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Science in India by 20th Century

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1.20वीं सदी तक भारत में विज्ञान (Science in India by 20th Century),20वीं सदी तक भारत में गणित और विज्ञान का विकास (Development of Mathematics and Science in India by 20th Century):

  • 20वीं सदी तक भारत में विज्ञान (Science in India by 20th Century) और गणित का विकास का यह यह पार्ट-2 (Part-2) है।इसमें प्राचीन काल से 20वीं सदी तक गणित और विज्ञान का भारत में विकास और प्रमुख वैज्ञानिकों और गणितज्ञों के बारे में बताया गया है।
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2.15वीं से 18वीं सदी तक विज्ञान का विकास (Development of science from the 15th to the 18th century):

  • चिकित्सा के क्षेत्र में मध्यकाल का मुख्य योगदान निदानीय तकनीक (Diagnostic Techniques) के क्षेत्र में है।आहार विज्ञान (Dieatics) पर विशेष बल दिया गया।रोगी के सामान्य स्वास्थ्य का परीक्षण,उसके मूत्र (Urine) की जांच तथा नाड़ी (pulse) की गति के निरीक्षण को निदान का मुख्य आधार बनाया जाता था।इस काल के चिकित्साशास्त्री यह मानते थे कि रोग के अंतिम निदान की तुलना में उसकी तात्कालिक रोकथाम अधिक महत्त्वपूर्ण है और इस दृष्टि से विभिन्न प्रकार की चटनी और मुरब्बों का निर्माण किया जाता था।
  • दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस काल में विभिन्न प्रकार के तेलों (oils) तथा सुगंधियों (perfumes) को चिकित्सकीय व्यवस्था का अनिवार्य घटक माना जाता था। मध्यकाल में चिकित्साशास्त्र की अनेक अच्छी पुस्तकें तैयार की गई।बरनी ने अपनी कृति ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ में चिकित्सकों की एक लंबी सूची प्रस्तुत की है।मौलाना बदरुद्दीन,मौलाना सदरुद्दीन तथा अजीजुद्दीन मध्यकालीन युग के प्रमुख चिकित्सक थे।इस काल में रचित चिकित्साशास्त्र की कुछ प्रमुख कृतियां हैं।अल्बैदारी मुक्तसर की ‘दारीलिमा-ए-तसरीह’,तिसत की’ चिकित्सा कालिका’; मोहम्मद मुमीन हुसैन की ‘तुहफत-अलमुमीनी’,मोहम्मद रजा की ‘रियाज-ए-आलमगिरी’,ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि देश में अनेक ऐसे जर्राह या शल्य चिकित्सक थे जो न केवल शल्य-चिकित्सा (operation) करते थे वरन कृत्रिम अंग (Artificial Limbs) बनाकर लगा सकते थे।
  • एम. एल्फिन्सटन (हिस्ट्री ऑफ इंडिया,1857) के शब्दों में,… उनकी औषधियों की भाँति उनकी शल्य चिकित्सा भी विशिष्ट प्रकार की थी,विशेषकर जबकि वे शरीर-रचना विज्ञान (physiology) से अनभिज्ञ थे।वे काटकर पथरी (stone) निकाल देते थे,मोतियाबिंद को समाप्त कर देते थे और कुशलता के साथ गर्भाशय से भ्रूण निकाल देते थे।उन लोगों को कम से कम 127 प्रकार की शल्य-चिकित्सा का ज्ञान था।”
  • आधुनिक भारत में विज्ञान के विकास की जड़ें इटली,फ्रांस,इंग्लैंड,जर्मनी जैसे यूरोपीय राष्ट्रों में 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में हुए वैज्ञानिक विकास में विद्यमान हैं।अपने व्यापारिक हितों के संवर्द्धन होते भारत आई पुर्तगाली,डच,फ्रांसीसी तथा ब्रिटिश कंपनियों का भारत की प्राकृतिक संपदा से अभिभूत होना और उनके दोहन की उनमें इच्छा पैदा होना स्वाभाविक था।निःसंदेह भारत में आधुनिक विज्ञान के युग के शुभारंभ का श्रेय ब्रिटिशजनों को जाता है।
  • पाश्चात्य वैज्ञानिक विकास के भारत में प्रवेश का पहला संकेत 18वीं शताब्दी में मिलता है जब भारत में वानस्पतिक अन्वेषणों (Botonical Investigations) की शुरुआत हुई।मद्रास तट पर जाॅन गेरहार्ड कोयनिंग (जो बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्राकृतिक इतिहासकार पद पर नियुक्त हुए) ने पौधों के अनेक नमूने एकत्र किए और उन्हें जांच के लिए लुण्ड यूनिवर्सिटी (स्वीडन) प्रेषित किया।कलकत्ता में रॉबर्ट किड ने व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद पौधों के परिपोषण हेतु ‘Royal Botanical Garden’ की स्थापना की रूपरेखा तैयार की।विलियम रॉक्स बर्ग के प्रयासों से इसकी स्थापना सन् 1787 में शिबपुर (हुगली नदी के पश्चिमी किनारे पर) में हुई।कालांतर में ‘भारतीय वनस्पति विज्ञान के पिता’ के रूप में विख्यात राॅक्स बर्ग ने ‘Hortus Bengalonsis’ (1814) नामक कृति में 3500 वनस्पतियों की विस्तृत सूची प्रस्तुत की।राॅक्स बर्ग ने ‘Flora Indica’ तथा ‘Plantae Coromandallance’ नामक दो अन्य पुस्तकों की भी रचना की।

