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Mathematician Varahamihira

1.गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira),वराहमिहिर (Varahamihir):

  • गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira) का जन्म 505 ईस्वी में अवंती क्षेत्र (Avanti Region) के कायथा (Kayatha) में हुआ था जोकि वर्तमान में मालवा (Malwa) (मध्य प्रदेश,भारत) में स्थित है।उनके पिता का नाम आदित्यदास था।उनकी शिक्षा कपित्थक (Ka pithika) में हुई थी।उनकी मृत्यु उज्जैन में 587 ईस्वी में हुई थी।
    वराहमिहिर और आर्यभट का समय लगभग एक ही है।यह दोनों ज्योतिषी 500 ईस्वी के आसपास जीवित थे।दंतकथाओं में कहा गया है कि कालिदास आदि की तरह वराहमिहिर भी विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक थे।पर इतिहास में दंतकथाओं के इस विक्रमादित्य के बारे में हमें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है।हाँ,गुप्त-सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी।’विक्रमादित्य’ की उपाधिवाले ओर भी कई शासक हुए।
  • वराहमिहिर के पिता का नाम आदित्यदास था और पिता से ही उन्होंने ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया था।वराह ज्ञानार्जन के बाद जीविका के लिए अवंतीदेश (मालवा) चले गए थे।उस समय उज्जयिनी (उज्जैन) अवंतीदेश की राजधानी थी। वह स्वयं लिखते हैं कि कांपिल्लक नगर में उन्हें सूर्य का वरदान प्राप्त हुआ था।यह कांपिल्लक नगर उज्जयिनी के आसपास रहा होगा।वराह सूर्य के उपासक थे।
  • गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira) ने ज्योतिषशास्त्र के कई शाखाओं पर ग्रंथ रचे हैं।आज उनके ग्रंथ मिलते हैं,वे ये हैं:लघुजातक,बृहज्जातक,विवाह-पटल,बृहत्संहिता,योगयात्रा और पंचसिद्धांतिका।ये सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में है।इनमें सबसे प्रसिद्ध पंचसिद्धांतिका ग्रंथ है।
  • पंचसिद्धांतिका ग्रंथ 505 ईसवी (शक-संवत् 427) में लिखा था।आर्यभट ने अपना आर्यभटीय ग्रंथ 23 साल की आयु में 499 ईस्वी में लिखा था।
  • ‘पंचसिद्धांतिका’ का अर्थ है पांच सिद्धांत।वराह ने सबसे पहले इसी ग्रंथ को लिखा था।जिन ग्रंथों में ज्योतिषी व गणित के बारे में बुनियादी एवं वैज्ञानिक बातों की जानकारी दी जाती है उन्हें सिद्धान्त-ग्रंथ कहते हैं।वराह के पंचसिद्धांतिका ग्रन्थ में जो बातें दी हुई है वे मूलतः उनकी खोजी हुई नहीं है।बात यह है कि वराह के पहले हमारे देश में ज्योतिष के पांच सिद्धांत ग्रंथ रचे जा चुके थे।ये पांच सिद्धान्त हैं:पितामह-सिद्धांत,वशिष्ठ-सिद्धांत,रोमक-सिद्धांत,पुलिश-सिद्धांत और सूर्य-सिद्धान्त।वराह के पहले हमारे देश में इन 5 सिद्धांतों के अनुसार ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन होता था।वराह ने पंचसिद्धांतिका ग्रंथ में इन्हीं पुराने पांच सिद्धांतों की जानकारी दी है।इस जानकारी से पता चलता है कि रोमक और पुलिश सिद्धांत पाश्चात्य ज्योतिष पर आधारित थे।
  • भारत पर सिकंदर की चढ़ाई के बाद भारतीय पंडित यूनानी ज्योतिष के संपर्क में आए थे।यूनान में भी ज्योतिषशास्त्र ने खूब उन्नति की थी।वहाँ ईसा की दूसरी शताब्दी में तालेमी नाम के एक बहुत बड़े ज्योतिषी हुए थे।तालेमी ने भूगोल की अपनी पुस्तक में भारत के बारे में कुछ जानकारी दी है।ईसा की प्रारंभिक सदियों में यूनानी और भारतीय पंडित एक-दूसरे के ज्ञान-विज्ञान से भलीभांति परिचित थे।इसीलिए पाश्चात्य ज्योतिष की अच्छी बातों को लेकर भारतीय ज्योतिषियों ने रोमक और पुलिश सिद्धान्त बनाए थे।
  • वराह मिहिर ने अपने ग्रंथ में जिन पुराने पांच सिद्धांत ग्रंथों की जानकारी दी है,वे आजकल नहीं मिलते।वराह ने अपने ग्रंथ में इन सिद्धांत-ग्रंथों की जानकारी देकर हमारा बड़ा उपकार किया है। सिद्धांत ग्रन्थ आज भी मिलते हैं परंतु ये ग्रंथ वराह के बाद के रचे हुए हैं।पुराने सिद्धांत ग्रंथ और वराह के बाद के लिखे गए सिद्धांत ग्रन्थों की बातों में समानता नहीं है।
  • कुछ विद्वानों का मत है कि वराह ने यूनान,रोम आदि पश्चिम देशों की यात्रा करके वहां का ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त किया था।यह भी संभव है कि उन्हें भारत में किसी यूनानी विद्वान से पाश्चात्य ज्योतिष की जानकारी मिली हो।पुराने जमाने में भी ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान होता था।वराह ने स्वीकार किया है कि यूनानी ज्योतिष भी उच्च कोटि के है।वराह के ग्रंथों में कई यूनानी शब्द मिलते हैं: जैसे-क्रिय,ताबुरि,जितुम,लेय,कौर्प्य,हेलि, होरा, आपोलिक्म,हिबुक,केन्द्र आदि।
  • सूर्य सिद्धांत:यह लटदेव (Latadeva) द्वारा रचित माना जाता है लेकिन वास्तव में मयासुर (MAyasura) द्वारा रचित है जिसे मामुनि मय (Mamuni Mayan) के रूप में जाना जाता है।
  • वशिष्ट सिद्धांत:यह विष्णुचंद्र द्वारा रचित ग्रेट बियर (Great Bear) के सितारों में से एक कहा जाता है।
  • पुलिश सिद्धांत:इसे पॉलिसा (Paulisa) ग्रीक (Greek) सेंट्रा शहर (City of Saintra) से पुकारा जाता है जिसे पाॅलिसा द्वारा रचित अलेक्जेंड्रिया माना जाता है।
  • रोमक-सिद्धान्त:इसे रम (Rum) पुकारा जाता है जिसका अर्थ है कि रोमन साम्राज्य के विषय।यह श्रीसेना (Srishena) द्वारा रचित है।
  • पितामह सिद्धांत।
  • वराह का दूसरा महत्वपूर्ण ग्रंथ है बृहत्संहिता।यह ग्रन्थ अपने समय का ज्ञानकोष है इसमें ज्योतिष की तो चर्चा है ही,अन्य विद्याओं के बारे में भी जानकारी है।इसमें ज्योतिष से संबंधित जानकारी है वह अब पुरानी पड़ गई है।इतिहास की दृष्टि से अब उन बातों का महत्त्व है।पर इस ग्रंथ की दूसरी बातें बड़े महत्त्व की है।इस ग्रंथ में उस समय की जनता,उनके रीति-रिवाज,राज्य और जनपद,नदी और पर्वत,खेती के तरीके,मौसम,वास्तुकला,मूर्तिकला,मंदिरों,ग्रहों की गति,बादल निर्माण,वर्षा,गणित,रत्न विज्ञान,इत्र और अन्य विषयों के बारे में बहुत सारी बातें दी गई है।वराह के ग्रंथों में उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में काफी जानकारी मिलती है। वराह के बृहत्संहिता ग्रंथ के आधार पर कुछ लोगों ने उस समय की सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन करने का प्रयास शुरू किया है।असल में यह काम बड़े महत्त्व का है।वराह के इस ग्रंथ में बहुत सारी जानकारी है।इसलिए बाद के ब्रह्मगुप्त,भास्कराचार्य आदि ज्योतिषियों ने वराह की स्तुति की है।
  • वराह के ग्रंथों में गणित की चर्चा बहुत कम है पर फलित-ज्योतिष की बहुत अधिक।जन्मकुंडली आदि बनाने की विद्या को होराशास्त्र कहते हैं।वराह ने अपना बृहज्जातक ग्रंथ इसी शास्त्र पर लिखा है। लघुजातक पुस्तक इस बृहज्जातक का संक्षिप्त रूप है।वराह का विवाह-पटल ग्रंथ भी फलित-ज्योतिष से संबंधित है।योग-यात्रा पुस्तक में वराह ने बताया है कि यात्रा पर निकलते समय कौन सी बातें शुभ होती है और कौन-सी अशुभ।
  • हमारे देश में ऐसे ढेर सारे ज्योतिषी हैं जो ज्योतिष की पुरानी पोथियों के आधार पर भोली-भाली जनता को उनका ‘भाग्य’ बताकर अपना पेट पालते हैं।ऐसे ज्योतिषी वराह को प्राचीन भारत का सबसे बड़ा ज्योतिष मानते हैं।कारण यह है कि वराह की पुस्तकों में फलित-ज्योतिष के बारे में बहुत सारी जानकारी मिलती है।होना तो यह चाहिए था कि वराह की अच्छी बातों को ग्रहण कर लिया जाता और अंधविश्वासी बातों को छोड़ दिया जाता।
  • पृथ्वी की एक खास प्रकार की गति जिसे अयन-चलन कहते हैं,के कारण ऋतुएँ पीछे सरक जाती है।वराह को इस अयन-गति का अच्छा ज्ञान था।वे जानते थे कि गणित द्वारा की गई घटनाओं में और ग्रह-नक्षत्रों की प्रत्यक्ष स्थिति में इस अयन-चलन के कारण अंतर पड़ता जाता है। इसलिए उन्होंने आगे के ज्योतिषियों को हिदायत दे रखी थी कि समय-समय पर पंचांग में सुधार करते रहना चाहिए।पर बाद के ज्योतिषियों ने उनके अच्छे सुझाव की अपेक्षा की।परिणाम यह हुआ कि पंचांग और ऋतुओं में अंतर बढ़ता ही गया।पंचांग पुरानी गणना पद्धतियों पर बनते रहे।अभी कुछ दशक पहले स्वतंत्र भारत की सरकार ने पंचांग में सुधार करने की योजना बनाई तभी एक नया राष्ट्रीय-पंचांग बना है।
  • हमारे देश में वराहमिहिर के ग्रन्थों की बड़ी प्रसिद्धि रही है।दसवीं शताब्दी के एक विद्वान ज्योतिषी भट्टोत्पल ने वराह के ग्रंथों पर टिकाए लिखी है तो वराह के ग्रंथों को ओर भी प्रसिद्धि मिली।ग्यारहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में मध्य-एशिया का एक प्रसिद्ध विद्वान अल्बेरूनी भारत यात्रा पर आया था। ज्योतिष शास्त्र का पंडित था और संस्कृत भाषा भी जानता था।अल्बेरूनी ने भारत के बारे में एक ग्रंथ लिखा है।इस ग्रंथ में भारतीय ज्योतिष विशेषत: वराहमिहिर के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है। अल्बेरूनी ने वराह के ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद भी किया था।आज वराह की अधिकांश बातें पुरानी पड़ गई है।पर हमारे देश के प्राचीन ज्योतिष एवं जनजीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए वराह के ग्रन्थों का अध्ययन जरूरी है।वराह के समय में हमारा ज्योतिष ज्ञान किसी भी अन्य देश के ज्योतिष-ज्ञान से कम नहीं था।पर बाद में हमारे देश के ज्योतिषि लकीर के फकीर बनते गए।वराह की तरह बाद के ज्योतिषी भी पाश्चात्य ज्योतिष को ग्रहण करते रहते तो हम ज्योतिष ज्ञान में इतने पीछे नहीं रहते।उनके पुत्र पृथुयस (Prithuyasas) ने भी ज्योतिष में योगदान दिया। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक होरा सारा कुंडली एक प्रसिद्ध पुस्तक है।मध्यकालीन बंगाली कवि ज्योतिषी खाना (Khana) को वराहमिहिर की बहू माना जाता है जिसे अन्यत्र लीलावती भी कहा जाता है।
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2.गणितज्ञ वराहमिहिर का गणित में योगदान (Contribution of Mathematician Varahamihira):

  • त्रिकोणमिति:त्रिकोणमिति में वराहमिहिर ने आर्यभट की साइन टेबल की सटीकता में सुधार किया।
  • काॅम्बिनेटोरिक्स (Combinatorics):इसमें पहले ज्ञात 4×4 मैजिक स्क्वायर को भी रिकाॅर्ड किया।
  • उन्होंने संचय (Permutation) तथा क्रमचय (Combination) के क्षेत्र में कार्य किया तथा उन्होंने क्रमचय सूत्र ^{n}c_{r} की गणना करने की विधि ज्ञात की जो वर्तमान में पास्कल त्रिभुज के समान थी।
  • प्रकाशिकी (Optics):भौतिकी में वराहमिहिर के योगदान के बीच इनका यह कथन है कि परावर्तन कणों के पश्च-प्रकीर्णन (Back-Scattering) और अपवर्तन (Refraction) (एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाने पर प्रकाश की दिशा में परिवर्तन) के कारण होता है जो कि कणों की पदार्थ के आंतरिक रिक्त स्थान में प्रवेश करने की क्षमता के कारण होता है (Particles penetrate inner spaces of the material) बहुत कुछ तरल पदार्थ की तरह जो झरझरा वस्तुओं (Porous Objects) के माध्यम से चलती है।
  • वराहमिहिर यह उल्लेख करनेवाले पहले व्यक्ति थे कि अयन या विषुव का स्थानान्तरण प्रतिवर्ष 50.32 चाप सेकण्ड है।
  • उपर्युक्त विवरण में गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira),वराहमिहिर (Varahamihir) के बारे में बताया गया है।

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3.गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira),वराहमिहिर (Varahamihir) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.वराहमिहिर की खोज किसने की? (What discovered Varahamihira?):

उत्तर:वराहमिहिर एक भारतीय ज्योतिषी (astrologer) थे,जिनका मुख्य कार्य गणितीय खगोल विज्ञान पर एक ग्रंथ था,जिसमें पहले के खगोलीय ग्रंथों का सारांश था।उन्होंने पास्कल के त्रिभुज के एक संस्करण (Pascal’s Triangle) की खोज की और जादू वर्गों (magic squares) पर काम किया।

प्रश्न:2.गणित में वराहमिहिर का क्या योगदान था? (What was the contribution of Varahamihira in mathematics?):

उत्तर:वराहमिहिर के गणितीय कार्यों में त्रिकोणमितीय सूत्रों की खोज (Discovery of Trigonometric Formulas) शामिल थी।उन्होंने आर्यभट प्रथम की साइन टेबल की सटीकता में सुधार किया।उन्होंने शून्य के बीजगणितीय गुणों (algebraic properties of zero) के साथ-साथ ऋणात्मक संख्याओं (negative numbers) को भी परिभाषित किया।

प्रश्न:3.वराहमिहिर किस लिए जाने जाते थे? (What was Varahamihira known for?):

उत्तर:वराहमिहिर,जिसे वराह या मिहिरा भी कहा जाता है, (जन्म 505, उज्जैन, भारत – मृत्यु 587, उज्जैन),भारतीय दार्शनिक,खगोलशास्त्री और गणितज्ञ,पंच-सिद्धांतिका (“पांच ग्रंथ (Five Treatises)”) के लेखक, ग्रीक,मिस्र का एक संग्रह।रोमन और भारतीय खगोल विज्ञान (compendium of Greek, Egyptian, Roman, and Indian astronomy)।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira),वराहमिहिर (Varahamihir) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

Mathematician Varahamihira

गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira)

Mathematician Varahamihira

गणितज्ञ वराहमिहिर (Mathematician Varahamihira) का जन्म 505 ईस्वी में अवंती क्षेत्र (Avanti Region) के कायथा (Kayatha) में हुआ था जोकि वर्तमान में मालवा (Malwa) (मध्य प्रदेश,भारत) में स्थित है।उनके पिता का नाम

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