What is Indian Naxalite?
1.भारतीय नक्सली क्या हैं? (What is Indian Naxalite?),क्या था नक्सली आन्दोलन? (What Was Naxalite Movement?):
- भारतीय नक्सली क्या हैं? (What is Indian Naxalite?) सामाजिक समता का दम भरने वाले भारत के वामपंथी दल जब सत्ता के लोभ में पड़कर उसी शोषक वर्ग में शामिल हो गए,तब इसी वातावरण के गर्भ से 1967 में नक्सलवाद का आविर्भाव हुआ।
पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी नामक स्थान से शुरू होने के कारण यह आंदोलन नक्सलवाद के नाम से जाना गया,जिसका प्रवर्तन ‘चारु मजूमदार’ ने किया।सामाजिक समता लाने पर उतारू नक्सलियों ने मुख्य धारा छोड़कर हिंसा का मार्ग अपनाया। - जमीदारों-भूमिपतियों,साहूकारों तथा व्यवस्था को शोषक मानकर इनके खिलाफ की जाने वाली हिंसा को उन्होंने जायज ठहराया।आगे चलकर नक्सलवादियों के कई गुट हो गए,जैसे पार्टी यूनिटी,एमसीसी,पीपुल्स वार,भाकपा (माले) आदि।प्रायः ये सभी गुट मार्क्सवादी सिद्धांतों पर चलते हुए भी भूमिहीन व गरीबों को बराबरी का हक दिलाने के लिए हिंसा का मार्ग अपनाते रहे।कानून व्यवस्था को तरजीह न देने के कारण प्रशासन द्वारा समय-समय पर नक्सली गुटों पर प्रतिबंध भी लगाया जाता रहा है।बिहार में सक्रिय एमसीसी तथा पार्टी यूनिटी जैसे संगठनों के कार्यकर्ता अपने पथ से भटककर व्यक्तिगत रंजिश के लिए भी इस मंच का इस्तेमाल करने लगे।
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2.नक्सलियों के कारनामें (Exploits of Naxalites):
- दृश्य एक:उड़ीसा में नक्सलियों ने (24 जून,2024) पहाड़ी (भरतपुर) के युवक सहित चार लोगों को बंधक बना लिया।युवक फैसल खुद की जेसीबी मशीन को उड़ीसा की कंस्ट्रक्शन मशीन में ठेके पर चलाता था।वहाँ पानी की पाइपलाइन बिछाने का कार्य चल रहा था।उसी दौरान नक्सलियों की गैंग ने उन्हें बंधक बना लिया।जहां कार्य चल रहा था,वह नक्सलियों का गढ़ है।अब नक्सलियों ने परिजनों से डेढ़ करोड़ की फिरौती माँगी है।
- दृश्य दो:सुकमा जिले के जगरगुंडा इलाके में नक्सलियों ने रविवार को (23 जून 2024) एक ट्रक को आइईडी ब्लास्ट से उड़ा दिया।धमाके में 201 कोबरा बटालियन के दो जवान शहीद हो गए।यह हमला सुकमा व बीजापुर जिले की सरहद पर सिलगेर से टेकलगुड़ेम के बीच हुआ।शहीद जवानों के नाम विष्णु आर. और शैलेंद्र हैं।
- फंड की कमी से जूझ रहे नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में नकली नोट छापना शुरू कर दिया है।राज्य के सुकमा जिले में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान नक्सलियों के पास नोट छापने की मशीन पकड़ी गई हैं।सुरक्षा बलों ने नकली नोटों के सैंपल,प्रिंटर,बड़ी मात्रा में स्याही और अन्य सामग्री बरामद की।इसके अलावा 50,100,200 और ₹500 के नकली नोट भी बरामद किए हैं।कोराजजोड़ा गुड़ा के जंगलों में अलग-अलग जगह नक्सलियों की ओर से छिपाकर रखे गए नकली नोट बनाने के उपकरण,कलर प्रिंटर,इन्वर्टर,कलर इंक,लोडेड बंदूक,वायरलेस सेट और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गई।
