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How to Remove Arrogance in Innocents?

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1.मासूमों में अक्खड़पन कैसे दूर करें? (How to Remove Arrogance in Innocents?),बच्चों में उद्दण्डता दूर करने की तकनीक (Techniques to Overcome Impertinent in Children):

  • मासूमों में अक्खड़पन कैसे दूर करें? (How to Remove Arrogance in Innocents?) क्योंकि यह अक्खड़पन शैतानी,बच्चों का आपस में लड़ना-झगड़ना,रुष्ट होना (रूठ जाना),जिद करना आदि जैसी नहीं है।बल्कि इस अक्खड़पन,उद्दण्डता में ऐसी हरकतें शामिल हो गई हैं जिन्हें माता-पिता,अभिभावक देखकर विवश हो जाते हैं कि अब आधुनिक युग की उद्दण्डता से कैसे बच्चों को दूर करें,पिण्ड छुड़ाए?
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2.आधुनिक किशोर अपनी उम्र से आगे बढ़ा (The modern adolescent grew beyond his age):

  • मासूमों की मासूमियत उलझ गई है,भटक गई है।इस उलझन एवं भटकन का परिणाम एवं प्रभाव अत्यंत घातक है।यह किसी के लिए भी अच्छा नहीं है:ना मासूमों के लिए,न उनके अभिभावकों के लिए और न समाज-राष्ट्र के लिए; क्योंकि मासूम वे नन्हें बीज हैं,जिन पर किसी समाज और राष्ट्र के मूल्यों की गिरावट का एक प्रमुख कारण यह भटकन है।कारण चाहे कुछ भी हो परंतु सच्चाई यह है कि आज के किशोरों की नजर वयस्कों की दुनिया पर टिक गई है।किशोरों में वयस्कों की तुलना में जोखिम लेने का ज्यादा माद्दा होता है।उनके लिए जोखिम उठाना रोमांच और रूमानियत है और इसका परिणाम है कि उनका रिश्ता अपराध की दुनिया में पसर गया है।
  • नादान बचपन लगता है,छिन गया है।यह अब किंवदंती बनकर रह गया है।दादा-दादी द्वारा सुनाई जाने वाली परी की कहानीयाँ,गांव की पगडंडियों में गिल्ली-डंडा खेलते बच्चों की मोहक किलकारियां आदि बीते दिनों की बातें हो चुकी हैं।उनके स्थान पर कार्टून नेटवर्क,इंटरनेट,मोबाइल आदि आधुनिक उपकरण आ चुके हैं।इंटरनेट के जरिए बच्चे उस संसार में शामिल हो रहे हैं जो उनके लिए कभी रहस्य था,एक सुनहला सपना था।
  • इंटरनेट से जानकारियां लेने की बजाय ऐसी चीजें सर्फिंग की जाती हैं,जिन्हें देखकर लगता नहीं है कि ये मासूम अब नादान मासूम हैं।यह तो वयस्कों से भी आगे बढ़ चुके हैं।अश्लीलता अब अछूत नहीं रह गई है।अब तो ड्रग्स,हिंसा,अपराध,शराब आदि सामान्य जीवन के अंग बनते जा रहे हैं।इनसे परहेज कैसा! इनसे बचने एवं बचाने के लिए कोई नैतिक दबाव भी दृष्टिगोचर नहीं होता है।
  • आज का किशोर अपनी उम्र से आगे बढ़ गया है।किशोरों की मासूमियत कहीं खो गई है।वे सारे ऐसे काम करते नजर आते हैं,जिन्हें कभी वयस्क भी करने के लिए हिचकता था।एक गैरसरकारी संस्था ने सन् 2005 में सर्वे कराया था,जिसमें 12 से 17 वर्ष आयु के नशेड़ी बच्चों की संख्या 8 लाख बताई गई थी जो अब तिगुनी हो गई है।
  • अनुमान है कि हमारे देश में 5% हत्याएँ इसी आयु के बच्चों द्वारा नशे के हालात में की गई।इसी वर्ष अमेरिका की एक संस्था ने अपने देश के नशे के कारोबार के बारे में सर्वेक्षण कराया,जिसके अनुसार नशाखोरी को 400 बिलियन डॉलर व्यापार बताया गया था।यह बजट अमेरिकी रक्षा बजट से भी अधिक है।
  • अमेरिका के ‘नेशनल हाउस होल्ड सर्वे ऑन ड्रग्स एब्यूज’ के अनुसार अमेरिका में 80% युवा नशेड़ी 18 वर्ष की उम्र के पूर्व से नशा करते हैं।लगभग 30000 युवा चैन स्मोकर्स हैं।प्रतिदिन की इतनी ही संख्या सिगरेट सेवन करने वालों की है।वहां 5 लाख बच्चे सिगरेट पीने के कारण किसी न किसी रोग से प्रभावित हैं।1997 में 21 लाख बच्चों ने सिगरेट सेवन करना प्रारंभ किया था।इनमें आधे से अधिक 18 साल के युवा थे।वहां स्कूल में तंबाकू सेवन प्रारंभिक स्तर पर होता है।जो बाद में ड्रग्स एवं शराब के रूप में परिणत हो जाता है।गरीब से लेकर अमीर बच्चे सभी तंबाकू सेवन से नशे की शुरुआत करते हैं।’यूएस जनरल रिपोर्ट 1994′ के अनुसार धूम्रपान की बढ़ोतरी प्रतिदिन प्रति हजार जनसंख्या में 55.5 से 74.9% तक थी।यह आंकड़ा चौंकाने वाला है।

3.युवाओं में नशे और सेक्स की लत (Sex and drug addiction in youth):

  • ड्रग्स में मारिजुआना खतरनाक माना जाता है; क्योंकि जब इसकी लत लगती है तो इसे छोड़ पाना मुश्किल होता है।यह विषकारक है और शरीर को खोखला कर देता है।1998 में 56 प्रतिशत 12 से 17 वर्ष की उम्र के किशोर इसका सेवन करते थे।40% किशोरों का मानना है कि जब वे परेशान होते हैं तो शराब पीते हैं।31% युवा अकेलेपन के कारण इसका सेवन करते हैं।25% ऐसे हैं,जो सिर्फ बोरियत मिटाने के लिए पीते हैं और इतने ही ऐसे हैं जो बस यों ही पीते हैं।विद्यार्थी प्रतिवर्ष 55 बिलियन डॉलर इस पीने पिलाने के रूप में खर्च कर जाते हैं।अमेरिका का प्रति छात्र 446 डॉलर इस मद में खर्च करता है; जबकि कॉलेज लाइब्रेरी की फीस प्रति छात्र इससे कम है।शराब से संबंधित रोगों से लाखों युवा प्रतिवर्ष अपनी बेशकीमती जीवन से हाथ धो बैठते हैं।
  • युवाओं में यौन संबंधी मामले तो और भी चौंकाने वाले हैं।एलेन गुटमेचर इंस्टिट्यूट,न्यूयाॅर्क 1994 के अनुसार 17 वर्ष की उम्र के पहले किशोर-किशोरियाँ इस दौर से गुजर चुके होते हैं।इसी संख्या की 1996 की रिपोर्ट बताती है कि 14 वर्ष की 10 लड़कियों में से 7 एवं 15 वर्ष की 10 में से 6 लड़कियां अवैध संबंध बना चुकी होती हैं।18 वर्ष तक आते-आते यह आंकड़ा 66 से 70% को छू जाता है।इसी संस्था के अनुसार 20 वर्ष से कम उम्र की 10 लाख लड़कियां प्रतिवर्ष बिनब्याही मां बन जाती हैं।लगभग 10 में से 4 बीस वर्ष से कम उम्र की लड़कियां 20 वर्ष तक कम से कम एक बार गर्भवती हो चुकी होती हैं।
  • जस्टिस डिपार्टमेंट के अनुसार अमेरिका में प्रति दो में से एक 18 वर्ष की लड़कियों तथा प्रति 6 में से एक 12 वर्ष की लड़कियां बलात्कार की शिकार हो जाती हैं।10 में से 9 घटनाओं में युवतियाँ शिकार होती हैं।युवाओं में अपराध की घटनाएं भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं।स्कूलों में अपराधी गुटों की संख्या 1989 की तुलना में 1995 में 15.3% से 28.4% हो गई,अर्थात् इसके ठीक दो गुना अधिक।यह गुट केवल तोड़-फोड़ नहीं मचाता,बल्कि गोली मारकर हत्या कर देने से भी नहीं चूकता।
  • अमेरिकी संस्कृति का यह आंकड़ा केवल वहाँ के लिए खतरों की आशंका तक सीमित नहीं है,बल्कि इसके दंश से हमारे मासूम भी घायल है,क्योंकि संचार-क्रांति ने विश्व को एक गांव के समान बना दिया है।वहां पर होने वाली घटनाओं की गूंज हमारे यहां भी होती है।यहां भी युवाओं में आपराधिक प्रवृत्ति पनप रही है।उनके भीतर पनप रहा क्रोध,हिंसा,घृणा अलगाव का भाव सहज कहा जा सकता है।अपने देश की संस्कृति एवं समाज के मूल्य और मानदंड भिन्न हैं।इन्हीं मूल्यों के आधार पर ही युवाओं में श्रेष्ठ आदर्श एवं विचारों को स्थापित किया जाता है और युवा इन मूल्य आधारित मानदंडों को स्वेच्छा से स्वीकारते भी थे,परंतु बाल मन में जब से बाजार हावी हो गया है,तब से स्थिति दुरूह एवं जटिल हो गई है।
  • मासूम निगाहें बाजार में नित नए पैदा होने वाले ब्रांड को टकटकी लगाकर परख रही हैं।इस परखने में उनके स्वयं के कोई तथ्यपूर्ण तर्क नहीं हैं।वे या तो बाजार की भाषा अलाप रहे हैं या फिर अपने मित्रों,सहपाठियों की भाषा में चीजों को स्वीकार और नकार रहे हैं।हर छोटी से लेकर बड़ी चीज उनके लिए स्टेटस सिंबल बनती जा रही है और उसे पाने की ललक में वह किसी भी हद तक जाने में कोताही नहीं करते।वे अपनी बात मनवाने के लिए घर में जिद करते हैं और ना माने जाने पर चोरी या अन्य अपराध का हथकंडा अपनाया जाता है।यही वह मार्मिक बिंदु है,जो उन्हें अपराध की दुनिया में पांव रखने के लिए मजबूर करता है।यहीं से उनके अंदर आपराधिक प्रवृत्तियां जन्म लेती हैं।इसे यों ही सहजता से स्वीकार नहीं लेना चाहिए।

4.आज का किशोर अधिक उद्दंड (Today’s teen more defiant):

  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बाजार का यह सुनियोजित एवं कुटिल षड्यंत्र किशोरों की एकाग्रता,तार्किक शक्ति,स्मृति,कल्पना,भावना,संवेदना,स्वास्थ्य,शिक्षा आदि को प्रभावित कर रहा है।इसी के कारण उनके व्यवहार में गहरा प्रभाव पड़ रहा है।अध्ययन के अनुसार एक किशोर आज अधिक चिड़चिड़ा,तनावग्रस्त,चिंतित तथा उद्दंड होता जा रहा है।उनके मानसिक,शारीरिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आती जा रही है।बड़ों की बीमारी आज उनमें पनपने लगी है।वे डायबिटीज,एनीमिया,अनिद्रा जैसी बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे हैं।
  • अध्ययन की मानें तो किशोरों का मनोविज्ञान अनोखा और निराला होता है।उनमें साहस,उमंग एवं खतरों से खेलने का नया रोमांच होता है।वे अपनी जान की बाजी लगाकर किसी चीज को करने में भरोसा रखते हैं।स्वयं को दाँव पर लगाकर पाने का यह अंदाज यदि रचनात्मक दिशा की ओर हो तो वे राष्ट्र के बलिदानी शूरमाओं जैसे भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद के नक्शेकदम पर बढ़ सकते हैं।वैज्ञानिक,कलाकार,चिंतक,सुधारक,साहित्यकार आदि प्रतिभाओं का जन्म इसी उत्साह एवं उमंग को दिशा देने से होता है,परंतु इससे विध्वंसक कार्य में लगा देने से हिंसा एवं अपराध की ऐसी घटनाएं जन्म लेती हैं,जिन्हें देख इंसानियत काँप उठती है।आज के युवा आतंकवादी कारनामें इसी का परिणाम है।आज के किशोर परिणाम से बेखबर नहीं,परिणाम के प्रति लापरवाह होते हैं।
  • किशोरों को सर्वाधिक पता है कि नशा,शराब,हिंसा,अपराध,असुरक्षित यौन संबंध का परिणाम क्या होता है।इंटरनेट के आंकड़ों से वे इनके परिणामों से भलीभाँति सुपरिचित हैं,परंतु जोखिम लेने का माद्दा,रिस्क उठाने के शौक के कारण हजार इनकार के बाद भी इसे करते नजर आते हैं।तेज रफ्तार से कार ड्राइविंग कर दुर्घटनाओं से मरने के बावजूद,नशे से बीमारियों की गिरफ्त में आने के बाद भी वे इसे इसलिए छोड़ने से परहेज कर रहे हैं कि एडवेंचर पहले करके देख लिया जाए,परिणाम जो भी होगा,देखा जाएगा।यह वृत्ति अत्यंत घातक है।

5.किशोरों को उद्दण्ड होने से कैसे बचाएं? (How to prevent teenagers from being deficient?):

  • किशोरों की वर्तमान दुरवस्था अत्यंत चिंताजनक है।इसके कारणों में इनके प्रति अभिभावकों का समयाभाव प्रमुख कारण है।आधुनिक जीवन शैली की व्यस्ततम समय में इनको पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है।इसके अलावा समाज,परिवार के स्थान पर बाजार तथा आज का वातावरण भी जिम्मेदार है।इससे इनकी भावनात्मक तृप्ति रिक्त रह जाती है और इसी अभाव को पूरा करने के लिए वे जाने-अनजाने बहकते-लड़खड़ाते हैं।हमें उनकी कोमल भावनाओं को समझना चाहिए।उनकी आवश्यकताओं को ही नहीं,उनकी समस्याओं से भी बखूबी वाकिफ होना चाहिए।इससे समय रहते उनके बहकते कदमों को थामा जा सकता है।उनकी गलतियों के लिए सर्वप्रथम उन्हें उचित रीति-नीति से समझाना चाहिए।डांट-फटकार एवं दंड ही एकमात्र उपाय नहीं है।इसे अंतिम विकल्प के रूप में सावधानीपूर्वक ही प्रयोग करना चाहिए।
  • किशोरों की रुचि,मानसिकता एवं सामर्थ्य को ध्यान में रखकर उनको सर्वदा रचनात्मक कार्यों में नियोजित करना चाहिए।उनके अतिरेक उत्साह एवं उमंग को यदि सही दिशा नहीं मिल पाएगी तो उनका दिग्भ्रमित होना सुनिश्चित है।यह उम्र है,जो उन्हें विकास या विनाश दोनों में से किसी एक दिशा में धकेल देती है।हमारा कर्त्तव्य है कि उन्हें विनाश के मुहाने से निकालकर विकास की धारा में डाल दें।इस तरह फिर से मासूमों की मासूमियत वापस आ जाएगी,वे फिर से चहकने लगेंगे,जिससे हमारा समाज एवं राष्ट्र का गुलशन महक उठेगा।
  • नैतिकता,संबंधों और साधनों की पवित्रता का सामाजिक और पारिवारिक जीवन में अपना महत्त्व है।अतः इस महत्त्व को किसी भी स्तर पर कम ना आँके।जब सामाजिक वर्जनाओं और नैतिक मूल्यों की अनदेखी की जाती है तो अवैध संबंधों की स्थापना हो जाती है।ऐसे संबंध चाहे विवाह पूर्व अथवा विवाह के बाद के अनैतिक संबंधों में वही फँसते हैं,जो सामाजिक वर्जनाओं का ख्याल नहीं रखते।जिनको केवल भौतिक शिक्षा प्रदान की जाती है,नैतिक,धार्मिक,आध्यात्मिक शिक्षा का क,ख,ग भी नहीं पढ़ाया जाता है।ऐसे का भविष्य तो असुरक्षित होता ही है,उनमें मानसिक हीनता भी अधिक बढ़ जाती है।इसलिए इस विषय में बच्चों की सोच इतनी पारदर्शी बनाएं कि वे मानसिक रूप से कहीं भी अपने आपको कमजोर,हीन और अनैतिक अनुभव न करें।
  • अक्सर माताएँ ‘माँ’ होने की दुहाई देकर अपनी कमजोरियों का प्रदर्शन कर बच्चों की अनुचित इच्छाओं के सामने समर्पण कर देती हैं।इस प्रकार का समर्पण बच्चों को घमण्डी,सनकी और क्रूर बनाता है।इसलिए माँ के डाँटने पर पिता को अथवा पिता के डाँटने पर माँ को बच्चे का पक्ष नहीं लेना चाहिए।इस प्रकार का व्यवहार और पक्षपात बच्चे की भावनाओं को हिंसक बनाता है और वे माँ-बाप की परवाह न करते हुए उन्हें अपना प्रतिद्वन्द्वी समझने लगते हैं।माँ-बाप के प्रति बढ़ता अविश्वास उन्हें उन सीमाओं तक बिगाड़ देता है,जहां अभिभावक ही बेटे को कोसने लगते हैं।
  • यह बात सिद्ध हो चुकी है कि बच्चों को मार-पीटकर प्रताड़ित अथवा अपमानित कर सीधे रास्ते पर नहीं लाया जा सकता।इसलिए उनकी किसी गलती,बुरी आदत अथवा व्यवहार के लिए उन्हें मार-पीटकर ठीक ना करें।बच्चों की किसी भी खराब अथवा गंदी आदत,बात,रहस्य,बुराई का पता चल जाने पर उन्हें रंगे हाथों पकड़ने और अपमानित करने के स्थान पर अपनी ओर से सहनशीलता,मानसिक उदारता का परिचय दें।आपकी यह सहनशीलता ही बच्चों को सुधरने के अवसर और सोच प्रदान करेगी।ऐसे सुधरे बच्चे खरे सोने के समान होंगे,क्योंकि वे संघर्षों के बाद स्वयं सुधरे हैं।
  • अच्छे मां-बाप के बच्चे अच्छे होते हैं,इस आदर्श को स्वीकार करते हुए आप स्वयं अच्छे बनें।बच्चे तो आपका अनुसरण कर स्वयं अच्छे बनेंगे।आपकी कथनी और करनी का साम्य बच्चों को कभी भी बिगड़ने नहीं देगा,इस विषय में एक मत है कि पहले मां-बाप बिगड़ते हैं,फिर बच्चे बिगड़ते हैं।
  • स्टेटस सिंबल को प्रदर्शित करने वाली पार्टियों का आयोजन आज के प्रगतिशील जीवन का एक हिस्सा है।अक्सर देर रात तक चलने वाली इन पार्टियों में स्वच्छंदता के कुछ ऐसे भोंडे प्रदर्शन होने लगे हैं,जिनका प्रभाव बच्चों की मानसिकता पर अच्छा नहीं पड़ता।अनैतिक आचरणों को प्रोत्साहन देने वाली ये पार्टियां बच्चों को बिगड़ने की उस सीमा तक ले जाती हैं,जहां से वापसी कठिन हो जाती है।
  • अधिक संपन्नता बच्चों की मानसिकता को विकृत करती है।इसलिए अभिभावक बच्चों को केवल उतनी ही आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करें,जितनी कि उनके करियर बनाने के लिए आवश्यक हो।बच्चों में बचत की आदत डालें।वे अपनी आर्थिक संपन्नता,प्रभाव अथवा शक्ति का उपयोग अनुचित साधनों पर न करें।अपने से कमजोरों के प्रति सहिष्णुता का व्यवहार ही बच्चों की सोच को अच्छा बनाता है।
  • बच्चों की भावनाओं,विचारों और व्यवहारों को प्रतिशोधी होने से बचाएं।इस प्रकार के विचारों का कहीं कोई अंत नहीं होता और ऐसी सोच व्यक्ति की प्रगति में सदैव बाधक बनी रहती है,क्योंकि उसका अधिकांश समय दूसरों के प्रति अनिष्ट की कल्पनाओं में व्यतीत होता है।वह स्वयं अपने बारे में कुछ भी नहीं सोच पाता।अतः अभिभावकों को चाहिए कि न तो वे स्वयं और न अपने बच्चों के मन में इस प्रकार की भावनाओं को पनपने दें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मासूमों में अक्खड़पन कैसे दूर करें? (How to Remove Arrogance in Innocents?),बच्चों में उद्दण्डता दूर करने की तकनीक (Techniques to Overcome Impertinent in Children) के बारे में बताया गया है।

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6.पासबुक से जुगाड़ चलाना (हास्य-व्यंग्य) (Running Device with Passbook) (Humour-Satire):

  • छात्र (गणित शिक्षक से):यह सच है कि एक बार गणित के सवालों के हल देखे हुए,पढ़े हुए आप कभी नहीं भूलते।
    गणित शिक्षक:हां,मगर क्यों?
  • छात्र:वो दरअसल आप मुझे गणित की दी हुई पासबुक को आज बंदरों ने फाड़ दिया है और नई पासबुक का जुगाड़ होने तक आपको अपनी याददाश्त से हमें गणित के सवालों को समझाना होगा,काम चलाना पड़ेगा।

7.मासूमों में अक्खड़पन कैसे दूर करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Remove Arrogance in Innocents?),बच्चों में उद्दण्डता दूर करने की तकनीक (Techniques to Overcome Impertinent in Children) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.आदतें कितने प्रकार की होती हैं? (How many types of habits are there?):

उत्तर:दो प्रकार की होती हैं:अच्छी आदतें व बुरी आदतें। जो आदतें समाज के लिए लाभकारी होती हैं,उसे हम अच्छी आदतें कहते हैं और जो समाज को नुकसान पहुंचाने वाली होती है,उसे हम ‘बुरी आदत’ कहते हैं,लेकिन यह विभाजन आदतों के लिए संपूर्ण व अंतिम नहीं है।कुछ आदतें व्यक्तिगत होती हैं,जैसे:समय का पाबंद होना,जल्दी उठना,सफाई से रहना,प्रसन्न रहना,उदास रहना,देर से उठना व सोना,देर से अध्ययन अथवा कार्यस्थल पर पहुंचना,शर्ट के बटन खुले रखना,बालों में तेल न डालना आदि।कुछ आदतें सामूहिक होती हैं,जैसे:गणवेश में स्कूल जाना,कार्य में ध्यान न देना,सामूहिक प्रार्थना,नृत्य,गाना आदि।

प्रश्न:2.क्या बुरी आदतों को बढ़ावा देने में सिनेमा का प्रभाव पड़ता है? (Does cinema have an impact in promoting bad habits?):

उत्तर:सिनेमा में प्राय: अभिनेता,अभिनेत्री नशा करते हुए और अपने प्रेम में सफल दिखाए जाते हैं।युवा वर्ग और लोगों में फिल्मों को देखने का बहुत क्रेज है।इस प्रकार की फिल्में नशाखोरी को बढ़ावा देने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।जैसे की शराबी फिल्म में अभिनेता अमिताभ बच्चन को शराबी की भूमिका में दिखाकर सफल होता हुआ दिखाया गया है।जबकि नशे की आदत के कारण ही संभवतया अभिनेत्री दिव्या भारती और श्रीदेवी की जान चली गई थी।

प्रश्न:3.समय का पालन करने वाले का पतन क्यों हो जाता है? (Why does the one who follows moderation fall?):

उत्तर:शरीर से संयम ही पर्याप्त नहीं है बल्कि मन से संयम भी सधना चाहिए।ईर्ष्या,द्वेष आदि न करें।अपने आप पर आत्मिक नियंत्रण रखें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा मासूमों में अक्खड़पन कैसे दूर करें? (How to Remove Arrogance in Innocents?),बच्चों में उद्दण्डता दूर करने की तकनीक (Techniques to Overcome Impertinent in Children) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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