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Mathematician Moved by Costly Teaching

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1.गणितज्ञ महँगी होती शिक्षा से द्रवित (Mathematician Moved by Costly Teaching),गणितज्ञ और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र (Mathematician and Financially Weak Student):

  • गणितज्ञ महँगी होती शिक्षा से द्रवित (Mathematician Moved by Costly Teaching) हुए और छात्र को सहारा दिया परंतु फिर भी महंगी शिक्षा का संपूर्ण समाधान तो नहीं हो सकता है।क्योंकि ऐसे अनेक गांवों और शहरों में प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं हैं जो महंगी होती शिक्षा के कारण शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते।अपने मनोवांछित क्षेत्र में,वांछित शिक्षा संस्थानों में,कोचिंग में शिक्षा अर्जित नहीं कर पाते हैं।
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2.पुत्र जन्मोत्सव पर माता-पिता खुश (Parents happy on the birth of their son):

  • प्रत्येक माता-पिता पुत्र या पुत्री के जन्म के अवसर पर ढेरों खुशियां मनाते हैं।उनकी खुशी का पारावार नहीं रहता है।इसी प्रकार विशंभर भी पुत्र के जन्म पर बहुत खुश हुए।पुत्र के जन्म को उन्होंने सादगी से ही मनाया क्योंकि आज के युग के अनुसार हाई-फाई तरीके से जन्मोत्सव को मनाने जैसी उनकी आर्थिक स्थिति नहीं थी।पुत्र के जन्म के बाद माता-पिता ने बड़े-बड़े सपने संजोए थे।
  • पुत्र का नाम रखा निरंजन।निरंजन धीरे-धीरे बड़ा होता गया,समय अपनी गति से चलता रहता है।समय के गुजरने का भान ही नहीं होता।दिन,माह और वर्ष गुजरे और एक दिन निरंजन स्कूल में दाखिले की उम्र का हो गया।लेकिन शिक्षा संस्थानों की दहलीज पर कदम रखते ही उनको गहरा धक्का लगा।उन्हें समझते देर नहीं लगी कि आज के ये शिक्षा संस्थान धन और रुपए-पैसों के बदौलत ही चल रहे हैं।
  • जो व्यक्ति इन शिक्षा संस्थानों की मोटी-तगड़ी फीस चुका सकता है वही इन शिक्षा संस्थानों में पढ़-लिख सकता है।चारों ओर कुकुरमुत्ते की तरह पब्लिक स्कूलों की बाढ़ सी आ गई है।हालांकि शिक्षा के केंद्र निजी व सरकारी दोनों ही क्षेत्र में संचालित है।परंतु सरकारी क्षेत्र के शिक्षण संस्थान इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में निजी शिक्षण स्कूलों,कॉलेज,विश्वविद्यालय के सामने दम तोड़ रहे हैं।धीरे-धीरे ये निजी शिक्षण संस्थान चारों ओर अपने पांव पसारते जा रहे हैं।
  • विषम्भर के सारे सपने हवा हो गए।उसने सोचा था कि बेटे निरंजन को अच्छे शिक्षण संस्थान में दाखिला दिलवाएगा।किसी न किसी शिक्षण संस्थान में प्रवेश मिल ही जाएगा।उसने पब्लिक और निजी शिक्षण संस्थानों के अनेक दरवाजों को खटखटाया परंतु कहीं भी उसे सकारात्मक जवाब नहीं मिला।कई तो इतने मुंहफट संचालक थे जो शिक्षण संस्थान की मोटी-तगड़ी फीस बताने में बिल्कुल संकोच नहीं करते थे और मुंह पर ही कह देते थे कि विषम्भर किस युग में जी रहे हो।यह युग आर्थिक युग है।धन के बिना इस युग में शिक्षा अर्जित करना तो बहुत दूर की कोड़ी है।तुम इस युग में स्वच्छ सांस भी नहीं ले सकते हो।
  • वे दिन लद गए हैं जिस युग में भारत में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।गुरुजन गुरुकुलों में बालक-बालिकाओं को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते थे।वे संयमपूर्वक तप और त्याग का जीवन जीते थे।आज के अधिकांश शिक्षक पाश्चात्य शिक्षा में रंगे हुए हैं।आज के शिक्षकों में तुम्हें मुश्किल से ही गुरु मिलेंगे।फीस चुकाकर भी प्राचीन शिक्षा जैसी विद्या आज नहीं दिला पाओगे।

3.पिता द्वारा पुत्र के लिए शिक्षा की व्यवस्था (Provision of education for the son by the father):

  • अंततः विशंभर ने निश्चय किया कि वह अपने पुत्र को सरकारी शिक्षण संस्थान में ही शिक्षा दिलवाएगा और बच्चे को स्वयं ही घर पर शिक्षा प्रदान करेगा।विषम्भर  थक-हारकर अपने जाॅब से लौटता तो पुत्र निरंजन को रोजाना रात्रि में पढ़ाता।सरकारी स्कूल में रही कमजोरी को स्वयं पढ़ाकर दूर करता।निरंजन में प्रतिभा तो थी ही।इसलिए स्कूल और घर पर शिक्षा प्राप्त करने पर उसे यह अनुभव ही नहीं हुआ कि वह सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है।
  • निरंजन की प्रतिभा निखरती चली गई और वह किसी भी प्राइवेट स्कूल,पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राओं से कमतर नहीं था।10वीं और 12वीं बोर्ड में शीर्ष स्थान प्राप्त किया।जिन पब्लिक स्कूलों के दरवाजे विशंभर ने खटखटाए थे,उनके संचालकों ने अपने दांतों तले उंगली दबा ली।उन्हें अपने किए गए बर्ताव पर पश्चाताप हुआ परंतु अब क्या हो सकता था।अब तो बाजी उनके हाथ से निकल गई थी।यह निरंजन का सौभाग्य था कि उसके माता-पिता दोनों ही पढ़े-लिखे थे।उसे घर पर ऐसी शिक्षा और विद्या अर्जित करने का वातावरण मिला जो आज के पब्लिक,कान्वेंट स्कूलों और कॉलेजों में भी देखने को नहीं मिलता है।
  • आज के इन तथाकथित आधुनिक स्कूल,कॉलेजेस और विश्वविद्यालयों में महंगी शिक्षा अर्जित करके भी छात्र-छात्राएं शिक्षा पूरी करने के बाद दर-दर की ठोकरे खाते फिरते हैं और कहीं भी उन्हें रोजगार नहीं मिलता है।माता-पिता अपना पेट काटकर छात्र-छात्राओं को योग्य बनाने के लिए उन पर लाखों रुपए खर्च कर देते हैं,लेकिन अफसोस की बात है कि उन्हें धर्म साँठे भी कोई नहीं पूछता।
  • स्कूल में शिक्षा पूरी करने के बाद उसके शैक्षिक रिकॉर्ड को देखकर कॉलेज वाले लालायित थे कि विषम्भर कैसे भी अपने बच्चे (निरंजन) को उनके कॉलेज में दाखिला दिलवाए।कई कॉलेज के संचालकों ने विषम्भर से सम्पर्क भी किया।आखिर विषम्भर ने ठीक से जांच-पड़ताल करके एक कॉलेज में दाखिला दिला दिया जिसकी फीस चुकाना उसके बूते में था।
  • कॉलेज शिक्षा अर्जित करते समय विषम्भर ने निरंजन के सामने हाथ खड़े कर दिए।उसने कहा कि स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम को तो मैं पढ़ सकता था,मेरे बूते की बात थी।परंतु कॉलेज शिक्षा प्राप्त किए हुए मुझे काफी समय हो गया है अतः अब मैं तुम्हारी प्रॉब्लम्स को हल करने में समर्थ नहीं हूं।हां व्यावहारिक शिक्षा,सांसारिक व्यवहार की शिक्षा,चारित्रिक शिक्षा की पूर्ति तो मैं अब भी तुम्हें प्रदान करता रहूंगा,उसमें कोई कमी-कसर नहीं आने दूंगा।
  • आखिर निरंजन भी अब वयस्क हो गया था अतः उसने अपने बलबूते ही समस्याओं को,प्रश्नों को,सवालों को हल करने का निश्चय किया।उसने कठोर परिश्रम किया और माता-पिता का नैतिक,व्यावहारिक साथ मिलता रहा।अतः निरंजन को टूटने नहीं दिया।माता-पिता उसका हौसला बढ़ाते रहते।निरंजन की कठोर मेहनत आखिर रंग लायी और उसने धीरे-धीरे कॉलेज के सभी स्तरों को बेहतरीन अंकों के साथ उत्तीर्ण कर लिया।परंतु सबसे कठिन परीक्षा तो डिग्री हासिल करने के बाद जाॅब हासिल करने की थी।जीवन की वास्तविक और कठोर सच्चाइयों से सामना तो जाॅब हासिल करने और जाॅब करते समय ही होता है।

4.गणितज्ञ से मुलाकात (Meeting a mathematician):

  • निरंजन ने डिग्री प्राप्त करने के बाद जाॅब प्राप्त करने का भरपूर प्रयास किया।परंतु सैद्धांतिक शिक्षा के बलबूते आज जाॅब प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।प्रतियोगिता परीक्षा के लिए कोचिंग संस्थानों की फीस सुनकर ही वह बुरी तरह हिल गया।कॉलेज शिक्षा तो कठोर परिश्रम करके,माता-पिता के मार्गदर्शन से तथा कुछ सहयोग कॉलेज वालों से मिलने पर पूरी कर ली।परंतु जाॅब प्राप्त करने के लिए तो प्रतियोगिता के दौर से गुजरना ही पड़ता है।चाहे निजी क्षेत्र में जाॅब प्राप्त करें अथवा सरकारी क्षेत्र में।महंगाई की मार केवल जीवन की उपभोक्ता वस्तुओं पर ही नहीं पड़ रही है बल्कि कोचिंग संस्थान और शिक्षण संस्थानों पर भी पड़ रहा है।इस महंगी होती शिक्षा से साबका तो उसका स्कूल और कॉलेज शिक्षा में ही हो गया था।परंतु कोचिंग संस्थानों की फीस सुनकर तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।परंतु यहां भी उसको आखिर सहारा मिल ही गया।भटकते हुए जब गणितज्ञ योगेंद्र के दरवाजे पर गया तो उन्होंने उसे संबल प्रदान किया और निष्फ्रिक होने का आश्वासन दिया।
  • निरंजन ने गणितज्ञ महोदय से कहा कि महंगाई को रोकने में तो हम असमर्थ हैं।सरकार भी मुद्रास्फीति के घालमेल से मुद्रास्फीति को कम करके बताती रहती है,लेकिन फिर भी महंगाई कम होने की बजाय बढ़ती ही रहती है।अतः कोई ऐसा कारगर उपाय बताएं जिससे इस महंगी होती हुई शिक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राएं भी शिक्षा अर्जित कर सके और जाॅब हासिल कर सके।उपाय व्यावहारिक हों जिनको पढ़े-लिखे छात्र अमल में ला सके और महंगाई की मार से बच सकें।
  • गणितज्ञ ने कहा कि इसके लिए युवाओं व पढ़े-लिखे छात्र-छात्राओं को कुछ उपाय करने होंगे जिन पर अमल करके वे इस महंगी शिक्षा से निजात पा सकते हैं।दरअसल आज के युवाओं में निराशा,पथ विमुखता और पीढ़ी अंतराल तथा सही मार्गदर्शन का अभाव जैसी प्रमुख समस्याएं हैं,जिनके समाधान का रास्ता उन्हें नहीं सूझता।हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति में किताबी शिक्षा और परीक्षाओं पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है जिससे युवावर्ग में कौशल का,परस्पर सहयोग (टीम-वर्क) की भावना का समुचित विकास नहीं हो पाता।कदाचित यही हमारी युवा पीढ़ी की विफलताओं का एक प्रमुख कारण है।कोचिंग सेंटर इसी कमजोरी का फायदा उठाते हैं और मोटी-तगड़ी फीस वसूल करते हैं।
  • यदि युवावर्ग अपनी डिग्री कोर्स के साथ-साथ किसी-न-किसी कौशल का विकास करता रहे,व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त करता रहे,जिंदगी की हकीकतों से मुंह मोड़ने की बजाय उनका बहादुरी व उत्साह से सामना करने का अपने आप में माद्दा पैदा कर सके तो कोचिंग की सहायता लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।आप अपने बलबूते ही परीक्षा तथा जॉब की तैयारी कर सकते हैं।
    यह वर्तमान शिक्षा पद्धति की विसंगति है कि डिग्री प्राप्त करने के लिए एक छात्र-छात्रा पर उसके अभिभावक अपने जीवन की जमापूंजी खर्च कर देते हैं परंतु फिर भी वह किसी लायक नहीं होता है।इस विसंगति को अभिभावक व छात्र-छात्रा स्वयं ही अपने स्तर पर शिक्षा अर्जित करते हुए दूर कर सकते हैं।निरंजन ने कहा कि सर मुद्रास्फीति घटने का महँगाई के साथ घालमेल का संशय भी दूर करें।

5.घटती मुद्रास्फीति और बढ़ती महंगाई (Falling inflation and rising dearness):

  • अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के हिसाब से देखा जाए तो मुद्रास्फीति घटने का मतलब होता है-महंगाई का घटना और मुद्रास्फीति के बढ़ने का मतलब होता है-महंगाई का बढ़ना।लेकिन व्यवहार की कसौटी में यह सिद्धांत अक्सर खरा नहीं उतरता।कम से कम हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था के मामले में।यह इस नियम की खामी नहीं है।वास्तव में यह नियम प्रशासकों और राजनेताओं की चालाकी के कारण विलोमार्थी हो गया है,जो जनता को आंकड़ों के जरिए छलने की कोशिश करते हैं।दरअसल,होता यह है कि महंगाई की कसौटी हमारे लिए रोजमर्रा की वे वस्तुएँ हैं,जिनको जुटाने में 80% भारतीयों की कमाई का आधा से ज्यादा हिस्सा खर्च हो जाता है।इसलिए जनसंख्या का वृहद वर्ग महंगाई को इसी पैमाने से नापता-तोलता है।लेकिन प्रशासन और सरकार यहीं पर चालाकी करते हैं।सरकार महंगाई को प्रदर्शित करने वाले मुद्रास्फीति के आंकड़ों में अकेले उपभोक्ता वस्तुओं को ही नहीं शुमार करती बल्कि तमाम और दूसरी चीजों को भी मिला देती है।
  • उदाहरण के लिए पशुचारा,चावल के छिलका,रैपसीड तेल,जूते के सोल,अरंडी का तेल,कच्ची तंबाकू,सल्फर और एसिड की कीमतों में गिरावट के कारण मुद्रास्फीति की दर घट जाती है।अब कितने ऐसे उपभोक्ता है जिनका पाला इन चीजों से पड़ता है।ऐसे बहुत थोड़े लोग होंगे,जो अरंडी का तेल इस्तेमाल करते होंगे,बहुत ही कम लोग होंगे जिनके लिए एसिड का कोई इस्तेमाल है? लेकिन इन सबसे मुद्रास्फीति का जोड़ बनता है।
  • मुद्रास्फीति की संरचना सही मायनों में बहुत ही भ्रामक है।मुद्रास्फीति की इस जटिल संरचना के कारण कोई भी निष्कर्ष निकाल पाना बहुत मुश्किल है।चूँकि 80% से ज्यादा भारतीयों की मुख्य चिंता भोजन संबंधी होती है या रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी होती है।इसलिए उनको महंगाई का घटना या बढ़ना तभी दिखता है,जब खाने-पीने की चीजों में कमी आए।मोटर,बाल बियरिंग,रूई या रैपसीड आयल के घटने-बढ़ने से उनको क्या लेना-देना होता है।इसलिए मुद्रास्फीति और महंगाई के बीच अंतर्संबंध बैठाते हुए हमें यह महत्त्वपूर्ण बात याद रखनी चाहिए।महंगाई की कसौटी में यह घटी हुई मुद्रास्फीति दर तभी कामयाब मानी जा सकती है जबकि आम उपभोक्ता की वस्तुओं की कीमतों में कमी हुई हो।
  • इसी प्रकार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तक महंगाई को व्यक्त करने में असफल हो रहे हैं।क्योंकि उनमें भी बड़ा घालमेल होता है।उदाहरणार्थ मूल्य सूचकांक बताता है कि 1982 को अगर हम पैमाना मान लें,तो इस समय थोक मूल्य सूचकांक 600.2 अंक पर है।इसका मतलब यह हुआ की 1982 के बाद अब तक कीमतों में 600.2% की वृद्धि हुई है।यह आकलन वैसे तो सही है।लेकिन दिक्कत यहां भी यही है कि इस जोड़ और निष्कर्ष में सैकड़ों चीजों को शामिल कर लिया गया है।ऐसी चीजों को भी थोक मूल्य सूचकांक में शामिल किया जाता है,जिनका रोजमर्रा के जीवन में कोई ताल्लुक नहीं होता।इसलिए आम आदमी के लिए मुद्रास्फीति या थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़े बेमानी होते हैं।
  • दूध,चाय की पत्ती,चीनी,मसाले,दालें,आटा,तेल,वनस्पति घी,देसी घी,फल,सब्जी-ऐसा कोई खाद्य पदार्थ बाजार में मौजूद नहीं है जिसके दाम न बढ़े हों।पहले एक कहावत थी कि गरीब आदमी तो दाल-रोटी खाकर बसर कर लेगा।लेकिन क्या आज इसका कहावत को बेधड़क कहा जा सकता है।आज दाल खाना भी जिगर वालों की बात रह गई है।आम आदमी के लिए क्या दाल और क्या सब्जी।उसके लिए तो आज की तारीख में कुछ भी खाना विलासिता बन गई है।यहां तक कि उसके लिए नमक-रोटी खाना भी बहुत आसान नहीं रह गया है।रसोई बजट,डॉक्टर की फीस,ऑटो टैक्सी का भाड़ा,बच्चों के खिलौने की कीमत,रेस्टोरेंट में लंच का बिल,मिनरल वाटर की कीमत,बच्चों के स्कूल,शिक्षा संस्थानों,कोचिंग की फीस में वृद्धि होती जा रही है।दरअसल बाजार के भरोसे छोड़ देने से जिन लोगों के हाथ में बाजार है वे महंगाई को बढ़ाएंगे क्योंकि सरकार का डर उन्हें नहीं रहता है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ महँगी होती शिक्षा से द्रवित (Mathematician Moved by Costly Teaching),गणितज्ञ और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र (Mathematician and Financially Weak Student) के बारे में बताया गया है।

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6.क्या जमाना है? (हास्य-व्यंग्य) (What is the Time?) (Humour-Satire):

  • नीरज:क्या जमाना आ गया है।आज ₹100,₹1 के बराबर हो गया है।पहले कोचिंग की फीस हजार-दो हजार में कर लेते थे लेकिन अब लाखों में बात होती है।
  • गिरीश:यह लो ₹1।मैंने आपसे ₹100 उधार लिए थे आज हिसाब बराबर हुआ।कोचिंग की तुम जानो।

7.गणितज्ञ महँगी होती शिक्षा से द्रवित (Frequently Asked Questions Related to Mathematician Moved by Costly Teaching),गणितज्ञ और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र (Mathematician and Financially Weak Student) से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.महंगाई बढ़ने का मूल कारण क्या है? (What is the root cause of dearness?):

उत्तर:महंगाई बढ़ने के प्राकृतिक कारण उतने ताकतवर नहीं है जितने की कृत्रिम ताकतें हैं।

प्रश्न:2.क्या महंगाई से बेरोजगारी बढ़ती है? (Does dearness lead to unemployment?):

उत्तर:हां,महंगाई से बेरोजगारी बढ़ती है।लोग बच्चों के जेब खर्च,मनोरंजन आदि पर खर्च कम कर देते हैं।

प्रश्न:3.क्या रुपए के अवमूल्यन से महँगाई बढ़ती है? (Does rupee depreciation lead to dearness?):

उत्तर:रुपए का लगातार अवमूल्यन,मुद्रा प्रसार से रुपए की वास्तविक कीमत में गिरावट और अंधाधुंध निर्यात से महंगाई बढ़ती है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ महँगी होती शिक्षा से द्रवित (Mathematician Moved by Costly Teaching),गणितज्ञ और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र (Mathematician and Financially Weak Student) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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