- दृश्य तीन:बस्तर का अबूझमाड़ कभी नक्सलियों का सबसे सुरक्षित क्षेत्र माना जाता था,लेकिन पिछले 6 महीने (जनवरी से जून 2024) में सुरक्षा बलों ने 40 से ज्यादा ऑपरेशन चलाकर इनकी कमर तोड़ दी।इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी बस्तर के 15000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले नक्सली अब 4000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रह गए हैं।लगभग 11000 वर्ग किलोमीटर पर अब सीधा सुरक्षा बलों के नियंत्रण में है।इन इलाकों में सुरक्षा बलों के डेढ़ सौ से ज्यादा कैंप स्थापित हो चुके हैं।
- सुरक्षा बलों की सक्रियता के चलते नक्सली अब पाँच कोर इलाके तक ही सिमटकर रह गए हैं।इनमें अबूझमाड़,इंद्रावती नेशनल पार्क,बैलाडोला की पहाड़ियों का तराई वाला इलाका और सुकमा जिले में बासागुडा-जगरगुंडा-भेज्जी ट्रायंगल व बीजापुर का पामेड़ इलाका शामिल है।
3.नक्सलियों की विचारधारा (Ideology of Naxalites):
- नक्सलवाद की उम्र 47 वर्ष हो चुकी है और तमाम उतार-चढ़ावों,भटकावों एवं अनगिनत बार विभाजनों की मार झेलने के बाद भी यह आंदोलन आज भी जीवित है।वैसे तो हिंदुस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में नक्सलियों के लगभग दर्जन भर गुट सक्रिय हैं,लेकिन इनमें से कई तो ऐसे हैं,जिनका जनाधार मात्र एक जिले तक ही सिमटा है और कुछ तो उस जिले के महज कुछ गांवों तक ही सीमित हैं।इसके बावजूद नक्सली गुटों का दर्शन (विचारधारा) न केवल राष्ट्रीय है,बल्कि उनमें से कुछ तो समूची दुनिया को ही बदल देने का सपना संजोये हुए हैं।वे देश-विदेश की प्रत्येक समस्या पर अपनी स्वतंत्र राय रखते हैं और अपेक्षा करते हैं कि हर कोई उन्हीं के चश्मे से देखें।उनकी यह अपेक्षा तब और हास्यापद लगने लगती है,जब स्थानीय अनुभवों के आधार पर वे समूचे देश और दुनिया के बारे में अधिकारपूर्ण टिप्पणियां करने लगते हैं।लेकिन हकीकत में इन संगठनों की असफलता के कारण इनकी टिप्पणियों पर ना तो कोई ध्यान देता है और न ही बहस करना चाहता है।
- वस्तुतः वर्तमान समय में नक्सलवादी आंदोलन से जुड़े दो ही ऐसे गुट हैं,जिन्होंने कमोबेश अपनी पहचान बनायी है।एक भाकपा (माले) और दूसरा है,आंध्रप्रदेश में सक्रिय पीपुल्स वार ग्रुप।बिहार के एक-दो जिलों में सक्रिय माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) और पार्टी यूनिटी जैसे नक्सलवादी गुटों की सोच लगभग पीपुल्स वार जैसी ही है।पीपुल्स वार ग्रुप की मौजूदा संसदीय प्रणाली में कोई आस्था नहीं है।वह न तो चुनाव लड़ता है और न ही चुनाव लड़ने वालों से किसी तरह का गठबंधन करना पसंद करता है।यह गुट अपनी सभी राजनीतिक गतिविधियों में सशस्त्र संघर्ष को सर्वोपरि मानता है।
- जिस प्रकार एक समय प्रत्येक नक्सली के लिए सी.पी.एम. एवं सी.पी.आई अन्य पार्टियों की तरह ही सत्ता की दलाल थीं,ठीक उसी तरह पीपुल्स वार के लिए आज भाकपा (माले) सत्ता की दलाल मात्र है।अपने हथियारबंद दस्ते ‘दलमू’ के जरिए कभी पुलिस की टुकड़ी पर तो कभी बड़े जमींदारों के प्रभाव,में रहने वाली आम जनता पर हमला बोल देने के अलावा पीपुल्स वार की ऐसी अन्य कोई भी गतिविधि नहीं दिखी,जो प्रदेश या देश स्तर पर चर्चा का विषय बन सकी हो।
- उधर,भाकपा (माले) की सोच अब काफी हद तक बदल चुकी है।वह शस्त्र संघर्ष से ज्यादा महत्त्व राजनीतिक आंदोलन को देना चाहती है।यही कारण है कि वह चुनावों में शिरकत करती है।जिस तरह पीपुल्स वार और उसके संपर्क गुट भाकपा (माले) को ‘संशोधनवादी’ या क्रांति विरोधी मानते हैं,ठीक उसी तर्ज पर लिबरेशन के लोग पीपुल्स वार,पार्टी यूनिटी तथा एमसीसी को अराजक (Anarcchy) मानते हैं।इस मतभेद के कारण ही इन दोनों प्रवृत्तियों के बीच कभी-कभी इस कदर टकराव बढ़ जाता है कि वे एक-दूसरे को ही समूल नष्ट कर देना चाहते हैं।
4.नक्सलियों का आविर्भाव व विस्तार (Emergence and Spread of Naxalites):
- नक्सलीवादी आंदोलन की शुरुआत साठ के दशक के उत्तरार्ध में मानी जाती है।1965 में देश के अंदर जबरदस्त जन आंदोलन हुए और 1967 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस को अनेक राज्यों में पराजय का सामना करना पड़ा।कई राज्यों में विपक्ष की सरकारें बनीं।बुद्धिजीवी,खासकर साम्यवादी यह मानने लगे थे कि जवाहरलाल नेहरू की नीतियां एक जगह आकर ठहर सी गयीं हैं।ऐसे में एक नए विकल्प की आवाज उठने लगी।एक और पश्चिम बंगाल में वामपंथ (माकपा) की सरकार बनी और दूसरी ओर उसी पश्चिम बंगाल में 1967 में नक्सलबाड़ी आंदोलन खड़ा हुआ।यदि वामपंथी सर्वहारा के सिद्धांतों पर खरी उतरी होती तो शायद इस आंदोलन की नींव ही नहीं पड़ी होती।उस समय कम्युनिस्ट आंदोलन में जिस तरह के नेतृत्व का दबदबा था,उसने कहा कि अब उसको राज्य का प्रशासन चलाना है।राज्य सरकार को चलाना और उसे बनाए रखना ही उसके लिए सर्वोपरि हो गया।
- पश्चिम बंगाल की वामपंथ सरकार में तब के गृहमंत्री ज्योति बसु ने नक्सलबाड़ी आंदोलन को किसी प्रकार की मदद पहुंचाने की बजाय उसके प्रति दमनकारी नीति अपनायी।नक्सलबाड़ी गतिविधियां बढ़ते जाने पर राज्य की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को केंद्र की कांग्रेस सरकार से चेतावनियां मिलने लगीं कि यदि वह राज्य की बिगड़ती कानून-व्यवस्था को नियंत्रित नहीं कर सकी तो उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।फलतः माकपा ने अपनी सरकार बचाने के लोभ में नक्सलबाड़ी आंदोलन का दमन आरंभ कर दिया,जिसमें असंख्य लोग मारे गए।इस दमन से पश्चिम बंगाल में आंदोलन तो पूरी तरह नहीं कुचला जा सका,उल्टे यह विद्रोह बनकर पूरे देश में फैल गया।आगे चलकर नक्सलबाड़ी आंदोलन की एक विशिष्ट पहचान बनी।60 और 70 के दशक में भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन में जो बहस चल रही थी,उसी की चरम परिणति नक्सलबाड़ी विद्रोह था।
- नक्सलबाड़ी आंदोलन की पृष्ठभूमि में उस समय चलने वाली बहसें भी थीं।उस समय वामपंथ की नयी-नयी व्याख्यायें सामने आ रही थीं।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छात्रों-युवाओं का उभार भी सामने आ रहा था।वियतनाम में विशेषतौर पर युवा आंदोलन ही उभर रहा था।फ्रांस में भी बहुत बड़ा छात्र आंदोलन हुआ।उसी समय चीन में भी सांस्कृतिक क्रांति हो रही थी।इस किस्म के तमाम विचार भी सामने आ रहे थे कि जो सर्वहारा है,अब उसकी क्रांतिकारी भूमिका नहीं रह गई है।जो भूमिका पहले सर्वहारा निभाता था,वह अब छात्र नौजवान निभाएंगे और विश्वविद्यालय ही उनके मुख्य केंद्र हैं।फ्रांस के ‘रेजी डेब्रे’ आदि ने इस बारे में एक पूरा सिद्धांत भी गढ़ा।उसी आधार पर वामपंथ की एक नयी धारा भी सामने आई,जिसे ‘न्यू लेफ्ट’ कहा गया।इस धारा ने कम्युनिस्टों की परंपरा को पूरी तरह खारिज करना शुरू कर दिया।सबाल्टर्न तथा कुछ अन्य बुद्धिजीवी आज भी उस थ्योरी की वकालत करते हैं।न्यू लेफ्ट की सोच रखने वाले ही आज दुनिया के स्तर पर उत्तर आधुनिकता की बात कर रहे हैं।इन बहसों का नक्सलवादी आंदोलन पर प्रभाव था,लेकिन आंदोलन ने हमेशा भारतीय कम्युनिस्टों की पुरानी जुझारू परंपराओं का स्वागत किया और तेभागा तथा तेलंगाना की धारा से स्वयं को जोड़ा।
- दरअसल नक्सलवादी आंदोलन में चेग्वेरा,रेजी डेब्रू या न्यू लेफ्ट अर्थात् नव वामपंथ जैसी धारा के लिए कोई स्थान नहीं था।नक्सलवादी आंदोलन मूलतः मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धांतों पर आधारित था और कम्युनिस्ट पार्टी के ही नेतृत्व का एक हिस्सा उसका नेतृत्व कर रहा था।दूसरी,यानी न्यू लेफ्ट वाली धारा एक जगह जाकर ठहर गयी,इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी धक्का लगा क्योंकि इस धारा के प्रमुख क्रांतिकारी माने जाने वाले रेजी डेब्रे,फ्रांसीसी राष्ट्रपति मितरां के सलाहकार बन गए।इस प्रकार कालांतर में नक्सलवाद मार्क्सवाद-लेनिनवाद से प्रेरणा ग्रहण करते हुए भी अपनी ही जमीन से ऊर्जा प्राप्त करता रहा।लेकिन सर्वहारा सिद्धांतों को मानने के साथ-साथ यह गुटीय राजनीति तथा अन्य विकृतियों का भी शिकार होता गया।
5.नक्सली गुटों की आपसी मार-काट (Naxal groups clash):
- एक नक्सली अपना वर्चस्व कायम करने के लिए दूसरे गुट से द्वेष रखता है।तनाव बढ़ने पर ये गुट एक-दूसरे के कार्यकर्त्ताओं का खून बहाने से भी नहीं हिचकते।वर्ष 1996 एक अगस्त को एमसीसी ने दूसरे गुट के चार नक्सलियों की हत्या कर दी।पार्टी यूनिटी के तीन सदस्यों की हत्या पलामू में कर दी गई।माले के सशस्त्र दस्ते के नेता कामताजी की गया में हत्या की गयी।
- नक्सली गुटों में इस तरह की लड़ाई का सिलसिला लगातार चलता रहा है।पहले पार्टी यूनिटी और माले के बीच इस तरह की हत्याओं का दौर चला था।10 वर्षों (1985-1995) के भीतर एम.सी.सी. माले तथा पार्टी यूनिटी के बीच हुई आपसी झड़पों और हमलों में 200 से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं।इन गुटों के बीच गोलीबारी या हाथापाई ही नहीं होती,बल्कि वे एक-दूसरे पर पुलिस के साथ मिलकर एक-दूसरे के सदस्यों व समर्थकों को पकड़वाने या मरवाने का भी आरोप लगाते हैं और इसके समर्थन में उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं।नरसंहार भी केवल गुंडा गिरोहों या सामंतों की निजी सेनाओं द्वारा ही नहीं किए जाते,बल्कि कई नरसंहारों में तो इन नक्सली गुटों के संगठनों या कैडरों का हाथ होने का भी आरोप लगाया जाता है।
- नक्सली संगठनों के बीच पारस्परिक मारकाट की मुख्य वजह अपने प्रभाव वाले इलाके का विस्तार करना है।नक्सली गुटों को एक-दूसरे के वर्चस्व वाले इलाके में आने-जाने पर अघोषित पाबंदी होती है।सभी के अपने-अपने ‘लाल क्षेत्र’ होते हैं।जब दो नक्सली गुट एक ही इलाके में काम करते हैं तो वे आपसी समझदारी के तहत नहीं,बल्कि तनाव के वातावरण में काम करते हैं।यदि एक संगठन का आधार किसी खास जाति में है तो दूसरे संगठन का आधार दूसरी जाति में हो सकता है।नक्सलवादी संगठनों ने कई बार आपस में होने वाली हत्याओं-प्रति हत्याओं को रोकने की कोशिश की।इस सिलसिले में पार्टी यूनिटी एवं माले के बीच कई बैठके भी हुई।लेकिन नतीजा सिफर रहा।फलतः संघर्ष भी चलता रहा।
6.निजी सेनायें और नक्सली (Private armies and naxalites):
- ब्रिटिश इंडिया में मुख्यतः जमीदार ही अंग्रेजी शासन व्यवस्था के आधार स्तंभ थे,जो अपने सशस्त्र दस्तों के बल पर किसानों पर नियंत्रण रखते थे।भारत के स्वतंत्र होने के उपरांत जमींदारी प्रथा का अंत हो गया,लेकिन व्यावहारिक रूप से जमीदारों के प्रभाव में कुछ विशेष कमी नहीं आई।वस्तुतः आजादी के बाद जैसे-जैसे किसान संघर्ष तेज होता गया,वैसे-वैसे बड़े-बड़े भूमिपति अपने हितों की रक्षा के लिए एक होते गए।निजी सेनाओं के गठन के पीछे यही कारण है।
- नक्सलबाड़ी आंदोलन के विस्तार के साथ ही सबसे पहले बिहार के भोजपुर जिले में ‘कुंवर सेना’ का गठन किया गया।उल्लेखनीय है कि कुंवर सिंह का 1857 के विद्रोह में प्रमुख योगदान था,जो राजपूत जाति के थे।भोजपुर में सबसे पहले राजपूत जाति के सामंतों ने ही नक्सलियों से खतरा महसूस किया था।इस जातीय सेना के साथ कुंवर सिंह का नाम जोड़ने का कारण राजपूत जाति के लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करना था।नक्सलवाद मूलतः राजपूत विरोधी नहीं था।वह तो सामाजिक स्थिति में राजपूत प्रवृत्तियों तथा आर्थिक मोर्चे पर राजपूत भूस्वामियों के आधिपत्य का विरोधी था।भोजपुर में उक्त सेना के गठन के साथ ही स्पष्ट हो गया की भूमिपतियों में आपसी एकता है।इस सेना के साथ ही भूमिहार भू-स्वामियों का संगठन भी खड़ा हो गया था।
- कुंवर सेना के बाद जातीय भावना के आधार पर भूमिपतियों ने सेनायें घठित करने का एक सिलसिला-सा शुरू कर दिया।जहां-जहां नक्सलियों ने अपनी गतिविधियां तेज कीं,वहां-वहां जातीय सेनायें भी बनती चली गयीं।बाद में पटना में ‘भूमि सेना’ का गठन किया गया,जिस पर कुर्मी जाति के भूमिपतियों का वर्चस्व था।इसके बाद नक्सली आंदोलन के जहानाबाद की ओर बढ़ने पर वहां ‘ब्रह्मऋषि सेना’ व ‘लोरिक सेना’ का गठन क्रमशः भूमिहार तथा यादव भूपति सामंतों ने किया।जहानाबाद में भूमिहार और यादव बहुसंख्यक हैं।ब्रह्मऋषि को भूमिहार अपने पूर्वज मानते हैं तथा यादव लोरिक जैसे लोकनायक को अपनी जाति तक सीमित करके देखते हैं।लोरिक सेना का प्रभाव नालंदा जिले के हिल्सा के आसपास था।
- इन सेनाओं को राजनेताओं का संरक्षण भी मिलता रहा है।बिंदेश्वरी दुबे ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में गया जिले में भूस्वामियों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए उसी प्रकार का कैंप बनवाया था,जिस प्रकार पहले डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र ने बनवाया था।स्वर्णों को काफी तादाद में हथियारों के लाइसेंस भी दिए गए,जबकि हरिजनों या निम्न जातियों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार चलाने की योजना राज्य सरकार ने कभी लागू नहीं की।’अखल कांड’ के बाद जब बिहार में निजी सेनाओं पर प्रतिबंध लगाया गया तो जादू की तरह उक्त सेनायें गायब हो गयीं।लेकिन क्या वाकई ऐसा था? नहीं।इन सेनाओं ने केवल अपनी गतिविधियों को समेट लिया था क्योंकि माले जैसे नक्सली गुटों ने खुली राजनीति पर जोर देना आरंभ कर दिया था।
- लेकिन कुछ वर्ष जब पार्टी यूनिटी और एमसीसी पुनः पुराने ढर्रे पर नक्सलवादी आंदोलन चलाने लगीं तो निजी सेनायें फिर उभर कर सामने आ गयीं।1988 में पलामू में राजपूत भूपतियों की ‘सनलाइट सेना’ सामने आयी।जहानाबाद में सावन बिगटा नरसंहार करने वाले संगठन ‘बिहार स्वर्ण लिबरेशन फ्रंट’ का गठन 21 दिसंबर,1990 को किया गया।इसी प्रकार भोजपुर जिले के बेलाउर में ‘रणवीर सेना’ का गठन किया गया,जिसने बधानी टोला नरसंहार किया।इस सेना का मुख्यालय खोपोटा गांव में है और इसके मुखिया हैं-परमेश्वर नाथ सिंह।
7.आंध्रप्रदेश में पीपुल्स वार ग्रुप पर प्रतिबंध (People’s War Group banned in Andhra Pradesh):
- नक्सलवादियों का एक प्रमुख गुट ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ (P. W. G.) बेहद चर्चा में है।मुख्यतः आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश (वर्तमान छत्तीसगढ़) के कुछ जिलों में सक्रिय यह ग्रुप सी. पी. आई. (एम. एल.) का छापामार संगठन है,जिसका गठन 22 अप्रैल,1980 को हुआ था।आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपने राज्य में इस संगठन को प्रतिबंधित कर दिया है।इसका कारण राज्य के तेलंगाना क्षेत्र में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति थी।इस नक्सली संगठन पर सबसे पहले 1992 की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री एन. जनार्दन रेड्डी ने एक साल के लिए प्रतिबंध लगाया था,जिसे बाद में दो साल के लिए और बढ़ा दिया गया।अक्टूबर 1994 में राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एन. टी. रामाराव ने मुख्यमंत्री की गद्दी हासिल करने के लिए एक तरफ जहां आम जनता के लिए सस्ते चावल (₹2 किलो) का चारा फेंका,वहीं दूसरी तरफ पीपुल्स वार ग्रुप की लोकप्रियता भुनाने के लिए उस पर लगा प्रतिबंध हटाने का भी वादा किया।चुनाव जीतने के बाद एन. टी. आर. ने अपने दोनों वादों को पूरा किया।लेकिन इस संगठन से प्रतिबंध हटना अगले मुख्यमंत्री नायडू को खटकने लगा और वे इस पर पुनः प्रतिबंध लगाने की जुगत में लग गए।मई 96 में लोकसभा चुनाव को देखते हुए तो वे चुप रह गए,लेकिन उन्हें जबकि केंद्र और राज्य दोनों में पार्टी की स्थिति मजबूत दिखने लगी तो उसे उचित अवसर मानकर उन्होंने ग्रुप पर प्रतिबंध लगा दिया।
- वस्तुतः उक्त संगठन का उद्देश्य भूमि सुधार,बेरोजगारों को रोजगार देना तथा गरीबों की भलाई करना आदि है।आंध्रप्रदेश में इसका प्रभाव तेलंगाना क्षेत्र में है।तेलंगाना में हैदराबाद,आदिलाबाद,वारंगल,निजामाबाद,करीमनगर आदि जिले शामिल हैं।इस राज्य में मार्क्सवाद पर आधारित नक्सलवादी आंदोलन का मूल अर्थ भूमि सुधार है।1955 में बने भूमि हदबंदी कानून का इस राज्य में भी भूमिपतियों द्वारा मखौल उड़ाया गया।फलतः यहाँ के निर्धन भूमिहीन किसानों तथा खेतिहर मजदूरों को उक्त कानून से कोई लाभ नहीं हुआ।इस अन्याय की पृष्ठभूमि में गठित संगठन ने राज्य में अब तक (1996 तक) 4 लाख एकड़ भूमि जमीदारों से छीन कर भूमिहीनों में वितरित की है।इसके लिए उन्हें जमींदारों से हिंसक लड़ाई भी लड़नी पड़ी है,जिसमें जमीदारों,साहूकारों,उनके कारकुनों के साथ ग्रुप के असंख्य कार्यकर्त्ता भी मारे गए।बुर्जुआ कानून को न मानने वाले इस छापामार ग्रुप ने रास्ते में अवरोध खड़ा करने वाले पुलिस के बड़े अधिकारियों को भी अपना निशाना बनाया।पीपुल्स वार ग्रुप ने गरीब किसानों,मजदूरों तथा आम जनता के बीच एक जागरूकता अभियान भी छेड़ दिया,जिसके तहत उन्हें यह समझाया गया कि वे शोषण करने वाले जमीदारों और सूदखोरों के घर या खेत पर जाकर काम न करें।जो जमींदार या भूमिपति हदबंदी कानून का पालन नहीं करते,उनके घर कोई भी जैसे-नाई,पानी भरने वाले या दूसरे काम करने वाले नहीं जाते।यह संगठन प्रजा पंचायत बुलाता है और उसमें लोगों के आपसी झगड़े निपटाये जाते हैं।
