Role of Pioneer for Students
1.छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक की भूमिका (Role of Pioneer for Students),छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक कौन हो? (Who is Guide for Students?):
- छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक की भूमिका (Role of Pioneer for Students) अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।मार्गदर्शक का अर्थ होता है रास्ता दिखाने वाला,रहनुमा।यदि सही मार्गदर्शक मिल जाता है तो वह छात्र-छात्रा की काबिलियत की ठीक तरह पड़ताल करके उसे सही लक्ष्य तक पहुंचा देता है और यदि गलत मार्गदर्शक मिल जाता है तो मार्ग से भटक कर कहीं का कहीं पहुंच जाता है।
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2.छात्र-छात्राओं की उलझन (Confusion of students):
- छात्र-छात्राओं के सामने यह उलझन रहती है कि वे किस ऐच्छिक विषय का चयन,किस जॉब के लिए अपने आप को तैयार करें,क्या कुछ करें जिससे उन्हें उनकी मौलिक प्रतिभा के अनुसार मुकाम हासिल हो जाए।यह सब जानने के लिए वह किसी मार्गदर्शक का चयन करता है।वह ऐसे मार्गदर्शक का चयन करता है जिस पर उसका विश्वास होता है या उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होता है।मार्गदर्शक के अनुसार उसे जैसी सलाह,सुझाव मिल जाता है और उस सलाह व सुझाव के अनुसार वह अपने लक्ष्य,मार्ग का चयन कर लेता है तो कोई छात्र-छात्रा अच्छा बन जाता है,योग्य लक्ष्य का चुनाव करके अपनी प्रतिभा को निखार लेता है तथा कोई छात्र-छात्रा बुरा बन जाता है क्योंकि उसे सही मार्गदर्शक नहीं मिला और जो मार्गदर्शक मिला उसने छात्र-छात्रा की प्रतिभा का गलत फायदा उठाकर गलत मार्ग दिखा दिया।
- अज्ञानी,धूर्त,पाखंडी और शब्दजाल के आडंबर का चोला पहने ऐसे मार्गदर्शक छात्र-छात्राओं के भरोसे,विश्वास का लाभ उठाते हैं।उन्हें अपनी दुकानदारी चलानी है भले ही किसी की जिंदगी बिगड़े,किसी की जिंदगी से खिलवाड़ करना पड़े।ये मार्गदर्शक छात्र-छात्रा का मित्र,माता-पिता,शिक्षक अथवा कोई मेन्टाॅर (Mentor,अनुभवी परामर्शदाता),काउंसलर (Counsellor,परामर्शदाता,सलाहकार) आदि हो सकते हैं।इसके अलावा छात्र-छात्रा खुद स्वयं भी अपना काउंसलर हो सकता है।
- मार्गदर्शक उस दिशासूचक की तरह होता है जो जहाज को सही दिशा दिखा दे तो अपने गंतव्य तक पहुंच जाता है और यदि दिशासूचक गलत दिशा बता दे तो जहाज समुद्र में भटक जाता है।
- आज अधिकांश युवक-युवतियां भटक जाते हैं तो उसका कारण है कि ये छद्म रूप में जो मार्गदर्शक जगह-जगह बैठे हुए हैं वे छात्र-छात्राओं को बहला-फुसलाकर भटका देते हैं।अब जो छात्र-छात्रा अपना जीवन शुरू करता है वह यह तो नहीं चाहता कि वह नशेड़ी,अय्याश,चोर,लुटेरा,अपराधी,शराबी अर्थात् गलत चाल-चलन वाला बन जाए।लेकिन फिर भी एक बड़ी संख्या में युवाओं की अपराध जगत की ओर,गलत कार्यों की ओर मुड़ जाती है।स्पष्ट है कि उन्हें आजकल के तथाकथित गुरु जिन्हें स्वयं पता नहीं है कि क्या गलत है,क्या सही है तथा बाजार में धंधा और व्यवसाय करने वाले मेन्टाॅर या उनके संगी-साथी उन्हें गलत धन्धों की ओर धकेल देते हैं।
- आजकल के शिक्षकों में विरले ही गुरु होते हैं जो छात्र-छात्राओं के संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास करते हैं,उन्हें शिक्षित और योग्य बनाते हैं,उनकी मौलिक प्रतिभा को पहचानकर उन्हें उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।यही हाल मित्रों,काउंसलर और मेन्टाॅर का है जिन्हें खुद सही दिशा का ज्ञान नहीं तो वे छात्र-छात्राओं को सही दिशा का ज्ञान कैसे करा पाएंगे? ऐसे शिक्षक,मित्र,मेन्टाॅर,काउंसलर छात्र-छात्राओं के जीवन से खिलवाड़ करते हैं,उन्हें सही दिशा से भटका देते हैं।छात्र-छात्राओं की सबसे बड़ी उलझन यही है कि वे किससे परामर्श लें,किससे न लें यानी छद्म मार्गदर्शक और सच्चे मार्गदर्शक को नहीं पहचान पाते हैं।
3.सच्चे मार्गदर्शक की पहचान (Identifying the True Guide):
- सच्चे मार्गदर्शक की पहचान करना सरल भी है और कठिन भी है।छात्र-छात्राएं जब छोटे होते हैं तो माता-पिता और शिक्षक व मित्र उसके मार्गदर्शक बनते हैं।परंतु सामान्यतः प्राचीन काल की तरह तथा आधुनिक युग में आर्थिक दौड़ में शामिल होने के कारण माता-पिता अक्सर बच्चों की परवरिश करने की तरफ बहुत कम ध्यान दे पाते हैं।वे विद्यालय,शिक्षा संस्थानों पर पूर्णतया विश्वास करके उनके भरोसे छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व के निर्माण की जिम्मेदारी छोड़ देते हैं।आज के ज्यादातर शिक्षण संस्थान केवल व्यावसायिक हो गए हैं।उन्हें बच्चों के निर्माण से कोई लेना-देना नहीं होता है,वे केवल एक बात ही ध्यान रखते हैं कि छात्र-छात्राओं को कोर्स करवा दिया जाए।
- प्राचीन काल या मध्यकाल तक बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम,प्रार्थना,ध्यान-योग आदि होते थे वे आज के शिक्षण संस्थानों से गायब हो गए हैं अतः बच्चों के व्यक्तित्व का सही निर्माण नहीं हो पाता है,उन्हें सही दिशा नहीं मिल पाती है।
- बच्चों की दुविधा यह होती है कि वे अबोध होते हैं,उन्हें क्या,कैसे करना चाहिए इसका ज्ञान नहीं होता है।बच्चों की किशोरावस्था तक बच्चों का निर्माण हो चुका होता है यानी किशोरावस्था तक बच्चों की नींव लग चुकी होती है।इसलिए अक्सर ऐसे बच्चे अपने संगी-साथियों से,वातावरण तथा परिस्थितियों से सीखते हैं।अब जैसा संग-साथ होता है,जैसा वातावरण व परिस्थिति होती है वैसा ही उनके व्यक्तित्व का गढ़ना प्रारंभ हो जाता है।
- अतः माता-पिता की सबसे बड़ी भूमिका होती है।उन्हें अपने बच्चों को कुछ समय देना चाहिए चाहे आप कितने ही व्यस्त हों।धन के बल पर आप ट्यूटर की व्यवस्था कर सकते हैं,विद्यालय की मोटी-तगड़ी फीस चुका सकते हैं,अच्छी पढ़ने-लिखने की पुस्तकें,आवास तथा भोजन-वस्त्र आदि की व्यवस्था कर सकते हैं परंतु व्यक्तित्व को गढ़ने,आचरणवान बनाने,शिक्षित करने,उनकी मौलिक प्रतिभा को पहचानने के लिए धन के बजाय आपकी दूरदृष्टि,आप द्वारा बच्चों को दिया गया समय,आप द्वारा बच्चों की ठीक से परवरिश,आपकी सही समझदारी काम आती है याकि आ सकती है।
- यदि बच्चों के भविष्य निर्माण की सही समझ,उनकी मौलिक प्रतिभा को पहचान की दृष्टि नहीं है तो आप या बच्चों को ऐसा मार्गदर्शक ढूंढना चाहिए जो निर्लोभी हो,जीवन की सही परख कर सकता हो,अनुभवी हो,विनम्र हो,ईमानदार हो,दूरदृष्टा हो,विवेकशील हो आदि।आप कहेंगे ऐसे व्यक्ति का आज के युग में मिलना दुर्लभ है।आपकी बात भी सही है गलत नहीं है,परंतु ऐसा भी नहीं है कि ऐसे व्यक्तित्व संपन्न मार्गदर्शक का टोटा हो गया है।अब यह तो जाहिर सी बात है कि मूल्यवान चीज तो कम ही होती है।रूई तो ढेर सारी मिल जाएगी परंतु हीरा और सोना रूई की तरह नहीं मिलेगा।इसीलिए हीरे,रत्न,सोना आदि मूल्यवान है और रूई बहुत सस्ती मिल जाती है।
- आज ढेरो जगह-जगह कुकुरमुत्ते की तरह काउंसलर,मेन्टाॅर अपनी दुकान खोले बैठे हैं।उनके ऑफिस का अच्छा-सा सेटअप देखकर पिघलने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको उनमें से सही मार्गदर्शक,अच्छे व अनुभवी व्यक्तित्व संपन्न मार्गदर्शक को ढूंढने की जरूरत है।किसी भी मार्गदर्शक की फीस तथा कार्यालय के सेटअप देखकर यह अंदाजा मत लगाइए कि वह अच्छा ही मार्गदर्शक होगा।अब अच्छे मार्गदर्शक को ढूंढने की समझ तो आपमें होनी ही चाहिए।
4.छात्र-छात्राएं अपनी मार्गदर्शक खुद बनें (Students should be their own guides):
- जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि सच्चा और अच्छा मार्गदर्शक मिलना कितना कठिन और मुश्किल है।ऐसी स्थिति में छात्र-छात्राओं को स्वयं अपना मार्गदर्शक बनना चाहिए।आपके मित्र,आपके माता-पिता,आपके शिक्षक,व्यावसायिक मार्गदर्शक आपके बारे में,आपकी प्रतिभा के बारे में,आपकी योग्यता और काबिलियत के बारे में,आपके स्वभाव और चाल-चलन के बारे में,आपकी मानसिक स्थिति के बारे में जितना जानते हैं उससे कहीं अधिक आप स्वयं अपने आपको जानते हैं या जान सकते हैं।
- इसके लिए आपको शुरू से कुछ समय सत्संग,व्यावहारिक जीवन से संबंधित बातों को सीखने,ज्ञान चर्चा में व्यतीत करना चाहिए।इससे समय का सदुपयोग तो होता ही है साथ ही आपके पुराने वैसे संस्कार जागृत होते हैं जिस तरह की संगति में आप रहते हैं,जैसे वातावरण में आप रहते हैं।ये संस्कार जागृत होने पर हमें वैसा ही करने के लिए प्रेरित और नियंत्रित करते हैं।इसीलिए शास्त्रों में अच्छी संगति,ज्ञान चर्चा करने का उपदेश दिया गया है ताकि हमारे अच्छे संस्कार जागें।
- अपने आपको सिर्फ स्कूल की किताबों तक सीमित रखेंगे तो दुनिया के व्यावहारिक ज्ञान से वंचित रह जाएंगे फिर भले ही आप ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट हो जाएं।आप सिर्फ क्वालीफाइड ही हो सकेंगे एजुकेटेड नहीं यानी आपके पास डिग्री तो होगी पर विद्या नहीं होगी व्यावहारिक ज्ञान नहीं।पढ़ने से ज्यादा गुनना और आचरण में लाना उपयोगी होता है।यदि आप किसी सवाल का हल पढ़ ले तो पढ़ने के आधार पर आप सवाल हल नहीं कर सकेंगे जब तक उसका अभ्यास नहीं करेंगे।तात्पर्य यह है कि आपके पास ज्ञान की पूंजी नहीं होगी,आप विवेकवान नहीं होंगे तो आप अपने आपके मार्गदर्शक साबित नहीं हो सकते हैं।
- जो शिक्षा आपको अच्छा चरित्र,अच्छे संस्कार,अच्छी बुद्धि नहीं दे सकती वह शिक्षा वास्तविक शिक्षा नहीं होती।आप स्कूल का कोर्स यदि सिर्फ परीक्षा पास करने के उद्देश्य से पढ़ रहे हैं तो आप अपने आपको नौकरी करने के लिए तैयार कर रहे हैं शिक्षित और बुद्धिमान व्यक्ति बनने के लिए नहीं क्योंकि डिग्री का होना नौकरी प्राप्त करने के लिए उपयोगी हो सकता है पर जीवन के संघर्ष में,निर्वाह में और पूरे सफर में यह डिग्री न तो ओढने के काम आती है और ना बिछाने के।
- आज देश में जो बेरोजगारों तथा अपराधी किस्म के व्यक्ति बढ़ रहे हैं उसका कारण यही है कि स्कूल और कॉलेज के छात्र किसी न किसी तरह से डिग्री प्राप्त करने में अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मानते हैं।जीवन के अनेक पहलुओं की जानकारी और शिक्षा प्राप्त करने की तरफ जब उनका ध्यान ही नहीं जाएगा तो वे कोशिश भी क्या करेंगे?
- आपको पूरी लगन और मेहनत के साथ स्कूल की पढ़ाई तो करनी ही चाहिए ताकि आप अच्छे अंकों से पास हो सके साथ ही व्यावहारिक ज्ञान भी अर्जित करना चाहिए ताकि आप अपने आपके मार्गदर्शक बन सकें।
- आप अपने आपके सच्चे मार्गदर्शक होने की योग्यता हासिल कर लेंगे तो आपको कोई बहका नहीं सकता है,आपको गलत मार्ग की तरफ अग्रसर नहीं कर सकता है।आप अपने मित्रों से सुझाव लें कोई हर्ज नहीं,माता-पिता से सुझाव लें कोई हर्ज नहीं,व्यावसायिक मेन्टाॅर,काउंसलर से सुझाव लें कोई हर्ज नहीं,किसी संत,धर्मगुरु,आत्मज्ञानी,पथ प्रदर्शक,समाज सुधारक अथवा अन्य किसी श्रेष्ठ व्यक्ति या महापुरुष से सुझाव ले कोई हर्ज नहीं परंतु अंतिम निर्णय अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर करें।
5.कुछ महत्त्वपूर्ण फुटकर बातें (Some important retail points):
- हमें जीवन में क्या बनना है,यह बात सोचते जरूर हैं,पर वैसा बनने के लिए जो आवश्यक शर्तें होती है।उन्हें पूरा करने की क्षमता अपने अंदर पैदा करते हैं या क्या हम अपने को उस योग्य बनाते हैं? एक गणित शिक्षक के इंटरव्यू के दौरान जब अभ्यर्थियों से यह पहला प्रश्न पूछा गया की गणित की परिभाषा क्या है तो आश्चर्य होगा कि अधिकांश अभ्यर्थियों ने अपेक्षित उत्तर नहीं दिया।वे उत्तीर्ण भी हो जाएंगे तो क्या गणित शिक्षक के पद के साथ न्याय कर पाएंगे? क्योंकि जिनमें यह बुनियादी समझ नहीं है कि गणित शिक्षक के लिए गणित की परिभाषा जानना परम आवश्यक है,उसे ही नहीं जानते।यह सच है कि जो अभ्यर्थी अपने को किसी परीक्षा के योग्य नहीं बनाते,वे ही असफल होते हैं क्योंकि किसी विचारक ने कहा है कि बनना है तो आदर्श बनने की कोशिश करो।
- यदि आप किसी कंपनी में इंजीनियर के पद पर नियुक्त होना चाहते हैं तो आपको इंजीनियर के कर्त्तव्यों के साथ-साथ कंपनी की कार्य प्रणाली तथा उसके स्वरूप की जानकारी भी होनी चाहिए।यदि आपको उस पद के दायित्वों की संपूर्ण जानकारी नहीं है तो आप उसके लिए सर्वथा अयोग्य हैं।जब हमारा चयन नहीं होता है तो हम सोचते हैं कि हमारी सिफारिश नहीं थी,चयनकर्त्ताओं ने रिश्वत ली होगी,किसी मंत्री का सिफारिशी चुन लिया गया होगा आदि-आदि। किंतु उन छात्रों ने अपने अंदर झांककर देखने की कूवत पैदा नहीं की कि क्या वे जिस पद के लिए गए थे-उसके योग्य अपने आपको बनाया था?
- दरअसल जरूरत इस बात की होती है कि आप जो भी बनने जा रहे हैं-उससे पहले अपने अंदर झांककर देखने की योग्यता विकसित करें अर्थात् मार्गदर्शक संपन्न अपने आपका व्यक्तित्व बनाएं और फिर उस योग्य बनने का प्रयास करें।सर्वश्रेष्ट बनने का प्रयास करेंगे-तो सफलता अवश्य मिलेगी।
- आप कोई भी जीवन उद्देश्य निश्चित करें कि मुझे यह बनना है-तो उसकी पूर्ति के लिए आवश्यक और निश्चित कदम बढ़ाएं-केवल सोच लेने या उद्देश्य निश्चित कर लेने से कि उसे यह बनना है-आप वह नहीं बन सकते।उद्देश्य तक पहुंचने के लिए अंत तक कठोर परिश्रम करने की आवश्यकता होती है।तभी आप अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं।आपको जो भी बनना है,वह निश्चित करते समय आपकी क्षमताओं का भी ध्यान रखें।इसका मतलब यह नहीं है की बड़ी बातों का सोचना बुरा है।परंतु अपनी क्षमता का विचार किए बिना एकदम ऊंची छलांग लगाने का प्रयास आपको असफल ही बनाएगा।अपनी शक्ति के अनुसार जितना बोझ सुगमता से उठाया जा सकता है,उतना ही उठाना उचित होता है।इसलिए उद्देश्य की पूर्ति के लिए सब तरफ से सोच समझकर ठोस कदम उठाना और आगे बढ़ने का दृढ़ निश्चय करके चलना सफलता का एकमात्र मार्ग है।कई बार व्यक्ति अपने उद्देश्य से विचलित भी होगा,निराशा भी आएगी।यदि राही इन कठिनाइयों को हंसकर सह लेगा और इनसे शिक्षा प्राप्त करता हुआ आगे बढ़ेगा,तो वही सफल सेनानी बनेगा,दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनेगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक की भूमिका (Role of Pioneer for Students),छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक कौन हो? (Who is Guide for Students?) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:How is Knowledge and Wisdom True Guide?
6.नकल करने का फल मीठा (हास्य-व्यंग्य) (Imitating Fruit Sweet) (Humour-Satire):
- पिता:रीना तुमने परीक्षा में नकल क्यों की,नकल करने का फल तो मीठा नहीं कड़वा और बुरा होता है।
- रीना:लेकिन पापा,मैंने नकल की तो उत्तीर्ण हो गई और मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई।वो तो फल मीठा ही हुआ न।
7.छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक की भूमिका (Frequently Asked Questions Related to Role of Pioneer for Students),छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक कौन हो? (Who is Guide for Students?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.अनुभव और ज्ञान में क्या फर्क है? (What is the difference between experience and knowledge?):
उत्तर:ज्ञान या विज्ञान हमें अपने पूर्वजों से मिला है और आगे की पीढ़ियों को भी मिलता रहेगा।यानी ज्ञान हमेशा दूसरों से मिलता है और अनुभव खुद के प्रयत्न करने से मिलता है।इस आधार पर विद्या को परंपरागत कह सकते हैं।लेकिन ऐसा कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि ज्ञान केवल परंपरागत देन है,वैज्ञानिक नहीं है।आधुनिक मत के अनुसार भौतिक ज्ञान को ज्ञान कहते हैं।
प्रश्न:2.स्वयं के मार्गदर्शक बनने का क्या लाभ है? (What is the benefit of being your own guide?):
उत्तर:स्वयं का मार्गदर्शन बनने से न केवल उचित-अनुचित का निर्णय ले सकता है बल्कि अपने आपको सही दिशा में आगे बढ़ा सकता है।साथ ही उसमें यह आत्म-विश्वास भी पैदा हो जाता है कि जिस मार्ग पर वह चल रहा है,वह अकेला नहीं है बल्कि आत्मशक्ति के रूप में भगवान हमेशा उसके साथ हैं।
प्रश्न:3.आदर्श विद्यार्थी में कौन से गुण होते हैं? (What qualities does an ideal student have?):
उत्तर:विद्याध्ययन में गहरी रुचि,भविष्य संवारने की तीव्र उत्कंठा,गुरुजन के प्रति श्रद्धाभाव,चित्त की एकाग्रता,सुदृढ़ संकल्प शक्ति,आत्मविश्वास,जिज्ञासु-प्रवृत्ति,परिश्रमी,संतोषी,सहिष्णुता,सच्चरित्रता,विनम्रता और समय की कद्र करना।इतने गुण विद्यार्थी में होने ही चाहिए तभी वह विद्यार्थी जीवन का सही उपयोग कर अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकेगा।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक की भूमिका (Role of Pioneer for Students),छात्र-छात्राओं के लिए मार्गदर्शक कौन हो? (Who is Guide for Students?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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