The Need for Struggle for Math Student
1.गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संघर्ष की आवश्यकता (The Need for Struggle for Math Student),गणित के छात्र-छात्राएं संघर्ष करें (Mathematics Students Struggle):
- गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संघर्ष की आवश्यकता (The Need for Struggle for Math Student) से क्या तात्पर्य है,इसे समझने की आवश्यकता है।छात्र-छात्राओं को संघर्ष करने के लिए कहने से तात्पर्य यह नहीं है कि किसी से लड़ाई झगड़ा करना है।हमारे अंदर काम,क्रोध,लोभ,लापरवाही,आलस्य,सुस्ती इत्यादि दुर्गुणों को हटाना संघर्ष है,अपने अंदर विद्यमान विकारों को दूर करना संघर्ष है क्योंकि ये विकार गणित का अध्ययन करने में बाधक है।संघर्ष दो तरह से किया जा सकता है पहला अपने अंदर विद्यमान विकारों के विरुद्ध तथा दूसरा अन्य व्यक्तियों या छात्र-छात्राओं द्वारा गणित के अध्ययन में बाधा डालने वालों के विरुद्ध।
- छात्र-छात्राएं स्वयं के दुर्गुणों को ही दूर कर सकता है परंतु दूसरों को बदलना बहुत मुश्किल है।महाभारत के छठवे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि व्यक्ति स्वयं ही अपना सबसे बड़ा मित्र है और स्वयं ही सबसे बड़ा शत्रु है।इसलिए स्वयं ही अपना स्वयं के द्वारा उद्धार करें।श्लोक निम्न हैः
“उद्धरेदात्मनात्ममानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनों बंधुरात्मैव रिपुरात्मनः”।। - अर्थात् मनुष्य अपने आप ही अपने आपको उन्नत करें किन्तु अपने आपको अवनत न करें क्योंकि प्रत्येक प्राणी (अपनी उन्नति तथा अवनति में) अपने आप ही अपना मित्र है एवं अपने आप ही अपना शत्रु है अर्थात् यदि कोई प्राणी अपने आपको उत्थान मार्ग में ले जा रहा है तो वह अपने आपका मित्र है और यदि अपने आपको पतन के मार्ग पर ले जा रहा है तो वही अपने आपका अपना शत्रु है। आगे इसी में कहा गया है किः
- “बंधुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मनाजितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्”।। - अर्थात् जिस विवेकी पुरुष ने आत्मा के द्वारा ही (अपने आप ही) आत्मा को (मन एवं स्थूल सूक्ष्मादि देह को) वश में कर लिया है,वह आत्मा उस आत्मा का बंधु है (परोपकारकारक व तारक है) किंतु जिस व्यक्ति ने अपने मन को वश में नहीं किया है उसका मन ही शत्रुता में (परम अपकार करने में) शत्रु के समान ही आचरण करता है।
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2.गणित में असफलता का उत्तरदायी कौन? (Who is Responsible for Failure in Mathematics?):
- उपर्युक्त गीता के श्लोक से स्पष्ट है कि यदि छात्र-छात्राएं असफल होते हैं अथवा गणित का अध्ययन नहीं कर पाते हैं तो उसके उत्तरदायी वे स्वयं हैं।आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने जो खोजें की है उसमें छात्र-छात्राओं को उत्तरदायी नहीं माना गया है।उन्होंने माता-पिता,समाज,परिस्थिति,पाठ्यक्रम,अध्यापक,शिक्षा पद्धति,परीक्षा प्रणाली इत्यादि को उत्तरदायी ठहराया है।इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार तो सफलता,जाॅब प्राप्त करने,नौकरी प्राप्त करने का उत्तरदायी भी माता-पिता,समाज,परिस्थिति,अध्यापक इत्यादि ही होने चाहिए।इस भ्रान्त धारणा के कारण गणित के छात्र-छात्राएं तथा अन्य छात्र-छात्राएं असफल हो जाते हैं तो उसका उत्तरदायित्व दूसरों पर डाल देते हैं।वे कभी यह नहीं कहते कि इस असफलता का उत्तरदायी वे स्वयं हैं।
- गणित के विद्यार्थियों को यह विश्वास कर लेना चाहिए कि यदि उसे तरक्की करना है तो स्वयं पुरुषार्थ करना होगा और अपने मन के विकारों के विरुद्ध संघर्ष करके उखाड़ फेंकना होगा।यदि वह असफल होता है तो उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है।
- गणित में माता-पिता सहयोग नहीं करते हैं,मित्र सहयोग नहीं करते हैं अथवा अध्ययन में बाधा पहुंचाते हैं,परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं है,गरीबी के कारण पुस्तकें नहीं खरीद सकता है,अच्छे विद्यालय में अध्ययन नहीं कर सकता है,अध्यापक गणित ठीक से नहीं पढ़ाते हैं,पाठ्यक्रम कठिन है,शिक्षा पद्धति तथा परीक्षा प्रणाली में दोष हैं इत्यादि को उन्नति-अवनति में आंशिक कारण ही माना जा सकता है।वस्तुतः वास्तविक शक्ति तो छात्र-छात्राओं के अंदर विद्यमान हैं।यदि वह मन के विकारों को दूर करे तथा अध्ययन करने में पुरुषार्थ करे तो उन्नति का मार्ग खुल जाता है।बाहरी परिस्थितियां और बाधाएं दूर हो जाती हैं।
- प्रचण्ड पुरुषार्थ द्वारा बाहरी असहयोग या बाधाओं को दूर किया जा सकता है जैसे वेगवती नदी समस्त कूड़ा-करकट बहाकर दूर फेंक देती है।यदि आत्मबल बढ़ा हुआ हो,साहस,धैर्य,लगन की कमी न हो तो अनुकूल परिस्थितियां सहज ही बनती चली जाती है।
- जिस प्रकार अध्ययन करने में बाधा डालने वाले मौजूद है उसी प्रकार अध्ययन में सहयोग कर वाले भी मौजूद है।परंतु यह सहयोग तभी मिलता है जब छात्र-छात्राओं में उसके लिए पात्रता हो।
- हम दूसरों से अध्ययन और गणित में अध्ययन करने में जितना सहयोग प्राप्त कर सकते हैं उससे अनेक गुना सहयोग अपने मन और इंद्रियों को वश में करके प्राप्त कर सकते हैं।
- देवता तथा सज्जन लोग उसी की सहायता करते हैं जो छात्र-छात्राएं सज्जन,विनम्र,सरल,अनुशासित,सदाचारी,अध्ययन में गहरी रूचि इत्यादि गुणों को धारण करते हों।अपनी असफलता का दोष अन्य पर मढ़ना उचित नहीं है।
- अपनी असफलता,गणित में कमजोर होना,ग्रह दशा का विपरीत होना,भाग्य को दोषी ठहराना,दूसरों द्वारा ऐसे असहयोग करना अपने आपको धोखा देना है।ऐसा करके भले ही वे झूठा आत्म-संतोष कर लें परंतु इन तथ्यों में कोई दम नहीं है।
- दूसरों की गलतियां और बुराइयां हमें परेशान करती हैं और अनेक प्रकार की बाधाएं खड़ी करती हैं,हमारी प्रगति के द्वार रोक देती हैं।परंतु ये बुराइयां तभी घातक होती है जब अपने अंदर भी वैसी ही बुराइयां हो।कोई भी बुराई अपने अनुकूल परिस्थितियों में ही आगे बढ़ती है।क्रोधी मनुष्य को आक्रमण करने का अवसर तभी मिलता है जब दूसरा भी क्रोधी हो।यदि दूसरा व्यक्ति नम्र,सहनशील और दूरदर्शी हो तो क्रोधी व्यक्ति उत्तेजित नहीं कर सकता है।
- गणित में कमजोर छात्र पर नकल करने का लोभ सवार होता है,अध्ययन करने की प्रवृत्ति आलसी के मन में घुसती है,असफल पुरुषार्थहीन छात्र-छात्राएं होते हैं,अदूरदर्शी तथा जल्दबाज़ विद्यार्थी एकाग्रतापूर्वक अध्ययन नहीं कर सकता है।यदि छात्र-छात्राओं में ये विकार न हो तो उनको मन में घर करने का मौका ही नहीं मिलेगा।गीता में जो यह कहा गया है कि व्यक्ति स्वयं अपना उद्धार करें यह सौ टंच सही है।
3.संघर्ष अध्ययन में निखार लाता है (Improves Struggle Studies):
- यदि छात्र-छात्राएं विकाररहित हैं काम,क्रोधिदि विकारों से मुक्त हैं तो भी बाहरी तत्त्व इनके अध्ययन में बाधा डाल सकते हैं।क्योंकि दुनिया में सौम्य और सात्त्विक वातावरण ही सब जगह नहीं है।कुछ लोग प्रेम तथा सद्भाव से मानने वाले नहीं हैं तथा सरल रास्ते पर चलते हुए भी आपके अध्ययन में अडंगा डाल सकते हैं।इस दुनिया में ऐसे कठोर हृदय वाले भी हैं जिन पर सीधे-सरल स्वभाव का कोई फर्क नहीं पड़ता है।प्रेम से दुष्टता को बदलना बहुत ऊँचे दर्जे वालों के लिए ही संभव हो सकता है।
- चाणक्य नीति में कहा है कि मनुष्य में दूसरों के प्रहार से बचने के लिए कठोर और कुटिल होने का गुण भी होना चाहिए।
- उदाहरणार्थ छात्र-छात्रा विद्यालय में अध्ययन करने जा रहा है और बीच रास्ते में कोई दुर्जन व्यक्ति आपका रास्ता रोककर खड़ा हो जाए और प्रेम से नहीं माने तो क्या आप अध्ययन करना छोड़ देंगे?
- भगवान श्री कृष्ण के प्रेम से कंस,शिशुपाल,दुर्योधन नहीं सुधर सके।भगवान राम से रावण,कुंभकर्ण,खरदूषण,मारीच को सुधारना संभव नहीं हुआ।प्रह्लाद की सज्जनता से हिरण्यकशिपु नहीं सुधरा।परंतु भगवान बुद्ध ने अंगुलिमाल,आम्रपाली जैसे को प्रेम से सुधार दिया था।इन उदाहरणों से यही सीखा जा सकता है कि आततायी से भिड़ने में ज्यादा नुकसान हो रहा हो तो उसे सहनशीलता और प्रेम से हल करना चाहिए।यदि आततायी से कुछ नुकसान ही हो रहा हो तो उसका विरोध करना चाहिए।
विद्यार्थी काल विद्याध्ययन का समय होता है अतः ऐसे समय में अपना जीवन दांव पर लगा देना समझदारी नहीं है।अध्ययन में कितनी ही अड़चने आएं उनको हटाने से हटती है और मिटाने से ही मिटती है। - यदि आप चुपचाप रहते हैं तथा अध्ययन करने में रुकावट डालने वाले को लगातार सहन करते रहते हैं तो इससे उसका साहस बढ़ता है और हम दब्बू किस्म के बनते जाते हैं।अत्याचार को सहन करने में हम भी दोषी होते हैं।लेकिन इन सब परिस्थितियों से निपटा जा सकता है जबकि आप अपने दोषों के विरुद्ध संघर्ष करके हटा देते हैं।आप दुर्गुणों के स्थान पर सद्गुणों यथा ईमानदारी,सच्चाई,सहनशीलता,धैर्य,साहस,विवेक,आत्म-विश्वास,मन की एकाग्रता, इंद्रियों पर नियंत्रण इत्यादि गुणों को धारण कर लेते हैं।किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए विवेक का होना बहुत आवश्यक है।चाहे आन्तरिक शान्ति हो या बाह्य शान्ति हो दोनों के लिए तेजस्विता,प्रखरता,साहसिकता व जागरूकता की आवश्यकता होती है।संघर्ष से छात्र-छात्राओं का व्यक्तित्व निखरता है।
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4.संघर्ष का दृष्टान्त (A Parable Struggle):
- अपनी दुष्प्रवृत्तियों तथा विकारों को हटाना,अपने को सुधारना सरल है।दूसरे लोग प्रेम से या संघर्ष से माने या न माने,अपने अनुसार चले या न चले यह संदिग्ध है।परंतु अपने आप पर तो नियंत्रण रखा जा सकता है।जब हम विकार मुक्त होते हैं,अच्छा बनते हैं तो स्वयं तो लाभान्वित होते ही हैं साथ ही दूसरे अनेक लोगों की सुख-शांति बढ़ाने में भी सहायक हो सकते हैं।दुराचारी वहाँ ही अन्याय करने में सक्षम होता है जहाँ सदाचार का पक्ष दुर्बल होता है।यदि हम दुर्बल होंगे अर्थात् विकारग्रस्त होंगे तो दुराचारी को आक्रमण करने व उकसाने का मौका मिल जाता है।यदि अपने आपको नेक व अच्छा बनाए रखें तो दूसरों के दोष दुर्गुण हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।दुष्टों की दुष्टता सज्जनों को खरोंच भले ही पहुंचाएं पर उन्हें परास्त नहीं कर सकती है।
- सुदर्शन नाम का विद्यार्थी था वह मैकेनिकल ब्रांच से इंजीनियरिंग कर रहा था।रोजाना कॉलेज जाता और कॉलेज में पढ़कर आ जाता था।सुदर्शन पढ़ने में मेधावी होने के साथ-साथ साहसी व तेजस्वी था। एक बार एक लड़की ने उससे छेड़खानी कर दी।
- सुदर्शन ने उसे प्रेमपूर्वक समझाया परन्तु उसने दूसरे दिन फिर वही हरकत कर दी।लड़कों को छेड़खानी करते तो बहुत देखा जाता है परन्तु लड़कियों द्वारा छेड़खानी की घटना मुश्किल से ही मिलती है।दूसरे दिन सुदर्शन ने उसके थप्पड़ दे मारा।इसके बाद लड़की के भाई ने दो ओर बदमाशों को लेकर सुदर्शन को पीटने आ गए।लेकिन सुदर्शन ने साहसपूर्वक उनका सामना किया।उनसे झगड़ा तो नहीं किया क्योंकि अकेला था परन्तु युक्ति से बाहर निकल गया।
- सुदर्शन ने सोचा कि यह रोज-रोज का झगड़ा तथा ये इस तरह नहीं मानेंगे।सुदर्शन ने लड़की तथा उसके भाई व भाई के दोस्तों के खिलाफ थाने में मुकदमा दर्ज करवा दिया।पुलिस ने लड़की के भाई व दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया।लड़की की बदनामी तथा अपनी गलती के कारण लड़की के पिता ने थाने में जाकर सुदर्शन और सुदर्शन के पिता से माफी मांगी तथा मामले को निपटाने का निवेदन किया।सुदर्शन ने मामले को रफा-दफा करा दिया।
- चूँकि सुदर्शन ने साहस का साथ नहीं छोड़ा साथ ही उसके संघर्ष करने का तरीका न्याय संगत था।इसलिए लोगों की सहानुभूति भी सुदर्शन के साथ थी।इस प्रकार मामले को निपटाने से आपस में वैर-विरोध भी नहीं बढ़ा और दोनों पक्षों में कड़वाहट भी नहीं रही।सुदर्शन ने शांतिपूर्वक अपने मेकेनिकल इंजीनियरिंग का कोर्स निर्विघ्न पूरा कर लिया तथा शांतिपूर्ण जीवन यापन कर रहा है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संघर्ष की आवश्यकता (The Need for Struggle for Math Student),गणित के छात्र-छात्राएं संघर्ष करें (Mathematics Students Struggle) के बारे में बताया गया है।
5.गणित के ज्ञान का विस्फोट (हास्य-व्यंग्य) (Explosion of Knowledge of Mathematics) (Humour-Satire):
- गणित अध्यापकःविश्व में दिन-प्रतिदिन गणित में नवीन से नवीन खोज हो रही है।पिछले 2000 वर्षों में जितना गणित का विकास हुआ है उससे कहीं अधिक आधुनिक गणित में खोजें और आविष्कार हो रही हैं।गणित का ज्ञान बहुत द्रुतगति से बढ़ रहा है।जैसे जनसंख्या बढ़ रही है।
- किरणःसर (sir) हमें उन गणितज्ञों को जल्दी से जल्दी ढूँढकर पकड़ना चाहिए वरना गणित के ज्ञान का विस्फोट हो गए हो जाएगा और पृथ्वी को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
6.गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संघर्ष की आवश्यकता (Frequently Asked Questions Related to The Need for Struggle for Math Student),गणित के छात्र-छात्राएं संघर्ष करें (Mathematics Students Struggle) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः
प्रश्नः1.जीवन से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Life?):
उत्तरःसंघर्ष का ही दूसरा नाम जीवन है।यदि छात्र-छात्राएं जीवन में सक्रियता खो देते हैं तो वे आगे अध्ययन नहीं कर सकते हैं क्योंकि आलसी,अकर्मण्यों द्वारा विद्या ग्रहण नहीं की जा सकती है।आलसी और अकर्मण्य व्यक्ति मृतक के समान ही है।जो विद्यार्थी पुरुषार्थी नहीं है वह जीवन में कोई भी कार्य नहीं कर सकता है।जैसे अग्नि की ज्वाला में कूड़े-करकट भस्म हो जाता है।वैसे ही प्रचण्ड पुरुषार्थ की शक्ति से विद्यार्थी के सारे दोष दूर हो जाते हैं।छात्र-छात्राओं को बाहरी दुश्मनों के बजाय अपने आंतरिक दुश्मनों वासना और तृष्णाओं पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।
प्रश्नः2.संघर्ष में पुरुषार्थ की क्या आवश्यकता है? (What is the Need for Effort in a Struggle?):
उत्तरःजब हम दूसरों का मुँह ताकते हैं,दूसरों की सहायता की लालसा रखते हैं तो परावलम्बन का जीवन जीते हैं।ऐसे व्यक्ति कभी सफलता अर्जित नहीं कर सकते हैं।जब तक हम अपने पैरों पर खड़े नहीं होते हैं तब तक मंजिल मिलना मुश्किल है। अध्ययन करने के लिए दृढ़ प्रतिबद्ध हो जाएं। उदासीन और भाग्य भरोसे न बैठे रहे।पुरुषार्थ से ही हम अपनी सहायता खुद कर सकते हैं।दूसरों का साथ-सहयोग भी तभी मिलता है जब हम पुरुषार्थ करते हैं।हमें अपनी सामर्थ्य और शक्ति पर भरोसा रखकर आगे बढ़ना होगा।जीवन संघर्ष में वही सफल होता है जो प्रचण्ड पुरुषार्थ करता है। पुरुषार्थ ही हमारे जीवन का मूलमंत्र होना चाहिए।
प्रश्नः3.क्या संघर्ष से प्रेरणा मिलती है? (Does Struggle Inspire?):
उत्तर:संघर्ष हमें अध्ययन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।संघर्ष अध्ययन तथा जीवन में आने वाले अवरोधों को दूर करता है।जो संघर्ष से डरते हैं वे न तो अध्ययन कर सकते हैं और न जीवन में सफल हो सकते हैं।ऐसे व्यक्ति को जंगल में चले जाना चाहिए।
The Need for Struggle for Math Student
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The Need for Struggle for Math Student
गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संघर्ष की आवश्यकता
(The Need for Struggle for Math Student)
The Need for Struggle for Math Student
गणित के छात्र-छात्राओं के लिए संघर्ष की आवश्यकता (The Need for Struggle for Math Student)
से क्या तात्पर्य है,इसे समझने की आवश्यकता है।छात्र-छात्राओं को संघर्ष करने के
लिए कहने से तात्पर्य यह नहीं है कि किसी से लड़ाई झगड़ा करना है।
The Need for Struggle for Math Student अर्थात्
संघर्ष के बिना कोई भी सफलता नमक रहित रोटी खाने के समान है।संघर्ष से व्यक्ति में जीवट उत्पन्न होता है।
वैसे भी बालक-बालिकाओं को कुछ भी सीखाने के लिए इतना संघर्ष तो
कर ही लेना चाहिए जिससे दूसरों का उदाहरण न देना पड़े। संघर्ष व्यक्ति को परिपूर्ण बनाता है।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.