Student Formation by Mathematician
1.गणितज्ञ द्वारा छात्र का निर्माण (Student Formation by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा छात्र के निर्माण की कला (The Art of Student Creation by Mathematician):
- गणितज्ञ द्वारा छात्र का निर्माण (Student Formation by Mathematician) जिसका मन अध्ययन में बिल्कुल नहीं लगता था परंतु लगन,निष्ठा और पुरुषार्थ से क्या नहीं किया जा सकता? गणितज्ञ देवराज का आवास नगर से दूर सुरम्य पर्वतमालाओं के बीच था।उनके पास बहुत कम छात्र-छात्राएं पढ़ने आते थे।मात्र दो शिष्य थे।अनवरत उनको गणित पढ़ाना,गणित पढ़ने के गूढ़ रहस्य बताना और नित्यप्रति भगवान की आराधना करना,सरस्वती मंत्र का जप करना उनकी नित्य की दिनचर्या थी।सरस्वती मंत्र और गणित में कठिन पुरुषार्थ से गणितज्ञ देवराज का व्यक्तित्व प्रखर एवं तेजस्वी हो गया था।
उनका व्यक्तित्व अलौकिक विभूतियों का भंडार था।उनकी ख्याति दूर-दूर के क्षेत्रों तक फैली हुई थी। - आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
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2.गणितज्ञ का व्यक्तित्व (Personality of Mathematician):
- दूर-दूर से छात्र-छात्राएं तरह-तरह की समस्याएं लेकर उनके पास आते थे और वे किसी भी छात्र-छात्रा को निराश नहीं करते थे।गणितज्ञ के पास आने वाले छात्र-छात्राओं की कामना अवश्य पूर्ण होती थी।आज तक उनके पास आकर कोई निराश नहीं लौटा था।
- यही कारण था कि छात्र-छात्राओं और जनसामान्य की गणितज्ञ में अगाध श्रद्धा थी।
यथा नाम तथा गुण था उनमें।देवतुल्य ही थे गणितज्ञ।अत्यन्त सौम्य,शांत किंतु तेजस्वी मुखमंडल,सुदर्शन,स्वस्थ,सुगठित एवं आकर्षक देहयष्टि।उनके ललाट पर सूर्य की सी कांति थी।उनका लगभग 20 वर्षों से अधिक गणित का अध्ययन,मनन-चिंतन वे करते रहे थे।वे गणित का अध्ययन करने,दो शिष्यों को पढ़ाने के अलावा दूर से आए हुए छात्र-छात्राओं की समस्याओं का समाधान करते थे।जनसामान्य से नहीं मिलते-जुलते थे क्योंकि उनके पास इन सब बातों के लिए समय ही नहीं था।उनकी ज़रूरतें बहुत ही अत्यल्प थी।वैसे उनकी ज़रूरतें थी कितनी बस दो जोड़ी कपड़े,एक-दो अंगोछा और लंगोटी से उनका काम चल जाता था।भोजन भी एक समय करते थे।ये जरूरते उनके दो शिष्य और आने-जाने वाले छात्र-छात्राएँ पूरी कर देते थे। - उनके प्रत्येक कार्य से गणित के प्रति प्रेम,तपस्यश्चर्या ही विकसित होती थी।
गणितज्ञ देवराज किसी से मिले या ना मिलें,बोलें या ना बोलें,लेकिन उनके पास आने वाले छात्र-छात्राओं की भीड़ रोज ही बढ़ती जा रही थी।यह भीड़ इतनी बढ़ गई तब भी उनकी साधना में विघ्न नहीं पड़ता था।दरअसल आने वाले छात्रा-छात्राएँ केवल दर्शनार्थ ही नहीं आते थे बल्कि अपनी समस्या लेकर आते थे और देवराज द्वारा उनकी समस्याओं का समाधान जिस कुशलता व कला के साथ करते थे उससे उनकी साधना निखर ही रही थी।जनसामान्य से मिलने की इजाजत वे अपने दोनों शिष्यों को नहीं देते थे क्योंकि उन परमयोगी की तप-साधना में उनकी वजह से व्यवधान पड़ता था।उनके दोनों शिष्य गणित और अध्यात्म में इतने पारंगत हो गए थे कि वे भी आनेवाले छात्र-छात्राओं की समस्याओं का समाधान करने लगे थे।वे दोनों शिष्य ही समाधान कर देते थे तो बाहर से आनेवाले छात्र-छात्राओं को उनके आशीर्वाद,दर्शन लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी,शिष्य ही उनकी मनोकामना पूरी करके उन्हें लौटा देते थे।शिष्य भी कोई मामूली आदमी नहीं थे।गणितज्ञ देवराज की कृपा से उन्हें भी सिद्धि प्राप्त हो चुकी थी।उनके ये शिष्य गणित की जटिल से जटिल समस्याओं को हल करने में पारंगत हो गए थे।अतः बाहर से आनेवाले छात्र-छात्राओं पर उनका काफी प्रभाव था।
3.व्यवसायी की व्यथा (Businessman’s Agony):
- गणितज्ञ देवराज जिस क्षेत्र में रहते थे,वहां एक प्रसिद्ध व्यवसायी रहते थे।उनके एकमात्र संतान थी।व्यवसायी बड़ा ही दयालु,निष्ठावान और धर्मपरायण था।उनकी कंपनी की कई शाखाएं-प्रशाखाएँ थी।उनमें काम करनेवाले कर्मचारी आपस में प्रेमपूर्वक और पूरी निष्ठा से कार्य करते थे।भ्रष्टाचार,कामचोरी,बेईमानी,लूट-फरेब आदि दुर्गुण उन कर्मचारियों में बिल्कुल नहीं थे।व्यवसायी स्वयं परिश्रम के प्रति निष्ठावान था।इसी के परिणामस्वरूप कर्मचारियों में श्रम के प्रति निष्ठा स्वतः ही जाग्रत हो गई थी।जिस संस्थान का संचालक,मालिक जैसा होता है उस संस्थान के कर्मचारी भी अपने से बड़े की नकल करते हैं।अच्छाई या बुराई हमेशा ऊपर से नीचे की ओर आती है।व्यवसायी के सदाचरण ने कर्मचारियों को भी सदाचारी बना दिया था।
- व्यवसायी की तरह उनकी पत्नी भी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति की थी।वह करुणा एवं कोमलता की साकार मूर्ति थी।व्यवसायी और उनकी पत्नी दोनों ही संतान की वजह से बहुत परेशान और बेचैन रहते थे।उन्हें अपनी सारी धन-संपत्ति,ऐश्वर्य,वैभव-विलास काटता-सा लगता।व्यवसायी और उनकी पत्नी दोनों ने ही संतान को सुमार्ग पर चलाने के लिए अनेकों प्रयास किए।
- ज्योतिषाचार्यों एवं पंडितों के द्वारा बताए गए अगणित व्रत-उपवास किए।चारों धामों सहित अनेकों तीर्थों-पुण्यस्थलों की यात्राएं कीं।किंतु कोई उपाय फलित नहीं हुआ।संतान को सही रास्ते पर लाने के लिए व्याकुल व्यवसायी लगातार निस्तेज होते जा रहे थे।व्यवसायी की पत्नी का सौंदर्य ग्रीष्मकालीन सरोवर के जल की भाँति नित-प्रति क्षीण होता जा रहा था।
- गणितज्ञ देवराज के तप के प्रभाव की कहानियों से व्यवसायी अपरिचित न था,परंतु अब उसमें (व्यवसायी में) कहीं भी आने-जाने का कोई उत्साह न था।पर व्यवसायी की पत्नी संतान को शिक्षित करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थी।उसने व्यवसायी से गणितज्ञ के पास चलने की इच्छा व्यक्त की।पहले तो व्यवसायी ने अनिच्छा व्यक्त की,पर बाद में उसने पत्नी का मन रखने के लिए फैसला किया कि गणितज्ञ देवराज को यहीं आवास पर बुलवा लिया जाए।पत्नी को जैसे ही इसका पता चला,उन्होंने प्रतिवाद करते हुए समझाया,श्रद्धा से ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।फिर याचक को ही दाता के पास जाना चाहिए।
- अपनी पत्नी की बात मानकर व्यवसायी अपने निष्ठावान अधिकारियों के साथ गणितज्ञ के पास जाने के लिए तैयार हो गया।पत्नी ने फिर प्रतिवाद किया,तपस्वी के पास व्यावसायिक ऐश्वर्य का कोई काम नहीं है।निष्कपट सादगी ही सहायक होती है।अतः हमें अकेले और एकदम साधारण वेशभूषा में चलना चाहिए।व्यवसायी ने पत्नी की यह बात भी मान ली।
- वे दोनों ही गणितज्ञ की तपस्थली पहुंचे।वहां का वातावरण बड़ा ही मनोरम और शांत था।पास में ही एक झरना बह रहा था,जिसमें कल-कल का रव गूंज रहा था।पक्षीगण मधुर स्वर में चहक रहे थे।इस स्थान पर केवल गणितज्ञ के शिष्य थे।
- आगंतुक छात्र-छात्राएं अपनी समस्या का समाधान पाकर अपने-अपने घरों को लौट चुके थे।व्यवसायी और उनकी पत्नी ने दोनों शिष्यों को प्रणाम किया।शिष्यों ने उनको आशीष दिया।यद्यपि व्यवसायी और उनकी पत्नी दोनों ही साधारण वस्त्र पहने हुए थे,इसके बावजूद उनका तेज-ऐश्वर्य उनके अभिजात्य होने की सूचना दे रहा था।ये दोनों कुछ देर तक तो नीचे बैठे रहे।इसके बाद पत्नी ने गणितज्ञ से मिलने और दर्शनों की इच्छा व्यक्त की।
4.गणितज्ञ का व्यवसायी से मिलन (Meeting of Mathematician and Businessman):
- गणितज्ञ के शिष्यों ने इन्हें रोका नहीं।हालांकि गणितज्ञ से दोनों शिष्यों और छात्र-छात्राओं के अलावा अन्य व्यक्ति नहीं मिल पाते थे।दोनों शिष्य जनसामान्य व मिलने-जुलने वालों को अपने पास ही रोक लेते थे,यहां तक की अब तो छात्र-छात्राएं भी शिष्यों से समाधान पाकर और गणितज्ञ से बिना मिले,दर्शन किए लौट जाते थे,किंतु आज न जाने क्यों उन्होंने इन दोनों को गणितज्ञ के पास जाने दिया।
- व्यवसायी और व्यवसायी की पत्नी ने गणितज्ञ के कक्ष में प्रवेश किया।गणितज्ञ के मुख की दीप्ति से कक्ष प्रकाशित हो रहा था।पत्नी तो एकबारगी अवाक्-सी रह गई।दोनों ने गणितज्ञ को प्रणाम किया।गणितज्ञ ने अपना दाहिना हाथ धीरे से ऊपर उठा दिया।काफी देर वहाँ रहने के बाद व्यवसायी और उनकी पत्नी अपने आवास लौट गए।व्यवसायी के लिए प्रतिदिन तो गणितज्ञ के पास आना संभव नहीं था,परंतु उसने पत्नी को प्रतिदिन अकेले गणितज्ञ के पास जाने की आज्ञा दे दी।
- पत्नी बिना किसी भूल-चूक के गणितज्ञ के पास जाती।वहां वह उस परिसर तथा उसके आसपास की सफाई करती और घंटों चुपचाप बैठी रहती।ऐसे ही बरसात का मौसम था।खूब तेज मूसलाधार बारिश हो रही थी।बिजली की कड़क एवं बादलों की गरज के साथ तेज आंधी के तूफानी झोंकों ने बड़ा भयावह वातावरण बना दिया था,लेकिन व्यवसायी की पत्नी की निष्ठा अडिग थी।वह रोज अपने नियमानुसार गणितज्ञ के कक्ष के पास पहुंच गई।उसका शरीर बेसुध हो रहा था।वस्त्र पूरी तरह से भीग चुके थे।पर्वतमालाओं में चलते समय उसके पांव में कई जगह चोटें लग गई थीं,जिनसे रक्त बह रहा था।एक बार तो एक गहरे गड्ढे में गिरते-गिरते बची थीं।किंतु यदि कोई दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी कार्य होने से रुकता नहीं है।सच्ची सेवा एवं निर्दोष श्रद्धा कभी वंध्या नहीं होती।
- व्यवसायी की पत्नी की इस तरह क्षत-विक्षत एवं बेहाल दशा देखकर गणितज्ञ की करुणा छलक उठी।उनका मौन टूटा।उन्होंने बड़े करुण स्वर में पूछा,बेटी! तुझे क्या चाहिए? तू इतना कष्ट सहकर मेरे पास क्यों आती है?आज इतने आंधी-पानी से भरे संकटकाल में तू कैसे आ गई? बोल बेटी! तुझे क्या चाहिए?
- व्यवसायी की पत्नी को अपने कानों पर सहसा विश्वास नहीं हुआ।गणितज्ञ ने जो कहा उसका अर्थ है,उसकी सेवा सफल हुई।उसने बड़े ही विह्वल स्वर में कहा,श्रीमन् मेरी एक ही संतान है जो सुमार्ग पर नहीं चल रही है।आपके द्वार से कोई निराश होकर नहीं जाता।मेरे पुत्र को योग्य बनाने का आशीर्वाद दें।अपनी बात कहते-कहते वह गणितज्ञ के चरणों पर लेट गई।उसकी दशा देखकर करुणा विगलित स्वर में गणितज्ञ बोले,जा तेरा पुत्र योग्य होगा,उसे लेकर आना।गणितज्ञ का आशीर्वाद पाकर व्यवसायी की पत्नी निहाल होकर घर लौट गई।
5.व्यवसायी के पुत्र का कायाकल्प (Rejuvenation of the Businessman’s Son):
- बाद में व्यवसायी की पत्नी जब अपने पुत्र को लेकर आई,ध्यान से जांचा-परखा तो पता चला कि उसके गले तो बहुत से दुर्व्यसन पड़े हुए हैं ;लेकिन अब क्या हो सकता है? अब तो आशीर्वाद दे दिया है।उन्होंने निश्चय किया कि दोनों शिष्यों के अलावा इस तीसरे शिष्य को मुझे ही तैयार करना पड़ेगा।दूसरे दिन से व्यवसायी के पुत्र का कायाकल्प शुरू कर दिया गया।
- व्यवसायी की पत्नी बहुत प्रसन्न हुई कि गणितज्ञ स्वयं अपनी देख-रेख में उसको तैयार कर रहे हैं।एक बार गलत संस्कार,गलत आदतें गले पड़ जाती है तो बहुत कोशिश करने पर बमुश्किल से छूट पाती हैं।परंतु गणितज्ञ के हाथ से तो कई छात्र-छात्राएं निकल चुके थे।उसके पास नशेड़ी,शराबी,जुआरी,चोर-उचक्के,गुंडे-बदमाश,लड़ाकू आदि कई प्रकार के छात्र-छात्राएं आते थे और अपना निदान पाकर निहाल हो जाते थे।गणितज्ञ उनके दुर्गुण सुधारने में सिद्ध हो चुके थे।
- हालांकि व्यवसायी व व्यवसायी की पत्नी वैद्य-हकीम,डॉक्टरों,ज्योतिषाचार्य और पंडितों की सेवा ले चुके थे,विभिन्न धार्मिक स्थानों की यात्राएं कर चुके थे परंतु उसमें कोई सुधार नहीं हुआ था,सभी के प्रयास निष्फल हो गए थे।
- धीरे-धीरे दुर्व्यसनों से मुक्त होकर व्यवसायी का पुत्र थोड़े ही समय में विभिन्न विद्याएं सीखने में पारंगत हो गया,सभी कलाओं में वह पारंगत हो गया।मेघावी और प्रतिभावान तो वह था ही परंतु दुर्व्यसनों से उसकी प्रतिभा और मेधा पर जंग लग गई थी।
एक दिन व्यवसायी के कर्मचारी व अधिकारी गणितज्ञ के परिसर के पास गए।छिपकर देखा तो व्यवसायी के पुत्र का चेहरा दमक रहा था।गणितज्ञ जो भी सवाल,प्रश्न पूछते थे तो वह तत्परतापूर्वक तथा बड़ी कुशलता व सहज भाव से उनके उत्तर दे रहा था।उन्होंने जब गणितज्ञ तथा व्यवसायी के पुत्र का वार्तालाप को सुना तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ परंतु सच्चाई वही थी जो वे देख रहे थे व सुन रहे थे।
- कर्मचारियों/अधिकारियों ने आकर सारी बातें व्यवसायी और व्यवसायी की पत्नी को बताई।व्यवसायी ने अचरज और खुशी के मिश्रित भावों से पूछा,क्या पुत्र में सचमुच परिवर्तन हो गया है?
- दरअसल धैर्य,लगन एवं हिम्मत के साथ गणितज्ञ हर हालात में पले-बढ़े,बिगड़े हुए बच्चों को सुधारने में दक्ष करने की कला को भी जानते थे।मंजिल की राह में आए हुए हर अवरोधों को धराशायी करने की वे काबिलियत रखते थे।परंतु ऐसे गणितज्ञ विरले ही होते हैं जो गुरु होने की योग्यता रखते हैं।वरना आजकल के रंग-ढंग में गणितज्ञ,शिक्षक स्वयं ही गलत रास्तों पर चलते हुए मिल जाएंगे तो वे छात्र-छात्राओं में क्या सुधार कर सकते हैं अथवा उनसे क्या सुधार की अपेक्षा की जा सकती है।कुछ कर गुजरने का इरादा ही इंसान के लिए हौसला,साहस,आत्मविश्वास को परखने का वक्त होता है।गणितज्ञ देवराज ने फैसला कर लिया कि अनगढ़ को सुगढ़ कैसे बनाया जाए।संघर्ष और कठिन परिश्रम कर असामान्य काम को सामान्य कर दिखाने में दक्ष विरले ही दुनिया में हुआ करते हैं।गणितज्ञ देवराज ने ऐसा ही किया।
- गणितज्ञ देवराज को इस कला में पारंगत देखकर कहा जा सकता है कि आत्मविश्वास,कठिन परिश्रम,धैर्य,लगन इंसान को न केवल कामयाबी की मंजिल तक पहुंचा देता है बल्कि हर कार्य को करने में समर्थ हो सकता है।
उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ द्वारा छात्र का निर्माण (Student Formation by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा छात्र के निर्माण की कला (The Art of Student Creation by Mathematician) के बारे में बताया गया है।
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6.सवाल गलत होने का कारण (हास्य-व्यंग्य) (Reason Why Question is Wrong) (Humour-Satire):
- गणित शिक्षक:यह सवाल तुम्हारे शोर करने के कारण गलत हुआ है।
- छात्र-छात्राएं:बिल्कुल नहीं,सब आपकी गलती है।जब हमने शोर करके आपको अलर्ट किया था तो आपको अपना ध्यान एकाग्र रखना चाहिए था।परंतु आप अलर्ट नहीं हुए और आपने अपना ध्यान हटाया तभी यह सवाल गलत हुआ।
7.गणितज्ञ द्वारा छात्र का निर्माण (Frequently Asked Questions Related to Student Formation by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा छात्र के निर्माण की कला (The Art of Student Creation by Mathematician) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.क्या मंत्र साधना से गणित में पारंगत हो सकते हैं? (Can You Become Proficient in Mathematics Through Mantra Practice?):
उत्तर:मंत्र साधना के साथ-साथ गणित में कठिन परिश्रम,सवालों को हल करने के लिए जूझना,धैर्य,लगन,निष्ठा तथा आत्मविश्वास के द्वारा ही पारंगत हुआ जा सकता है।केवल मंत्र का जाप करने,सरस्वती मंत्र का जाप करने से ही पारंगत नहीं हुआ जा सकता है।
प्रश्न:2.एक सच्चे गणितज्ञ के क्या लक्षण हैं? (What Are the Characteristics of a True Mathematician?):
उत्तर:एक सच्चे गणितज्ञ में गणित का गहराई से ज्ञान होना ही चाहिए।इसके अलावा सदाचार,छात्र-छात्राओं के प्रति समर्पण,प्रेम,सद्व्यवहार,निष्ठा,आत्मविश्वास,धैर्य,लगन,पहल करने की क्षमता आदि कई गुणों का भी होना आवश्यक है ताकि वह छात्र-छात्राओं को,गणित का ज्ञान प्राप्त करने वालों को प्रेरित कर सके साथ ही स्वयं भी गणित में शोध कर सके।
प्रश्न:3.क्या गणितज्ञ को व्यावसायिक दृष्टिकोण रखना चाहिए? (Should a Mathematician Have a Business Approach?):
उत्तर:अपनी आजीविका,जीवन निर्वाह के लिए,पारिवारिक दायित्वों को निभाने तथा सांसारिक कर्त्तव्यों को पूरा करने के लिए व्यावसायिक दृष्टिकोण रखना बुरा नहीं है।परंतु छात्र-छात्राओं के हित,कल्याण का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ द्वारा छात्र का निर्माण (Student Formation by Mathematician),गणितज्ञ द्वारा छात्र के निर्माण की कला (The Art of Student Creation by Mathematician) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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