and TV?):

उत्तर:टीवी,सिनेमा,खेल-तमाशे,रंगमंच में रुचि लेने वाला विद्यार्थी अपना बहुमूल्य समय नष्ट करता रहेगा अतः इन सब कामों को करना एक विद्यार्थी के लिए वर्जित किया है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी फैशनपरस्त बनने से क्यों बचें? (Why Students Avoid Being Fashionstas?),विद्यार्थी आडम्बर न करें (Students Should Not Be Ostentatious) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *