The Lack of Quality Education Makes Math Subjects a Burden to Students
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में गणित विषय विद्यार्थियों को बोझ लगता है (The Lack of Quality Education Makes Math Subjects a Burden to Students) इसके कारण क्या है तथा उनको कैसे दूर किया जा सकता है?
1.गणित विषय अनमोल है (Math subject is priceless):
- गणित विषय सभी अन्य विषयों से बिल्कुल हटकर है।गणित विषय अद्वितीय है इसकी किसी भी प्रकार से अन्य विषय से तुलना नहीं की जा सकती है।गणित विषय लेकर डिग्री व कोर्सेज किए हुए विद्यार्थी का अलग ही क्रेज होता है। समाज में गणित विषय से पढ़े हुए विद्यार्थी सम्मानित होते हैं। गणित विषय के शिक्षक को अन्य विषय की तुलना में अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। गणित विषय का हमारे व्यक्तित्व के विकास में अतुलनीय योगदान है। इस विषय का अन्य विषयों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। ज्यों-ज्यों गणित विषय की हर विषय में उपयोगिता समझी जा रही है त्यों-त्यों गणित विषय को अन्य विषयों के साथ अटैच किया जा रहा है। आज स्थिति यह है कि कामर्स मैथ, आर्ट्स मैथ जैसे विषय लिए जाने लगे हैं। कम्प्यूटर विज्ञान में भी गणित का अहम योगदान है। इसलिए गणित विषय अनमोल है।
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2.गणित विषय की दुनिया अलग है (The world of mathematics is different) :
- गणित विषय इस प्रकार का विषय है कि यदि इसे रुचि व जिज्ञासापूर्वक पढ़ें व हल करें तो हीरो और अरुचि प्रदर्शित करें तो जीरो हो सकते हैं। यह विषय हमारे अंकों को प्रतिशतता में वृद्धि करता है क्योंकि यह एक प्रैक्टिकल विषय है और प्रैक्टिकल विषय में बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि हम गणित के सूत्रों को याद कर लें तो बारहवीं अर्थात् सीनियर सैकण्डरी कक्षा तक तो आसानी से अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सकते हैं। इसे विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, राजनीति विज्ञान जैसे विषयों की तरह रटना नहीं पड़ता है। सूत्रों के आधार पर ही हम इसे आसानी से हल कर सकते हैं। इस प्रकार गणित विषय की दुनिया अन्य विषयों से अलग ही है। सूत्र याद करने से यह काफी आसान और सरल हो जाता है। सूत्रों को छोटी सी नोट बुक में लिखकर जब चाहे तथा जहाँ चाहे याद कर सकते हैं। अपने साथ पाॅकेट में रख सकते हैं।
3.गणित विषय में रुझान की कमी का कारण (Reason for lack of trends in Mathematics):
- गणित विषय में रुझान में कमी के कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण तो यह है कि यह विषय अन्य विषयों की तरह मात्र पढ़कर व रटने से हल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सतत अभ्यास व मार्गदर्शन की आवश्यकता है। दूसरा कारण है माता-पिता व अभिभावक अपने बच्चों को निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने को वरीयता देते हैं। निजी शिक्षण संस्थानों की पौध चारों ओर खड़ी हो गई है जिसमें योग्य अध्यापकों का अभाव है। अधिकांश शिक्षण संस्थानों का मुख्य उद्देश्य है कि धनार्जन करना इसलिए उनका ध्यान विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना नहीं है वरन् उनका मूल उद्देश्य है धनार्जन करना। तीसरा कारण है कि अधिकांश प्रतिभाशाली शिक्षित वर्ग सरकारी सेवाओं को वरीयता देते हैं और सरकारी सेवाओं में चयन हो जाने के बाद उन पर किसी प्रकार का प्रभावी नियंत्रण नहीं होता है। स्वयं अपनी इच्छा से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा विद्यार्थियों को उपलब्ध नहीं कराते हैं, अधिकांश शिक्षकों का यही ढर्रा है। 