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Is Education Pride of Man in hindi

1.क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है का परिचय (Introduction to Is Education Pride of Man in hindi),क्या शिक्षा मनुष्य की महिमा है? (Is education glory of man):

  • क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है? (Is Education Pride of Man in hindi)शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। खाना, पीना, सोना, जागना, सन्तनोत्पत्ति ये बातें पशु और मनुष्य में समान है। शिक्षा से ही व्यक्ति मानव, महामानव बनता है। खेलकूदने के लिए बालक वंचित किया जा सकता है परन्तु शिक्षा से बालक-बालिकाओं को वंचित करने का अर्थ है उसे रूढ़, गँवार, जाहिल, नरपिशाच बनने के लिए छोड़ देना।
  • शिक्षा से सभी का यथा गरीब, अमीर, बालक-बालिकाओं तथा देश का गौरव बढ़ता है। शिक्षा के कारण आज मानव जाति का इतना विकास हुआ तथा सभ्यता के इस स्तर तक पहुँचा है। वर्ना आज भी मानव शिक्षा के बिना पशुवत जीवन बिता रहा होता।
    इसलिए माता-पिता, अभिभावकों तथा गुरुजनों का कर्त्तव्य है कि बालक में संस्कारयुक्त शिक्षा तथा सद्गुण की नींव डाले।
    आधुनिक जीवन शैली,सुविधाभोगी प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य जीवनशैली बच्चों में सही संस्कार नहीं डालती है। इसीलिए वहाँ बालक-बालिकाए शुरू से चरित्रहीन तथा दुर्व्यसनों में लिप्त हो जाते हैं।विद्यार्थियों में शुरू से ही भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों के संस्कार डालना चाहिए। 
  • इस वीडियो में शिक्षा और विद्या के बारे में बताया गया है कि शिक्षा ग्रहण करने से बालक-बालिकाओं का गौरव बढ़ता है। माता-पिता और गुरुजनों तथा परिवार, समाज और देश का यश बढ़ता है।

Is Education Pride of Man in hindi || Is education glory of man

 

via https://youtu.be/HVMEjDpfeWU

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2.क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है? (Is Education Pride of Man in hindi),क्या शिक्षा मनुष्य की महिमा है? (Is education glory of man?):

  • मनुष्य का मूल्यांकन विरासत में मिला हुआ धन,संपत्ति नहीं है और न ही सुंदरता है।मनुष्य की योग्यता व व्यक्तित्व शिक्षा,विद्या,सद्बुद्धि,सद्ज्ञान,चरित्र और विवेक के आधार पर परखा जाता है।संसार में धनवान के बजाय शिक्षित व्यक्ति को ही वास्तविक रूप में धनी माना जाना चाहिए।
  • शिक्षा युवाओं का सहारा,धनवान का यश और प्रौढ़ व्यक्ति के सुख का साधन होता है।शिक्षा के आधार पर व्यक्ति विचारशील,एकाग्रचित्त और परिश्रमी बनता है।शिक्षा समृद्धि में आभूषण,कठिनाई में सहारा और प्रत्येक समय हमारे मनोरंजन का साधन है।इस प्रकार हमें शिक्षा और विद्या द्वारा अंतर्बोध होता है अर्थात् परमात्मा की अनुभूति होती है।
  • युवाओं तथा प्रौढ़ व्यक्तियों का विद्या ही सच्ची मित्र और अविद्या से बढ़कर कोई शत्रु नहीं है।विद्या तथा शिक्षा से मनुष्य सम्मान प्राप्त करता है।विद्या तथा शिक्षा के कारण ही व्यक्ति जीवन के आनंद की अनुभूति करता है तथा अंत में मोक्ष अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करता है।अविद्या तथा अज्ञान के कारण ही असफलता प्राप्त होती है।मनुष्य धन-संपत्ति व जमीन जायदाद के कारण नहीं बल्कि विशेष ज्ञान,शिक्षा और विशेष अध्ययन के कारण ही आगे बढ़ता है।
  • शिक्षा और विद्या का इतना अधिक महत्त्व होने के बावजूद शिक्षा और विद्या अर्जित करना और कराना दोनों ही कार्य कठिन है।कठिन कार्य इसलिए है कि शिक्षा और विद्या का अध्यापन कराने की योग्यता वही मनुष्य रखता है जो अपने चरित्र को उज्जवल,पवित्र रखता है अर्थात् आचरणयुक्त मनुष्य ही पात्रता रखता है और ऐसे मनुष्य बहुत कम विद्यमान हैं।ऐसा मनुष्य अपने विद्यार्थियों को तत्त्व-विद्या अर्थात् ऐसी विद्या जो मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है और उच्च स्तर पर पहुंचाती है,का ज्ञान कराने की क्षमता रखता है।
  • आधुनिक शिक्षा में ऐसी सामर्थ्य नहीं है जो विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण,कर्मठता,उत्साह,संयम और सात्त्विकता को जाग्रत कर सके क्योंकि वर्तमान समय में ऐसे अध्यापकों का अभाव है जिनमें उपर्युक्त गुण विद्यमान हो।जब अध्यापकों में ही वास्तविक शिक्षा व विद्या का अभाव है तो विद्यार्थियों के उद्धार के लिए जिस शिक्षा व विद्या की आवश्यकता है उसका बीजारोपण कैसे सम्भव है?
  • आधुनिक शिक्षा में ऐसे समर्पित अध्यापकों का अभाव तो है ही साथ ही वर्तमान शिक्षा से जो विद्यार्थी डिग्री लेकर निकलते हैं उनमें से अधिकांश विद्यार्थियों में छल-कपट,चोरी,बेईमानी,दुश्चरित्रता,फैशनपरस्ती,विलासिता,अहंकार,द्वेष,धूर्तता पाई जाती है।वास्तविक रूप में ऐसी विद्या या शिक्षा न होकर अशिक्षा ही कही जा सकती है।सच्चे अर्थों में आज शिक्षा और विद्या का अभाव ही है जो विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता,शराब,सिगरेट,मारपीट,लूट-खसोट,हड़ताल करना,परीक्षा में नकल करना जैसे दुर्व्यसनों में फँसाती है।
  • जो विद्या (ज्ञान) मनुष्य को सही दिशा,विकास,उन्नति और जीवन की सच्चाइयों का दिग्दर्शन कराती है,अपनी अंतरात्मा का बोध कराती है उसे भौतिक तथा आध्यात्मिक विद्या कहते हैं।यदि मनुष्य का विवेक जाग्रत न हो तो ऐसी विद्या पतन का कारण बन जाती है।गुण,कर्म और स्वभाव में सात्विकता नहीं आती हो तो ऐसी शिक्षा मनुष्य को पशुता के बराबर लाकर खड़ा कर देती है।इस प्रकार अध्यात्म शिक्षा जीवन के लिए परम उपयोगी है।
  • अध्यात्म विद्या से मनुष्य स्वयं का मित्र बनता है,आजीविका के योग्य होता है तथा उसका जीवन आनंद व सुख से व्यतीत होता है।परंतु अध्यात्म विद्या को सीखने के लिए सच्ची लगन,उत्साह व जिज्ञासा की आवश्यकता है।सच्चे अर्थों में हमें जब ज्ञान की प्यास का अनुभव होने लगे तभी समझना चाहिए कि हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं।जो व्यक्ति सांसारिक कर्त्तव्यों का निर्वाह करने की शिक्षा व अध्यात्म-विद्या अर्जित कर लेता है तो वही मनुष्य का वास्तविक आभूषण है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में क्या शिक्षा व्यक्ति का गौरव है? (Is Education Pride of Man in hindi),क्या शिक्षा मनुष्य की महिमा है? (Is education glory of man?) के बारे में बताया गया है।
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