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UN Organisation Security Council

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1.संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद (UN Organisation Security Council),संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद और उसके कार्य (United Nations Organisation Security Council and Their Functions):

  • संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद (UN Organisation Security Council) संयुक्त राष्ट्र संघ का हृदय है।द्वितीय विश्व महायुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए सन 1945 में इस संगठन की स्थापना की गई।इसके घोषणा-पत्र (Charter) पर सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 26 जून 1945 को 51 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए।बाद में 24 अक्टूबर 1945 को चीन,ब्रिटेन,संयुक्त राज्य अमेरिका,फ्रांस और सोवियत संघ की सरकारों ने इस घोषणा-पत्र की पुष्टि कर दी और उसी दिन से यह घोषणा-पत्र प्रभावी हो गया।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयॉर्क में है।यह मैनहट्टन द्वीप पर 17 एकड़ क्षेत्रफल पर बने 39 मंजिले भवन में स्थित है इसमें 10000 से भी अधिक कर्मचारी एवं अधिकारी कार्यरत हैं।
  • ध्वज:हल्की नीली पृष्ठभूमि पर जैतून की दो वक्राकार शाखाओं के नीचे केंद्र में विश्व का मानचित्र बना है।
    घोषणा-पत्र या चार्टर:यह संयुक्त राष्ट्र संघ का संविधान है।इसमें संगठन के उद्देश्यों,सिद्धांतों तथा नियमों का समावेश है।ये उद्देश्य मानवता को भावी युद्धों के प्रकोप से बचाने,सामान्य जन को उसके मौलिक अधिकार दिलाने तथा राष्ट्रों की आर्थिक,सामाजिक उन्नति करने आदि से संबंधित है।
  • इस संगठन को ‘संयुक्त राष्ट्र’ अथवा ‘यूनाइटेड नेशंस’ का नाम तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट द्वारा प्रदान किया गया।
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2.सुरक्षा परिषद का उद्देश्य (Objectives of the Security Council):

  • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व-युद्ध के पश्चात इस आशा के साथ की गई थी कि यह विश्व संस्था मानव को युद्ध की विभीषिका से बचाने एवं उन्हें हर प्रकार से शांति एवं सुरक्षा प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगी।संयुक्त राष्ट्र संघ आठ दशकीय यात्रा पूर्ण कर चुका है,जिसमें उसके सामने अनेक विवाद एवं समस्याएं आई।इन समस्याओं का कुछ का समाधान करने में सफल रहा तो कुछ में असफल रहा।सफलता एवं असफलता को बड़े राष्ट्रों विशेष रूप से पूर्व सोवियत संघ एवं अमेरिका ने प्रभावित किया।
  • 1945 से 2024 के 79 वर्षों में बहुत उतार-चढ़ाव आए।अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर नवीन राष्ट्रों का उदय,शीत युद्ध की समाप्ति,सोवियत संघ विखण्डन जैसी अनेकानेक घटनाएं विश्व राजनीति की उन महत्त्वपूर्ण घटनाओं में शामिल है जो भले ही आज इतिहास मात्र बनकर रह गई हों पर उनका प्रभाव आज भी है।इस बदले वातावरण में लोकतांत्रिक मूल्यों एवं अधिकारों का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए लोकतांत्रिक स्वरूप दिए जाने की मांग शनैः-शनैः बलवती होती जा रही है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख रूप से जनरल असेंबली,सिक्योरिटी काउंसिल,इकाॅनामिक एंड सोशल काॅउंसिल,ट्रस्टीशिप काॅउंसिल तथा इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस प्रमुख अंग हैं।इन सभी अंगों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली सुरक्षा परिषद (security council) है।
  • सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है।सदस्य संख्या की दृष्टि से यह महासभा (Assembly) की अपेक्षा एक छोटा सदन भले ही है पर सुरक्षा परिषद् की शक्तियां महासभा से कहीं अधिक हैं।अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र के इसी अंग पर है।इतनी महत्त्वपूर्ण स्थिति के कारण ही सुरक्षा परिषद् को ‘संयुक्त राष्ट्र का हृदय’, ‘संघ की प्रवर्तन भुजा’, ‘संयुक्त राष्ट्र की कुंजी’ तथा ‘दुनिया की पुलिसमैन’ कहा जाता है।संयुक्त राष्ट्र चार्टर के पांचवें अध्याय में अनुच्छेद 23 से 32 तक सुरक्षा परिषद के संगठन,कार्य एवं मतदान व्यवस्था का वर्णन है।संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय सुरक्षा परिषद में 11 सदस्य होते थे जिनमें पांच स्थायी सदस्य (अमेरिका,सोवियत संघ,फ्रांस,ब्रिटेन एवं चीनी गणराज्य) एवं 6 अस्थायी सदस्य
  • (मिश्र,मेक्सिको,नीदरलैंड,आस्ट्रेलिया,ब्राजील तथा पोलैंड) थे।1965 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 23 तथा 27 को संशोधित करके सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई।इस प्रकार वर्तमान में सुरक्षा परिषद की कुल सदस्य संख्या 15 है जिसमें पांच स्थायी तथा 10 अस्थायी सदस्य राष्ट्र हैं।सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यों में भी एक परिवर्तन 1971 में तब हुआ जब चीनी गणराज्य को निकालकर साम्यवादी चीन को उसका स्थान दिया गया।सोवियत संघ के विखंडन के बाद सुरक्षा परिषद् में इसका स्थान रूस गणराज्य ने ले लिया।
  • सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन महासभा द्वारा दो वर्षों के लिए किया जाता है।दो वर्षों का कार्यकाल समाप्त होने पर अस्थायी सदस्य तुरंत पुनः निर्वाचित नहीं हो सकते।इन अस्थायी सदस्यों में से पांच एशियाई-अफ्रीकी राज्यों से,एक पूर्वी यूरोप से,दो दक्षिणी अमेरिका से,दो पश्चिमी यूरोप तथा अन्य राज्यों से होने चाहिए।सुरक्षा परिषद् के सदस्य अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार बारी-बारी से एक-एक माह के लिए अध्यक्ष बनते हैं।

3.सुरक्षा परिषद की कार्यविधि (Procedure of the Security Council):

  • परिषद के सभी सदस्य राज्यों के एक-एक प्रतिनिधि होते हैं।इस प्रकार कुल 15 सदस्य होते हैं।इस सीमित सदस्यता का एक सुपरिणाम यह होता है कि इससे सुरक्षा परिषद् के सदस्य राज्यों के प्रतिनिधियों को अपना पक्ष अधिक प्रभावशाली ढंग से रखने एवं खुलकर विचार-विमर्श करने में सुविधा होती है।चूँकि सुरक्षा परिषद् का प्रमुख कार्य विश्व शांति बनाए रखना है।अतः इस महत्त्वपूर्ण कार्य को ठीक प्रकार से अंजाम देने के लिए उक्त प्रावधान उचित ही है।चार्टर के प्रावधान के अनुसार सुरक्षा परिषद् की दो बैठकों के बीच 14 दिन से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए।
  • सुरक्षा परिषद के कार्यों को दो भागों में बांटा जा सकता है:(1.)साधारण (2.)असाधारण
    साधारण विषयों पर निर्णय लेने के लिए 15 में से किन्हीं 9 सदस्यों के स्वीकारात्मक मतों की आवश्यकता होती है पर विशेष मसलों पर ऐसा नहीं है।सुरक्षा परिषद् के समक्ष लाए गए महत्त्वपूर्ण मामलों पर निर्णय तभी लिए जा सकते हैं जब उस विषय पर सुरक्षा परिषद के 15 में से 9 सदस्य राष्ट्र अपनी स्वीकृति दे दें।इन 9 सदस्यों में पाँचों स्थायी सदस्य राष्ट्रों का स्वीकारात्मक मत होना आवश्यक है।यदि इन पाँचों में से एक भी स्थायी सदस्य राष्ट्र प्रस्ताव के विरोध में मतदान करता है तो वह प्रस्ताव रद्द समझा जाता है।इसे ही स्थायी राष्ट्रों का निषेधाधिकार (veto) कहा जाता है।