9 वीं कक्षा तक विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करने का प्रावधान है, ऐसी स्थिति में जबकि बिल्कुल अवरोधक ही नहीं है तो विद्यार्थियों की यह स्थिति है कि कई विद्यार्थियों को गणित के साधारण जोड़, गुणा, भाग, बाकी ही नहीं आते हैं तथा न अंग्रेजी को पढ़ सकते हैं तो उनकी आगे क्या स्थिति होगी और भविष्य कैसा होगा इसको समझा जा सकता है। हालांकि विद्यार्थियों को उत्तीर्ण करने के पीछे जो भावना थी वह तो सही थी कि साक्षरता को बढ़ावा देना। परन्तु साक्षरता ही बढ़ाना है तो उसके अन्य कई विकल्प हैं जैसे अनौपचारिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, आंगनबाड़ी कार्यक्रम, दूरस्थ शिक्षा, पत्राचार शिक्षा आदि। परन्तु नवीं कक्षा तक सभी को उत्तीर्ण करने के कई दुष्परिणाम है कि कई विद्यार्थियों को प्रारम्भिक ज्ञान भी नहीं है। शिक्षक जब कोई जिम्मेदारी नही समझते हैं तो क्यों पढ़ाएंगे अर्थात् उनके क्या अटकी पडी है जो वे पढ़ाएंगे। कुछ शिक्षकों की बात अलग है जो अपना कार्य ईमानदारीपूर्वक निभाते हैं। राजनेताओं को अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है उनको शिक्षा से क्या लेना देना। यदि शिक्षा व्यवस्था चौपट हो रही, शिक्षा के परखच्चे उड़ रहे हैं, शिक्षा बँटाधार हो रही है, विद्यार्थियों का भविष्य खराब हो रहा है तो उसमें उनका क्या बिगड़ रहा है आखिर क्यों वे ऐसा सिरदर्द मोल ले, उन्होंने कौनसा शिक्षा को, शिक्षा व्यवस्था को और विद्यार्थियों के भविष्य को सुधारने का ठेका ले रखा है। जब पहले से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही है तो उनको कौनसा सेहरा अपने सिर पर बाँधना है। इस प्रकार शिक्षा, शिक्षा व्यवस्था व विद्यार्थियों के भविष्य का बँटाधार हो रहा है, कोई कुछ पूछने और जिम्मेदारी लेने वाला नहीं है। कोई भल मानुष इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज भी उठाता है तो नक्कारखाने में तूती की आवाज को कौन सुनता है, ऐसी आवाज को दबा दिया जाता है, नज़रअंदाज कर दिया जाता है, उसको सुना नहीं जाता है।
- तीसरा कारण है शिक्षा का क्षेत्र वे शिक्षक या अभ्यर्थी ही चुनते हैं जिनका चयन आरएएस, इंजीनियरिंग, डाॅक्टर, आईएफएस इत्यादि प्रतिष्ठित सेवाओं में नहीं होता है।शिक्षा के क्षेत्र में चाहे कोई कितने ही बड़े पद पर हो प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरार या प्रिसिंपल ही हो लेकिन उपर्युक्त सेवाओं की तुलना में उनको प्रतिष्ठा व अधिकार नहीं मिलते हैं। अर्थात् शिक्षक व्यवसाय को सामान्य अभ्यर्थी ही चुनते हैं, ऐसी स्थिति में उनसे उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का आशा कैसे की जा सकती है। चौथा कारण है शिक्षा का व्यावसायिकरण होना। शिक्षा को व्यवसाय मानकर शिक्षा प्रदान करना बुरा नहीं है यदि विद्यार्थियों के हित का पूरा ध्यान रखा जाए अर्थात् उनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना। जबकि वास्तविकता यह है कि अधिकांश शिक्षा संस्थान देखने में भव्य, सुन्दर भवन तथा भौतिक सुविधाएं तो मिल जाएगी ताकि अभिभावकों व विद्यार्थियों को आकर्षित किया जा सके। उनको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने की तरफ ध्यान न होकर केवल मोटी-मोटी फीस लेकर धनार्जन करना है। यानि ये शिक्षण संस्थान धनार्जन के केन्द्र बने हुए हैं। इस लूट के लिए केवल शिक्षण संस्थान ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि हम भी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं जो इस लूट के हिस्सेदार है तथा लूट होने दे रहे हैं और चुपचाप उनको मोटी-मोटी फीस चुका रहे हैं। अपने कर्त्तव्यों के प्रति, विद्यार्थियों के भविष्य के प्रति सजग, चौकस नहीं है। पांचवा कारण है कि विद्यार्थियों के अनुपात में गणित शिक्षकों की कमी है। एक ही कक्षा में 50 से 100 विद्यार्थीयों को ठूंस दिया जाता है जिससे विद्यार्थियों को गणित में आनेवाली व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है।
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4.गणित की तैयारी के टिप्स (Math Preparation Tips):
- गणित विषय को खेल-खेल में, कविता व गानों की सहायता से आसानी से सीखाया जा सकता है। इसलिए प्रारम्भिक स्तर पर विद्यार्थियों को खेल-खेल में, कविता व गानों की सहायता से सीखाना चाहिए जिससे गणित विषय में विद्यार्थियों की रुचि व जिज्ञासा जाग्रत हो सके। विद्यार्थियों में गणित विषय के प्रति डर पैदा करने की कोशिश न करें। यह न कहे कि गणित बहुत कठिन विषय है इसलिए इस पर अधिक फोकस करो बल्कि गणित विषय में आनेवाली कठिनाईयों को दूर करके उनसे कहें कि ऐसा आप भी कर सकते थे यदि थोड़ा सा प्रयास करते तो। सूत्रों व थ्योरी को समझाकर याद करवायें। समझाकर याद करवाने से स्मृति में गणित का हल अधिक स्थायी व दीर्घकाल तक रहता है। गणित के सूत्रों को याद करने के लिए नोटबुक बना ले और जब भी, जहाँ भी मौका मिले उसको पढ़े, बार-बार पढ़ने से सूत्र याद हो जाएंगे। यदि कोई भी गणित के प्रति आपमें डर पैदा करता है तो सुनी सुनाई बात पर विश्वास न करें। याद रखें कोई विषय तभी तक कठिन होता है जब तक हम उसे बार-बार उसकी पुनरावृत्ति नहीं करते, उसका अभ्यास नहीं करते हैं। केवल शिक्षा संस्थानों के द्वारा बनाए गए नोट्स व अध्ययन पर ही निर्भर न रहें।स्वयं के द्वारा बनाए गए नोट्स तैयार करें और घर पर भी गणित को समय दें।गणित के सवाल हल नहीं हो रहे हों तो अपने माता-पिता, अभिभावकों से सहायता लें। यदि माता-पिता व अभिभावक अनपढ़ हैं या उनको गणित विषय का ज्ञान नहीं है तो अपने बड़े भाई, बहनों से सहयोग लें। यदि बड़े भाई, बहिन नहीं है या उनको भी गणित विषय के बारे में जानकारी नहीं है तो अपने मित्रों व शिक्षकों से मदद लें। अन्यथा कोचिंग ज्वाइन कर लें। कोचिंग संस्थान के बारे में ठीक से जाँच पड़ताल करके ही ज्वाइन करें अन्यथा आपकी समस्याओं का वहाँ समाधान नहीं हो पाएगा। आपकी फीस का नुकसान तो होगा ही साथ ही आपका समय भी बर्बाद होगा। हमेशा ऐसे मित्रों के साथ रहें जो आपको प्रोत्साहित करते हों और आपका हौसला बढ़ाते हों।
- विद्यार्थी को चाहिए कि वह काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, श्रृंगार, खेल-तमाशे, बहुत अधिक सोना और अत्यधिक सेवा करना इन आठ बातों को त्याग दे। (चाणक्य नीति)
- काम, क्रोध और लोभ ये विध्याध्ययन में बाधक हैं। गीता में इन्हें नरक का द्वार कहा गया है अर्थात् दु:ख व पतन के द्वार हैं। श्लोक का भावार्थ निम्न प्रकार से है – काम, क्रोध, लोभ – ये नरक के तीन प्रकार के द्वार हैं और आत्मा को नष्ट करने वाले हैं। इसलिए इन तीनों को छोड़ देना चाहिए। लोभ के सम्बन्ध में योग वशिष्ठ में कहा गया है कि “यशस्वियों के निर्मल यश को और गुणवानों के प्रशंसनीय गुणों को तनिक सा लोभ वैसे ही नष्ट कर देता है जैसे श्वित्र=कुष्ठ का छोटा सा धब्बा रूपवानों के प्रिय रूप को नष्ट कर देता है।
- स्वाद-जिससे खाने-पीने में चस्का लग गया हो उसकी खाने-पीने की रुचि बढ़ती जाती है जो कि स्वास्थ्य के साथ-साथ मन को दूषित भी करती है और पढ़ाई से अरुचि हो जाती है।
- श्रृंगार-फैशन परस्त करना, फिल्में देखना, मटरगश्ती करना, आवारागर्दी करने से मन दूषित होता है, मन में कामुक प्रवृत्तियां उत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य खण्डित होता है और विद्यार्थी का मन अध्ययन से भटक जाता है। इन चीजों में रस लेने वाले विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने में रुचि नहीं रहती है।
- कौतुक – खेल तमाशे, ताश, चौपड़, शतरंज में समय नष्ट करने वाला विद्यार्थी विद्या अध्ययन नहीं कर सकता है क्योंकि इन कार्यों में समय नष्ट करने के बाद उसके पास विद्याध्ययन हेतु समय ही नहीं बचता है। अत्यधिक सोना व अति सेवा भी विद्याध्ययन में बाधक है।
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5.परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के टिप्स (Tips to get good marks in the exam):
- यों तो हमने निम्न आर्टिकल में परीक्षा में पालन करने योग्य बातों का उल्लेख किया है परन्तु एक दो बातें प्रसंगवश यहां ओर बता रहे हैं। रटने के बजाए समझकर टाॅपिक को याद करें। अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए शुरू से ही अध्ययन व अभ्यास करें। कठिन टाॅपिक को न छोड़ें बल्कि उसकी बार-बार पुनरावृत्ति करें। परीक्षा में सबसे पहले सरल प्रश्नों को करें, फिर कठिन प्रश्नों को करें। परन्तु यदि कोई कठिन प्रश्न जो आपका अच्छी तरह तैयार किया हुआ नहीं हो तथा घर से रवाना होते समय पढ़ा हो और वही प्रश्न परीक्षा में आ गया हो तो सबसे पहले उस कठिन प्रश्न को हल कर लें क्योंकि ताजा-ताजा पढ़ा हुआ याद रहता है लेकिन थोड़ा समय गुजरने या कोई भी अन्य मानसिक कार्य करने से विस्मृत हो जाता है।
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- अन्तिम बात विद्यार्थी काल तप व कठोर परिश्रम करने का है मौज-मजा तथा मस्ती करने का नहीं है। अपने माता-पिता व अभिभावकों को भौतिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की ज्यादा माँग न करें। ज्यादा भौतिक सुख-सुविधाएं अर्जित करने से विद्यार्जन नहीं होता है बल्कि विद्यार्जन करना कठोर तप व साधना का समय है। इन बातों का पालन करेंगे तो कोई कारण नहीं है कि आप गणित विषय में कमजोर रहेंगे। थ्योरीटिकल टाॅपिक को ठीक से समझकर याद करें और उसका अभ्यास करें, उसके नोट्स बनाएं।
- इस आर्टिकल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में गणित विषय विद्यार्थियों को बोझ लगता है (The Lack of Quality Education Makes Math Subjects a Burden to Students) के बारे में बताया गया
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गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में गणित विषय विद्यार्थियों को बोझ लगता है (The Lack of Quality Education Makes Math Subjects a Burden to Students) इसके कारण क्या है तथा उनको कैसे दूर किया जा सकता है?
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