3.19वीं सदी में भारत में विज्ञान का विकास (Development of Science in India in the 19th Century):

  • विद्त जनों में इस बारे में मतैक्य है कि 19वीं शताब्दी भारत में विज्ञान के विकास की दृष्टि से कदाचित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।इसी शताब्दी में एक ओर तो वनस्पति विज्ञान (Botany),भूगर्भ विज्ञान (Geology),त्रिकोणमिति (Trigonometry),मौसम विज्ञान (Metereology),जंतु विज्ञान (Zoology) आदि क्षेत्रों में नए-नए विकास हुए और दूसरी ओर सन् 1818 में ‘ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे’ (Trigonometrical Survey),सन् 1857 में ‘जियोलॉजिकल सर्वे’ (Geological Survey) तथा ‘बोटानिकल सर्वे’ (Botanical survey) जैसे सर्वेक्षण-संस्थानों की स्थापना हुई।
  • आधुनिक भारत में विज्ञान के विकास में भारतीय वैज्ञानिकों का भी विशिष्ट योगदान है।अंग्रेजों ने विज्ञान की उन्हीं विधाओं में विकास को प्रेरित किया जो उनके साम्राज्यवादी हितों के अनुकूल थीं।सन् 1876 ईस्वी में भारतीयों द्वारा ‘इंडियन एसोसिएशन फाॅर दी कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ (Indian Association for the Cultivation of Science) की स्थापना की गई।आधुनिक भारत में विज्ञान के विकास में तीन भारतीयों का विशिष्ट योगदान है।जगदीश चंद्र बसु,सी. वी. रमन और मेघनाथ साहा।
  • जगदीश चंद्र बसु (1858-1937) ने विद्युत चुंबकीय तरंगों (Electro-magnetic waves) पर प्रयोग किये और सूक्ष्म रेडियो तरंगों (Shortradio waves) को जन्म दिया।ज्ञातव्य हो कि बसु ने ‘वायरलेस टेलिग्राफी’ (wireless Telegraphy) का अपना उपकरण प्रसिद्ध वैज्ञानिक मार्कोनी से पहले ही बना लिया था।बसु ने ‘Response in Living and Non-Living’ (1902),’plant Response’ (1906),’Comparative Electric physiology’ (1907) तथा ‘Resources on the Irritability on plants’ (1913) नामक पुस्तकों की रचना भी की।
  • सी. वी. रमन (1888-1970) ने अनेक वर्षों के प्रयोग के उपरांत यह सिद्ध किया की अत्यंत भिन्न रासायनिक गुणों (Chemical properties) वाले पदार्थों में तरंग परिवर्तन के साथ प्रकाश का विकिरण (Radiation) हो सकता है।इसे ही रमन प्रभाव (Roman Effect) के नाम से जाना जाता है।सन् 1930 में रमन को भौतिक विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।क्रिस्टल विज्ञान (Crystallography) के क्षेत्र में भी रमन ने एक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किये।सन 1968 ईस्वी में रमन ने खोज की कि फूल का जो हिस्सा प्रकाश के सात रंगों को अपने में अवशोषित (Absorb) करता है,उस हिस्से में एक पट्टी (Layer) ऐसी होती है जो फूल के विविध रंग प्रदर्शित करती है।
  • मेघनाथ साहा (1893-1956) ने मुख्ततया विकिरण दबाव (Selective Radiation Pressure),वर्णक्रम विज्ञान (Spectroscopy),आयन मंडल (Ionosphere) से रेडियो तरंगों के प्रवाह,आणविक विघटन (Molecular Dissociation),सूर्य से रेडियो तरंगों के प्रवाह आदि क्षेत्रों में कार्य किया।20 वर्ष की अल्पायु में साहा ने ‘तापीय आयनीकरण’ (Thermal Ionization) का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया।यह खगोल भौतिकी (Astro-physucs) तथा खगोल विज्ञान (Astronomy) के क्षेत्र में अति महत्त्वपूर्ण विकास था।

4.भारत में विज्ञान का विकास संक्षिप्त में (Development of Science in India in Brief):

  • प्रारंभ से 3500 ईस्वी पूर्व तक:इसे पाषाण काल (Stone-Age) कहते हैं।इस काल में अनेक प्रकार के दैनिक जीवनोपयोगी औजारों का निर्माण किया गया जिनसे काटने,खोदने और छीलने का काम लिया जाता था।प्रारंभ में ये औजार पत्थर के होते थे,बाद में ताँबे और काँसे के औजार भी बनाए जाने लगे।
  • 3500 से 1500 ईस्वी पूर्व (सैन्धव काल):सैन्धव जन कांस्य के निर्माण और प्रयोग से भली-भाँति परिचित थे।काँस ताँबे में टिन मिलाकर धातुशिल्पियों द्वारा बनाया जाता था।वे प्रतिमाओं और बर्तनों के साथ-साथ कई तरह के औजार और हथियार आदि भी बनाते थे जैसे कुल्हाड़ी,आरी,छुरा और बरछा आदि।मुद्रा निर्माण (मिट्टी की मुहर बनाना) और मूर्ति-निर्माण (मिट्टी की पुतलियां बनाना) भी सैन्धव जनों के महत्त्वपूर्ण शिल्प थे।स्वर्णकार चांदी,सोना और रत्नों के आभूषण बनाते थे।
  • 1500 से 1000 ईस्वी पूर्व तक:यह वेदों का काल है।ऋग्वेद में विस्तार से अनेक व्याधियों एवं उनके निदान की चर्चा है।नक्षत्रों के चक्र,सूर्य-चंद्रग्रहण आदि के बारे में वैदिक जनों को जानकारी थी।यजुर्वेद में 27 या 28 नक्षत्रों की चर्चा की गई है।’कृतिका’ को इनका प्रधान माना गया है।अथर्ववेद में ज्योतिष,औषधिशास्त्र,वनस्पति विज्ञान विषयक पर पर्याप्त चर्चा है।
  • 1000 से 600 ईस्वी पूर्व तक:यह ब्राह्मण,अरण्यक और उपनिषदों जैसे महान दार्शनिक ग्रन्थों का काल है।इनमें खगोल विज्ञान,शरीर क्रिया विज्ञान,ब्रह्माण्ड चक्र (Cosmic cycle) विषयक विवरण मिलते हैं।गणितीय समस्याओं पर भी यत्र-तत्र चर्चा की गई है।इसी काल में ‘पंचभूत का सिद्धांत’ दिया गया।
  • 600 से 500 ईस्वी पूर्व:वह काल वैज्ञानिक विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था।पहली बार इस काल में स्टील का निर्माण किया गया।चिकित्सकीय ज्ञान का पहली बार आयुर्वेद के रूप में संहिताकरण (Codification) किया गया।नक्षत्रों के बारे में ज्ञान का क्रमशः विस्तार हुआ।अंतरिक्ष (space),समय (Time),गति (Motion) तथा ध्वनि (Sound) के भौतिकीय अवधारणाओं का विकास हुआ।
  • 400 ईस्वी पूर्व से 400 ईस्वी तक:गणित और चिकित्सा शास्त्र के विकास की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण काल है।खगोलीकी में राशि-चक्र का विकास हुआ।चरक और सुश्रुत ने चिकित्साशास्त्र को समृद्धि प्रदान की।जड़ी-बूटियों के चिकित्सकीय उपयोग की संभावनाओं का पता लगाया गया।’पंचभूत’ का सिद्धांत और विकसित हुआ।
  • पांचवीं शताब्दी ईस्वी:भौतिक विज्ञान के विकास की दृष्टि से काल महत्त्वपूर्ण रहा।वात्सायन के ‘न्याय भाष्य’ में ध्वनि (Sound) से जुड़े प्रश्नों पर विचार किया गया।प्रशस्तपाद के ‘पदार्थसंग्रह’ में अणु अंतरिक्ष,समय,ध्वनि और गति जैसे तत्त्वों पर नए सिरे से विचार किया।आर्यभट ने पृथ्वी के परिभ्रमण (Rotation) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
  • छठी शताब्दी ईस्वी:विज्ञान के विकास की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण काल ‘अमरकोश’ (शब्दकोश) की रचना,जिसमें वनस्पतियों,जीव-जंतुओं,खनिजों और धातुओं का विस्तृत विवरण दिया गया।वृहत संहिता तथा पंच-सिद्धान्तिका की रचना भी इसी काल में हुई।
  • 7वीं-8वीं शताब्दी ईस्वी:खगोलिकी और गणित के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण विकास हुए।प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त की रचनाओं का ‘सिंहहिंद’ और ‘अरकन्द’ नाम से अरबी में अनुवाद हुआ।वाग्भट्ट की ‘अष्टांगहृदय’ का ‘अष्टांकर’ के नाम से अरबी में अनुवाद हुआ।
  • नवीं-दसवीं शताब्दी ईस्वी:महावीर ने ‘गणितसार संग्रह’ नामक ग्रंथ में ‘शून्य’ से जुड़े महत्त्वपूर्ण ज्यामितीय प्रश्नों पर विचार किया।गोविंद भागवत ने ‘रसहृदय’ खगोल विज्ञान के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार प्रस्तुत किये।चिकित्सा की ‘सिद्धि पद्धति’ का भी भारत के कुछ भागों में विकास हुआ।इसमें व्याधियों के खनिजों द्वारा निराकरण पर विशेष बल दिया गया।
  • 11वीं-12वीं शताब्दी ईस्वी:श्रीधर ने युगपत समीकरणों के हल हेतु एक नई पद्धति विकसित की।भास्कर द्वितीय की ‘सिद्धांत शिरोमणि’ (चार खण्डों में) भारतीय गणित तथा खगोल विज्ञान का चरमोत्कर्ष देखने को मिलता है।
  • 13वीं-15वीं शताब्दी ईस्वी:इस काल में भारतीय विज्ञान पर विदेशों का बढ़ता हुआ प्रभाव परिलक्षित होता है।’सारंग धर संहिता’ में मूत्र और नाड़ी की जांच द्वारा व्याधियों के निराकरण का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया।रसशास्त्र से संबंधित तीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों-‘रसनव’, ‘रसरत्नाकर’ तथा रस-रत्न समुच्चय’ की रचना हुई।नारायण पंडित द्वारा ज्ञान को पुनर्शोधित और संवर्द्धित किया गया।परमेश्वर ने खगोल विज्ञान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  • 16वीं शताब्दी ईस्वी:महाराष्ट्र के गनेश दैवज्ञ द्वारा खगोलिकी के क्षेत्र में नवीन खोजें।मुगलों की रणनीति में बारूद और बंदूकों के प्रयोग की शुरुआत।अबुल फजल की आइने-ए-अकबरी में महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक विकासों का समेकित विवरण उपलब्ध।
    17वीं शताब्दी ईस्वी:हेण्ड्रिक वान रीड (1686-1703) द्वारा भारत की वनस्पतियों पर ‘Hortus Malabarius’ नाम से 12 खण्डों में पुस्तक की रचना की गई ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में भी पशुओं और वनस्पतियों का विस्तृत विवरण दिया गया।
  • 18वीं शताब्दी ईस्वी:यह शताब्दी इस अर्थ में महत्त्वपूर्ण रही कि खगोलकी और गणित के क्षेत्र में अरबी और भारतीय ज्ञान का समागम हुआ।महाराज सवाई जयसिंह द्वारा 1723-27 की अवधि में उज्जैन,दिल्ली,मथुरा,बनारस और जयपुर में वेधशालाओं का निर्माण कराया गया।जगन्नाथ द्वारा प्लूटोमी की ‘Almagest’ और यूक्लिड की ‘The Elements’ के अरबी संस्करण का अनुवाद किया।
  • 19वीं शताब्दी ईस्वी:1800:मद्रास में Trigonometrical Survey Department की स्थापना।
    1818:कोलकाता में Trigonometrical Survey की स्थापना।
    1851:टाॅमस औल्ढम के प्रयासों से Geological Survey of India की स्थापना।
    1896:मुंबई में प्लेग रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना।
    1900:कोडई कोनाल में सोलर फिजिक्स लेबोरेट्री की स्थापना।

5.प्राचीन भारत के प्रमुख गणितज्ञ (Leading mathematicians of ancient India):

  • आर्यभट:प्राचीन काल के ज्योतिर्विदो में आर्यभट का नाम सर्वोपरि है।पांचवीं शताब्दी में पाटलिपुत्र में जन्मे,आर्यभट ने 13 वर्ष की उम्र में ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रंथ की रचना की।सूर्य और चंद्रग्रहण लगने का कारण सबसे पहले आर्यभट ने वैज्ञानिक तरीके से व्याख्यायित किया।सर्वप्रथम आर्यभट ने यह बताया कि वर्ष में 365.2586805 दिन होते हैं जो आधुनिक खगोलशास्त्रियों की गणना (365.2563504) के अति निकट है।इसके अतिरिक्त आर्यभट ने अंकगणित,बीजगणित और ज्यामिति के अनेक सिद्धांतों एवं सूत्रों का प्रतिपादन किया।
  • ब्रह्मगुप्त:ब्रह्मगुप्त ने सातवीं शताब्दी में पूर्वार्द्ध में ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त’ नामक ग्रंथ लिखा जो ज्योतिष का एक प्रामाणिक ग्रंथ है।इसके द्वारा लिखित खंड-खाद्य ग्रंथ भी प्रसिद्ध है।
  • भास्कराचार्य द्वितीय:’सिद्धांत शिरोमणि’ भास्कराचार्य (12वीं सदी) की सुप्रसिद्ध रचना है।मध्यकाल के यूरोपीय खगोलशास्त्री यह मानते थे कि पृथ्वी चपटी है जबकि भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया की पृथ्वी चपटी न होकर गोल है।भास्कराचार्य ने ‘आकर्षण के सिद्धांत’ का भी प्रतिपादन किया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में 20वीं सदी तक भारत में विज्ञान (Science in India by 20th Century),20वीं सदी तक भारत में गणित और विज्ञान का विकास (Development of Mathematics and Science in India by 20th Century) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित में खराब पोजीशन (हास्य-व्यंग्य) (Poor Position in Mathematics) (Humour-Satire):

  • छात्र की गणित में अचानक खराब पोजीशन होने पर पिताजी उसे विद्यालय लेकर पहुंचे।
  • पिता:गणित शिक्षक से,छात्र की गणित में इतनी खराब पोजीशन कैसे हो गई?
  • गणित शिक्षक:फिलहाल कुछ कह नहीं सकते टेस्ट करना होगा,समय लगेगा बताने में।
  • पिता:श्रीमान इसके पास ज्यादा समय नहीं है,परीक्षा बिल्कुल निकट है,इसलिए टेस्ट फटाफट और सटासट करो।

7.20वीं सदी तक भारत में विज्ञान (Frequently Asked Questions Related to Science in India by 20th Century),20वीं सदी तक भारत में गणित और विज्ञान का विकास (Development of Mathematics and Science in India by 20th Century) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.वैज्ञानिक वराहमिहिर के बारे में बताएं। (Tell us about the scientist Varahamihira):

उत्तर:वराहमिहिर की गणना चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के नवरत्नों में की जाती है।वराहमिहिर ने  चार ग्रंथ लिखे हैं जिनमें ‘बृहतसंहिता’ सर्वाधिक प्रसिद्ध है।वराहमिहिर ने दशमलव के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।अरब विद्वानों ने इसे भारत से ही ग्रहण किया।वराहमिहिर ने ज्योतिष के संबंध में तीन अति महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे:पंच सिद्धांतिका,बहज्जातक और लघु सिद्धांत संहिता।

प्रश्न:2.मध्यकाल के दो प्रमुख भारतीय गणितज्ञ कौन थे? (Who were the two prominent Indian mathematicians of medieval period?):

उत्तर:मध्यकाल के दो महान गणितज्ञ श्रीधर (11वीं शताब्दी) तथा भास्कर (12वीं शताब्दी) थे।श्रीधर ने अपनी कृति ‘गणितसार’ में गुणा,भाग,वर्गमूल,भिन्न,घन,शून्य,प्राकृतिक संख्याओं,साझेदारी तथा ठोस ज्यामिति का विस्तार से वर्णन किया।भास्कर ने ‘लीलावती’,’बीजगणित’ और ‘सिद्धांत शिरोमणि’ की रचना की।’लीलावती’ में अंकन पद्धति,भिन्न,व्यावसायिक नियम,पूर्णांक,ब्याज तथा क्रम-परिवर्तन विषयक नियमों का विस्तार से वर्णन मिलता है।’बीजगणित’ में निर्देशित अंकों,नकारात्मक परिणामों तथा सरल एवं युगपत समीकरणों से संबंधित नियम मिलते हैं।सिद्धांत-शिरोमणि में गोले या वृत्त से जुड़े गणितीय मुद्दों पर विचार-विमर्श मिलता है।

प्रश्न:3.गणित की भारत में प्राचीन प्रमुख रचनाएं कौन-सी है? (What are the ancient major works in the India of mathematics?):

उत्तर:श्रीधर की गणितसार,भास्कर की लीलावती,बीजगणित,सिद्धांत शिरोमणि,नारायण पंडित की गणितपाली कौमुदी आदि प्रमुख रचनाएं हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा 20वीं सदी तक भारत में विज्ञान (Science in India by 20th Century),20वीं सदी तक भारत में गणित और विज्ञान का विकास (Development of Mathematics and Science in India by 20th Century) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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