Why Do Students Shirk From Studies?
1.छात्र-छात्राएं अध्ययन से जी क्यों चुराते हैं? (Why Do Students Shirk From Studies?),छात्र-छात्राएँ अध्ययन से जी न चुराएँ? (Students Should Not Scamp From Studies?Students Should Not Scamp From Studies?):
- छात्र-छात्राएं अध्ययन से जी क्यों चुराते हैं? (Why Do Students Shirk From Studies?) अध्ययन करने पर अपेक्षित सफलता न मिले तो इसके लिए कई अन्य तरीके हैं।उन पर अमल करके अपेक्षित सफलता प्राप्त की जा सकती है।किंतु यह निकृष्टता है कि अध्ययन में असफलता मिलने पर अध्ययन से जी चुराएं,अध्ययन से पलायन करें,ढंग से अध्ययन न करें,दिल लगाकर अध्ययन न करें,असावधानी से अध्ययन करना।इन सब से तो सबका सब प्रकार से अहित ही है।
- अध्ययन करने की क्षमता घट जाने की तरह अध्ययन में कठिन परिश्रम न करना,उसे जी चुराना,किसी बहाने टाल-मटोल करते रहने से विद्यार्थी की अपनी सामर्थ्य घटती है,उपयोगिता कम होती है।ऐसी स्थिति में परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के अवसर घटते हैं और आप अध्ययन में फिसड्डी साबित होते हैं।
- मेधावी छात्र-छात्राएं कठिन परिश्रम करते हैं,रात-दिन एक कर देते हैं,उनके समक्ष एक ही लक्ष्य होता है अध्ययन करना,गणित के सवालों को हल करना,गणित के सवालों का अभ्यास करना।वे पुस्तकों,नोट्स,मॉडल पेपर्स,डेस्क वर्क के साथ मल्ल युद्ध करते रहते हैं।वे अध्ययन में योगी की भाँति तन्मय रहते हैं।वे घर पर हों,बाहर हों,कोचिंग सेंटर हो,विद्यालय हो सभी जगह अपने अध्ययन कार्य में व्यस्त रहते हैं।
- जिस छात्र-छात्रा में अध्ययन के प्रति इतना समर्पण हो तो वह निम्न स्तर पर पड़ा हुआ नहीं रह सकता।निश्चित ही प्रगति करेगा।
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2.अध्ययन से जी चुराना घातक मनोवृत्ति (Shirking From the Study is a Deadly Attitude):
- अधिकांश मेधावी छात्र-छात्राएं अपने अनवरत कठिन परिश्रम,सही रणनीति,लगन के कारण ही उच्च स्तर तक पहुंच सके हैं।ईमानदारी,बेईमानी की बात तो पीछे उठती है।उन्नति और सफलता के लिए कठिन परिश्रम,चतुर सोच हर विद्यार्थी के लिए आवश्यक है।विद्यार्थी की प्रगति में दो सबसे बड़े अवरोधक तत्व हैं:अध्ययन से जी चुराना और आलस्य रूपी दुर्गण।
- एकाग्रतापूर्वक अध्ययन न करना,अनिच्छा अन्यमनस्क ढंग से अध्ययन करना,अध्ययन दिल लगाकर न करना,असावधानी से अध्ययन करना आदि को अध्ययन से जी चुराना कहा जाता है।इसका तात्पर्य यह है कि अध्ययन को पूर्ण एकाग्रता के साथ करना,अध्ययन कभी करना तथा कभी न करना।अक्सर अध्ययन करने वाला छात्र-छात्रा अध्ययन करता तो दिखाई देता है परंतु मनोयोग,तत्परता,तल्लीनता न होने के कारण अध्ययन का स्तर गिरता और आलस्य के कारण अध्ययन का स्तर घटता है।स्तर गिरना और स्तर घटना दोनों ही अध्ययन की अस्तव्यवस्था के अवगुण है।
- यह देश का दुर्भाग्य ही है कि कठिन परिश्रम की अवमानना करना।अपने यहां कठिन परिश्रम न करना तथा जोड़-तोड़ बिठाकर सफलता अर्जित करना बड़प्पन का चिन्ह माना जाता है।परंपरागत रूप से कठिन परिश्रम करने वाले विद्यार्थी की अवज्ञा होती रही है।उन्हें सम्मान नहीं मिला।फलतः अध्ययन से जी चुराने की प्रवृत्ति बढ़ती गई।इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है:देश में बढ़ती हुई बेरोजगारी।गांवों और शहरों दोनों ही के लिए यह समस्या बनी हुई है।
