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Students Should Not Be Procrastinating

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1.विद्यार्थी दीर्घसूत्री न बनें (Students Should Not Be Procrastinating),विद्यार्थी उचित समय पर उचित कार्य करे (Students Should Do Right Work at Right Time):

  • विद्यार्थी दीर्घसूत्री न बनें (Students Should Not Be Procrastinating) यहाँ दीर्घसूत्री से तात्पर्य है कि प्रत्येक कार्य को देरी से करें,जो आरंभ किए हुए कार्य में उचित से अधिक समय लगाये।यह दीर्घसूत्रता केवल विद्यार्थियों में ही नहीं पाई जाती बल्कि सरकारी कर्मचारियों की आदत में भी शुमार है।सरकारी कर्मचारी अत्यधिक औपचारिकता के कारण कार्य को बहुत देर से निपटाते हैं,इसी को लालफीते की कार्यवाई,फीताशाही भी कहा जाता है।परंतु हम इस लेख में छात्र-छात्राओं व शिक्षकों के संबंध में अपने लेख को सीमित रखेंगे।
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2.छात्र-छात्राओं में दीर्घसूत्रता (Procrastination among students):

  • हर छात्र-छात्रा को अपना कोर्स पूरा करने,पुस्तकों को पढ़ने,नोट्स तैयार करने,पढ़े लिखे हुए को याद करने,रिवीजन करने,मॉडल पेपर्स को सॉल्व करने आदि के लिए अप्रैल से मार्च तक पूरा एक वर्ष का समय मिलता है।परंतु अपनी देरी से काम निपटाने की प्रवृत्ति के चलते हुए वे ग्रीष्मावकाश,शीतकालीन व दीपावली की छुट्टियों को मौज-मजा करने,आलस्यवश यों ही व्यतीत कर देते हैं।
  • सत्रारम्भ से एक-एक दिन कम होता जाता है परंतु छात्र-छात्राएं इस समय की गति से,समय के गुजरने से बेखबर रहते हैं और जब परीक्षाएं निकट आती है तो आनन-फानन में अध्ययन कार्य को निपटाना चाहते हैं।यह प्रवृत्ति केवल शैक्षिक परीक्षाएँ देने वाले छात्र-छात्राओं में ही नहीं पाई जाती है बल्कि जाॅब प्राप्त करने के लिए परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों में भी पाई जाती है।पहले वे वैकेंसी का इंतजार करते रहेंगे और जब तक वैकेंसी नहीं निकलती है तब तक अध्ययन,परीक्षा की तैयारी शुरू नहीं करते हैं।वैकेंसी निकलने के बाद फॉर्म भी गिरते पड़ते अंतिम तारीख को भरेंगे।फिर देखेंगे की परीक्षा कब नियत की गई है।इस प्रकार उनका समय गुजरता जाता है और एक दिन परीक्षा का दिन भी आ जाता है परंतु उनकी परीक्षा की तैयारी अधूरी रह जाती है।नतीजा निकलता है कि उनका चयन जाॅब के लिए नहीं होता।
  • अध्ययन में ही छात्र-छात्राएं लेटलतीफी करते हों ऐसी बात नहीं है,ऐसे छात्र-छात्राओं का हर कार्य अव्यवस्थित तरीके से दीर्घसूत्रता की भेंट चढ़ जाता है।मसलन स्कूल का समय सुबह 7:00 बजे का है तो ऐसे छात्र-छात्राएं 6-6:30 बजे उठेंगे और तत्काल शौच से निवृत होकर स्कूल के लिए रवाना हो जाएंगे (बिना नहाए,धोये ही),बिना नाश्ता,जलपान किए ही।रात को देर तक सोशल मीडिया,मोबाइल या टीवी पर व्यस्त रहेंगे तो स्वभाविक है कि सुबह देरी से उठेंगे।
  • कहीं निर्धारित समय पर जाना होगा तो स्टेशन पर देरी से पहुंचेंगे तब तक ट्रेन या बस जा चुकी होगी।किसी ज्ञानवर्धक फंक्शन (समारोह) में शामिल होंगे तो वे जब तक पहुंचेंगे तब तक समारोह का आधा कार्यक्रम समाप्त हो चुका होता है अथवा समाप्त होने वाला होता है।
  • इस प्रकार की दीर्घसूत्रता से ग्रस्त ऐसे छात्र-छात्राओं में प्रतिभा भी होती है तो वे अपनी इस आदत के कारण उन्नति के शिखर पर नहीं पहुंच पाते हैं।ऐसे छात्र-छात्राओं से माता-पिता,परिवार के अन्य सदस्य,मित्र-संबंधी व शिक्षक भी बहुत परेशान रहते हैं,लेकिन वे सुधरने को तैयार नहीं।

3.जल्दबाजी और दीर्घसूत्रता दोनों उचित नहीं (Haste and procrastination are both not advisable):

  • जिस प्रकार दीर्घसूत्रता छात्र-छात्राओं के लिए हानिकारक है वैसे ही जल्दबाजी करना भी हानिकारक सिद्ध हो सकता है।जैसे आज का काम कल पर टालना बुद्धिमानी नहीं है वैसे ही जल्दबाजी करना भी ठीक नहीं है।कहा भी है कि कर लिया सो काम,भज लिया सो राम क्योंकि रहा काम तो रावण,जैसा महा शक्तिशाली राजा भी पूरा नहीं कर पाया था।रावण का विचार था कि वह दो काम जरुर करेगा।पहला तो यह है कि सोने में सुगंध पैदा कर दे ताकि उसकी सोने की लंका सुगंधित हो सके और दूसरा यह कि स्वर्ग तक सीढ़ियां बना दे ताकि जो राक्षस चाहे वह स्वर्ग में प्रवेश कर सके पर वह ये दो काम पूरे न कर सका क्योंकि वह सिर्फ सोचता ही रहा,उसने ऐसा करने की कोशिश नहीं की।आज का काम कल पर टालता रहा।कभी-कभी आज का काम कल पर टालने से परिणाम भी बदल जाते हैं और कभी-कभी वक्त से पहले काम करना भी उल्टा साबित होता है।
  • कबीर दास जी ने कहा है कि “काल करे सो आज कर,आज करे सो अब।पल में परलय होत है बहुरी करेगो कब।।तात्पर्य यह था कि आलस्य नहीं करना चाहिए और आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिए।यहां यह बारीक बाद ध्यान में रखने योग्य है कि हमें आज करने योग्य काम ही आज करना चाहिए क्योंकि जैसे आज करने योग्य काम आज ही कर लेना उचित है वैसे यह भी उचित है कि कल को करने योग्य काम आज न किया जाए क्योंकि उचित वक्त से पहले किया गया काम भी अच्छे फल देने वाला नहीं होता।कुछ लोग उतावलेपन और जल्दबाजी से काम लेकर ऐसा चाहते हैं कि कल का मजा आज ही ले लिया जाए,थोड़ा-थोड़ा करके एकदम से इकट्ठा ही मजा ले लिया जाए तो यह नासमझी और हानि करने वाली आदत सिद्ध होगी।दोनों ही स्थितियां गलत है यानी ना तो भूखों मरना उचित होता है और ना ज्यादा खाकर मरना उचित होता है।मतलब की बात यह है कि न दीर्घसूत्रता तथा आलस्य करना अच्छा होता है और ना ही उतावलापन ही अच्छा होता है।देश (स्थान) काल (अवसर) और परिस्थिति (माहौल) को देखकर ही उचित कार्य करना बुद्धिमानी और दूरदर्शिता होती है।
  • आप अभी से यह समझ लें कि भावी जीवन को स्वस्थ,सुखी,साधन-संपन्न और समृद्धिशाली बनाने के लिए आपको कैसे गुण कर्म और स्वभाव वाला होना चाहिए।बस,अभी से वैसी ही तैयारियां शुरू कर दें।यह न सोचें कि बड़े हो जाएंगे बूढ़े हो जाएंगे तब कर लेंगे।अभी नहीं तो कभी नहीं (Now or Never) वाली आदत डालनी चाहिए।अभी करने योग्य काम तत्काल कर लें और जो अभी करने योग्य काम ना हों उन्हें करने में जल्दबाजी न करें।अभी से अच्छे या बुरे जैसे गुण कर्म स्वभाव आप धारण करेंगे वैसा ही आपका स्वभाव बनता जाएगा क्योंकि आपके संस्कार मजबूत होते जाएंगे।
  • छात्र-छात्राएं सुबह के भोजन करते समय ही यह सोच लें कि शाम का भोजन भी सुबह कर लेते हैं तो स्वास्थ्य व पेट खराब होगा फलस्वरूप अध्ययन ठीक से नहीं कर पाएंगे।इसी प्रकार गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने से पूर्व ही विद्यार्थी काल में सेक्स का लुत्फ़ उठाया जाएगा तो शरीर व स्वास्थ्य का सत्यानाश तो होगा ही साथ ही अध्ययन पर एकाग्रता नहीं सधेगी।ये उतावलेपन के कार्य हैं।इसी प्रकार आप अध्ययन के लिए यह सोचेंगे कि आज नहीं कल या अगले दिन या परीक्षा के निकट अध्ययन करेंगे तो इस तरह का कार्य करने से परीक्षा में अनुत्तीर्ण होंगे या कम अंक प्राप्त होंगे।सर्दी के समय सोचेंगे कि सर्दी खत्म होने पर अध्ययन प्रारंभ करेंगे,गर्मी के समय सोचेंगे कि गर्मी समाप्त होने पर अध्ययन करेंगे इस प्रकार के कार्य दीर्घसूत्रता के कार्य हैं।
    ऐसी बात नहीं है कि दीर्घसूत्रता व उतावलेपन के शिकार छात्र-छात्राएं ही हैं,कई शिक्षक भी इसके शिकार हैं।शिक्षकों की इस प्रवृत्ति से छात्र-छात्राओं के जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है।

4.दीर्घसूत्रता का दृष्टांत (The Parable of Procrastination):

  • एक अध्यापक के पढ़ाने की दूर-दूर तक प्रसिद्धि थी।जो भी छात्र-छात्राएं उससे पढ़ते,हमेशा-हमेशा के लिए उससे ही पढ़ने को लालायित रहता।सामान्य छात्र-छात्राओं के अभिभावक ही नहीं बल्कि धनाढ्य व अफसर तथा मंत्री भी उसके पढ़ाने के तरीके पर मोहित थे।सचमुच उसके गणित पढ़ाने की कला,तरीके की कोई बराबरी नहीं कर सकता था।देश के ही नहीं विदेशी छात्र-छात्राएं भी उसी से पढ़ना पसंद करते थे।वह था अपने काम में बहुत होशियार,निपुण पर उसमें एक बुरी आदत थी।वह बहुत आलसी और भुलक्कड़ था।जैसे उसे समय की और कीमत की पहचान ही न थी।अपनी इसी आदत के कारण वह किसी भी छात्र-छात्रा का कोर्स समय पर पूरा नहीं करा पाता था।उसकी इस आदत से सभी लोग परेशान थे।परन्तु सभी की मजबूरी थी,आखिर उससे अच्छा और कोई गणित का शिक्षक नहीं था।इसलिए कोई भी कुछ बोल पाने में सक्षम न था।
  • एक बार मंत्री को अपने पुत्र को जेईई-मेन परीक्षा की तैयारी करवानी थी।मंत्री जी ने उनको बुलवाया और कहा,”सर तुम अतिशीघ्र मेरे पुत्र को जेईई-मेन का कोर्स पूरा करवा सकते हो? उसने मंत्रीजी से पूछा श्रीमन कब तक कोर्स करवाना है? मंत्री जी उसकी आदत के बारे में सुन चुके थे।तभी वे मुस्कुराते हुए बोले “तुम्हीं बताओ सर,कब तक कोर्स करवा सकते हो?” गणित शिक्षक बोले, “श्रीमन! दिसंबर तक आपके पुत्र को कोर्स पूरा करवा दूंगा।” मंत्री जी ने फिर चेताया, “सर सोच लो,फिर से एक बार,अपने कहे अनुसार कोर्स पूरा करवा पाओगे?” वह कहने लगा-“मंत्रीजी! मेरे बारे में लोगों ने अनेक तरह का भ्रम फैला रखा है,पर मैं वैसा हूं नहीं।फिर यह तो मेरे लिए बहुत मामूली काम है।आपके पुत्र को अवश्य ही समय पर कोर्स पूरा करवा दूंगा।उसकी इस बात पर मंत्री जी हंसे और बोले,”जाओ सर और समय पर कोर्स करवा देना।”
  • वह घर पर आया और सोचने लगा,अभी तो पूरे 6 माह (जुलाई से दिसंबर) हैं।मैं अगले महीने से कोर्स पढ़ाना चालू करूंगा।यह सोचकर उसने छात्र को कहा कि तुम निश्चिंत रहो।दो माह बीत गए परंतु कोर्स चालू नहीं करवाया जबकि छात्र बार-बार तगादा करता।दो माह बाद उसने गणित पढ़ाना प्रारंभ किया।एक माह में ही उसने आधा कोर्स पूरा करा दिया।उसने सोचा कि अभी तो तीन माह बाकी है।अतः आधा कोर्स बाद में करा देगा।उसने एक माह पढ़ाकर,बाद में पढ़ाने के लिए कह दिया।छात्र क्या करता चुपचाप घर चला गया।इसके बाद गणित शिक्षक भूल गया की छात्र को आधा कोर्स कराना है।अपना समय इधर-उधर घूमने-फिरने में व्यतीत कर दिया।दिसंबर का माह आ गया।गणित शिक्षक की पत्नी ने उन्हें मंत्रीजी के पुत्र को पढ़ाने की याद दिलाई।पत्नी की बातें सुनते ही वह घबरा गया।उसी समय उसने मंत्री जी के पुत्र को बुलाया और जल्दी-जल्दी कोर्स पूरा करने लगा।
  • लेकिन कोर्स पूरा कराते-कराते जनवरी का माह खत्म हो गया।कोर्स पूरा समाप्त होते ही वह भागा-भागा मंत्री जी के पास छात्र को लेकर पहुंचा।मंत्रीजी के संतरी ने कहा मंत्री जी बाहर गए हुए हैं प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।मरता-क्या न करता भूखा-प्यासा दो-तीन दिन वहां बाहर ही प्रतीक्षा करनी पड़ी।मंत्री जी आए,उन्होंने छात्र से पूछा तो छात्र संतुष्ट नजर आया।मंत्री ने कहा कि कोर्स तो बढ़िया तरीके से करवा दिया परंतु तुमने समय पर कोर्स नहीं करवाया।उसने डरते-डरते कहा, “क्या करें श्रीमन! हमसे भूल हो गई।” मंत्री जी को समझ में आ गया कि यह सीधे तरह से अपनी आदत नहीं छोड़ सकता।वह सोचने लगे,इतना हुनरमन्द शिक्षक,अनेकों सद्गुणों के होते हुए अपनी इसी दुर्गुण के कारण स्वयं भी परेशानी भुगतता है और औरों को भी परेशान करता है।वह विचार कर रहे थे,कैसे इसे समय की कीमत समझायी जाए? कैसे इसको समय का मोल बताया जाए?
  • पर उन्होंने प्रगट रूप से कुछ नहीं कहा,बल्कि हंसते हुए बोले, “कोई बात नहीं हम तुमसे बहुत खुश हैं।अपना पारिश्रमिक कल आकर ले जाना।” गणित शिक्षक को अपनी जान छूटती लगी।उसने मंत्री जी को अभिवादन किया और घर जाकर फिर आराम करने लगा।दूसरा दिन भी ऐसे ही सोच-विचार में गुजर गया,जब रात हुई तो उसे याद आया।उसने पत्नी से कहा कि मैं मंत्री जी के क्वार्टर पर जा रहा हूं।मंत्री जी को खबर दी गई कि गणित शिक्षक अपना पारिश्रमिक लेने आ गए हैं।मंत्री जी बाहर आए,उन्होंने गणित शिक्षक की ओर एक हल्की-सी मुस्कान के साथ निहारा और कहा, “आ गए सर! तुमने फिर देर कर दी आने में।” गणित शिक्षक ने फिर से क्षमा मांगी।मंत्री जी ने कहा-“कोई बात नहीं।आओ आज हम तुम्हें अपना आलीशान बाग दिखाते हैं।जिसमें कुछ फूल रात को भी चमकते हैं।” मंत्री और गणित शिक्षक बाग में घूमने लगे।अचानक मंत्री जी ने गणित शिक्षक से कहा,” सर,तुम बाग में घूमो हम अभी एक जरूरी काम निपटाकर आते हैं।” यह कहकर मंत्री जी अपने बंगले में चले गए।
  • बहुत देर हो गई मंत्री जी का तो पता-ठिकाना ही न था।गणित शिक्षक ने घबराकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।असलियत तो यह थी कि मंत्री जी तो जान-बूझकर उसे अकेला छोड़ गए थे।उसकी चीख-पुकार सुनकर मंत्री जी ने अपने सिपाहियों,सुरक्षा प्रहरियों से कुछ कहा।
  • सुरक्षा प्रहरियों ने गणित शिक्षक को इधर-उधर घूमते देखा तो उसे पकड़ लिया और कहने लगे “चोर है इसे पुलिस थाने में बंद करवा दो।” कुछ सुरक्षा प्रहरियों ने कहा, “पहले इसकी पिटाई की जानी चाहिए।” गणित शिक्षक बुरी तरह घबरा गया।वह जोर-जोर से चिल्लाकर मंत्री जी को पुकारने लगा।उसकी आवाज सुनकर मंत्री जी पधारे और अनजान बनते हुए उन्होंने सुरक्षा प्रहरियों को रोका और उसकी ओर देखते हुए बोले-“अरे सर तुम यहां क्या कर रहे हो?”
  • गणित शिक्षक रो पड़ा,” मंत्री जी आप तो थोड़े समय बाद आने की बात कह कर भूल ही गए।देखिए ना आपकी भूल से मेरा क्या हाल हो गया है।” मंत्री जी अभी भी उसकी उसकी ओर देखते हुए हल्के से मुस्कुराए और कहने लगे, “सर! जब तुम समय की याद नहीं रखते और अपने काम को भूलकर लोगों को परेशान करते हो,अपना काम नियत समय पर नहीं करते हो तो दूसरों को कितनी परेशानी होती होगी? इसी का एहसास दिलाने के लिए हमने जान-बूझकर यह नाटक रचा था।”
  • मंत्री जी के इस कथन के साथ ही गणित शिक्षक को अपनी भूल का एहसास हो रहा था।उधर मंत्री जी उसे समझाते हुए अभी भी कह रहे थे,”मत भूलो सर! समय नियंता का अनुशासन है।सभी को उसका परिपालन करना पड़ता है,जो समय के इस अनुशासन को नहीं मानते,वे जीवन की बहुमूल्य उपलब्धियां,विभूतियों से वंचित रह जाते हैं।”
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी दीर्घसूत्री न बनें (Students Should Not Be Procrastinating),विद्यार्थी उचित समय पर उचित कार्य करे (Students Should Do Right Work at Right Time) के बारे में बताया गया है।

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5.विद्यार्थी को हर चीज दो दिखाई देती है (हास्य-व्यंग्य) (Student Sees Two Things) (Humour-Satire):

  • छात्र:सर मुझे हर चीज दो दिखाई देती है।
  • गणित शिक्षक:अच्छा,इस गणित की अमुक प्रश्नावली निकालो।
  • छात्र:सर,कौन-सी पुस्तक?
  • गणित शिक्षक ने छात्र की पूरी तहकीकात करने के बाद कहा कि ₹6000 दे दो।
  • छात्र:पर आपकी फीस तो ₹3000 ही है।
  • गणित शिक्षक:वो तो है,लेकिन नोट गिनने के समय दुगने दिखेंगे न।

6.विद्यार्थी दीर्घसूत्री न बनें (Frequently Asked Questions Related to Students Should Not Be Procrastinating),विद्यार्थी उचित समय पर उचित कार्य करे (Students Should Do Right Work at Right Time) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.दीर्घसूत्री न बनने के इस लेख को लिखने का क्या उद्देश्य है? (What is the purpose of writing this article about not being procrastinating?):

उत्तर:आगामी वर्ष के शुरुआत से ही परीक्षाएं शुरू होने वाली है।परीक्षार्थी किसी भी कारण से अध्ययन को,परीक्षा की तैयारी को टालते आ रहे हैं।अतः उनको सावधान व सतर्क करने के लिए लिखी गई है।जो छात्र-छात्राएं पहले से ही सजग व सावधान है,उनके लिए इस लेख में कुछ भी नहीं कहा गया है।यह लेख उनके लिए नहीं है।

प्रश्न:2.विद्या अध्ययन का क्या लाभ है? (What is the benefit of studying education?):

उत्तर:जो विद्या के लिए अनेक कष्ट सहन करता है।सभी प्रकार की कसौटियों को सहता है,विपत्तियों का सामना करता है।आदर्श का जीवन जीता है तथा अध्ययन (विद्या) के नाम पर निर्भीक बनता है।विद्या पर सच्ची निर्भरता सभी भयों को भगा देती है।जीवन में या मृत्यु में,सुख या दुःख में,भले या बुरे में जहां भी जाओ,जहां भी रहो विद्या तुम्हारा साथ देती है।

प्रश्न:3.अध्ययन में सबसे बड़ी रुकावट कौन-सी है? (What is the biggest obstacle in studying?):

उत्तर:मन और इंद्रियों की गुलामी अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा है।अतः मन को एकाग्र करके इंद्रियों को सही मार्ग (अध्ययन) में व्यस्त रखो,लगाओ।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी दीर्घसूत्री न बनें (Students Should Not Be Procrastinating),विद्यार्थी उचित समय पर उचित कार्य करे (Students Should Do Right Work at Right Time) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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