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How to Take Education Maths Students?

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1.गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें? (How to Take Education Maths Students?),गणित के विद्यार्थी के लिए विद्या अर्जन की 3 टिप्स (3 Tips to Acquire Knowledge for Mathematics Students):

  • गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें? (How to Take Education Maths Students?) क्योंकि विद्या के बिना जीवन में,जॉब में तथा सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने में सफलता अर्जित नहीं कर सकते हो तथा अपने दायित्वों को पूर्ण दक्षता के साथ नहीं कर सकते हैं।विद्या प्राप्त करने का अधिकारी वह होता है जिसका हृदय निर्मल हो,आलसी न हो,ब्रह्मचर्य का पालन करता हो।वस्तुतः आधुनिक युग में विद्या का स्वरूप ही बदल गया है।अब जो शिक्षा का स्वरूप है उसे विद्या कहा ही नहीं जा सकता है।शिक्षा प्राप्त करने के लिए पात्रता तथा कुपात्रता का विचार किया ही नहीं जाता है।इसलिए आजकल शिक्षा प्राप्त करके कई छात्र-छात्राएं दुरुपयोग करते हैं।पढ़े-लिखे लोग अय्याश,शराबी,चोर,लुटेरे,डकैत,अपहरणकर्ता,बेईमान,झूठ बोलने वाले,रिश्वतखोर,आलसी,अकर्मण्य इत्यादि मिल जाएंगे।
  • गणित के विद्यार्थी तथा अन्य विद्यार्थियों को समझ लेना चाहिए कि विद्या से बुद्धि का विकास में प्रमुख स्थान है।विद्या न केवल जाॅब प्राप्त करने में सहायक है बल्कि सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने और आत्मिक शान्ति के लिए भी विद्या की आवश्यकता होती है।
  • महान गणितज्ञों,वैज्ञानिकों तथा महापुरुषों को सफल,उच्च तथा परिपक्व बनाने में विद्या का प्रमुख स्थान है।विद्या के द्वारा ही ये लोग अपने क्षेत्र में शिखर पर पहुंच सके हैं।उन्होंने विद्या प्राप्त करने के लिए अनेक संकट उठाए,अभावों में रहे,कितनी ही विकट परिस्थितियों को सहन किया परंतु विद्या प्राप्ति के मार्ग को छोड़ा नहीं।यदि उनको ज्ञान की तीव्र उत्कंठा न होती या विद्या के महत्त्व को कम आँककर केवल मनोरंजन के लिए विद्या ग्रहण करते तो उस स्तर पर नहीं पहुंच पाते जिनके अधिकारी बनकर वे आज विद्या,बुद्धि,ज्ञान,विवेक तथा आध्यात्मिक क्षेत्रों के उदाहरण बन चुके हैं।
  • ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोई बिना ज्ञान एवं विद्या के उन्नति और प्रगति कर सका हो।विद्या ऐसी निधि है जिसका वर्तमान जीवन तथा आगामी जीवन में नाश नहीं होता।यदि कोई व्यक्ति धनाढ्य है,धन सम्पत्ति है तो विद्या के बिना आत्मिक शांति नहीं मिल सकती है।स्पष्ट है कि धन-दौलत,शक्ति,सुंदरता इत्यादि के आधार पर किसी की उन्नति,विकास,प्रगति और व्यक्तित्व को नहीं परखा जा सकता है बल्कि ज्ञान और विद्या वह कसौटी है।
  • भौतिक तथा आध्यात्मिक प्रगति दोनों में विकास,उत्थान व प्रगति विद्या के बिना संभव नहीं है।विद्या से हमारा मानसिक संतुलन बना रहता है जिससे हम अच्छाई-बुराई,हानि-लाभ,पाप-पुण्य,सत्य-असत्य इत्यादि का विवेचन कर सकते हैं।छात्र-छात्राओं को जिस भी क्षेत्र में उन्नति,प्रगति,विकास और सफलता अर्जित करनी है तो उसी विषय एवं क्षेत्र के अध्ययन में लग जाना चाहिए।
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2.विद्या का अर्थ और विद्या की उपयोगिता (Meaning of Education and Usefulness of Knowledge):

  • विद्या का अर्थ है किसी विषय,वस्तु के बारे में जानना।संसार में जितनी चीजें दिखाई देती है और जो नहीं दिखाई देती हैं,सब जानने की बात है।अपने जीवन क्षेत्र,जाॅब से संबंधित सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने सम्बन्धी तथा थोड़ा-बहुत आध्यात्मिकता से संबंधित बातों को जानना चाहिए।क्योंकि विद्याएँ अनन्त है और अनन्त का ज्ञान प्राप्त करना असंभव है परंतु अपने जीवन में उपयोगी है वह बातें तो जाननी ही चाहिए।विद्या से अन्तःचक्षु खुल जाते हैं।नीति में कहा है कि शास्त्र अनन्त है।विद्या बहुत है।समय थोड़ा है।विघ्न बहुत है।इसलिए जो सारभूत है,वही जान लेना चाहिए।जैसे हंस पानी में से दूध ले लेता है।प्रत्येक छात्र-छात्रा को विद्या अवश्य ग्रहण करनी चाहिए।माता-पिता को भी अपने बच्चों को विद्या अवश्य पढ़ाना चाहिए क्योंकि जो माता-पिता अपने बालकों को विद्याभ्यास नहीं कराते है वे बालकों के शत्रु है।उनके बालक बड़े होने पर सभा,सोसाइटी में अपमानित होते हैं और ऐसे कुशोभित होते हैं जैसे हंसों के बीच में बगुला।
  • अनेक माता-पिता अपने बालकों को मोह में आकर लाड़-प्यार में डाले रखते हैं तथा यही धारणा बनाए रखते हैं कि अभी बच्चा है बाद में पढ़ लेगा अथवा पढ़ा-लिखा होकर कौनसा तीर मार लेगा? परंतु वे यह नहीं समझते हैं कि लाड़-प्यार में अंधे होकर बच्चे का जीवन खराब कर रहे हैं।प्रेय में पढ़कर उन्हें श्रेय का ध्यान ही नहीं रहता है।प्रेय कहते हैं उसको जो पहले तो प्रिय मालूम होता है परंतु पीछे जहर का काम करता है और श्रेय उसको कहते हैं जो पहले कष्टदायक मालूम होता है पर बाद में हितकर होता है।लड़कों का प्यार भी ऐसा ही है जो प्रिय मालूम होता है परंतु बाद में वे लड़के उद्दण्ड बन जाते हैं,तब माता-पिता और उनके हितैषियों को दुःख होता है।
  • नीति में कहा है कि जो माता-पिता और गुरु बच्चों और शिष्यों को कठोर अनुशासन में रखते हैं,वे मानों अपनी संतान और शिष्यों को अमृत पिला रहे हैं और जो उनका लाड़-प्यार करते हैं मानो उनको विष पिलाकर नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं क्योंकि लाड़-प्यार से बालकों और शिष्यों में अनेक दोष आ जाते है।परंतु माता-पिता और शिक्षक को भी चाहिए राग-द्वेष के वशीभूत होकर उनको कठोर अनुशासन में न रखें।
  • छात्र-छात्राओं को नीति के इस श्लोक का ध्यान रखना चाहिए कि विद्या मनुष्य का बड़ा भारी सौंदर्य है।यह गुप्त धन है।विद्या भोग,यश और सुख को देने वाली है।विद्या गुरुओं का भी गुरु है।विदेश जाने पर विद्या ही मनुष्य का बंधु सहायक है।विद्या एक सर्वश्रेष्ठ देवता है।विद्या राजाओं के लिए भी पूज्य है।इसके समान और कोई धन नहीं है।जो मनुष्य विद्या से विहीन है वह पशु है।धन का सदुपयोग विद्या का ज्ञान होने पर ही किया जा सकता है,मूर्ख तो धन का दुरुपयोग (नाश) ही करते हैं।कई ऐसे कार्य है जो बिना धन के केवल विद्या के बल पर किए जा सकते हैं।विद्या से विद्या और धन दोनों प्राप्त किए जा सकते हैं।

3.विद्या की अन्य विशेषताएं (Other Features of Learning):

  • विद्याधन में एक बहुत बड़ी विशेषता ओर भी है।वह यह है कि यह खर्च करने से ओर बढ़ती है।जबकि धन को खर्च करने से घटता है।यदि विद्या को दूसरों को सीखाने और सीखने में उपयोग में न लिया जाए तो यह भूल जाती है।यदि पढ़ना-पढ़ाना जारी रखा जाए तो उसकी निरंतर वृद्धि होती है।इस पर नीति में कहा है कि “हे सरस्वती देवी,आपकी कोष की दशा तो बहुत ही विचित्र जान पड़ती है।क्योंकि व्यय करने से इसकी वृद्धि होती है और संचय करने से यह घट जाता है।
  • इसलिए मनुष्य को चाहिए कि विद्या का पढ़ना-पढ़ाना कभी बंद न करें।विद्या पढ़ने में छात्र-छात्राओं को खूब मन लगाना चाहिए क्योंकि बालकपन में जो विद्या पढ़ ली जाती है,वह जिंदगी भर सुख देती है।नीति में कहा है कि विद्या न तो चोर चुरा सकता है,न शासक दण्ड दे सकता है,न भाई बँटा सकता है और न इसका बोझा है,फिर व्यय करने से रोज बढ़ती है।सचमुच ही विद्याधन सब धनों में सर्वश्रेष्ठ है।
  • चाणक्य नीति में कहा है कि बिना उपयोग के विद्या की स्थिति निम्न होती है
    “पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु यद्धनम्।
    उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम्”।।
  • अर्थात् पुस्तक की विद्या और पराए हाथ का धन कार्य पड़ने पर उपयोग में नहीं आता है।न वह विद्या है और न वह धन है।यदि विद्या का सदुपयोग किया जाए तो इसका लाभ निम्न नीति के अनुसार होता है” विद्या माता की तरह रक्षा करती है,पिता की तरह हित के कामों में लगाती है,स्त्री की तरह खेद को दूर करके मनोरंजन करती है,धन को प्राप्त कराकर चारों और यश फैलाती है।विद्या कल्पलता के समान क्या-क्या सिद्ध नहीं करती? अर्थात् सब कुछ करती है”।
  • रूप और यौवन से संपन्न तथा ऊँचे कुल में उत्पन्न हुआ पुरुष भी बिना विद्या के निर्गन्ध पलास-पुष्प की भाँति शोभा नहीं देता है।

4.विद्या के दुरुपयोग का दृष्टान्त (Illustration of Misuse of Knowledge):

  • नीति में कहा है कि विद्या से व्यक्ति भी विनम्र होता है,नम्रता से योग्यता मिलती है,योग्यता से धन,धन से धर्म का पालन होता है और धर्म के पालन से सुख प्राप्त होता है।यदि विद्या से छात्र-छात्राएं विनम्रता को प्राप्त नहीं होते हैं तो समझ लें की वे अविद्या का संचय कर कर रहे हैं।अविद्या से छात्र-छात्राएं डिग्रीधारी (Qualified) तो हो सकता है परंतु शिक्षित (Educated) नहीं हो सकता है।विद्या और विनम्रता से सुपात्रता (योग्यता) प्राप्त होती है।सुपात्र छात्र-छात्राएं ही वस्तुओं को धर्म और नीति का पालन करते हुए काम लेता है और जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करता है।
  • गणित शिक्षक देवमित्र एक बार नगर में चले जा रहे थे।अचानक एक अट्टालिका से उनको किसी ने पुकारा।उन्होंने अट्टालिका की ओर देखा तो देखकर पहचान गए कि यह सिद्धार्थ है। जिसने उनसे गणित की शिक्षा प्राप्त की थी।उन्होंने सिद्धार्थ के घर में प्रवेश किया।सिद्धार्थ ने उनको प्रणाम किया।गणित शिक्षक देवमित्र ने पूछा इतना भव्य महल कैसे खड़ा कर लिया है? तुम तो बिल्कुल निर्धन छात्र थे तथा तुम्हारी नौकरी भी एक मामूली से क्लर्क के पद है। सिद्धार्थ ने कहा कि यह सब आपकी कृपा का फल है।गणित में मैं बिल्कुल कमजोर था तथा ट्यूशन व कोचिंग के लिए भी धन नहीं था परन्तु आपने निःशुल्क पढ़ाकर मुझे गणित में पारंगत कर दिया और मेरी बुद्धि का विकास इतना हुआ कि मैं क्लर्क की प्रतियोगिता परीक्षा में चयनित हो गया।
  • मुझे पंजीयन विभाग में नियुक्त कर दिया गया।वहाँ हर रजिस्ट्री पर कमीशन निर्धारित है।हर पंजीयन (रजिस्ट्री) कराने वाले से हम रिश्वत के रूप में कमीशन लेते हैं।अधिकारी भी लेते हैं और मुझे भी कमीशन मिल जाता है उसी कमीशन के बदौलत यह भव्य महल खड़ा कर लिया है।गणित शिक्षक मायूस हो गए और तत्काल उल्टे पैरों लौट गए।गणित शिक्षा का ऐसा दुरुपयोग देखकर उनका मन पीड़ा से व्यथित हो गया।
  • आगे बढ़े तो देखा कि एक हट्टा-कट्टा नवयुवक,नवयुवती के साथ मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहा था।उसने गणित शिक्षक देवमित्र के निकट आकर मोटरसाइकिल रोकी और प्रणाम किया।देव मित्र ने पहचानते हुए कहा कि तुम तो गौतम हो न।गौतम ने कहा कि आपने ठीक पहचाना।देवमित्र ने कहा कि तुम कोचिंग में पढ़ने आते थे तब तो दुबले-पतले थे,अचानक इतने हट्टे-कट्टे,मोटे-तगड़े कैसे हो गए।गौतम ने कहा कि यह आपकी कृपा है।गणित शिक्षा में पारंगत करने के कारण मेरा प्रतियोगिता परीक्षा में चयन हो गया।कृषि विभाग में मुझे लेखाकार के पद पर नियुक्त कर दिया।वहाँ मुझे कोई काम नहीं करना पड़ता है।कृषि विभाग में कोई विशेष काम नहीं है।थोड़ा-बहुत काम है जो क्लर्क कर लेता है और मुझे केवल हस्ताक्षर करने पड़ते हैं।
  • इस प्रकार आराम से जिंदगी गुजर रही है।अच्छा वेतन मिल जाता है।काम कुछ भी करना पड़ता नहीं है।अफसर की तरह जाता हूँ।इसलिए इतना मोटा-तगड़ा हो गया हूं।इतना कहकर वह रवाना हो गया।
  • एक गणित शिष्य रिश्वतखोर था तथा दूसरा आलसी हो गया है।गणित शिक्षक ने विचार किया कि पात्रता का विकास किए बिना,विद्या का सदुपयोग समझाए बिना विद्या का दुरुपयोग ही नहीं बल्कि विनाशकारी और पतन का कारण बन जाता है।
    इस आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें? (How to Take Education Maths Students?),गणित के विद्यार्थी के लिए विद्या अर्जन की 3 टिप्स (3 Tips to Acquire Knowledge for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

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5.आधुनिक युग में गणित शिक्षक की दशा (हास्य-व्यंग्य) (The State of Mathematics Teacher in the Modern Era) (Humour-Satire):

  • छात्र (गणित शिक्षक से):सर आपको निवेदिता मूर्ख और गधे के बराबर भी नहीं समझती।
  • छात्रा (गणित शिक्षक से):नहीं सर यह झूठ बोल रहा है।मैं आपको मूर्ख और गधे से भी बड़ा समझती हूँ।

6.गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Take Education Maths Students?),गणित के विद्यार्थी के लिए विद्या अर्जन की 3 टिप्स (3 Tips to Acquire Knowledge for Mathematics Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नः

प्रश्नः1. विद्वान में कौन-कौनसे गुण होने चाहिए? (What Qualities Should a Scholar Possess?):

उत्तरःविद्वान व्यक्ति किसी कार्य को भलीभाँति सोच-विचारकर ही करते हैं।विद्वानों में सात्विक बुद्धि होती है जबकि मूर्ख में रजोगुण और तमोगुण बुद्धि होती है।विद्वान व्यक्ति को धर्मग्रंथों तथा अपने क्षेत्र (विषय) का ज्ञान और अभ्यास होता है,उनमें सद्बुद्धि होती है,अच्छी स्मरण शक्ति,काम करने का कौशल,वाणी में माधुर्य,धैर्य,शान्ति इत्यादि गुण होते है।दरअसल विद्वान वही होता है जो विद्या को प्राप्त करके उसका सदुपयोग करता है।जबकि मूर्ख विद्या का दुरुपयोग करता है,अहंकारी और ओछे स्वभाव का होता है।विद्वान शिक्षित होता है जबकि मूर्ख डिग्रीधारी होता है।

प्रश्नः2.विद्यार्थी को कौनसे कार्य नहीं करने चाहिए?(What Things Should the Student not Do?):

उत्तर:विद्यार्थी को काम,क्रोध,लोभ,स्वाद,श्रृंगार,खेल-तमाशे,अधिक सोना,अति सेवा इत्यादि कार्य नहीं करने चाहिए।आलस्य,लापरवाही,अनियमितता,मोह,तृष्णा,मद्यपान इत्यादि विकारों से दूर रहना चाहिए।परंतु आजकल के विद्यार्थियों में यह दुर्गुण ही क्या अन्य बहुत से दूर्गुण पाए जाते हैं।

प्रश्न:3.विद्यार्थी के लक्षण क्या हैं? (What are the Student’s Symptoms?):

उत्तर:कोए जैसी चेष्टा,बगुले जैसी एकाग्रता,कुत्ते जैसी नींद,अल्प आहार करना और घर का त्याग (घर में आसक्ति न रखना,विद्या प्राप्ति के लिए जहाँ जाना पड़े वहां जाए,घर घुस न बने रहना) इत्यादि गुण होने चाहिए।विद्यार्थियों में ये गुण तभी आ सकते हैं जब वह सुख की अभिलाषा का त्याग करता है क्योंकि विद्या प्राप्त करना कठोर तपस्या है जिसमें सुख प्राप्त करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है।
प्रश्न:4.क्या विद्वान की हर जगह माँग होती है? (Is There a Demand for a Scholar Everywhere?):
उत्तरःविद्वान व्यक्ति तथा छात्र-छात्राओं की हर जगह माँग रहती है।अशिक्षित व अज्ञानी की कहीं पूछ नहीं होती।लोग उसका मन ही मन तिरस्कार किया करते हैं और संपर्क में आने पर मूर्ख,गँवार अथवा अज्ञानी समझकर टालने-हटाने का प्रयास करते हैं।परिवार,समाज में,कंपनियों में,ऑफिस में शिक्षित और विद्वान की बात ही मानी जाती है।
How to Take Education Maths Students?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें? (How to Take Education Maths Students?),गणित के विद्यार्थी के लिए विद्या अर्जन की 3 टिप्स (3 Tips to Acquire Knowledge for Mathematics Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।How to Take Education Maths Students?

How to Take Education Maths Students?

गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें?
(How to Take Education Maths Students?)

How to Take Education Maths Students?

गणित के छात्र-छात्राएं विद्या कैसे ग्रहण करें? (How to Take Education Maths Students?)
क्योंकि विद्या के बिना जीवन में,जॉब में तथा सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करने में
सफलता अर्जित नहीं कर सकते हो तथा अपने दायित्वों को पूर्ण दक्षता के साथ नहीं कर सकते हैं।
विद्या प्राप्त करने का अधिकारी वह होता है जिसका हृदय निर्मल हो,आलसी न हो,ब्रह्मचर्य का पालन करता हो।
वस्तुतः आधुनिक युग में विद्या का स्वरूप ही बदल गया है।अब जो शिक्षा का स्वरूप है उसे विद्या कहा ही नहीं जा सकता है।
How to Take Education Maths Students? के द्वारा दर्शाया गया है कि आज की शिक्षा और विद्या में कितना अन्तर है।

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