Who Understand Progress in Today’s Era?
1.आज के युग में प्रगति किसको समझा जाता है? (Who Understand Progress in Today’s Era?),आज वास्तव में प्रगति कैसी है? (How is Progress Really Going on Today?):
- आज के युग में प्रगति किसको समझा जाता है? (Who Understand Progress in Today’s Era?) तथा उस प्रगति के लिए क्या मूल्य चुकाना पड़ रहा है? भौतिक साधनों की प्राप्ति ही वर्तमान युग में प्रगति का द्योतक बन गया है।जिसके पास जितनी अधिक धन-संपत्ति और ऐशो-आराम के साधन है,उसे उतना ही प्रगतिशील माना जाता है।अन्य सभी प्रकार की प्रगति गौण बन गई है।इस प्रकार हम देखते हैं कि वर्तमान भौतिकवादी और अर्थप्रधान युग में प्रगति भौतिक प्रगति तक सिमट कर रह गई है,परंतु सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि प्रगति का जो मूल्य चुकाना पड़ा है और अभी भी चुकाना पड़ रहा है।वह काफी महंगा सिद्ध हो रहा है।
- मशीनीकरण ने वातावरण के प्रदूषण की समस्या उत्पन्न कर दी है।यहां तक कि ओजोन पर्त को क्षीण कर दिया है।जहरीले धुएं ने अनेक घातक रोगों को जन्म दे दिया है।
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2.वर्तमान भौतिकवादी प्रगति (Current Materialistic Progress):
- प्रगति के नाम पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ऐसे अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं जो न सिर्फ मानवता के खिलाफ है बल्कि भगवद कार्यों में भी अनावश्यक छेड़खानी और बेमतलब का हस्तक्षेप करते हैं।प्रकृति के नियमों को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।हम इन बातों के विरोधी नहीं है,परंतु यह सब कार्य मानवता के हित में होना चाहिए।प्रगति का ध्येय मानवता का समग्र कल्याण होना चाहिए परंतु आज प्रगति के नाम पर ऐसे कृत्यों को भी अंजाम दिया जाता है जो स्वयं प्रगति के लिए बाधक होते हैं।
- इनमें से कुछ तो मानव जाति के लिए संहारक है। परमाणु बम,हाइड्रोजन बम,न्यूट्रॉन बम,प्रक्षेपास्त्रों एवं अन्य विनाशकारी हथियारों के निर्माण को क्या आप प्रगति कहेंगे? यह तो माना जा सकता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की अनदेखी नहीं की जा सकती पर किस स्तर तक जाना ठीक है,इस पर विचार किया जाना चाहिए।जो कार्य मानव-जाति का संहार करने के लिए ही किया जा रहा है,वह प्रगति तो हो ही नहीं सकती।भले ही कुछ ओर हो।
- आज हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं,उसमें जगह-जगह बारूदी सुरंगे बिछी हुई हैं।अतएव ऐसी विकट परिस्थिति में हमारी तथाकथित प्रगति ने मनुष्य से उसकी मनुष्यता को लेकर अपना मूल्य वसूल किया है।
3.प्रगति की भौतिकवादी अवधारणा का प्रभाव (Impact of Materialistic Concept of Progress):
- प्रगति की भौतिकवादी अवधारणा का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि हमारे समाज में मानवता,नैतिकता,सच्चाई,ईमानदारी आदि का महत्त्व केवल प्रतीकात्मक रह गया है।इन आदर्श गुणों का शायद ही कोई नामलेवा बचा है।वर्तमान समय में सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों का दिनोंदिन लोप होता जा रहा है।लोगों के बीच उत्पन्न होने वाला सामाजिक बंधन एवं सामाजिक सौहार्द्र निरंतर क्षीण होता जा रहा है और यह एक तरह से टूटसा गया है।यह सब वर्तमान भौतिकवादी प्रगति की स्वाभाविक बुराई है।
- प्रगति की वर्तमान अवधारणा है उसी के चलते सदियों से चली आ रही परंपरागत मान्यताओं एवं प्रथाओं का अस्तित्त्व मिटता जा रहा है।इसकी शुरुआत परिवार से हुई है।संयुक्त परिवार (joint family) का प्रचलन पूरी तरह से समाप्त हो गया है और उसके स्थान पर नाभिकीय परिवार (nuclear family) का एक नया स्वरूप सामने आया है।यह सब प्रगति की उसी अवधारणा के चलते हुआ है जिसमें व्यक्ति को केंद्र में रखकर अपनी सारी गतिविधियां संचालित करता है,परंतु सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि नाभिकीय परिवार में भी व्यक्ति अकेला पड़ता जा रहा है।नाभिकीय परिवार के गठन के चलते अपने सगे-संबंधियों और परिवारवालों से तो पहले ही स्वेच्छा से कट चुका था,पर अब तो वह अपने परिवार में भी एकाकी पड़ गया है।परिवार का हर सदस्य अपने ख्यालों की दुनिया में खोया हुआ है।सभी मृगतृष्णा के पीछे पड़े हैं।दूसरों की फ़िक्र किसे है? किसके पास इतनी फुर्सत है? सब भाग रहे हैं।पर कहाँ? पता नहीं।
- अभी तो प्रगति की जो होड़ है उसमें गला-काट स्पर्धा है। साध्य अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है।लक्ष्य की प्राप्ति के साधनों की पवित्रता पर किसी का भी ध्यान नहीं है।इसका कारण यह है कि हमारे समाज से नैतिकता का काफी हद तक लोप हो गया है।वर्तमान समय में चारों ओर ‘धन’ का बोलबाला है।’धन’ के आगे अन्य सारी बातें गौण पड़ गई हैं।
- सामाजिकता,नैतिकता,मानवता,मानवीय मूल्यों,सहयोग,सौहार्द्र,संवेदनशीलता आदि को किताबी बातें समझा जाता है।जहां तक संभव हो इन बातों से परहेज किया जाता है।इसके अतिरिक्त आज नैतिकता की सारी बातें हाशिए में चली गई हैं।इसका परिणाम हम सभी भुगत रहे हैं।
4.भौतिकवादी प्रगति का दुष्परिणाम (Side Effects of Materialistic Progress):
- प्रगति का जो मूल्य हमें चुकाना पड़ रहा है उससे सहनशीलता और संवेदनशीलता में लगातार कमी आई है।असहिष्णु और संवेदनशील लोगों की एक ऐसी पीढ़ी सामने आई है जो बात-बात पर गला पकड़ने पर उतारू होते हैं।इस तथाकथित आधुनिक पीढ़ी की नजर में ‘दुनिया माई फुट’ होता है।प्रगति के चलते जो नई पीढ़ी सामने आई है,वह उच्छृंखल और स्वच्छंद है।ऐश तू कर यार,ऐश तू कर यार,दुनिया जाए तेल लेने की मानसिकता हावी होती जा रही है।
- हालांकि इस मानसिकता वाले लोग पुराने जमाने में भी थे परंतु कम संख्या में थे।भौतिकवादी विचारधारा का मंत्र था:
- “यावज्जीवेत् सुखमजीवेत ऋणकृत्वा घृतं पिबेत।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमन कुत:।।” - अर्थात् जब तक जीना सुख से जीना चाहे ऋण लेकर घी पीना क्योंकि मरने पर यह शरीर समाप्त हो जाता है।फिर पुन: आगमन नहीं होता है अतः कौन किससे क्या मांगेगा? इसी प्रकार अंग्रेजी में कहावत है:
- “Eat drink and be marry for tomorrow you die”
- याने खाओ,पियो और ऐश करो क्योंकि कल को तुम्हें मरना ही है (इसलिए कोई भी मनोकामना बाकी मत रखो)।
किसी को किसी की खबर ही कहाँ है।किसी को दूसरे की परवाह नहीं।लोग उस राह पर चल निकले हैं जिसकी मंजिल का कोई अता-पता नहीं है।लोगों की हालत उस मृग के सदस्य हो गई है जो कस्तूरी की खोज में जंगल में मारा-मारा फिरता है,जबकि कस्तूरी उसकी नाभि में ही है।
- आज प्रगति के चलते पूरा संसार सिमटकर एक वैश्विक गांव (Global Village) बन गया है।भौगोलिक दूरियां कम हो गई है।टेलीफोन,मोबाइल,फैक्स,टेलीविजन,इंटरनेट,ई-मेल,कंप्यूटर और सेटेलाइट ने सारी दूरियां मिटा दी है।आज सूचना प्रौद्योगिकी के चलते एक-दूसरे के काफी नजदीक आ गए हैं।आज ऊँगली तले सारा संसार है।आप रिमोट दबाएं और आपके सामने दुनिया भर की खबरें,फिल्में,सीरियल,खेल,विश्लेषण आदि हाजिर हैं।
- परंतु इस प्रगति के साथ ही एक नुकसान यह हुआ है कि लोग समाज से कट गए हैं।यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण विरोधाभास है एक तरफ जो लोग मशीनी तौर पर एक-दूसरे के नजदीक आए हैं तो दूसरी तरफ सामाजिक और भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से दूर होते गए हैं।आज के जो ये तथाकथित प्रगतिशील लोग हैं उन्हें यह तो पता होता है कि यूक्रेन में क्या हो रहा है या चीन-भारत,चीन-पाकिस्तान,चीन-ताइवान के कैसे सम्बन्ध हैं या फिर क्लिंटन ने मोनिका लेंविस्की के साथ ‘व्हाइट हाउस’ (white house) में किस तरह गुलछर्रे उड़ाए,परन्तु उन्हें यह पता नहीं है कि उनके ‘सोसाइटी’ में आज एक सामाजिक कार्यकर्ता की बेटी की शादी है या फिर उनके ही बगल वाले फ्लैट में रहने वाले ‘वर्मा’ जी की पत्नी काफी बीमार और मरणासन्न है।औरों की बात छोड़िए।इन्हें तो ये भी पता नहीं कि उनके बच्चे की ‘स्कूल फीस’ जमा हुई या नहीं।सबका एक ही रोना है:समयाभाव।
- किसके पास कितनी फुर्सत है जो औरों की फिक्र करते हैं।जो ऐसा करते हैं उन्हें बेवकूफ और निठल्ला समझा जाता है।
यदि आप औपचारिकतावश पड़ौसी के सुख-दु:ख में शामिल भी हो जाते हैं,तो महज ‘निपटाने’ की गरज से।चूँकि आपको कोई भावनात्मक लगाव तो होता नहीं है,ऐसे में सुख-दुःख में भागीदार बनना भी आपके लिए ‘बोझ’ बन जाता है।फिर आपके पास भी वही रटा-रटाया बहाना होता है:समयाभाव।यह सब क्यों हो रहा है? प्रगति को हमने जिस तरह से समझा है उसमें सामाजिकता का कोई महत्त्व नहीं है।उसने सामाजिक बंधन तोड़ दिए हैं। - लोगों की सहनशीलता दिनानुदिन कम-से-कमतर होती जा रही है और संवेदनशीलता नाममात्र के लिए बची है।
लोगों की जो मानसिकता है उसकी शुरुआत भी ‘पैसे’ से होती है और समापन भी ‘पैसे’ से ही होता है।आज हमारे समाज में चारों ओर तनाव,हिंसा और मार-पीट का जो माहौल है उसके पीछे कहीं न कहीं प्रगति की वर्तमान भौतिकवादी और अर्थप्रधान अवधारणा है।प्रगति की चाहत में हमने जो अपसंस्कृति और उपभोक्तावादी मानसिकता विकसित की है,उसमें लोग ‘पैसे के चलते कुछ भी करने को तैयार’ रहते हैं।ऐसे लोगों का एक ही जुमला होता है:’दुनिया है,सब चलता है।’ सहनशीलता की कमी के चलते हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही है। - तात्पर्य यह है कि वह मनुष्य क्या लाभ प्राप्त करता है जो पूरी दुनिया पर विजय प्राप्त कर लेता है,परंतु स्वयं को गवाँ देता है।प्रगति और उसके मूल्य का जमा खर्च हम स्वयं करें और देखें कि हमारा सौदा कितने घाटे का है।
5.आज के युग में प्रगति का निष्कर्ष (Conclusion of Progress in Today’s Era):
- भौतिक प्रगति,तकनीकी विकास ने मनुष्य को अनेक सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं।वैज्ञानिक प्रगति के कारण मनुष्य को दैनंदिन आवश्यकताओं को आसानी से पूरा करने में सहायता दी है परंतु इस कारण मनुष्य दिनोंदिन परावलम्बी तथा विलासी बनता जा रहा है।उसे संवेदनाशून्य बना दिया है।यह भौतिक प्रगति मनुष्य को कहाँ ले जाकर छोड़ देगी,कुछ कहा नहीं जा सकता।
- विद्यार्थी काल में ही यौनाचार,लिव इन रिलेशनशिप,वैलेंटाइन डे,स्प्रिंग ब्रेक,अविवाहित मातृत्व,यौन स्वेच्छाचार जैसी ओर भी कई समस्याएं हैं जो गहराई से विचार करने पर भौतिक प्रगति की देन लगेंगी।
- इसका समाधान यही है कि मनुष्य अनीति का मार्ग छोड़कर नीति का अनुसरण करें।धर्म,अध्यात्म को जीवनशैली का अंग बनाए।भौतिक सुख-सुविधाओं को उपयोग में लेना बुरा नहीं है परंतु भौतिक सुख-सुविधाओं को भोगने में आसक्ति नहीं होनी चाहिए।धन कमाना कोई बुरी बात नहीं है परंतु धन कमाने के तरीके साफ-सुथरे होने चाहिए।जीवन में भौतिक प्रगति और आध्यात्मिकता के बीच एक निश्चित संतुलन होना चाहिए तभी मनुष्य सुख-शांति एवं संतोष के साथ जीवन जी सकता है।
6.आधुनिक युग में प्रगति का दृष्टान्त (Parable of Progress in the Modern Age):
- भौतिक प्रगति के कारण वर्तमान समय में युवाओं और लोगों की मानसिकता कैसी है,उसकी सच्चाई को बयान करने वाली एक कहानी है।यह भागमभाग जिंदगी जीने वाले और प्रगति को ठीक तरह से न समझ सकने वाले लोगों और विद्यार्थियों की आंखें खोलने वाली है।साथ ही यह हमारे समाज में मानवीय मूल्यों की लगातार हो रही गिरावट को उजागर करती है।
- एक गणित का विद्यार्थी सड़क पर जा रहा था।आजकल गणित और विज्ञान को पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को अंतिम सत्य विज्ञान ही नजर आता है,उसे ही सर्वस्व मान बैठे हैं।
- उस विद्यार्थी ने देखा कि सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पड़ा हुआ है।जिसे गंभीर चोटें आई थी।विद्यार्थी ने उसे अस्पताल पहुंचाया।घायल व्यक्ति के होश में आने पर उससे आवश्यक जानकारी प्राप्त कर उसके घरवालों को सूचित किया गया।
घर के लोग अस्पताल आए।उन्होंने घायल व्यक्ति की सहायता करने वाले व्यक्ति को धन्यवाद दिया।उसके एक परिजन ने कहा:भैया!आपने हमारे लिए काफी कुछ किया है वरना आज के जमाने में कौन दूसरों की सहायता-सहयोग करता है।सब लोग देख कर चले जाते हैं।
- सहायता करने वाले विद्यार्थी ने सर झटकते हुए और अपराध-बोध से ग्रसित होकर कहा:मैं भी नहीं करता,पर कल मैंने काफी शराब पी ली थी।इसलिए यह गलती कर बैठा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में आज के युग में प्रगति किसको समझा जाता है? (Who Understand Progress in Today’s Era?),आज वास्तव में प्रगति कैसी है? (How is Progress Really Going on Today?) के बारे में बताया गया है।
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7.गणित की परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र (हास्य-व्यंग्य) (Question Paper for Mathematics Exam) (Humour-Satire):
- गणित शिक्षक (छात्र से):लो ये गणित का प्रश्न-पत्र,इसको ठीक से हल करना है।
- छात्र:लेकिन सर (sir),मुझे इस प्रश्न-पत्र से यह कैसे मालूम पड़ेगा कि कौनसे सवाल अर्धवार्षिक परीक्षा में आएंगे और कौनसे प्रश्न वार्षिक परीक्षा में आएंगे।मुझे तो यह सारे सवाल एक जैसे ही लगते हैं।
8.आज के युग में प्रगति किसको समझा जाता है? (Frequently Asked Questions Related to Who Understand Progress in Today’s Era?),आज वास्तव में प्रगति कैसी है? (How is Progress Really Going on Today?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.हमारी प्रगति किस पर निर्भर है? (On What Does Our Progress Depend?):
उत्तर:संसार में कोई भी विद्यार्थी या मनुष्य दूसरों के सहयोग के बिना किसी योग्य नहीं बन सकता है।वह जो कुछ बनता है,दूसरों के सहयोग से बनता है।जो विद्यार्थी या लोग इस प्रकार का अहंकार रखते हैं “हमारे पास भगवान का दिया सब कुछ है।हमें किसी पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है।” इस प्रकार का अहंकार बहुधा वही विद्यार्थी या लोग दिखाया करते हैं जिन्हें धन,जन का बल होता है किंतु वे यह भूल जाते हैं कि उनके पास जो धन-जन की वृद्धि हुई है,वह दूसरों के सहयोग-सहायता अथवा कृपा से हुई है।धन जिसका कि छात्र-छात्राओं और लोगों को बड़ा जोर रहता है वह दूसरों से ही प्राप्त होता है भले ही वह आपकी मेहनत से प्राप्त हुआ हो।परंतु दूसरे लोग असहयोग करना प्रारंभ कर दें तो आपकी स्थिति पलटते देर नहीं लगेगी।
प्रश्न:2.विद्यार्थी की प्रगति किस पर निर्भर है? (What Does Student Progress Depend on?):
उत्तर:प्रत्येक छात्र-छात्रा माता-पिता,शिक्षक व मित्रों द्वारा सहायता-सहयोग पाकर आगे बढ़ता है और ऊपर उन्नति करता है।माता-पिता,शिक्षकों व मित्रों तथा अन्य लोगों के सहारे के बिना छात्र-छात्रा एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता है।प्रत्येक छात्र छात्रा की एक सीमित क्षमता होती है।कोई भी छात्र-छात्रा न अपने में पूर्ण है और न सर्वथा आत्मनिर्भर।छात्र-छात्रा शिक्षक पर निर्भर है तो शिक्षक वेतन भुगतान करने वाले तथा पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करने पर निर्भर है।जीवन के सारे क्षेत्र एक-दूसरे पर निर्भर हैं।जीवन के सारे क्षेत्र आवश्यक होते हैं;पर कोई भी छात्र-छात्रा स्वयं अपने आप हर क्षेत्र में अपना काम नहीं चला सकता है।अपना क्षेत्र छोड़कर उसके दूसरे क्षेत्र में भी किसी ओर पर निर्भर रहना होगा।
क्या कोई व्यक्ति अपने किसी विशेष क्षेत्र का समर्थ ज्ञानी है,यों ही अपने आप ऐसा योग्य बन गया है?नहीं,कदापि नहीं होता।वह अपने विषय का ज्ञान भी दूसरे लोगों से प्राप्त करता है।उदाहरणार्थ एक इंजीनियर को ही ले लीजिए,इंजीनियर बनने से पूर्व वह एक विद्यार्थी रहा होगा।वह ऐसी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ा होगा,जिसे दूसरे लोगों ने बनवाया और ऐसे लोगों ने उसे पढ़ाया होगा,जो स्वयं भी किन्हीं संस्थाओं में किन्हीं दूसरे लोगों द्वारा पढ़ाए गए होंगे।इसके अतिरिक्त किताबों तथा अन्य शिक्षा सामग्री तथा अभिभावकों से पैसा इत्यादि की आवश्यकता पड़ी होगी जो किसी के सहयोग से मिला होगा।यही बात एक इंजीनियर पर ही नहीं कुछ उलटफेर के साथ सभी लोगों पर घटित होती है।
प्रश्न:3.प्रगति एक-दूसरे पर निर्भर कैसे है? (How is Progress Dependent on Each Other?):
उत्तर:जिस प्रकार बूंद-बूंद से सागर और ईंट-ईंट से भवन बनता है,उसी प्रकार जन-जन मिलकर समाज का निर्माण करते हैं।जिस प्रकार जल की एक बूंद का अपना कोई अस्तित्व नहीं और जिस प्रकार दूसरों से पृथक रहकर एक अकेली ईट मिट्टी के एक निरर्थक डेले से अधिक कोई महत्त्व नहीं है,उसी प्रकार समाज से पृथक एक अकेले व्यक्ति का भी न कोई अस्तित्व है और न महत्त्व।अतः सबको एक-दूसरे पर निर्भर पर पड़ता है तभी व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।यदि वह यह सब जानकर भी अपने विचारों में सुधार नहीं करता तो कभी भी समाज द्वारा अपनी इस ढिढाई का दण्ड पा सकता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा आज के युग में प्रगति किसको समझा जाता है? (Who Understand Progress in Today’s Era?),आज वास्तव में प्रगति कैसी है? (How is Progress Really Going on Today?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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