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Mathematician Improved Maths Teacher

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1.गणितज्ञ ने गणित अध्यापक को सुधारा (Mathematician Improved Maths Teacher),गणितज्ञ ने अध्यापक को सही राह दिखाई (Mathematician Showed Teacher Right Path):

  • गणितज्ञ ने गणित अध्यापक को सुधारा (Mathematician Improved Maths Teacher)।दरअसल आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने तथा अच्छा वेतन मिलने के कारण अध्यापकों के पुरुषार्थ को लकवा मार गया है और अहंकार सातवें आसमान पर चढ़ गया है।अतः अपने अधिकारों के लिए हड़ताले करना तो वे जानते हैं परंतु उन्हें अपने कर्त्तव्य के बारे में ज्ञान नहीं है अथवा अपने कर्त्तव्य की बात नहीं करते हैं।
  • इस आर्टिकल में एक ऐसे गणित अध्यापक के बारे में बताया गया है जिसे पद और धन संपत्ति मिलने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था।
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2.गणितज्ञ का तप (The tenacity of the Mathematician):

  • गणितज्ञ कुवलयानन्द उन दिनों जयपुर के पास एक गांव में रहकर तपस्या कर रहे थे।गणितज्ञ गणित शोध में उस समय शोध के शिखर पर विराजमान थे।उनकी अध्यात्म में भी रुचि थी।गणितज्ञ कुवलयानन्द तप-साधना की ख्याति आसपास के गांवों में फैल गई।पुष्प खिल गया हो तो सुरभि अपने ही आप चारों ओर फैलने लगती है।कुवलयानन्द की गणित और अध्यात्म में तप-साधना का विकास भी इसी तरह हो चुका था।अपने गुरुदेव कृष्णदेव के महाप्रयाण के बाद उनकी दिनचर्या,जीवन के सारे क्रियाकलाप तप-साधना के इर्द-गिर्द सिमट गए थे।सारे गुरुभाई उनकी गणित और अध्यात्म में तप-साधना देखकर उन्हें सच्चे कर्मयोगी की उज्जवल प्रतिमा के रूप में देखते और मानते थे।
  • इन दिनों जहां वे तप कर रहे थे,वहां यदा-कदा आसपास के छात्र-छात्राएं भी आ जाते थे।गांव के ये छात्र-छात्राएं उनकी बातें सुनकर अपने को धन्य मानते थे।गणितज्ञ की ज्ञान और तप से ओतप्रोत वाणी में उन्हें अपने दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान मिल जाता था।सुनने वालों को नई जीवनदृष्टि मिलती।इनमें से कई छात्रों में तो आध्यात्मिक जाग्रति भी होने लगी थी,लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिनका अध्यात्म सिर्फ उनकी वाक्कुशलता तक ही सीमित था परंतु वे गणित संबंधी ज्ञान को तो आत्मसात कर ही लेते थे।

3.गणित अध्यापक की नौटंकी (Math teacher’s gimmick):

  • बुद्धिप्रकाश के साथ कुछ ऐसा ही था।वे गणित अध्यापक थे।गणितज्ञ कुवलयानंद से अध्यात्म की बातें इस कान से सुनते और दूसरे कान से निकाल देते थे।कहने को तो वह रोज ही कुवलयानन्द जी के पास आता था,पर उसकी गृहकलह यथावत थी।ऐसा नहीं कि उनकी पत्नी में कोई दोष था।उसकी पत्नी सरस्वती सुंदर,सुशील,सुलक्षणा एवं सहृदय थी वह हर-हमेशा भरसक कोशिश करती कि उसका पति उससे किसी भी तरह संतुष्ट रहे,पर आज तक ऐसा हो नहीं पाया था।उनकी आपसी कलह की वजह दरअसल बुद्धिप्रकाश की चटोरी प्रकृति थी।भोजन करते समय उनमें रोज झगड़ा होना एक सामान्य-सी बात थी।कभी रोटी थोड़ी-सी कड़ी हो गई तो वह सरस्वती पर बरस पड़ता,आज रोटी तो ऐसी सिकी है जैसे रोटी नहीं लकड़ी का किवाड़ हो।यदि किसी दिन रोटी नरम रह जाती,तो बुद्धिप्रकाश चिल्ला पड़ता,आज तो तुमने कच्चा आटा घोलकर रख दिया है।
  • भोजन के समय की कलह उनमें अब एक आम बात हो गई थी।सरस्वती बेचारी परेशान रहती कि पतिदेवता को कैसे खुश किया जाए? एक दिन तो भोजन के बारे में झगड़ा करते-करते बुद्धिप्रकाश का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उसने चेतावनी दे डाली,इस तरह तुम्हारे साथ रहने से तो यही बेहतर है कि मैं साधु बन जाऊं।बुद्धिप्रकाश की इस बात से सरस्वती चिंतित हो गई कि कहीं यह सचमुच ही साधु न हो जाएँ।
  • दूसरे दिन भोजन के समय बुद्धिप्रकाश ने पुनः कोहराम मचा दिया।आज मामला चटनी में नमक कम होने का था।बोध के अभाव में क्रोध तो होता ही है।बुद्धिप्रकाश चीख पड़ा,बस बहुत भोग चुके गृहस्थी का सुख,अब तो साधु ही बन जाना श्रेयस्कर है।ऐसा करते हुए बुद्धिप्रकाश ने घर छोड़ दिया।गांव से निकलते हुए उसे जब होश आया,तो उसे भूख व्याकुल कर रही थी।आखिर उसने निश्चय किया कि पास में एक दुकान तक चल जाए।वह पैदल ही वहां गया और उसने अपना मनपसंद भोजन पेट भर किया।मगर सरस्वती उस दिन बड़ी दुखी हुई।सारा दिन निराहार रहकर गुजारा,आखिर वह भारतीय नारी जो थी।
  • काफी रात बीतने पर बुद्धिप्रकाश आया और चुपचाप कमरे में जाकर सो गया।अगले दिन फिर वही हाल।आज की शिकायत थी कि रायता खट्टा ज्यादा हो गया है।शिकायत भले ही नई हो,पर धमकी वही पुरानी थी,अब मुझे नहीं रहना तेरे साथ।इस घर से तो यही अच्छा है कि गणितज्ञ कुवलयानन्द के साथ रहकर मैं भी गणित में शोध कार्य करूं और आध्यात्मिक तप-साधना भी करूं।

4.सरस्वती का गणितज्ञ के पास प्रस्थान (Saraswati’s departure to the Mathematician):

