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Positive and Negative Thinking

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1.सकारात्मक और नकारात्मक चिंतन (Positive and Negative Thinking),विधेयात्मक और नकारात्मक चिन्तन विद्यार्थी के लिए कैसे उपयोगी हैं? (How Are Positive and Negative Thinking Useful for Students?):

  • सकारात्मक और नकारात्मक चिंतन (Positive and Negative Thinking) में सकारात्मक चिंतन का अर्थ है की बुरी से बुरी स्थिति में कुछ बढ़िया,कुछ अच्छा ढूंढ लेना तथा नकारात्मक चिंतन का अर्थ है की अच्छी से अच्छी स्थिति में नकारात्मक बात ढूंढ लेना।
  • वस्तुतः विद्यार्थी अथवा व्यक्ति को संतुलित सोच या दृष्टिकोण रखना चाहिए अर्थात् न तो पूर्णतः सकारात्मक सोच रखनी चाहिए क्योंकि ऐसा व्यक्ति यथार्थ को नकारता है तथा न पूर्णतः नकारात्मक सोच रखनी चाहिए क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने आगे बढ़ने,विकास करने,सफलता अर्जित करने के रास्ते बंद कर लेता है।
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2.पुरुषार्थ और भाग्य क्या है? (What is effort and fortune?):

  • यदि आप सचमुच एक युवक/युवती की श्रेणी में परिणत होना चाहते/चाहती हैं तो अपनी आंखों में चमक,मन में उत्साह और भुजाओं में पुरुषार्थ का ओज भरिए।
  • जो भाग्यवादी हैं,वे भाग्य को और जो भाग्य जैसी किसी वस्तु को स्वीकार नहीं करते हैं वे पुरुषार्थ अथवा कर्मशीलता को,जीवन में सुख-संपन्नता,दुःख-विपन्नता और यश-अपयश का हेतु मानते हैं।हमारे विचार से उक्त  दोनों विचारधाराओं के मध्य कोई विशेष अंतर नहीं है।पुरुषार्थ भाग्य का निर्धारण करता है और भाग्य के अनुरूप पुरुषार्थ की प्रवृत्ति निर्धारित की जाती है।मनोवैज्ञानिकों के कथन का द्रष्टव्य है:
  • “Sow a thought,reap a tendency,
    Sow a tendency,reap a character
    Sow a character,reap a destiny
  • अर्थात् एक विचार को बोओ,एक प्रवृत्ति की फसल काट लो।
    एक प्रवृत्ति को बोओ,एक चरित्र की फसल काट लो।
    एक चरित्र बोओ,एक भाग्य की फसल काट लो।
  • एक महत्त्वपूर्ण तथ्य जो उभकर आता है,वह यह है कि हमारे जीवन-निर्माण एवं जीवन-निर्वाह में विचार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अवयव है-एक प्रकार से वह हमारे व्यक्तित्व का मूलाधार है।डिसरैली कहा करते थे कि हमें अपने मन-मस्तिष्क को महान विचारों से भर लेना चाहिए।तभी हम महान् कार्य संपादित कर सकते हैं।लोग अपने स्वार्थबद्ध व्यक्तित्व एवं परिजन के विषय में सदैव सोचते रहने के कारण क्षुद्र विचारों के चक्र में भ्रमित बने रहते हैं।फालतू विचारों के इसी स्तर के अनुरूप क्षुद्र एवं महत्त्वहीन परिणाम उनके हाथ लगते हैं।मैत्रेय ने कहा था-जगत अपनी ही सृष्टि है।तुम्हारे जैसे विचार होंगे,तुम्हारा संसार भी वैसा होगा।मनोवैज्ञानिकों की अवधारणा है कि मन मस्तिष्क या भावनाएं हमारे व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रकाशित करती है।

3.सकारात्मक व नकारात्मक सोच किस तरह प्रभावित करते हैं? (How do positive and negative thinking affect them?):

  • डॉक्टर नॉर्मन विंसेंट नाम के मनोवैज्ञानिक के अनुसार हमारे विचार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-विधेयात्मक (सकारात्मक) और निषेधात्मक।विधेयात्मक विचार मनुष्य को विषम एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनोबल ऊंचा बनाए रखने में समर्थ बनाते हैं तथा अनुकूल परिस्थितियों के आशान्वित रखते हैं।निषेधात्मक विचार व्यक्ति को निराश,हताश एवं निरुत्साहित बना देते हैं।निषेधात्मक विचारों के मध्य व्यक्ति हीनत्व भावना से ग्रसित एक लघु मानव की प्रतिमूर्ति बन जाता है।अस्तित्ववादी जीवन दर्शन के अनुसार व्यक्ति अपने जीवन का स्वयं चयन करता है।इस चयन द्वारा या तो वरेण्य बन जाता है अथवा मृत्यु का वरण करने के लिए विवश हो जाता है।प्रतिकूल अथवा निषेधात्मक विचार व्यक्ति के जीवन में स्थायी संत्रास उत्पन्न कर देते हैं।अनुकूल अथवा विधेयात्मक विचार व्यक्ति की प्रतिभा को निखारते हैं और उसकी बौद्धिकता पर सान चढ़ा देते हैं।
  • विधेयात्मक पक्ष की ओर देखना,उस दिशा में सोचना,संकल्पशील मन की एक प्रक्रिया है जो व्यक्ति के चयन पर निर्भर करती है।विपदा द्वारा ग्रसित व्यक्ति के निषेधात्मक विचार उसको पलायन के प्रति प्रेरित करते हैं जबकि विधेयात्मक अथवा भावात्मक विचार उसके कान में पुरुषार्थ एवं आशा का गुरुमन्त्र फूंकते हैं- समय के फेर में पड़े हुए पांडवों को राजा विराट के यहां भृत्यकार्य करने पड़े थे।गाण्डीवधारी अर्जुन को एक नपुंसक के रूप में रहना पड़ा था,महाबली भीम को राजा का रसोइया बनना पड़ा था,आदि परंतु उनके विचार सदैव भावात्मक रहे और उन्होंने परिस्थितियों को यथास्थिति के रूप में स्वीकार किया था।वस्तुस्थिति तो यह है कि विधेयात्मक दृष्टिकोण सद्प्रवृत्तियों को व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बना लेता है।
  • प्रतिकूल परिस्थितियों के मध्य उल्लासित बने रहने को ही तो युवकोचित उत्साह कहा जाता है।हमारे युवा वर्ग को अपनी स्थिति एवं नियति को इसी आशाबारी दृष्टि से देखने का अभ्यासी बनना चाहिए।कारण स्पष्ट है कि विधेयात्मक चिंतन करने वाले व्यक्ति जीवन में न कभी हार मानते हैं और ना कभी छोटी-छोटी सफलताओं से संतुष्ट होते हैं और न असफल होने पर हाथ पैर हाथ रखकर बैठते हैं।
  • आधुनिक काल में प्रसिद्ध लेखक थॉमस कार्ललायल को जीवनभर अपनी परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा था,परंतु उन्होंने कभी न अपने विचारों को अभावात्मक अथवा निषेधात्मक बनाया और न कभी अपने युवकोचित उत्साह को भंग होने दिया।कौन नहीं जानता है कि अपने अध्यवसाय एवं पौरुष के बल पर वह अपने जीवन में सफलता के चरम स्वरूप को प्राप्त कर सके थे।उनकी समाधि पर अंकित उन्हीं के वाक्य हमारे युवकोचित उत्साह को उद्दीप्त करने वाले हैं-तनकर खड़े रहो,जीत तुम्हारी है।
  • हमारे विचार से जीवन प्रत्येक व्यक्ति से पूछता है-क्या तुम बहादुर बनोगे? युवकोचित ऊर्जा से पूरित व्यक्ति पूरे आत्मविश्वास के साथ कहता है-‘हां’ जबकि अन्य व्यक्ति सोचते रहते हैं।प्रश्नकर्ता अपनी राह चला जाता है और उन्हें कायरता के कुफल भोगने के लिए अभिशप्त कर जाता है।मंतव्य स्पष्ट है जो युवक/युवती अपनी युवावस्था को सार्थक बनाना चाहते/चाहती हैं,वे अपने चिंतन-पद्धति को सकारात्मक दिशा प्रदान करके सफलता का वरण करते/करती हैं।महारथी अर्जुन के विश्व-विजयी होने के पीछे उनका यह दृढ़ संकल्प था-ना दैन्यं न पलायनं अर्थात् न तो मैं कभी अपने को असहाय अनुभव करूंगा और न कभी जीवन की विषमताओं एवं विसंगतियों से पलायन ही करूंगा।
  • व्यक्ति जितना आशावादी एवं उत्साह से पूर्ण होता है,उतना ही वह अपने प्रति आश्वस्त होता है तथा उसका उद्देश्य भी उतना ही महान् होता है।उद्देश्य जितना महान् होगा,संघर्ष भी उतना ही दीर्घकालीन होगा।महती  योजना को क्रियान्वित करने के लिए हमारे युवकों को हमेशा प्रेरक विचारों से ओतप्रोत रहना चाहिए।महापुरुषों के प्रेरक विचार एवं उनका जीवन हमें सतत आगे बढ़ाने की प्रेरणा देता रहता है।महापुरुष उन विचारों को जीकर दिखाते हैं इसीलिए वे हमें प्रेरित करते रहते हैं।

4.नकारात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदलें (Change nagative thinking to positive thinking):

  • युवावस्था की सार्थकता यह है कि युवक/युवती में श्रीराम के समान सागर पर सेतु बांधने सदृश असंभव प्रायः कार्य करने का उत्साह हो।जवान वह है जो अपनी हथेलियां के बीच में पृथ्वी रखकर मसल दे।
  • सच्चे अर्थों में उसे ही युवा कहा जाएगा जिसे अपने साहस,पौरुष एवं विधेयात्मक चिंतन पद्धति पर पूरा विश्वास है? जो समाज से कुछ लेने की नहीं,उसको कुछ देने की स्पृहा रखता है,वही युवा है।युवावस्था की पहचान यह है कि युवक-युवती अपनी अस्मिता के प्रति सजग रहें।पाटल प्रसून की भांति विकसित होने के लिए उन्हें कांटों का आलिंगन करना ही होगा।
  • प्रेरक साहित्य का अध्ययन करें,जो आपमें नवीन ऊर्जा का संचार करता हो।दरअसल महापुरुषों द्वारा अनुभव से गुजरने,संघर्षों से गुजरने,प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरने पर उन्होंने उनका कैसे सामना किया इन सबसे उनके जीवन चरित का अध्ययन करने से पता चलता है।अपने मिशन में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों से घबराएं नहीं बल्कि उस प्रतिकूल परिस्थिति से बाहर निकलने का उपाय सोचते रहें।यह उपाय हमें सकारात्मक सोच से ही पता पड़ता है।
  • जिनका जीवन खुशहाल,साधन-संपन्न तथा सुव्यवस्थित दिखाई देता है उनको भी प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है और वे प्रतिकूल परिस्थितियों से सकारात्मक सोच रखकर ही आगे बढ़े हैं।
  • सकारात्मकता जीवन में आती है सत्साहित्य का अध्ययन करने,स्वाध्याय करने,प्रतिकूल परिस्थितियों से टकराने से,न कि हिम्मत हारने,भाग खड़े होने से आती है।
  • हर विद्यार्थी को अपने अध्ययन के विषयों में,जीवन में बहुत सी चुनौतियां का सामना करना पड़ता है।इस प्रकार चुनौतियां हमें अपने मित्रों से,घर-परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों से भी मिल सकती है।यदि आप जॉब करते हैं तो बाॅस,कनिष्ठ कर्मचारियों और वरिष्ठ अधिकारियों से चुनौतियों मिल सकती हैं।कई बार कोई हमारा मित्र अथवा व्यक्ति अपनी अपेक्षाओं के अनुसार खरा नहीं उतरता है ऐसी स्थिति में हमें बहुत निराशा होती है।इस निराशा से बाहर निकलने का उपाय सकारात्मक सोच से ही मिलता है।
  • यदि आप परीक्षा,जीवन में सफल होना चाहते हैं तो प्रतिकूल परिस्थितियों में सकारात्मक सोच का निर्माण करें।अच्छे लोगों,सज्जनों की संगत से भी हमें सकारात्मक सोच विकसित करने में मदद मिलती है।
  • परंतु नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों,फुहड़ साहित्य को पढ़ने,गुंडे-बदमाशों,आलसी विद्यार्थियों और मटरगश्ती करने वाले साथियों की संगत आदि से बचें अन्यथा ये आपके जीवन को नरक कर देंगे।
  • इसका अर्थ यह नहीं है कि नकारात्मक सोच बिल्कुल नहीं रखनी चाहिए परंतु वह हमारे विकास में साधक हो,सहायता पहुंचाने वाली हो।जैसे आप कोई अपना जीवन का लक्ष्य रखते हैं तो सकारात्मक सोच के साथ इसके नेगेटिव पहलू को भी ध्यान रखें।इसका नेगेटिव पहलू है कि आपके भरसक प्रयास करने पर भी आप जरूरी नहीं है सफल हो ही जाएं।ऐसी स्थिति में यह नकारात्मक सोच आपको निराश करने के बजाय इस मिशन से बुरा से बुरा परिणाम मिलने पर उसको सहन करने के लिए तैयार करती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सकारात्मक और नकारात्मक चिंतन (Positive and Negative Thinking),विधेयात्मक और नकारात्मक चिन्तन विद्यार्थी के लिए कैसे उपयोगी हैं? (How Are Positive and Negative Thinking Useful for Students?) के बारे में बताया गया है।

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5.गणित से अमर प्रेम (हास्य-व्यंग्य) (Undying Love for Mathematics) (Humour-Satire):

  • एक छात्र (दूसरे छात्र से):क्या तुम सचमुच में गणित विषय से प्रेम करते हो।
  • दूसरा छात्र:इसमें क्या संदेह है?
  • पहला छात्र:तो तुम क्या गणित विषय के लिए मर भी सकते हो?
  • दूसरा छात्र:नहीं प्रिय मेरा अमर प्रेम है।

6.सकारात्मक और नकारात्मक चिंतन (Frequently Asked Questions Related to Positive and Negative Thinking),विधेयात्मक और नकारात्मक चिन्तन विद्यार्थी के लिए कैसे उपयोगी हैं? (How Are Positive and Negative Thinking Useful for Students?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सकारात्मक व नकारात्मक सोच में क्या अंतर है? (What is the difference between positive and negative thinking?):

उत्तर:एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कीचड़ में भी कमल को देखता है लेकिन एक नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को चाँद में भी दाग नजर आता है।

प्रश्न:2.सफल व्यक्तियों का प्राथमिक गुण क्या है? (What are the primary qualities of successful people?):

उत्तर:सभी असाधारण और सफल व्यक्तियों का सबसे पहले दिखाई देने वाला गुण है-सकारात्मक दृष्टिकोण।

प्रश्न:3.नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने का और क्या उपाय है? (What is the way to change the negative attitude?):

उत्तर:एक सही तर्क ही किसी व्यक्ति के नकारात्मक दृष्टिकोण को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदल सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सकारात्मक और नकारात्मक चिंतन (Positive and Negative Thinking),विधेयात्मक और नकारात्मक चिन्तन विद्यार्थी के लिए कैसे उपयोगी हैं? (How Are Positive and Negative Thinking Useful for Students?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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