Role of Youth in Building India
1.भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका (Role of Youth in Building India),राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का योगदान (Contribution of Youth in Nation Building):
- भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका (Role of Youth in Building India) महत्त्वपूर्ण ही नहीं परम आवश्यक है।यदि भारत को अखंड राष्ट्र रखना है तो युवा चेतना को आगे आना होगा,अपने आपको जोड़ना होगा।युवा शक्ति एकजुट होगी तो राष्ट्र स्वयंमेव एकजुट,अखंड हो जाएगा।
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2.अखंड भारत के लिए युवाओं को आगे आना होगा (Youth will have to come forward for undivided India):
- ऐतिहासिक संकट की चुनौतियों का मुकाबला समय-समय पर युवा शौर्य ही करता आया है।जब कभी राष्ट्र एवं विश्व मानवता पर संकट के तेजाबी बादल छाए हैं,युवा शौर्य ने प्रचंड प्रभंजन बनकर उन्हें छिन्न-छिन्न किया है।कथाएं वैदिक इतिहास की हों या उपनिषदों की,यही सच बताती है।
- युवाओं को राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाने के लिए आगे आना चाहिए।युवा शौर्य एवं तेज ही राष्ट्र की एकता,अखंडता व सुरक्षा का आधार है।इसके लिए केवल वे ही युवा जिम्मेदार नहीं,जो राष्ट्रीय सेवाओं में कार्यरत हैं,बल्कि वे भी हैं,जो देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग कामों में संलग्न हैं।जो जहां हैं,वहीं उसकी अपनी विशेष भूमिका है।अपने काम को ईमानदारी से करते हुए वह जनसेवा,राष्ट्रीय सौहार्द्र,भ्रष्टाचार से संघर्ष जैसे कितने महत्त्वपूर्ण काम कर सकता है।प्राकृतिक आपदाओं व राष्ट्रीय विपत्ति में जांबाज सैनिक की भूमिका निभा सकता है।सैनिक केवल उतने ही नहीं है,जिन्होंने वर्दी पहन रखी है।वे भी सैनिक हैं,जो राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाने के लिए प्राणपण से संघर्ष कर रहे हैं।
- आज का जग जाहिर सच है कि स्वार्थ और सत्ता के लिए मारा-मारी मची हुई है।इसके लिए कितनी ही तिकड़में,कुचक्र व षड्यंत्र रचाए जाते हैं।इन षड्यंत्रकारियों को केवल अपने हितों की चिंता है,फिर इसके लिए कितनी जानें क्यों न चली जाएं,कितने ही घर क्यों न बरबाद हो जाएँ।राष्ट्र की नींव कितनी ही खोखली क्यों ना होती जाए!! हर कीमत पर ये खास बने रहना चाहते हैं।ऐसे खास लोगों को आम लोगों की कोई चिंता नहीं है।ये तो बस,धर्म और जाति के नाम समाज का बंटवारा करना चाहते हैं।भरपूर भ्रष्टाचार करके तिजोरी भरने की ख्वाहिश इन्हें व्याकुल किए रहती है।ऐसे खास लोगों के कौरवी कुचक्र को ध्वस्त करना केवल युवा पराक्रम का कार्य है।युवा समय-सर्प की गति को मनचाहा मोड़ देकर उसे विषहीन कर सकते हैं।
- स्वयं को गढ़ना और दूसरों को गढ़ने में सहयोग करना यदि युवाओं की जीवन-नीति बन जाए तो देश के यौवन में नए प्राण फूँके जा सकते हैं।युवा गुमराह होते ही इस कारण हैं,क्योंकि प्रतिभाशाली एवं सफल युवक-युवतियों को इन्हें निहारने एवं गढ़ने-तराशने की फुरसत नहीं होती।ये तो सफलता के नए-नए शिखरों पर चढ़ने में कुछ इस कदर खो जाते हैं कि इन्हें गिरे हुओं को उठाने का होश नहीं रहता।युवा जीवन के पुरोधा युगाचार्य स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र के युवाओं से बीते युग में कहा था:’BE AND MAKE’ अर्थात् ‘बनो और बनाओ।’ स्वामी जी का यह कथन आज भी महामंत्र की तरह है।इसका अनुष्ठान करके राष्ट्र के युवा समस्याओं के कारण नहीं,बल्कि उनके निवारण व निराकरण के साधन बन सकते हैं।
- युवा पीढ़ी को किसी एक क्षेत्र में नहीं,बल्कि उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ना है।हर क्षेत्र में उन्हें अपनी प्रतिभा और व्यक्तित्व की यशस्वी छाप छोड़नी है।इस महत् कार्य के लिए उनके जीवन को सँवारने-निखारने की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए।प्रतिभाशाली युवा व्यक्तित्व इस कार्य के लिए समय एवं धन का नियोजन करने में पीछे ना रहें।दीप से दीप जलाने की यह प्रक्रिया यदि चल पड़ी तो पूरा देश जगमग हुए बिना न रहेगा।युवाओं को इसे राष्ट्र कर्त्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
3.सभी क्षेत्रों के विकास में युवाओं की भूमिका (Role of youth in development of all sectors):
- इतिहास के पृष्ठ इस बात की सफल पुष्टि करते हैं कि आज तक विश्व के किसी भी राष्ट्र में,स्थिति में जब भी युगांतरकारी परिवर्तन हुए,युवाओं की भूमिका सर्व प्रमुख एवं अग्रणी रही।सिकंदर,नेपोलियन,हिटलर,कमालपाशा,विवेकानंद आदि नामों की फेहरिस्त बहुत लंबी है,जिन्होंने समकालीन व्यवस्था को न सिर्फ प्रभावित किया,बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई परिवर्तन पैदा किए।सबसे प्रमुख तथ्य तो यह है कि युवाओं की भूमिका सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक,आर्थिक,सांस्कृतिक यानी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अहम रही है और उसने समय-समय पर नितान्त असंभव लगने वाले लक्ष्यों की पूर्ति हेतु पूर्ण कटिबद्धता से प्रयास किया और हैरतअंगेज रोमांच दिखाए।
- सिकंदर का विश्व विजय अभियान इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में भारतीय धर्म व संस्कृति का झंडा फहरा दिया।शंकराचार्य और विवेकानंद जैसी शख्सियत यह पर्याप्त रूप से साबित करती है कि धर्म व दर्शन जैसे गूढ़ क्षेत्रों में भी युवा वर्ग की सफल भागीदारी मुमकिन है।कहा जाता है कि नौजवानों में होश कम जोश ज्यादा होता है,परंतु इस तथ्य के परिणाम केवल नकारात्मक ही नहीं,सकारात्मक भी रहे हैं।युवाओं में एक स्वतः स्फूर्ति ऊर्जा होती है जो उनका हौसला अफजाई करती है।युद्ध,शांति,समाज सुधार आदि प्रत्येक स्थिति में युवाओं के कार्य महत्त्वपूर्ण एवं निर्णायक साबित होते रहे हैं।युवाओं में शीघ्र निर्णय क्षमता होती है,जो कई बार अनुभव पर भारी पड़ जाती है।
- आज हमारा राष्ट्र संक्रमण काल व सत्रांस के जिस दौर से गुजर रहा है,उसे एक सशक्त विचारवान और ऊर्जायुक्त युवा वर्ग की बेहद जरूरत है,जो समाज,अर्थ-व्यवस्था,राजनीति व संस्कृति के क्षेत्र में प्रचंड वेग के साथ बढ़ते जा रहे अराजकतावाद के खिलाफ सफल जंग का ऐलान कर व्यवस्था को एक नई स्वस्थ दिशा प्रदान कर सके और युवाओं की बेहतरीन परंपरा को कायम रख सके।
- समाज में जाति प्रथा,दहेज प्रथा,वर्गवाद जैसी सांघातिक समस्याओं का बोलबाला है और उनसे उपजे परिणाम आज भी कई बार हमें आदिम युग की तरफ ले जाते हैं।इन कुप्रथाओं की जंजीरों को तोड़ने के लिए युवा वर्ग को आगे आना चाहिए।परंपरागत जातीय मानकों को छिन्न-भिन्न करने के लिए युवक-युवती अंतर्जातीय विवाह एवं प्रेम विवाह को बढ़ावा दे सकते हैं,जिससे बहुत हद तक दहेज प्रथा का भी उन्मूलन संभव होगा।कुछ अंगों में यह हो भी रहा है,परंतु यह नाकाफी है।राष्ट्र निर्माण की शुरुआत परिवार और समाज में ही हो सकती है।युवकों को ही नहीं युवतियों को भी आगे आना होगा,क्योंकि लड़ाई जब परंपराओं और प्रथाओं से हो तो काम आसान नहीं होता।
