Which of Competition and Rivalry Adopt?
1.प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसको अपनाएं? (Which of Competition and Rivalry Adopt?),गणित के छात्र-छात्राएं प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसका चुनाव करें? (Which of Competition and Rivalry Should Mathematics Students Choose?):
- प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसको अपनाएं? (Which of Competition and Rivalry Adopt?) अक्सर प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा को एक ही समझ लिया जाता है परंतु इनमें मूलभूत अंतर है।हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा होती है कि वह उन्नति,प्रगति और विकास करें।आधुनिक युग प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा का युग है इसलिए आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा बुरी नहीं है।हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है यदि आगे बढ़ने की कोशिश नहीं कर रहा है तो उसे आगे बढ़ने की कोशिश करवाई जा रही है।आगे बढ़ने के लिए यह प्रयास उचित तरीके से,सही ढंग से की जाए तो गुणों में वृद्धि होती है और हमारे लिए लाभदायक है,हितकारी है,प्रेरणादायक है।परंतु आगे बढ़ने की महत्त्वाकांक्षा में ईर्ष्या,द्वेष,संकीर्णता,स्वार्थपरता,कुटिलता,दूसरों का अहित करके,दूसरों को गिराने की भावना हो,दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयत्न किया जाए तो हानिकारक,पतन की ओर ले जाने वाली तथा अपना अहित करने वाली है।
- मनुष्य को छोड़कर प्रकृति के किसी भी प्राणी में प्रतियोगिता तथा प्रतिस्पर्धा नहीं है।क्योंकि पशु-पक्षी तथा अन्य प्राणियों में कार्य करने की स्वतंत्र इच्छाशक्ति व बुद्धि नहीं होती है।वे केवल स्वाभाविक कर्म करते हैं इसलिए उनमें पुरातनकाल से उत्थान,प्रगति,विकास अथवा पतन,विनाश,अवनति देखने को नहीं मिलती है।
- मनुष्य में स्वाभाविक कर्म करने के साथ-साथ स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने की इच्छाशक्ति और बुद्धि होने के कारण उत्थान,उन्नति,प्रगति,विकास अथवा पतन,अवनति,विनाश इत्यादि देखने को मिलती है याकि वे ऐसा करने की क्षमता रखते हैं।
- छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों को अपना विकास करने के लिए प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा के अंतर को समझना चाहिए और आगे बढ़ने,प्रगति करने के लिए उचित रीति-नीति व ढंग को अपनाया जाना चाहिए।
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2.प्रतियोगिता से क्या तात्पर्य है? (What Do You Mean by Competition?):
- विद्यालय अथवा कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी कठिन परिश्रम करें या न करें यह कई बातों,प्रेरणाओं पर निर्भर करता है।अधिकांश विद्यार्थी कॉलेज में शिक्षा अर्जित करते हैं या व्यावसायिक शिक्षा अर्जित करते हैं उसका मूल उद्देश्य जाॅब प्राप्त करना और जाॅब से धन कमाना है।बहुत कम छात्र-छात्राएं ऐसे होते हैं जो अपने अंदर गुणों को विकसित करने,उच्च शिक्षित होने का उद्देश्य रखते हैं।कुछ छात्र-छात्राएं स्टेटस सिंबल अथवा उच्च सुसंस्कृत होकर सामाजिक मान्यता प्राप्त करने के लिए शिक्षा अर्जित करते हैं।कुछ छात्र-छात्राएं लोगों को दूसरों के बजाय अपनी ओर आकर्षित करने तथा दूसरों पर प्रभाव जमाने के लिए भी शिक्षा अर्जित करते हैं।
- कुछ छात्र-छात्राएं किसी प्रतियोगिता परीक्षा में पुरस्कार प्राप्त करने,माता-पिता,समाज व देश का गौरव बढ़ाने के लिए शिक्षा अर्जित करते हैं।
- इस प्रकार प्रतियोगिता अपनी पहचान बनाने,स्टेटस (status) को उन्नत करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है जो किसी निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने का एक मार्ग है।यह इस प्रेरणा पर भी आधारित हो सकती है कि उसे प्रतियोगिता में सफलता मिले अथवा धन कमाने की आकांक्षा हो।
- प्रतियोगिता का अर्थ है कि अपने सहपाठियों,बराबर वालों अथवा अन्य के समान बनने या दूसरे व्यक्ति,छात्र छात्रा के कार्य की योग्यता से उन्नत,श्रेष्ठ करने अथवा उसे पछाड़ देने के लिए अथवा स्वयं के द्वारा पिछले किए गए कार्यों को उन्नत करने के प्रयास से है।उसका मूलभूत सिद्धांत यह है कि अपने या दूसरे की अपेक्षा अधिक अच्छा कार्य किया जाए।
- आधुनिक जीवन में यह इतनी अधिक सशक्त प्रेरणा है कि हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में आगे से आगे बढ़ने की कोशिश करता है।इस कारण गणित में,विज्ञान में तथा अन्य क्षेत्रों में नई-नई बातों,नई-नई चीजों,नए-नए सिद्धांतों,नई-नई तकनीक की खोजें और आविष्कार द्रुतगति गति से सम्भव हो पा रहे हैं।
3.प्रतियोगिता तथा प्रतिस्पर्धा में अंतर (Difference Between Competition and Rivalry):
- प्रतिस्पर्धा वह प्रवृत्ति है जिसमें छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति दूसरे की कार्यक्षमता के बराबर होने अथवा बढ़िया करने होने के लिये क्रियाशील होते हैं।प्रतिस्पर्धा दूसरे से तुलना करके की जाती है परंतु प्रतियोगिता स्वयं से तुलना करके तथा दूसरे से तुलना करके आगे बढ़ने,अच्छा करने की प्रवृत्ति है।
- प्रतिस्पर्धा में छात्र-छात्राओं अथवा व्यक्ति या समूह द्वारा प्रतिद्वन्द्वी को दबाने का प्रयास किया जाता है,उसे गिराकर आगे बढ़ने का प्रयास किया जाता है।इस प्रकार प्रतिस्पर्धा में दूसरे से वरिष्ठ बढ़ने का प्रयत्न अपने कार्य को उन्नत करके नहीं किया जाता है बल्कि दूसरे व्यक्ति या समूह को उसकी वरिष्ठ स्थिति से गिराकर किया जाता है।उदाहरणार्थ किसी छात्र के गणित में 60% अंक आते हैं तो अपने से श्रेष्ठ छात्र वाले के जिसके 80% अंक आते हैं उसको गिराने का प्रयास किया जाता है।गणित अध्यापक को घूस देकर 80% वाले छात्रों को 55% अंक देने का प्रयास किया जाता है।अथवा 80% अंक वाले छात्र को रास्ते में मारपीट करके डराया-धमकाया जाता है जिससे वह मानसिक संतुलन खोकर प्रश्न-पत्र को अच्छी तरह से हल न कर पाए।अथवा गुण्डों के द्वारा उसे पिटवाया जाता है ताकि वह परीक्षा देने के काबिल न रहे।
- प्रतियोगिता में छात्र-छात्राएं,व्यक्ति अथवा समूह अपने कार्य के स्तर को ऊँचा करता है जिसके कारण वरिष्ठ बना जा सकता है।यदि स्वयं से प्रतियोगिता करता है तो वह अपने पिछले कार्य से श्रेष्ठ करने का प्रयास करता है।उदाहरणार्थ यदि किसी छात्र के गणित में 60% अंक आते हैं तो वह 70% अंक वाले से अधिक अंक लाने के लिए ओर अधिक कठिन परिश्रम करता है तथा कोचिंग या ट्यूशन करता है।यदि स्वयं से प्रतियोगिता करता है तो पिछले वर्ष उसे 60% प्राप्त हुए थे तो इस वर्ष 70 प्रतिशत या 75% अंक लाने का प्रयास करता है।इसके लिए वह अपनी कमजोरियों को ढूँढकर उनको दूर करता है और पहले से बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास करता है।
- प्रतियोगिता में दूसरे प्रतियोगी अथवा स्वयं से प्रेमपूर्ण और स्नेहयुक्त व्यवहार रहता है जबकि प्रतिस्पर्धा में दूसरे प्रतिद्वन्द्वी से ईर्ष्या और घृणा का व्यवहार करता है जिससे प्रतिस्पर्धी में तनाव,कुण्ठा,निराशा और पीड़ा को जन्म देती है।
- प्रतियोगिता करने वाले छात्र-छात्राओं में अहिंसा,प्रेम,स्नेह,सद्भाव,सहयोग जैसे भाव रहते हैं जबकि प्रतिस्पर्धा में छात्र छात्राएँ तनावग्रस्त,कुण्ठित होकर दूसरों का अहित,हिंसा यहाँ तक की हत्या करने तक उतारू हो जाते हैं।प्रतिस्पर्धी का किसी भी अनैतिक तरीके से दूसरे व्यक्ति या समूह की प्रतिष्ठा को बाकी लोगों की नजरों से गिराना होता है और अंतिम लक्ष्य प्रतिस्पर्धी को समाप्त करना होता है।वस्तुतः सभ्य समाज में प्रतिस्पर्धी के लिए कोई स्थान नहीं है जबकि प्रतियोगी हर व्यक्ति व समाज में प्रत्येक से सम्मान प्राप्त करता है।
4.प्रतियोगिता के प्रकार (Types of Competition):
- जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है कि प्रतियोगिता दो प्रकार की होती है।दूसरे के साथ प्रतियोगिता तथा स्वयं के साथ प्रतियोगिता।यह बात निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि स्वयं के साथ की गई प्रतियोगिता का लक्ष्य कल के किए हुए काम की अपेक्षा अधिक अच्छा कार्य करना होता है जो दूसरे व्यक्ति या समूह के साथ की गई प्रतियोगिता की अपेक्षा अधिक वरिष्ठ कोटि का होता है।
- जब समाज में प्रतिष्ठा,शक्ति तथा धन का संबंध जन्म और जाति के साथ जुड़ा होता है उनमें मुश्किल से ही कोई प्रतियोगिता पाई जाती है।यह प्रेरणा इसलिए कार्यान्वित नहीं होती क्योंकि व्यक्ति कितना ही मेधावी,प्रवीण,प्रखर व तेजस्वी हो लेकिन उसकी स्थिति जन्म के आधार पर पहले से ही सीमित हो जाती है।जन्म और जाति (वर्ण) किसी व्यक्ति के अवसरों को सीमित कर देता है जिसके फलस्वरूप वे उसी सीमा में प्रयास तथा कार्य करता है।
- यही कारण है कि पाश्चात्य देश में प्रत्येक व्यक्ति अधिकतम न केवल प्रतिष्ठा,शक्ति,धन,पुरस्कार प्राप्त कर सकता है बल्कि गणित,विज्ञान तथा अन्य क्षेत्रों में नई-नई खोजे,आविष्कार इत्यादि कर लेता है।
- भारतीय समाज में जन्म,जाति (वर्ण) और धर्म के आधार पर व्यक्ति अधिक प्रतियोगी नहीं हो सकता था परंतु स्वतंत्रता के बाद संविधान में जाति,लिंग,धर्म आदि संबंधी भेदभाव (अयोग्यता) को दूर करके प्रतियोगिता के लिए समान अवसर प्रदान किए गए हैं।फलस्वरूप स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज व छात्र-छात्राएं तीव्र गति से उन्नति,विकास कर सके हैं।
- प्रतियोगिता अर्थात् दूसरे व्यक्ति के कार्य या स्वयं अपने कार्य की अपेक्षा अधिक अच्छा कार्य करना सीमित कर दिया जाता है तो तथाकथित प्रतियोगिता एक शक्तिशाली प्रेरणा नहीं बन पाएगी।
- सामन्तिक समाज में और जाति आधारित समाज में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।व्यक्तियों तथा समूहों का लक्ष्य अनवरत रूप से दूसरों को गिराना तथा उनको दबाना रहा है।दूसरी ओर किसी तकनीकी समाज में दूसरों की अपेक्षा प्रयास और कठिन कार्य के द्वारा स्वयं को उन्नत करने का लक्ष्य सम्मिलित होगा।माता-पिता,अभिभावकों तथा अध्यापकों को चाहिए कि वे बच्चों को प्रतियोगी बनना सीखाएं न कि प्रतिस्पर्धी बनना।
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5.प्रतियोगिता का विकास कैसे करें? (How to Develop Competition?):
- दूसरों से ऊंचा उठने,आगे बढ़ने,अधिक अंक अर्जित करने,श्रेष्ठ जाॅब प्राप्त करने की भावना होनी चाहिए परंतु दूसरों से तुलना करने के प्रयास में स्वयं से तुलना करना,स्वयं के पिछले कार्य से श्रेष्ठ करना न भूलें।दूसरे से तुलना करने के बजाय स्वयं से तुलना करना नहीं भूलेंगे तो हीनभावना,कुण्ठा,तनाव या पीड़ा का अनुभव नहीं होगा।बल्कि मन में सन्तोष,खुशी,उमंग,उत्साह होगा जो आपको निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा।
- अपने आपसे तुलना करें कि कल जो गलतियां,बदमाशी,दुष्कर्म किए थे वे आज नहीं करेंगे और आगे भी नहीं करेंगे।गणित विषय अथवा अन्य विषयों में पढ़ने में जो कमजोरियां हैं,जो लापरवाही और उदासीनता बरती गई थी उनको दूर करेंगे।
- समय पर सोना और जागने का कार्य नहीं करते हैं तो आज से करेंगे।इस प्रकार अपने अंदर कमजोरियों को ढूंढ-ढूंढकर एक-एक करके दूर करते जाएंगे तो आप अधिक प्रतियोगी बनते जाएंगे और पहले से श्रेष्ठ बनते जाएंगे।
