Menu

Progressiveness to Study Mathematics

Contents hide

1.गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता (Progressiveness to Study Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता कैसे अपनाएं? (How Do Students Adopt Progressiveness to Study Mathematics?):

  • गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता (Progressiveness to Study Mathematics) आवश्यक है।यदि गणित में प्रगति नहीं हुई होती तो आज मनुष्य पशुवत जीवन व्यतीत कर रहा होता अथवा जितना विकास अब तक वह कर चुका उस स्थिति से बहुत पीछे रह जाता।गणित के क्षेत्र में छात्र-छात्राएं प्रगति एवं उन्नति करके अच्छा जाॅब प्राप्त कर सकता है,विद्वान और प्रतिभावान बन सकता है।प्रगति के लिए अनवरत प्रयास,चिंतन-मनन और असंतोष का अनुभव करना जरूरी है।यदि छात्र-छात्राएं गणित की प्रारंभिक जानकारी जोड़,गुणा,भाग,बाकी को सीखकर ही संतोष कर ले तो वे बीएससी,एमएससी तथा गणित में शोध कार्य नहीं कर सकता है।मनुष्य और पशु में मूलभूत अंतर यही है कि मनुष्य अपनी बुद्धि के द्वारा प्रगति,उत्थान की ओर अग्रसर हो सकता है जबकि उसी बुद्धि के बल पर वह अपनी अवनति व पतन की ओर अग्रसर हो सकता है।पशु हर परिस्थिति को सहन करने के लिए बाध्य है,वह उसमें कुछ भी परिवर्तन नहीं कर सकता है।
  • यदि छात्र-छात्राएं गणित में वर्तमान प्रगति से संतुष्ट हो जाए तो उनका विकास ठप हो जाएगा।सफलता के लिए असफलता के प्रति अस्वीकार्यता होनी चाहिए।तात्पर्य यह है कि छात्र-छात्राएं गणित में वर्तमान स्थिति को ही सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम समझ बैठे तो भविष्य में प्रगति की गुंजाइश ही समाप्त हो जाएगी।
  • गणित में जो भी लक्ष्य निर्धारित किया हो उसके लिए समर्पण और उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न उसके साथ जुड़े हुए हैं।यह ठीक है कि गणित में आगे बढ़ने के लिए पुरुषार्थ आवश्यक है परंतु छात्र-छात्राएं गणित में पुरुषार्थ,कठिन परिश्रम भी तभी करते हैं जब गणित का ज्ञान प्राप्त करने हेतु उनमें गहरी निष्ठा हो।लगन और निष्ठा के अभाव में गणित के छात्र-छात्राओं का क्रियाकलाप उथला ही रह जाता है।कमजोर और उथले प्रयत्नों से छात्र-छात्राएं गणित में मेधावी नहीं बन सकते हैं। यदि ऐसी बात नहीं रही होती तो हर गणित का छात्र-छात्रा मेधावी,निपुण और दक्ष हो सकता था।
  • परंतु अधिकांश छात्र-छात्राओं के जीवन और चिंतन शैली में कोई खास अंतर नहीं दिखाई पड़ता है।इसका कारण यही समझ में आता है कि वह एक रटी रटाई गणित के सवालों व समस्याओं को हल करने की शैली अपना लेता है जो कि उसका बाह्य क्रियाकलाप ही है परंतु उसके साथ जुड़े हुए आंतरिक अनुशासन और मनन को विकसित नहीं किया जा सकता है।सवाल तथा गणित की समस्याओं के सूत्रों को रटने,सवालों को हल करने की क्रियाविधि को याद कर लेने से गणित का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।यह भी अतिशयोक्ति ही है कि प्रखर व तेजस्वी छात्र-छात्राओं तथा शिक्षकों जैसे अच्छे आचरण में रहकर एक कमजोर छात्र-छात्रा प्रखर,तेजस्वी व मेधावी हो जाएगा।वस्तुतः जब तक छात्र-छात्रा में गणित का ज्ञान प्राप्त करने की तड़प न हो,ज्ञान प्राप्त करने की प्यास न हो तब तक उनकी प्रगति होना असंभव है।यदि उनकी संकल्प शक्ति जागृत हो जाए और प्रगाढ़ श्रद्धा हो तो ज्ञान प्राप्ति शीघ्र ही हो सकती है।छात्र-छात्राएं मानसिक विकारों से मुक्त होने का सच्चा प्रयत्न नहीं करते हैं।
  • हम ऊपर से यही दिखाना चाहते हैं कि गणित का अध्ययन सच्चे मन से करते हैं परंतु वास्तविक रूप में वैसा करते नहीं हैं।इस प्रकार की ओछी मानसिकता से मन निर्विकार नहीं हो सकता है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:7 benefits of reading books