- गांवों से शहरों की ओर नौकरी की खोज में भागने वाले युवकों में एक ही मनोवृत्ति काम करती है कि कम से कम मेहनत करना पड़े।फलतः प्रतिवर्ष गांवों की प्रगति में सहायक बन सकने वाले युवक शहरों में जमघट लगाते और जैसे तैसे गुजारा करते हैं।शिक्षित ग्रामीण एवं शहरी बेरोजगार भी बाबूगीरी की नौकरी की फिराक में जूतियां चटकाते फिरते हैं और जिस तिस के दरवाजे खटखटाते हैं।जबकि कठिन परिश्रम करने वाला विद्यार्थी अनेक प्रकार के छोटे-मोटे व्यवसाय सहज ही कर सकता है।
- सब्जी बेचने वाला,ठेला चलाने वाला,चाय-पान की छोटी-मोटी दुकान करने वाले,फेरी लगाने वाले,अल्प बुद्धि के व्यक्ति अपना और परिवार का भरण-पोषण भली प्रकार करते हैं तो कोई कारण नहीं की शिक्षित,योग्य एवं बुद्धिमानों का गुजारा न हो सके।बढ़ती हुई बेरोजगारी की समस्या में एक ही प्रधान कारण है:कठिन परिश्रम की उपेक्षा और कामचोरी की ओछी आदत।
- यह संस्कार बने रहने के कारण विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों,विभागों,कंपनियों में काम कर रहे कर्मचारियों,श्रमिकों से वह लाभ नहीं मिलता जो मिल सकता था।कामचोरी की प्रवृत्ति से उत्पादन का परिमाण और स्तर गिरता है।
3.अध्ययन से मन क्यों भटकता है? (Why Does the Mind Wander from Study?):
- मन भटकने की आम शिकायत रहती है।छात्र-छात्रा अपनी पढ़ाई से,साधक अपनी साधना से,कलाकार अपनी कलाकृति से कभी-कभी मन भटकने की बात करते हैं।मन भटकता है अध्ययन से तो आखिर क्यों? दरअसल मन भटकता नहीं बल्कि मन अपनी रुचि और पसंद की चीजों में खो जाता है।जहां उसे रस आता है,वहीं ठहर जाता है और नीरस लगने वाली वस्तु से ऊबने लगता है।यह तो उस व्यक्ति की पसंद एवं अभिरुचि पर निर्भर करता है कि उसका मन कहां जा रमे।जहाँ रमेगा,वहीं मन लगेगा।मन को अध्ययन जैसे उच्चस्तरीय चीजों में लगाने के लिए उसे प्रशिक्षित किया जाता है,अभिरुचि बढ़ाई जाती है।
- परीक्षा के दिनों में पढ़ाई बोझिल हो जाती है।कुछ घंटों की तैयारी में कुछ उल्लेखनीय प्रगति नजर नहीं आती है।ऐसे में न पढ़ाई छोड़ी जा सकती है और न मन से अधिक खींच-तान की जा सकती है।कई बार के प्रयासों के बाद भी मन अध्ययन में टिकता नहीं।बड़ा ही बोझिल लगता है।लगता है अध्ययन को छोड़कर कहीं ओर चला जाए।पर कहां जाएं।जाते हैं वहां,जहां मन करता है।
- फिलहाल तो छात्र अपनी पढ़ाई से ऊब चुके हैं,क्योंकि वहां मन अपनी रुचि नहीं तलाशता और इसलिए वहां से अपनी रुचि के विषय की ओर भाग जाना चाहता है।हम इसे मन की भटकन कहते हैं,परंतु मन भटक नहीं रहा,वह तो अपनी अभिरुचि की तलाश में है।
- व्यसनी अपनी व्यसन में अलमस्त रहता है।खिलाड़ी का यदि खेल में मन लगता है तो उसे समय का पता नहीं चलता है।पढ़ने में भी रुचि रखने वाले अपने विषय में खो जाते हैं।लेखक अपनी लेखनी में खो जाता है।व्यवसायी अपने व्यवसाय में।ठीक इसी तरह शराबी को उपदेश बहुत कड़ुवा लगता है।उसका मन तो शराब के संग अठखेलियाँ करता है।शराब में वह डूब जाता है।कामुक व्यक्ति को अपनी काम-वासना का बदरंग हर स्त्री में नजर आता है।वह अनचाहे उस ओर मुड़ जाता है और अनायास कुकल्पनाओं में डूबता-उतरता रहता है।
- चोर का मन चोरी में लगता है ओर कहीं नहीं।बात अच्छे और बुरे की नहीं हैं,बात है मन कहां लगता है।वह जहां भी लगे,वही खो जाता है।उसे खोने में देरी नहीं लगती,जब उसके अनुकूल और अभिरुचि का विषय मिल जाता है।परंतु ठीक इसके विपरीत जहाँ ऐसा नहीं होता है,वहां पर उसका टिकना बड़ा कठिन होता है।
- यही वजह है की परीक्षा की पढ़ाई बड़ी बोझिल लगती है,पर किसी जलपानगृह में मित्रों के साथ गप्पे हाँकना बड़ा अच्छा लगता है या फिर किसी मनपसंद सिनेमा के सामने पूरा दिन भी कुछ घंटों के समान जान पड़ता है।मन अत्यधिक रूप से जहां पर संबंधित होता है,वह उस ओर ही भागता है।इसे आदत एवं संस्कार कहते हैं,जो जन्म-जन्मातरों तक पीछा नहीं छोड़ते।वह वही ठहरता है,वहीं उसे सहजता मिलती है,दूसरी जगह उसे बेचैनी होती है।
4.मन की रुचि अध्ययन में कैसे हो? (How Interested is the Mind in Studies?):
- मन अपने क्रियाक्षेत्र और रुचि वाले विषय से इस कदर जुड़ा रहता है कि इसे उसके अलावा कुछ और पसंद नहीं होता है।जब भी समय मिलता है,वह उसी स्थान पर चला जाता है।हमें पता ही नहीं चलता कि इतने चाक-चौबंद सुरक्षा प्रहरी लगाने के बावजूद भी मन अपने प्रिय विषय के संग कल्पनाओं में खोया रहता है।वहीं उसका स्वर्ग और वहीं उसे आनंद का अतिरेक अनुभव होता है।
- मनुष्य प्रकृति में अनेक विशेषताएं भरी पड़ी है।देवत्व और पशुता,दोनों ही इसके अंदर समाहित और सन्निहित होते हैं।चूँकि मनुष्य का विकास पशु से देवता की ओर होता है,इसलिए मन पशुता वाले व्यवहार में अधिक सहजता अनुभव करता है और बारंबार इसी के इर्द-गिर्द मंडराने में अधिक रुचि दर्शाता है।
- इस निकृष्ट क्षेत्र से उत्कृष्ट क्षेत्र (अध्ययन) की ओर मन की पसंद को रूपांतरित करना बड़ा कठिन होता है,परंतु यह असंभव नहीं है,निरंतर प्रयास और अभ्यास के द्वारा निकृष्ट चीजों में रुचि रखने वाला विद्यार्थी उत्कृष्ट चिंतन में रम सकता है।यह कार्य एकाएक नहीं होता,बड़े ही धैर्य और सावधानी पूर्वक इसे किया जाता है।ऐसा इसलिए है क्योंकि मन बड़ा सूक्ष्म होता है,उसे साधना सर्वोपरि साधना मानी जाती है,पर इसे साधा जा सकता है।इतिहास इसका गवाह है कामुक बिल्वमंगल सूरदास,डाकू वाल्मीकि ऋषि रत्नाकर,शराबी कबाबी अमीचंद को महर्षि दयानंद ने,अंगुलीमाल को भगवान गौतम बुद्ध ने बदल दिया।
- मन को बदलने के लिए उसे धीरे-धीरे प्रशिक्षित करना चाहिए।श्रेष्ठ दिशा में,श्रेष्ठ चिंतन में मन को लगाने के लिए आवश्यक है की श्रेष्ठ व्यक्तियों का संग किया जाए।श्रेष्ठ विद्यार्थियों का संग करना चाहिए।यदि ऐसा संभव नहीं हो सके तो उत्कृष्ट और प्रेरणाप्रद साहित्य का स्वाध्याय करना चाहिए।महान् गणितज्ञों,महान् वैज्ञानिकों,महापुरुषों की जीवनी एवं कथा प्रसंगों को पढ़ना चाहिए।पढ़े हुए विषय को दिन में जब खाली समय मिले,इसका चिंतन करना चाहिए।इस तरह अभ्यास से मन इन उत्कृष्ट (अध्ययन) चीजों में रुचि लेना आरंभ कर देता है और रुचि लेने लगता है तो वह अपनी पूरी ताकत को झोंक देता है।
- धैर्यपूर्वक और सतत अभ्यास से मन की चंचलता एवं रुझान को श्रेष्ठ दिशा और आयामों में मोड़ना संभव है।इससे जीवन की दिशा ही बदल जाती है,कर्म परिवर्तित हो जाता है।तब कहीं कोई मन की भटकन की शिकायत नहीं रहती है।
- इसके अलावा रोजाना मन को एकाग्र करने का अभ्यास करना चाहिए।प्रातःकाल शौचादि से निवृत्त होकर ध्यान (meditation) करने से मन एकाग्र होता है।मन गलत कार्यों की ओर जाए तो मन के विरुद्ध खड़ा होना पड़ेगा।शुरू-शुरू में परेशानी होती है परंतु लगातार अभ्यास करते रहेंगे तो मन को साधना और अध्ययन की ओर मोड़ना आसान हो जाएगा।
- इस प्रकार एक नहीं अनेक ऐसे उपाय है जिससे मन की दिशा को निरंतर निम्न स्तर से उच्च स्तर कक्षाओं में मोड़ा-मरोड़ा जा सकता है।ऊपर के दृष्टान्तों से भी यही प्रमाणित होता है कि जब लूटमार,डकैती डालने वाले,शराबी व कबाबी,कामुक व्यक्ति अपने आपको बदल सकते हैं,अपने मन को वश में कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं? यह बात तो ठीक है की मन को वश में करना मुश्किल है परंतु असंभव नहीं है।बार-बार अभ्यास,सत्संग,स्वाध्याय,योग साधना,सत्साहित्य का अध्ययन करने से मन को वश में किया जा सकता है।
5.जी चुराने का दृष्टांत (The Parable of Shirking):
- एक प्राध्यापक ने प्राचार्य से शोध कार्य करने के लिए 7 वर्ष का अवकाश देने के लिए आवेदन किया।प्राचार्य ने कहा कि आप अपनी सेवा काल में इतना ही अध्यापन कार्य करते हो।प्राध्यापक ने कहा कि मेरा सेवाकाल 35 वर्ष है।प्राचार्य ने गणना करके बताया।कुल सेवा काल का 30वां भाग अर्जित अवकाश अर्थात् एक वर्ष दो माह।14 दिन प्रतिवर्ष आकस्मिक अवकाश जो कुल सेवा काल में एक वर्ष चार माह होते हैं।20 दिन प्रतिवर्ष आधी तनख्वाह (अर्ध वेतन अवकाश) के छुट्टी के रूप में (डाक्टरी सर्टिफिकेट प्रस्तुत करने पर पूरी तनख्वाह) एक वर्ष ग्यारह महीने।
- अध्ययन हेतु दी गई छुट्टी,तीन बार तीन-तीन वर्ष के लिए जो कुल सेवा काल में नौ वर्ष होता है।असामान्य छुट्टी 3 साल की,कुल सेवाकाल में।गर्मी की छुट्टी 12 सप्ताह,सर्दी की छुट्टी तीन सप्ताह,शरद की छुट्टी दो सप्ताह और पूजा आदि की छुट्टी 15 दिन,कुल 19 सप्ताह प्रतिवर्ष जो कुल सेवाकाल में 6 वर्ष 5 महीने होते हैं।
- उपर्युक्त छुट्टी कल 22 वर्ष 10 महीने की हुई।इसके साथ जुलाई और अगस्त में लगभग डेढ़ महीने प्रवेश और विद्यार्थी यूनियन के कारण शिक्षण स्थगित रहता हैं।प्रत्येक वर्ष मार्च और अप्रैल 2 महीने में परीक्षा के कारण शिक्षण स्थगित रहता है।इन दिनों को मिलाकर कुल सेवा काल में 5 वर्ष 3 महीने छुट्टी हो जाती है।
- अतः शिक्षण काल से मुक्त समय पूर्ण सेवा काल में 28 वर्ष एक महीना हो जाते हैं।मात्र 7 वर्ष से कुछ कम ही शिक्षण कार्य के लिए बचते हैं।इसके अलावा इसमें देर से कॉलेज (कार्यालय) आना,समय से पूर्व कॉलेज (कार्यालय) छोड़ देना,कार्यकाल में व्यक्तिगत टेलीफोन करना,व्यक्तिगत ईमेल भेजना,मोबाइल फोन पर टेलीफोन रिसीव करना,चाय पान में अधिक समय लगना,कॉलेज (कार्यालय) क्षेत्र में समाचार पत्र आदि पढ़ना,अकारण बीमारी का अवकाश लेना अथवा बिना छुट्टी अनुपस्थित रहना आदि तो सम्मिलित ही नहीं किया गया है।
- प्राध्यापक महोदय प्राचार्य के प्रत्युत्तर से निरुत्तर हो गए।विद्यार्थी देश का भविष्य है।यदि युवक-युवतियां पिछड़े रहेंगे तो उतने अंशों में परिवार,समाज व देश भी पिछड़ा रहेगा।परिवार,समाज व देश की प्रगति के लिए इन आदतों से छूटने और छुड़ाने के लिए व्यापक प्रयत्न होनी चाहिए।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएं अध्ययन से जी क्यों चुराते हैं? (Why Do Students Shirk From Studies?),छात्र-छात्राएँ अध्ययन से जी न चुराएँ? (Students Should Not Scamp From Studies?) के बारे में बताया गया है।
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6.मोटी शिक्षिका (हास्य-व्यंग्य) (Fat Madam) (Humour-Satire):
- मोटी शिक्षिका:बीना,मैंने तेरे बेटे को इसलिए मारा क्योंकि वह मुझे मोटी मैडम कहकर पुकार रहा था।
- बीना:मगर उसने तो अभी-अभी स्कूल आना प्रारंभ किया है।अभी तो वह मोटी-पतली की ठीक से पहचान ही नहीं कर सकता है।
7.छात्र-छात्राएं अध्ययन से जी क्यों चुराते हैं? (Frequently Asked Questions Related to Why Do Students Shirk From Studies?),छात्र-छात्राएँ अध्ययन से जी न चुराएँ? (Students Should Not Scamp From Studies?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.कामचोरी से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Shirking Work?):
उत्तर:आधा-अधूरा,अनिच्छा अन्यमनस्क ढंग से किए जाने वाले कार्य को कामचोरी की संज्ञा दी जाती है।इनमें दो प्रवृत्तियां काम करती है:(1.) मनोयोग पूर्वक काम न करना (2.)काम की गति धीमी होना।इसमें व्यक्ति काम में तो लगा रहता है परंतु काम को बिना ध्यान के करना,अच्छे ढंग से काम नहीं करना,काम में मन न लगाना,लापरवाही से करना,असावधानी से करना,जी चुराना,टालना आदि के कारण काम का स्तर गिरता है और गति कम होने से उत्पादन घटता है।स्तर गिरना और उत्पादन घटना दोनों ही श्रम की अस्तव्यस्तता के अवगुण है।
प्रश्न:2.भारत का शिक्षक अन्य देशों की तुलना में कितना कार्य करता है? (How Much Does a Teacher from India Do as Compared to Other Countries?):
उत्तर:भारत का एक शिक्षक अमेरिकी शिक्षक की तुलना में आधा और जापान की तुलना में तिहाई अध्यापन कार्य करता है।भारत के शिक्षक की क्षमता का आधा लाभ ही देश को मिल पाता है। अमेरिका का एक शिक्षक जितना कार्य 4 घंटे में करता है,भारत का शिक्षक उसे 8 घंटे में पूरा करता है।जब-जब अपने देश में कामचोरी के आँकड़े सामने आते हैं तो चौंकना पड़ता है और सोचना पड़ता है कि यह कुप्रचलन हमारे स्वभाव का अंग बना तो उस कारण प्रगति पथ में कितना बड़ा अवरोध आ सकता है।कामचोरी के कारण अपूर्तनीय क्षति प्रतिवर्ष होती है।
प्रश्न:3.बच्चे अध्ययन से जी क्यों चुराते हैं? (Why Do Children Shirk From Studies?):
उत्तर:किसी बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है,इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं जैसे बच्चों में सुरक्षा और स्नेह का अभाव,माता-पिता द्वारा उन पर कठोर अनुशासन रखना,बच्चों का विद्यालय के वातावरण में फिट न होना,उसमें कुंठा या हीन भावना ग्रंथियों का पनपना,आत्मविश्वास की कमी तथा कुछ व्यवहारगत अन्य समस्याएं आदि।यदि बालक की योग्यता,क्षमता और बौद्धिक स्तर के अनुरूप विषयों का चयन नहीं हो पाता तो उसकी शक्ति का ह्रास होता है।साथ ही आंतरिक प्रेरणा और स्थिर रुचि के अभाव में भी बच्चे पढ़ाई की ओर मन को एकाग्र नहीं कर पाते हैं।शिक्षकों द्वारा समुचित शिक्षण विधि को न अपनाएं जाने से भी बच्चों का मन पढ़ाई से उचाट होने लगता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएं अध्ययन से जी क्यों चुराते हैं? (Why Do Students Shirk From Studies?),छात्र-छात्राएँ अध्ययन से जी न चुराएँ? (Students Should Not Scamp From Studies?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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