How Transform Students Personality?
1.छात्र-छात्राएँ व्यक्तित्व का रूपांतरण कैसे करें? (How Transform Students Personality?),व्यक्तित्व का रूपान्तरण कैसे करें? (How to Transform Personality?):
- छात्र-छात्राएँ व्यक्तित्व का रूपांतरण कैसे करें? (How Transform Students Personality?) व्यक्तित्व का रूपांतरण करने की तब जरूरत पड़ती है जब व्यक्तित्व अनेक दोषों का घर बन जाता है।दोष-दुर्गुण हमारे व्यक्तित्व को बदरंग करते हैं।इसलिए उन दोषों का परिमार्जन रूपांतरण से ही संभव है।यह रूपांतरण किस प्रकार किया जाए इसी के बारे में आगे बताया गया है।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:7Tips to Develop Effective Personality
2.व्यक्तित्व को दीखने के तरीके (Ways to show personality):
- स्वच्छ दीखने के दो तरीके हैं:अस्वच्छता को ढक देना या उसे साफ कर देना,उसे हटा-मिटा देना।आवरण चढ़ाने से अंतर इतना ही आएगा कि निहित गन्दगी बाह्य दृष्टि से ओझल बनी रहेगी।इतने पर भी उसकी सत्ता अपने स्थान पर यथावत रहती और मौका पाते ही,आवरण हटते ही अपना परिचय पूर्ववत देने लगती है।
- मनुष्य की यह आम आकांक्षा होती है कि वह दूसरों की नजरों में सम्मानित दीखे और सुसंस्कृत कहलाए।इसके लिए एकमात्र तरीका यही है कि व्यक्तित्व का रूपांतरण हो और उसे इतना प्रामाणिक,प्रखर और परिष्कृत बनाया जाए की खुशबू बिखरने वाले फूलों की ओर जिस प्रकार भौंरे खिंचते चले आते हैं,वैसे ही लोगों की श्रद्धा और सहायता अनायास मिलती चले।यह किंचित कठिन प्रक्रिया है,पर रूपांतरण का और कोई दूसरा तरीका भी नहीं।इन दिनों लोग पुरुषार्थ प्रधान कार्यों से प्रायः बचना चाहते हैं और किसी ऐसे सरल संस्करण की तलाश में रहते हैं,जो आसान हो एवं सुविधाजनक भी,साथ ही देखने में भी ऐसा ना लगे,जिससे जल्दी ही उसके असल की नकल होने का अनुमान लगता हो।
- व्यक्तित्व के संदर्भ में ऐसा उपाय यही हो सकता है कि बुराई पर आकर्षक पर्दा डाल दिया जाए और सज्जन होने का प्रदर्शन किया जाए।ऐसे में कई बार व्यक्तित्व की पहचान में धोखा हो जाता है और बुरे के अच्छे होने का भ्रम होने लगता है।
मानवीय व्यक्तित्व के तीन पक्ष हैं:भावना,विचरणा और व्यवहार।इनमें से व्यवहार शारीरिक प्रवृत्ति है,जबकि विचरणा मानसिक।इन दोनों का संबंध स्नायु तंत्र से है,किंतु भाव-संस्कार का संबंध स्नायु संस्थान से नहीं होता,वह चेतना का विषय है।अतः उसको परिष्कृत करने की जरूरत पड़ती है। - यही कारण है कि जब ईर्ष्या,राग,द्वेष,घृणा आदि संवेगात्मक तत्त्वों के नियंत्रण की बात आती है,तो शरीर विज्ञानी और मनोविज्ञानी एक प्रकार से असहाय महसूस करने लगते हैं और यह बता पाने में असमर्थ साबित होते हैं कि शरीर-मन के किन हिस्सों द्वारा किस प्रकार इनका संचालन-उत्पादन होता है।अब तक मन के संबंध में काफी शौधें मनोविज्ञान क्षेत्र में हो चुकी हैं और मस्तिष्क के बारे में भी अगणित अनुसंधान शरीरशास्त्री कर चुके एवं कर रहे हैं,पर इन दोनों विधाओं के विशेषज्ञ यह सुनिश्चित कर पाने में एक प्रकार से विफल ही रहे हैं कि आखिर मन-मस्तिष्क में से कहां किस अंग में ठीक-ठीक इनकी अवस्थिति है,जबकि आध्यात्मवेत्ता इनका अवस्था स्थान बताते और उन्हें प्रभावित करने की प्रकृति सुझाते हैं।
