Menu

Who Choose in Competition and Jealousy?

Contents hide

1.प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें? (Who Choose in Competition and Jealousy?),गणित में उन्नति के लिए प्रतियोगिता और ईर्ष्या में से किसका चुनाव करें? (Choose Between Competition and Jealousy for Advancement in Mathematics):

  • प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें? (Who Choose in Competition and Jealousy?) इसका उत्तर हर छात्र-छात्राएं जानते हुए भी कुछ छात्र-छात्राएं अपने अंदर ईर्ष्या को उत्पन्न कर लेते हैं।छात्र-छात्राओं को पहले यह जान लेना चाहिए कि प्रतियोगिता तथा ईर्ष्या में क्या अंतर है?प्रतियोगिता को अपने में कैसे विकसित करें? ईर्ष्या को कैसे समाप्त करें? प्रतियोगिता कितने प्रकार की होती है? कौनसी प्रतियोगिता का चुनाव करें? स्वस्थ प्रतियोगिता को कैसे विकसित करें?
    छात्र-छात्राओं में कुछ प्रवृतियां ऐसी विकसित होती हैं जो सृजनात्मक होती है तो कुछ प्रवृतियां ऐसी होती हैं जो ध्वंसात्मक होती हैं।सृजनात्मक प्रवृत्ति से चिंतन-मनन करने की क्षमता उत्पन्न होती है।उत्साह,उमंग तथा प्रसन्नता का भाव उत्पन्न करती है।जबकि ध्वंसात्मक प्रवृत्ति से ईर्ष्या,जलन,कुढ़न का भाव उत्पन्न होता है।छात्र-छात्राएं कौनसे मार्ग को अपनाते हैं यह उनके दृष्टिकोण और प्रयास पर निर्भर करता है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:3 Tips to Achieve Real Success in Math

2.प्रतियोगिता के प्रकार और विकसित करने का ढंग (Types of Competition and How to Develop it):

  • प्रतियोगिता दो प्रकार की होती है।दूसरों से तुलना करके तथा स्वयं के साथ प्रतियोगिता।दूसरों से तुलना करके प्रतियोगिता का अर्थ है कि जैसे किसी दूसरे छात्र-छात्राओं के गणित में अथवा परीक्षा में 90% अंक प्राप्त होते हैं।आपके 60 प्रतिशत अंक प्राप्त होते हैं तो आप अपनी कमजोरियों का पता लगाकर उनको दूर करते हैं,कठिन परिश्रम करते हैं तथा 90% अंक लाने का भरपूर प्रयास करते हैं।
  • स्वयं से की गई प्रतियोगिता का अर्थ है कि पिछली कक्षाओं में छात्र-छात्रा द्वारा जितने प्रतिशत अंक अर्जित किए गए हैं उससे अधिक अंक अर्जित करने का प्रयास करना।इन दोनों में से स्वयं के साथ की गई प्रतियोगिता उत्तम तथा श्रेष्ठ है।क्योंकि दूसरों से तुलना करने पर हो सकता है उतने प्रतिशत अंक आप अर्जित न कर पाएं।आपमें उतनी क्षमता तथा दक्षता न हो।बहुत प्रयास करने पर भी 60% अंक अर्जित करने वाला 90 प्रतिशत अंक अर्जित करने वाले का लक्ष्य प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।जब 90 प्रतिशत अंक अर्जित नहीं होते हैं तो बालक-बालिका में हीन भावना आ जाती है। लेकिन स्वयं से प्रतियोगिता में आप कल से बेहतर अंक अर्जित करने की कोशिश करते हैं।यह स्वस्थ प्रतियोगिता है।
  • इसके अलावा प्रतिस्पर्धा में छात्र-छात्राएं अपने आपको दूसरों से उन्नत करके आगे नहीं बढ़ता है बल्कि दूसरों को गिराकर,दूसरों की अवनति करके आगे बढ़ता है।जैसे किसी प्रखर छात्र-छात्रा के 90% अंक आते हैं।आप उसको फालतू के कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित करते हैं।जैसे आप उसे कहते हैं कि मनोरंजन के लिए फिल्में देखनी चाहिए। पर्यटक स्थलों पर घूमने जाना चाहिए।फेसबुक पर मित्रता बढ़ानी चाहिए।इस प्रकार आप दूसरे छात्र-छात्रा की अवनति करने के उद्देश्य से उसे लक्ष्य से भटकाने का प्रयास करते हैं ताकि उसको अच्छे अंक अर्जित न हो सके।साथ ही आप खुद अध्ययन करते रहते हैं ताकि उससे आगे बढ़ सके। प्रतिस्पर्धा में ईर्ष्या की भावना रहती है।छात्र-छात्रा में जब ईर्ष्या पनपती है तो वह दूसरे छात्र-छात्राओं की अवनति करने की तिकड़म लगाता रहता है।
  • प्रतियोगिता में छात्र-छात्रा अपनी उन्नति करना चाहते हैं।मैंने अधिक उन्नति क्यों नहीं की,मेरी कमजोरियां क्या है?इन पर विचार करके छात्र-छात्राएं अपनी उन्नति करते हैं।अपनी असफलता के वास्तविक कारणों को जानकर उनको दूर करना चाहते हैं।
  • दूसरों से तुलना करता है तो उसके गुणों पर,उसकी अच्छाइयों पर दृष्टि जाती है।दूसरे के अच्छे गुणों की प्रशंसा करता है।अच्छे अंक अर्जित करने पर प्रसन्न होता है तथा स्वयं भी अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है।प्रतियोगिता में दूसरों के गुणों पर,उसकी अच्छाइयों पर दृष्टि जाती है।दूसरों के अच्छे गुणों की प्रशंसा करता है।अच्छे अंक अर्जित करने पर प्रसन्न होता है तथा स्वयं भी अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है।प्रतियोगिता में दूसरे के गुणों,अच्छाईयाँ देखने पर छात्र-छात्रा का हृदय विशाल होता जाता है।उसका दृष्टिकोण ही बदल जाता है।सभी छात्र-छात्राएं उसके सहयोगी प्रतीत होने लगेंगे।
  • प्रतियोगिता में तथा सकारात्मक दृष्टिकोण से प्रसन्नता,उमंग,उत्साह और आशा उसके जीवन के अंग बन जाएंगे।
    छात्र-छात्रा का सफलता का मंत्र है कि आशावादी रहे तथा कठिन परिश्रम करता रहे।अपनी उन्नति,विकास के लिए अधिक से अधिक प्रयास करें और यह आशा रखे कि वह अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेगा अथवा प्राप्त कर सकता है। इस प्रतियोगिता में उसे कभी निराशा नहीं होती है और अव्वल तो दूसरों से तुलना करने की उसे फुर्सत ही नहीं मिलती है।यदि तुलना करता भी है तो उसे अच्छी बातें,अध्ययन करने की तकनीक सीखने को मिलती है।

3.ईर्ष्या छात्र-छात्रा की उन्नति में बाधक (Jealousy Hinders the Progress of Students):

  • हर छात्र-छात्रा अच्छे अंक अर्जित करना चाहता है।उसका अधिक से अधिक प्रयास अच्छे अंक अर्जित करने की दिशा में होता हैं।जब वह दूसरे से,अपने से अधिक श्रेष्ठ छात्र-छात्राओं से तुलना करता हैं तो उसके अहंकार को चोट लगती है।अपने से अधिक अंकों को देखकर उसके मन में बेचैनी होने लगती है।छात्र-छात्रा उसके अहित का चिंतन करने लगता हैं।ईर्ष्यालु छात्र-छात्राएं अच्छे छात्र-छात्राओं से कुढ़ने लगते हैं।ऐसे छात्र-छात्रा कठिन परिश्रम करने के बजाय अपनी शक्ति को कुढ़न और ईर्ष्या की आग में खर्च करते रहते हैं।इससे दूसरे छात्र-छात्राओं की अवनति तो नहीं होती है परंतु ईर्ष्यालु छात्र-छात्रा की अवनति होती है।
  • हालांकि ईर्ष्यालु छात्र-छात्रा ईर्ष्या को बुरा समझता है।यदि वह बुरा नहीं समझता तो अन्य छात्र-छात्राओं के समक्ष प्रकट करता रहता।परंतु वह ऐसा कभी नहीं करता है।इसके विपरीत ईर्ष्या व कुढ़न को अपने अंदर छुपाकर रखता है।ईर्ष्या मन के साथ-साथ शरीर को भी कमजोर करती रहती है। ईर्ष्या से छात्र-छात्राओं में जलन पैदा हो जाती है। इस प्रकार के छात्र-छात्राएं द्वेष की आग में जलते रहते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं की मानसिकता दूषित हो जाती है।वे पढ़ने-लिखने के बजाय दूसरे छात्र-छात्राओं के अहित करने में संलग्न रहते हैं। जलन,ईर्ष्या,द्वेष, कुढ़न से हमारे अंदर तनाव पैदा हो जाता है।वे अनेक मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।
  • अपनी कमजोरी को छुपाने वाले छात्र-छात्राएं अपने आपको श्रेष्ठ तथा दूसरों को हीन तथा तुच्छ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं।वे अपनी शेखी मारने तथा दूसरों की बुराई करने लगते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं की दिनचर्या दूसरों की निंदा,कड़वी बात कहना,दूसरों में दोष निकालने जैसी दुष्प्रवृत्तियों में व्यतीत होती है।अध्ययन करने,कठिन परिश्रम करने से ऐसे छात्र-छात्राएं जी चुराने लगते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं को समझ लेना चाहिए कि हर छात्र-छात्रा में बुद्धि होती है।जो छात्र-छात्राएं अध्ययनशील होते हैं वे ऐसे छात्र-छात्राओं की वास्तविकता को भांप लेते हैं।वे ऐसे छात्र-छात्राओं से कन्नी काटने लगते हैं।ईर्ष्या ऐसे छात्र-छात्राओं के चिन्तन को कुंठित कर देती है।
  • ईर्ष्या से बचने का उपाय है कि छात्र-छात्राएं अपने-आपमें स्वस्थ प्रतियोगिता विकसित करें।अपनी असफलता के कारणों को पहचान कर उन्हें दूर करने की कोशिश करें।दूसरों की उन्नति में सहभागी बने।अपनी उन्नति करने का भरसक प्रयत्न करें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें? (Who Choose in Competition and Jealousy?),गणित में उन्नति के लिए प्रतियोगिता और ईर्ष्या में से किसका चुनाव करें? (Choose Between Competition and Jealousy for Advancement in Mathematics) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:3 Tips to Advance Study in Mathematics

4.गणित में 101% अंक (हास्य-व्यंग्य) (101 Percent Marks in Mathematics) (Humour-Satire):

  • पुत्र (पिता से):पिताजी,मैं गणित में 101% अंक लाकर दिखाऊंगा जबकि सभी छात्र-छात्राएं 100% या उससे कम अंक ही प्राप्त करते हैं।
  • पिता:क्या पागल जैसी बातें करते हो।सौ प्रतिशत से अधिक अंक देने का न तो नियम है और न कोई आज तक प्राप्त कर पाया है।
  • पुत्र:पिताजी,महान सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा है कि असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में पाया जाता है।मैं इसे संभव करके बताऊँगा।

5.प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें? (Who Choose in Competition and Jealousy?),गणित में उन्नति के लिए प्रतियोगिता और ईर्ष्या में से किसका चुनाव करें? (Choose Between Competition and Jealousy for Advancement in Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.शिक्षा नीति में परिवर्तन क्यों नहीं हुआ? (Why there was no Change in Education policy?):

उत्तर:पहला कारण तो यह है कि हमारे देश के बड़े-बड़े अधिकारी पश्चिमी संस्कृति की मानसिकता  में जकड़े हुए हैं।वे अंग्रेजी को बनाए रखने के पक्षधर है।दूसरा कारण है कि अब समाज और परिवार में भोगवादी संस्कृति ने पैर पसार लिए हैं। इसका प्रचार,प्रसार राजनीतिज्ञों की देन है जो मत प्राप्त करने की नीयत से शिक्षा में आवश्यक परिवर्तन का इच्छुक नहीं है।अगला कारण है कि अभी अधिकांश शिक्षा आयोग गठित हुए हैं उनमें विदेशी विद्वानों की भरमार थी।अतः उनके सुझाव अपने देश की स्थिति एवं शिक्षा से प्रभावित थे जिससे देश को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ।सबसे प्रमुख कारण हमारी यह मानसिकता है कि शिक्षा में नवीन प्रयोगों से कहीं हम पिछड़ न जाए इसलिए शिक्षा में सामान्य परिवर्तन ही किए गए परन्तु मूलभूत परिवर्तन नहीं किए गए।वस्तुतः हमारा दृष्टिकोण भारत के भौतिक विकास की ओर है मानव विकास की ओर नहीं है।

प्रश्न:2.भारत में शिक्षा में नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक अवमूल्यन का प्रमुख कारण क्या है? (What is the Major Cause of Moral and Cultural Devaluation in India?):

उत्तर:लार्ड मैकाले ने जब यहां शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन की बात सोची तो इसका प्रमुख माध्यम भाषा को बनाया।इसका मूल उद्देश्य शिक्षा का विस्तार करना और पश्चिमी विद्या-विज्ञान का परिचय कराना नहीं बल्कि भारतीय भाषा और संस्कृति को पददलित करके अपना वर्चस्व स्थापित करना था।

प्रश्न:3.वर्तमान शिक्षा पद्धति में किस बात पर जोर है? (What is the Emphasis in the Current Education System?):

उत्तर:आज शिक्षा में संस्कार का अंश कम है तथा आजीविका,जाॅब प्राप्त करने की लालसा मुख्य है। न तो आज के अभिभावकों में वास्तविक शिक्षा के लिए आदर भाव है न शिक्षकों में अध्यापन की प्रवृत्ति और न विद्यार्थियों में साधना करने की।अगर कुछ है तो डिग्री प्राप्त करके ऐसी कुर्सी प्राप्त करने की आकांक्षा जिस पर बैठकर रौब गाँठ सके और धन कमा सके तथा समाज पर वर्चस्व स्थापित कर सके।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें? (Who Choose in Competition and Jealousy?),गणित में उन्नति के लिए प्रतियोगिता और ईर्ष्या में से किसका चुनाव करें? (Choose Between Competition and Jealousy for Advancement in Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Who Choose in Competition and Jealousy?

प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें?
(Who Choose in Competition and Jealousy?)

Who Choose in Competition and Jealousy?

प्रतियोगिता और ईर्ष्या में किसका चुनाव करें? (Who Choose in Competition and Jealousy?)
इसका उत्तर हर छात्र-छात्राएं जानते हुए भी कुछ छात्र-छात्राएं अपने अंदर ईर्ष्या को उत्पन्न कर लेते हैं।
छात्र-छात्राओं को पहले यह जान लेना चाहिए कि प्रतियोगिता तथा ईर्ष्या में क्या अंतर है?

No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *