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Vocational Education in India

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1.भारत में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in India),भारत में रोजगारपरक शिक्षा (Employability Education in India):

  • भारत में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in India) की नींव लगे लंबा समय व्यतीत हो गया है।परंतु इसके सुखद परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं।विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाना,श्रम के प्रति निष्ठा व व्यावसायिक कार्यों के प्रति रुचि जागृत करना ही व्यावसायिक शिक्षा कही जा सकती है।व्यावसायिकता मूल रूप से उद्योगों से आयातित शब्द है।
  • प्रारंभ में भारत में निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी।परंतु आधुनिक युग की आवश्यकताओं को देखते हुए तथा पाश्चात्य देशों के प्रभाव के कारण व्यावसायिकता ने शिक्षा में घुसपैठ कर ली है।
  • किसी भी शिक्षा पद्धति में गुण व दोष होते हैं।परंतु शिक्षा में व्यावसायिकता का नकारात्मक स्वरूप सामने आ रहा है।अब गणित शिक्षक व अन्य शिक्षक शिक्षा संस्थानों में पढ़ाते हैं तथा उसके एवज में उन्हें वेतन मिलता है।बहुत से शिक्षकों को सुविधाजनक वेतन मिलता है इसके बावजूद ट्यूशन कराना तथा पार्ट टाइम कोचिंग से धन कमाने में ऐसे शिक्षक लिप्त पाए जाते हैं।जिन शिक्षकों की रोजी-रोटी के लिए आवश्यक धन (वेतन) नहीं मिलता है उनके द्वारा ट्यूशन व पार्ट टाइम कोचिंग कराना तो समझ में आता है।इस प्रकार आज के अधिकांश शिक्षक धन लोलुप होते जा रहे हैं।
  • व्यावसायिक शिक्षा में छात्र-छात्राएं अपनी प्रतिभा को पहचान कर रुचि व योग्यता के अनुसार जॉब का चयन करके दसवीं तथा बारहवीं कक्षा के बाद व्यावसायिक शिक्षा का चयन कर सकता है।परंतु डिग्रीधारी युवाओं को रोजगार (नौकरी) सरकारी अथवा प्राइवेट न मिलने के बावजूद डिग्री प्राप्त करने वाले युवाओं की संख्या काफी अधिक है। दूसरी तरफ व्यावसायिक शिक्षा के प्रति छात्र-छात्राओं का रुझान बहुत कम है।यह स्थिति भारत के लिए चिंताजनक है।
  • इसका मूल कारण यही समझ में आता है कि आज के नवयुवकों में श्रम के प्रति निष्ठा नहीं है।क्लर्क, बाबू,अफसर बनकर ऐशोआराम की नौकरी पसंद करते हैं परंतु आईटीआई,डिप्लोमा करके कोई जॉब अथवा अपना व्यवसाय करना पसंद नहीं करते हैं।
  • व्यावसायिक शिक्षा की सर्वप्रथम वकालत गांधी जी ने 1937 में शिक्षा को हस्तकला व बुनियादी शिक्षा की धुरी पर बदलना चाहा परंतु उनके जीते-जी यह कार्य सफल नहीं हो सका।इसके बाद माध्यमिक शिक्षा आयोग ने 1952-53 में बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना की सिफारिश की।एक अन्य शिक्षा आयोग ने 1964-66 में माध्यमिक शिक्षा स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा पर अत्यधिक जोर दिया जिससे शिक्षा कृषि,उद्योग व व्यापार से जुड़ सके।1978 में आदिसेशाह के सभापतित्व ने उत्पादक सामाजिक कार्यों को विद्यालय स्तर से प्रारंभ करने की सिफारिश की थी परंतु उपर्युक्त सभी प्रयास विफल रहे।
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2.व्यावसायिक शिक्षा का वर्तमान स्वरूप (The Current Form of Vocational Education):

  • 1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्रीत्व काल में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 10+2+3 के आधार पर लागू की गई।इसमें व्यवसायिक व शैक्षणिक शिक्षा के दो स्वरूप तय किए गए।दसवीं उत्तीर्ण छात्र-छात्राएँ इच्छित जाॅब का चयन करके आईटीआई कर सकते थे जबकि 12वीं उत्तीर्ण छात्र-छात्राएं व्यावसायिक शिक्षा हेतु डिप्लोमा,बीई,बीटेक इत्यादि का चयन कर सकते हैं।अन्य छात्र-छात्राएं शैक्षणिक गतिविधियों को जारी रखते हुए बीए,बीकॉम,बीएससी, एमए,एमकॉम,एमएससी तथा पीएचडी इत्यादि कोर्स कर सकते थे।
  • परंतु व्यावसायिक शिक्षा के प्रति छात्र-छात्राओं का रुझान बहुत कम रहा।फलस्वरूप शैक्षणिक डिग्रीधारी युवाओं की भीड़ एकत्रित हो गई।
  • फलतः उच्च शिक्षा क्षेत्र में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपने अधीन विश्वविद्यालयों के माध्यम से व्यावसायिक शिक्षा देने का कदम उठाया।यूजीसी ने 35 व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को तैयार कर विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों में प्रारंभ किए हैं इनमें हैं:
  • (1.)कला,मानविकी एवं समाज विज्ञान से संबंधित चार विषय:फंक्शनल हिंदी,फंक्शनल संस्कृत,कम्युनिकेटिव इंग्लिश तथा आर्कियोलॉजी एंड म्यूजियोलॉजी है।
  • (2.)वाणिज्य,अर्थशास्त्र एवं प्रबंध से संबंधित 8 विषय हैं:प्रिन्सीपल एंड प्रैक्टिसेज ऑफ इंश्योरेंस, एक्चुरियल साइंस,ऑफिस मैनेजमेंट एंड सेक्रेटेरियल प्रैक्टिस,टेक्सप्रोसीड्यूर्स एंड प्रैक्टिसेज,फॉरेन ट्रेड एंड प्रोसीड्यूर्स,टूरिज्म प्रोमोशन एण्ड सेल्स मैनेजमेंट तथा कम्प्यूटर एप्लीकेशन्स हैं।
  • (3.)विज्ञान संकाय से संबंधित 14 विषय हैं:इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री,फूड साइंस एंड क्वालिटी कंट्रोल,क्लीनिकल न्यूट्रीशन,डाइलिटिक्स, इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी,बायोटेक्नोलॉजी,बायोलॉजिकल टेक्निक एंड स्पेसिमेन,प्रिप्रेशन,सीड टेक्नोलॉजी,सेरीकल्चर,इंडस्ट्रियल फिश एंड फिशरी,इंस्ट्रूमेंटेशन,ऑप्टिकल इंस्ट्रूमेंटेशन, जियोएक्स प्लोरेशन एंड ड्रिलिंग टेक्नोलॉजी,मास कम्युनिकेशन एंड वीडियो प्रोडक्शन तथा स्टिल फोटोग्राफी एण्ड ऑडियो प्रोडक्टस हैं।
  • (4.)इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी से सम्बन्धित 9 विषय हैं:इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट मेंटिनेस,कंप्यूटर मेंटेनेंस,एनवायरमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट,रूरल टेक्नोलॉजी,ऑटोमोबाइल्स मेंटेनेंस,रेफ्रिजरेशन एंड एयर कंडीशनिंग मेंटेनेंस,इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट मेंटेनेंस,कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट तथा मेन्युफेक्चरिंग प्रोसेसेज हैं।
  • इन पाठ्यक्रमों के लिए यूजीसी 5 वर्षों तक सभी प्रकार की आवर्तक एवं अनावर्तक राशि प्रदान करती थी।विद्यार्थियों से शिक्षण शुल्क के अतिरिक्त कुछ नहीं लिया जाता था।इसके अतिरिक्त आईआईटी व कई संस्थाओं द्वारा नियमित व पत्राचार द्वारा पत्रकारिता,जनसंचार,पर्यटन,होटल प्रबंध,श्रम,विधि,कार्मिक प्रबंध,सूचना एवं पुस्तकालय विज्ञान,वास्तुशिल्प,एमबीए,लेखाकारिता,अभियांत्रिकी,कंप्यूटर,पेंटिंग,मूर्तिकला,अपमाइड आर्ट,ग्राफिक आर्ट,फाइन आर्ट,क्राफ्टस व डिजाइन आदि में डिग्री व डिप्लोमा प्रदान किया जाता है।
  • देश के कई उच्च शिक्षा संस्थानों में रोजगार सूचना देने हेतु रोजगार परामर्श ब्यूरो व करियर सूचना कक्ष स्थापित किए गए थे।समय-समय पर मासिक बुलेटिन,रोजगार मार्ग निर्देशिकाएं,विज्ञापन,विज्ञप्तियां व पम्पलेटो द्वारा रोजगार सूचना दी जाती थी।

3.व्यावसायिक लागू करने का परिणाम (The Result of Applying Vocational Education):

  • इतना सब कुछ करने के बावजूद नवयुवकों को व्यावसायिक शिक्षा के प्रति जो रूझान पैदा किया जाना चाहिए वह पैदा नहीं हो सका।वस्तुतः नवयुवकों में श्रम के प्रति निष्ठा का अभाव है।क्लर्क,बाबू तथा चपरासी एक बहुत छोटा पद है।परंतु इनके लिए डिग्रीधारी ग्रेजुएट व पोस्टग्रेजुएट यहां तक की पीएचडी करने वालों की लाइन लग जाती है।यह सब यही दर्शाता है कि युवावर्ग श्रम नहीं करना चाहता है।वह कुर्सी पर बैठकर ऐशोआराम की नौकरी करना पसंद करता है।भले ही वह कितना छोटा पद हो।
    परंतु व्यावसायिक डिप्लोमा,डिग्री लेकर स्वयं का व्यवसाय खड़ा करना नहीं चाहता है।कारण स्पष्ट है कि स्वयं के व्यवसाय में कड़ी मेहनत,संघर्ष तथा कर्मठता की आवश्यकता होती है।कई व्यावसायिक पाठ्यक्रम अधिक खर्चीले होने के कारण नवयुवक उनको नहीं कर पाता है।कुछ पाठ्यक्रम दैनिक जीवन से संबंधित तथा लोकप्रिय नहीं है अर्थात् आउटडेटेड हैं,उन पाठ्यक्रमों को इसलिए नहीं करता है।फोटोग्राफी,इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे पाठ्यक्रम अधिक खर्चीले हैं तथा कुछ गिने-चुने स्थानों पर ही उपलब्ध होते हैं।

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4 व्यावसायिक शिक्षा के बारे में दो शब्द (Two Words About Vocational Education):

  • इतने वर्षों के पश्चात भी व्यावसायिक शिक्षा के प्रति मानसिकता में बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। माध्यमिक स्तर पर तकनीकी पाठ्यक्रमों में छात्र-छात्राएं 10% से कम ही स्वीकार करते हैं।यही स्थिति उच्च शिक्षा संस्थानों में तकनीकी पाठ्यक्रमों की है।जबकि जापान,जर्मनी,डेनमार्क,स्काॅटलैण्ड इत्यादि विकसित देशों 80% छात्र-छात्राएं व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करते हैं।यहाँ एक बात ओर देखने में आती है कि इंजीनियरिंग,डाॅक्टर इत्यादि व्यावसायिक पाठ्यक्रम भारत से करके प्रतिभाशाली नवयुवा विदेश में नौकरी करना पसंद करते हैं और वही बस जाते हैं।इससे भारत का संसाधन तो व्यय होता ही है साथ ही प्रतिभाशाली प्रोफेशनल्स को भारत के विकास में सहयोग नहीं मिल पाता है।
  • इसके लिए नवयुवक-नवयुवतियों की मानसिकता को परिवर्तित करने की आवश्यकता है।राष्ट्र के प्रति प्रेम तथा निष्ठा को जागृत करने की आवश्यकता है। हालांकि यह कार्य है तो कठिन परंतु असंभव नहीं है।लोकप्रिय व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है।व्यावसायिक शिक्षा सस्ती व आसानी से सुलभ हो इसके प्रयास किए जाने चाहिए।जिससे सभी वर्ग अर्थात निर्धन और असक्षम छात्र-छात्राएं लाभ उठा सकें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में भारत में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in India),भारत में रोजगारपरक शिक्षा (Employability Education in India) के बारे में बताया गया है।

5.विद्यार्थी की भगवान से माँग (हास्य-व्यंग्य) (The Student’s Demand from God) (Humour-Satire):

  • गगन मंदिर में जाकर भगवान के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहा था।हे भगवान इस बार परीक्षा में उत्तीर्ण कर देना।आगे से मैं कड़ी मेहनत करूंगा।
  • पुजारी:भाई तुम भगवान से क्या मांग रहे हो? तुम्हें क्या कष्ट है?
  • गगन:मैं भगवान से मांग रहा हूं कि वह मुझे परीक्षा में उत्तीर्ण कर दें क्योंकि इस बार मेरे पेपर खराब हो गए हैं।अगर मैं फेल हो गया तो मेरे माता-पिता ने अल्टीमेटम दे दिया है कि तुम्हे बेलदारी (मजदूरी) पर लगा दिया जाएगा।अब आप तो जानते हैं एक बेलदार को कड़ी धूप व सर्दी में भी कितनी हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती है।उस पर भी मजदूरी इतनी ही मिलती है कि दोनों टाइम सूखी रोटी का भी बंदोबस्त नहीं हो सकता है।

6.भारत में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in India),भारत में रोजगारपरक शिक्षा (Employability Education in India) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्यवसायिक शिक्षा में सुधार के क्या सुझाव हैं? (What are the Suggestions to Improve Vocational Education?):

उत्तर:(1.)पाठ्यक्रम लोकप्रिय तथा दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले होने चाहिए।
(2.)कौन-कौन से पाठ्यक्रम किस क्षेत्र में खोले जाए? उसके लिए कच्चा माल व साजो-सामान कहां से प्राप्त होगा? इसके लिए योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध है या नहीं।इनसे रोजगार पाने की संभावना कितनी है? इनके लिए धन की आवश्यकता कितनी होगी? इन सब तथ्यों का समाधान पहले से करके फिर व्यावसायिक पाठ्यक्रम चालू करना चाहिए।
(3.)पाठ्यक्रमों में कोई भी संशोधन तथा नवीन पाठ्यक्रमों को प्रारंभ करने से पूर्व छात्र-छात्राओं एवं अभिभावकों के सुझाव भी लेने चाहिए।
(4.)पाठ्यक्रम कम खर्चीले तथा सभी के लिए सुलभ होने चाहिए।
(5.)रोजगार का निर्माण इस प्रकार करना चाहिए कि जिससे छात्र-छात्राओं को रोजगार उपलब्ध हो सके।अन्यथा स्वयं का व्यवसाय खड़ा करने के लिए बैंक से कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जाए तथा शर्ते आसान होनी चाहिए।
(6.)पाठ्यक्रम इस प्रकार से तैयार करने चाहिए जिससे विद्यार्थियों में श्रम के प्रति निष्ठा जागृत हो सके।

प्रश्न:2.व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के अनेक पथों के खुल जाने के बावजूद सिविल सेवाओं के प्रति रुझान कम क्यों नहीं हुआ? (Why the Trend Towards Civil Services has not Come Down Despite the opening up of Several Avenues of Professional Courses?):

उत्तर:व्यावसायिक तथा निजी क्षेत्रों में जॉब प्राप्त करने के अवसर बढ़ गए हैं।इसका कारण उदारीकरण तथा निजीकरण है।सरकारी नौकरियों के स्काॅप में कमी हुई है।इसके बावजूद सरकारी सेवाओं व सिविल सेवाओं का क्रेज कम नहीं हुआ है।इसका कारण है कि इन सेवाओं की सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत अधिक है।इन सेवाओं का कार्य क्षेत्र विस्तृत व चुनौतीपूर्ण है।ये सेवाएं ग्लैमरस हैं। इन सेवाओं में अधिकार भी बहुत मिलते हैं।

प्रश्न:1.ब्रेन ड्रेन क्या है? (What is Brain Drain?):

उत्तर:ब्रेन ड्रेन से तात्पर्य है कि विकासशील तथा निर्धन देशों से दक्षता प्राप्त प्रोफेशनल्स यथा इंजीनियरिंग,डॉक्टर,प्राध्यापकों इत्यादि का विकसित व अमीर देश में पलायन (Migration) करना।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारत में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in India),भारत में रोजगारपरक शिक्षा (Employability Education in India) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Vocational Education in India

भारत में व्यावसायिक शिक्षा
(Vocational Education in India)

Vocational Education in India

भारत में व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education in India) की नींव लगे लंबा समय व्यतीत हो गया है।
परंतु इसके सुखद परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं।विद्यार्थियों को
आत्मनिर्भर बनाना,श्रम के प्रति निष्ठा व व्यावसायिक कार्यों

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