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Sexual Harassment of Working Women

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1.कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न कैसे रोकें? (How to Prevent Sexual Harassment of Working Women?),कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण (Sexual Exploitation of Working Women):

  • कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न कैसे रोकें? (How to Prevent Sexual Harassment of Working Women?) क्योंकि आज कामकाजी महिलाओं का ही नहीं बल्कि छात्राओं का यौन शोषण,बलात्कार कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं।निर्भया बलात्कार के दोषियों को फाँसी की सजा होने के बावजूद यौन-शोषण,बलात्कार बदस्तूर जारी है।
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2.यौन उत्पीड़न के दृश्य (Sexual harassment scenes):

  • दृश्य एक:सीधी जिले (25 मई,2024) के मझौली थाना क्षेत्र में बृजेश प्रजापति (20),संदीप (21),राहुल (24) और लवकुश प्रजापति (24) तथा दो अन्य आरोपियों ने आवाज बदलने वाले मैजिक वाॅइस एप के जरिए गवर्नमेंट काॅलेज की आदिवासी सात छात्राओं को स्काॅलरशिप का झांसा देकर उनके साथ दुष्कर्म किया।आरोपी एप से काॅलेज की महिला टीचर (रंजना मैम बनकर) की आवाज में बात करते थे।प्रजापति पेशे से मजदूर है।उसने यूट्यूब से आवाज बदलने वाले ऐप्स की मदद से आवाज बदलकर छात्राओं को निशाना बनाया।मुख्य आरोपी और उसके दोस्तों ने सीधी के गवर्नमेंट काॅलेज वाॅटसएप ग्रुप से छात्राओं के नम्बर निकाले थे।
  • दृश्य दो:(2 फरवरी,2024) सत्रह साल की लड़की की माँ की शिकायत के आधार पर बी एस येदियुरप्पा के खिलाफ पाॅक्सो के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।महिला ने आरोप लगाया कि दो फरवरी,2024 को येदियुरप्पा ने अपने आवास पर मुलाकात के दौरान उनकी बेटी का यौन-उत्पीड़न किया।महिला की पिछले महीने कैंसर के कारण मौत हो गई थी।
    टिप्पणी:बी एस येदियुरप्पा पर यौन-उत्पीड़न का आरोप हमें राजनीति से प्रेरित लगता है।
  • दृश्य तीन:(27 मई, 2024) डिजिटल और वर्चुअल हो रही दुनिया में बच्चों का ऑनलाईन यौन-शोषण एक छिपी हुई महामारी बनता जा रहा है।यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के चाइल्डलाइट ग्लोबल चाइल्ड सेफ्टी इंस्टीट्यूट के अध्ययन में पाया गया है कि हर एक सेकण्ड बच्चे की कोई सेक्सुअल तस्वीर डिजिटल दुनिया में प्रकट होती है और हर स्कूल,हर क्लासरूम और हर देश में बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं।अध्ययन के अनुसार,दुनिया में पिछले 12 महीने में 30 करोड़ से ज्यादा 18 साल से कम के बच्चे ऑनलाइन यौन-शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार हुए।अमेरिका जो अपने आपको सबसे सभ्य और विकसित देश समझता है वहाँ चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मैटैरियल (सीएसएएम) में तो हर 9वाँ व्यक्ति इसमें शरीक है।
  • मासूमों को ऑनलाइन शिकार इस प्रकार बनाया जाता है:
    सेक्सुअल तस्वीरें,वीडियो लेना,भेजना और दूसरों से शेयर करना।
    सेक्सटार्शन:बच्चों की सेक्सुअल छवियों के नाम पर फिरौती माँगना।
    डीपफेक से बच्चों की सेक्सुअल तस्वीरें बनाना।
    बच्चों के साथ ऑनलाइन यौन सम्बन्ध।

3.प्राचीन और आधुनिक युग में यौन उत्पीड़न (Nature of sexual harassment in ancient and modern times):

  • पुरुषों द्वारा महिलाओं का यौन उत्पीड़न मानव समाज की प्राचीनतम समस्याओं में से एक है।प्रारंभ से ही पुरुषों ने स्त्री को भोग्या समझा है तथा सदैव उसे इसी दृष्टिकोण से अवलोकित एवं अधिगृहीत किया है।सामान्यतः इस भोगवादी संस्कृति के सदियों के पोषण से यौन उत्पीड़न को समाज में बाह्य रूप से नैतिकता के आधार पर बुरा समझा जाता रहा,लेकिन व्यावहारिक रूप से सभी ने यहां तक की महिलाओं ने भी इसे स्वीकृति प्रदान कर दी।परिणामस्वरूप,पुरुषों द्वारा किए गए इस उत्पीड़न का प्रतिरोध एवं विरोध यदा-कदा ही सार्वजनिक हुआ।समय एवं परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ-साथ यौन उत्पीड़न का स्वरूप भी बदलता रहा।
  • प्राचीन एवं मध्य युग एवं ब्रिटिश अधीनता में यौन उत्पीड़न का स्वरूप एवं व्यापकता उतनी नहीं थी,जितनी की स्वाधीन भारत के गत 50 वर्षों में बढ़ी है।स्वाधीन भारत में आए राजनीतिक एवं आर्थिक परिवर्तन जैसे महिलाओं के अधिकारों में वृद्धि,शिक्षा का प्रसार,रोजगार के नए आयाम एवं अवसर,सरकार की समतावादी नीति,आर्थिक उदारीकरण आदि ने यहाँ के पारिवारिक परिवेश को प्रभावित किया है।परिवार के लिए उच्च जीवन स्तर की आकांक्षा,उच्च शिक्षा एवं कभी-कभी मात्र जीवनयापन के लिए महिलाओं ने घर की चारदीवारी से निकलकर कार्यालयों,प्रतिष्ठानों,विद्यालयों एवं अन्य अनेक प्रकार के संस्थानों में पुरुषों के साथ मिलकर कार्य करना प्रारंभ कर दिया।
  • पुरुषों के एकाधिकार में महिलाओं का प्रवेश होने से पुरुष वर्ग में संस्कारगत प्रतिक्रिया हुई।स्त्री को निम्न स्तर पर भोग्या समझने वाला पुरुष अपने समान एवं अपने ऊपर या नीचे कार्य करते देख उसे सहन नहीं कर पाया जिससे स्त्री भोगवाद के संस्कार में विकृति आने लगी जिसने महिलाओं के प्रति अशोभनीय भाषा एवं व्यवहार को जन्म दिया।इस अशोभनीयत को कार्यालय में कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न की संज्ञा दी गई।

4.कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न (Sexual harassment of working women):

  • आधुनिक संदर्भ में यौन उत्पीड़न को परिभाषित करना अत्यंत दुष्कर कार्य है।समाज में महिलाओं के साथ साधारण छेड़छाड़ को अधिक बुरा नहीं माना जाता यहां तक की महिलाएं भी इसे बुरा नहीं मानती।लेकिन,यह छेड़छाड़ किस सीमा के बाद यौन उत्पीड़न में परिवर्तित हो जाती है यह निर्धारित करना कठिन है।
  • उच्चतम न्यायालय ने 12 अगस्त 1997 को दिए गए एक वाद के निर्णय में इसे परिभाषित करने का प्रयास किया है।इसके अनुसार यौन उत्पीड़न में पुरुषों के महिलाओं के प्रति वह सभी अवांछित व्यवहार एवं शब्द जैसे यौन सम्बन्धी संकेत,यौन सूचक टिप्पणियां,उद्देश्यपूर्ण शारीरिक संपर्क का प्रयास यौन कार्य की माँग या प्रस्ताव करना,अश्लील साहित्य दिखाना तथा यौन आधारित अन्य किसी प्रकार की अश्लील एवं अशोभनीय हरकत करना सम्मिलित हैं।
  • कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न कार्यालय के सहकर्मी,कार्यालय आते-जाते समय बाहर के लोग एवं स्वयं नियोक्ता भी कर सकते हैं।न्यायालय का ध्यान सहकर्मी एवं बाहर के लोगों पर अधिक हो,जबकि स्थिति यह है कि नियोक्ता एवं पदाधिकारी अधीनस्थ महिला के साथ अनियोजित अथवा सुनियोजित तरीके से यौन उत्पीड़न अधिक करते हैं।राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा का कहना है कि “महिला आयोग के समक्ष बहुत सी शिकायतें आती हैं,जिनमें नियोक्ताओं द्वारा महिला कर्मचारियों के यौन शोषण की बात कहीं होती है।”
  • नियोक्ता अथवा पदाधिकारी अधीनस्थ महिला को असमय जैसे रात्रि में काम पर लगाने,कार्यालय में काम का अतिरिक्त बोझ डालकर देर तक कार्य करने के लिए दबाव डालने,कार्य की महत्ता का बहाना कर कार्यस्थल से बाहर ले जाने एवं इस सारे कार्य में महिलाओं पर यौन संबंधी दबाव डालने का प्रयास करते हैं।महिलाओं द्वारा प्रतिरोध करने पर उन्हें पदावनत करने,उनके कैरियर को हानि पहुंचाने एवं नौकरी से निकाल देने का भय दिखाते हैं,दूसरी ओर उन्हें उनकी हाँ में हाँ मिलाने और समर्पण भाव बनाए रखने से होने वाली लुभावनी उपलब्धियों का आश्वासन देते हैं।
  • यह सुनियोजित षड्यंत्र भी यौन उत्पीड़न के दायरे में आना चाहिए,क्योंकि महिलाओं के सामने ऐसी स्थिति में दो ही विकल्प रह जाते हैं कि या तो वह नौकरी छोड़ दे या फिर इसी को नियति मानकर चुपचाप शांत भाव से सहती चली जाए।आज की बेरोजगारी एवं महंगाई की विषम परिस्थितियों में दूसरा विकल्प ही सहगामी एवं उपयोगी प्रतीत होता है।अतः यह यौन उत्पीड़न यौन शोषण में परिवर्तित हो जाता है।
  • यौन उत्पीड़न के इस एक पक्षीय विश्लेषण में यह मान लिया गया है कि यौन उत्पीड़न में उत्पीड़क केवल पुरुष ही होता है तथा महिलाएं केवल उत्पीड़ित हो ही सकती हैं,उत्पीड़क नहीं।मनोवैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि विरोधी सेक्स होने के कारण ‘स्त्री’ एवं ‘पुरुष’ दोनों में परस्पर सेक्स संबंधी भावनाएं कमजोरी होती है।अंतर केवल इतना है कि पुरुषों में यह तत्काल आक्रामक रूप में दिखाई देने लगती है,लेकिन महिलाओं में उतनी आक्रामक एवं शीघ्र दृष्टव्य नहीं होती।लेकिन कुछ महिलाएं यौन संबंधी मामलों में असफल रहने पर आक्रामक होकर किसी पुरुष पर यौन संबंधी आरोप लगा देती हैं।
  • समाज में महिलाओं का एक वर्ग ऐसा भी है जो उच्च समाज के अनुरूप जीने की इच्छा रखता है,लेकिन आर्थिक विपन्नता के कारण संभव नहीं हो पाता।यह महिला वर्ग उच्च समाज के धनाढ्य उद्योगपतियों एवं उच्च पदाधिकारियों के आसपास रहने के लिए नौकरियां करती हैं।’सैक्स’ के संबंध में ‘जहां चाह वहां राह’ के सिद्धांत का पालन करने वाला यह वर्ग ‘सैक्स’ को अपनी इच्छापूर्ति के लिए एक साधन के रूप में प्रयोग करता है।अपने नियोक्ता एवं ‘बॉस’ को आधुनिक वस्त्रों एवं लुभावनी भाव-भंगिमाओं द्वारा अपनी ओर आकर्षित कर यौन उत्पीड़न के लिए उकसाती हैं,और सफलता मिल जाने पर अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर इच्छा पूर्ति करती हैं।इस प्रकार महिलाओं द्वारा पुरुषों का यौन उत्पीड़न भी तथाकथित यौन उत्पीड़न की परिभाषा में सम्मिलित किया जाना चाहिए।इस प्रकार के उत्पीड़न से कार्य संस्थान का वातावरण दूषित हो जाता है,क्योंकि उनकी सहकर्मिणी महिलाओं में इन महिलाओं की तड़क-भड़क,जीवन-स्तर एवं ‘बाॅस’ से घनिष्ठता को लेकर प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है,और दूसरी और ‘बाॅस’ भी अन्य महिला कर्मियों से इसी प्रकार की मांग करने लगते हैं जिससे यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि होने लगती है।
  • यौन उत्पीड़न एक मनोवैज्ञानिक समस्या अधिक है।उत्पीड़न करने वाले पुरुष की मानसिकता एक विशेष प्रकार के उच्चता एवं निम्नता का भाव लिए रहती है।कुछ पुरुष धन एवं अधिकार प्राप्त करके यह मानसिकता बना लेते हैं कि वह अब धन अथवा अधिकार के बल पर जो चाहें,जिसे चाहे प्राप्त कर सकते हैं।यह भाव उन्हें यौन उत्पीड़न के लिए प्रेरित करता है और यदि कभी सफलता नहीं मिलती,तब कुंठा एवं अपमान से यह उत्पीड़न का भाव अति तीव्र एवं आक्रामक हो जाता है।कुछ पुरुष जो धन,संपत्ति अथवा अधिकार प्राप्त करने की लालसा रखते हैं तथा उसके माध्यम से नाना प्रकार के सुख भोग की कामना करते हैं,लेकिन जीवन में प्राप्त नहीं कर पाते उनकी मानसिकता कुंठित एवं लुंठित हो जाती है जिससे अपनी महिला सहकर्मी,महिला बॉस,महिला नियोक्ता के प्रति अशोभनीय व्यवहार एवं टिप्पणियां करते हैं।
  • सामान्य मानसिकता वाले पुरुष भी अल्प काल के लिए इस प्रकार का आचरण कर सकते हैं।इसका कारण दूरदर्शन,टीवी,फिल्मों आदि में पश्चिमी देशों के कार्यक्रम एवं कम-से-कम वस्त्र पहनने की महिलाओं की प्रतिस्पर्धा का प्रदर्शन एवं महिला कर्मी द्वारा स्वयं ही फैशन एवं स्वछंदता का प्रदर्शन होता है।स्वयंसेवी संस्था ‘साक्षी’ द्वारा इस संबंध में किए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पुरुषों की दृष्टि में “उन्हीं औरतों का उत्पीड़न अधिक होता है जो ढीठ,वाचाल और आक्रामक होती हैं…. जो बिना शादी किए किसी पुरुष के साथ रहती हैं और जो खुले अंग वाले पश्चिमी वस्त्र पहनती हैं।” इसी सर्वेक्षण में पुरुषों की राय में “केवल विदेशी कंपनियों में जहां पश्चिमी कार्यशैली और उन्मुक्त तौर-तरीके से काम होते हैं और जहां औरतों को कुछ भी कहने एवं करने की स्वतंत्रता होती है,वहीं यह सब होता है।”
  • यह बात तो मानी जा चुकी है कि पश्चिम के प्रभाव से ‘यौन’ के संबंध में भारत में भी नैतिक मूल्यों में परिवर्तन आया है जिससे ‘यौन स्वच्छंदता’ व्यापक होती जा रही है,जिसके कारण यौन उत्पीड़न में वृद्धि हुई है।

5.यौन-उत्पीड़न के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश (Supreme Court guidelines on sexual harassment):

  • सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश जे एस वर्मा,न्यायमूर्ति सुजाता वी मनोहर और बी एन कृपाल सम्मिलित थे,ने 12 अगस्त 1997 को विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान सरकार वाद में निर्णय देते हुए यौन उत्पीड़न के मामलों में निम्नलिखित दिशा-निर्देश दिए हैं:
  • (1.)संस्था एवं कार्यस्थल के नियोक्ताओं एवं जिम्मेदार अधिकारी का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह यौन उत्पीड़न के मामले में इसके निदान,निष्पादन एवं दण्ड प्रावधान के लिए आवश्यक उपाय करे।
  • (2.)यौन उत्पीड़न में ऐसे सभी अवांछित एवं अशोभनीय शब्द,संकेत एवं व्यवहार आता है जो यौन भावनाओं से संबंधित है जैसे-यौन सूचक शब्द या टिप्पणी,उद्देश्यपूर्ण शारीरिक संकेत या संपर्क,यौन कार्य की मांग या अनुरोध,अश्लील साहित्य दिखाना आदि।
  • (3.)सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को यौन उत्पीड़न रोकने के लिए परस्पर व्यवहार एवं अनुशासन से संबंधित प्रावधानों में यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए उचित प्रावधानों का समावेश किया जाना चाहिए।निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को औद्योगिक रोजगार (चालू आदेश) अधिनियम 1946 के तहत इससे संबंधित प्रावधानों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।इन नियमों को उचित प्रकार से वितरित,सूचित एवं प्रकाशित किया जाना चाहिए।महिलाओं को उचित कार्य की दशा एवं वातावरण प्रदान करने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • (4.)प्रत्येक संस्था में नियोक्ता को यौन उत्पीड़न की शिकायत सुनने एवं उसके निस्तारण के लिए समुचित प्रणाली विकसित करनी चाहिए।एक शिकायत समिति जिसकी अध्यक्ष कोई महिला हो,का गठन भी किया जा सकता है।इस समिति में कम-से-कम आधी महिला सदस्य होनी चाहिए।
  • (5.)यौन उत्पीड़न के मामलों में नियमानुसार भारतीय दंड या अन्य किसी कानून के तहत दंड सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • (6.)ऐसे मामलों में उत्पीड़ित महिला को स्वयं का या उत्पीड़क का स्थानांतरण कराने का अधिकार मिलना चाहिए।
  • (7.)कर्मचारियों में विशेष रूप से महिला कर्मचारियों में जागरूकता एवं ऐसे मुद्दे उठाने की निर्भयता उत्पन्न करनी चाहिए।
  • (8.)यदि यौन उत्पीड़न कार्यालय से बाहर के व्यक्ति द्वारा किया जा रहा हो तो नियोक्ता को उस महिला को समुचित मार्ग निर्देशन एवं सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
  • (9.)केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस आदेश द्वारा जारी दिशा-निर्देश एवं कानून निजी उद्योगों में भी प्रभावी करने के लिए प्रयास करने चाहिए।
  • (10.)यह दिशा-निर्देश मानवाधिकार संरक्षण कानून 1993 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन नहीं करेंगे।
  • (11.)यह दिशा-निर्देश कठोरता से लागू किए जाने चाहिए तथा यह तब तक बाध्यकारी होंगे तथा लागू माने जाएंगे जब तक इस दिशा में उपयुक्त कानून नहीं बनाए जाते।

6.यौन-उत्पीड़न सम्बन्धी स्वयंसेवी संस्था ‘साक्षी’ का सर्वेक्षण (Survey of Sakshi, a non-profit organization on sexual harassment):

  • यौन उत्पीड़न संबंधी समस्या की प्रकृति और उसकी व्यापकता जानने के लिए संस्था ‘साक्षी’ द्वारा दिल्ली के औद्योगिक प्रतिष्ठानों एवं शैक्षणिक संस्थाओं में एक सर्वेक्षण कराया गया।सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:
  • (1.)यौन उत्पीड़न में अशाब्दिक यौन व्यवहार,अपमानजनक,भद्दी भाषा,वस्त्रों एवं शारीरिक अंगों को लेकर अशोभनीय टिप्पणियां,कार्यालय या विद्यालय से बाहर मिलने के लिए सोद्देश्य निमंत्रण सम्मिलित हैं।परिसर में महिलाओं के लिए प्रतिकूल वातावरण विद्यमान है।
  • (2.)उत्पीड़न करने वाले अधिकांशतः वह व्यक्ति जो पदाधिकारी थे तथा जो उत्पीड़ित को प्रभावित कर सकते थे।छात्राओं के विषय में साथी छात्र,अध्यापक एवं बाहरी व्यक्ति भी सम्मिलित थे।
  • (3.)इन मामलों में महिलाओं ने जहाँ शिकायत की वहाँ इसे ध्यान से सुना नहीं गया तथा जहाँ सुना गया वहां चुप रहने की सलाह दी गई।
  • (4.)यौन उत्पीड़न को सहने या नौकरी अथवा संस्थान छोड़ देने के अतिरिक्त महिलाओं के पास अन्य कोई विकल्प नहीं था।

7.यौन-उत्पीड़न रोकने के प्रयास (Efforts to prevent sexual harassment):

  • नैतिक रूप से भारत में यौन उत्पीड़न रोकने के लिए अनेक उपाय किए गए,लेकिन कानूनी रूप से इसे प्रभावी ढंग से रोकने के लिए कभी प्रयास नहीं किया।उच्चतम न्यायालय ने अपने 12 अगस्त,1997 के निर्णय में एक प्रभावशाली कानून यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाने के लिए दिशा-निर्देश दिए हैं।इन दिशा-निर्देशों को कानून बनाने तक प्रभावी बना दिया गया है।न्यायालय द्वारा प्रभावी कानून बनाने पर इसलिए बल दिया गया है,क्योंकि वर्तमान कानून में यौन उत्पीड़न की पुष्टि केवल प्रत्यक्षतः स्पष्ट और शारीरिक लक्षणों के आधार पर ही हो सकती है।अश्लील टिप्पणी या संकेत आदि दंडनीय परिधि से बाहर चले जाते हैं।महिलाएं इस कारण चुपचाप बनी रहती हैं,क्योंकि इसे सिद्ध करना मुश्किल होता है तथा कानूनी प्रक्रिया साक्ष्य अधिनियम एवं न्यायालय की कार्य प्रणाली इतनी त्रासद,अपमानजनक एवं अशोभनीय है कि साधारण भारतीय महिला को न्याय मिलना बहुत कठिन है।
  • उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न रोकने के लिए जो पहल की है उस पर बुद्धिजीवियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया हुई है।समाज विज्ञानी,मनोवैज्ञानिक एवं धार्मिक मनीषी यौन उत्पीड़न को एक मानसिक एवं सामाजिक विकृति के रूप में देखते हैं।अतः उसका समाधान भी उसी प्रकार करना चाहते हैं उनके अनुसार कानून से समस्या दब तो सकती है,लेकिन उसका निदान संभव नहीं है।
    स्वयंसेवी संस्थाएं जो महिलाओं के उत्थान एवं कल्याण के लिए कार्य कर रही हैं वह इसे अपनी जाति मानती है।उनका कहना है की समुचित एवं प्रभावी कानून न होने के कारण वह महिलाओं को यौन उत्पीड़न के मामले में न्याय दिलाने में असहाय पाती हैं।यदि इस प्रकार का कानून बन जाएगा तो वह इसका उपयोग कर सकेंगी।
  • उच्चतम न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के मामले को उठाकर इस संबंध में लोगों को चिंतन-मनन करने के लिए प्रेरित किया है।कुछ दिशा-निर्देश भी दिए हैं,लेकिन यह पहल अंतिम नहीं है।आवश्यकता है कि इस विषय को गंभीरता एवं तार्किक दृष्टि से विश्लेषण कर इसे व्यापक बनाएं।इसके अन्य विभिन्न अनछुए पहलुओं को उजागर कर एक प्रभावी कानून का निर्माण किया जाए।समस्या भले ही सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक है,लेकिन इसका तात्कालिक उपाय कानून ही है।कानून का भय उत्पीड़कों को नियंत्रित करेगा और महिलाओं में या उत्पीड़तों में साहस का संचार करेगा।
  • 2013 यौन-उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रभावी कानून भी बन चुका है इसके बावजूद उक्त नजीर यह स्पष्ट करती है कि लोगों में कानून का भय नहीं है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न कैसे रोकें? (How to Prevent Sexual Harassment of Working Women?),कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण (Sexual Exploitation of Working Women) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How to Prevent Sexual Atrocity?

8.मेरे पास भेजा नहीं है (हास्य-व्यंग्य) (I Don’t Have a Brain) (Humour-Satire):

  • एक बार एक शिक्षक की पत्नी प्रश्न पूछने लगी।चार घण्टों के बाद भी पत्नी पूछना बन्द करने का नाम ही नहीं ले रही थी और पति बेचारा सारे प्रश्नों के जवाब दिए जा रहा था उसे बड़ा गुस्सा आ रहा था।तो पत्नी ने देखा कि पति महोदय नाराज हो रहें हैं तो वापसी में थोड़ा हल्का करने के लिहाज से कहा-देखिए ना,कितने सुन्दर छात्र-छात्राएं आ रहे हैं।
  • पति (शिक्षक) चिढ़ के बोला:सुन्दर तो बहुत लग रहे हैं,मगर इन्हें सवाल समझाने के लिए मेरे पास भेजा नहीं है।

9.कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न कैसे रोकें? (Frequently Asked Questions Related to How to Prevent Sexual Harassment of Working Women?),कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण (Sexual Exploitation of Working Women) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या यौन-उत्पीड़न के बारे में कानून बनाया गया है? (Has a law been made to prevent sexual harassment?):

उत्तर:यौन-उत्पीड़न,यौन-शोषण,बलात्कार आदि को रोकने के लिए कठोर कानून बनाये हुए हैं।पाॅक्सो एक्ट जैसे कानून है।द सेक्सुअल हर्षमेन्ट ऑफ वूमन एट वर्कप्लेस एक्ट 2013 है।

प्रश्न:2.क्या कानून द्वारा यौन-उत्पीड़न रोका जा सकता है? (Can sexual harassment be prevented by law?):

उत्तर:कानून द्वारा तात्कालिक रोक लगायी जा सकती है।परन्तु इसके स्थायी समाधान के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करायी जानी चाहिए।महिलाओं व छात्राओं को भी आत्म-रक्षा के गुर सीखने चाहिए।लोगों की मानसिकता गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के द्वारा ही बदली जा सकती है।

प्रश्न:3.यौन-उत्पीड़न और यौन-शोषण में क्या अन्तर है? (What is the difference between sexual harassment and sexual exploitation?):

उत्तर:यौन उत्पीड़न में संकेतों,शाब्दिक तथा आशाब्दिक भाषा,द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग किया जाता है।जबकि यौन-शोषण में शारीरिक रूप में शोषण किया जाता है।यौन-उत्पीड़न बीज है तो यौन-शोषण वृक्ष है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा कामकाजी महिलाओं का यौन उत्पीड़न कैसे रोकें? (How to Prevent Sexual Harassment of Working Women?),कामकाजी महिलाओं का यौन शोषण (Sexual Exploitation of Working Women) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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