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Mathematician Rejuvenates Students

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1.गणितज्ञ द्वारा छात्र-छात्राओं का कायाकल्प (Mathematician Rejuvenates Students),गणितज्ञ का अभिभावकों को मार्गदर्शन (Mathematician’s Guodence to Parents):

  • गणितज्ञ द्वारा छात्र-छात्राओं का कायाकल्प (Mathematician Rejuvenates Students) करने हेतु एक संस्था स्टूडेंट्स हेल्प सेंटर का गठन कर रखा था।गणितज्ञ द्वारा संचालित उस संस्था में दो सहयोगी थे।
  • वे दिग्भ्रमित छात्र-छात्राओं को सही दिशा देने का अपनी ओर से अथक प्रयास करते थे।
    उनके प्रयासों से कई छात्रों को नई जिन्दगी मिली और वे आगे चलकर बहुत मेधावी हुए।अपने क्षेत्र में उन्होंने माता-पिता,शिक्षकों और गणितज्ञ का नाम रोशन किया।इसी संबंध में यह प्रेरक विवरण प्रस्तुत है।
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2.छात्रों को सही दिशा देने के प्रसंग (Contexts to give the right direction to the students):

  • दृश्य एक:राजधानी के एक प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में किसी नटखट छात्र ने गणित के कालांश में लगातार तीन बार शरारत की।शरारतें इतनी गंभीर थी की तीसरी बार चेतावनी देकर नहीं छोड़ा जा सकता था।प्रिंसिपल ने उसे स्कूल से निकाल दिया।छात्र दसवीं कक्षा में पढ़ता था।इस स्तर तक पहुंचने के बाद अच्छे स्कूल में प्रवेश मिलना आसान नहीं था।उस पब्लिक स्कूल जैसे प्रतिष्ठित विद्यालय से निकाले जाने का कारण हर अच्छे स्कूल में पूछा जाता और कारण बताया जाता तो किसी भी हालत में प्रवेश नहीं मिलता।
  • छात्र के पिता ने अपने शरारती पुत्र की नियति और मजबूरी समझ कर चुप्पी साध ली।स्कूल से निकाले जाने के बाद विद्यार्थी को अपनी गलती का एहसास हुआ।वह पश्चाताप से भर उठा और अपना निष्कासन रद्द करने के लिए खुद ही यहां-वहां भटकने लगा।प्रबंध समिति के विभिन्न सदस्यों के द्वार खटखटाने,अध्यापकों से मिला,स्वयं प्रिंसीपल के पास गया,लेकिन कहीं से उम्मीद पूरी होती नहीं दिखाई दी।
  • कहीं से पता चला कि स्टूडेंट्स हेल्प सेंटर के संचालक एक सहृदय व्यक्ति हैं,वे भटके हुए छात्र-छात्राओं को सही रास्ते पर लाने और यथासंभव मदद करते हैं।उनकी संस्था और उनका नाम (अवधेशानन्द) इतना प्रख्यात हो चुका था कि शहर में हर कहीं उनकी चर्चा होती रहती थी।छात्र तत्काल श्री अवधेशानंद जी के पास गया और उन्हें अपनी व्यथा कह  सुनाई।
  • अवधेशानन्द जी ने पूछा कि तुमने शरारत क्यों की।छात्र ने स्पष्ट उत्तर दिया कि श्रीमान मुझे गणित विषय बिल्कुल समझ में नहीं आता था।बहुत कोशिश की समझने की,परंतु सारी कोशिशे बेकार रही।निराश होकर स्कूल में गणित के कालांश में शरारत करना चालू कर दिया।गणितज्ञ (अवधेशानन्द) महोदय ने छात्र की पीड़ा और पश्चाताप की सच्चाई को अनुभव किया।उन्होंने छात्र को आश्वस्त किया और दो दिन बाद में आने के लिए कहा।छात्र निश्चित होकर घर लौट आया।अब अवधेशानन्द जी संबंधित पब्लिक स्कूल में गए।प्रिंसीपल से बातों-ही-बातों में निकाले गए छात्र की चर्चा छेड़ी।उस छात्र का नाम आते प्रिंसीपल ने तपाक से कहा,माफ करना श्रीमान,लेकिन आप उस बदमाश लड़के को वापस लेने के लिए मत कहना।
  • अवधेशानंद जी ने कहा,नहीं कहूंगा।लेकिन जरा अपने पीछे तो देखो।किसका चित्र (फोटो) लगा हुआ है,जिसकी फोटो तुमने लगा रखी है,उस (महात्मा गौतम बुद्ध) ने अंगुलिमाल,अशोक जैसे नर संहार करने वालों,पतित अंबापाली वेश्या को सही मार्ग पर लाकर सही दिशा दी तो दूसरी ओर योग्य,श्रेष्ठ हर्षवर्धन,आनंद,राहुल,कुमार जीव,संघमित्रा की प्रतिभा से भारत से भी उच्च कोटि के बिहार,संघाराम,बौद्ध स्तूप विदेशों में स्थापित करवाये।उन्होंने प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों के द्वारा अपना काम बढ़ाया तो दूसरी और पतित,दुर्जनों को भी रास्ते पर लाकर सही दिशा दी।प्रिंसीपल ने अपनी पीछे लगी गौतम बुद्ध के चित्र को निहारा।अवधेशानंद जी के कहे हुए शब्दों ने हृदय को छू लिया।कुछ क्षण चुप रहने के बाद प्रिंसीपल स्वतः बोले,क्या सचमुच वह लड़का सुधरने के लिए तैयार है।कुछ आश्वासन और पड़ताल के बाद छात्र को वापस प्रवेश मिल गया।आगे का काम उन गणितज्ञ महोदय (अवधेशानंद जी) ने संभाला।प्रेम,आत्मीयता और उदारता की भावना ने छात्र में आत्मविश्वास के साथ जिम्मेदारी की भावना भी भर दी।वह रोजाना एक घंटा स्टूडेंट्स हेल्प सेंटर में गणित पढ़ने लगा।उसे धीरे-धीरे गणित समझ में आने लगी।एक वर्ष में गणित में अच्छी पकड़ हो गई।दसवीं कक्षा में वह अव्वल आया।उसके बाद सफलता के रिकॉर्ड कायम करता गया।अगले दो वर्षों में वह अपनी स्कूल के सबसे होनहार छात्रों में था।
  • दृश्य दो:एक छात्र 12वीं कक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया।उसने ऐच्छिक विषय के रूप में गणित विषय ले रखा था।पिता इससे बहुत नाराज हुए।इतना नाराज की उन्होंने बेटे को अपनी नजरों से दूर ही रहने के लिए कहा।कह दिया कि मुझे तुम्हें अपना पुत्र कहते हुए शर्म आती है।पिता ने बच्चे को उसके मामा के यहां भेज दिया।भेजते हुए यह भी जता दिया कि मैं तुम्हारा परिचय अपने बेटे के रूप में नहीं दे सकूंगा,क्योंकि तुम 12वीं कक्षा भी पास नहीं कर सके हो।इस तरह के तिरस्कार ने बच्चे के मन में टूटन और विखंडन की भावना भर दी।वह अपनी उम्र के आवारा लड़कों के साथ घूमने लगा।किशोर और युवाओं में जिस तरह की कुटेव पड़ जाती है,वैसी बुरी आदतें उसमें भी आने लगी।माँ इस बात से बहुत परेशान रहने लगी।
  • संयोग से उसी क्षेत्र में संपर्क अभियान पर श्री अवधेशानंद जी निकले,उनके घर आए।माँ ने श्री अवधेशानंद जी को बेटे की परेशानी के बारे में बताया।पूरा वृतांत जानने के बाद उन्होंने उस छात्र के पिता से कहा कि आप अपने बचपन को याद कीजिए।आपने भी कभी अध्ययन में आनाकानी की होगी।स्कूल से बंक मार लिया होगा।तब आपके माता-पिता ने भी तो आपको स्वीकार किया था।तरह-तरह से समझाने पर बात पिता के गले उतरी।उन्होंने बेटे को स्वीकार किया।अवधेशानन्द जी ने कहा कि बच्चे को मेरे पास भेजा करो।आप एक साल तक बच्चे की गलतियों को अनदेखा करो और मेरे पास भेजते रहो।जब भी वह गलती करें उसे समझाओ।सुबह उठते ही बेटे से हौसला बढ़ाने वाली दो-चार बातें कहो।
  • अवधेशानन्द जी ने बच्चे का मनोविज्ञान समझा,कहाँ क्या परेशानी है उसको समझा।गणित पढ़ाना प्रारंभ किया।भौतिक विज्ञान व रसायन शास्त्र के नोट्स किस तरह बनाने हैं इसका मार्गदर्शन तथा उसको कैसे याद करना है यह भी समझाया।इन प्रयत्नों और सावधानियों का अच्छा असर हुआ।वह छात्र सुधर गया।अब वह एक कंपनी में इंजीनियर बन गया।उस छात्र के पिता एक निजी संस्था में क्लर्क थे।पिता साल भर में जितनी कमाई करते थे,उतनी आय वह एक महीने में कर लेता है।
  • अवधेशानन्द जी पुनः उस परिवार के सदस्यों से मिले।छात्र के माता-पिता ने उन्हें बहुत धन्यवाद दिया और यह उलाहना भी सुना कि अपने बेटे से अब भी शर्म आती है या उसकी सफलता पर गर्व अनुभव होता है।निश्चित ही उस छात्र ने चमत्कृत कर देने वाली ऊंचाइयां नहीं छुई हो,लेकिन वह अपने पिता से बहुत आगे गया है,उसकी सफलताओं पर परिवार को गर्व है।

3.गणितज्ञ का छात्र-छात्राओं और अभिभावकों को संदेश (Mathematician’s message to students and parents):

  • यदि बचपन में ध्यान दिया जाए,तो 95% बालक प्रतिभाशाली सिद्ध होते हैं।प्रकृति ने प्रत्येक शिशु में कूट-कूटकर प्रतिभा भरी हुई है।परिस्थितियों का दबाव उन्हें कुंठित नहीं करता,बल्कि अभिभावकों की उपेक्षा ही उनके विकास में बाधक बनती है।यह ठीक है कि कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को पिछड़ा,अयोग्य,दब्बू और असफल देखना नहीं चाहते।अपनी स्थिति और समझ के अनुसार बच्चे के विकास के लिए सभी प्रयत्न करते हैं।नासमझी या निजी कुंठाओं के चलते चूक उन प्रयत्नों में ही हो जाती है।
  • प्रयत्नों की चूक भी एक बार क्षम्य है।मुख्य गलती यह होती है की माता-पिता अपने व्यवहार से बच्चों के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचा देते हैं।कई बार उनका व्यवहार इतना सनक भरा होता है कि बच्चा अपने आपको स्वीकार करने से भी झिझकने लगता है।
  • वयस्क व्यक्ति जैसा भी है,उसे पूरा खिला हुआ फूल मानें तो बच्चों को कली की तरह माना जा सकता है।यह नहीं हो सकता की कली को नकारा जाए और उससे स्वस्थ विकसित पुष्प बनने की आशा भी करें।जो व्यक्ति दब्बू,पहल करने में अक्सर चूक जाने वाले और कुछ देर प्रयत्न करने के बाद ही थक जाने वाली दुर्बलता के शिकार होते हैं,उनका बचपन निश्चित रूप से अस्वीकार,उपेक्षा और लांछन से बिंधा हुआ होता है।बिंधे हुए व्यक्तित्व में जीवन ऊर्जा टिक नहीं पाती और व्यक्ति निरंतर असफल होता चला जाता है।
  • लाड़-प्यार का अर्थ बच्चों में सम्मान और स्वीकार का भाव भरना नहीं है।बहुत बार माता-पिता अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर पाने की स्थिति में भी अनावश्यक लाड़-प्यार करते हैं।जिम्मेदारी का अर्थ बच्चों के व्यक्तित्व-विकास पर ध्यान देना है।पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाने की ग्लानि से उबरने के लिए माता-पिता बच्चों की अनुचित मांग भी पूरी करने लगते हैं।अनाप-शनाप मांगे मानते जाने पर एक स्थिति ऐसी आती है कि किसी-न-किसी बिंदु पर मना करना ही पड़ता है।बच्चा जब मना करने का कारण पूछता है,तो कोई संतोषजनक उत्तर देते नहीं बनता।बार-बार कारण पूछने पर बच्चे को फटकारते हुए जान छुड़ानी पड़ती है। उस फटकार से अब तक बनाया हुआ ‘ताश का महल’ ढह जाता है और व्यक्तित्व में हठ,जिद्द,दुराग्रह जैसी विकृतियाँ आ जाती हैं।यह विकृति गहरे नकार का ही विद्रूप है।
  • आत्मविश्वास बहुत आगे की स्थिति है।किसी भी क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता अर्जित करने के लिए यह आधारभूत गुण है।इस गुण से पहले आत्मसम्मान और आत्मस्वीकार की भावना आनी चाहिए।अदम्य ऊर्जा से भरे व्यक्तित्व में आत्मविश्वास का भाव दुस्साहस की तरह भी उद्भूत हो सकता है।प्रतिकूलताओं और बाधाओं को निरंतर चीरते हुए निकल जाने और शिखर पर पहुंच जाने की क्षमता बिरले व्यक्तियों में ही होती है।वह क्षमता विशिष्ट स्तर की है।99% लोग सामान्य स्तर के ही होते हैं।उनमें आत्मविश्वास की भावना ठीक से जाग सके,तो वे भी विशेष सफलताएं अर्जित कर सकते हैं।
  • गणितज्ञ अवधेशानंद जी ने हजारों अभिभावकों को विमर्श दिया है।ये अभिभावक अपने बच्चों की किसी न किसी समस्या,दोष या अवगुण के लिए चिंतित थे।उन्हें लगता था कि बच्चे में यह दोष रहा तो आगे चलकर उसे जगह-जगह धक्के खाने पड़ेंगे।उसे किसी का सहयोग नहीं मिल सकेगा।अवधेशानन्द जी ने इन अभिभावकों से बच्चों के बारे में नहीं,उनके अपने व्यवहार के बारे में ज्यादा पूछताछ की।85% मामलों में यह निष्कर्ष सामने आया कि अभिभावक बच्चों से ज्यादा अपने आपके प्रति अस्वीकार की भावना के शिकार थे।उसके अभाव में वे आत्मसम्मान के स्थान पर दम्भ और आत्मविश्वास की जगह उद्दंड,हठ या दुराग्रह से ग्रस्त हो गए थे।वही जहर बच्चों में फैल रहा था।पहले अभिभावकों को अपने सुधार की सलाह दी गई।सुधार की दिशा में लगे माता-पिताओं को उसी अनुपात में शुभ परिणाम भी मिले।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ द्वारा छात्र-छात्राओं का कायाकल्प (Mathematician Rejuvenates Students),गणितज्ञ का अभिभावकों को मार्गदर्शन (Mathematician’s Guodence to Parents) के बारे में बताया गया है।

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4.कोचिंग में चोरी (हास्य-व्यंग्य) (Theft in Coaching) (Humour-Satire):

  • एक कोचिंग में चोरी हो रही थी।कोचिंग निदेशक:पुलिस इंस्पेक्टर को फोन किया,कहा कोचिंग में चोर घुस गए हैं,जल्दी से आओ।
  • पुलिस इंस्पेक्टर:मुझे सोने दो,मैं इस वक्त ड्यूटी पर नहीं हूं।

5.गणितज्ञ द्वारा छात्र-छात्राओं का कायाकल्प (Frequently Asked Questions Related to Mathematician Rejuvenates Students),गणितज्ञ का अभिभावकों को मार्गदर्शन (Mathematician’s Guodence to Parents) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आत्म निरीक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। (Write a short note on introspection):

उत्तर:अपने स्वयं के भूत,वर्तमान और भविष्य से भी ज्ञान उपलब्ध करना चाहिए।देखना अधोगामियों को ही नहीं चाहिए वरन वायु और अग्नि की तरह ऊपर की दिशा में ही बढ़ने वालों पर भी ध्यान देना चाहिए।नजर उठाकर उस और भी निहारना चाहिए,जिस दिशाधारा को प्रतिभाशाली श्रेष्ठ लोगों ने अपनाया और आगे बढ़ते हुए पीछे वालों के लिए ऐसा मार्ग छोड़ा है;जिसका अनुकरण करने पर अपने को और अपने साथी-सहचरों को धन्य बनाया जा सके।पतन से विमुख होकर उत्थान का मार्ग अपनाना चाहिए।

प्रश्न:2.महत्त्वपूर्ण लक्ष्य कैसे प्राप्त करें? (How to achieve important goals?):

उत्तर:जो लोभ,मोह और अहंकार से ऊंचे उठ सकने की आवश्यकता ही नहीं समझते उनके संबंध में क्या कहा जाए? किंतु जिन्हें महत्त्वपूर्ण लक्ष्य प्राप्त करना है,उनके लिए एक ही उपाय है कि सोई शक्तियों को जागृत करके,उन्हें उस स्तर का अभ्यास कराएं,जिसके बलबूते बड़े काम किए जाते हैं,बड़े लाभ अर्जित किए जाते हैं।दूसरों की सहायता पाने की बात को अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए।

प्रश्न:3.पिछड़ने का क्या कारण है? (What is the reason for lagging behind?):

उत्तर:जो अपनी जिम्मेदारियों,दायित्वों,कर्त्तव्यों से बचेगा,वह पिछड़ी स्थिति में ही पड़ा रहेगा।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ द्वारा छात्र-छात्राओं का कायाकल्प (Mathematician Rejuvenates Students),गणितज्ञ का अभिभावकों को मार्गदर्शन (Mathematician’s Guodence to Parents) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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