What is Truth and his Meaning in hindi
1.सत्य और उसका अर्थ क्या है का परिचय (Introduction to What is Truth and his Meaning?),सत्य का आधार क्या है? (What is the Basis of Truth?):
- सत्य और उसका अर्थ क्या है? (What is Truth and his Meaning in hindi),सत्य का आधार क्या है? (What is the Basis of Truth?):जो बात जैसी देखी,सुनी अथवा की हो अथवा जैसी वह मन में हो उसको उसी प्रकार वाणी द्वारा प्रकट करना सत्य बोलना कहलाता है। मनुष्य को न सिर्फ सत्य बोलना ही चाहिए बल्कि सत्य ही मन में विचार मन में लाना चाहिए और सत्य ही काम करना चाहिए।
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2.सत्य और उसका अर्थ क्या है? (What is Truth and his Meaning in hindi),सत्य का आधार क्या है? (What is the Basis of Truth?):
- सर्वथा सत्य का व्यवहार करने से ही मनुष्य की स्वयं की उन्नति होती है और परमार्थ में सच्ची सफलता मिल सकती है।जो मनुष्य अपने सब कार्यों में सत्य को धारण करता है,वह क्रियासिद्ध और वाचासिद्ध हो जाता है।अर्थात् जो कार्य वह करता है,उसमें निष्फलता कभी होती ही नहीं और जो बात वह कहता है,वह पूरी हो जाती है।
- सत्य वास्तव में भगवान् का स्वरूप है।इसलिए जिसके हृदय में सत्य का वास है,उसके हृदय में भगवान् का वास है।किसी कवि ने कहा है किः
सांच बरोबर तप नहीं,झूठ बरोबर पाप।
जाके हिरदय सांच है,ताके हिरदय आप।। - अर्थात् सत्य के समान ओर कोई तप नहीं और झूठ के बराबर कोई पाप नहीं।जिसके हृदय में सत्य का वास है,उसके हृदय में भगवान का वास है।इसलिए सत्य का आचरण करने में मनुष्य को पीछे न हटना चाहिए।उपनिषद में भी कहा हैः
नहि सत्यात्परो धर्मो नानृतात्पातकं परम्।
नहि सत्यात्परो ज्ञानं तस्मात्सत्यं समाचरेत्।। - अर्थात् सत्य से श्रेष्ठ अन्य कोई धर्म नहीं है और झूठ के बराबर अन्य कोई पातक नहीं है।इसी प्रकार सत्य से श्रेष्ठ ओर कोई ज्ञान नहीं है।इसलिए सत्य का ही आचरण करना चाहिए।
- प्रायः संसार में ऐसा देखा जाता है कि सत्य का आचरण करनेवालों को कष्ट उठाना पड़ता है और मिथ्याचारी,पाखंडी,धूर्त लोग सुख से जीवन व्यतीत करते हैं।परन्तु जो विचारशील मनुष्य हैं वे जानते हैं कि सत्य से प्रथम तो चाहे कष्ट हो परन्तु अन्त में अक्षय सुख की प्राप्ति होती है।और मिथ्या आचरण से पहले सुख होता है और अन्त में उसकी दुर्गति होती है।वास्तव में सच्चा सुख वही है जो परिणाम में हितकारक हो।कृष्ण भगवान् ने गीता में तीन प्रकार के सुखों की व्याख्या करते हुए कहा है किः
यत्तदग्रे विषमिव परिणामेअमृतोपमम्।
तत्सुखं सात्विकं प्रोक्तमात्मबुद्धिप्रसादम्।। - अर्थात् जो पहले तो विष की तरह कटु और दुःखदायक मालूम होता है परन्तु पीछे अमृत के तुल्य मधुर और हितकारक होता है,वही सच्चा सात्विक सुख है।ऐसा सुख आत्मा और बुद्धि की प्रसन्नता से उत्पन्न होता है।
- आत्मा और बुद्धि की प्रसन्नता का उपाय क्या है? क्या मिथ्या आचरण से कभी आत्मा और बुद्धि प्रसन्न हो सकती है।सब जानते हैं कि पापी आदमी की बुद्धि ठिकाने नहीं रहती है।उसका पाप ही उसको खाता रहता है।पहले तो वह समझता है कि मैं मिथ्या आचरण करके खूब सुखी हूं पर उसके उसी सुख के अन्दर ऐसा गुप्त विष छिपा हुआ है जो किसी दिन उसका सर्वनाश कर देगा।उस समय उसे स्वर्ग-नरक कहीं भी ठिकाना न लगेगा।इसलिए मिथ्या आचरण छोड़कर मनुष्य को सदैव सत्य का ही बर्ताव करना चाहिए।इसी से मन और बुद्धि को सच्ची प्रसन्नता प्राप्त होती है और ऐसा सच्चा सुख प्राप्त होता है जिसका कभी नाश नहीं होता।
- सत्य से ही यह सारा संसार चल रहा है।यदि सत्य एक क्षण के लिए भी अपना कार्य बन्द कर दे तो प्रलय हो जाय।यदि एक मनुष्य कुछ मिथ्या आचरण करता है तो दूसरा तुरन्त ही सत्य आचरण करके इस सृष्टि की रक्षा करता है।यह मनुष्य की बात नहीं है बल्कि संसार की अन्य भौतिक शक्तियां भी सत्य से चल रही हैं।
- जो लोग सत्य का आचरण नहीं करते हैं,उनकी पूजा,जप,तप सब व्यर्थ है।जैसे ऊसर भूमि में बीज बोने से कोई फल नहीं होता है।आजकल प्रायः हमारे देश में देखा जाता है कि पाखंडी लोग सब प्रकार से मिथ्या व्यवहार करके लोगों का गला काटकर अपने सुखभोग के सामान जमा करते हैं परन्तु ऊपर-ऊपर से अपना ऐसा भेष बनाते हैं कि जैसे ये कोई बड़े भारी साधु और भगवान के भक्त हो।स्नान-संध्या,जप,तप सब धर्म के कार्य नियमित रूप से करते हैं पर न्यायालय में जाकर झूठी गवाही देते हैं।ऐसे लोगों का सब धर्म-कर्म व्यर्थ है।लोग उनको अच्छी दृष्टि से नहीं देखते।भले आदमियों में उनका आदर कभी नहीं होता।ऐसे धूर्त और पाखंडी लोगों से सदैव बचना चाहिए।
- ये लोग ऊपर से सत्य का आचरण रखकर भीतर से मिथ्या व्यवहार करते हैं।जो सीधे-सादे मनुष्य होते हैं,जिनको नीति का ज्ञान नहीं है,वे इनकी ‘पालिसी’ में आ जाते हैं।जिसमें मिथ्या की पालिस की होती है उसी को पालिसी कहते हैं।पालिसी को सदैव अपने जलते हुए सत्य को जला डालो।
- वस्तुतः सत्य की ही विजय होती है,मिथ्या की नहीं।सत्य के ही मार्ग से भगवान मिलेगा।सब प्रकार के कल्याण का ज्ञान सत्य से ही होगा।हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने सत्य का ही मार्ग स्वीकार किया था और उनमें यह शक्ति हो गई थी कि जिसके लिए वे जो बात कह देते थे,उसके लिए वही हो जाता था।चाहे जिसको शाप दे देते,चाहे जिसको वरदान दे देते।यह सत्य-साधना का ही फल था।वे अन्यथा वाणी का उपयोग कभी नहीं करते थे,न कोई अन्यथा बात मन में लाते थे और न कोई अन्यथा कार्य करते थे।वास्तव में मनुष्य का धर्माधर्म सत्य पर ही निर्भर है।एक सत्य का बर्ताव कर लिया,इसी में सब आ गया।फिर कोई उसको अलग धर्म करने की जरूरत ही नहीं रह जाती।
3.सत्य का अर्थ और स्वरूप (Meaning and Nature of Truth):
- जो तीनों कालों अर्थात् वर्तमान,भूत और भविष्य काल में एक समान रहे वह सत्य है।सत्य के स्वरूप में छल-कपट मिला हुआ नहीं होता है।सत्याचरण करना मुश्किल तो है परंतु असंभव नहीं है।यदि परोपकार,सेवा,लोकहित के कार्य करने में सत्य का पालन करने से दुष्प्रभाव पड़ता हो तो वहां असत्य बोलना भी सत्य के समान है।उसमें कर्ता को दोष नहीं लगता है।
- यथासंभव मन,वचन तथा कर्म से सत्य का पालन करना स्वयं हमारे हित में है।जो बात जैसी देखी,सुनी अथवा की हो उसको उसी प्रकार वाणी द्वारा प्रकट करना सत्य बोलना कहलाता है।मनुष्य को न सिर्फ सत्य बोलना ही चाहिए बल्कि सत्य ही विचार मन में लाना चाहिए और सत्य ही काम भी करना चाहिए।सर्वथा सत्य व्यवहार करने से ही मनुष्य को स्वर्ग और परमार्थ में सच्ची सफलता मिल सकती है।अर्थात् जो कार्य वह करता है उसमें निष्फलता कभी नहीं होती और जो लोग-बाग अनावश्यक रूप से छोटी-छोटी बातों में झूठ बोल दे ते हैं।असत्य व्यवहार करते हैं उनको कदम-कदम पर असफलता मिलती है और अपमानित होना पड़ता है।
- सत्य बोलने से मन पवित्र होता है।सत्य वही है जिसमे छल-कपट न हो।किसी भी मनुष्य के पीछे दुर्भावना नहीं हो।माता-पिता बच्चों को गलती पर दंड देते हैं तो उसके पीछे दुर्भावना नहीं होती है।नीति में कहा है कि आगे देखकर कदम रखना चाहिए।कपड़े से छानकर जल पीना चाहिए।सत्य से पवित्र करके वचन बोलना चाहिए।तात्पर्य यही है कि मन में शुद्ध भावना से किया गया कोई भी कार्य गलत हो तो मनुष्य को उसका दोष नहीं लगता है। वेदों में भी यही कामना की गई है कि ‘तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु’ अर्थात् मेरा मन शुभ तथा कल्याणकारी हो।
- सत्य बोलने वाला जो बात कहता है वह पूरी हो जाती है।सत्य वास्तव में परमात्मा का स्वरुप है।इसलिए जिसके हृदय में सत्य का वास है।उसके हृदय में परमात्मा का वास है।
- प्रायः संसार में देखा जाता है कि सत्य का आचरण करने वालों को कष्ट उठाना पड़ता है और मिथ्याचारी,पाखण्डी,धूर्त लोग सुख से जीवन व्यतीत करते हैं।परंतु जो लोग विचारशील मनुष्य हैं वे जानते हैं कि सत्य से प्रथम तो चाहे कष्ट हो परंतु अंत में अक्षय सुख की प्राप्ति होती है।और झूठ,पाखंड का व्यवहार करने से पहले सुख होता है और अंत में उसकी दुर्गति होती है।
- जो मनुष्य पूजा,जप,तप इत्यादि करते हैं परन्तु सत्य का आचरण नहीं करते उसका पूजा,जप,तप इत्यादि सब करना व्यर्थ है।ऐसे मनुष्य मिथ्या आचरण करके शुरू में भले ही सफल हो जाते हों परंतु उनका अन्त बुरा होता है।इस प्रकार के लोग धार्मिक सभा,न्यायालय,समाज में झूठी गवाही देने में भी नहीं हिचकिचाते हैं।ऐसे मनुष्य मन में छल,कपट का भाव रखते हैं तथा बाहर से सत्य का आवरण ओढ़े रहते हैं परंतु देर-सबेर ऐसे मनुष्यों की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है तथा निन्दा के पात्र बन जाते हैं।ऐसे छद्म लोगों से सतर्क रहना चाहिए।ऐसे लोगों से संपर्क करने पर,सत्याचरण करने वाले मनुष्य को भी दुख और कष्ट उठाना पड़ता है।वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि: जिसमें वृद्ध न हो वह सभा नहीं,जो धर्म की बात नहीं कहते वे वृद्ध नहीं,जिसमें सत्य नहीं,जिसमें छल मिला हो वह सत्य नहीं।
- इस प्रकार शास्त्रों में अन्य गुणधर्मों के साथ सत्य की बहुत उच्च महिमा बताई गई है।वस्तुतः जिसमें सत्य न हो वह न धर्म है,न जप है और न पूजा।अतः कष्ट सहकर भी सत्य को नहीं छोड़ना चाहिए,अपने जीवन में जो सत्य को धारण कर लेना है उसको जीवन में अन्ततः सफलता मिलती है और उसका जीवन सुखद,मंगलमय तथा शुभ कार्यों में व्यतीत होता है और ऐसा जीवन जीने में ही मनुष्य का कल्याण है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में सत्य और उसका अर्थ क्या है? (What is Truth and his Meaning in hindi),सत्य का आधार क्या है? (What is the Basis of Truth?) के बारे में बताया गया है।
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