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What are Side Effects of Watching TV?

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1.टीवी देखने के दुष्प्रभाव क्या हैं? (What are Side Effects of Watching TV?),टीवी देखने के क्या-क्या लाभ हैं? (What are Benefits of Watching TV?):

  • टीवी देखने के दुष्प्रभाव क्या हैं? (What are Side Effects of Watching TV?) टीवी (टेलीविजन) आज शहरी ही नहीं,ग्रामीण यहाँ तक की ढाणियों के बच्चों के जीवन का एक खास अंग बन चुका है।बच्चों की टीवी के प्रति दिलचस्पी और बढ़ती दीवानगी आज प्रायः हरेक की कहानी है।दिन-रात टीवी पर आंखें गड़ाए रहना और टीवी से चिपके रहना बच्चों की दिनचर्या का अभिन्न अंग बनता जा रहा है।आज के बच्चों के इस टीवी प्रेम के दुष्परिणाम भी प्रत्यक्ष हैं।बच्चों के स्वास्थ्य एवं कोमल मानस पटल पर पड़ रहे इसके गंभीर दुष्परिणाम समझदार लोगों के लिए भारी चिंता का विषय बन हुए हैं।
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2.टीवी के दुष्प्रभाव (Side Effects of TV):

  • टीवी पर आज इस तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे हैं,उसने हमारे नैतिक मूल्यों,संस्कृति व समृद्धिशाली परंपरा को कुचला है।उसका एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना रह गया है।पूंजीवादी और उपभोक्तावादी युग में हम कह सकते हैं कि टीवी भी व्यवसायीकरण से बच नहीं पाया है।
  • आज टीवी से प्रसारित कार्यक्रमों में हिंसा,आतंक,सेक्स,पश्चिमी जीवनशैली को अपनाने की होड़ ‘यही सब तो टीवी पर परोसा जा रहा है’।इस तरह के कार्यक्रमों को उच्च वर्ग से लेकर मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग सभी काफी मजे लेकर देखते हैं।एक समय था जब टीवी से रामायण,महाभारत,भारत एक खोज,विश्वामित्र आदि जैसे धारावाहिकों का प्रसारण होता था तो सभी वर्गों के लोग उसे चाव से देखते थे।परंतु आज हम टीवी के किसी भी कार्यक्रम के स्तर से इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते जो संपूर्ण जनमानस को बांध सके।भले ही कितने ही नित नए-नए चैनल क्यों न आ गए हों?
  • नित्य नए-नए चैनलों,केबुल व डिश एंटीना व सेटेलाइट चैनल से बराबरी करने के लिए एक-दूसरे ने भी अपनी सोच बदल दी है।
    एक समय था जब टीवी पर प्रसारित लोग व बुनियाद सुपर हिट रहे थे।ये धारावाहिक आम जनता के लिए थे,जिसमें हर वर्ग के लिए मनोरंजन था,परन्तु आज के धारावाहिकों की स्थिति दूसरी है।आज के धारावाहिक वर्ग विशेष को प्रभावित कर रहे हैं।
  • जिनकी शैली का पूर्णतया पश्चिमीकरण हो चुका है,जो पश्चिम के मानदंडों को श्रेष्ठ मानते हैं।इन धारावाहिक में समाज की मान्यताओं को खुलेआम चुनौती दी जा रही है।ज्यादातर धारावाहिकों में नकारात्मक चरित्रों की संख्या बढ़ती जा रही है।पहले के धारावाहिकों में एक घोषित खलनायक या खलनायिका होते थे जिनसे कभी किसी अच्छे काम की आशा नहीं की जा सकती थी परंतु अब धारावाहिकों में नायक-खलनायक या नायिका-खलनायिका की दूरी समाप्त होती जा रही है।बहुत कम चरित्र ऐसे हैं जो सशक्त हैं।इस बात का अंदाजा लगाना कठिन है कि कब धन व सत्ता के लिए दो दोस्त आपस में दुश्मन हो जाएंगे,बाप-बेटा एक दूसरे के विरुद्ध अदालत में पहुंच जाएंगे या माँ-बेटी पीठ से पीठ सटाकर बात करने लगेंगी।इन धारावाहिकों में उभरने वाली नारी भी बहुत हठीली व महत्त्वाकांक्षी है।
