Prime Numbers
1.अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers),एक प्राइम नंबर क्या है? (What is a prime number?):
- अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) वे पूर्ण संख्याएँ हैं जिनके स्वयं और 1 के अतिरिक्त ओर कोई भी गुणनखण्ड नहीं होते हैं।जैसे:2,3,5,7,11 इत्यादि।इसके विपरीत प्रत्येक भाज्य संख्या (Composite Numbers) को एक अद्वितीय रूप से अभाज्य संख्याओं (Prime Numbers) के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।यह तथ्य कहने और समझने में बहुत सरल है परन्तु इसके गणित के क्षेत्र में बहुत व्यापक और सार्थक अनुप्रयोग हैं।भाज्य संख्याओं के कुछ गुणनखण्डों पर विचार करते हैं:
1771=7×11×23,5313=3×7×11×23,10626=2×3×7×11×23,8232=2^{3}×3×7^3,2152=2^{3}×3×7×11×23 इत्यादि। - इन अभाज्य संख्याओं के गुणनखण्ड अभाज्य संख्याओं के रूप में है।वास्तव में अभाज्य संख्याएँ अपरिमित रूप से अनेक हैं।इसलिए यदि इन अभाज्य संख्याओं को सभी संभव प्रकारों से संयोजित करें तो हमें सभी अभाज्य संख्याओं और अभाज्य संख्याओं के सभी गुणनफलों का एक अनन्त संग्रह प्राप्त होगा।
- अब किसी भाज्य संख्या के गुणनखण्डों पर विचार करते हैं 32760=2^{3}×3^{2}×5×7×13 है जो अभाज्य संख्या के घातों के रूप में है।इसी प्रकार 23456789=3^{2}×3803×3607 के रूप में लिखा जा सकता है।इससे हमें यह अनुमान या कंजेक्चर (Conjecture) प्राप्त होता है कि प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्या की घातों के गुणनफल के रूप में लिखा जा सकता है।वास्तव में यह कथन सत्य है तथा पूर्णांकों के अध्ययन में यह मूलरूप से एक अति महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।इसी कारण यह कथन अंकगणित की आधारभूत प्रमेय (Fundamental Theorem of Arithmetic) कहलाता है।
- अंकगणित की आधारभूत प्रमेय के रूप में विख्यात होने से पहले अंकगणित की आधारभूत प्रमेय का संभवतया वर्णन यूक्लिड के एलीमेंट्स की पुस्तक IX में साध्य (Proposition) 14 के रूप में हुआ था।परन्तु इसकी सबसे पहले सही उपपत्ति कार्ल फ्रैडरिक गाॅस (Carl Friedrich Gauss) ने अपनी कृति डिस्क्वीशंस अरिथिमेटिकी (Disquisitions Arithmeticae) में दी।कार्ल फ्रैडरिक गाॅस को प्रायः ‘गणितज्ञों का राजकुमार’ कहा जाता है तथा उनका नाम सभी समयकालों के तीन महानतम गणितज्ञों में लिया जाता है जिसमें आर्किमिडीज (Archimedes) और न्यूटन (Newton) भी सम्मिलित हैं।उनका गणित और विज्ञान दोनों में मौलिक योगदान है।
- अंकगणित की आधारभूत प्रमेय कहती है कि प्रत्येक भाज्य संख्या अभाज्य संख्याओं के एक गुणनफल के रूप में गुणनखंडित की जा सकती है।वास्तव में यह ओर भी कुछ कहती है।यह कहती है कि एक दी हुई भाज्य संख्या को अभाज्य संंख्याओं के एक गुणनफल के रूप में बिना यह ध्यान दिए कि अभाज्य संख्याएँ किस क्रम में आ रही हैं,एक अद्वितीय प्रकार (Unique Way) से गुणनखंडित किया जा सकता है अर्थात् यदि कोई भाज्य संख्या दी हुई है तो उसे अभाज्य संख्याओं के गुणनफल के रूप में लिखने की केवल एक ही विधि है जब तक कि हम अभाज्य संख्याओं के आने वाले क्रम पर कोई विचार नहीं करते।इसलिए उदाहरणार्थ हम 2×3×5×7 को वही मानते हैं जो 3×5×7×2 को माना जाता है।
- अतः एक प्राकृत संख्या का अभाज्य गुणनखण्डन उसके गुणनखण्डों के क्रम को छोड़ते हुए अद्वितीय होता है।
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(1.)अभाज्य संख्याओं के बारे में अन्य तथ्य (Other facts about Prime Numbers):
- संख्या 1 स्वयं अभाज्य है या भाज्य इसके बारे में दो मत हैं।कुछ गणितज्ञ इसे अभाज्य मानते हैं तथा कुछ गणितज्ञ इसे अभाज्य व भाज्य दोनों के वर्ग में नहीं रखते हैं।कहीं इस 1 को अभाज्य मानना अधिक उचित होता है और कहीं इसे अभाज्य व भाज्य के वर्ग से अलग रखना उचित प्रतीत होता है।अधिकांश गणितज्ञों की सम्मति यही है कि इसे न तो भाज्य मानते हैं और नहीं अभाज्य संख्या।
- संख्या 2 प्रथम अभाज्य है।यह एकमात्र सम अभाज्य संख्या है।2 को छोड़कर सभी सम संख्याओं को अभाज्य संख्याओं के योग के रूप में लिखा जा सकता है।जैसे:52=47+5,102=97+5 इसके अलावा बड़े विषम पूर्णांक को तीन अभाज्य संख्याओं के योग के रूप में लिखा जा सकता है। जैसे:1001=991+3+7,543=191+341+11इत्यादि।
अभाज्य संख्याओं को ज्ञात करने के लिए मारिन मेर्सन (Marin Meisenne) ने 2^{n}-1 सूत्र प्रतिपादित किया था।इसे मेर्सन प्राइम के रूप में जाना जाता है।इसमें n का मान 82589933 के बराबर है।अभाज्य (रूढ़) संख्या में अब तक 664580 रूढ़ संख्याओं की तालिका बनी है।इसमें 10,000,000 की ऐसी संख्या में है।सबसे बड़ी ज्ञात रूढ़ संख्या (Prime Number) इस प्रकार है:
2^{127}-1=17014183460469231731687303715884105727
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(2.)एरेटास्थेनीज की चलनी (Sieve of Eratosthenes):
- कोई अभाज्य संख्या है या नहीं इस प्रश्न को सबसे पहले सुलझाया था एरेटास्थेनीज ने।उसने एक ऐसी विधि का पता लगाया था जिसे उसके सम्मान में एरेटास्थेनीज की चलनी का नाम दिया गया है।जिस चलनी से किसी पदार्थ को छाना जाता है तो वह बेकार के पदार्थ को अलग कर देती है।उसी प्रकार इस विधि में बहुत सी पूर्ण संख्याओं में से भाज्य संख्याओं को काटकर अलग कर लिया जाता है तथा केवल अभाज्य संख्याएं शेष रह जाती है।
- यह विधि व्यावहारिक है तथा हर छात्र-छात्राएं इसे आसानी से समझ कर प्रयोग कर सकता है।
- उदाहरण के लिए यदि हमें प्रथम 100 संख्याओं में से अभाज्य संख्याएं निकालनी हैं तो उन सभी संख्याओं को एक तालिका में लिख लेते हैं।इस तालिका में सभी संख्याएँ 1 से तो भाज्य हैं पर हमें इन्हें भाज्य की कोटि में नहीं गिनते हैं।इसलिए इस संख्या 1 को छोड़ देते हैं और छोड़ते समय उस पर गोला लगा देते हैं।उसके बाद अगली संख्या को लेते हैं और उस पर भी गोला लगा देते हैं।इस प्रकार 2 पर गोला लग गया।अब 2 से आगे जितनी भी संख्याएं 2 से भाज्य हैं उन्हें काट देते हैं।इस प्रकार 100 तक की सभी सम संख्याएँ 2 को छोड़कर कट गई या एरेटास्थेनीज की चलनी द्वारा भाज्य होने के कारण निकाल दी गई।अब उसके बाद अगली बिना कटी हुई संख्या 3 लीजिए।उस पर भी गोला लगाइए।अब इसके आगे कि वे सभी संख्याएँ काट दीजिए जो 3 से भाज्य है।जो संख्या पहले ही कट चुकी है उनकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।इस प्रकार इस बार 9,15,21,…. इत्यादि संख्याएँ कट जाएगी।इसी प्रकार क्रम से एक-एक संख्या लेने लेते जाइए।अगली संख्या 5 है और उसके बाद 7…. यह क्रम जब तक आवश्यकता हो चलाया जा सकता है।वस्तुतः 100 तक की सभी संख्याओं में से अभाज्य संख्याओं अर्थात् 2,3,5,7 द्वारा भाग देकर भाज्य संख्याओं को काट देना होगा।अंत में केवल अभाज्य संख्याएँ ही शेष रह जाएगी।इस प्रकार 1 से 100 के बीच हमें 25 अभाज्य संख्याएँ मिल गई। यह क्रिया किसी भी सीमा तक की संख्याओं में से अभाज्य संख्याओं को निकालने के लिए काम में लाई जा सकती है।
\textcircled{1} \textcircled{2} \textcircled{3} \cancel{4} \textcircled{5} \cancel{6} \textcircled{7} \cancel{8} \cancel{9} \cancel{10} \textcircled{11} \cancel{12} \textcircled{13} \cancel{14} \cancel{15} \cancel{16} \textcircled{17} \cancel{18} \textcircled{19} \cancel{20} \cancel{21} \cancel{22} \textcircled{23} \cancel{24} \cancel{25} \cancel{26} \cancel{27} \cancel{28} \textcircled{29} \cancel{30} \textcircled{31} \cancel{32} \cancel{33} \cancel{34} \cancel{35} \cancel{36} \textcircled{37} \cancel{38} \cancel{39} \cancel{40} \textcircled{41} \cancel{42} \textcircled{43} \cancel{44} \cancel{45} \cancel{46} \textcircled{47} \cancel{48} \cancel{49} \cancel{50}
2.अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers),एक प्राइम नंबर क्या है? (What is a prime number?) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.कौनसी एक अभाज्य संख्या है? (Which is a prime number?):
उत्तर:अभाज्य संख्याएँ वे संख्याएँ होती हैं जिनमें केवल 2 गुणनखंड होते हैं:1 और स्वयं।उदाहरण के लिए,पहली 5 अभाज्य संख्याएँ 2, 3, 5, 7 और 11 हैं।इसके विपरीत, 2 से अधिक गुणनखण्डों वाली संख्याएँ मिश्रित संख्याएँ (composite numbers) कहलाती हैं।
प्रश्न:2.कितने प्राइम ज्ञात हैं? (How many primes are known?):
उत्तर:पहली 25 अभाज्य संख्याएँ (100 से कम सभी अभाज्य संख्याएँ) हैं: 2,3,5,7,11,13,17,19,23,29,31,37,41,43,47, 53,59, 61,67,71,73,79,83,89,97 (OEIS में अनुक्रम A000040)।
प्रश्न:3.क्या अनंत अभाज्य संख्याएँ हैं? (Are there infinite prime numbers?):
उत्तर:प्राइम्स की अनंतता।अभाज्य संख्याओं की संख्या अनंत है।पहले वाले हैं: 2,3,5,7,11,13,17,19,23,29,31,37 और इसी तरह।इस महत्वपूर्ण प्रमेय का पहला प्रमाण प्राचीन यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड ने दिया था (ancient Greek mathematician Euclid)।
प्रश्न:4.आज ज्ञात सबसे बड़ी अभाज्य संख्या कौन सी है? (What is the largest prime number known today?):
उत्तर:वर्तमान में,सबसे बड़ी ज्ञात अभाज्य संख्या {2^{82,589,933}}-1 है।यह प्राइम,खोजे जाने वाले पिछले सात सबसे बड़े प्राइम के साथ,मेर्सन प्राइम्स (Mersenne primes) के रूप में जाना जाता है,जिसका नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ मारिन मेर्सन (French mathematician Marin Mersenne) (1588-1648) के नाम पर रखा गया है।
प्रश्न:5.वर्तमान सबसे बड़ी अभाज्य संख्या क्या है? (What is the current largest prime number?):
उत्तर:सबसे बड़ी ज्ञात अभाज्य संख्या (सितंबर 2021 तक) {2^{82,589,933}}-1 है,एक संख्या जिसमें आधार 10 में लिखे जाने पर 24,862,048 अंक होते हैं।यह 2018 में ग्रेट इंटरनेट मेर्सन प्राइम सर्च (Great Internet Mersenne Prime Search) (GIMPS) के पैट्रिक लॉरोच (Patrick Laroche) द्वारा स्वेच्छा से कंप्यूटर के माध्यम से पाया गया था।
प्रश्न:6.क्या अभाज्य संख्याएँ ऋणात्मक हैं? (Are prime numbers negative?):
उत्तर:नहीं
पूर्णांकों के लिए अभाज्य की सामान्य परिभाषा के अनुसार,ऋणात्मक पूर्णांक अभाज्य नहीं हो सकते।इस परिभाषा के अनुसार,अभाज्य संख्याएँ एक से बड़ी पूर्णांक होती हैं जिनमें एक और स्वयं के अलावा कोई धनात्मक भाजक नहीं होता है। ऋणात्मक संख्याओं को बाहर रखा गया है। वास्तव में,उन्हें कोई विचार नहीं दिया जाता है।
प्रश्न:7.क्या अभाज्य संख्याएँ ज्ञात करने का कोई सूत्र है? (Is there a formula to find prime numbers?):
उत्तर:विधि1:दो क्रमागत संख्याएँ (consecutive numbers) जो प्राकृत संख्याएँ हैं और अभाज्य संख्याएँ 2 और 3 हैं। 2 और 3 के अलावा, प्रत्येक अभाज्य संख्या को 6n+1 या 6n-1 के रूप में लिखा जा सकता है,जहाँ n एक प्राकृत संख्या है।नोट:ये दोनों अभाज्य संख्याएँ ज्ञात करने का व्यापक सूत्र (general formula) हैं।
प्रश्न:8.क्या सभी अभाज्य संख्याएँ विषम होती हैं? (Are all prime numbers odd?):
उत्तर:सबसे पहले,संख्या 2 को छोड़कर,सभी अभाज्य संख्याएँ विषम हैं क्योंकि एक सम संख्या 2 से विभाज्य है,जो इसे संयुक्त (composite number(called successive prime numbers)) बनाती है।तो,एक पंक्ति में किन्हीं दो अभाज्य संख्याओं के बीच की दूरी (जिसे क्रमिक अभाज्य संख्याएँ कहा जाता है) कम से कम 2 है।
प्रश्न:9.विश्व में खोजी गई अंतिम संख्या कौन सी है? (Which is the last number discovered in the world?):
उत्तर:नई खोजी गई संख्या को मेर्सन प्राइम के रूप में जाना जाता है,जिसका नाम मारिन मेर्सन (Marin Mersenne) नाम के एक फ्रांसीसी भिक्षु के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने लगभग 350 साल पहले प्राइम्स का अध्ययन किया था।Mersenne primes का एक सरल सूत्र है: {2^{n}-1}।इस मामले में,”n” 82,589,933 के बराबर है जो स्वयं एक अभाज्य संख्या है।
प्रश्न:10.अभाज्य संख्याओं का आविष्कार किसने किया? (Who invented prime numbers?):
उत्तर:एर्टोस्थनीज (Ertosthenes)
लगभग 200 ईसा पूर्व में ग्रीक एराटोस्थनीज ने अभाज्य संख्याओं की गणना के लिए एक एल्गोरिथम तैयार किया जिसे इरेटोस्थनीज की छलनी (चलनी) (Sieve of Eratosthenes) कहा जाता है।तब अभाज्य संख्याओं के इतिहास में एक लंबा अंतराल होता है जिसे आमतौर पर अंधकार युग कहा जाता है।अगले महत्वपूर्ण विकास 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में फर्मेट (Fermat) द्वारा किए गए थे।
