Mathematics and Discipline
Contents
hide
1
1.गणित और अनुशासन का परिचय (Introduction to Mathematics and Discipline):
1.गणित और अनुशासन का परिचय (Introduction to Mathematics and Discipline):
- गणित और अनुशासन (Mathematics and Discipline) का आपस में गहरा सम्बंध है.गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में अनेक मानसिक एवं अनुशासनात्मक गुणों तथा मूल्यों का विकास होता है। इसके अध्ययन से विद्यार्थियों में सोचने, समझने, तर्क करने, निर्णय करने आदि गुणों का विकास होता है। बालकों में निरीक्षण शक्ति एवं प्रयोगों द्वारा सत्यता की जाँच करने की आदत इस विषय के अध्ययन से पड़ जाती है तथा उनमें मूल तथा क्रमबद्ध विचार उत्पन्न होते हैं। प्रश्न के उत्तर प्राप्त करने के लिए बालक को सत्यता को आधार बनाना पड़ता है तथा सही उत्तर प्राप्त होने से उनकी सत्यता एवं तर्कसंगता में आस्था पैदा हो जाती है।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें ।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:Nature of Mathematics
2.गणित के विद्यार्थियों में अनेक मानसिक क्रियाओं द्वारा निम्नांकित विशेषताओं का विकास होता है जो उसके जीवन का अंग बन जाती हैं (Many mental activities in mathematics students develop the following characteristics which become part of their life):
- (1.)आधारभूत गणितीय क्रियाओं तथा सिद्धान्तों में विश्वास।
- (2.)गणितीय विचारों को प्रयोग में लाकर समस्याओं के सही हल प्राप्त करने की क्षमता।
- (3.)गणित को एक जीवनोपयोगी विषय मानना।
- (4.)गणितीय दक्षताओं एवं तर्क का जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग।
- गणित शिक्षण के अनुशासनात्मक उद्देश्य में आस्था रखने वाले समर्थकों का यह विश्वास है कि इस विषय द्वारा विकसित मानसिक अनुशासन केवल गणित तक ही सीमित नहीं रहता किन्तु जीवन की दूसरी क्रियाओं में भी इसका स्थानांतरण होता है।
Also Read This Article:Ancient indian mathematicians
3.गणित के अध्ययन से निम्न प्रकार की मानसिक क्रियाओं का विकास होता है जो दूसरे विषयों के अध्ययन से सम्भव नहीं है (The study of mathematics leads to the development of the following types of mental activity which is not possible by the study of other subjects):
- (1.)गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है। गणित की समस्याओं को समझने और हल करने के लिए एक अच्छे स्तर की एकाग्रता की आवश्यकता होती है। गणित के नियमित अध्ययन से इस शक्ति का विकास होता है।
- (2.)गणित का अध्ययन विवेक तथा क्रियात्मक कल्पना को विकसित करता है। समस्या का हल ज्ञात करते समय विवेक का प्रयोग कर उपयुक्त विधि की कल्पना करनी पड़ती है तथा निर्णय लेना पड़ता है। ज्यामिति या अंकगणित की किसी भी समस्या को समझने में कल्पना-शक्ति का सहारा लेना पड़ता है तथा सही हल की खोज करनी पड़ती है। इस प्रकार का सतत प्रशिक्षण विद्यार्थियों के विवेक को जागृत करता है।
- (3.)गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता का विकास होता है। पुस्तकीय ज्ञान पर धीरे-धीरे निर्भरता कम होती जाती है तथा स्वयं के चिन्तन एवं मनन पर विश्वास बढ़ता जाता है।
- (4.)गणित के अध्ययन से विद्यार्थियों में स्वत: क्रमबद्धता से काम करने की आदत पड़ जाती है क्योंकि इसके बिना वे इस विषय पर अधिकार नहीं प्राप्त कर सकते हैं। गणित का अध्ययन प्रत्येक कक्षा में सत्र के आरम्भ से ही क्रमबद्धता से करना आवश्यक होता है। अन्य विषयों की भाँति इस विषय को केवल परीक्षा के दिनों में नहीं सीखा जा सकता है। कठिन परिश्रम एवं सतत प्रयासों के द्वारा ही यह विषय भली-भाँति सीखा जा सकता है।
- (5.)नवीन आविष्कारों में गणित का अध्ययन सहायक सिद्ध होता है। इस विषय को समझने के लिए विद्यार्थी को मनन तथा तर्क-वितर्क करना पड़ता है तथा मौलिकता को काम में लाना पड़ता है। नवीन अनुसंधान के लिए मौलिकता, तर्क-वितर्क एवं क्रियात्मक कल्पना आवश्यक है और ये सब अधिकांशत: गणित के अध्ययन से प्राप्त होते हैं।
- (6.)गणित का विद्यार्थी सतत् अध्ययन से चरित्रवान एवं अध्यवसायी बन जाता है। गणितीय सत्यों एवं जीवन से सम्बंधित तथ्यों में एकता की स्थापना कर वह सत्यनिष्ठ बन जाता है तथा सतत् परिश्रम करने पर उसे गणित की विषय-सामग्री पर अधिकार प्राप्त होता है। गणित विषय को इतिहास या भाषा की तरह नहीं सीखा जा सकता है। गणित के नियमों एवं सिद्धान्तों को समझकर समस्या को हल करने का श्रम करना पड़ता है तथा इस विषय में पारंगतता प्राप्त करने के लिए सतत् परिश्रम करना आवश्यक है। जितने भी गणित के अच्छे विद्यार्थी हैं उनकी सफलता का आधार उनके द्वारा इस विषय को सीखने में किया हुआ श्रम ही है। क्रमबद्ध तरीके से कार्य करने की आदत, नियमितता एवं सत्य में निष्ठा आदि से विद्यार्थियों में चरित्र का निर्माण होता है जिससे उनमें मानवीय गुणों का प्रादुर्भाव होता है। स्वच्छता एवं शुद्धता से कार्य करने का अभ्यास भी गणित के लिए आवश्यक है।
- (7.)गणित के विद्यार्थी परिश्रमी होते हैं। अतः वे किसी भी कठिन विषय को परिश्रम एवं चिंतन से सीख सकते हैं। यह भी देखा गया है कि गणित के विद्यार्थियों का भाषा पर अधिकार होता है क्योंकि वे सरलता से भाषा के वाक्य निर्माण के नियमों, शब्दों के अर्थ तथा भाषा की बारिकीयों आदि को ग्राह्य कर लेते हैं। परिश्रमी होने के कारण उनका भाषा पर अधिकार प्राप्त करना सरल हो जाता है।
- (8.)जीवन में सादगी और सरलता गणित की देन मानी जाती है। गणित की विषयवस्तु में सरल एवं कठिन पक्ष होते हैं तथा इसके सीखने की विधि सरलता से कठिनता की ओर होती है। समस्याओं के हलों या ज्यामिति के साध्यों में क्रमबद्धता एवं परिशुद्धता होती है जिनका प्रभाव विद्यार्थी के सोचने की विधि तथा आदतों पर पड़ता है। क्रियाशीलता एवं सरलता शनैः शनैः मनुष्य के व्यक्तित्व के भाग बन जाते हैं। सही निष्कर्षों को प्राप्त करने के सफल प्रयास विद्यार्थी में स्वयं की क्षमता के बारे में जागरूकता उत्पन्न करते हैं।
- (9.)समीचीन तर्क -अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिए अर्थात् समस्या का सही हल प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को प्रत्येक पद के औचित्य के बारे में विचार करना आवश्यक होता है। गणित में अपनी कमी को विद्यार्थी शब्दाडम्बर या भाषा के जाल द्वारा छिपा नहीं सकता। उसे सही हल ज्ञात करने के लिए सही सोपानों का उपयोग करना पड़ेगा अन्यथा वह सही उत्तर प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा।
Also Read This Article:Areas of mathematics
4.अन्य गुण जो गणित सीखने में सहायक सिद्ध होते हैं (Other qualities that prove helpful in learning mathematics):
- (1.)रटने में अविश्वास।
- (2.)चिंतन का परिष्कृत होना।
- (3.)कथनों में शुद्धि एवं परिकल्पनाओ की तर्कसंगतता में आस्था।
- (4.)सत्य और असत्य का निर्णय करने की योग्यता का विकास।
- (5.)शीघ्रता से समझने तथा तथ्यों का विवेचन करने की क्षमता का विकास।
- (6.)आदतों में नियमितता।
- (7.)स्मृति का विकास।
- (8.)निष्कर्षों के सत्यापन के प्रति विश्वास।
- (9.)स्पष्टता एवं परिशुद्धता का विकास।
- (10.)क्रियात्मकता एवं कल्पना का समन्वय।
- (11.)कार्य-विधि के चयन में पारदर्शिता।
- गणित के अध्ययन से उपर्युक्त गुणों एवं अन्य शक्तियों का विद्यार्थी में विकास होता है। आज के युग में विचारों की शुद्धता, स्पष्टता एवं क्रमबद्धता का होना अत्यंत आवश्यक है। गणित का एक अच्छा विद्यार्थी कपट, झूठ, धोखा एवं आडम्बर को पसंद नहीं करता। चरित्र-निर्माण एवं मानसिक अनुशासन के लिए गणित एक सर्वश्रेष्ठ विषय है। गणित एवं दर्शनशास्त्र का घनिष्ठ संबंध है। संसार के प्रसिद्ध गणितज्ञ दर्शनशास्त्री भी हुए हैं। बर्टेन्ड रसेल, आइन्स्टीन आदि गणितज्ञ दर्शनशास्त्री भी थे। इस विषय के अध्ययन से सूक्ष्म निरीक्षण की आदत का निर्माण होता है तथा यही आदत मनुष्य को संसार के अनेक गूढ़ तत्त्वों के बारे में चिंतन की ओर अग्रसर करती है तथा दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में रुचि उत्पन्न करती है।
Also Read This Article:Mathematician aryabhatta pratham
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित और अनुशासन (Mathematics and Discipline) के बारे में बताया गया है.
Mathematics and Discipline
गणित और अनुशासन
(Mathematics and Discipline)
Mathematics and Discipline
गणित और अनुशासन (Mathematics and Discipline) का आपस में गहरा सम्बंध है.गणित के अध्ययन से
विद्यार्थियों में अनेक मानसिक एवं अनुशासनात्मक गुणों तथा मूल्यों का विकास होता है।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |