Teachers Nuture Talent of Children
1.शिक्षक बच्चों की प्रतिभा निखारें (Teachers Nuture Talent of Children),शिक्षक छात्र-छात्राओं की गणित में प्रतिभा को निखारें (Teaches Should Nuture Talent of Students in Mathematics):
- शिक्षक बच्चों की प्रतिभा निखारें (Teachers Nuture Talent of Children) क्योंकि हर छात्र-छात्रा में प्रतिभा मौजूद रहती है।प्रतिभा व्यक्तित्त्व की वह विशेषता है जिसमें मनन-चिंतन को कर्तृत्व में बदलना,सूझबूझ को विकसित करना तथा योजना को साकार रूप प्रदान करने से है। प्रतिभा संपन्न छात्र-छात्राएं आत्मविश्वासी तथा साहसी होते हैं।प्रतिभा संपन्न छात्र-छात्राओं को समस्याओं,कठिनाइयों तथा खतरों का सामना करने में,जूझने में आनंद आता है।छात्र-छात्राएं एक बार जो लक्ष्य तय कर लेते हैं उसको सूझबूझ और साहस के बल पर पूरा करने की ठान लेते हैं।जोश और होश से काम लेने पर साधन-सुविधाओं का अभाव और प्रतिकूल परिस्थितियां उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है।विवेक,धैर्य और साहस के बल पर वे बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना करने में सक्षम होते हैं।प्रतिभावानों को दूसरे शब्दों में मनस्वी या तेजस्वी कह सकते हैं।संक्षिप्त रूप में प्रतिभा का यही स्वरूप है।
- प्रतिभा विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद हो सकती हैं जैसे गणितज्ञ,वैज्ञानिक,खिलाड़ी,राजनीतिक,गायक,समाजसेवी इत्यादि।वे अपनी प्रतिभा के बल पर जिस क्षेत्र में होते है उसमें अपनी प्रखरता और प्रचंडता से ऐसा कार्य खड़ा कर देते हैं कि दुनिया में लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।आवश्यकता है तो प्रतिभाओं के भटकाव को रोका जाए।यदि प्रतिभाओं को सही दिशा दी जाए,उनकी शक्ति को उचित क्षेत्र में लगाया जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम देखा जा सकता है।प्रतिभाओं के सही क्षेत्र का चयन शिक्षक,माता-पिता,अभिभावकों इत्यादि के सहयोग से किया जा सकता है।
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2.शिक्षक अपना दायित्व निभाए (Teachers Should Fulfill Their Responsibilities):
- वर्तमान परिस्थितियों में शिक्षक को बहुत से नियम-कानूनों का पालन करना होता है।इसके बावजूद उन्हें अपना दायित्व निभाने में परिस्थितियां रोड़ा नहीं बन सकती है।हालांकि वर्तमान युग में शिक्षा को व्यावसायिक रूप दिया जा चुका है। इसलिए शिक्षक को उसकी योग्यता के अनुसार वेतनमान,सुख-सुविधाएं देना न्यायोचित है।परंतु शिक्षक को भी अपना दायित्व केवल छात्र-छात्राओं को पाठ्यक्रम पूर्ण कराने तक ही सीमित नहीं समझ लेना चाहिए।
- माता-पिता के बाद छात्र-छात्राएं सबसे अधिक शिक्षक के संपर्क में रहते हैं।अतः शिक्षक को स्कूली पाठ्यक्रम पूर्ण तो कराना ही चाहिए लेकिन यह वेतन के एवज में किया गया शैक्षिक कार्य ही समझा जा सकता है परंतु शिक्षक को अपना दायित्व इतने तक ही सीमित नहीं समझ लेना चाहिए।छात्र-छात्राओं में सरलता,धैर्य,बुद्धि का विकास,सज्जनता,ईमानदारी,समझदारी,जिम्मेदारी,कठिन परिश्रम,बहादुरी इत्यादि गुणों को विकसित करना चाहिए।वस्तुतः इन गुणों का पाठ्यक्रम में विकसित करने का कोई प्रावधान नहीं है।इसलिए यदि इनको अपने आचरण और कृतित्व से छात्र-छात्राओं में विकसित करता है परिवार,समाज व देश के लिए वह योगदान देता है।ऐसे शिक्षक का यश फैलता है।
- छात्र-छात्राओं को सत्साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे उनकी सृजनात्मक क्षमता विकसित हो सके।गणित तथा अन्य विषयों को पढ़ाते तथा समझाते समय प्रसंगवश ऐसे दृष्टांत,पहेलियों का समावेश कर सकता है जिससे छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा बढ़े।किसी भी विषय को किसी भी दिशा में टॉपिक को ले जाकर बहुत सी अन्य बातों को बताया जा सकता है।
- परंतु आधुनिक युग में कुछ शिक्षकों के चाल-चरित्र इतने बिगड़े हुए हैं जिससे छात्र-छात्राओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।छात्र-छात्राओं के समक्ष अध्यापक बीड़ी,सिगरेट पीते हैं।भद्दे हँसी-मजाक करते हैं।अपने लिए छात्र-छात्राओं से बीड़ी,सिगरेट,पान मसाला इत्यादि मंगवाते हैं।बड़े स्कूल,कॉलेजों में तो प्राध्यापक छात्र-छात्राओं के साथ यार-दोस्त जैसा बर्ताव रखते हैं,कई घटिया स्तर के वार्तालाप करते देखे जाते हैं।ऐसे गलत उदाहरणों से विद्यार्थियों में गलत संस्कार पनपते हैं। उनकी प्रतिभा का सदुपयोग नहीं किया जा सकता है।अध्यापक को ध्यान रखना चाहिए कि छात्र-छात्राओं के कोमल मन पर उनके चरित्र का गहरा प्रभाव पड़ता है।
3.अध्यापक अपने चरित्र से शिक्षा प्रदान करें (Teachers Should Teach by Their Character):
- छात्र-छात्राएं वाणी के बजाय शिक्षक के चरित्र से सीखते हैं।नैतिक शिक्षा कहने-सुनने में सरल लगती है परंतु नैतिकता की बातों को छात्र-छात्राओं के जीवन में ढालना बहुत कठिन है।अध्यापक छात्र-छात्राओं के लिए श्रद्धा का पात्र तभी बन सकता है जबकि वह स्कूली पाठ्यक्रम के अलावा नैतिक बातों को छात्र-छात्राओं के जीवन में उतारता है।
- नीति,सदाचरण की बातें न सीखने पर छात्र-छात्राओं को केवल डिग्रीधारी (Qualified) ही कहा जा सकता है उन्हें शिक्षित (Educated) नहीं कहा जा सकता है।डिग्रीधारी छात्र-छात्राएं सद्गुणों के अभाव में पतन की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
- अध्यापक से ऐसी अपेक्षा इसलिए की जाती है कि अध्यापक को अपेक्षाकृत अधिक सजग,सचेत,चिन्तक,स्रष्टा,संतोषी,उत्तरदायित्वपूर्ण, चरित्रवान समझा जाता है।आज भी बहुत से माता-पिता,अभिभावक अध्यापक को अध्यापक न मानकर गुरु जैसे सम्मानित व्यक्तित्त्व का दर्जा देते हैं।
- गुरु जैसे दायित्व का निर्वहन घटिया चिन्तन,घटिया रहन-सहन,घटिया संगत,घटिया आचरण के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता है।शिक्षक छात्र-छात्राओं का आदर्श है।शिक्षक जैसे छात्र-छात्राओं का निर्माण करेगा उसी प्रकार राष्ट्र का निर्माण होगा। छात्र-छात्राएं शिक्षक का अनुकरण करते हैं।बहुत सी बातें छात्र-छात्राएं शिक्षक से सीखते हैं।यदि शिक्षक के कथनी और करनी में अन्तर होता है तो वह श्रद्धा व सम्मान का पात्र नहीं बन सकता है।
- शिक्षकों को सम्मानपूर्ण जीवनयापन के लिए उचित सुविधाएं मिले यह उनका अधिकार है।इस अधिकार को प्राप्त करने का प्रयास करना तो उचित है परंतु अधिकार पूरे न होने के कारण कर्त्तव्य को न निभाना शिक्षक के लिए कलंक है।यदि अधिकार और कर्त्तव्य में से किसी एक का चुनाव करना पड़े तो कर्त्तव्य को ही चुनना चाहिए।
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4.अध्यापक की सादगी का दृष्टान्त (The Example of the Teacher’s Simplicity):
- शिक्षक को दूसरों के देखा-देखी अपने कर्त्तव्यों का पालन न करना जघन्य अपराध है।दूसरे शिक्षक छात्र-छात्राओं को ठीक तरह से नहीं पढ़ाते और समझाते हैं तो उसे भी ऐसा ही करना चाहिए यह दलील नहीं मानी जा सकती है। शिक्षक की असली पूंजी सदाचरण,सरलता,आत्मचिंतन,आत्मोन्नति,सज्जनता इत्यादि है।शिक्षक को ऐसे गुणों से ही अपने व्यक्तित्त्व का निर्माण करना चाहिए जिससे देश की गरिमा बढ़ सके।
- गणित शिक्षक सुधांशु की चर्चा नगर और आसपास के क्षेत्र में फैलती जा रही थी।जो कोई उनसे गणित की शिक्षा प्राप्त करता है वही उनकी प्रशंसा करता। एक धनाढ्य गणित के छात्र ने सोचा की सभी सुधांशु सर की तारीफ करते हैं मैं भी उनसे पढ़ कर देखूं।दरअसल छात्र-छात्राओं में सुधांशु ‘सर’ के नाम से विख्यात थे।धनाढ्य छात्र ने उनकी कोचिंग में अध्ययन किया तो उसको गणित पढ़ने में बड़ा आनंद आया।परंतु तभी उसका ध्यान सुधांशु सर के कपड़ों की ओर गया।उसने सोचा कि इतने ऊंचे स्तर की गणित शिक्षा देने वाले और ऐसे हल्के और साधारण वस्त्र।
- अगले दिन धनाढ्य छात्र एक मखमल का कुर्ता लेकर आया और सुधांशु सर से पहनने का आग्रह किया।सुधांशु सर ने पहले तो कुर्ते को देखा और कहा कल पहनेंगे।
- अगले दिन जब सुधांशु सर गणित पढ़ा रहे थे तो सभी छात्र-छात्राएं हतप्रभ रह गए क्योंकि उन्होंने कुर्ते को उल्टा पहन रखा था।सभी सोच रहे थे कि सुधांशु सर ने यह क्या लीला रच ली है? गणित का टॉपिक पढ़ाने के बाद सुधांशु सर बोले,अरे सुनो मैं तो बताना ही भूल गया।यह मूल्यवान कुर्ता मुझे इस धनाढ्य छात्र ने दिया है।वह धनाढ्य छात्र बोला परंतु आपने तो इसको उल्टा पहन रखा है।सुधांशु सर मुस्कुराए और बोले मैं साधारण सा अध्यापक इतना महंगा कुर्ता खरीद न पाऊंगा,इसलिए सोचा कि इसके मखमली भाग का सुख शरीर की चमड़ी को ले लेने दें (मखमल का ऊपरी भाग मुलायम होता है)।मैंने सोचा छात्र-छात्राएं इसे देख कर क्या करेंगे,कम से कम शरीर को तो इसका सुख मिल जाएगा।धनाढ्य छात्र ने पैर पकड़ लिए और बोला मैं सोचता था कि सुधांशु सर में ऐसी क्या बात है जो सभी छात्र-छात्राएं आपकी तारीफ करते हैं।आप तो सचमुच लोक लाज,अहंकार,विकार से परे विनम्र और सरल सर हैं।मैं आपके पास आकर धन्य हो गया।
- सुधांशु सर मुस्कुराकर बोले कपड़े का काम है धूप,सर्दी,गर्मी और लोक लाज से बचाना और वैसे कपड़े मैं पहन लेता हूं।सुधांशु सर की बात सभी छात्र-छात्राओं के दिल को छू गयी।
- उपर्युक्त आर्टिकल में शिक्षक बच्चों की प्रतिभा निखारें (Teachers Nuture Talent of Children),शिक्षक छात्र-छात्राओं की गणित में प्रतिभा को निखारें (Teaches Should Nuture Talent of Students in Mathematics) के बारे में बताया गया है।
5.गणित और उम्मीद (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics and Hope) (Humour-Satire):
- गणित अध्यापक (छात्र से):बताओ गणित किसे कहते हैं?
- छात्र:जिसको सरल करने की उम्मीद बार-बार की जाए परंतु बहुत कोशिश करने पर भी हल न हो सके उसे गणित कहते हैं।ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है और इसे मैंने कई बार जांचा परखा है।
6.शिक्षक बच्चों की प्रतिभा निखारें (Teachers Nuture Talent of Children),शिक्षक छात्र-छात्राओं की गणित में प्रतिभा को निखारें (Teaches Should Nuture Talent of Students in Mathematics) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
उत्तर:शिक्षक की धन-सम्पत्ति से सहायता न कर सकें तो उन्हें श्रद्धा,प्रशंसा,सम्मान,सहयोग,समर्थन तो प्रदान कर ही सकते हैं।दानवों (शिक्षक के वेष में) का दमन न कर सकें तो कम से कम उन्हें निरुत्साहित,लज्जित तो किया ही जा सकता है। सहयोग,समर्थन और सम्मान से उन्हें वंचित तो किया ही जा सकता है।छात्र-छात्राएं जब भले-बुरे,उदार और निष्ठुर,स्वार्थी और सज्जन शिक्षकों का अंतर समझ लेंगे और उसके अनुसार मूल्यांकन करेंगे तो वह स्थिति जरूर पलटेगी जिसकी आड़ में निशाचर वृत्ति के शिक्षक फल-फूल रहे हैं और योग्य शिक्षक दर-दर की ठोकरें खाते हुए भटक रहे हैं।
प्रश्न:2.सचरित्र छात्र-छात्राओं का निर्माण कैसे किया जा सकता है? (How to Build Good Character Students?):
उत्तर:शिक्षक प्रत्येक विषय के शिक्षण के साथ-साथ प्रसंगवश संस्कारयुक्त प्रेरक प्रसंग जोड़ सकता है।छात्र-छात्राओं के साथ आत्मीयता,उनकी समस्याओं को भलीभाँति समझकर सुलझाना छात्र-छात्राओं के निर्माण में सहायक है।दण्ड और डांट-फटकार से छात्र-छात्राओं में मनोवांछित कार्य तो कराया जा सकता है परंतु उनके स्वभाव में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न:3.समाज में परिवर्तन कैसे सम्भव है? (How is Change Possible in Society?):
उत्तर:शिक्षकों के पास एक बहुत बड़ी शक्ति है,उसे उन्हें समझना चाहिए।यदि प्रेम,आत्मीयता के व्यवहार से उन्होंने छात्र-छात्राओं को अपनी बात मनवाने के लिए तैयार कर लिया तो समाज में कोई भी परिवर्तन कराना उनके लिए कठिन नहीं होगा। जिन कुरीतियों को दूर करना धर्मोपदेशकों,पुलिस,न्यायालय व सामाजिक संगठनों के लिए असंभव है उसे संभव बनाना शिक्षकों के लिए बड़ा आसान है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा शिक्षक बच्चों की प्रतिभा निखारें (Teachers Nuture Talent of Children),शिक्षक छात्र-छात्राओं की गणित में प्रतिभा को निखारें (Teaches Should Nuture Talent of Students in Mathematics) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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