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How to Prevent Corruption in India?

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1.भारत में भ्रष्टाचार को कैसे रोके? (How to Prevent Corruption in India?) भारत में भ्रष्टाचार के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Corruption):

  • भारत में भ्रष्टाचार को कैसे रोके? (How to Prevent Corruption in India?) क्योंकि भ्रष्टाचार की विषबेल दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है।अब तक करोड़ों रुपए के कई घोटाले हो चुके हैं परंतु फिर भी भ्रष्टाचार के प्रति स्वीकार्यता क्यों हैं?
  • इनमें मुख्य घोटाले हैं हर्षद मेहता कांड (शेयर घोटाला),पीएलए घोटाला,चारा घोटाला,झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड,लक्खू भाई पाठक ठगी कांड,टेलीविजन कांड,कोयला घोटाला,बोफोर्स तोप घोटाला,हवाला कांड,पनडुब्बी घोटाला,प्रतिभूति घोटाला,वर्दी घोटाला,सेन्टकिट्स प्रकरण,आवास व संचार घोटाला,पेट्रोल पम्प घोटाला,दवाई घोटाला,चावल घोटाला आदि।अनेक घोटाले तो सामने आते ही नहीं है।यह तो राजनैतिक घोटाले हैं बाकी प्रशासनिक अधिकारी,कर्मचारी बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करते हैं।
  • ऐसे बहुत कम ईमानदार,कर्त्तव्य निष्ठ अधिकारी व कर्मचारी बचे हैं जो बिना रिश्वत अपना कार्य करते हैं।अब दिल्ली में शराब घोटाला का पर्दाफाश हुआ है।आइए जानते हैं कि इन घोटालों का मुख्य कारण क्या है?
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2.भ्रष्टाचार का मुख्य कारण (The main cause of corruption):

  • ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में ये घटनाएं जिनमें बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोग प्रधानमंत्री (वर्तमान नहीं),मंत्री,नौकरशाह,पुलिस अधिकारी,प्रशासनिक अधिकारी और राजनेता भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं-अपवादस्वरूप घटी हो।पिछले कम से कम तीन दशक से हम इस तरह की घटनाओं के आदी हो चुके हैं।
  • लेकिन इस तरह की घटनाओं से एक सवाल मुख्य रूप से उठता है।सवाल है कि समाज उस स्थिति में क्या सोचता है जब वह देखता है कि उसे चलाने वाले नेता और नौकरशाह स्वयं भ्रष्टाचार और बेईमानियों में आकंठ डूबे हैं? जब भी कोई इस तरह का व्यक्ति पकड़ा जाता है या उसके खिलाफ कोई मामला सामने आता है,तो पहली प्रतिक्रिया के रूप में समाज को एक झटका लगता है।लगभग इसी शैली में कि “तुम भी…. ।” यानी समाज विशेष रूप से मध्यवर्गीय समाज को यह बात खराब लगती है जब वह अपने किसी प्रिय नेता को आरोपों से घिरा पाता है।उसे लगता है कि वास्तविक जीवन में जो उसका नायक था,आदर्श था या वह जिसके जैसा होना चाहता था वही भ्रष्ट और बेईमान निकल गया।
  • इस स्थिति में उसके अपने सामाजिक,राजनीतिक और नैतिक मूल्य टूटते दिखाई पड़ते हैं।लेकिन इसके साथ-साथ एक मजेदार बात और भी है।ऐसा कतई नहीं है कि जो समाज अपने नायकों को ईमानदार,सच्चरित्र और नैतिक देखना चाहता है वह समाज स्वयं बहुत ईमानदार,नैतिक और सच्चरित्र हो।और चूँकि वह समाज स्वयं ईमानदार समाज नहीं है इसलिए अपने नायकों से इस चीज की अपेक्षा करता है।इसके पीछे उसका तर्क यह है कि यदि हममें ये गुण होते तो हमीं समाज के नायक न बन गए होते।लिहाजा,उनसे वह ईमानदारी की ही अपेक्षा करता है।लेकिन पिछले तीन दशक में समाज की सोच में भी फर्क आया है।बारीकी से देखें तो वह फर्क साफ दिखाई पड़ेगा।विभिन्न घोटालों में आरोपित और अभियुक्त बने लोग आज भी समाज में इज्जतदार है।
  • इसका सीधा-सा अर्थ यह निकलता है कि हमारे समाज ने बेईमानी और भ्रष्टाचार को बेशक किसी बाध्यता के चलते ही सही स्वीकार कर लिया है।अब उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फलां आदमी बेईमान है या भ्रष्ट है।अब हमारा समाज यह देखता है कि बेईमान और भ्रष्ट होने के बावजूद उसने काम किया या नहीं।यानी मन से उसने यह मान लिया है कि आज हमारे समाज में ईमानदार बने रहना संभव ही नहीं है।लिहाजा,अगर राजनेता या नौकरशाह बेईमान है,तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।इस सोच के पक्ष में समाज को एक और तर्क से नवाजा जा रहा है।वह तर्क है कि सच-झूठ,ईमानदारी-बेईमानी और नैतिकता-अनैतिकता की बातें करना मध्यवर्गीय सोच की प्रतीक है और आपको बड़ा बनना है तो इन सबसे उबरना होगा।भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए लोकपाल जैसा सशक्त कानून है लेकिन यह कानून भी धूल फाँक रहा है।

3.भ्रष्टाचार का अर्थ (Meaning of Corruption):

  • सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार सामाजिक विघटन की एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो संपूर्ण जीवन के व्यवहार प्रतिमानों में उत्पन्न होने वाली विसंगति को व्यक्त करती है।यह एक ऐसी समस्या है जिसका प्रभाव आज समाज के प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अनुभव किया जा रहा है।इस समस्या का संबंध वर्तमान युग में विकसित होने वाले चरित्र के उस संकट से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों की अवेहेलना करके अपने पद का व्यक्तिगत लाभ के लिए दुरुपयोग कर रहा है तथा इससे उत्पन्न विघटन के प्रति दूसरे व्यक्तियों को उत्तरदायी मानता है।भ्रष्टाचार आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान है।इसकी अभिव्यक्ति विभिन्न रूपों में देखी जा सकती है तथा विशेषीकरण में वृद्धि होने के साथ ही भ्रष्टाचार में निपुणता प्राप्त करना भी वैयक्तिक कुशलता के एक विशेष गुण के रूप में देखा जाने लगा है।यही वह संकट है जिसके कारण सामाजिक पुनर्निर्माण के सभी प्रयत्न बेमानी बन गए हैं।
  • भ्रष्टाचार को जीवन की एक सामान्य विधि के रूप में देखा जाने लगा है।राजनीतिज्ञ और प्रशासक भी समस्या के समाधान में स्वयं को आज असहाय महसूस कर रहे हैं।
  • भारत में भ्रष्टाचार की जड़े गहरी हैं।प्राचीन काल में व्यक्तियों के बीच प्राथमिक संबंधों की प्रधानता थी।प्राथमिक नियंत्रण इन समुदायों की विशेषता थी तथा समाज के आदर्श नियमों के उल्लंघन पर व्यक्ति को दंड के लिए किसी प्रकार की औपचारिक न्याय व्यवस्था का कोई महत्त्व नहीं था।धर्म और नैतिकता स्वयं इतनी बड़ी शक्तियां थीं कि बाहरी दबाव के बिना भी व्यक्ति ईमानदारी,सच्ची मित्रता तथा कर्त्तव्य पूर्ति को एक महत्त्वपूर्ण मूल्य के रूप में मान्यता प्रदान करता था।इसके पश्चात जैसे-जैसे समुदायों का आकार बड़ा होने लगा एक नवीन राजनीतिक व्यवस्था की आवश्यकता महसूस की जाने लगी तथा न्याय व्यवस्था के लिए बड़े-बड़े अधिकारियों और सामान्य कर्मचारियों को नियुक्त कर जीवन को नियमित रखने के अधिकार दिए जाने लगे।पहले अधिकार संपन्न व्यक्ति ने अपने अधिकारों का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए करना आरंभ किया और बाद में समाज के दूसरे वर्गों ने इसका अनुकरण करना प्रारंभ किया।आज स्थित यह है कि प्रत्येक राजनीतिज्ञ,प्रशासक,व्यापारी,व्यवसायी तथा सामान्य व्यक्ति दूसरे की कर्त्तव्यहीनता को जानता है,लेकिन स्वयं भ्रष्ट होने के कारण दूसरे का विरोध कर सकने में असहाय है।
