What are Controversy in Education Today?
1.वर्तमान में शिक्षा में क्या विरोधाभास है का परिचय (Introduction to What Are Controversy in Education Today?),शिक्षा में विरोधाभास का समाधान क्या है? का परिचय (Introduction to What is Solution to Controversy in Education?):
- वर्तमान में शिक्षा में क्या विरोधाभास है (What Are Controversy in Education Today?)।वर्तमान शिक्षा में अनेक विरोधाभास देखने को मिलते हैं। सबसे प्रमुख विरोधाभास तो यही है कि हमें जो पढ़ाया जाता है अथवा शिक्षा प्रदान की जाती है वह हमारे आचरण का अंग नहीं बनती है। कारण स्पष्ट है शिक्षक और शिक्षक संस्थान बालक-बालिकाओं को केवल सैद्धांतिक शिक्षा प्रदान करते हैं। वे अपने जीवन में अर्जित की गई शिक्षा को आचरण में उतारते,पालन करते हैं या नहीं इससे उनको कोई लेना देना नहीं है।उनका उद्देश्य मात्र व्यावसायिक दृष्टिकोण है। शिक्षा को केवल वे व्यवसाय समझते हैं इससे देश का भला होने वाला नहीं है।
- पाठ्यपुस्तकों में,शिक्षकों के भाषणों तथा विभिन्न शिक्षाविदों के कथनों में सुनने को यही मिलता है कि बालक-बालिकाओं का सर्वांगीण विकास करना चाहिए। परन्तु सर्वांगीण विकास शिक्षा को जीवन में उतारे बिना नहीं हो सकता है।जैसै हम पुस्तक में योगाभ्यास तथा ध्यान करने की पद्धति पढ़ लें और प्रैक्टिकल रूप से योगाभ्यास तथा ध्यान न करें तो उसका क्या महत्त्व है। ऐसी शिक्षा बकरी के गले में लटके हूए थन के समान है जिसमें से दूध नहीं निकल सकता है। इसी प्रकार पुस्तकीय विद्या का जब तक अभ्यास नहीं किया जाए तब उसका कोई महत्त्व नहीं है।
- समाज सुधारक,माता-पिता,अभिभावक और शिक्षक एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
कोई भी शिक्षा पद्धति तटस्थ होती है उसको सक्रिय करना तथा उपयोग में लाना हमारे हाथ है। शिक्षा पद्धति तो निर्जीव है वह आकर हमें नहीं कहेगी कि लो मुझे पढ़ लो और अपने जीवन में उतारो।शिक्षा पद्धति को दोषी ठहराया जाकर हम अपने दोषों को छिपाने का प्रयास करते हैं।लेकिन प्रबुद्ध व्यक्ति तथा समझदार यह भलीभाँति जानता है कि दोष शिक्षा पद्धति में नहीं बल्कि हमारे अन्दर है। हमारी इच्छाशक्ति में है,हमारी ढुलमुल नीति में है। इसीलिए शिक्षा का बंटाधार हो रहा है। राजनीतिक नेता उस मुद्दे पर ध्यान देते हैं जिससे उनको वोट मिल सके और सत्ता में बने रह सकें। शिक्षा में परिवर्तन से पहले हमें हमारी कार्यप्रणाली,हमारे सोचने के ढंग को परिवर्तित करना होगा।
- इस वीडियो में शिक्षा में वर्तमान में जो विरोधाभास हैं उनके बारे में बताया गया है। सबसे प्रमुख विरोधाभास तो यह है कि हम कहते हैं कि बालक देश का भविष्य है। परन्तु उनका भविष्य निर्माण करने के बजाय हम उन्हें नौकरी प्राप्त करने की अन्धी दौड़ और गलाकाट प्रतिस्पर्धा में झौंक देते हैं।
- दूसरा विरोधाभास यह देखने को मिलता है कि हम यह तो चाहते हैं कि देश में सुचरित्रवान बालक-बालिकाएं पैदा हों परन्तु अपने घर में नहीं हो। क्योंकि सचरित्र व्यक्ति को दुख और कष्ट झेलने पड़ते हैं। जब बेईमान, कामचोर, झूँठ बोलने वाले, अय्याश तबियत के व्यक्ति मौज-मजा करते हुए देखे जाते हैं तो कोई क्यों अच्छा बनेगा। परन्तु यह अधूरा सच है।
via https://youtu.be/Wa0YjlVniqU
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस Video को शेयर करें। यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि वीडियो पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं। इस वीडियो को पूरा देखें।
2.वर्तमान में शिक्षा में क्या विरोधाभास है? (What Are Controversy in Education Today?),शिक्षा में विरोधाभास का समाधान क्या है? (What is Solution to Controversy in Education?):
- हर व्यक्ति यही कहता है कि बच्चे देश का भविष्य है।परंतु यह जानते समझते हुए भी बच्चों के उज्जवल चरित्र तथा भविष्य को श्रेष्ठ व उन्नत करने में रुचि लेता दिखाई नहीं देता है अर्थात् कथनी और करनी में अंतर है।
- दरअसल बालक देश का भविष्य है इसमें आधुनिक भारतीय व्यक्तियों की यह सोच है कि बालक बड़ा होकर नौकरियों के लिए प्रतियोगिता में पड़ना,ऊँचा पद,ऊँचे वेतन और अधिकाधिक पैसा पाना ही इसे अपने जीवन का लक्ष्य माने वही शिक्षा है जबकि शिक्षा व्यक्ति के गरिमा,व्यक्तित्व व आचरण से जुड़ती है।जैसी प्रेरणा देनेवाली शिक्षा पद्धति होगी वैसी ही प्रवृत्ति के विकास को उस समाज में गौरवान्वित किया जाएगा।यही कारण है कि वर्तमान भारतीय समाज में यही बात गौरवास्पद समझी जाती है कि उसका बच्चा ऊँचा पद और इतना पैसा कमाए जिससे कि उनका यश फैले और बच्चा यशस्वी हो जाए।इस प्रकार बच्चों और युवाओं के लिए यश प्राप्ति का मापदंड ऊंचा पद,नौकरी और पैसा अर्थात् कोई बड़ा व्यवसाय करना माना जाता है अथवा जोड़-तोड़ बैठाने में माहिर होकर कोई नेता बने।
- हम बालकों को सच्चरित्र,कर्मठ,आस्थावान,संघर्षशील तथा आदर्शों के लिए अडिग,तेजस्वी के रूप में ढालने का प्रयास नहीं करते हैं।हम यह चाहते हैं कि महर्षि दयानंद सरस्वती,स्वामी विवेकानंद जैसे बच्चे तो पैदा हों लेकिन उनके खुद के घर में पैदा न होकर दूसरे के घर में पैदा हों क्योंकि अपने घर में पैदा हो गया तो वंश नहीं चलेगा।यह कैसी विचित्र बात है।इस प्रकार की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है।
- दूसरा विरोधाभास ओर देखने को मिलता है कि जो लोग स्वयं शिक्षा नीति,शिक्षण पद्धति,शिक्षण पाठ्यक्रम,शिक्षण संस्थाएं तथा शिक्षा के मानदण्ड तय करते हैं,बनाते हैं तथा चलाते हैं वे ही इनकी आलोचना करते हैं तथा शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता बताते हैं।इस प्रकार की मानसिकता से शिक्षा का ढर्रा कैसे बदला जा सकता है जबकि इसके कर्त्ता-धर्त्ता ही दोहरी मानसिकता रखते हैं।
- तीसरा विरोधाभास यह देखने को मिलता है कि शिक्षा-संस्थान के कर्त्ता-धर्त्ता यह तो समझते हैं कि हमारा कार्य पाठ्यक्रम पूरा कराना है तथा सद्गुणों का विकास करना अभिभावकों व समाज का कार्य है।दूसरी तरफ समाज,परिवार और अभिभावक यह समझते हैं कि बच्चा शिक्षकों की आज्ञा का पालन ज्यादा करता है व उनके चरित्र का ज्यादा प्रभाव पड़ता है और शिक्षा में पाठ्यक्रम के साथ उनके (बालकों में) अन्य गुणों का विकास भी सम्मिलित है।इस प्रकार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने से हम सबका ही नुकसान है।शिक्षा एक अकेले शिक्षा संस्थान,परिवार और समाज का कार्य नहीं है बल्कि बालक शिक्षा परिवार,समाज,शिक्षा संस्थान व मित्रों तथा अन्य महापुरुषों व संगठनों से अर्जित करता है।अतः इनका जैसा वातावरण व व्यवहार होगा बालक वैसी ही शिक्षा अर्जित करेगा।इसलिए प्रत्येक को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए।एक दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने या उससे मुंह मोड़ना उचित नहीं है।
- इसलिए जो लोग बच्चे और संपूर्ण समाज व देश का भविष्य उज्जवल देखना चाहते हैं उन्हें अपने द्वारा दिए जा रहे शिक्षण व शिक्षा को उन्नत बनाना होगा।बच्चों के सामने हम स्वयं अपने आचरण से जैसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं,उसके व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए जितने सजग रहते हैं,उसमें अंतर्निहित गुणों को उभारने में जितना प्रयास करते हैं उतना ही अच्छा व उचित होगा।यह सब शिक्षण के अंग है।अतः प्रत्येक नागरिक को बच्चों में सुसंस्कार डालने का प्रयास करना चाहिए।बच्चों में श्रेष्ठ संस्कार डालना ही वास्तविक शिक्षण हैं।व्यक्ति निर्माण का जितना अधिक श्रेष्ठ वातावरण परिवार,समाज एवं शिक्षा संस्थान में होगा बालक का व्यक्तित्व उतना ही अधिक विकसित होता जाएगा तभी सुयोग्य नागरिकों की संख्या बढ़ेगी तथा बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में वर्तमान में शिक्षा में क्या विरोधाभास है? (What Are Controversy in Education Today?),शिक्षा में विरोधाभास का समाधान क्या है? (What is Solution to Controversy in Education?) के बारे में बताया गया है।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |