Sharing Knowledge of Maths Increases
1.गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है (Sharing Knowledge of Maths Increases),गणित का ज्ञान कैसे बढ़ता है? (How Knowledge of Mathematics Grows?):
- गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है (Sharing Knowledge of Maths Increases) बल्कि यह कहें कि ज्यादा तीव्र गति से बढ़ता है तो ज्यादा उचित है।जो छात्र-छात्राएं गणित का ज्ञान अथवा अन्य ज्ञान का संचय करते जाते हैं वह ज्ञान न तो खुद के लिए उपयोगी रहता है और न दूसरों के लिए उपयोगी रह सकता है।आप गणित के सवालों को व समस्याओं को हल करते जाते हैं तथा अपने सहपाठियों को भी सवालों को समझाते हैं तो आपके ज्ञान की पुनरावृत्ति होती है और पुनरावृत्ति से ज्ञान स्थाई होता है।जो विद्यार्थी ज्ञान अर्जित करता रहता है और ज्ञान बांटता नहीं रहता है उसके ज्ञान में वृद्धि नहीं होती है।चाणक्य नीति में कहा है किः
- “अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गौष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्”।। - अर्थात् बिना अभ्यास के शास्त्र (गणित शास्त्र) विष है (बिना अभ्यास के उनका अर्थ और संगति नहीं लगाई जा सकती है),अजीर्ण में भोजन करना विष के समान है।दरिद्र के लिए सभा विष के समान है (सभा में दरिद्र को कोई नहीं पूछता) और वृद्ध पुरुष के लिए युवती स्त्री विष के समान है।
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2.विद्यार्थी ज्ञान का वितरण करें (Distribute Student Knowledge):
- गणित के ज्ञान का वितरण करेंगे उतना ही ज्ञान बढ़ता जाएगा।कोई भी वस्तु अथवा धन खर्च करने या देने से घटते हैं।परन्तु ज्ञान का जितना वितरण करते हैं,जितना साझा करते हैं तो उतना ही बढ़ता जाता है।ज्ञान की पुनरावृत्ति तथा वितरण न करने से हम पढ़ा हुआ भूल जाते हैं।यदि इसका अभ्यास करते रहे,वितरण करते रहें,पढ़ना-पढ़ाना जारी रखें तो यह तीव्र गति से बढ़ता है।
- पुस्तकीय ज्ञान सदैव काम नहीं आता है।पुस्तकीय ज्ञान से तात्पर्य है कि जो ज्ञान बिना समझ कर रटा हुआ है।जब तक पुस्तकीय ज्ञान को समझते नहीं है,उसका अभ्यास नहीं करते हैं,उसको आचरण में नहीं उतारते हैं,दैनिक जीवन में उपयोग में नहीं लाते हैं तो ऐसा ज्ञान समय पर उपयोग में नहीं आता है अर्थात् परीक्षा के समय इस प्रकार के ज्ञान को भूल जाते हैं।
- ज्ञानार्जन करके वे छात्र-छात्राएं नहीं बांटते हैं जिनमें ईर्ष्या की भावना होती है।वे सोचते हैं कि यदि मैं दूसरे को गणित के सवालों व समस्याओं के हल बताऊँगा तो वह मेरे से आगे बढ़ जाएगा।ऐसा विद्यार्थी समुद्र की तरह होता है।जैसे समुद्र नदियों से पानी लेता रहता है और इकट्ठा कर लेता है।इकट्ठा करने से उसमें खारापन पैदा हो जाता है। समुद्र के पानी को न तो प्यासा व्यक्ति पी सकता है और न खेत-खलियान में सिंचाई की जा सकती है। न उसके पानी से बिजली पैदा की जाती है।जबकि नदी का पानी मीठा होता है क्योंकि वह पानी देती रहती है।उससे खेल-खलियान में सिंचाई भी की जा सकती है।नदी के पानी से बिजली भी पैदा की जा सकती है।
3.अपने से कनिष्ठ छात्र-छात्राओं को सवाल बताएं (Tell Questions to Students Junior to You):
- जो भी छात्र छात्राएं आपसे कनिष्ठ है अर्थात् छोटी कक्षाओं के छात्र-छात्राएं यदि आपसे गणित के सवाल व समस्याएं पूछते हैं तो उन्हें समझाना चाहिए।यह नहीं सोचना चाहिए कि इससे आपका समय बर्बाद होगा बल्कि ऐसा करने से आपके समय का उपयोग होगा।इसका अर्थ यह नहीं है कि आप छोटी कक्षा के विद्यार्थियों को ढूंढते फिरे और उनको कहते फिरे कि आपको कोई सवाल नहीं आता है तो मेरे से पूछो।आपको जब भी अवसर मिले,जब भी छोटे छात्र-छात्राएं सवाल व समस्याएं आपसे पूछे तो उन्हें तत्काल समझाने की कोशिश करें।यदि किसी सवाल या समस्या का हल आपको नहीं आता है तो उन्हें बाद में देख कर बताने के लिए कह दें।इस प्रकार गणितशास्त्र तथा अन्य विषयों के ज्ञान की पुनरावृत्ति होती रहेगी,आप अपनी कक्षाओं की पढ़ाई को भूलेंगे नहीं बल्कि स्मरण रहेगी।
- जो छात्र-छात्राएं ज्ञान देने या बांटने के महत्त्व को नहीं समझते हैं वे ज्ञान की वृद्धि के रहस्य को नहीं समझते हैं।छात्र-छात्राएं यदि ज्ञान का संग्रह करते रहेंगे,किसी को ज्ञान नहीं देंगे उनका ज्ञान मृतक के समान है।क्योंकि ज्ञान को बांटने,वितरण करने से जीवन्त रहता है।आगे से आगे बढ़ता रहता है।आज गणितशास्त्र में इतनी अधिक विषय वस्तु हो गई है कि एक विद्यार्थी के लिए एक शाखा का ज्ञान प्राप्त करना मुश्किल हो गया है।इतनी अथाह विषयवस्तु महान गणितज्ञों के त्याग और तपस्या का फल है। वे बाँटते रहे और गणित की विषयवस्तु में वृद्धि होती गई।जो छात्र-छात्राएं गणित का अपार ज्ञान अर्जित करके संचित कर लेते हैं उसे गणितशास्त्र की भाषा में डेडनाॅलेज ही कहा जा सकता है।
- अपने से छोटी कक्षाओं के छात्र-छात्राओं को ज्ञान प्रदान करके उसका एहसान जताना मूर्खता का लक्षण है।महान् गणितज्ञ शिखर पर इसीलिए पहुंच पाते हैं कि वे गणित का ज्ञान प्रदान करके न अपने अंदर अहंकार को पैदा होने देते हैं और न ही किसी पर एहसान जताते हैं,न अपनी प्रशंसा करते फिरते हैं।
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4.ज्ञान बांटने व अर्जन करने में विघ्न का दृष्टांत (An Instance of Obstruction in Sharing and Acquiring Knowledge):
- किसी शहर में गणित शिक्षक अपने शिष्यों को ट्यूशन कराते थे।शिष्यों को मन लगाकर पढ़ाना और बाकी समय योगाभ्यास में बिताना ही उनका नित्य का नियम था।शिक्षक अपने शरीर निर्वाह के लिए शिष्यों से फीस लेते थे तथा जो कुछ आमदनी होती थी उसी में संतोष रखते थे।उन शिष्यों में एक शिष्य बड़ा चंचल था।उसके मन में ऊंची-ऊंची उड़ाने थी।उसका मन कभी सिनेमा हॉल में फिल्म देखने का करता,कभी सुंदर बाग बगीचों की सैर करने का करता,कभी बाजारों और मेलों की गश्त लगाता,कभी नृत्य-गान करने के लिए मन करता,कभी शहर के सुंदर-सुंदर भवनों में रहने का जी करता।सांसारिक भोग विलास में उसका मन रमा रहता।
- एक दिन उसने कल्पना को साकार रूप देने के लिए ठानी और गुरुजी से कहा कि आप तो सदा गणित पढ़ने-पढ़ाने में लगे रहते हो,कभी नगर की सैर भी कर लिया करो।आपके कई सेठ-साहूकार तथा बड़े-बड़े लोग शिष्य होंगे।आपकी मान प्रतिष्ठा बढ़ेगी।शिक्षक ने कहा मुझे तो जाने का अवकाश नहीं है,हाँ यदि तुम चाहो तो जरूर जा सकते हो।
- इधर-उधर महलों की शोभा देखने के लिए शिष्य निकल पड़ा।एक भवन के ऊपर एक सुंदरी अपने बाल सुखा रही थी।उसी को देखकर उसका मन विचलित हो गया।उसने भिक्षा के बहाने उस महल में प्रवेश कर लिया।उस युवती ने उस शिष्य के मन को ताड़ लिया।उसने शिष्य से कई प्रश्न पूछे तथा अपने मन की सच्ची बात बताने के लिए कहा।शिष्य ने युवती पर आसक्त होने की सच-सच बात बता दी।
- युवती ने सोचा कि इसका विद्या ग्रहण करने का समय है और इस समय इसका मन भटक रहा है।इसको सही मार्ग दिखाना चाहिए।उस युवती ने कहा कि तुम सात दिन बाद में आना।सात दिन में युवती ने विरेचन (जुलाब) लिया जिससे उसका शरीर सूखकर कांटा हो गया।जो भी मल विसर्जन हुआ उसे मिट्टी के कुंडों में भरकर इकट्ठा कर लिया।सातवें दिन शिष्य उसी भवन पर आ धमका।युवती ने नौकर से कहकर शिष्य को अन्दर बुलवा लिया क्योंकि वह तो चलने फिरने में असमर्थ थी।युवती को पलंग पर पड़ी देखकर वह पहचान नहीं पाया तथा उसने पूछा कि वह युवती कहां है।पलंग पर लेटी हुई युवती ने कहा कि मैं ही हूँ।उसने कहा जो रूप लावण्य था वह इन कुंडों में भरा हुआ है।कुंडों के कपड़े हटाते ही जोर से दुर्गंध आयी।शिष्य दुर्गन्ध के मारे पीछे हट गया।युवती ने कहा इस मल-मूत्र से भरे हुए शरीर के कारण वह रूप सौन्दर्य था।फिर इस मल-मूत्र से घृणा क्यों कर रहे हो और तब उसे यथार्थ का बोध हो गया।
- वह वापस गुरुजी के पास लौटा और सारा वृत्तांत कह सुनाया।गुरुजी ने कहा कि संसार से उतना ही सम्बन्ध रखना चाहिए जिससे अपना शरीर निर्वाह और सांसारिक कर्त्तव्यों का निर्वाह कर सको।संसार में आसक्ति रखोगे तो इस तरह के अनेक प्रलोभन मिल जाएंगे।तुम्हारा ब्रह्मचर्य खंडित हो जाएगा। ज्ञान प्राप्ति के मार्ग से भटक जाओगे।सही रास्ता यही है कि ज्ञानार्जन करो और उसका वितरण करते रहो,उसी से आनंद मिलेगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है (Sharing Knowledge of Maths Increases),गणित का ज्ञान कैसे बढ़ता है? (How Knowledge of Mathematics Grows?) के बारे में बताया गया है।
5.गणित में शून्य अंक प्राप्त करने से सिर ऊंचा (हास्य-व्यंग्य) (Getting Zero Marks in Mathematics Raises Head) (Humour-Satire):
- पिता (पुत्र से):गणित जैसा विषय लेकर भी तुमने आज तक ऐसा काम नहीं किया कि मेरा सिर ऊँचा हो गया हो।
- पुत्र (पिताजी से):पिताजी इस बार मैंने बहुत प्रयत्न करके गणित में शून्य अंक प्राप्त किया है।शून्य अंक गणित में आज तक किसी को नहीं मिला है क्योंकि आजकल सत्रांक के नाम पर बीस में बीस अंक स्कूल से बोर्ड कार्यालय भेज दिया जाता है।
6.गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है (Sharing Knowledge of Maths Increases),गणित का ज्ञान कैसे बढ़ता है? (How Knowledge of Mathematics Grows?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्नः1.मनुष्य का वास्तविक धन क्या है? (What is the Real Wealth of Man?):
उत्तरःविद्या और ज्ञान ही मनुष्य का वास्तविक धन और सौन्दर्य है।यह गुप्त धन है।विद्या भोग,यश और सुख को देने वाली है।विद्या गुरुओं की भी गुरु है। विदेश जाने पर विद्या मनुष्य का बंधु,सहायक है। विद्या सर्वश्रेष्ठ देवता है।विद्या के समान कोई धन नहीं है।जो मनुष्य विद्या से विहीन हैं,वह पशु है।
प्रश्न:2.माता-पिता को बालक-बालिकाओं को विद्या प्रदान करने के लिए कैसा बर्ताव करना चाहिए? (How Parents Should Treat Boys and Girls to Gain Knowledge?):
उत्तर:पाँच वर्ष तक बालक-बालिकाओं को लाड प्यार करें।पाँच वर्ष से पन्द्रह वर्ष तक कठोर अनुशासन में रखना चाहिए ताकि वह विद्या ग्रहण कर सके।क्योंकि विद्या ग्रहण करना तप और साधना है।आधुनिक युग में ही नहीं बल्कि सभी युगों में विद्या का महत्त्व रहा है।विद्या की आवश्यकता केवल विद्यार्थी काल में ही नहीं रहती है बल्कि किसी जाॅब,कार्य को करने के लिए उससे संबंधित ज्ञान और विद्या की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है।
प्रश्नः3.विद्या अनंत है तो उसका ज्ञान कैसे प्राप्त किया जा सकता है? (Knowledge is Eternal So How Can Its Knowledge be Attained?):
उत्तर:नीति में कहा है कि:
“अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्या ह्यल्पश्च कालो बहुविघ्नता च।
यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसैर्यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्।।
अर्थात् शास्त्र अनंत है।विद्या बहुत है।समय बहुत थोड़ा है।विघ्न बहुत है।इसलिए जो सारभूत है वही उपासनीय है।जैसे हंस पानी में से दूध ले लेता है। इसलिए माता-पिता को अपने बालक बालिकाओं को विद्या अवश्य पढ़ाना चाहिए।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है (Sharing Knowledge of Maths Increases),गणित का ज्ञान कैसे बढ़ता है? (How Knowledge of Mathematics Grows?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
Sharing Knowledge of Maths Increases
गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है
(Sharing Knowledge of Maths Increases)
Sharing Knowledge of Maths Increases
गणित का ज्ञान बांटने से बढ़ता है (Sharing Knowledge of Maths Increases)
बल्कि यह कहें कि ज्यादा तीव्र गति से बढ़ता है तो ज्यादा उचित है।
जो छात्र-छात्राएं गणित का ज्ञान अथवा अन्य ज्ञान का संचय करते जाते हैं
वह ज्ञान न तो खुद के लिए उपयोगी रहता है और न दूसरों के लिए उपयोगी रह सकता है।
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