No One Succeeds on Their Own Alone
1.कोई भी अकेला अपने दम पर सफल नहीं होता (No One Succeeds on Their Own Alone),सफलता में अनेक व्यक्तियों का योगदान (Contribution of Many People to Success):
- कोई भी अकेला अपने दम पर सफल नहीं होता (No One Succeeds on Their Own Alone) है।सफलता में अन्य व्यक्तियों का किसी न किसी प्रकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष योगदान होता है तभी वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है,आगे बढ़ता जाता है।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:Basis of Progress is Cooperation
2.कई व्यक्ति मदद की अनदेखी करते हैं (Many individuals ignore help):
- इस दुनिया में व्यक्ति एक से एक खूबसूरत कार्य करता है,बहुत बड़े-बड़े और बहुत छोटे कार्य भी करता है,लेकिन इन कार्यों के दौरान वह उन सहायताओं को भूल जाता है,जो उसे उसके पुरुषार्थ के अतिरिक्त प्राप्त हुई थीं।कार्य पूरा होने पर कुछ व्यक्ति यह सोचते हैं कि उन्होंने बिना किसी मदद की अपना कार्य पूरा किया है,उन्होंने अपने कार्य को पूरा करने में कितनी मेहनत की है।कोई उनके समान मेहनत नहीं कर सकता।दुनिया की कोई ताकत उनका मुकाबला नहीं कर सकती और उनकी जगह भी कोई नहीं ले सकता,लेकिन इस तरह के विचार उनके इस अहंकार को और बढ़ावा ही देते हैं कि उन्होंने अकेले अपने दम पर कार्य को पूरा किया है।
- यह बात सच हो सकती है कि उन्होंने कार्य में किसी व्यक्ति की मदद ना ली हो,लेकिन अनगिनत ऐसे सूक्ष्मतत्त्व होते हैं जो हमारी मदद करते हैं और हमें उनके द्वारा प्रदत्त सहायताओं के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।यदि व्यक्ति स्वयं को बहुत बुद्धिमान समझकर अकेले ही कार्य को पूरा करने का अहंकार पालता है तो उसको मिलने वाली सहायताएं स्वतः कम होने लगती है और इसका एहसास उसे बाद में होता है।
- वास्तव में किसी भी कार्य को पूरा करने में हमें बहुत सी अदृश्य सहायताएं मिलती हैं।यदि हम उनके प्रति कृतज्ञ होते हैं,उनका आभार मानते हैं,तो उन्हें भी प्रसन्नता होती है और निरहंकारी व्यक्तित्व की सहायता करने में वे अपना सौभाग्य समझती हैं,लेकिन अहंकारी व्यक्ति की कोई भी सहायता नहीं करना चाहता; क्योंकि उसके विचारों,कार्यों व व्यवहार से मात्र उसके अहंकार की पुष्टि होती है और सामान्य व्यक्ति का कोई भला नहीं हो पाता; जबकि निरहंकारी व्यक्ति अपने हर अच्छे कार्यों को पूरा करने का श्रेय सज्जनों एवं उनकी सहायताओं को देता है और स्वयं के द्वारा की जाने वाली गलतियों के लिए स्वयं को जिम्मेवार ठहराता है।
- इस संसार में कोई भी सर्वज्ञ नहीं है,कोई भी हर कार्य में कुशल नहीं है,कोई भी पूरी तरह से पूर्ण नहीं है,लेकिन हर व्यक्ति की कोशिश यही रहती है कि वह सर्वज्ञ हो जाए और अपनी इस कोशिश में यदि वह थोड़ा भी सफल होता है तो स्वयं को ही सब कुछ मानने लगता है।झूठा दंभ,मायाजाल रचने लगता है और वह यह भूल जाता है कि इस दुनिया में वह थोड़े समय के लिए आया है और यह थोड़ा समय अच्छे कार्यों से स्वयं को जोड़ने के लिए है,जिसका वह अंश मात्र है; ना कि स्वयं को सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए।लेकिन होता यही है कि इस दुनिया में हर व्यक्ति अपना प्रतिद्वंद्वी तलाश लेता है,उससे आगे बढ़ने की होड़ में लगा रहता है और भूल जाता है कि वह और भी कुछ अच्छा कर सकता है और अपने इस मनुष्य जीवन में निहित अनगिनत संभावनाओं को साकार कर सकता है।
3.श्रेष्ठ व्यक्ति पात्र व्यक्ति को खोजते हैं (The best people look for the deserving person):
- लेकिन अधिकांश व्यक्तियों का जीवन तो दूसरों की कमियां ढूंढने,बुराइयां करने में ही चला जाता है,जो कि उनके लिए हितकर नहीं है।हमारे इस मनुष्य जीवन में अनगिनत सहायताएं हमें हर पल मिलती रहती हैं,लेकिन हम उन्हें महसूस नहीं कर पाते,समझ नहीं पाते और अहंकार की चादर ओढ़कर अपनी आंखों में ऐसी पट्टी बांध लेते हैं,जिससे हम दुनिया की वास्तविकता को देखना ही नहीं चाहते और वही देखते हैं व सुनते हैं,जो हम देखना और सुनना चाहते हैं तथा अपने संपर्क में आने वालों को भी उपलब्धियों व कार्यों से परिचित कराते हैं।
- इस मनुष्य शरीर में हम जो कुछ भी अच्छा सोचते हैं,वे श्रेष्ठ विचार हमें अंतरिक्ष से मिलते हैं।अंतरिक्ष में विचारमंडल की कई परतें हैं और अपनी योग्यता व समझ के अनुसार हम उन्हीं विचारों को ग्रहण करते हैं,उन्हीं के माध्यम से हम योजनाएं बनाते हैं और अपने द्वारा कार्यों को सफल अंजाम दे पाते हैं,लेकिन यह बात बिल्कुल सत्य है कि हम इन विचारों को पैदा नहीं कर सकते।ये शुभ विचार केवल हम ग्रहण कर सकते हैं और तभी ग्रहण कर सकते हैं,जब हम इनके योग्य होते हैं।इसी कारण एक कार्य को अच्छे ढंग से पूरा करने के बाद हम वैसा ही दूसरा कार्य उसी ढंग से पूरा नहीं कर सकते,क्योंकि हर नए कार्य को पूरा करते समय हमें उस कार्य के लिए अपनी पात्रता प्रमाणित करनी पड़ती है।हो सकता है कि पात्रता की कसौटी पर खरा प्रमाणित होने पर हमें जब सहायताएं मिलें तो पहले से दोगुनी हों और ऐसा भी संभव है की उपयुक्त न पाए जाने पर हमें कोई सहायता न मिले और हमें वह कार्य केवल अपने पुरुषार्थ के बल पर ही करना पड़े।
- चुनौतियों का सामना करने पर हमारे सामने सूक्ष्म शक्तियाँ जो परीक्षाएं लेती हैं तो ये देखती हैं कि व्यक्ति का उद्देश्य कितना बड़ा है,कितना हितकर है,स्वार्थ के लिए है या परमार्थ के लिए,वह अहंकारी है या निरहंकारी है,उसके अंदर भगवदीय शक्तियों के प्रति कितनी श्रद्धा व विश्वास है,यह सब जांच-परख लेने के बाद ही वे मदद करती हैं।यह सच है कि इन सूक्ष्म शक्तियों के हाथ मदद कर के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,लेकिन ये भी सुयोग्य व्यक्तियों की तलाश में रहती हैं और इन्हें कोई किसी प्रकार से धोखा नहीं दे सकता।
- इस संसार में अनगिनत व्यक्तियों ने सज्जनों व श्रेष्ठ पुरुषों की सहायताएं प्राप्त की है जिनमें सबसे जीवन्त उदाहरण गणितज्ञ इसाक न्यूटन,कार्ल फेड्रिक गौस,महावीराचार्य,ब्रह्मगुप्त आदि का है।इनका व्यक्तित्व,इनका उद्देश्य व सबसे प्रमुख मानव जाति के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत ने इनको कई ऐसी शक्तियों का सहयोग मिला है कि देखते ही देखते साधारण से दीखने वाले ये व्यक्तित्व असाधारण चुंबकत्व के स्वामी हो गए।इन्होंने अनेक ऐसी खोजें की जिनको स्मरण करने मात्र से हमारा मस्तक उनके आगे श्रद्धा से झुक जाता है।
- हमारे जीवन में ऐसा कुछ खास नहीं है कि हम अहंकार को प्रश्रय दें।हमें प्रकृति निरंतर देती रहती है-श्वास लेने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन,पीने के लिए जल,खाने के लिए भोजन,चलने और घूमने-फिरने के लिए धरातल आदि।इतना सब कुछ मिलने के बाद यदि हम इनके प्रति कृतज्ञ ना होकर स्वयं के द्वारा किए जाने वाले तुच्छ कार्यों पर घमंड करें तो यह उचित नहीं है।हमारा हित तो इसी में है कि हम अपने जीवन में शुभ कर्म करें,अच्छा सोचें और अपनी भावनाओं को परिष्कृत करें,ताकि इनकी पहुंच इतनी ऊपर हो कि वे सज्जनों,श्रेष्ठ पुरुषों का किंचितमात्र स्पर्श पा सकें।ऐसा कहने पर ही हम भगवदीय अनुदान के अधिकारी बन पाएंगे और अपने एवं अनेकानेक दूसरों के जीवन को सही दिशा दे पाएंगे।
4.छात्र-छात्राएं क्या करें? (What should students do?):
- पहली बात किसी अन्य छात्र-छात्रा के पहनावे और रहन-सहन से उसकी आर्थिक स्थिति व हैसियत नहीं मापनी चाहिए।दूसरी बात,जो कि ज्यादा महत्त्वपूर्ण है भी,वह यह है कि यदि हमारे पास हमारी आवश्यकता से ज्यादा अतिरिक्त योग्यता,क्षमता,काबिलियत,साधन-सुविधाएं हैं तो उसे जरूरतमंद छात्र-छात्राओं और संकटग्रस्त विद्यार्थी के लिए उपयोग करें।यदि हमें अपनी मेहनत से या भाग्यवश अपनी आवश्यकताओं से अधिक योग्यता,क्षमता,साधन-सुविधाएँ प्राप्त होती है तो बेशक आप प्राप्त करें पर यह हमेशा ध्यान रखें की अतिरिक्त साधन-सुविधाएँ,योग्यता,क्षमता,काबिलियत,कुशलता आदि पर दूसरों का भी हक है क्योंकि इन सबको प्राप्त करने के लिए आपको शिक्षकों,मित्रों,सहपाठियों,माता-पिता,अभिभावकों,अपरिचित लोगों की मदद मिली है,मिलती रहेगी।
- भले ही आपने लाख ईमानदारीपूर्वक,अपना खून पसीना एक करके,खूब डटकर,एड़ी चोटी का जोर लगाकर,रात-दिन एक करके योग्यता,क्षमता,काबिलियत,कुशलता और साधन-सुविधाएं जुटायी हों लेकिन इस अतिरिक्त क्षमता,योग्यता आदि का उपयोग अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने,अपना ही घर समृद्ध करने,मौज मजा करने में ना करके सामाजिक,राष्ट्रीय कार्यों में तथा अन्य छात्र-छात्राओं की मदद करने में उपयोग करना चाहिए।
- आप ऊपर तभी उठ पाएंगे,आगे तभी बढ़ पाएंगे जब स्वार्थ के साथ परमार्थ का भी ध्यान रखेंगे।अन्यथा एक सीमा तक प्रगति और विकास करने के बाद आपकी योग्यता,क्षमता व कुशलता की वृद्धि होने पर ब्रेक लग जाएगा और आप केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले कहलाने लग जाएंगे।
- कुछ लोगों की मानसिकता होती है कि उन्होंने डटकर खुद मेहनत की है,योग्यता अर्जित की है,अनेक कष्टों और कठिनाइयों का सामना किया है,रातों की नींद हराम की है तब जाकर यह काबिलियत और कुशलता हासिल की है,ऐसी स्थिति में इसको दूसरों को मुफ्त में ही क्यों बांटा जाएं,क्यों दूसरों को अपनी योग्यता व कुशलता का लाभ पहुंचाया जाए।वास्तव में यह हमारी गलतफहमी है और खड़तल भाषा में कहें तो हमें अपनी काबिलियत का हैजा हो जाता है।जब काबिलियत का हैजा हो जाता है तो यह काबिलियत उल्टी और दस्त के द्वारा हमारे शरीर से निकल जाता है।यानी हमारी इस योग्यता और कुशलता का दुरुपयोग होने लगता है या सीधे शब्दों में कहें तो हम अपनी काबिलियत व कुशलता का दुरुपयोग करने लगते हैं।एक-एक व्यक्ति से जुड़कर परिवार का निर्माण होता है,और अनेक परिवारों के योग से समाज और विभिन्न समाजों से राष्ट्र का निर्माण होता है।इसलिए हमारे ऋषियों ने राष्ट्र से भी आगे बढ़कर संपूर्ण पृथ्वी को ही परिवार की संज्ञा दी है अर्थात् ‘वसुदेव कुटुंबकम’ का नारा बुलंद किया है।
- अतः छात्र-छात्राएं विद्या अर्जन करने के लिए खूब परिश्रम करें,तप करें,कोई कसर बाकी ना छोड़ें,अपने अंदर अच्छे कौशल का विकास करें,अपनी क्षमता,योग्यता व कुशलता को बढ़ाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दें लेकिन इन सबको अर्जित करने के बाद आप अपना स्वार्थ सिद्ध करें,अपने परिवार का पालन पोषण करें परंतु आवश्यकता से अधिक आपके पास साधन सुविधाएं हैं,आय है,योग्यता,क्षमता,कुशलता है तो जरूरतमंद और संकटग्रस्त लोगों के लिए उपयोग करें।
5.विद्यार्थी किसी कार्य का स्वयं उत्तरदायी (Students are responsible for their own actions):
- कोई भी विद्यार्थी सफल होता है तो अनेक व्यक्तियों की सहायता-सहयोग से होता है।अब प्रश्न उठता है कि क्या विद्यार्थी असफल होता है तो उसके लिए अन्य लोग भी जिम्मेदार होते हैं क्या? इसको समझने के लिए कुछ बातों को समझना जरूरी है।दरअसल कोई भी विद्यार्थी सफल या असफल होता है तो उसका मूल कारण उसके कर्म होते हैं।मूल कारण तो विद्यार्थी के अच्छे या बुरे कर्म और उनका परिणाम ही होता है।अन्य व्यक्ति निमित्त कारण होते हैं,मूल कारण नहीं होते,सहायक भी हो सकता हैं और होता भी है परंतु मूल कारण नहीं हो सकता।
- विद्यार्थी सहायता करने वाले की बात को पूरी तरह से अमल न करें,उस विधि के अनुसार अध्ययन ना करें,रणनीति पर अमल न करें तो मार्गदर्शक को दोष देना और यह कहना कि उनके द्वारा बताई गई रणनीति में दम नहीं है यानी वही मसल होगी कि नेकी बरबाद,गुनाह लाजिम।इस तरह मार्गदर्शक,सहायता करने वाले का यश तो नष्ट होगा ही,साथ ही लंबे-चौड़े लेख लिखने में जो समय लगेगा,श्रम लगेगा वह भी बेकार जाएगा।
- लंबे-चौड़े लेख लिखने,लगातार परिश्रम करने और चिंतन-मनन करने से कितनी दिमागी थकावट होती है यह हम ही जानते हैं,मार्गदर्शक,सहायता-सहयोग करने वाला ही जानता है।इतना सब कष्ट झेलते हुए भी यदि विद्यार्थी को सफलता प्राप्त न हो,कोई लाभ न हो और यश मिलना तो दूर उल्टे अपयश मिले तो यह तो हवन करते हाथ जला लेने वाली बात ही हुई न? उधर विद्यार्थी कहेगा कि लेख पढ़ने में इतना समय नष्ट किया,अनेक पुस्तकें खरीदी,किस-किस से सहायता व सहयोग नहीं लिया,शिक्षा पर पानी की तरह पैसा खर्च किया,कोचिंग संस्थान और शिक्षा संस्थानों को मोटी-तगड़ी फीस चुकाई वह सब पानी में गया और वह भी श्रेष्ठ कोचिंग संस्थान और शिक्षा संस्थान में पढ़ने के बावजूद जिन पर इतनी श्रद्धा थी,भरोसा था और भरोसे की भैंस पाड़ा जन गई वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
- कोई भी विद्यार्थी किसी ज्ञानी से,किसी पुस्तक से,किसी वेबसाइट से या किसी भी माध्यम से पढ़ने के गुर जान ले पर उनका पालन न करे तो उसे कोई लाभ न होगा।आप उस माध्यम को इसके लिए धन्यवाद दे सकते हैं जिससे आपका हित हुआ हो पर याद रखिए कि यदि आपका कर्म और कर्मफल सही ना होता तो उस माध्यम से आप लाभ न उठा पाते।इसलिए जिन माध्यमों की मदद आपने ली है उनके प्रति आभारी होने की उनकी जरूरत नहीं है जितनी अपने कर्मों और कर्त्तव्य पालन के प्रति सजग एवं सक्रिय रहकर शुभ व सही दिशा में आचरण करने की है वरना उन सभी माध्यमों का मार्गदर्शन निष्फल हो जाएगा।
- विद्यार्थी को कर्म (अध्ययन) करना ही पड़ेगा और यह भी जरूरी है कि कर्म (अध्ययन कार्य) अच्छा,उपयोगी और नियम (सही रणनीति) के अनुकूल हो।यह भी ठीक है कि कृतज्ञता प्रकट करना और मदद करने वाले का उपकार मानना हमारी भारतीय संस्कृति का अंग है वरना फिर भगवान की स्तुति उपासना ही क्यों की जाए क्योंकि भगवान भी तो हमारे ही कर्मों का फल देता है।
- विद्यार्थी को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो भी समय अच्छे विचार और अच्छे काम (अध्ययन-मनन-चिंतन) करते हुए व्यतीत होता है उतने समय का समझो,सदुपयोग हुआ।व्यर्थ समय नष्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि गुजरा हुआ समय किसी भी कीमत पर दोबारा नहीं मिल सकता इसीलिए समय अमूल्य होता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में कोई भी अकेला अपने दम पर सफल नहीं होता (No One Succeeds on Their Own Alone),सफलता में अनेक व्यक्तियों का योगदान (Contribution of Many People to Success) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:5Tips for Collaborating and Supporting
6.ये मदद करते हैं क्या? (हास्य-व्यंग्य) (Do they help?) (Humour-Satire):
- निदेशक:डरो मत,आ जाओ,आ जाओ।
- टिंकू:सर,ये टीचर विद्यार्थी की मदद करते हैं क्या?
- निदेशक:पता नहीं,आज ही इन्हें नियुक्त किया है।चेक करने के लिए तो तुम्हें बुला रहा हूं।
7.कोई भी अकेला अपने दम पर सफल नहीं होता (Frequently Asked Questions Related to No One Succeeds on Their Own Alone),सफलता में अनेक व्यक्तियों का योगदान (Contribution of Many People to Success) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.असफल व्यक्ति के लिए सफलता का स्वाद कैसा होता है? (What does success taste like for an unsuccessful person?):
उत्तर:जिन्होंने जीवन में कभी सफलता नहीं पाई है उनके लिए सफलता का मूल्यांकन मधुरतम होता है।
प्रश्न:2.मनुष्य का स्वभाव कैसा है? (What is man’s nature like?):
उत्तर:मनुष्य का स्वभाव ही है।तनिक-सा दोष देखते ही,कुछ क्षण पूर्व की सभी अच्छी बातों को भूलते उसे देर नहीं लगती है।
प्रश्न:3.किसी की सहायता करना किसके समान है? (What is it like to help someone?):
उत्तर:किसी की कुछ सहायता करना,उधार देने की एक वैज्ञानिक पद्धति है।किसी का भला करने पर लौटकर हमें लाभ मिलता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा कोई भी अकेला अपने दम पर सफल नहीं होता (No One Succeeds on Their Own Alone),सफलता में अनेक व्यक्तियों का योगदान (Contribution of Many People to Success) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here | |
7. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.