  • हम बहुधा राज्य और केंद्र के उच्च राजनीतिज्ञों को यह कहते सुनते हैं कि हमें भ्रष्टाचार का विरोध करना है।भ्रष्टाचार की बुराई से लड़ना है।भ्रष्टाचार से हम कोई समझौता नहीं करेंगे।किसी भी भ्रष्टाचारी व्यक्ति को माफ नहीं किया जाएगा।चाहे वह कितना भी ऊंचा क्यों ना हो।फिर भी यह सर्वविदित है कि हमारा देश भ्रष्टाचार में कितना डूबता जा रहा है।फलस्वरूप कानून टूट रहे हैं।मर्यादाएं समाप्त हो रही हैं।नैतिक मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं रह गया है तथा प्रत्येक व्यक्ति अनुचित साधनों द्वारा अधिक से अधिक साधनों के संचय की होड़ में लगा हुआ है।यही सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार है जो आधुनिक समाज की सबसे विकट समस्या है।भ्रष्टाचार को सत्य की ही तरह परिभाषित नहीं किया जा सकता है।जिस प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान को लोग जानते हैं,परंतु खुली आंखों से उसे देख नहीं पाते ठीक उसी प्रकार से भ्रष्टाचार खुले रूप से दिखाई नहीं देता है,परंतु हर भारतीय नागरिक जानता है भ्रष्टाचार की समस्या किस व्यापक रूप में भारतीय जनजीवन में व्याप्त है।
  • साधारण आदमी भ्रष्टाचार को अपने चारों ओर के सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक तथा प्रशासनिक जीवन की एक कटु-वास्तविकता मानकर स्वीकार कर लेता है और उसके दुष्परिणामों के बारे में नहीं सोचता।वर्तमान समय में भ्रष्टाचार देश के हर क्षेत्र में तथा प्रत्येक स्तर में फैल गया है।इसमें हर प्रकार के लोग जैसे राजनीतिज्ञ,अधिकारी,पुलिसकर्मी तथा अन्य ऐसे नागरिक,व्यापारी,उद्योगपति इत्यादि आ जाते हैं जो व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से भ्रष्टाचार करते हैं।इसका तात्पर्य यह है कि छल-कपट,विश्वासघात,जालसाजी,पक्षपात,रिश्वत या चोरी के द्वारा आर्थिक लाभ प्राप्त करना जानबूझकर अपने उत्तरदायित्व की अवहेलना करना तथा किसी को अनैतिक जीवन जीने के लिए बाध्य करना भ्रष्टाचार है।

4.भारत में भ्रष्टाचार के कारण (Causes of Corruption in India):

