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Who is Role Model for Students?

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1.छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Students?),गणित के छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Mathematics Students?):

  • छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Students?) क्योंकि जैसा रोल मॉडल होता है उसी का अनुसरण छात्र-छात्राएं करते हैं।आज के अधिकांश युवाओं का रोल मॉडल या तो फिल्मी सेलिब्रिटी (celebrity),क्रिकेट खिलाड़ी,फुटबॉल खिलाड़ी,संगीतकार,गायक इत्यादि में से किसी-न-किसी को बना रखा है।इनकी वेशभूषा,चाल-ढाल,हाव-भाव,हेयर स्टाइल,डांस की कलाकारी,रन बनाने,गोल दागने,खलनायक या अनेक व्यक्तियों को फिल्मी स्टाइल में ढेर करने का अंदाज उन्हें पसंद आते हैं।आज के विद्यार्थी भी उनके जैसा ही बनना चाहते हैं,आकांक्षा रखते हैं।परंतु उनकी ऊपरी दिखावे,चाल-ढाल,वेशभूषा,हेयर स्टाइल,बोलने के अंदाज को अपना लेने से न तो छात्र-छात्राओं का चिंतन बदल सकता है और न चरित्र बदलता है।
  • इसका कारण है कि उनके द्वारा चुने गए बौने आदर्श।युवाओं द्वारा चुने गए इन आदर्शों ने व्यक्तिगत उपलब्धियां कितनी ही हासिल की हो परंतु उनका वास्तविक व्यक्तित्त्व ऐसा नहीं है कि उसे आदर्श कहा जा सके।उनमें ईमानदारी,सरलता,विनम्रता,त्याग,समर्पण,सेवा,सहयोग,सहिष्णुता,परमार्थ,उदारता,करुणा,प्रेम,दया इत्यादि गुणों में से यदि किसी उपर्युक्त गुणों में से शायद ही किसी उपर्युक्त आदर्शों में देखने को मिलेगा।उदाहरणार्थ किसी फिल्मी सेलिब्रिटी ने अनेक हिट फिल्में दी होंगी परंतु शहीदों,राष्ट्रीय आपदा,भूकंप,अकाल,महामारी इत्यादि में शायद ही बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया हो।हाँ ये सेलिब्रिटी (प्रसिद्ध व्यक्ति) अपने जॉब के अलावा चाय,तेल,साबुन,मोटर कार,शीतल पेय,फेस क्रीम,हेयर कंडीशनर,शैंपू,अंडरवियर,बनियान,मोटरसाइकिल,खिलौने इत्यादि का प्रचार-प्रसार (विज्ञापन) करके भारी भरकम,मोटी रकम बटोरते जरूर नजर आते हैं।
  • हालांकि इन कामों को गलत नहीं कहा जा सकता है।लेकिन इन कामों में अपनी व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति के अलावा ऐसा कोई काम नहीं है जिससे रोल मॉडल की संज्ञा दी जा सके अथवा उनमें आदर्श को खोजा जा सके।
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2.रोल माॅडल प्रेरक व्यक्तित्त्व न होने का कारण (The Reason for Not Having a Role Model Motivational Personality):

  • युवावर्ग जब अध्ययन करता है तो उनमें कुछ खास बनने की चाहत होती है,पर किस तरह बना जाए यह न तो उन्हें पता है न उन्हें कोई बताने वाला है।विद्यार्थी अधिकांश समय माता-पिता,शिक्षकों व मित्रों के साथ व्यतीत करता है।मां-बाप अपने पुत्रियों को आधुनिकता की चकाचौंध में बेटे-बेटी को बुलंदियों पर देखना चाहते हैं।परंतु बेटे-बेटी में कैसी प्रतिभा है,कौनसी कला उनके अंदर छिपी हुई है इसे न जानने के लिए उनके पास वक्त है और न जानने की कोशिश करते हैं।
  • माता-पिता रात-दिन धन जुटाने में लगे रहते हैं और बेटे-बेटियों को पब्लिक स्कूलों,अच्छी कोचिंग सेंटर,पढ़ाई के लिए साधन-सुविधाओं,घर में आलीशान पढ़ने का कमरा इत्यादि के लिए धन तो खर्च कर सकते हैं परंतु बेटे-बेटी के मन की बात जानने,बेटे-बेटी के अंदर की प्रतिभा को पहचानने,बेटे-बेटी में संस्कार और गुणों को विकसित करने के लिए उनके पास समय नहीं है।
  • पुत्र-पुत्री कुछ कहने की हिम्मत करते हैं तो उन्हें नीति,आदर्श की घुट्टी पिला दी जाती है।उन्हें मां-बाप से नसीहतें,झिड़कियाँ सुनने को मिलती हैं।
  • उनका टका सा जवाब होता है कि अब तुम बच्चे नहीं रहे हो,बड़े हो गए हो।तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों,कर्त्तव्यों का एहसास होना चाहिए।माता-पिता बच्चों को मेडिकल,इंजीनियरिंग,मैनेजमेंट,कंप्यूटर अथवा आईएएस इत्यादि बनाने के सपने देखते हैं।परंतु इस दिशा और विषयों के चयन में बहुत कम माता-पिता ऐसे होते हैं जो बेटे-बेटी की रुचि,योग्यता,सामर्थ्य तथा उनकी छुपी हुई प्रतिभा का पता लगाने का ख्याल रखते हैं।
  • वस्तुतः माता-पिता स्वयं अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के आधार पर ही यह तय करते हैं कि बेटे-बेटी को क्या पढ़ा जाना है,कौन सा कोर्स करना है? पुत्र-पुत्रियों के पास ओर कोई चारा नहीं है कि वे माता-पिता व अभिभावक की बात को टाल सके क्योंकि वे उन्हीं के ऊपर आश्रित हैं,वे उनका सारा खर्चा वहन करते हैं।
  • रुचि,योग्यता,सामर्थ्य के विपरीत पढ़ाई का कोर्स चयन करने के कारण छात्र-छात्राओं में कुंठा का जन्म होता है।स्वाभाविक है कि पुत्र-पुत्रियाँ बेमेल विषय में अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाते हैं।तब उन्हें माता-पिता से फटकार व ताने सुनने को मिलते हैं और सुनने मिलते हैं निकम्मा,नाकारा,अक्षम होने के प्रमाण पत्र।उनकी तुलना दूसरे श्रेष्ठ,मेधावी बालक-बालिकाओं से की जाती है।किसी गणितीय समीकरण की तरह यह सिद्ध किया जाता है कि वे कितने गए-गुजरे हैं।
  • फलस्वरूप वे माता-पिता को अपने मन की बात,सच्ची बात बताने से कतराने लगते हैं।वे उनसे कटते चले जाते हैं।साथ ही बालक-बालिकाओं में निराशा और चिंता का जन्म हो जाता है।वे अपराध-बोध से ग्रसित हो जाते हैं।उनकी भावनाओं से सरोकार रखने वाला घर में कोई नहीं होता।
  • दूसरी तरफ शिक्षक भी व्यवसाय के पर्याय बनते जा रहे हैं अतः विद्यालय-महाविद्यालयों में शिक्षकों व संचालकों का उनकी निजी जिंदगी या उनके मन की उलझनों से कोई मतलब नहीं होता।यदि छात्र-छात्रा साहस करके कुछ कहते बताते या जताते हैं तो ताने-व्यंग्य या कटुक्तियों के कंटक ही उनके पल्ले पड़ते हैं।वहाँ भी उन्हें अपनापन नहीं मिलता है।विद्यालय या महाविद्यालय के शिक्षक,प्राध्यापक छात्र-छात्राओं को पाठ्यक्रम पूरा कराने की जिम्मेदारी ही समझते हैं।
  • माँ-बाप केवल उनके लिए पैसा जुटाते हैं तो शिक्षक केवल उनका पाठ्यक्रम पूर्ण करवाते हैं।माता-पिता को अपने दोस्तों-रिश्तेदारों,परिचितों से यह बताने में खुशी मिलती है कि उनका बेटा आईआईटी या आईआईएम का छात्र है या आईएएस की तैयारी कर रहा है।उत्तीर्ण होते ही बड़ी जाॅब मिल जाएगी।पुत्र-पुत्री कुछ बातें कहते हैं तो बस जिम्मेदारी,नैतिकता की एक घुट्टी पिला देते हैं।
  • छात्र-छात्राओं के मित्रों की तादाद है वह केवल टाइमपास है क्योंकि सभी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं पर सवार हैं।बहुत अच्छी मित्रता होने के बावजूद एक-दूसरे के मन में झाँकने की फुर्सत नहीं हैं।
  • मां-बाप,रिश्तेदार,शिक्षक,मित्रों व पुस्तकें,जो भी होता है आदर्शों की सीख देने से नहीं चूकता है,पर मन का क्या करें,उनकी छिपी हुई प्रतिभा का क्या करें? कहीं कोई यह बताने वाला नहीं है कि आदर्शों को जीवन में उतारने की प्रक्रिया क्या हो? वे उलझनों से बाहर कैसे निकलें? उन्हें तो बस डांटने,समझाने और नसीहत देने वाले मिलते हैं।ऐसी स्थिति में माता-पिता,शिक्षक व मित्र रोल मॉडल कैसे बन सकते हैं? यही सबसे निकट रहते हैं और रोल मॉडल बनने की क्षमता रखते हैं परंतु वे स्वयं महत्त्वाकांक्षाओं पर सवार हैं।

3.छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कैसा हो? (How is the Student Role Model?):

  • रोल मॉडल तो हमेशा ऐसा होना चाहिए जिसमें जीवन की समस्त गुत्थियों व समस्याओं को सुलझाने की क्षमता हो तथा जिसमें चरम गुणवत्ता विद्यमान हो,जिसमें जिंदगी और आपके लक्ष्य की झलक निहारी जा सके।ऐसा न होने पर केवल बाहरी चमक-दमक,डिग्री (क्वालिफाइड) व भौतिक ज्ञान होने से बात नहीं बनती है।
  • रोल मॉडल में भौतिक,व्यावहारिक व आध्यात्मिक ज्ञान का चरमोत्कर्ष की झांकी मिलनी चाहिए।
  • काठ की हाँडी में सब्जी नहीं पकाई जा सकती है और कागज की नाव जल्दी ही डूब जाती है।जिस व्यक्ति का जीवन संघर्षमय,तप व त्याग में व्यतीत नहीं हुआ हो,जिसने जिंदगी में मुश्किलों का सामना नहीं किया वह रोल मॉडल नहीं बन सकता है।वह अपनी समस्याओं को ही नहीं सुलझा सकता है तो आपको मार्गदर्शन व प्रेरणा कैसे मिल सकती है?जीवन की मंजिल फिल्मी संवादों और क्रिकेट में रनों के अम्बार लगाने वालों के सहारे हासिल नहीं की जा सकती है।
  • रोल मॉडल तो हमेशा ऐसा हो जो प्रेरक हो,मार्गदर्शक हो,जीवन की सही दिशा व दशा बता सकता हो और चला सकता हो।जिसकी जीवन शैली,जीवन प्रसंग में इतना तप,तेज,ओज व प्रकाश हो कि वह अपना अनुसरण करने वालों के जीवन में तप,तेज,ओज,ज्ञान,प्रकाश और ऊर्जा भर सके।
  • जब बात छात्र-छात्राओं के रोल मॉडल की चले तो यह ध्यान रखना होगा कि जो स्वयं साहस और संवेदना से युवा हो।जिसमें जमाने की हवा को आदर्शों की राह पर चला देने का दम-खम हो।जिसमें छात्र-छात्राओं के जीवन की चरम संभावनाएं साकार दीखती हों।जिसे देखते ही बालक-बालिकाएं रोल मॉडल के पथ पर चलने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें।जिसके सानिध्य में युवक-युवतियों की उर्जा,मेधा शक्ति को बढ़ाने की ओर हो और परम पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा मिले।
  • जिसको देखकर,जिसे सुनकर युवाओं के जीवन का बहकाव-बिखराव सिमटने लगे और जीवन की दिशा स्पष्ट होती चले।जिसे छात्र-छात्राओं के कर्त्तव्य-पथ की कठिन डगर पर आगे बढ़ने का साहस एवं धीरज मिले।जिसके जीवन एवं चिंतन से युवाओं में समाज,संस्कृति,देश एवं मानवता के लिए कुछ कर गुजरने का भाव उफन उठे।जिसके वैचारिक एहसास से विद्यार्थियों में स्वार्थ,अहंकार से ऊपर उठकर जीवन के परम तत्त्व की ओर बढ़ने लगे,उनमें कुछ ऐसी ही सोच,सूझ एवं साहस पैदा हो।

4.रोल मॉडल की समीक्षा (Roll Model Review):

  • उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो गया होगा कि हमें माता-पिता,अभिभावकों,शिक्षकों व मित्रों में रोल मॉडल क्यों दिखाई नहीं देता है।
  • परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि रोल मॉडल का बिल्कुल अकाल पड़ गया है।वस्तुतः हमारी दृष्टि ही सांसारिक हो तो वैसे ही लोगों से हमारा संपर्क बढ़ता जाता है।कहा भी गया है कि जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है।रोल माॅडल जिसमें साहस,संवेदना,सेवा एवं सृजन की झलक हमें जहां कहीं भी मिले,उसे ही रोल मॉडल के रूप में अपनाया जा सकता है।स्वार्थ पूर्ति,धन कुबेर बनने की तकनीक,ये सब जिंदगी की सामान्य बातें हैं।इनको देखकर रोल मॉडल नहीं चुना जा सकता है।रोल माॅडल तो वह साँचा है जिसके बारे में सोचकर हम स्वयं को ढालते,गढ़ते और संवारते हैं।इसकी पहचान ठीक से हो और खोज पूरी हो तो छात्र-छात्राओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।इसलिए अपनी दृष्टि को सही करने पर उपयुक्त रोल माॅडल भी खोजा जा सकता है।वह माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक,मित्र,गणितज्ञ,महापुरुष,सन्तों के रुप में कहीं न कहीं खोज करने पर अवश्य मिल सकता है।
  • स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस के रूप में,महर्षि दयानंद सरस्वती को विरजानन्द के रूप में,अर्जुन को श्रीकृष्ण के रूप में,शिवाजी को समर्थ गुरु रामदास के रूप में,भतृहरि को गुरु गोरखनाथ के रूप में रोल मॉडल मिले और उनकी दशा और दिशा दोनों ही ऐसी मिली की उन्होंने संसार के समक्ष सर्वोत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया।

5.रोल मॉडल का दृष्टांत (The Example of the Role Model):

  • एक प्रोफेसर जब कक्षा प्रवेश करते थे तो सभी छात्र-छात्राएं उठकर उनका अभिवादन करते थे।प्रोफेसर हमेशा प्रसन्न और खुश रहते थे।इसके कारण कोई भी छात्र-छात्रा उदास और निराश होता तो सहज हो जाता था।इसलिए उनकी कक्षा बड़े ही सहज और अपनत्व से भरे वातावरण में चलती थी।सभी छात्र-छात्राएं बेसब्री से उनकी कक्षा की प्रतीक्षा करते थे।कोई भी छात्र-छात्रा उनकी कक्षा से वंचित नहीं होना चाहता था।
  • वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।उन्हें भारतीय संस्कृति से गहरा लगाव एवं रुचि थी।भारतीय संस्कृति के कारण ही वे धोती-कुरता पहनकर आते थे तो ऋषि तुल्य लगते थे।वे भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर चुके थे।उनके मुखमंडल पर ओज और तेज प्रकट होता था।कोई भी उनके संपर्क में आता था तो सभी उनके प्रभाव का आकर्षण महसूस करते थे।
  • एक बार परीक्षा परिणाम आया तो कुछ छात्र-छात्राएं दुःखी थे तो कुछ छात्र-छात्राएं खुश थे।कोई किसी के दुःख से सुखी था तो कोई किसी के सुख से दुःखी था।प्रोफेसर ने छात्र-छात्राओं का चेहरा देखकर ताड़ लिया।
  • प्रोफेसर बोले सुख और दुःख हमारे जीवन के अनुभव हैं।एक सकारात्मक है और दूसरा नकारात्मक है।एक हमें अच्छा लगता है और दूसरा अवसाद की ओर ले जाता है।प्रश्न है कि क्या तुम औरों की प्रसन्नता से प्रसन्न होते हो और दुःख से दुःखी?
  • सामान्यतया ऐसा नहीं होता।एक छात्रा ने प्रश्न दागा कि आप कह रहे हैं जो सत्य है परंतु ऐसा क्यों होता है? प्रोफेसर बोले आनंदित व्यक्ति के प्रति मैत्री एवं दुःखी व्यक्ति के प्रति करुणा का भाव नहीं रख पाते हैं और यही कारण है कि हमारी दुःख और पीड़ा का।प्रसन्नता एक दृष्टि है,एक भाव है,जो हमारे चारों ओर फैली पड़ी है।तुम चाहो तो प्रसन्न हो सकते हो ऐसा होने पर तुम्हारे मन के एवं हृदय के द्वार खुल जाते हैं और प्रसन्नता तुम्हारे अंदर प्रवाहित होने लगती है।यह प्रवाह ही मित्रता है।
  • पर हम करते हैं इसका उल्टा,हम न तो दूसरों के दुःख में सहभागी बन पाते हैं और न ही उसकी प्रसन्नता के सहयोगी।मन है ही ऐसा कि नीचे जाने में रुचि लेता है और ऊँचाई पर चढ़ने से भागता है।यही दुःख का कारण है जो हमें दुःखी करता है।
  • छात्रा बोली इस दुःख से कैसे निकलें? इसका समाधान क्या है? प्रोफेसर बोले दुःखी के प्रति करुणा,मित्रता नहीं।यही इसका समाधान है।मित्रता का अर्थ है तुम वह होना चाहते हो जैसा दूसरा है।परंतु करुणा का अर्थ है कि कोई अपनी अवस्था से गिर गया है उसकी सहायता करना चाहते हों,उसके समान होना नहीं चाहते।उसे प्रसन्नता तो दी जा सकती है पर उसके जैसा होना जरूरी नहीं है।दुःखी व्यक्ति को उसके दुःख से बाहर निकालने का प्रयास तो किया जा सकता है पर भला उसके जैसे कैसे हुआ जा सकता है।
  • छात्रा बोलीःप्रोफेसर!पर क्या यह सम्भव है कि बिना दुःखी व्यक्ति के दुःख में दुःखी हुए हम उसकी सहायता कर पाएं? प्रोफेसर बोलेःदुःखी व्यक्ति की भावनाओं की अनुभूति करने का अर्थ उसी की तरह दुःखी हो जाना नहीं है।सामान्यतया हम यही सोचते हैं कि दूसरे के दुःख के साथ दुःखी होना,उसकी सहायता करना है,पर ऐसा करने से मात्र दो व्यक्ति दुःखी होते हैं और दोनों में से किसी का कल्याण नहीं हो पाता।दुःखी व्यक्ति को उसके दुःख से बाहर निकालने के लिए सहायता करनी चाहिए,दूर खड़े होकर,तटस्थ होकर।यदि ऐसा नहीं करते हैं तो हम उसके दुःख को अपने अंदर आने के लिए अपना द्वार खोल देते हैं।दुःखी व्यक्ति के प्रति सहायता तटस्थ भाव से करनी चाहिए।यही तो करुणा है,जो दुःखी के साथ करनी चाहिए।
  • पर ऐसा नहीं है कि हम यह भूल मात्र दुःखी व्यक्ति के साथ ही दोहराते हैं,हम प्रसन्न व्यक्ति की प्रसन्नता में भी इसी तटस्थता के साथ सहभागी नहीं बन पाते हैं।प्रसन्न व्यक्ति के साथ मित्रता का अर्थ इसी निष्पक्ष भाव से उसके भावों की अनुभूति करना है,उसकी प्रसन्नता के साथ उन्मादी बन जाना नहीं है।प्रसन्न व्यक्ति के प्रति मैत्रीपूर्ण भावना का संवर्द्धन करने से ही मन शान्त,स्थिर एवं प्रसन्न हो पाता है।
  • प्रोफेसर ने जब कक्षा में प्रवेश किया था तो परीक्षा परिणाम के कारण वातावरण अशांत एवं अस्थिर था परंतु अब सब कुछ शांत एवं सहज हो गया था।
  • गणित के प्रोफेसर का लड़का भी उसी कक्षा में पढ़ता था।वह भी गणित का छात्र था।गणित के प्रोफेसर का लड़का भी बड़ा शिष्ट तथा अनुशासन प्रिय था।सहपाठी उसे बहुत स्नेह और सम्मान देते थे।एक दिन गणित के प्रोफेसर के साथ उनका लड़का पढ़ने नहीं आया।कक्षा में छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के बाद ज्योंही वे कक्षा से बाहर निकलने लगे तो छात्र-छात्राओं ने पूछा,आज आपका लड़का पढ़ने क्यों नहीं आया?
  • प्रोफेसर ने गम्भीर होकर कहा कि उसको अचानक दिल का दौरा पड़ा और उसका देहांत हो गया।सभी विद्यार्थी स्तब्ध रह गए।उन्हें अपने साथी के निधन का भारी दुःख हुआ।साथ ही इस बात का आश्चर्य भी कि ऐसी दुर्घटना होने पर भी गणित के प्रोफेसर पढ़ाने कैसे आ सके और बिना विचलित हुए किस प्रकार रोज की तरह गणित पढ़ाते रहें?
  • सभी विद्यार्थियों ने उस दिन की तरह अपना असमंजस प्रोफ़ेसर के सामने व्यक्त किया।प्रोफेसर ने उत्तर दिया की भावना से कर्त्तव्य श्रेष्ठ होता है।दोनों बार तथा प्रतिदिन प्रोफ़ेसर की कर्त्तव्यनिष्ठा देखकर सभी छात्र-छात्राएं उनके प्रति श्रद्धावनत हो गए।रोल मॉडल ऐसे ही महान व्यक्तित्त्व बनते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Students?),गणित के छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Mathematics Students?) के बारे में बताया गया है।

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6.भगवान एक गणितज्ञ है (हास्य-व्यंग्य) (God is a Mathematician) (Humour-Satire):

  • श्रीकांत:सर (sir),मेरे पिताजी कह रहे थे कि भगवान एक गणितज्ञ है।
  • गणित अध्यापक:तुम्हारे मस्तिष्क में यह बात क्यों नहीं उतरती है? तुम गणित के सवालों को हल करने में रुचि क्यों नहीं लेते हो? मेरे से नहीं तो कम से कम अपने पिताजी से ही सीख ले लो।

7.छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Frequently Asked Questions Related to Who is Role Model for Students?),गणित के छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Mathematics Students?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.युवक-युवतियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव कब होता है? (When Does There Be a Significant Change in Young Men and Women?):

उत्तर:युवक-युवतियां किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो शरीर और मन में परिवर्तनों का दौर शुरू होता है।यह आयु 15 वर्ष से 35 वर्ष के बीच रहती है।शरीर और मन में परिवर्तनों के कारण मन की चाहते भी बदलती है।कल्पनाओं और आकांक्षाओं का नया संसार शुरू होता है।वे इसे बताना चाहते हैं परंतु उनको सुनने के लिए रोल मॉडल नहीं मिलता है।जिससे उनमें कुण्ठा पैदा हो जाती है।

प्रश्न:2.छात्र-छात्राएं सटीक रोल मॉडल क्यों नहीं चुन पाते हैं? (Why Can’t Students Choose the Exact Role Model?):

उत्तर:अधिकांश युवा पाश्चात्य जीवन शैली तथा आधुनिक ऐशो आराम की जीवन शैली को अपना लेते हैं।घर में अधिकांश माता-पिताओं का भी हाल यही होता है।उनमें रोल मॉडल का साँचा नहीं मिल पाता है।इसलिए छात्र-छात्राएं फिल्मी नायकों व क्रिकेटरों से प्रभावित होकर अपने लिए आदर्श गढ़ लेते हैं।

प्रश्न:3.युवाओं को सही दिशा कैसे दी जा सकती है? (How Can Young People Be Given the Right Direction?):

उत्तर:युवाओं की भावनात्मक गुत्थियों को सुलझाने की आवश्यकता है।इसके लिए अभिभावकों को सकारात्मक रवैया अपनाने की जरूरत है।पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अलावा जिन्दगी से जुड़ी हुई बातों पर भी चर्चा होनी चाहिए।मनःस्थिति एवं परिस्थिति का लगातार लम्बे समय तक बेमेल बने रहना ठीक नहीं है।युवाओं एवं उनके अभिभावकों को इसमें सामंजस्य के तौर-तरीके की खोज करनी चाहिए।आध्यात्मिक आचार्यों को भी युवाओं की समस्याओं का हल खोजने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए।अच्छा हो कि युवक स्वयं भी साहसी एवं अन्वेषक बनें और स्वयं की गुत्थियों को उबरने के लिए साहसिक कदम उठाएँ।यदि युवाओं की समस्याओं का समाधान नहीं खोजा जाएगा तो युवावर्ग दिशाहीन हो जाएगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Students?),गणित के छात्र-छात्राओं का रोल मॉडल कौन हो? (Who is Role Model for Mathematics Students?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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