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Stimulate Instead of Reproof for Success

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1.सफलता के लिए निंदा के बजाय प्रोत्साहित करें (Stimulate Instead of Reproof for Success),छात्र-छात्राएँ सफलता के लिए निन्दा के बजाय प्रोत्साहित करें (Students Should Encourage Each Other Instead of Condemning for Success):

  • सफलता के लिए निंदा के बजाय प्रोत्साहित करें (Stimulate Instead of Reproof for Success),भले यह सफलता शैक्षिक परीक्षा में प्राप्त करनी हो,प्रवेश परीक्षा में प्राप्त करनी हो,जाॅब में प्राप्त करनी हो,किसी संगठन को आगे बढ़ाना हो अथवा कोई भी व्यक्तिगत उन्नति,प्रगति करनी हो।
  • निंदा छात्र-छात्रा,अभ्यर्थी अथवा व्यक्ति का मनोबल तोड़ती है,उसे नीचे गिराती है तथा प्रोत्साहन व्यक्ति को ऊपर उठाता है,आगे बढ़ाता है,निरंतर प्रयास के लिए उकसाता है।
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2.निंदा सम्मोहक होती है (Blasphemy is compelling):

  • छात्र-छात्राओं को व्यक्तिगत रूप से निजी जीवन में और स्कूल-कॉलेज में अपने सहपाठियों के रूप में सामूहिक जीवन में नकारात्मक चिंतन एवं निषेधात्मक चर्चा से बचना चाहिए।ऐसा दूषित चिंतन एवं कलुषित चर्चा यदि आपस की बातचीत में हो रही है अथवा कोई छद्म रूप में छात्र का वेश धारण करके इसको बढ़ावा दे रहा है तो समूह में हो रही चर्चा को तत्काल प्रभाव से जहां का तहाँ विराम दे देना चाहिए; क्योंकि ऐसा करना हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के मनोबल को तोड़ता है और जहां मनोबल क्षीण होता रहे,वहाँ न गतिशीलता,अध्ययन के प्रति उत्साह,परीक्षा के प्रति उत्साह रहता है,ना किसी तरह की उन्नति,प्रगति संभव हो पाती है।
  • जो छात्र-छात्राएं अथवा लोग ऐसा करते हैं:चुगली,निंदा करते हुए सिर्फ और सिर्फ कमियों-कमजोरियों को ही यत्र-तत्र-सर्वत्र उजागर करते-करते हैं,वे केवल कालनेमि व रावण की तरह मीठा बोलने की आड़ में षड्यंत्रकारी ही होते हैं।
    “लखित सुवेष जग वंचक जेऊ।
    वेष प्रताप पूजिअहि तेऊ।।
    उधरहि अंत न होइ निबाहू।
    कालनेमि जिमि रावण राहु।।
  • अर्थात् कई लोग साधु का वेष धारण कर लेते हैं और जनता के द्वारा पूजे जाते हैं,लेकिन एक न एक दिन सच्चाई सामने आ जाती है।जैसे कालनेमि,रावण और राहू की सच्चाई सामने आ गई थी।तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति को उसकी सुंदरता यानी दिखावे,वेशभूषा की जगह उसके चरित्र से पहचानना चाहिए।
  • ऐसे व्यक्ति विद्यार्थियों का वेष धारण करके विद्यार्थियों के बीच में भी मिल जाएंगे,ऐसो का एक ही मकसद होता है,सही लक्ष्य प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की राह में रोड़े अटकाना।उनके द्वारा किए जा रहे श्रेष्ठ कार्य को हानि पहुंचाना।
  • प्राय: छात्र-छात्राएं ऐसी चीजों को नगण्य या क्षुद्र  जानकर उपेक्षा कर देते हैं।ऐसी बातों का जाल इतना सम्मोहक एवं प्रभावशाली होता है कि आम छात्र-छात्रा या व्यक्ति की कौन कहे,विवेकशील माने जाने वाले निष्ठावान लोग भी इसके झांसे में आ जाते हैं; क्योंकि ऐसी चर्चाएं और ऐसा चिंतन प्रायः समीक्षा जैसे आकर्षक शब्दों का सहारा लेकर किया जाता है,लेकिन जो लोग ऐसा करते हैं,जो इसे सुनते-सोचते और एक-दूसरे को संप्रेषित करने का माध्यम बनते हैं,वे यह भूल जाते हैं की समीक्षा का अर्थ केवल दोषों को उजागर करना नहीं है।केवल कमियों,खामियों को इधर-उधर फैलाना नहीं है।समीक्षा में तो दोषों के साथ गुणों को भी शामिल किया जाता है।फिर इसे इधर-उधर फैलाने के बजाय उसका सार्थक विश्लेषण करके एक समुचित निष्कर्ष व सटीक मार्गदर्शन तक पहुंच जाता है।
  • जो बेकार की कमियां-कमजोरियाँ उजागर करते फिरते हैं,इन्हें उधर-उधर फैलाते-बिखराते घूमते हैं,उन्हें न तो अपने सहपाठी छात्र-छात्राओं के भविष्य की चिंता है और न समूह (छात्र-छात्राओं) के बिखरने की।उनका षड्यंत्रकारी मकसद तो बस केवल जैसे बन पड़े,वैसे अध्ययन के प्रति,लक्ष्य के प्रति श्रद्धा व निष्ठा को खंडित करना है।दिन-रात अथक परिश्रम करने वाले छात्र-छात्राओं के मनोबल को तोड़ना है ताकि निरंतर आगे बढ़ते हुए,तीव्र गति से प्रगति करते हुए आगे बढ़ते हुए छात्र-छात्राओं के लक्ष्य को प्राप्त करने से वंचित रखा जा सके; क्योंकि कालनेमि की कुत्सा भले ही कितने मीठे स्वरों में भगवान राम के नाम का उच्चारण करें परंतु उसका वास्तविक मकसद तो बस,अन्य छात्र-छात्राओं के कार्य में बाधाएँ उत्पन्न करना है।

3.निंदा और प्रोत्साहन का प्रसंग (The Context of Blasphemy and Encouragement):

  • एक कॉलेज में छात्रों के दो ग्रुप थे।एक ग्रुप के छात्र-छात्राएं मेहनती,ईमानदार,मिलनसार थे तथा सदैव कड़ी मेहनत करके परीक्षा में सफल होते थे।दूसरे ग्रुप के छात्र नशेड़ी,ड्रग्स का सेवन करने वाले,अय्याश थे तथा सदैव नकल करके तथा अनुचित साधनों का प्रयोग करके उत्तीर्ण होते थे।दूसरे ग्रुप के छात्र,पहले ग्रुप के छात्रों के सामने कई प्रकार की कठिनाइयां,बाधाएँ उपस्थित करते थे,उनके ग्रुप को बिखेरने का काम करते परंतु उनमें कोई भी छात्र छिटककर दूसरे ग्रुप के छात्रों में शामिल नहीं होते थे क्योंकि वे उनकी असलियत जानते थे।
  • एक बार दूसरे शहर से उस काॅलेज में पढ़ने के लिए एक छात्र आया,छात्र सभ्य,सुशील,निडर और मेहनती था।परंतु दूसरे ग्रुप के छात्रों ने कॉलेज में प्रवेश करते ही उसे लपक लिया और उसका भव्य आदर-सत्कार किया।उसने समझा कि इस कॉलेज के छात्र तो बहुत सेवाभावी,कर्त्तव्यनिष्ठ और विनम्र है।इस वजह से वह दूसरे ग्रुप के छात्रों के बीच जल्दी ही घुलमिल गया।परंतु कुछ समय बाद उसे वास्तविकता का पता चला,अब किया क्या जाता,अब तो बहुत देर हो चुकी थी।उस छात्र ने पहले ग्रुप के छात्रों से मिलकर कहा कि मैं दूसरे ग्रुप के छात्रों के साथ घुलमिल गया हूं और मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है।अब उनका साथ छोड़ता हूं तो आपस में लड़ाई-झगड़ा,मारपीट होने की संभावना है।ऐसी स्थिति में अब क्या किया जाए।
  • पहले ग्रुप के छात्रों ने कहा कि तुम दूसरे ग्रुप वाले छात्रों के बीच ही रहो और परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत करते रहो।परंतु एक काम और करके तुम हमारी और सबकी भलाई कर सकते हो,क्योंकि वे उद्दण्डी छात्र हमारे अध्ययन में भी रुकावटें डालते हैं,हमें बात-बात पर जलील करते हैं,हमारी निंदा करते रहते हैं और हमें नीचे गिराने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।
  • उस छात्र ने पूछा दूसरे ग्रुप के छात्रों के बीच रहते हुए मैं आप लोगों की कैसे सहायता कर सकता हूं।पहले ग्रुप के एक छात्र ने कहा कि दूसरे ग्रुप के छात्रों में एक मेधावी,प्रतिभाशाली छात्र है,वही उनके लिए कूटनीति की रचना करता है।आप भी मेधावी हो,विनम्र हो इसलिए उसके साथ आपकी दोस्ती हो जाएगी।आप उसे लगातार हतोत्साहित करते रहो,उसके मनोबल को गिराते रहो,उसकी कमियां गिनाते रहो जिससे वह कूटनीति की व्यूह रचना के पैंतरे चलाना भूल जाए।और एक बार वह अनुत्तीर्ण हो गया तो सारा ग्रुप बिखर जाएगा,उन गुंडे-बदमाशों से मुक्ति मिल जाएगी क्योंकि जब तक वे संगठित है तब तक उनको परास्त करना आसान नहीं है।
  • उस छात्र ने वैसा ही किया।उसने पहले दूसरे ग्रुप के उस छात्रा से साँड-गाँठ बढ़ाई और फिर मीठे-मीठे वचनों से उसकी कमियां गिनाने लगा।भाँति-भाँति से उनके  तौर-तरीकों से उस छात्र का मनोबल तोड़ना प्रारंभ किया।नए प्रवेश लेने वाले छात्र के प्रहारों से उस कुटिल (मेधावी) छात्र का मनोबल टूट गया।उसकी एक एकाग्रता भंग हो गई।वह भूल गया की परीक्षा में किस कूटनीति से नकल की जाए,पहले ग्रुप के छात्रों को कैसे नुकसान पहुंचाया जाय।अंत में वे सारे छात्र (दूसरे ग्रुप के) अनुत्तीर्ण हो गए और वह ग्रुप बिखर गया।अधिकांश छात्र जो अपनी आदत नहीं छोड़ सकते थे परंतु बिखर जाने के कारण कॉलेज छोड़ दिया।कुछ छात्र-छात्राओं ने पहले ग्रुप के छात्रों की तरह ही कठिन परिश्रम,ईमानदारी से पढ़ने का निर्णय लेकर,पहले ग्रुप के छात्रों में शामिल हो गए,उनसे अपने किए गए बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगी।

4.अध्ययन करने के लिए उत्साहित रहे (Be excited to study):

  • उपर्युक्त दृष्टान्त से देखा आपने,ऐसा होता है निंदा का प्रभाव।लगातार चर्चा यदि केवल अपनी-अपने सहपाठियों एवं मार्गदर्शक तंत्र की कमियों-खामियों की होती रहे,तो स्वाभाविक रूप से मन पर निराशा का दबाव पड़ता है।आत्म-स्वीकृति को मनोविज्ञान में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है।यह उत्पन्न तो अपने द्वारा होती है,पर इसमें योगदान समीपवर्ती सहपाठियों एवं तथाकथित शुभचिंतकों का अधिक होता है।इसे अपनों का अपनों पर अत्याचार कह सकते हैं।भले ही फिर कालनेमि ने ही इन अपनों का वेश क्यों न धारण किया हो।
  • छात्र-छात्राएं इस मनोवैज्ञानिक सच्चाई को समझें एवं स्वीकारें।इस सत्य को जानने लें कि यदि निषेधात्मक प्रक्षेपण की हानि को जान लिया जाए और उसके स्थान पर मनोबल बढ़ाने वाली विधेयात्मक (सकारात्मक) प्रक्रिया को अपनाया जाए तो भारी अंतर दीखेगा।यह अन्तर खाई खोदने के स्थान पर दीवार चुनने जैसा होगा।खाई से समतल भूमि नीचे (पतन होना) धँस जाती है ;जबकि दीवार बनाने पर वही स्थान ऊंचा उठता (प्रगति करना) चला जाता है।उपयोगी भी बनता है और दूर से दिखाई पड़ता है।यदि शारीरिक स्वस्थता,मानसिक बुद्धिमत्ता,कामों की कुशलता,व्यक्तित्व की श्रेष्ठता को ढूंढा जाए तो उसकी बड़ी मात्रा हर नेक छात्र-छात्रा में बड़ी मात्रा में अवश्य मिलेगी।फिर भले ही ये छात्र-छात्रा किसी भी विषय से अध्ययन कर रहे हों,जाॅब कर रहे हों,प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे हों अथवा किसी सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक संगठन में हों।उनके उस पक्ष को यदि उत्साहपूर्वक कहा जाए तो इसका प्रभाव व परिणाम बहुत ही उपयोगी होगा।
  • इसे ना तो धोखाधड़ी मानना चाहिए और न ही मिथ्याचार समझना चाहिए।प्रशंसा के योग्य प्रोत्साहित करने योग्य तत्त्व हर किसी में पाए जाते हैं।भले ही उनकी मात्रा थोड़ी कम क्यों ना हो।छोटी सी शारीरिक बीमारी को खत्म करने के लिए जब हजारों-लाखों रुपए खर्च किए जा सकते हैं,तब थोड़ी सी अच्छाई को प्रोत्साहित करने तथा सराहने में क्यों कोताही की जाए।इसमें तो कोई पैसे का खर्च भी नहीं।
  • बिना पैसा खर्च किए किया गया यह कार्य छात्र-छात्राओं के अपने निजी जीवन में,उनके मिशन में,सामूहिक जीवन में या जॉब अथवा किसी संगठन में बहुत बड़ा सहयोग है,प्राण फूँक सकता है।ऐसे में जब बुराई अपने अनेक मायाजाल फैला रही है,तब इसकी बहुत जरूरत है कि परस्पर एक-दूसरे को उनकी अच्छाइयों से अवगत कराया जाए और परस्पर उज्जवल भविष्य के सुनहरे सपने देखें एवं दिखाएँ जाएँ।इस प्रकार का प्रोत्साहन किसी बड़ी से बड़ी धनराशि देने से ज्यादा बड़ा है।धन से केवल सामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति और संसाधनों की वृद्धिभर होती है,लेकिन व्यक्तित्व मर्मस्थलों में प्रसन्नता को संप्रेषित करना,उसे विकसित करना,संभव हो सके तो उसकी तुलना किसी भी अन्य उपकार या उपहार से नहीं हो सकती।
  • इस संबंध में कहने व सुनने वाले,दोनों ही पक्षों को सावधानी बरतनी चाहिए।कहने वाले ध्यान रखें कि यदि सचमुच किसी की कमजोरी या बुराई दूर करनी है तो उसके लिए निंदा या तिरस्कार का तरीका न अपनाया जाए।समूह में तो इसकी चर्चा न ही हो।जिस छात्र-छात्रा में कमी है,उसे एकांत में उसकी कमी को साधारण व आसानी से दूर हो जाने वाली बताया जाए।ध्यान रहे,ज्यादा चर्चा बुराई की ना हो,बल्कि सुधार कैसे संभव है,यह कहा जाए।रचनात्मक सुझाव देना,उपाय देना यदि अपनी सामर्थ्य में हो तो किया जाए।समस्या कुछ भी क्यों ना हो,हर हालत में सुधार होने और उज्जवल भविष्य बन सकते की संभावना को ही प्रधान रूप में कहा और बताया जाए।
  • सुनने वाले सावधानी यह बरतें  कि जो छात्र (सज्जन) नकारात्मक,निंदापरक या चिंताजनक मत व्यक्त कर रहे हैं,उनके कथन को विकृत रूप से प्रस्तुत करने वाला भर माना जाए।यदि उसमें तथ्य हों तो समझ लिया जाए अथवा उन्हें और उनके कथन को उपेक्षित कर दिया जाए।यदि निंदा अध्ययन पद्धति की,गुरु की या माता-पिता की या किसी श्रद्धेय व्यक्ति (भगवान आदि) की हो तो अल्पज्ञ मानकर भूल जाना चाहिए।इसमें न तो व्यथित होने की जरूरत है,न ही अपनी श्रद्धा को विचलित करने की।फिर भी यदि कोई ऐसी नकारात्मक या निंदापूर्ण चर्चा लगातार करें तो ऐसे लोगों से यथासंभव बचना ही ठीक है।ऐसा करने में यह भी ध्यान रहे कि यह बहुत नीतियुक्त और कुशलता से हो।ऐसा ना हो की बात बढ़ जाए और रूठने,असहयोग करने या उपेक्षा करने जैसे नए आरोप मढ़े जाने लगें।तब तो बचाव का उपाय पहले से ही महंगा पड़ेगा।

5.दुर्जनों से दूर रहें (Stay away from evil people):

  • हानिकारक तत्त्वों से अपना समीपवर्ती वातावरण हमेशा भरा रहता है।उनसे आत्मरक्षा की सतर्कता सदा बरतनी पड़ती है।ठीक इसी प्रकार मनोबल गिराने वाली हरकतें भी कहीं ना कहीं,किसी न किसी प्रकार चलती रहती हैं।मक्खी,मच्छर,खटमल जैसे कृमि-कीटक नुकसान पहुंचाने में लगे ही रहते हैं।सांप,बिच्छू जैसे विषैले जीव भी नुकसान ही करते हैं।अनाज,कपड़े और फर्नीचर को बरबाद करने वाले दीमक आदि छोटे-छोटे कीड़ों की करतूतें बड़ी चिंताजनक होती हैं।इन सब के आक्रमणों से होने वाली क्षति का लेखा-जोखा किया जाए तो प्रतीत होगा कि नकारात्मक लोगों,आक्रांताओं से समीपवर्ती वातावरण भरा हुआ है।
  • चोर-उचक्के,ठग,बदमाश विद्यार्थी के वेश में भी मिल जाएंगे।वे अकारण ही आक्रमण करते और आघात पहुंचाते हैं।मित्र बनकर शत्रुता के काम करना,सब्जबाग दिखाकर विश्वासघात करना आज का फैशन है।हवा और पानी में रहने वाले जीवाणु व विषाणु अच्छी-भली काया में किसी छिद्र से घुस पड़ते हैं और भीतर ही भीतर सर्वनाश का सरंजम जुटाते हैं।इन सबसे बचने के लिए तरह-तरह के उपाय निरंतर करने पड़ते हैं।बस,कुछ इसी श्रृंखला में मनोबल गिराने वाले आक्रमण-आघातों को भी जोड़कर रखना चाहिए,जो देखने-सुनने में महत्त्वपूर्ण लगते हैं,किंतु हानि अति पहुंचाते हैं।सभी (छात्र-छात्राओं) को साथ-साथ मिलजुल कर अपने को और अपने मिशन को प्राप्त करना है।इसके लिए जीवन की अनेक आवश्यकताओं की तरह प्रोत्साहन भरा प्रेरक परामर्श आवश्यक है।उसे अच्छे अन्न,जल एवं स्वच्छ-शुद्ध हवा की तरह अपने लिए,अपने लक्ष्य (मिशन) के लिए जुटने-जुटाने हेतु अनवरत प्रयत्नशील रहना चाहिए।
  • याद रखिए यदि आप हर भौंकने वाले कुत्ते पर ध्यान देंगे तो अपने मिशन से भटक जाएंगे।दुर्जन,उद्दण्डी,बदमाश जैसे छात्र-छात्राओं से न तो मित्रता अच्छी होती है और ना दुश्मनी करना अच्छा होता है।कोयला ठंडा हो तो हाथ काले कर देता है और गर्म हो तो जला देता है।इसी प्रकार इस प्रकार के छात्र-छात्राओं का संग करने से बुरी आदतें गले पड़ जाती है और उनसे दुश्मनी करेंगे तो लड़ाई-झगड़ा,दंगा-फसाद करने का डर रहता है।ऐसे लोगों से उदासीन ही रहना चाहिए।हाय-हेलो तक ही संपर्क रखना चाहिए।
  • हमेशा दिमाग में अपने मिशन को प्राप्त करने का चिंतन करना चाहिए।इस मिशन को प्राप्त करने में अनेक विघ्न,बाधाएँ आती हैं,इन बाधाओं से पार पाना,निपटना भी एक कला है।इसीलिए जीवन एक संघर्ष है।जो छात्र-छात्रा जीवन में संघर्ष करने की कला सीख जाता है।वह अपना जीवन निर्विघ्न,सुख,शांति से गुजार देता है,अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है,सफलता-दर-सफलता प्राप्त करके ऊंचाइयां चढ़ता जाता है।इस चढ़ाई में,ऊपर उठने में जहां कहीं फिसल जाता है तो गिरता चला जाता है,फिर उसके पतन का कोई अंत नहीं है।इसलिए अपनी उन्नति,अपने विकास,अपने मिशन में कामयाब होने के लिए बहुत संभलकर चलना पड़ता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सफलता के लिए निंदा के बजाय प्रोत्साहित करें (Stimulate Instead of Reproof for Success),छात्र-छात्राएँ सफलता के लिए निन्दा के बजाय प्रोत्साहित करें (Students Should Encourage Each Other Instead of Condemning for Success) के बारे में बताया गया है।

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6.पढ़ाने के तरीके (हास्य-व्यंग्य) (Teaching Methods) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्र से):आइए बैठिए।क्या आप सिल्वर तरीके से पढ़ना पसंद करेंगे।
  • नवीन:पहले आप यह बताओ कि आपकी कोचिंग में कौन-कौन से तरीके से गणित पढ़ाई जाती है।
  • गणित शिक्षक:प्योर (Pure),इम्प्योर (Impure),सिल्वर,गोल्डन,डायमंड,प्लैटिनम,पाम्पाउस (pompous) आदि कई तरीके हैं।
  • छात्र:छात्र अपना सर पकड़कर बैठ गया।

7.सफलता के लिए निंदा के बजाय प्रोत्साहित करें (Frequently Asked Questions Related to Stimulate Instead of Reproof for Success),छात्र-छात्राएँ सफलता के लिए निन्दा के बजाय प्रोत्साहित करें (Students Should Encourage Each Other Instead of Condemning for Success) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या सफलता के लिए केवल प्रोत्साहन पर्याप्त है? (Is incentive alone enough for success?):

उत्तर:नहीं! सफलता के लिए कठिन परिश्रम,सटीक रणनीति,मन की एकाग्रता,लक्ष्य का निर्धारण,सटीक रणनीति का क्रियान्वयन,समय प्रबंधन,आत्मविश्वास जैसे अनेक गुणों की आवश्यकता होती है।इतना ही नहीं अनेक व्यक्तियों से सहायता-सहयोग (प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष) मिलता है,तब सफलता मिलती है।उदाहरणार्थ यदि माँ समय पर भोजन नहीं बनाकर दें,आपके घर के अनेक कार्य न करे तो सफलता सन्दिग्ध हो जाती है।दरअसल सफलता के लिए स्वयं के अंदर उपर्युक्त गुणों के साथ-साथ अनेक व्यक्तियों शिक्षक,माता-पिता,कोचिंग आदि का सहयोग अपेक्षित है।इन सभी का जोड़ सफलता होती है।

प्रश्न:2.नवयुवकों का पतन क्यों हो रहा है? (Why are young people declining?):

उत्तर:पाश्चात्य देशों की अंधी नकल करने,बुरी संगत करने,धन कमाने के अनैतिक तरीके अपनाने,नशाखोरी,ड्रग्स लेने,अय्याशी करने और उचित शिक्षा न मिलने के कारण पतन हो रहा है।नशेबाजी का तो यह हाल है कि युवक-नवयुतियां चरस,मारिजुआना,एल.एस.डी. वगैरह नशीली चीजों और एम्फीटामींस जैसी नशीली गोलियों के आदी बन गए हैं।इस प्रकार उनका नैतिक व चारित्रिक पतन हो रहा है।

प्रश्न:3.चापलूस से क्या तात्पर्य है? (What is meant by sycophants?):

उत्तर:चापलूस व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दूसरों की झूठी और अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा करता है।इससे मक्खन लगाना भी कहते हैं।जैसे कोई छात्र कामचोर है और चापलूस है तो वह होशियार छात्र-छात्रा से चिकनी-चुपड़ी बातें करके अपना गृहकार्य करवा लेता है।उनकी झूठी प्रशंसा करता है।तुम तो होशियार हो,मेहनती हो,तुम्हारे जैसा कोई कक्षा में है ही नहीं।ऐसी बातें सुनकर दूसरा छात्र फूलकर कुप्पा हो जाता है और उसका काम कर देता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सफलता के लिए निंदा के बजाय प्रोत्साहित करें (Stimulate Instead of Reproof for Success),छात्र-छात्राएँ सफलता के लिए निन्दा के बजाय प्रोत्साहित करें (Students Should Encourage Each Other Instead of Condemning for Success) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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