प्रश्न:11.अभाज्य संख्याएँ धनात्मक क्यों होती हैं? (Why are prime numbers positive?):
उत्तर:एक अभाज्य संख्या एक धनात्मक पूर्णांक होती है जिसमें ठीक दो गुणनखंड होते हैं।यदि p एक अभाज्य है तो इसके केवल गुणनखंड आवश्यक रूप से 1 और p ही हैं।कोई भी संख्या जो इसका पालन नहीं करती है,मिश्रित संख्या (composite numbers) कहलाती है,जिसका अर्थ है कि उन्हें अन्य धनात्मक पूर्णांकों में विभाजित किया जा सकता है।
प्रश्न:12.क्या भिन्नें अभाज्य संख्याएँ हो सकती हैं? (Can fractions be prime numbers?):
उत्तर:यह मानते हुए कि “भिन्न” से आपका मतलब है “गैर-पूर्णांक परिमेय संख्या (non-integer rational number)” (उदाहरण के लिए 3/7),उत्तर है: नहीं,”भिन्नें (fractions)” अभाज्य संख्याएँ नहीं हो सकती हैं,न ही वे संयुक्त संख्याएँ (composite numbers) हो सकती हैं।
प्रश्न:13.अभाज्य संख्या ज्ञात करने का सबसे तेज़ तरीका क्या है? (What is the fastest way to find a prime number?):
उत्तर:प्राइम साईव्ज (अभाज्य चलनी) (Prime sieves) लगभग हमेशा तेज होते हैं।प्राइम sieving,primes को नियत रूप से गिनने का सबसे तेज़ ज्ञात तरीका है।कुछ ज्ञात सूत्र हैं जो अगले अभाज्य की गणना कर सकते हैं लेकिन अगले अभाज्य को पिछले अभाज्य संख्याओं के रूप में व्यक्त करने का कोई ज्ञात तरीका नहीं है।
प्रश्न:14.अभाज्य संख्या का जनक कौन है ? (Who is the father of prime number?):
उत्तर:एरेटोस्थेनेज (Eratosthenes)
200 ईसा पूर्व में,एराटोस्थनीज ने एक एल्गोरिथम बनाया जिसने अभाज्य संख्याओं की गणना की,जिसे एराटोस्थनीज की छलनी (चलनी) (Sieve of Eratosthenes) के रूप में जाना जाता है।
प्रश्न:15.प्राइम किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? (What does primes stand for?):
उत्तर:अभाज्य
संक्षिप्त रूप (परिवर्णी शब्द) (Acronym) परिभाषा
PRIMES:अंतःविषय गणित,पारिस्थितिकी (Ecology) और सांख्यिकी के लिए कार्यक्रम (कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी (Colorado State University))
PRIMES:युद्ध सामग्री और इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों का पूर्व-उड़ान एकीकरण
उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers),एक प्राइम नंबर क्या है? (What is a prime number?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
Prime Numbers
अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers)
Prime Numbers
अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) वे पूर्ण संख्याएँ हैं जिनके स्वयं और 1 के अतिरिक्त ओर कोई भी गुणनखण्ड नहीं होते हैं।जैसे:2,3,5,7,11 इत्यादि।इसके विपरीत प्रत्येक भाज्य संख्या (Composite Numbers) को एक अद्वितीय रूप से अभाज्य संख्याओं (Prime Numbers) के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
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