- यदि कोई व्यक्ति किसी जमीदार या भूमिपति के खिलाफ कोई शिकायत करता है तो उन्हें भी प्रजा पंचायत में आकर अपना पक्ष रखना पड़ता है।यह पंचायत जुर्माना लगाने के साथ-साथ अपराधियों को सजा भी सुनाती है।भ्रष्ट अधिकारियों का बहिष्कार भी किया जाता है।बुजुर्ग और सम्मानित लोग ही इस प्रजा पंचायत का संचालन करते हैं।उनके निर्णय को जनता का समर्थन प्राप्त होता है।
8.छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी प्रतिबंध (Ban in Chhattisgarh and Madhya Pradesh):
- आंध्रप्रदेश में पीपुल्स वार ग्रुप और छह प्रमुख शाखाओं पर लगे प्रतिबंध की वजह से उसके कार्यकर्त्ताओं ने भाग कर पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश की सीमाओं में शरण लेने के कारण इन दोनों राज्यों ने भी इन पर प्रतिबंध लगा दिया।पीपुल्स वार ग्रुप तथा उसकी मुख्य संस्था ‘दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संघ’ छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के वन वाले चार जिलों बस्तर,राजनांदगांव,मंडला एवं बालाघाट में सक्रिय हैं।इसकी कुछ अन्य शाखाएं हैं,जैसे:रेडिकल यूथ लीग,रेडिकल स्टूडेंट यूनियन,कॉलियरीज यूनियन,रिवॉल्यूशनरी वर्कर्स यूनियन,ऑल इंडिया रिवॉल्यूशनरी स्टूडेंट फॉर्म तथा रैयत कुल संघम।लेकिन ये शाखाएं संभवतः मध्यप्रदेश में सक्रिय नहीं है।मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में सक्रिय नक्सली अपनी गतिविधियां आंध्रप्रदेश स्थित केंद्रीय समिति के मुख्यालय के निर्देशानुसार संचालित करती हैं।केंद्रीय समिति की तीन आधारभूत शाखाओं शहरी,ग्रामीण एवं वन शाखा में से केवल वन शाखा के अधीन छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के उक्त चार जिलों में सक्रिय हैं।प्रदेश में इस वन शाखा के अधीन ही दलम एवं उनके कार्य क्षेत्र विभाजित हैं।प्रत्येक दल में 9 से 11 सदस्य होते हैं,जिनमें तीन-चार महिला सदस्य होती हैं,जो खासतौर से महिलाओं की सहानुभूति अर्जित करने हेतु रखी जाती हैं।राज्य दलम के अधिकांश कमांडर व उप-कमांडर आंध्र या महाराष्ट्र निवासी नक्सली हैं।
- नक्सलियों का अंतिम उद्देश्य हिंसा के माध्यम से सत्ता प्राप्त करना है।इसके लिए उन्होंने ‘दंडकारण्य नक्सली राज्य’ की योजना बनायी है।इस परिकल्पित राज्य में बिहार,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,आंध्रप्रदेश,तेलंगाना तथा महाराष्ट्र के उन आदिवासी बहुल एवं पिछड़े क्षेत्रों को सम्मिलित किया है,जहाँ वनों की अधिकता है और भरपूर प्राकृतिक संसाधन मौजूद है।नक्सली यह अच्छी तरह से जानते हैं की उपेक्षा तथा विकास की कमी के कारण यहाँ लोगों में स्थापित सत्ता के प्रति आसानी से असंतोष भड़काया जा सकता है।
- समाधान:नक्सलियों से सख्ती से निपटने के साथ-साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा,स्थानीय लोगों के विकास बहाली,सड़क,यातायात के साधनों में वृद्धि,खुफिया एजेंसियों को चौकस व सतर्क रखने तथा नक्सलियों को मिल रही आपूर्ति व सहायता को बन्द करके नक्सलीवाद से मुक्त हुआ जा सकता है।आखिर नक्सलियों को बन्दूक,हथियार,गोला बारूद,आधुनिक तकनीकी के उपकरण कैसे मुहैया हो जाते हैं? कौन लोग उनकी सहायता करते हैं,उनकी पहचान करनी होगी।
- उपर्युक्त आर्टिकल में भारतीय नक्सली क्या हैं? (What is Indian Naxalite?),क्या था नक्सली आन्दोलन? (What Was Naxalite Movement?) के बारे में बताया गया है।
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9.भारतीय नक्सली क्या हैं? (Frequently Asked Questions Related to What is Indian Naxalite?),क्या था नक्सली आन्दोलन? (What Was Naxalite Movement?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.रणवीर सेना का गठन क्यों हुआ? (Why was Ranvir Sena formed?):
उत्तर:’रणवीर सेना’ का गठन रणवीर चौधरी या रणवीर बाबा के नाम पर 1994 में किया गया था।रणबीर चौधरी बिहार के भोजपुर जिले के उदबन्तनगर थाने में स्थित बेलाउर गांव के रहने वाले थे।पहलवान और लड़ाकू प्रवृत्ति के रणवीर चौधरी पहले ब्रिटिश सेना में जवान थे।जाति के भूमिहार रणवीर और अन्य भूमिहार अपने गांव के राजपूत जाति के लठैतों से परेशान रहते थे।1850 ईस्वी के आसपास रणवीर चौधरी ने अपने बाहुबल से बेलाउर गांव के राजपूत परिवारों को खदेड़ दिया।इस जातीय लड़ाई में मिली कामयाबी ने रणबीर चौधरी को भूमिहार जाति के मसीहा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।90 के दशक में भाकपा (माले) की बढ़ती ताकत ने सहार एवं संदेश क्षेत्र के भूमिहार भूस्वामियों की नींद हराम कर दी।1994 में बेलाउर गांव के एक पनवाड़ी ने भूमिहारों को पान बेचने से मना कर दिया,जिस पर भूमिहारों ने उसे पीट दिया।भाकपा (माले) द्वारा इस पर आपत्ति करने पर माले के स्थानीय नेता सिद्धनाथ राम की भी पिटाई कर दी।फलतः बेलाउर गांव माले तथा भूमिहार सामंतों के बीच संघर्ष का केंद्र बन गया।सितंबर,94 में माले ने गांव के कतिपय सामंतों पर ‘आर्थिक नाकेबंदी’ की घोषणा करने के अतिरिक्त अपनी जन अदालत के निर्णयानुसार गांव के एक भूमिहार सामन्त की भी हत्या कर दी।इस घटना से भूमिहारों को लगा कि आब माले के कार्यकर्त्ता उन्हें चैन नहीं लेने देंगे।इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद सितंबर,94 में ही धरीक्षण चौधरी के नेतृत्व में भूमिहारों की एक बैठक बुलाई,जिसमें बेलाउर के अलावा अन्य गांवों के किसानों ने भी हिस्सा लिया।इस बैठक में निर्णय लिया कि चूँकि माले ने उनकी इज्जत धूल में मिला दी है,इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए रणवीर बाबा के नाम पर ‘रणवीर सेना’ का गठन किया जाए।यह सेना भूमिहारों की इज्जत की लड़ाई बंदूक से लड़ेगी।गांव के मुखिया ‘बरमेश्वर सिंह’ इस सेना के प्रमुख बनाए गए।
प्रश्न:2.भूमिहार से क्या आशय है? (What do you mean by Bhumihar?):
उत्तर:मध्य प्रदेश में बसने वाली एक हिंदू जाति जो अपने को ब्राह्मण कहती है।
प्रश्न:3.सर्वहारा से क्या आशय है? (What do you mean by proletariat?):
उत्तर:नि:स्व!समाज का निम्नतम श्रमिक वर्ग; अकिंचन वर्ग (प्रौलेटेरियट)।
प्रश्न:4.प्रमुख नक्सली संगठन कौनसे हैं? (Which are the major naxalite organisation’s?):
उत्तर:भाकपा (माले-लिब्रेशन),सी सी सी आई (एम-एल),पीपुल्स वार ग्रुप,माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी),ओसीसीआर (कानू सान्याल),सी ओ सी (पार्टी यूनिटी),सी सी सी पीआई (एम एल),पी सी सी सी पी आई (एम एल)।लगभग अधिकांश नक्सली संगठन निष्क्रिय हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारतीय नक्सली क्या हैं? (What is Indian Naxalite?),क्या था नक्सली आन्दोलन? (What Was Naxalite Movement?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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