  • सबसे चिंता का विषय है कि इन धारावाहिकों के पात्रों में पश्चाताप के लिए कोई स्थान नहीं है।नए नायक दो-दो,तीन-तीन औरतों के साथ संबंध रखते हैं और सीना ताने घूमते हैं।सब काम यहां डंके की चोट पर हो रहा है चाहे वह नैतिक दृष्टि से कितना ही गलत क्यों न हो?
  • टीवी पर उन्मुक्तता की आंधी के चलते यौन सम्बन्ध,विवाहेतर संबंध,समलैंगिकता जैसे विषय भी बाजार में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।पहले इस पर विरोध भी होता था,पर अब धारावाहिकों के माध्यम से खुलेआम इस तरह के विषय दर्शकों तक पहुंच रहे हैं।धीरे-धीरे इसे भारतीय समाज में स्वीकृति मिलती जा रही है।जिस गति से इन सब चीजों की घुट्टी पिलाई जा रही है,उस परिप्रेक्ष्य में वह दिन आ गया है जिसमें यह कहा जाता है कि ‘सब चलता है’ कहकर आम दर्शक इसे स्वीकार करता जा रहा है।
  • कहते हैं छोटा पर्दा जिन्दगी का आइना प्रस्तुत करता है।ऐसे में उसके चरित्रों का नकारात्मक होते जाना एक गंभीर संकेत है।सीमा में रहते हुए रहने पर ही हर चीज सही कही जा सकती है,परंतु अब तो हिंसा,सेक्स,रोमांस,प्रतिशोध जैसी प्रवृत्तियों के खुलेआम प्रदर्शन ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करना शुरू कर दिया है।प्रबुद्ध वर्ग तो अपने आप को संभाल ले रहा है,पर इसका सबसे बुरा असर युवा वर्ग पर पड़ रहा है,जो इस तरह की जीवन शैली से बहुत प्रभावित हो रहा है।
  • टीवी से सबसे ज्यादा युवा वर्ग व बच्चे ही प्रभावित होते हैं क्योंकि वे मानसिक रूप से अपरिपक्व होते हैं।
  • आज टीवी के कार्यक्रम हमारे जीवन में जहर घोल रहे हैं।बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर दिन-रात टीवी से चिपके रहते हैं।इससे उनका समय तो बर्बाद होता ही है,लगातार टीवी देखते रहने से उनकी आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर टीवी जैसे प्रभावी जनसंचार के माध्यम को जन अभिमुखी एवं प्रगतिकारी कौन बनाएगा? अंतिम जिज्ञासा शेष रहती है कि यदि टीवी पर परोसा गया मनोरंजन घटिया या स्तरहीन है तो क्या हमारे देश के तथाकथित बौद्धिक वर्ग ने सिनेमा सेंसर बोर्ड बनाने की तर्ज पर टीवी सेंसर बोर्ड की मांग की है।आज जरूरत है टीवी सेंसर बोर्ड गठित करने की।तभी टीवी अपनी सही पहचान को बचा पाएगा।
  • शारीरिक रोगों से भी गम्भीर समस्या बच्चों के अवचेतन मन पर पड़ रहे टीवी के दुष्प्रभावों की है।बच्चों का कोमल मन बिना तर्क-वितर्क किए टीवी के दृश्यों व संकेतों को सही मान लेता है और उसकी नकल करता है।
  • बढ़ते बाल अपराधों में टीवी को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।टीवी में बेरोकटोक परोसी जा रही हिंसा,अपराध एवं यौन-कुत्सा भड़काने वाली कुत्सित सामग्री बाल मन पर कितना घातक असर डाल रही है,यह शोध से निकलने वाले आंकड़ों की जुबानी से स्पष्ट हो जाती है।
  • टेलीविजन जानकारी एवं मनोरंजन देने वाला सबसे शक्तिशाली माध्यम बन चुका है।रेडियो और पुस्तकें अब इतनी प्रभावशाली नहीं रही है।विश्वभर के बच्चे दिन में लगभग 3 घंटे टीवी देखते हैं।अर्थात् स्कूल के बाहर उनका सबसे अधिक समय टीवी के साथ बीतता है।इसी कारण अधिकांश बच्चे अपना रोल मॉडल ऐक्शन हीरो,पाॅप स्टार और संगीतज्ञों को चुनते हैं।बहुत कम बच्चे किसी धार्मिक नेता को या आध्यात्मिक व सामाजिक नेता को अपना आदर्श (रोल मॉडल) मानते हैं।

3.टीवी देखने के लाभ (Benefits of Watching TV):

  • टीवी ने आज मानव जीवन विशेषकर युवावर्ग के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है।टीवी की उपयोगिता बहुआयामी है।छात्रों व बच्चों के लिए ज्ञानवर्द्धक प्रोग्राम,पारिवारिक कार्यक्रम,उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रसारित कार्यक्रम,सामान्य अध्ययन के लिए सामान्य ज्ञान के कार्यक्रम,अन्तरिक्ष विज्ञान,चिकित्सा से संबंधित अनेक कार्यक्रम सभी के लिए उपयोगी सिद्ध हुए हैं।आज समाज,धर्म,संस्कृति,साहित्य,कला तथा खेलकूद की जानकारी हमें टीवी कार्यक्रमों से मिलती है।
  • टीवी का प्रयोग केवल मनोरंजन के क्षेत्र में ही नहीं है अपितु वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भी किया गया है।चन्द्रमा पर भेजे गए अंतरिक्ष यानों में टीवी यंत्र लगाए गए थे तथा उन्होंने वहां से चंद्रमा के बहुत सुंदर चित्र भेजे।जो अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री चन्द्रमा पर गए थे उनके पास टीवी कैमरे थे तथा उन्होंने पृथ्वी पर स्थित लोगों को भी चन्द्रमा के तल का ऐसा दर्शन करा दिया मानो वे दर्शक भी चन्द्रमा पर घूम रहे हों।मंगल तथा शुक्र ग्रहों की ओर भेजे गए अंतरिक्ष यानों में लगे हुए टीवी यंत्रों ने उन ग्रहों के अब तक प्राप्त सबसे अच्छे तथा विश्वसनीय चित्र पृथ्वी पर भेजे हैं।
  • टीवी पर महान व्यक्तियों तथा अन्य स्थानों के वातावरण को सचित्र वर्णन करता है।विविध विषयों में यह विद्यार्थियों की रुचि विकसित करता है।दृश्य होने के कारण प्रभाव दृढ़ होता है।
  • इतिहास प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन की घटनाओं को टीवी पर प्रत्यक्ष देखकर चारित्रिक विकास होता है।देश-विदेश के अनेक स्थानों,पर्वतों,समुद्रों व वनों के साक्षात दर्शन हो जाते हैं,इन्हें देख कर भौगोलिक ज्ञान बढ़ता है।इसके अतिरिक्त शिक्षा के क्षेत्र में टीवी अनेक रूपों में सहायक हो रहा है।
  • तकनीकी तथा चिकित्सा के क्षेत्र में टीवी बहुत शिक्षाप्रद रहा है।टीवी ने एक सफल तथा प्रभावशाली प्रशिक्षक की भूमिका अदा की है।वह प्रभावशाली तथा रोचक विधि से मशीनी प्रशिक्षण के विभिन्न पक्ष शिक्षार्थियों को समझा सकता है।साथ ही यह लोगों को औद्योगिक एवं तकनीकी विकास के विभिन्न पहलू प्रत्यक्ष दिखाकर उनसे परिचित कराता है।चिकित्सा के क्षेत्र में तो टीवी ने क्रांति ला दी है।अनुभवी सर्जन यदि कोई शल्य-चिकित्सा (ऑपरेशन) करता है तो कमरे में लगे कैमरे द्वारा टीवी की सहायता से असंख्य विद्यार्थी उस संपूर्ण क्रिया को सुगमता से देख पाते हैं तथा लाभान्वित होते हैं।
  • सामाजिक चेतना की दृष्टि से तो टीवी सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है।इसके विविध कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में व्याप्त कुप्रथाओं तथा अनेक बुराइयों पर कटु प्रहार किया गया है।लोगों को छोटा परिवार सुखी परिवार की ओर आकर्षित किया गया है।इसने बाल-विवाह,दहेज प्रथा,छुआछूत,सांप्रदायिकता के विरुद्ध जनमत तैयार किया है।टीवी पर कहानियों,नाटकों,वाद-विवाद,विभिन्न धारावाहिकों तथा अन्य रोचक कार्यक्रमों के माध्यम से उसकी बात व्यक्ति के मन में गहरी उतर जाती है तथा उसके दृष्टिकोण में अवश्य ही कुछ बदलाव आता है।इसके अतिरिक्त टीवी दर्शकों को स्वास्थ्य और स्वच्छता के नियमों,यातायात के नियमों तथा कानून और व्यवस्था के विषय में शिक्षित करता है।ऐसा करके टीवी मनुष्य को दूसरों का ध्यान रखने के सामाजिक दायित्व का बोध कराता है।
  • टीवी राजनीतिक दृष्टि से भी जन सामान्य को शिक्षित करता है।वह प्रत्येक नागरिक को एक नागरिक के नाते उसके अधिकारों तथा कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक करता है।मताधिकार के प्रति रुचि जागृत करके उसमें राजनीतिक चेतना लाता है।आज टीवी पर आयकर,दीवानी तथा फौजदारी मामलों से संबंधित जानकारी दी जाती है जिनके परिणामस्वरूप व्यक्ति का इस ओर ज्ञानवर्द्धन हुआ है।
  • कवि सम्मेलनों,मुशायरों,साहित्यिक,वैज्ञानिक,गणितीय प्रतियोगिताओं का आयोजन करके नए प्रकाशनों का परिचय देकर तथा विद्वानों का साक्षात्कार प्रस्तुत करके टीवी ने प्रत्येक क्षेत्र का विकास किया है।इसी प्रकार बड़े-बड़े कलाकारों की कलाओं की प्रदर्शनियाँ आयोजित करके उनकी कला का परिचय देकर कला के प्रति लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाई है।यही नहीं टीवी नए उभरते हुए वैज्ञानिकों,गणितज्ञों,साहित्यकारों,कलाकारों (चित्रकार,संगीतकार,फोटोग्राफर आदि) एवं विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे कारीगरों के कृतित्व का परिचय देकर न केवल उन कलाकारों को प्रोत्साहित किया है बल्कि उनकी अपनी वस्तुओं की बिक्री के लिए व्यापक क्षेत्र प्रस्तुत किया है।इसने विभिन्न कलाओं को जीवित रखने तथा विकसित होने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • इतना ही नहीं टीवी अनेक दृष्टियों से जन साधारण  को जागरूक करता है।टीवी के सीधे प्रसारण द्वारा किसी खेल,राजनीतिक कार्यक्रम,वैज्ञानिक अनुसंधान इत्यादि को लोकप्रियता की बुलन्दी पर पहुँचा दिया है।

4.टीवी के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय (Ways to Avoid the Side Effects of TV):

  • किसी भी चीज को जनमानस ही बदल सकता है।जरूरत है इस दिशा में पहल करने की।अगर कोई जान लेवा या खतरनाक विज्ञापन प्रसारित हो रहा है तो हमें फौरन मीडिया सेन्टर को पत्र लिखकर या सम्पर्क करके उन्हें बताना चाहिए कि आपके विज्ञापन का अमुक अंश खराब लगा।अगर जनमानस चाहे तो एक सार्थक व सही पहल की जा सकती है।स्तरहीन धारावाहिकों के निर्माण का पूरा दायित्व हम पर है और इनका स्तर नीचे न जाए,इसके लिए प्रबुद्ध दर्शकों को ही जागरूक होना होगा।किसी भी देश में जनमत बहुत मायने रखता है और जनता का विरोध ही इनकी संख्या को कम कर सकता है तथा उन्मुक्तता को नियंत्रित कर सकता है।
  • क्या हमने वर्तमान ‘आकाशी सांस्कृतिक आक्रमण, की कोई पूर्व तैयारी कर रखी है जिसके लिए पश्चिमी जनसंचार नीति के विशेषज्ञों ने अपनी रणनीति बना रखी है।अगर यही स्थिति रही तो हमारी सांस्कृतिक सोच,सांस्कृतिक प्रदूषण इस कदर बदतर हो जाएगा कि भारत अपनी अस्मिता ही खो देगा।अतः जरूरत है हमें अपनी जनसंचार नीति की रणनीति तय करने की।
  • आज टीवी के बहुतेरे ऐसे कार्यक्रम है जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख नहीं सकता है,तो अब प्रश्न उठता है कि भारतीय संस्कृति जो प्राचीन काल से पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय रही है।
  • वेदों उपनिषदों,पुराणों,आध्यात्मिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध संस्कृति को बचाए रखने के लिए टीवी के कर्ताधर्ता को अपने नजरिए में बदलाव लाने की।उन्हें पूर्ण व्यवसायिक नजरिया में बदलाव लाना होगा।ऐसे अच्छे-अच्छे व स्वच्छ कार्यक्रम दिखाए जाएं जिससे जनमानस को सही संदेश मिले,स्वच्छ मनोरंजन हो।प्राचीन भारतीय संस्कृति के बहुतेरे ऐसे पहलू हैं जिन पर कार्यक्रम बनाया जा सकता है।
  • अधिकारियों को चाहिए कि ऐसे धारावाहिकों को प्रसारण की अनुमति न दें जो सामाजिक मूल्यों पर चोट करते हों।अच्छे पटकथा लेखकों को अवसर मिलना चाहिए जो साफ सुथरी पटकथा लिखें।विज्ञापनदाताओं एवं प्रायोजकों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनका प्रायोजित धारावाहिक कहीं सामाजिक क्षति तो नहीं कर रहा है।समय रहते यदि हम आवश्यक कदम नहीं उठाते हैं तो इस आँधी का असर बहुत घातक होगा और इसकी कीमत समस्त समाज को पतन की पीड़ा झेलते हुए चुकानी पड़ेगी।