  • लोग राजनीतिक तुष्टिकरण के लिए भ्रष्टाचार का मार्ग अपना लेते हैं।राजनीतिज्ञों को चुनाव प्रचार करने के लिए धन की आवश्यकता होती है।साथ ही भारत के राजनीतिक जीवन में नेता का यह प्रयास होता है कि छोटे से कार्यकाल में अधिक से अधिक व्यक्तियों को प्रसन्न करके अपना भविष्य सुरक्षित कर लें।इसके अतिरिक्त सत्ताधारी नेता भी यह जानते हैं कि अधिकारियों को प्रसन्न करके ही उनसे स्वयं भी लाभ प्राप्त किया जा सकता है।उनके विरुद्ध अनुशासन की कार्यवाही करके नहीं।
  • सामाजिक मूल्य समाज की विभिन्न परिस्थितियों में होने वाले परिवर्तनों के साथ बदल जाते हैं।स्वतंत्रता से पूर्व स्वतंत्रता,त्याग,बलिदान,देश भक्ति समाज के सर्वोपरि मूल्य थे।व्यक्ति संसाधन जुटाने की अपेक्षा देश की आजादी को प्राथमिक आवश्यकता समझकर अभावग्रस्त जीवन में भी संघर्ष को तैयार रहता था।त्याग और बलिदान के मूल्यों से आजादी मिल गई,लेकिन अब वो मूल्य तो अतीत की बात हो गई।
  • वस्तु विनिमय व्यवस्था में भ्रष्टाचार का कोई स्थान नहीं था।अर्थव्यवस्था में मुद्रा के लेन-देन प्रारंभ होने से भ्रष्टाचार प्रारंभ हुआ।अनुचित तरीके से एकत्रित किए गए धन को बैंक खाते में रखा जा सकता है।धन संग्रह,मुद्रा अर्थव्यवस्था में सरल तरीके से ही किया जा सकता है और इसे गोपनीय रखने की भी कोई समस्या नहीं होती।
  • सरकार दो स्तरों पर शासन का संसाधन करती है।केंद्रीय शासन व्यवस्था केंद्र सरकार के नियंत्रण में होती है और राज्य शासन व्यवस्था राज्य सरकारों के नियंत्रण में होती है।इस विस्तृत शासन व्यवस्था में लाखों कर्मचारी और अधिकारी हैं।प्रत्येक स्तर पर निगरानी,सतर्कता और जवाबदेही एक जटिल काम होता है।इस विविधता और जटिलता ने भ्रष्टाचार का प्रचलन बढ़ने में योगदान किया है।
  • सरकार की आर्थिक नीति भी भ्रष्टाचार का एक कारण है।अधिकतर घोटाले उन क्षेत्रों में हुए हैं जहां क्रय नीति या मूल्य सरकार के नियंत्रण में है।चीनी,उर्वरक,तेल,सैन्य अस्त्र-शस्त्र और बिजली के उपकरण कुछ उदाहरण है।
  • आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में कमी होने के कारण भी भ्रष्टाचार का जन्म होता है।सत्ताधारी लोग उन वस्तुओं की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कुछ अपेक्षा करते हैं और उनकी कीमतें बढ़वा लेते हैं।
  • यद्यपि विभिन्न कानूनों का उद्देश्य व्यवस्था की स्थापना करना तथा भ्रष्टाचार को रोकना है,लेकिन कानूनों के दोष तथा उनके गलत क्रियान्वयन से भ्रष्टाचार को और अधिक प्रोत्साहन मिलता है।सरकारी सेवाओं में विभिन्न कानून ही रिश्वत्ते प्राप्त करने का सबसे बड़ा साधन है: जैसे मिलावट को रोकने का सहारा लेकर इंस्पेक्टर व्यापारी को बचाने के लिए रिश्वत लेता है।
  • भ्रष्टाचार में वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नौकरशाही व्यवस्था में असंतुलित रूप से विस्तार होना है।एक ओर राज्य के दायित्वों में वृद्धि हो जाने के कारण सैकड़ो नए विभागों की स्थापना हुई तो दूसरी ओर अपने-अपने लोगों को महत्त्वपूर्ण पदों पर बिठाने की प्रतिस्पर्धा के कारण अकुशल और कर्त्तव्यहीन व्यक्तियों को बड़े-बड़े अधिकार मिल गए।
  • खासतौर से भारत में भ्रष्टाचार के लिए शिक्षा की कमी तथा मनोबल की कमी,नैतिक तथा चारित्रिक पतन बहुत अधिक उत्तरदायी है।शिक्षा की कमी के कारण बहुत कम व्यक्ति जानते हैं कि उन्हें कौन-कौन-सी सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार है तथा इन सुविधाओं को वे किस तरह प्राप्त कर सकते हैं।मनोबल की कमी के कारण भी उनके ऊपर हो रहे हैं अन्याय के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाही नहीं कर सकते।उनके ऊपर सिर्फ एक विकल्प रहता है कि अधिकारी को किसी तरह मनाकर काम करा लिया जाए।
  • दरअसल बचपन से माता-पिता,शिक्षक व शिक्षा संस्थान में उत्तम चरित्र निर्माण के बजाय भौतिक सुख-सुविधाओं का भोग करने,उपयोग की सीख दी जाती है।ऐसे व्यक्ति निर्माण होंगे तो वे धन कमाने के लिए नैतिकता-अनैतिकता का कोई ख्याल नहीं रखते हैं।बस धन आना चाहिए चाहे वह किसी भी तरीके से आए।

5.भ्रष्टाचार के परिणाम (Consequences of corruption):

  • भ्रष्टाचार की समस्या इतनी व्यापक है कि इसके फलस्वरूप व्यक्ति,समाज तथा संपूर्ण राष्ट्र के जीवन को अपार क्षति पहुंचती है।वास्तविकता तो यह है कि वैयक्तिक तथा सामाजिक विघटन की जितनी भी समस्याओं का उल्लेख है उनमें से अधिकांश समस्याएं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार का ही परिणाम हैं।व्यक्तिगत स्तर पर भ्रष्ट व्यक्ति निरन्तर भ्रष्टाचार के नशे में बहता चला जाता है।घूस देने एवं लेने वाले दोनों का चारित्रिक पतन होता है।भ्रष्टाचार के कारण सैकड़ो करोड़ों रुपए से पूरी की जाने वाली योजनाएं रेत की नींव पर खड़ी हो जाती हैं।कितनी ही योजनाएं केवल कागज पर ही पूरी हो जाती है।ऐसा कोई निर्माण कार्य नहीं होता जिसमें सरकारी व्यय का आधे से अधिक धन का वास्तविक प्रयोग हो पाता हो।प्रत्येक स्तर पर टैक्स चोरी के कारण राष्ट्रीय आय में बहुत कमी आती है।तस्करी के कारण प्रत्येक वर्ष सरकार को करोड़ों का नुकसान होता है।पक्षपात होने पर देशवासियों को मानसिक संताप होता है।यदि समान परिस्थित अथवा समान योग्यता वालों की आर्थिक क्षमता भी समान हो तो वे व्यक्ति अभाव सहने के बाद ऊफ तक नहीं करेंगे पर भ्रष्ट साधनों से कुछ लोग रातों-रात चंद्रमा पर पहुंचते दिखते हैं,जबकि अन्य लोग जीवन की गाड़ी में कोल्हू के बैल की तरह जुते कष्टमय जीवन बिताते हैं।इससे असंतोष एवं कुंठा बढ़ती है।
  • भ्रष्टाचार के फलस्वरूप अधिकारी तथा व्यापारी वर्ग के पास काला धन इतनी मात्रा में इकट्ठा हो गया है कि इसके दुरुपयोग के कारण संपूर्ण सामाजिक जीवन ही विषाक्त हो रहा है।अपराधों में वृद्धि का भ्रष्टाचार से प्रत्यक्ष संबंध है।काले धन पर आश्रित रहने वाले व्यक्ति समाज विरोधी तत्वों को अपराध करने की प्रेरणा देते हैं।डॉक्टर जाली प्रमाण-पत्रों और रिपोर्टों द्वारा उनके अपराध को छिपाने में सहयोग देते हैं।राजनीतिज्ञ उन्हें संरक्षण प्रदान करते हैं।वकील उन्हें बचाने का ठेका लेते हैं,तो अपराध कहां रुकने वाला है।
  • यह आपराधिक तत्व नेताओं और सत्ताधारियों की आड़ में खूब पनपते हैं,अच्छे तथा ईमानदार लोगों का भी सूक्ष्म अध्ययन कर उनकी कमजोरियों को पकड़कर भ्रष्टाचार में उन्हें घसीट लेते हैं,निर्धन वर्ग का कल्पना से परे शोषण इस समस्या का ही परिणाम है।भ्रष्टाचार का साधन संपन्न व्यक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है,क्योंकि भ्रष्टाचार से वह स्वयं जो लाभ प्राप्त करता है तथा उसका कुछ अंश यदि दे देता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।लाखों लोग जो कठिन मेहनत कर अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाते,इस समस्या के शिकार होते हैं।उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाती,किसी ऑफिस में उनका कार्य नहीं हो पाता।यहां तक की सरकारी योजनाओं के अंतर्गत ऋण लेने वालों को भी रिश्वत देनी पड़ती है।इसके बाद अनेक उपद्रव और अशांति जन्म लेती है।जिस लोकतंत्र की बात नेता करते हैं क्या वह सिर्फ 5 साल में एक बार आता है जब देश में आम चुनाव आते हैं।उसके बाद जनता की लोकतंत्र में भूमिका खत्म हो जाती है।जब तक सरकार वास्तविक रूप में लोकपाल को पुनर्जीवित नहीं करेगी,गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लागू नहीं करेगी,उसके लिए कोई ठोस कार्यवाही नहीं करेगी तब तक देश का विकास विकसित देशों की तरह नहीं हो सकता है

6.भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय एवं सुझाव (Measures and suggestions to prevent corruption):

  • भ्रष्टाचार की स्थिति इतनी जटिल समस्या बन गई है कि उसके समाधान के लिए क्या उपाय किए जाएं,एक स्वयं गंभीर समस्या बन गई है।फिर भी इसके लिए कुछ उपाय करने की जरूरत है तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।
  • चुनाव आयोग ने आदर्श आचार संहिता लागू की है।इसके अनुसार अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है।इसमें जनता की अहम भूमिका हो सकती है।केवल ईमानदार,चरित्र,निष्ठावान स्वच्छ छवि वाले सेवाभावी उम्मीदवारों को ही मत देकर विजयी बनाया जाए।सरकार चलाने वाले,ईमानदार होंगे तो भ्रष्टाचार मिटेगा।राजनीतिक कार्यकर्ता अपने पद और शक्ति का प्रयोग अपनी व्यक्तिगत उद्देश्य की पूर्ति के लिए करते हैं जिनका बुरा प्रभाव समाज पर पड़ता है।अतः केंद्रीय तथा राज्य मंत्रियों द्वारा आदर्श प्रस्तुत किया जाना चाहिए जो भारत के शासन का दायित्व संभालते हैं।उन्हें अपनी संपत्ति,आमदनी तथा खर्च का प्रतिवर्ष सही ब्यौरा देना चाहिए।
  • संसदीय लोकतंत्र में सरकारी अधिकारी और कर्मचारी सरकार के कार्यक्रमों व नीतियों को क्रियान्वित करते हैं।अधिकारीयों और कर्मचारियों का ईमानदार होना भ्रष्टाचार मिटाने में सहायक होगा।बड़े अधिकारी कार्यकाल समाप्त होने पर किसी व्यवसायी,पूंजीपति के यहां बड़े वेतन पर नियुक्त हो जाते हैं।इस प्रकार की छूट होने के कारण अधिकारीगण अपने कार्यकाल में लाभ पहुंचाने लगते हैं।
  • लोकपाल कानून को क्रियान्वित करना चाहिए।गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लागू करना चाहिए।सरकार यदि जनता को सर्वोच्च नहीं रखेगी तो उसे उसके परिणाम देखने को मिल सकते हैं,सत्ता से बेदखल भी हो सकते हैं।सरकार को भ्रष्टाचार मिटाने का सक्षम प्रयास करना चाहिए।हमारा यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि सरकार प्रयास नहीं कर रही है।सरकार प्रयास कर रही है,लेकिन इसमें जनता की संतुष्टि को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।हम सभी को अपने आसपास होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास करना चाहिए,क्योंकि जब तक हम खुद जागरूक नहीं होंगे तब तक शायद ही कुछ संभव हो सकेगा।केवल कानून और सरकार के आधार पर ही भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में भारत में भ्रष्टाचार को कैसे रोके? (How to Prevent Corruption in India?) भारत में भ्रष्टाचार के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Corruption) के बारे में बताया गया है।

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7.छोटी लड़की की चतुराई (हास्य-व्यंग) (Little Girl’s Cleverness) (Humour-Satire):

  • एक छोटी लड़की कोचिंग में गई और गणित शिक्षक से बोली,जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो मुझसे शादी करोगे?
  • गणित शिक्षक:हंसकर बोला हां कर लूंगा।
  • लड़की:तो क्या अपनी होने वाली बीवी को फ्री में नहीं पढ़ा सकते हो।

8.भारत में भ्रष्टाचार को कैसे रोके? (Frequently Asked Questions Related to
How to Prevent Corruption in India?) भारत में भ्रष्टाचार के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Corruption) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.भारत में भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है? (What is the status of corruption in India?):

उत्तर:भारत में भ्रष्टाचार बहुत गहराई से समाया हुआ है। राजनीतिक नेता अपना भविष्य का इंतजाम करने तथा चुनावी अभियान के खर्चों की भरपाई भ्रष्टाचार से करते हैं।ऑफिसों की हर एक ईंट,कुर्सी के नीचे भ्रष्टाचार की दास्तान दबी है।जो भी कर्मचारी/अधिकारी नियुक्त होते हैं अपनी जेबें भरी है,मगर कुछ ने दाल में नमक जितना खाया,तो कईयों ने भारत को भ्रष्टाचार की मंडी ही बना दिया है।सरकारी महकमों व संस्थानों में भ्रष्टाचार सर्वत्र व्याप्त है।

प्रश्न:2.भ्रष्टाचार का डर क्यों नहीं है? (Why not fear corruption?):

उत्तर:क्योंकि जितने भी घोटाले हुए हैं उनमें राजनेता तथा अधिकारी किसी न किसी प्रकार बच गए हैं।चाहे वह जयललिता हो,मायावती हो,पी वी नरसिंहाराव हो,सुरेश कलमाड़ी हो या अन्य।सबूत के अभाव में तथा या अन्य किसी तकनीकी खामी के कारण वे छूट जाते हैं,जमानत मिल जाती है।चारा घोटाले में लालू प्रसाद को जरूर जेल जाना पड़ा है।ऐसे कुछेक मामले ही हैं।अतः भ्रष्टाचार करने वालों को कोई सबक नहीं मिलता है।

प्रश्न:3.राजनेता भ्रष्टाचार करने के बावजूद क्यों बच जाते हैं? (Why do politicians get away with corruption?):

उत्तर:राजनीतिक स्तर पर बढ़ते भ्रष्टाचार को देखते हुए यह जरूरी है कि संसद में सदस्यों और विधानसभा सदस्यों को भी सार्वजनिक सेवक मानकर उन पर मुकदमें चलाए जाने और दंडित किए जाने के स्पष्ट कानून प्रावधान होने चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति कानून के ऊपर (या बाहर) ना हो सके,लेकिन भ्रष्टाचार संबंधी कानूनी कमजोरियों,चोर दरवाजों,अंतर्विरोधों और विसंगतियों को देखकर लगता है यह सब सत्ताधारी वर्ग जान-बूझकर (लूपपोल) छोड़े गए हैं।राजनेता अपने ही वर्ग के हितों के विरुद्ध कानून क्यों बनाना चाहेगा?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा भारत में भ्रष्टाचार को कैसे रोके? (How to Prevent Corruption in India?) भारत में भ्रष्टाचार के कारण और निवारण (Causes and Prevention of Corruption) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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