  • बेचारी सरस्वती ने परेशान होकर सोचा कि अच्छा यही है कि मैं स्वयं गणितज्ञ कुवलयानन्द जी के पास जाऊं और उन्हीं से अपनी विपदा कहूँ।उसने सुना था कि गणितज्ञ कुवलयानन्द जी केवल गणित में शोध ही नहीं करते बल्कि तप-साधना करने के कारण वे उच्च कोटि के संत भी हैं।उसने सोचा शायद वही मेरी जिंदगी का कोई समाधान निकाल सकें।यही सोचकर वह गणितज्ञ कुवलयानन्द की कुटी पर पहुंची और उनके पांवों में पड़कर जोर-जोर से रोने लगी।गणितज्ञ सोच में पड़ गए।उन्होंने पूछा,बहन! इस तरह रोने का कारण क्या है?
  • तप-तेज का अपना बल होता है।सरस्वती संतवाणी सुनकर संभल गई और बोली,महाराज! बात है कि मेरे पति को मेरे हाथ का भोजन नहीं रुचता।कहते हैं कि वे आपके पास आकर साधु बन जाएंगे।
  • कुवलयानन्द को सरस्वती की बात समझते देर न लगी।वह जान गए कि सरस्वती बुद्धिप्रकाश की पत्नी है।बुद्धिप्रकाश उनके पास रोज आता था।उसकी अस्थिर प्रकृति से वह परिचित थे।उन्होंने सरस्वती को समझाते हुए कहा,बहन! तुम यह डर अपने मन से निकाल दो।तुम डरो मत,मैं उसे देख लूंगा कि वह किस तरह साधु बनने वाला है,अबकी बार जब भी वह तुम्हें धमकी दे,तो उससे कहना कि इस तरह रोज-रोज धमकी क्या देते हो।साधु बनना है तो जाकर बन क्यों नहीं जाते।कम से कम रोज-रोज के इस झगड़े से हमें छुट्टी मिलेगी।
  • अगले दिन जब फिर वैसा प्रसंग आया तो बुद्धिप्रकाश ने अपना कथन दुहराया,इससे तो अच्छा है कि मैं साधु बन जाऊं।
    पहले से निर्धारित योजना के अनुसार सरस्वती ने कह दिया,सुनिए जी।रोज-रोज साधु बनने का डर दिखलाने से क्या लाभ? यदि आपको साधु बनने से सुख मिलता है,तो बन जाइए साधु।मैं भी कभी-कभी आपके दर्शन करने आ जाया करूंगी।
    बुद्धिप्रकाश को गणित का तो अच्छा ज्ञान था।परंतु नैतिकता,सदाचार,धर्म,अध्यात्म की बातें उसके जीवन में न के बराबर थी।इसलिए उसमें गणित अध्यापक होने का अहंकार था।पद पर रहते हुए उसे अच्छा वेतन मिलता था।
  • पत्नी के इस प्रत्युत्तर से बुद्धिप्रकाश के अहं को भारी चोट लगी।वह तड़क-कड़क कर बोला,अच्छा यह बात है।अब मैं अवश्य साधु बन जाऊंगा।यह कहकर वह चल पड़ा और सीधा गणितज्ञ कुवलयानन्द की कुटिया पर जा पहुंचा।

5.गणित अध्यापक का गणितज्ञ की कुटिया पर आगमन (Maths teacher’s arrival at mathematician’s cottage):

  • गणितज्ञ कुवलयानन्द उस समय उन्नत बीजगणित का अध्ययन कर रहे थे।काफी देर बाद बुद्धिप्रकाश को अपनी बात कहने का अवसर मिल पाया।
  • बुद्धिप्रकाश की बातें सुनकर कुवलयानन्द जी मुस्कुराए और बहुत अच्छा कहकर अपने काम में लग गए।इधर बुद्धिप्रकाश भूख के कारण परेशान हो रहा था।लाचार होकर उसने संत (गणितज्ञ) से कहा,महाशय आज क्या आपने भोजन कर लिया है?
    कुवलयानन्द बोले,वत्स! वैसे तो आज हमारा व्रत है,लेकिन तुम क्यों पूछ रहे हो?
  • बुद्धिप्रकाश को तो एक-एक क्षण प्रहर जैसा लग रहा था।उसने कहा,महाशय! मैं तो भूख से बहुत आकुल-व्याकुल हो रहा हूं।अपने लिए न सही तो मेरे लिए ही सही,कुछ तो भोजन की व्यवस्था कीजिए।
  • कुवलयानन्द जी बोले,अच्छा तो ऐसा करो कि पास में से कुछ करेले तोड़ लाओ और उन्हें पीसकर लड्डू बना लो।
    मरता क्या न करता।गणितज्ञ के आदेशानुसार बुद्धिप्रकाश ने करेले तोड़े और पीसकर लड्डू बना लिए।हालांकि बनाते समय वह यही सोच रहा था कि करेले के लड्डू खाने की कोई चीज तो है नहीं।फिर भी गणितज्ञ कुवलयानन्द जी आध्यात्मिक पुरुष भी हैं,उनके प्रभाव से यह लड्डू जरूर खाने योग्य हो जाएंगे।
  • लड्डू तैयार हुए तो संत बोले,जितना खाना है खा लो।करेला बहुत अच्छी चीज है।बीते पन्द्रह दिन से मैं इसी पर निर्वाह कर रहा हूं।
  • बुद्धि प्रकाश ने करेले का लड्डू उठाकर जैसे ही अपने मुंह में रखा,उसे उल्टी (वमन) हो गई।गणितज्ञ बोले,देखो वमन करना ठीक नहीं है,ढंग से खाओ।बुद्धिप्रकाश से अब न रहा गया।वह कुछ चिढ़कर बोला।महाराज! यह तो करेला है,कड़ुवा जहर,इसे मैं तो क्या कोई भी मनुष्य नहीं खा सकता।
  • यह सुनकर कुवलयानन्द ने करेले का एक लड्डू उठाया और बड़े ही निर्विकार भाव से खा लिया।यह देखकर बुद्धिप्रकाश बड़ी मायूसी से बोला,महाशय! आप तो खा गए,लेकिन यह मेरे वश की बात नहीं।
  • गणितज्ञ हंसने लगे,क्यों भाई,इसी बल पर तुम साधु बनने वाले थे? व्यर्थ ही रोज पत्नी को तंग किया करते थे कि साधु बन जाऊंगा,साधु हो जाऊंगा।जीभ के चटोरे कहीं साधु बनते हैं।अब गणित अध्यापक बुद्धिप्रकाश को वस्तुस्थिति का ज्ञान हुआ।उसने घर जाकर पत्नी से क्षमा मांगी और गृहस्थ को तपोवन मानकर रहने लगा।

6.गणितज्ञ की गणित अध्यापक को सीख (Mathematician’s math teacher’s lesson):

  • सुख-शांतिपूर्ण,सुविकसित और सुव्यवस्थित जीवन व्यतीत करने के लिए मनुष्य परिवार बसाता है,विवाह करता है,जीवनसाथी चुनता है और सुख-दुःख में अपना एक घनिष्ठ आत्मीय भागीदार बनाता है।पति-पत्नी अलग-अलग होते हुए भी आत्मीयता,प्रेम और स्नेह के प्रगाढ़ बंधनों में इस प्रकार बँध जाते हैं की गंगा-जमुना के संगम की तरह एकाकार हो जाते हैं।विवाह का प्रयोजन यह रहता है कि हमारा साथी दुःख-तकलीफों को बँटाएगा और जीवन में आने वाले तनाव,बोझ,चिंताएं,परेशानियां तथा कष्ट हल्के होंगे।
  • पति सोचता है कि पत्नी के रूप में उसे प्रेम करने के लिए परमात्मा का एक उपहार मिला है और पत्नी सोचती है कि उसे अपना वह सर्वस्व न्योछावर कर देने के लिए एक इष्ट आराध्य उपलब्ध हुआ है।कितनी सुखद होती है विवाह के समय की जाने वाली कल्पनाएं और आशाएँ कि हम ऐसा घर बसाएंगे,आपस में प्रेम से रहेंगे,एक दूसरे के लिए त्याग-बलिदान की प्रतिस्पर्धा करेंगे।घर-आंगन में जब बच्चों की किलकारियां गूँजेगी तो उनमें अपना सब दुख-दर्द भुला देंगे।इन आशाओं और कल्पनाओं के सुखद हिंडोलों में झूलते हुए युवक और युवती परिणय सूत्र में बँधते हैं और एक दूसरे के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए जीवन विकास के पथ पर अग्रसर होते हैं।
  • घर में सन्तान का जन्म होता है तो खुशियाँ समेटे नहीं सिमटती।कल्पनाएं उठती हैं कि बच्चे बड़े होंगे तो बुढ़ापे में सहायक होंगे।छुटपन में उनकी बाल-सुलभ कीड़ाएँ मन को आनंदित करेंगी,गुदगुदाएंगी और जब वे अपने-अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे तो निश्चिन्ततापूर्वक जीवन का उत्तरार्ध उनकी श्रद्धा और परस्पर के प्रेम के सहारे सुखपूर्वक गुजार लेंगे।इस प्रकार व्यक्तिगत आनंद और समाज के प्रति कर्त्तव्यों के पालन का संतोष अनुभव करते हुए मनुष्य जीवन को बनाने के लिए ही ऋषि-महर्षियों ने विवाह संस्था का गठन किया था।ताकि मनुष्य इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने का गौरव अनुभव करते हुए सदुद्देश्य जीवन जी सके।इन सब बातों का तथा अन्य पारिवारिक दायित्वों का पालन करते हुए भगवान का भजन करोगे तो गृहस्थ ही तपोवन बन जाएगा।फिर तुम्हें साधु बनने व परिवार छोड़ने की जरूरत नहीं है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणितज्ञ ने गणित अध्यापक को सुधारा (Mathematician Improved Maths Teacher),गणितज्ञ ने अध्यापक को सही राह दिखाई (Mathematician Showed Teacher Right Path) के बारे में बताया गया है।

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7.फाइव स्टार कोचिंग में पढ़ना (हास्य-व्यंग्य) (Reading in Five Star Coaching) (Humour-Satire):

  • अशोक (अमित से):एक कोचिंग सेंटर में पढ़ते हुए,चलो आज किसी फाइव स्टार कोचिंग में पढ़ते हैं।
  • शिक्षक:क्यों क्या मेरी कोचिंग में पढ़ते हुए बोर हो गए या कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
  • अशोक:नहीं,दरअसल आज इस कोचिंग की साफ सफाई करने का मन नहीं कर रह रहा है।

8.गणितज्ञ ने गणित अध्यापक को सुधारा (Frequently Asked Questions Related to Mathematician Improved Maths Teacher),गणितज्ञ ने अध्यापक को सही राह दिखाई (Mathematician Showed Teacher Right Path) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.परिवार में लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं? (Why are there conflicts in the family?):

उत्तर:दरअसल व्यक्ति बाहरी ज्ञान प्राप्त करने,धन कमाने में इतना तल्लीन हो गया है कि स्वयं के भीतर प्रकाश की छोटी सी टिमटिमाती ज्योति को पहचान ही नहीं पा रहा है।पारिवारिक व सांसारिक कष्टों-उलझनों का यही कारण है कि वह अपने अंतः में छिपे अंतरात्मा की ज्योति को अनुभव,देखने का प्रयास करता ही नहीं है।

प्रश्न:2.क्या गृह त्याग से मुक्ति मिल सकती है? (Can one get freedom from home renunciation?):

उत्तर:संसार से संन्यास परिवर्तन,चित्त में बोध-क्रांति के बिना घटित नहीं हो सकता।त्याग करना,संन्यास लेना,भिक्षु होना न तो वेश परिवर्तन है,न नाम परिवर्तन है और न ग्रह परिवर्तन है।यह तो विशुद्ध दृष्टि परिवर्तन है।त्याग के लिए तो चित्त का समग्र परिवर्तन चाहिए।इसके लिए बोध की संपदा चाहिए,जो विवेक-वैराग्य के बिना नहीं मिलती।

प्रश्न:3.दृष्टिकोण का परिवर्तन कैसे संभव है? (How is a change of attitude possible?):

उत्तर:भगवान ने शक्ति,बुद्धि,विवेक और संगठन का अधिकार दिया है तथा किन्हीं उत्तरदायित्वों को सौंपते हुए उसे सृष्टि का मुकुटमणि बनाया है।उन दायित्वों को कुशलतापूर्वक किया जा सके,इसके लिए आवश्यक है कि मनुष्य शक्तिवान,व्रतवान और कर्त्तव्यवान बनकर दिनोंदिन उन्नति करता जाए और प्रतिभा तथा योग्यता के बल पर सौंपे गए उत्तरदायित्व को पूरा करें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणितज्ञ ने गणित अध्यापक को सुधारा (Mathematician Improved Maths Teacher),गणितज्ञ ने अध्यापक को सही राह दिखाई (Mathematician Showed Teacher Right Path) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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