4.सुरक्षा परिषद के कार्य (Functions of the Security Council):

  • सुरक्षा परिषद को संयुक्त राष्ट्र के सबसे महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में मान्यता प्राप्त है।सुरक्षा परिषद के निर्णय इसलिए भी और महत्वपूर्ण हैं कि इसके द्वारा पारित प्रस्ताव संबद्ध राष्ट्रों को मानने होते हैं।सुरक्षा परिषद के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैंः
  • (1.)सुरक्षा परिषद का प्रमुख कार्य विश्व शांति एवं सुरक्षा को बनाए रखना है।ऐसे विवाद जिससे विश्व की शांति एवं सुरक्षा के बाधित होने का डर रहता है,परिषद् विचार-विमर्श,जांच,समझौता,मध्यस्थता,अपील या बाध्यकारी आदेश के द्वारा दूर करती है।
  • (2.)यदि कोई राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के निर्णय को अनदेखा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय शांति को भंग करने का पुनः प्रयास करता है तो सुरक्षा परिषद् उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही कर सकती है।इसमें कूटनीतिक,आर्थिक एवं सैनिक कार्यवाही भी हो सकती है।
  • (3.)सुरक्षा परिषद् के पास यह अधिकार है कि वह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा एवं शांति के लिए जल,थल एवं वायु सेना का उपयोग कर सकती है।यद्यपि संयुक्त राष्ट्र के पास अपनी कोई सेना नहीं है,पर आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षा परिषद् सदस्य राष्ट्रों से सेना उपलब्ध कराने को कह सकती है।
  • (4.)किसी राष्ट्र के विरुद्ध अन्यायपूर्ण आक्रमण को रोकने के लिए सुरक्षा परिषद् सैनिक कार्यवाही करती है।
  • (5.)सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्यों के प्रवेश पर भी निर्णय लेती है।जब कोई नया देश संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए महासचिव के पास आवेदन करता है तो महासचिव उस आवेदन-पत्र को सुरक्षा परिषद् को प्रेषित कर देता है तत्पश्चात् सुरक्षा परिषद महासभा को अपने निर्णय से अवगत कराता है।
  • (6.)संयुक्त राष्ट्र का महासचिव सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर ही महासभा द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • (7.)विश्व में प्राणघातक अस्त्रों के नियमन का भी सुरक्षा परिषद् प्रयास करती है,इत्यादि।

5.निषेधाधिकार (veto) पर विवाद (Dispute over veto power):

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों को जो विशेषाधिकार प्राप्त है उस पर बराबर विवाद होता रहा है।यद्यपि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में निषेधाधिकार अर्थात् ‘वीटो’ शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है पर चार्टर का 27 वाँ अनुच्छेद अन्य सदस्यों की अपेक्षा पाँचों स्थायी सदस्यों को सुदृढ़ स्थिति प्रदान करता है।इस अनुच्छेद के अनुसार परिषद् के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि परिषद् के पांचों स्थायी सदस्य सर्वसम्मति से कार्य करें।यही प्रावधान आगे चलकर ‘वीटो’ कहा जाने लगा।अर्थात् यदि किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर कोई अकेला स्थायी सदस्य भी अगर अन्य चारों स्थायी सदस्यों से असहमत है तो वह उस विषय पर अपने निषेधाधिकार का प्रयोग करके उसे समाप्त कर सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय से ही ‘वीटो’ विवादग्रस्त रहा है।इतिहास का अवलोकन करें तो स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि अमेरिका शुरू से ही इसका समर्थन करता था पर वह इसे सीमित भी रखना चाहता था,जबकि दूसरी तरफ सोवियत संघ का कहना था कि या तो स्थायी सदस्यों को ‘वीटो’ का अधिकार दिया जाए या फिर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना ही न की जाए।अन्ततोगत्वा यह निश्चय हुआ कि स्थायी सदस्यों को सर्वसम्मति के प्रावधान के रूप में वीटो का अधिकार दिया जाए पर साथ ही स्थायी सदस्यों से यह भी अपेक्षा की गई कि वे इसका प्रयोग अत्यन्त नाजुक परिस्थितियों में ही करेंगे।
  • वीटो की इस व्यवस्था का काफी विरोध किया जाता रहा है,क्योंकि इससे सदस्य राष्ट्रों के समानता के अधिकार का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन होता है एवं संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में अनावश्यक विलंब और अड़चनें पैदा होती हैं पर यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि आज संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना के 79 वर्ष पूरी करने की दहलीज पर खड़ा है तो इसमें वीटो की शक्ति का बहुत बड़ा हाथ है।यदि वीटो का अधिकार सोवियत संघ के पास ना होता तो शायद आज विश्व का इतिहास दूसरा होता।संयुक्त राष्ट्र में सोवियत संघ को पश्चिमी देशों की दादागिरी के आगे कदम-कदम पर पराजित होना पड़ता और शायद यह विश्व शांति के लिए एक बड़ा खतरा होता।आज वीटो शक्ति स्थायी सदस्य किसी मसले पर सोच-विचार कर उचित निर्णय की क्षमता और अधिकार रखते हैं।यह संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व-शांति के लिए उचित ही है पर यहाँ यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक है कि अब तक वीटो के द्वारा स्थायी सदस्य केवल एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जो कार्य करते रहे हैं,उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता।शीत युद्ध के दौरान अमेरिका एवं सोवियत संघ के मध्य वीटो ने सुरक्षा परिषद् में एक ब्रह्मास्त्र का रूप धारण कर लिया था।स्थायी सदस्यों को यह विचार करना चाहिए कि उनके कंधों पर विश्व शांति एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का जो गुरुत्तर दायित्व है उसे वे समझें एवं कोई ऐसा कदम ना उठाएं जिससे संयुक्त राष्ट्र की गरिमा पर आंच आए।

6.सुरक्षा परिषद् का विस्तार (Expansion of Security Council):

  • सुरक्षा परिषद् के विस्तार की मांग लंबे समय से चलती आ रही है पर पिछले कुछ समय से इसमें नई तेजी आ गई है।सुरक्षा परिषद् का विस्तार न होने का सबसे बड़ा कारण उसके स्थायी सदस्यों की मानसिकता है।नए सदस्यों के आने पर पाँचों स्थायी सदस्यों को अपनी मनमानी न कर पाने एवं उसमें अन्य नए सदस्यों के हस्तक्षेप का डर है।अतः वे इसे टालते आ रहे हैं।उचित तो यह है कि अब अहंकारी प्रवृत्ति का त्याग करके सुरक्षा परिषद् के पाँचों स्थायी सदस्य इस दिशा में निर्णायक कदम उठाए,क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अपनी स्थापना के 79 वर्ष पूरे करने जा रही है और इस दौरान न केवल संयुक्त राष्ट्र में अपितु विश्व में भी कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।उसे 1945 में 51 राष्ट्रों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की थी और आज उसके सदस्यों की संख्या 200 की आंकड़े को छू गई है पर सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
  • सच तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र का वर्तमान स्वरूप द्वितीय विश्वयुद्ध की विरासत के रूप में हमारे सामने है जिसके सबसे महत्त्वपूर्ण सुरक्षा परिषद् पर मित्र राष्ट्रों का कब्जा है।अनेक देश अपनी आर्थिक,भौगोलिक एवं राजनीतिक पृष्ठभूमि के सशक्त होने पर भी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से वंचित हैं।ऐसे राष्ट्रों के द्वारा परिषद को लोकतांत्रिक स्वरूप दिए जाने की मांग दिन-प्रतिदिन बुलंद होती जा रही है।यदि इन राष्ट्रों की आवाज को दबाने की कोशिश की गई तो शायद संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव डेग होमर शील्ड का यह कथन सही साबित हो ना हो जाए की:”संयुक्त राष्ट्र को राष्ट्र संघ (League of Nations) की गलतियों को नहीं दोहराना चाहिए।यदि संयुक्त राष्ट्र को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान नहीं किया गया तो दुनिया की इस सर्वोच्च विश्व संस्था का भी भविष्य वही होगा जो राष्ट्र संघ का हुआ था।”
  • उपर्युक्त आर्टिकल में संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद (UN Organisation Security Council),संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद और उसके कार्य (United Nations Organisation Security Council and Their Functions) के बारे में बताया गया है।

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7.सुरक्षा परिषद में सदस्यता पर चर्चा (हास्य-व्यंग्य) (Discussion on Granting Membership in Security Council) (Humour-Satire):

  • सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य के बीच नए सदस्यों को लेने पर विचार चल रहा था।वे उस समय हेलीकॉप्टर में सवार थे।अचानक हेलीकॉप्टर खराब हो गया और वे रस्सी के सहारे हेलीकॉप्टर से लटक गए।पांचों सदस्यों की जान खतरे में थी।चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एक महिला भी थी,उसके नए सदस्य लेने पर दिल में फफोले पड़ गए थे।उसने पैंतरा चला कि रस्सी कमजोर है इसलिए हम में से किसी एक को रस्सी छोड़नी पड़ेगी तभी बाकी चार बच सकते हैं।पर बलिदान कौन करें?तब महिला ने (चीन) भावुक होकर कहा कि वह स्वेच्छा से रस्सी छोड़ रही है क्योंकि त्याग करना स्त्री का धर्म है।वह रोज ही अपने परिवार के लिए त्याग करती है,व्यापक रूप से पुरुषों के लिए स्त्रियां निस्वार्थ त्याग करती ही आई है।जैसे ही महिला ने अपना भाषण खत्म किया,सभी पुरुष (सुरक्षा परिषद् के चारों सदस्य) एक साथ ताली बजाने लगे।

8.संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद (Frequently Asked Questions Related to UN Organisation Security Council),संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद और उसके कार्य (United Nations Organisation Security Council and Their Functions) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सुरक्षा परिषद की पहली बैठक कब और किसकी अध्यक्षता में हुई? (When and under whose chairmanship was the first meeting of the Security Council held?):

उत्तर:सुरक्षा परिषद् की पहली बैठक 17 जनवरी,1946 को हुई थी,जिसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रेलिया के श्री नॉर्मन ने ओ मेकिन ने की थी।

प्रश्न:2.वीटो का प्रस्ताव किसने रखा था? (Who proposed the veto?):

उत्तर:निषेधाधिकार (veto) का प्रस्ताव सर्वप्रथम फरवरी 1945 के याल्टा सम्मेलन में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने रखा था।

प्रश्न:3.वीटो का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया? (Who used the veto for the first time?):

उत्तर:सुरक्षा परिषद में निषेधाधिकार का सबसे पहले प्रयोग सोवियत संघ ने फरवरी 1946 में किया था।

प्रश्न:4.संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्यता प्राप्त कौन-सी भाषाएं हैं? (Which are the recognized languages of the United Nations?):

उत्तर:संयुक्त राष्ट्र संघ में छह भाषाएं मान्यता प्राप्त हैं (अंग्रेजी,फ्रेंच,चीनी,रूसी,अरबी,स्पेनिश)।अंग्रेजी एवं फ्रेंच इसकी कार्यकारी भाषाएं हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद (UN Organisation Security Council),संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद और उसके कार्य (United Nations Organisation Security Council and Their Functions) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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