- देश का बड़ा हिस्सा आज भी ऐसा है जिसके लिए आजादी,मताधिकार जैसे शब्द बेमानी हैं।इनके चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए युवा वर्ग को आगे आना होगा।डॉक्टरों की तालीम हासिल करने का लक्ष्य नर्सिंग होम एवं कार बंगला रहेगा तो दूरदराज के गांवों में पीड़ित मानवता की सेवा कौन करेगा और प्रशासन में जाने का लक्ष्य यदि भौतिकवाद हो,तो मजलूमों की परेशानी कौन समझेगा? भौतिकता की चकाचौंध से बाहर आना जरूरी है और यह युवावर्ग के लिए एक सशक्त चुनौती है।भ्रष्टाचार की जड़े गहराती जा रही है और छोटे से लेकर बड़े स्तर तक यह समानांतर रूप से चल रही है।इस डायनासोर से लड़ने के लिए मानसिक और नैतिक कटिबद्धता की जरूरत है और युवा वर्ग को इसके लिए तैयार होना होगा।
4.भारत में विभिन्न क्षेत्रों में गिरावट को युवा रोके (Youth to stop decline in various sectors in India):
- संस्कृति के क्षेत्र में भी निरंतर गिरावट आ रही है और अपसंस्कृति का वर्चस्व इस प्रकार बढ़ रहा है कि हमारी उन संस्थाओं को भी खतरा पैदा हो गया है,जिनका रहना हमारे लिए बेहतर होता।मसलन परिवारों में सदस्यों के बीच उत्तरदायित्व और नैतिकता की भावना को ग्रहण लगता जा रहा है,बच्चों का स्वस्थ मानसिक विकास विभिन्न चैनलों के कार्यक्रमों की भेंट चढ़ चुका है और हिंसा एवं अपराध का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है।ऐसी स्थिति में हमारे देश का युवा वर्ग सशक्त इच्छाशक्ति व नैतिकता का परिचय देते हुए हमारी सांस्कृतिक अस्मिता पर आसन्न संकट की स्थिति को टाल सकता है।
- प्रजातांत्रिक प्रक्रिया विनष्ट होती जा रही है।युवा वर्ग की उच्छृंखलता का नाजायज फायदा उठाकर विभिन्न राजनीतिक दल व राजनेता उनसे विध्वंसात्मक कार्यवाही करवाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।राजनीतिक प्रक्रिया का स्वरूप हिंसक हो चुका है,जो हमारे राजनीतिक विकास में बाधक है।राजनीति को भ्रष्ट तत्वों से बचाने में युवा वर्ग सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं।
- युवा वर्ग में असीम संभावनाएं हैं और उनमें मौजूद ऊर्जा अथाह स्त्रोत का प्रयोग राष्ट्र की बेहतरी में और विश्व बिरादरी में एक बेहतर स्थान प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।अशिक्षा,गरीबी,भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं युवकों के मनोबल को तोड़कर उन्हें मानसिक विचलन की पराकाष्ठा तक पहुंचा रही है।सबसे पहले समाजीकरण की प्रक्रिया और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा,ताकि नौजवानों के सामने बेहतर विकल्प मौजूद रहे।व्यवस्था और नेतृत्व के पास युवाशक्ति का प्रयोग करने की सुचारू नीति होनी चाहिए और इसके लिए सुधार हर स्तर पर होना चाहिए।
- कई क्षेत्रों में आज के नौजवान बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं,कुछ नया करके उम्मीद जगा रहे हैं,उन्हें समाज व्यवस्था का पूर्ण समर्थन मिलना ही चाहिए।किसी नई शुरुआत में थोड़ी चुनौती,थोड़ा खतरा होता है और इसे वहन करने में सक्षम है युवाशक्ति।बुजुर्ग पीढ़ी को नौजवानों को निहायत अनुभवहीन समझने की प्रवृत्ति का त्याग कर वस्तुस्थिति को आज के संदर्भ में समझने की कोशिश करनी होगी।आज हमारे राष्ट्र को पुनर्निर्माण की आवश्यकता है और युवावर्ग को अनदेखा कर उसके उत्साह को दमित कर राष्ट्र निर्माण दिवास्वप्न ही होगा।
5.आज के युवा की स्थिति (The state of today’s youth):
- आज का युवा बुरा नहीं है,बस,भटका हुआ है।उसमें भी क्षमता है गणितज्ञ,वैज्ञानिक और महापुरुष बनने की।उसमें क्षमता है किसी बड़े व्यवसाय को प्रतिष्ठित करने की।उसमें भी शौर्य है,चुनौतियों का सामना करने का,साहस है परिस्थितियों को पराजित करने का।उसमें संवेदना है किसी के दर्द को अनुभव करने की,क्षमता है पीड़ा,पराभव और पतन को पराजित करने की,भावना स्वयं के यौवन की सार्थकता सिद्ध करने की।पर करे क्या ‘सही दृष्टि जो नहीं है’!!
- सार्थक जीवन के लिए चाहिए,राष्ट्रीय सोच,अपने आपको पहचानने की।अपने आपको पहचानने का मतलब किसी पूजा पाठ या ग्रह शांति से नहीं है।इसे किसी गंडे,ताबीज,अंगूठी या लॉकेट से भी नहीं जोड़ा जाना चाहिए।मंदिर-मस्जिद के झगड़ों से भी इसका कोई वास्ता नहीं है।इसका अर्थ है जिंदगी की सही और संपूर्ण समझ।जीवन की प्रकृति को,उसकी बारीकियों को सही ढंग से समझना है।अनुभव करना स्वयं की विशेषताओं को,जानना है स्वयं की सामर्थ्य के सही नियोजन के तौर-तरीके परिशोधन करना है स्वयं की अंतश्चेतना का,ताकि कुठाएँ अपने कुचक्र में न फँसा सकें।बनाए रखनी है नकारात्मक परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टि,ताकि कोई भी मनोग्रंथि जिंदगी की डोर को उलझा न सके।
- राष्ट्रीय सोच आज के युवा जीवन की आवश्यकता है।यह सार्थक यौवन की राह है।इसे किसी मजहब अथवा संप्रदाय से जोड़ने की जरूरत नहीं है।यह तो युग की पुकार है।
- परंतु हो उल्टा रहा है।आज युवा वर्ग भटककर नशा करने,ड्रग्स लेने,युवाकाल में सेक्स का लुत्फ उठाने,अय्याशी,दंगे-फसाद,साइबर क्राइम आदि कार्यों की तरफ मुड़ता जा रहा है।जब युवाओं की ऐसी दशा देखी जाती है तो अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका खुद का जीवन सुधर नहीं रहा है तो राष्ट्र के निर्माण में क्या योगदान देगा।खुद सुधरेगा तभी उससे राष्ट्रीय निर्माण की आशा की जा सकती है।परंतु इसमें उसका इतना दोष नहीं है बल्कि इस भटकाव के दोषी है आज की शिक्षा प्रणाली जो बेरोजगार युवाओं की फौज खड़ी करती है,आज हिंसा,अपराध,सेक्स से युक्त फिल्मों का,टीवी पर दिखाए जाने वाले फूहड़ और दकियानूसी कार्यक्रमों का,शिक्षक वर्ग और माता-पिता तथा सरकारों का।
- रोज के समाचार पत्रों,टीवी चैनलों में ऐसी कई सुर्खियाँ छपती रहती है:’युवा नशे की गिरफ्त’ या फिर ‘उग्रवादी युवक गिरफ्तार’ अथवा ‘आतंकवादी युवकों ने गांव के अमुक लोगों की निर्मम हत्या की।टेलीविजन के कई चैनलों में भी ऐसे भटके हुए युवा जीवन की कई सत्य घटनाएं देखी जाती हैं।ऐसे भटकाव के कुचक्र में जो युवक फंसे होते हैं,वे गरीब भी होते हैं और अमीर भी।उनकी जातियां एवं भाषाएँ अलग-अलग होती हैं।रहने वाले भी वे अलग-अलग स्थानों के होते हैं,पर इन सभी में एक समानता निश्चित रूप से होती है कि इन्हें सुसंस्कार एवं सद्विचार,अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाए।कुछ गलत लोगों ने इनकी भावनाओं को गलत दिशा में बहका दिया।
- आज के दौर में सार्थक यौवन से वंचित लोगों की बड़ी लंबी सूची है।सूची में अभावग्रस्त हैं तो धनवान भी।ऐसे भी कई भटके हुए युवकों के समाचार पढ़ने या सुनने को मिलते हैं जो किसी बड़े नेता,मंत्री अथवा किसी बड़े व्यावसायिक घराने से जुड़े होने के बावजूद हत्या,हिंसा,नशा जैसी घटनाओं में लिप्त हैं।हालांकि भटकते वे भी हैं,जो जिंदगी की समस्याओं को सुलझाने के लिए संघर्ष एवं सन्मार्ग छोड़कर किसी शॉर्टकट का सहारा लेते हैं।’मुझे सब कुछ चाहिए और अभी चाहिए’ ऐसे सपने देखने वाले युवक भी जिंदगी की रपटीली राहों पर फिसलते और जीवन गँवाते देखे जा सकते हैं।
- इसका वास्तविक कारण सही एवं सार्थक शिक्षा देने,सार्थक जीवन दृष्टि का अभाव है।युवा जीवन सार्थक जीवन का आनंद तभी उठा सकता है,जब उसमें अपने जीवन को सही ढंग से देखने की दृष्टि हो।स्वयं को समझने की क्षमता हो।
- उपर्युक्त आर्टिकल में भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका (Role of Youth in Building India),राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का योगदान (Contribution of Youth in Nation Building) के बारे में बताया गया है।
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6.गणित के सवाल कैसे हल हों? (हास्य-व्यंग्य) (How to Solve Math Problems?) (Humour-Satire):
- छात्र (गणित शिक्षक से):सर कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे गणित के सवाल फटाफट साॅल्व हो जाएं,सवालों को हल करने में बहुत कठिनाई महसूस हो रही है।
- गणित शिक्षक:यह बताओ तुमने सुबह क्या खाया था,पिया था।
- छात्र:सुबह शराब पी थी और दोपहर को ड्रग्स का सेवन किया था।
- गणित शिक्षक:अरे वही शराब व ड्रग्स दिमाग में जाकर बैठ गया है,अब जब तक वह दिमाग से बाहर नहीं निकलेगी,तब तक सवाल हल करने में कठिनाई महसूस होगी।
7.भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका (Frequently Asked Questions Related to Role of Youth in Building India),राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का योगदान (Contribution of Youth in Nation Building) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.युवाकाल कब से प्रारंभ होता है? (When does puberty begin?):
उत्तर:15 वर्ष की आयु से 35 वर्ष की आयु युवा जीवन की है।35 वर्ष की आयु पूरी होते ही यौवन ढलने लगता है और फिर प्रौढ़ता-परिपक्वता की श्वेत छाया जीवन को छूने लगती है।लगभग 20 वर्षों का यह आयुकाल ही यौवन है।इसे कैसे बिताएं यह स्वयं पर निर्भर है।युवा जीवन सभी को मिलता है,पर सार्थक यौवन विरले ही पाते हैं।
प्रश्न:2.युवाओं को कौनसी बातें भटका देती हैं? (What distracts young people?):
उत्तर:शारीरिक सुखों की लालसाओं और महत्त्वाकांक्षाओं के आवेग यौवन को मनचाही दिशाओं में मोड़ते हैं।कब? कहां? किधर? कुछ पता नहीं चलता।इन टेढ़ी-मेढ़ी राहों पर चलते हुए यौवन कभी अटकता है,कभी भटकता है और कभी तो मिट ही जाता है।होश तब आता है,जब सब कुछ समाप्त हो जाता है,बच जाती है तो कई तरह की जानलेवा बीमारियां और न सुलझने वाली उलझी मनोग्रन्थियाँ।अनायास मिली हुई यौवन की ऊर्जा सुसंस्कारों एवं सद्विचारों के अभाव में प्रायः बहकती एवं भटकती ही देखी जाती है।कई तरह के स्वार्थी,कुटिल एवं चालबाज लोग इसे अपने ढंग से मोड़कर शोषण भी करते देखे जाते हैं।
प्रश्न:3.यौवन ऊर्जा को सही दिशा कैसे मिले? (How to get the right direction for puberty energy?):
उत्तर:यौवन ऊर्जा को विवेक तथा संयम से काम लेकर समुद्र की तरह मर्यादा से बाहर नहीं जाएंगे यानी जवानी के जोश में होश न खोकर अपना आचार-विचार ठीक रखेंगे,नीति तथा मर्यादा के अनुकूल रखेंगे और किसी भी दिशा में अति न करते हुए संतुलन बनाए रखेंगे तो यौवन काल अच्छा ही गुजरेगा।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका (Role of Youth in Building India),राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का योगदान (Contribution of Youth in Nation Building) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.