- जब छात्र-छात्राएं दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं तो तनावग्रस्त हो जाते हैं और यदि दूसरे छात्र-छात्राओं से प्रतियोगिता करते समय उनके जितने अंक या उनके जैसा श्रेष्ठ जाॅब न प्राप्त कर सके तो कुण्ठाग्रस्त हो जाएंगे।वैसे भी दूसरों से प्रतियोगिता करने का कोई अंत नहीं है।दुनिया में एक से बढ़कर एक छात्र-छात्राएं और व्यक्ति हैं।हम किस-किस से प्रतियोगिता करेंगे और कब तक करते रहेंगे।दूसरों से प्रतियोगिता करते-करते हमारे जीवन का अंत हो जाएगा लेकिन प्रतियोगिता खत्म नहीं होगी।
- क्या हम कुंठित,अतृप्त और तनावग्रस्त होकर मरना पसंद करेंगे? इसलिए दूसरों से प्रतियोगिता न करके, अच्छा है अपने आपसे प्रतियोगिता करें।हमारा उत्थान,विकास होगा,हमारे अंदर सुधार होगा।न आप तनावग्रस्त होंगे और न कुण्ठाग्रस्त होंगे।जब हमारी नजर स्वयं की तरफ होगी तो आत्मोन्नति होगी,अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान होगा,अपना हित-अहित को भली प्रकार जान-समझ सकेंगे।दूसरों से प्रतियोगिता करने में हमारे प्रयास दिशाहीन और उपयोगिता से शून्य हो जाएंगे।
6.प्रतिस्पर्धा करने का दृष्टांत (Parable of Rivalry):
- प्रतिस्पर्धा में संकीर्ण मनोवृत्ति,केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करना भले ही दूसरे को नुकसान होता हो,अपनी लालसा और तृष्णा को पूरी करना,दुर्बुद्धि,कुटिल बुद्धि,ओछापन,घृणा,ईर्ष्या,द्वेष इत्यादि मनोवृत्तियाँ होती हैं तो दूसरों के साथ-साथ हमारा भी पतन,अवनति होती है।बल्कि यह कहे तो ज्यादा मुनासिब होगा कि हमारा सबसे ज्यादा अहित होता है।
- एक कक्षा में दो छात्रों में प्रतिस्पर्धा रहती थी।गणित शिक्षक कोई भी सवाल पूछते तो उनमें होड़ लग जाती थी कि उसको सबसे पहले हल करके बताए।इस प्रकार उनकी प्रतिभा धीरे-धीरे विकसित होने लगी।यहाँ तक तो बात ठीक थी परंतु ज्योंही परीक्षा का परिणाम आया तो पहले छात्र के परीक्षा में कम प्रतिशत अंक प्राप्त हुए और दूसरे ने अधिक अंक अर्जित कर लिए।
अब वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने,नीचे गिराने की तिकड़म भिड़ाने लगे। - मासिक टेस्ट में जिस छात्र के ज्यादा अंक आते तो दूसरा छात्र गणित अध्यापक से शिकायत करता कि उसने नकल की है।इस प्रकार उनकी स्वस्थ प्रतियोगिता ईर्ष्या,द्वेष,जलन के कारण दिशाहीन और अनर्थ को पैदा करने वाली हो गई।
- गणित अध्यापक उनकी आपसी लड़ाई से दुःखी होकर उनको समझाया कि इससे न केवल तुम्हें नुकसान हो रहा है बल्कि कक्षा का वातावरण विषाक्त हो रहा है।दूसरे छात्र-छात्राओं को पढ़ने में विघ्न पैदा होता है।परन्तु गणित अध्यापक की समझाइश से भी उनके कोई फर्क नहीं पड़ा।
- एक दिन गणित अध्यापक उन्हें तथा सभी छात्र-छात्राओं को प्राकृतिक दृश्य के भ्रमण के लिए ले गए।अन्य छात्र-छात्राएं वहाँ नाश्ता करने के लिए भवन में इकट्ठे हो रहे थे।तभी पहले छात्र ने देखा कि दूसरा छात्र (प्रतिस्पर्धी) तालाब के किनारे खड़ा है।
- तब पहले छात्र ने चुपके से जाकर पीछे से उसे धक्का दे दिया।वह तालाब में गिरकर डूब गया और मर गया।गणित अध्यापक ने जब उससे ढूंढा तो तालाब में मृत पाया गया।पहले छात्र को पुलिस पकड़ कर ले गई और उसकी भी जिंदगी खराब हो गई।
- उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसको अपनाएं? (Which of Competition and Rivalry Adopt?),गणित के छात्र-छात्राएं प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसका चुनाव करें? (Which of Competition and Rivalry Should Mathematics Students Choose?) के बारे में बताया गया है।
7.गणित के छात्र की भाइयों की संख्या (हास्य-व्यंग्य) (Number of Brothers of Mathematics Student) (Humour-Satire):
- गणित अध्यापक:छात्र की पिटाई करते हुए पूछा कि आप कितने भाई हैं?
- छात्र:अभी तो दो ही समझो।अगर मैं आपके लात-घुसों,डंडे की बेरहम पिटाई से बच गया तो तीन भाई हो जाएंगे।
8.प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसको अपनाएं? (Frequently Asked Questions Related to Which of Competition and Rivalry Adopt?),गणित के छात्र-छात्राएं प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसका चुनाव करें? (Which of Competition and Rivalry Should Mathematics Students Choose?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.प्रतियोगिता की भावना कब पैदा होती है? (When is the Spirit of Competition Born?):
उत्तर:जब लक्ष्य स्पष्ट होता है तथा माता-पिता,अभिभावक,मित्र या शिक्षक या अन्य कोई प्रेरित करता है तो प्रतियोगिता की भावना का जन्म होता है।जहाँ बहुत से छात्र-छात्राएं एक स्पष्ट लक्ष्य को पाने की इच्छा रखते हैं तो प्रतियोगिता का जन्म होता है।जब व्यक्ति,समाज के अंदर अपनी सफलता,जाॅब,वैयक्तिक ख्याति,विवाह,व्यापार,धन के दृष्टिकोण से आँकने लगता है तब भी प्रतियोगिता का आधार बनता है।
प्रश्न:2.प्रतियोगिता में क्या खतरा है? (What’s the Danger in the Competition?):
उत्तर:प्रतियोगिता प्रेरणा का शक्तिशाली स्रोत उत्पन्न कर सकती है लेकिन प्रतियोगी उपलब्धियों की सफलता पर आधारित भूमिकाओं की जितनी अधिक संख्या होगी तथा प्रतियोगिता पर आधारित सफलता को जितना अधिक महत्त्व दिया जाएगा उतने ही ज्यादा अवसर असफलता,खतरे तथा असुरक्षा के होंगे।
प्रश्न:3.भारतीय समाज में प्रतियोगिता की क्या स्थिति है? (What is the Status of Competition in Indian Society?):
उत्तरःभारतीय समाज में जाति प्रथा समाज में व्यक्ति के स्थान को जन्म से ही नियत कर देती है।जाति प्रथा इतनी दृढ़ है कि कोई व्यक्ति न तो अपनी जाति से ऊंची जाति में प्रवेश पा सकता है और न ही अपनी जाति से निचली जाति में।लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि जाति प्रथा में प्रतियोगिता के लिए कोई स्थान नहीं है।तथापि यह सम्भव है कि भारतीय समाज में प्रतिस्पर्धा,प्रतियोगिता की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण पार्ट अदा करती है।स्वयं जाति के भीतर भी वैयक्तिक प्रयास से अनेक व्यक्ति ऊंची प्रस्थिति (status) प्राप्त कर लेते हैं।ऐसा होता है कि लोग अपना जाति-नाम का उपसर्ग या प्रत्यय अपने नाम के साथ जोड़ लेते हैं ताकि समस्त जातीय समूह अपनी सामाजिक स्थिति में ऊँचा उठ सके।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसको अपनाएं? (Which of Competition and Rivalry Adopt?),गणित के छात्र-छात्राएं प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा में से किसका चुनाव करें? (Which of Competition and Rivalry Should Mathematics Students Choose?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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