  • हमारे देश के बुद्धिजीवियों को टीवी के समाजशास्त्र को न केवल गहनता से समझना होगा बल्कि उन्हें उसकी भूमिका को समाजोपयोगी बनाने की दिशा में भी प्रयत्नशील बनना होगा।यदि समय रहते अपनी प्रभावी राष्ट्रीय,सांस्कृतिक नीति का निर्माण व कार्यान्वयन नहीं किया तो अवश्य हमारे समाज को तीव्र ‘नैतिक प्रदूषण’,’सांस्कृतिक प्रदूषण’ के पतनशील दौर से गुजरना होगा।परिणाम यह निकलेगा कि विश्व समुदाय में भारतवर्ष अपनी सांस्कृतिक पहचान गँवा देगा।
  • अतः जरूरत है टीवी ऐसे कार्यक्रम बनाए जो मनोरंजक,ज्ञानवर्धक हों साथ ही साथ भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हों तभी टीवी की महत्ता सही मायने में निखर कर सामने आएगी।

5.टीवी के दुष्प्रभाव का दृष्टान्त (Parable of Side Effects of TV):

  • शीतल पेय के विज्ञापन की नकल करते हुए लखनऊ के छहवर्षीय टिंकू ने छत से छलांग लगा दी थी।इसी प्रकार दिल्ली की 9 वर्षीय पूजा ने टीवी फिल्म में किसी नायिका की आत्महत्या के दृश्य को देखकर आत्महत्या कर ली थी।ये घटनाएं यही सिद्ध करती है कि टीवी के दृश्यों का बच्चों के कोमल मन पर गहरा असर पड़ता है।
  • टीवी फिल्मों या फिल्मों से वास्तविक जीवन भी प्रभावित होता है।यही नहीं बच्चों के कोमल मन पर साफ सुथरे धारावाहिकों का भी प्रभाव पड़ता है और वे गुमराह हो जाते हैं।
  • उदाहरणार्थ हुबली में 10 वर्षीय वर्षा कुलकर्णी और उसकी सहेली अस्मा लूत्तापन्निवार ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल छिड़ककर आग इस उम्मीद से लगा ली कि टीवी सीरियल का चरित्र ‘शक्तिमान’ उन्हें बचाने आ जाएगा।
  • इसी प्रकार कोटा जिले के सांगोद कस्बे में रहने वाली छह साल की किरण बाला और उसके 5 साल के भाई पंकज के मन में यह बात बैठ गई की शक्तिमान उन्हें किसी भी खतरे से बचा लेगा।एक दिन दोनों (भाई-बहन) धारावाहिक देखने के बाद अपनी छत पर गए और शक्तिमान की तरह गोलाई में घूमे और नीचे कूद पड़े,इस उम्मीद के साथ कि बीच में ही शक्तिमान अपनी गोद में ले लेगा।किन्तु शक्तिमान प्रकट नहीं हुआ और दोनों बच्चों को गंभीर चोट खाकर अस्पताल की शरण लेनी पड़ी।
  • टीवी के भोंडे,दुस्साहसिक करतबों वाले धारावाहिकों ने अबोध बच्चों को किस कदर अंधविश्वासी बना दिया और गुमराह किया है इसके लिए उपर्युक्त मिसाल काफी है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में टीवी देखने के दुष्प्रभाव क्या हैं? (What are Side Effects of Watching TV?),टीवी देखने के क्या-क्या लाभ हैं? (What are Benefits of Watching TV?) के बारे में बताया गया है।

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6.छोटों के साथ मारपीट नहीं करनी चाहिए (हास्य-व्यंग्य) (Don’t Beat up Little Ones) (Humour-Satire):

  • गणित का छात्र:पापा,आपने कहा था की छोटो के साथ मारपीट नहीं करनी चाहिए।
  • पापा:हां बेटे,परंतु तुम यह क्यों पूछ रहे हो?
  • गणित का छात्र:गणित अध्यापक को समझा दीजिए,वे हर गणित के सवाल पर मेरी पिटाई करते हैं।

7.टीवी देखने के दुष्प्रभाव क्या हैं? (Frequently Asked Questions Related to What are Side Effects of Watching TV?),टीवी देखने के क्या-क्या लाभ हैं? (What are Benefits of Watching TV?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.टेलीविजन का आविष्कार किसने किया? (Who Invented the Television?):

उत्तर:टेलीविजन का आविष्कार सन 1926 ईस्वी में इंग्लैंड के वैज्ञानिक जाॅन एल. बेयर्ड ने किया था।

प्रश्न:2.भारत में टीवी से प्रसारण कब चालू हुआ? (When Did TV Broadcasting Start in India?):

उत्तर:भारत में दूरदर्शन का सबसे पहला केंद्र नई दिल्ली में 15 सितंबर 1959 में चालू हुआ था।पहले इसका प्रयोग उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा के लिए किया जाता था।मई 1965 से आधे घंटे का नियमित मनोरंजन कार्यक्रम शुरू हुआ।सन् 1971 में बम्बई,सन् 1973 ईस्वी में श्रीनगर तथा अमृतसर में भी दूरदर्शन प्रसारण केंद्र स्थापित किए गए।वर्तमान समय में तो पूरे देश में दूरदर्शन का जाल बिछ गया।

प्रश्न:3.टीवी देखते समय क्या सावधानी रखें? (What to Be Careful While Watching TV?):

उत्तर:बच्चों को एक-दो घंटे से अधिक टीवी नहीं देखना चाहिए।स्वस्थ,शिक्षाप्रद तथा स्वस्थ मनोरंजन करने वाले धारावाहिक ही देखना चाहिए।टीवी को कम से कम 6 फीट की दूरी से देखना चाहिए।भोजन करते समय टीवी नहीं देखना चाहिए क्योंकि इससे भोजन एकाग्रतापूर्वक नहीं किया जाता है जो पाचन,कब्ज जैसी बीमारियों को पैदा करता है।सोते हुए टीवी नहीं देखना चाहिए।माता-पिता को भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे वीडियो गेम वगैरह तथा अनावश्यक कार्यक्रमों को देखने में तो रुचि तो नहीं लेते हैं।टीवी से होने वाले घातक प्रभावों को रोकने में माता-पिता व अभिभावक की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।यदि वे सजग व सतर्क रहकर निगरानी रखें तो बच्चों को टीवी के दुष्प्रभावों से बचा सकते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा टीवी देखने के दुष्प्रभाव क्या हैं? (What are Side Effects of Watching TV?),टीवी देखने के क्या-क्या लाभ हैं? (What are Benefits of Watching TV?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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