What is aim of education in hindi
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1.शिक्षा का उद्देश्य क्या है? का परिचय (Introduction to What is aim of education in hindi),शिक्षा के लक्ष्य क्या हैं? (What are the goals of education?):
- शिक्षा का उद्देश्य क्या है? (What is aim of education in hindi),शिक्षा के लक्ष्य क्या हैं? (What are the goals of education?):समय के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन होता रहता है।दरअसल शिक्षा गतिशील है।इसलिए शिक्षा में प्रगतिशीलता,नवीनता और आनुपातिकता जैसे तत्त्व शामिल होते हैं तब ही शिक्षा जीवन्त समझी जाती है।प्राचीन काल आवश्यकताएं ओर थी तथा आधुनिक समाज और व्यक्ति की आवश्यकताएं ओर हैं।शिक्षा समाज को प्रभावित करती है तो समाज भी शिक्षा को प्रभावित करता है।इस आर्टिकल में आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों के बारे में बताया गया है।
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via https://youtu.be/xPovMMuJF5c
2.शिक्षा का उद्देश्य क्या है? (What is aim of education in hindi),शिक्षा के लक्ष्य क्या हैं? (What are the goals of education?):
- शिक्षा का मूल उद्देश्य शिक्षार्थी का सर्वांगीण विकास करना है।वस्तुतः मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा उसकी स्थिति अन्य प्राणियों से अलग है।अतः उसे एक सभ्य,सुसंस्कृत आचरण की अपेक्षा की जाती है।उसे इतना ज्ञान होना चाहिए कि संसार में तेजी से हो रहे विकास के अनुरूप अपने आपको ढाल सके।इसके लिए उसे संस्कार व जानकारी से युक्त होना चाहिए।प्राचीनकाल से ही बालकों को इस हेतु शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था रही है।परंतु वर्तमान समय में उसका स्वरूप बदल गया है किन्तु शिक्षा की आवश्यकता हर युग में रही है।
- शिक्षा का अर्थ कुछ विषयों का ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है।शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास की प्रक्रिया है तथा चरित्र भी उसका एक भाग है। विभिन्न आयोग तथा संगठनों द्वारा यह सुझाव दिया गया है कि चरित्र का विकास बच्चों की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
- चरित्र इतना व्यापक अर्थ रखनेवाला शब्द है कि अभी तक इसका स्वरूप ही निर्धारित नहीं किया जा सका है।वर्तमान में भारत में विभिन्न संप्रदाय वाले लोग रहते हैं इसलिए इसको निर्धारित करना ओर मुश्किल हो गया है।वर्तमान में शिक्षा को अर्थलाभ अर्थात् जीविकोपार्जन से जोड़कर देखा जाता है।हमारे विचार से शिक्षा के ये उद्देश्य हो सकते हैंः
- (1.)छात्रों का सर्वागीण विकास अर्थात् मानसिक,चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास करना।
- (2.)शिक्षा के द्वारा वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ उपयोगी और अनुपयोगी में से उपयोगी को ग्रहण व अनुपयोगी का त्याग करना।
- (3.)सैद्धान्तिक ज्ञान तथा आचरण,बोध और विवेक में समन्वय उत्पन्न करना।यदि यह सामंजस्य उत्पन्न नहीं किया जा सके तो वह शिक्षा अधूरी ही रहेगी। परंतु आज की शिक्षा पर गौर करें तो यह शिक्षा परीक्षा पास करके डिग्री हासिल करने का जरिया रह गई है।जिससे छात्र-छात्राओं के अन्य पहलुओं का विकास नहीं हो पाता है।
- (4.)संस्कृति का हस्तान्तरण करना।परन्तु वर्तमान शिक्षा ने हमें हमारी जड़ों से काट दिया है तथा जो प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर थी जिसके हमें उत्तराधिकारी होने चाहिए उससे वंचित कर दिया है।
- (5.)छात्र-छात्राओं में यह बोध पैदा करना कि उसके द्वारा अर्जित योग्यता और प्रतिभा से समाज व देश को किस प्रकार लाभान्वित किया जा सकता है?
- (6.)अर्थोपार्जन की कला सीखाना अर्थात् आत्मनिर्भर बनाना।
- उपर्युक्त शिक्षा के उद्देश्यों में चरित्र निर्माण को परिभाषित करना तथा उसकी रूपरेखा बनाना जटिल कार्य है।
वस्तुतः चरित्र निर्माण की कोई निश्चित,सीमित एवं निर्णायक परिभाषा देना बहुत कठिन है।यदि परिभाषा दी भी जाए तो उसका व्यावहारिक जीवन से तालमेल बिठाना मुश्किल है। - दूसरी तरफ विज्ञान तथा भौतिक सुख-सुविधाओं का इतना विकास हो चुका है कि धार्मिक विश्वास,परंपराएं तथा जीवन मूल्यों का पालन करना आडंबर,अंधविश्वास तथा जड़ मान्यताएं समझी जाने लगी है।अब सत्य बोलना,ईमानदार होना,सहिष्णुता,चोरी न करना,प्रेम,सहयोग इत्यादि जो शाश्वत मूल्य हैं वे सैद्धान्तिक रह गए हैं।व्यावहारिक रूप में इनका पालन करने वाले को पुरातनपंथी समझा जाता है।इसका परिणाम यह हो रहा है कि छात्र छात्राएं अनुत्तरदाई,निष्क्रिय,असंयमी तथा अनुशासनहीन होते जा रहे हैं।
- समाज व अभिभावक भी विज्ञान व भौतिकता की चकाचौंध में बहती गंगा में हाथ धोने का अवसर नहीं चूकते हैं।इन सबके परिणाम सामने भी आने लगे हैं।बच्चे अभिभावकों की आज्ञा पालन नहीं करते हैं,उनकी सेवा करना,सम्मान करना इत्यादि शिष्टाचारों को भूलते जा रहे हैं।छात्र छात्राओं में विवाह पूर्व ही यौन संबंध,माता-पिता की सहमति के बिना शादी करना,गर्भपात करना,लड़ाई-झगड़ा करना,राजनीति में भाग लेना,गुंडागर्दी करना जैसी कुप्रवृत्तियाँ पैदा हो रही है।
- अतः अब समय आ गया है कि आधुनिक शिक्षा में चरित्र निर्माण हेतु पुनर्मूल्यांकन किया जाए।इसका पुनर्मूल्यांकन इसलिए भी आवश्यक है कि प्रजातन्त्र की मूल संकल्पना सामाजिक तथा व्यक्तिगत मूल्यों के उपयोग पर आधारित होती है।चूँकि छात्र-छात्राएं समाज का ही अंग है अतः उनका विकास होगा तो समाज व देश का विकास होगा।इसलिए शिक्षा शास्त्रियों को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि किन-किन चारित्रिक मूल्यों को शामिल किया जा सकता है।
- दूसरा किन शिक्षण विधियों से छात्रों में व्यावहारिक व क्रियात्मक सुधार सुधार लाया जा सकता है।
- तीसरा आत्म-निर्भरता का बिंदु है जो कि वर्तमान समय की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
- अतः शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विद्यालय,शिक्षक,अभिभावकों व समाज का उत्तरदायित्व है।इसलिए अपने तात्कालिक लाभ के लिए छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ न किया जाए।
- उपर्युक्त आर्टिकल में शिक्षा का उद्देश्य क्या है? (What is aim of education in hindi),शिक्षा के लक्ष्य क्या हैं? (What are the goals of education?) के बारे में बताया गया है।
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