2.छात्र-छात्राएं प्रगतिशील कैसे बनें? (How do Students Become Progressive?):

  • छात्र-छात्राओं की गणित में प्रगति दो बातों पर निर्भर करती है।पहली गणित में नई-नई खोजें करते रहना और दूसरी मन में आध्यात्मिक बातों का चिन्तन-मनन करना।गणित में नई-नई बातें खोजने से उसकी सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है और उसके कई चारित्रिक गुणों का विकास होता है। परंतु आध्यात्मिक चिंतन से छात्र-छात्राएं अपनी आंतरिक शक्ति से परिचित होते हैं।उन्हें अपने आपको जानने समझने का ज्ञान होता है।उसके अंदर एक नई सूझ उत्पन्न होती है जिसके द्वारा वह अपनी भूलों,त्रुटियों को सुधार सकता है तथा अपनी कमजोरियों को पहचान सकता है।
  • कर्म और ज्ञान में एकरूपता से ही हम प्रगति कर सकते हैं।केवल गणित में डिग्रियों पर डिग्रियां हासिल करने से बाहरी सफलता तो मिल जाती है परंतु वह मौलिक सफलता नहीं है।जब हमारे जीवन में कर्म और ज्ञान में असंतुलन पैदा हो जाता है तो कई मानसिक विकृतियां पैदा हो जाती है।केवल गणित के सवालों का अभ्यास करते रहें और उसके बारे में नई सोच,विचार-चिंतन नहीं करें अथवा हम नई-नई बातें सोचें,विचार और चिंतन करें परंतु अभ्यास (कर्म) न करें तो कर्म और ज्ञान में संतुलन कायम नहीं हो सकता है।
  • जब छात्र-छात्राएं गणित में डिग्रियां हासिल करता जाता है तो उसके बल पर बाहरी सफलता मिलना प्रारंभ हो जाती है और वे आगे बढ़ते हुए प्रतीत होते हैं।परंतु बाहरी सफलता के इस मापदंड से छात्र-छात्राओं में अहंकार पैदा हो जाता है।ऐसी अवस्था में उसकी दृष्टि अपने अंदर झांकने की ओर नहीं होती है।फलस्वरूप वह भूल पर भूल करता जाता है।
  • भूलों और गलतियों का कारण वह अपने अंदर नहीं ढूंढता है क्योंकि अंदर की ओर देखने की उसकी दृष्टि है ही नहीं।ऐसी स्थिति में वह भूलों,त्रुटियों और कमजोरियों का कारण बाहर ढूंढता है।वह अपनी असफलता का दोष दूसरों पर आरोपित करने लगता है।दूसरों पर दोषारोपण के कारण उसके मित्रों व शुभचिंतकों की कमी होने लगती है।
  • जब हमारी देखने की दिशा बाहर की ओर हो जाती है तो गणित में कोई टॉपिक को हल करना प्रारंभ करते ही हमारे अंदर अनेक प्रकार के संदेह पैदा होने लगते हैं।इन संदेहों के कारण कोई भी टाॅपिक हल करना हो,गणित के आधार पर कोई भी जॉब प्राप्त करना हो,गणित में कोई नई खोज करना हो तो हम पूरी लगन और निष्ठा से उसको नहीं करते हैं।ऐसी स्थिति में उसका कार्य उत्साहहीन और कर्महीन होकर रह जाता है।उसके चारों ओर निराशा का वातावरण छा जाता है।
  • यदि हम अपने चिंतन-मनन को दुरुस्त करें और भूलों व त्रुटियों को अपने अंदर देखने का अभ्यास करें तो हमारे अंदर समर्पण भाव पैदा होता है।हम उत्साहित होते हैं और उन त्रुटियों को दूर करने का प्रयास करते हैं।वह अपनी असफलता का कारण अपने अंदर ही ढूंढ कर उसको दूर करने का प्रयास करता है तो प्रगति करता जाता है।
  • गणित का अभ्यास करने के साथ-साथ जब हम गणित का ज्ञान प्राप्त करते हैं तो वह अनुभव सिद्ध ज्ञान होता है।गणित के अभ्यास और ज्ञान से मानसिक परिपक्वता प्राप्त होती है।जिससे हमारा चिंतन आशावादी,सकारात्मक और ज्ञानमय हो जाता है।उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है जिससे वह गणित में आगे से आगे प्रगति करता जाता है।उसे हर तरफ गुण ही गुण ही नजर आने लगते हैं।उसे गणित के हर क्रियाकलाप में सत्य ही सत्य का दर्शन होने लगता है।सच्चा ज्ञान वही है जो अनुभव से होकर गुजरता है तभी वह ज्ञान प्रामाणिक होता है और प्रगति की ओर ले जाता है।

3.प्रगतिशीलता से क्या तात्पर्य है? (What do You Mean by Progressiveness?):

  • कुछ छात्र-छात्राएं गणित के पुराने नियमों,सिद्धांतों,अवधारणाओं को छोड़ने पर बल देते हैं।वे आधुनिक युग में गणित के नियम,सिद्धांतों को प्रगतिशील स्वीकार करते हैं।प्रगतिशीलता का अर्थ यदि समय के साथ चलना और पुराने नियम व सिद्धांतों को विवेक के आधार पर परखा जाए तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है।वर्तमान युग के छात्र-छात्राओं को गणित की ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ लेते हुए देखते हैं।परन्तु व्यवहार में वे बड़ों की उपेक्षा,छोटों से फूहड़ता और बराबर वालों के साथ अशिष्टता के साथ-साथ खानपान में न खाने योग्य चीजों का सेवन करना और रहन-सहन में शरीर को सजाने को प्रमुखता ही देखते हैं तो इसे प्रगतिशीलता नहीं कहा जा सकता है।
  • बड़े लोगों को हर दृष्टि से सम्मान देने और उनके हर आदेशों को मान लेना विवेक-बुद्धि को कुण्ठित कर देता है।अतः यह तो उचित ही है कि उनकी सभी बातों को ज्यों का त्यों मानने के बजाय अपने विवेक का उपयोग किया जाए और उचित लगने पर ही मानने का अभ्यास किया जाए।परंतु बिना जाने समझे ही एकदम इसी कारण अवज्ञा करना कि पुराने व्यक्ति द्वारा कही गई है तर्कहीन और हठधर्मिता ही कही जाएगी।पुराने और वृद्ध व्यक्तियों को अनुभवी होने के कारण उनकी बात में दम हो सकता है अतः प्रगतिशीलता का तकाजा है कि उनकी बातों की बारीकी को समझने की चेष्टा की जाए।
  • पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का अन्धानुकरण करना,अपनी सभ्यता व संस्कृति की उपेक्षा करना प्रगतिशील नहीं कहा जा सकता है।नवीनता,प्रगतिशीलता और आधुनिकता का नकाब ओढ़कर कोट,टाई,पेन्ट की शान और श्रृंगार करना तथा विद्वता का आचरण में न होना,डिग्रीधारी होना (Qualified) होना परंतु शिक्षित (Educated) न होना पाश्चात्य देशों की नकल करना ही कहा जा सकता है।
  • विवेक पूर्वक किसी की अच्छी बातों को ग्रहण करना हानिकारक नहीं है।हानिकारक तो स्वच्छन्तापूर्वक किया गया अन्धानुकरण ही है जो अनेक विकृतियों को जन्म देता है।अध्ययन में परिश्रम,पुरुषार्थ और उद्योगशीलता के मार्ग से ही प्रगति संभव है।आधुनिकता का अन्धानुकरण करके देश,धर्म,संस्कृति और नैतिक मूल्यों की अवहेलना करने लगे तो दोष उन पाश्चात्य जीवन मूल्यों का नहीं है।दोष उस व्यक्ति का है जो आँख मूँदकर कुछ भी ग्रहण करते जाते हैं।आँख मूँदकर किसी भी दिशा में चल पड़ने पर दिशाओं का क्या दोष है?
  • आधुनिकता के नाम पर शाश्वत जीवन मूल्यों को दकियानूसी,आउट ऑफ डेट,पुरातनपंथी कहकर त्यागना उचित नहीं है।प्राचीन कही जानेवाली कई परम्पराएँ तथा नई प्रगतिशील प्रथा-परंपराएं दोषमुक्त नहीं है।उचित यही है कि विवेक द्वारा उचित और अनुचित को समझकर उपयोगी बातों को ग्रहण कर लिया जाए और अनुपयोगी को छोड़ दिया जाए।यहाँ आधुनिकता की निंदा करने का मन्तव्य नहीं है।परंतु इतना तो विचार किया ही जाना चाहिए कि जिसे प्रगतिशीलता कहकर अन्धाधुन्ध अपनाते और नकल किए जा रहे हैं वह हमारे लिए कितना उपयोगी तथा अनुपयोगी है?