3.व्यक्तित्व का रूपांतरण कैसे हो? (How to transform personality?):
- अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार ईर्ष्या,द्वेष आदि का उदात्तीकरण हो जाए,तो हर किसी के लिए ईर्ष्या को उत्फुल्लता में,राग को विराग में,द्वेष को सहयोग में और घृणा को प्रेम में बदल पाना संभव हो जाएगा।इसका तात्पर्य यह हुआ कि नियंत्रण की प्रणाली स्कूल शरीर के ज्ञान-तंतुओं की क्रियाओं तक ही सीमित है।इसके आगे जो कुछ होता है,वह प्राकृतिक और संस्कागत है एवं चेतना से संबंध है।इसका उदात्तीकरण अथवा शोधन ही हो सकता है,रूपांतरण का इसके लिए अन्य कोई दूसरा तरीका नहीं।
- इस प्रकार नियंत्रण और रूपांतरण बदलाव की ये दो पद्धतियां हैं।हम इन दोनों को भलीभाँति समझें और एक के स्थान पर दूसरे को प्रयुक्त ना करें।दोनों की अपनी-अपनी सीमाएं हैं।नियंत्रण के क्षेत्र में शोधन को ना लाएं और शोधन की जगह नियंत्रण का प्रयोग ना करें।यह यदि सही-सही संपन्न हुआ,तो फिर शोधन के उपरांत नियंत्रण की आवश्यकता नहीं रह जाएगी,इतना सुनिश्चित है।
- देखा गया है कि व्यक्ति व्यावहारिक जीवन में स्वयं को बदलना चाहता है,बुराइयों को छोड़ना चाहता है,वासनाओं को त्यागना चाहता है,आदतों को परिवर्तित करना चाहता है,किंतु लाख कोशिशें के बावजूद उसे असफलता हाथ लगती है।तात्कालिक सफलता तो यदा-कदा मिल भी जाती है,पर वह चिरस्थायी नहीं होती।कारण की तलाश करने पर यही ज्ञात होता है कि जो प्रयास किए गए,वह कायिक अथवा मानसिक स्तर के थे।इस स्तर पर मात्र नियंत्रण ही संभव है,रूपांतरण नहीं।जहाँ नियंत्रण होगा,उसके उभरने-भड़काने की संभावना भी बनी रहेगी।ऐसी स्थिति में दुष्प्रवृत्तियों को बार-बार सिर उठाने का अवसर मिलता है,इसलिए सुधार-संशोधन संबंधी नियंत्रण की पद्धति अपूर्ण एवं अधूरी है।
- इसकी तुलना में यदि उदात्तीकरण को अपनाया गया,तो इससे संपूर्ण एवं चिरकालिक रूपांतरण होता तथा समस्या का स्थायी समाधान मिलता।कारण कि हमारी अधिकांश प्रवृत्तियों का संबंध संस्कार चेतना से है।जब इसका परिमार्जन किया जाता है,तो उससे संबंधित समस्त चेष्टाओं का उदात्तीकरण हो जाता है।शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान इतनी गहराई में उतरकर वास्तविक निमित्त को नहीं समझ पाने के कारण ही बार-बार विफल रहते देखे जाते हैं।
- काम-वासना के बारे में शरीर शास्त्र की दृष्टि बड़ी उथली है।शरीरवेत्ता स्खलन को रोक लेना ही सर्वोपरि मानते और उतने से ही ब्रह्मचर्य की अखंडता स्वीकार कर लेते हैं।मनःशास्त्री उस पर दमन के द्वारा विजय प्राप्त करने की बात कहते हैं।ज्ञातव्य है कि कुचलने का यह तरीका हर जगह सफल नहीं होता।’काम’ स्वयं में एक प्रचण्ड ऊर्जा है।शक्तिशाली ऊर्जा को बहुत समय तक दमित-नियंत्रित नहीं किया जा सकता।यदि किया गया,तो ऐसी विस्फोटक स्थिति पैदा होगी,जो व्यक्ति को सनकी,उन्मादी,पागल स्तर का बना देगी,इसलिए उस ऊर्जा का रूपांतरण होना चाहिए।
- यह रूपांतरण किस प्रकार का,कैसा हो? मनोवेत्ता यह बता पाने में असफल रहे,जबकि अध्यात्मवेत्ताओं के पास इसका सुनिश्चित उत्तर है।उनका कहना है कि यदि इस वासना के आवेग को सात्विक भावना में,भगवदीय अनुराग में बदल दिया गया,तो फिर ‘काम’ के सताने का सवाल नहीं होगा।इसके अतिरिक्त मनोवैज्ञानियों ने ‘काम-दमन’ का प्रतिवाद करते हुए वे कहते हैं कि इस रीति से मन प्रत्यक्ष न सही,परोक्ष रूप से बराबर उस ओर ही लगा रहता है।
4.उदात्तीकरण और नियंत्रण (Sublimation and Control):
- जिसका अनवरत स्मरण हो रहा हो (काम),उस ओर से मन भला कैसे हट सकता है।निश्चय ही इस नियंत्रण के माध्यम से काम-विकार का उद्दीपन ही होता रहता है।इस सूक्ष्म शास्त्र को न समझ पाने के कारण ही मनोविज्ञान का यह सूत्र कारगर न हो सका।अध्यात्म में इसकी दिशा को मोड़कर भगवान की ओर (अध्ययन,मनन-चिंतन आदि की ओर) कर दिया जाता है,इसलिए सामान्यजन में जो ऊर्जा काम-विकार उत्पन्न करने में खर्च होती रहती है,वही शक्ति भगवद्परायण भक्ति में स्वतः ही रूपांतरित होकर उच्चस्तरीय बन जाती है।अतएव वहां वासना के सताने की बात तो दूर,उसकी स्मृति तक नहीं उभरती।यही वास्तविक रूपांतरण है।
- उदात्तीकरण और नियंत्रण के बीच उपर्युक्त अंतर और सीमाओं को समझ लेने के पश्चात स्पष्ट हो जाता है कि शारीरिक स्तर पर जो हमारी चेष्टाएं और क्रियाएं होती हैं तथा मानसिक स्तर पर जैसा हमारा चिंतन होता है,वे सब केवल उन्हीं-उन्हीं स्तरों की परिणतियाँ हैं,सो बात नहीं।उनका न्यूनाधिक लगाव भाव-संस्थान की संस्कार-चेतना से भी होता है,इसलिए मानवीय चेष्टाओं को शुद्ध करने की जहां बात आती है,वहां उसके चित्तगत संस्कारों को भी ध्यान में रखना होगा,क्योंकि मनुष्य 84 लाख योनियों की लंबी यात्रा के उपरांत यह शरीर धारण करता है,इसलिए चित्त में उनके भी सूक्ष्म संस्कार विद्यमान रहते हैं।जिस-जिस योनि के जैसे-जैसे संस्कार मानवीय अंतराल में जमे रहते हैं,वैसी ही उनमें प्रवृत्तियां दिखाई पड़ती हैं।
- इस आधार पर व्यक्तित्व भेद की व्याख्या भी अत्यंत सरल हो जाती है और यह बताया जा सकना शक्य हो जाता है कि यदि किसी में क्रोध,किसी में घृणा,किसी में प्रेम तत्त्व प्रबल है,तो ऐसा क्यों है? मनोविज्ञान की इस संबंध में जो व्याख्याएं हैं,वह अत्यधिक दुरूह हैं और अधूरी भी,कारण कि व्यवहार की व्याख्या वहाँ परिस्थिति के आधार पर की जाती है।
- यदि किसी व्यक्ति में घृणा की अधिकता है,तो इसके बारे में उसका कहना है कि चूँकि उसे ऐसे किसी वातावरण में रहना पड़ा हो,जहां तिरस्कार,अपमान,घृणा बड़े पैमाने पर मिला हो अथवा बचपन में माता-पिता,भाई-बहन से फटकार मिलती रही हो,तो इसका परिणाम उसमें घृणा की उत्पत्ति के रूप में सामने आ सकता है।प्रेम,भय,क्रोध जैसी मानवीय प्रवृत्तियों की व्याख्या इसी प्रकार करते और कहते हैं की परिस्थिति और समाज से वह जैसा कुछ सीखता है,वैसा ही बनता और विकसित होता चला जाता है।चूँकि व्यक्ति को समाज में पग-पग पर इन मनोवैज्ञानिक तत्त्वों से पाला पड़ता है,अतः उसमें ये सभी तत्त्व विकसित हो जाते हैं।
- इसके आगे उसके पास और कोई समाधान नहीं,किंतु मानवीय व्यवहार इतना सरल कहां! वह इतनी जटिलताओं से भरा हुआ है कि केवल परिस्थिति के आधार पर उसकी न तो व्याख्या हो सकती है,ना हल हो सकता है।यदि उसे हम क्रमशः व्यवहार जगत से विचार जगत,विचार जगत से भाव और संस्कार जगत तक ले जाएँ और चिंतन करें कि ऐसा व्यवहार हुआ,तो इसका कारण क्या है? तो अंततः हम संस्कार चेतना के उस मूल बिंदु पर पहुंचेंगे जहाँ आकर अपनी मानवी आचरण को एक परिभाषा,सर्वांगपूर्ण व्याख्या तथा सर्वांगीण समाधान मिल जाता है।जब व्यवहार का उद्गम ज्ञात हो जाए,तो आदतों को मोड़ना-मरोड़ना सरल हो जाता है।
5.व्यक्तित्व का संबंध अंतःकरण से (Personality is related to conscience):
- वस्तुतः हम जो कुछ भीतर है,वही बाहर अभिव्यक्त करते रहते हैं।हमारी संस्कार-चेतना शुद्ध अथवा मलिन जैसी भी होती है,आदतों के द्वारा,आचरण के द्वारा उन्हीं रूपों में प्रकट और प्रत्यक्ष होती रहती है।इसी से स्वभाव का निर्माण होता है।प्रकृति यदि हेय और निम्नस्तरीय है,तो इसके लिए भी अंतराल की वह भूमि ही जिम्मेदार है,जिसे ‘अंत:करण’ कहते हैं और वह यदि उच्चस्तरीय है,तो उसका निमित्त वही है।अंतर सिर्फ इतना है कि एक में वह भूमि कुसंस्कारयुक्त और मलिन होती है,जबकि दूसरी स्थिति में वह एकदम निर्मल और संस्कार संपन्न होती है।
- व्यक्तित्व का सारा ढाँचा इसी से निर्मित है।अतः व्यक्तित्व को बदलने के लिए,उसे उत्कृष्ट बनाने के लिए हमें इस संस्थान को परिमार्जित और परिष्कृत बनाना होगा।इसके लिए एकमात्र उपचार आध्यात्मिक ही है।
- जप,तप,व्रत,उपवास,ध्यान,प्राणायाम,आसन,बंध,मुद्रा,ध्यान-योग,स्वाध्याय-सत्संग आदि कुछ ऐसे साधन हैं,जिनका यदि नियमित अभ्यास किया जाता रहे,तो यह उस अपरिष्कृत आंतरिक भूमि पर सुनिश्चित असर डालते और गंदगी को आवृत्त करने की तुलना में निकाल बाहर करते हैं।रूपांतरण और उदात्तीकरण का यही एकमात्र आधार है।व्यक्तित्व संपन्न इसी के द्वारा बना जा सकता है।अपनाया इसे ही जाना चाहिए।
- छात्र-छात्राएं सोचते होंगे कि जप-तप,ध्यान-योग आदि हमारे सिलेबस में नहीं,फिर इनको करने से क्या फायदा? यदि आपको अपने व्यक्तित्व में से दोष-दुर्गुणों को हटाना है,व्यक्तित्व का रूपांतरण करना है तो यह सब करना ही पड़ेगा।व्यक्तित्व का रूपांतरण केवल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से संभव नहीं है।यदि ऐसा होता तो सभी मनोवैज्ञानिक मालामाल हो जाते,उनके पास भीड़ लगी रहती।आप कहेंगे यदि जप-तप,ध्यान-योग के द्वारा व्यक्तित्व का रूपांतरण संभव है,तो अध्यात्मवेत्ताओं के पास भीड़ क्यों नहीं है? दरअसल उपर्युक्त प्रकार की प्रक्रियाएं कठिन साध्य हैं और कोई भी छात्र छात्र-छात्रा कठिन साध्य प्रक्रियाओं को करना नहीं चाहते हैं।उन्हें एलोपैथिक दवाई चाहिए जो सिरदर्द होने पर तत्काल ही सिरदर्द को ठीक कर देती है।उन्हें आयुर्वेदिक,कड़वी और लंबे समय में उपचार करके ठीक करने वाली पद्धति नहीं चाहिए।परंतु उन्हें यह पता नहीं की एलोपैथिक दवाइयां से इलाज करना अस्थायी उपचार है।साथ ही उसके साइड इफेक्ट है।एक रोग को ठीक करते ही दूसरा रोग पैदा हो जाता है।
- अतः व्यक्तित्व का परिष्कार,परिमार्जन और रूपांतरण का स्थायी रूप से समाधान करना है तो जप-तप,ध्यान-योग आदि कठिन साध्य प्रक्रियाओं को अपनाना ही पड़ेगा।इन्हीं से स्थायी उपचार संभव है।अन्यथा काम,क्रोध,लोभ,द्वेष आदि विकारों से ग्रस्त होकर उनके दुष्परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे।यदि व्यक्तित्व रूपांतरण का सीधा-सादा,छोटा और सरल रास्ता होता तो हर कोई इसको अपना लेता और झट व्यक्तित्व संपन्न बन जाता।
- उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राएँ व्यक्तित्व का रूपांतरण कैसे करें? (How Transform Students Personality?),व्यक्तित्व का रूपान्तरण कैसे करें? (How to Transform Personality?) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:6 Tips on How to Develop Personality
6.मेरी पुस्तिका छुड़वा दो (हास्य-व्यंग्य) (Get Rid of My Booklet) (Humour-Satire):
- छात्र:थानेदार साहब आप मेरी पुस्तिकाएँ छुड़ा सकते हैं। थानेदार:हां,क्यों नहीं।
- छात्र:बोर्ड इंस्पेक्शन टीम ने मेरी परीक्षा पुस्तिकाएं जप्त कर ली है।उन्हें छुड़वा दो।
7.छात्र-छात्राएँ व्यक्तित्व का रूपांतरण कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How Transform Students Personality?),व्यक्तित्व का रूपान्तरण कैसे करें? (How to Transform Personality?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.व्यक्तित्व क्या है? (What is personality?):
उत्तर:व्यक्तित्व हमारे आंतरिक एवं बाह्य गुणों का योग है,जो हमें एक विशेष परिभाषा प्रदान करता है।व्यक्तित्व के बाह्य गुणों में कद-काठी,रंग-रूप,चेहरे की बनावट,वेशभूषा,जूते,हेयर-स्टाइल,चेहरे पर भाव,शारीरिक भाषा आदि शामिल है।व्यक्तित्व के आंतरिक गुणों में हमारा दृष्टिकोण,व्यवहार,सैद्धांतिक व व्यावहारिक ज्ञान,बातचीत की कला,समय प्रबंधन की क्षमता,विश्लेषण क्षमता,समाज और देश के प्रति सोच,सीखने की ललक आदि शामिल हैं।
प्रश्न:2.अच्छे व्यक्तित्व के निर्माण का सरल तरीका क्या है? (What is the easiest way to build a good personality?):
उत्तर:एक अच्छे एवं प्रभावी व्यक्तित्व के निर्माण के लिए दुर्गुणों,दोषों को छोड़ते जाएं और सद्गुणों को अपनाते जाएँ।अच्छी संगत के लोगों के संपर्क में रहना चाहिए और बुरी संगत के लोगों के साथ संपर्क नहीं करना चाहिए।
प्रश्न:3.व्यक्तित्व की पहचान कैसे होती है? (How is personality identified?):
उत्तर:व्यक्ति की बोलचाल,चाल-चलन और व्यवहार से व्यक्तित्व का पता चल जाता है।इसीलिए जॉब इंटरव्यू में बोलचाल,हावभाव,आपके बर्ताव के द्वारा व्यक्तित्व का पता लगाया जाता है।व्यावसायिक जगत में भी व्यक्तित्व संपन्न लोगों की पूँछ होती है।केवल डिग्रीधारी (क्वालिफाइड) व्यक्तियों की जरूरत नहीं बल्कि शिक्षित (एजुकेटेड) लोगों की जरूरत है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राएँ व्यक्तित्व का रूपांतरण कैसे करें? (How Transform Students Personality?),व्यक्तित्व का रूपान्तरण कैसे करें? (How to Transform Personality?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.