4.प्रगतिशीलता का दृष्टान्त (Example of Progressiveness):

  • विकास तथा उन्नति व प्रगति के लिए इच्छाशक्ति भी होनी चाहिए।केवल प्रगति की बात सोचते रहने से ही यदि गणित के शीर्ष पर पहुंचना सम्भव होता तो फिर कोई भी गणित का विद्यार्थी कमजोर नहीं रहता।गणित ऐसा विषय है जिसमें बिना दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर परिश्रम के आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।हमें यदि वाकई में आगे बढ़ना है तो किसी एक गुण का ही नहीं अनेक गुणों को अपने अंदर विकसित करना होगा।प्रगति की आकांक्षा रखना अच्छा है परन्तु बिना पुरुषार्थ और इच्छाशक्ति के वह साकार नहीं हो सकती है।
  • एक नगर में तीन मित्र थे।तीनों गणित के विद्यार्थी थे।गणित में कोई भी समस्या तथा सवाल को हल नहीं कर पाते तो तीनों आपस में विचार-विमर्श करके उसका हल खोज लेते।तीनों मित्र समझदार थे तथा गणित का अध्ययन करने के लिए काफी मेहनत करते,आपस में विचार करते और आपस में सोच-विचार करते।
  • एक दिन तीनों मित्रों इस बात पर विचार करने लगे कि गणित में आगे कैसे बढ़ा जा सकता है? पहले मित्र ने कहा कि प्रगतिशीलता को अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।दूसरे मित्र ने कहा कि परिवर्तनशीलता को अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।तीसरे मित्र ने कहा कि नवीनता को अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।फलस्वरूप किसी भी एक मत पर नहीं पहुंचा जा सका।
  • तीनों मित्र इसका समाधान करने के लिए अपने गुरु के पास गए।गुरु ने तीनों की बात ध्यान से सुनी।उन्होंने कहा कि गणित में आगे बढ़ने के लिए प्रगतिशीलता,नवीनता और परिवर्तनशीलता तीनों की आवश्यकता है।परंतु विवेक और इन तीनों का चोली-दामन का साथ है।विवेक भी जागृत होना आवश्यक है।तीनों का समाधान हो गया।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता (Progressiveness to Study Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता कैसे अपनाएं? (How Do Students Adopt Progressiveness to Study Mathematics?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Changeability Progressiveness and Newness in Mathematics

5.डाॅक्टर और गणितज्ञ की बीमारी (हास्य-व्यंग्य) (Doctor and Mathematician’s Illness) (Humour-Satire):

  • एक गणितज्ञ डाॅक्टर के पास पहुंचे और उन्हें गणित की महत्ता और उपयोगिता पर धुआंधार भाषण सुनाने लगे।परेशान होकर डॉक्टर ने कहा कि देखिए कि यह कोई गणित के छात्रों की कक्षा अथवा गणित का समारोह मनाने की जगह नहीं है।आप अपनी बीमारी बताइए।
  • गणितज्ञ महाशय:डॉक्टर साहब मुझे यही तो बीमारी है।

6.गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता (Frequently Asked Questions Related to Progressiveness to Study Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता कैसे अपनाएं? (How Do Students Adopt Progressiveness to Study Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या गणित में आगे बढ़ने के लिए आध्यात्मिक होना आवश्यक है? (Is it Necessary to be Spiritual to Advance in Mathematics?):

उत्तर:आध्यात्मिकता से हमारे अंदर आत्म-विश्वास जागृत होता है।जो व्यक्ति केवल कर्म करता रहता है वह आत्म-विश्वास खो देता है।ज्ञान जब तक अनुभव से होकर नहीं गुजरता है तब तक उससे लाभ नहीं उठाया जा सकता है और न उसकी उपयोगिता व अनुपयोगिता का पता चलता है।यह अनुभव गणित के सवालों और समस्याओं को हल करने,आपस में विचार-विमर्श करने से तथा अनेक महान् गणितज्ञ,गणित शिक्षकों के संपर्क में आने और व्यवहार में से गुजरने पर आता है।जो छात्र-छात्रा गणित के अभ्यास (कर्म,अनुभव) अथवा आध्यात्मिक चिंतन में अपने को लगाता है वह गणित का वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता है।
अधिकांश छात्र-छात्राएं गणित का ज्ञान केवल जाॅब करने के दृष्टिकोण से प्राप्त करते हैं।गणित का आध्यात्मिक महत्त्व क्या है अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान की तरफ बहुत कम छात्र-छात्राओं का झुकाव होता है।जितनी आवश्यकता कर्म की है उससे अधिक ज्ञान में लगाव रखने की है।
आध्यात्मिक ज्ञान से छात्र-छात्राएं अपने अन्तर्निहित ज्ञान को पहचान लेता है।अपनी मानसिक शक्तियों के विषय में जितना ज्ञान प्राप्त करता है उतनी ही कर्म में सफलता मिलती है।अपनी मानसिक शक्तियों के विषय में जितना ज्ञान प्राप्त करता है उतनी ही कर्म में सफलता मिलती है।चिन्तन-मनन व आध्यात्मिक शक्ति कितनी अधिक है इसका अनुमान लगाना कठिन है।जब हम आध्यात्मिक शक्ति को बाहरी सफलता से मापते हैं तो बहुत बड़ी गलती करते हैं।

प्रश्न:2.आध्यात्मिक चिंतन क्यों आवश्यक है? (Why is Spiritual Thought Necessary?):

उत्तरःव्यक्ति को कार्य करने की क्षमता उसके आत्म-विश्वास (अहंकार नहीं) पर निर्भर करती है।यह आत्म-विश्वास सच्चे आध्यात्मिक चिंतन का परिणाम होता है।जो छात्र-छात्राएं गणित का अध्ययन तथा अध्ययन करने पर अपने ध्यान को केन्द्रित करता है और आध्यात्मिक चिन्तन भी करता है उसका आत्म-विश्वास भी नहीं डगमगाता है।आध्यात्मिक चिंतन से मानसिक शांति उपलब्ध होती है।इसके कारण अध्ययन में आने वाली समस्याओं और बाधाओं से छात्र-छात्राएं विचलित नहीं होता है।छात्र-छात्राएं चिंता,तनाव,निराशा इत्यादि घटनाओं से आध्यात्मिक चिंतन द्वारा बचा रहता है।आध्यात्मिक चिन्तन से छात्र-छात्राएं वर्तमान में जीना सीख लेता है।

प्रश्न:3.छात्र-छात्राओं के शक्ति का ह्रास का कारण क्या है? (What is the Reason for the Decline in the Power of the Students?):

उत्तर:छात्र-छात्राओं की शक्ति के ह्रास का कारण है केवल अपने बारे में सोचना-विचारना तथा करना।
जो छात्र-छात्राएँ स्वयं दूसरों से अपने स्वार्थ को पूरा करने का प्रयास करते हैं परंतु स्वयं दूसरे छात्र-छात्राओं का सहयोग नहीं करते तो यह प्रवृत्ति उन्हें अपने विनाश की ओर ले जाती है।धीरे-धीरे उसकी शक्ति का ह्रास होने लगता है।ऐसे छात्र-छात्राएं क्षणिक विफलता पर चिन्तित हो जाते हैं तथा उनका कोई सहयोग करने के लिए तैयार नहीं होता है।चिन्ता,भय,शोक,निराशा से उनकी शक्ति का ह्रास होने लगता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता (Progressiveness to Study Mathematics),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता कैसे अपनाएं? (How Do Students Adopt Progressiveness to Study Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Progressiveness to Study Mathematics

गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता
(Progressiveness to Study Mathematics)

Progressiveness to Study Mathematics

गणित का अध्ययन करने के लिए प्रगतिशीलता (Progressiveness to Study Mathematics)
आवश्यक है।यदि गणित में प्रगति नहीं हुई होती तो आज मनुष्य पशुवत
जीवन व्यतीत कर रहा होता अथवा जितना विकास अब तक वह कर चुका उस स्थिति से बहुत पीछे रह जाता।

No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *