How to Obliterate Generation Gap?
1.जेनरेशन गैप को कैसे मिटाएं? (How to Obliterate Generation Gap?),दो पीढ़ियों में अलगाव कैसे मिटे? (How to Bridge Separation Between Two Generations?):
- छात्र-छात्राओं और माता-पिता के बीच जेनरेशन गैप को कैसे मिटाएं? (How to Obliterate Generation Gap?) जेनरेशन गैप आधुनिक युग की समस्या है।जेनरेशन गैप के कारण युवा वर्ग और पढ़े-लिखे छात्र-छात्राएं माता-पिता की अनदेखी करते जा रहे हैं।जब तक बच्चे माता-पिता पर निर्भर रहते हैं तब तक उन्हें सहते रहते हैं और फिर समर्थ होते ही अपना रास्ता अलग बना लेते हैं।
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2.जेनरेशन गैप के कारण (Causes of Generation Gap):
- अमरत्व के और किसी अर्थ पर विवाद की गुंजाइश चाहे जितनी हो,इसके एक अर्थ के विषय में मतैक्य शाश्वत है।वह अर्थ है-संतान परंपरा के रूप में मौजूदगी।कोई जीव,जिसमें मनुष्य सर्वोपरि है,अपनी दैहिक मृत्यु के बाद भी बना रहता है या नहीं,इस सवाल के पक्ष या विपक्ष में तुल्य बल तर्क दिए जा सकते हैं।लेकिन यह एक सर्वमान्य सत्य,और इसीलिए तथ्य है कि अपनी संतान के रूप में व्यक्तित्व किसी न किसी रूप में अवश्य बना रहता है।यह केवल तार्किक या पारिभाषिक सत्य नहीं है,बल्कि इसका ठोस मनोवैज्ञानिक आधार भी है।संतान परंपरा के प्रति जीवमात्र का स्वाभाविक लगाव जिसके तहत वह अपने आप को मिटा देने तक के लिए तैयार दिखता है,इस बात का प्रमाण है कि वह अपनी संतति परंपरा में अपना ही अक्स देखता है और उस अक्स में अपने निजत्व को ज्यादा सार्थक रूप में दिखता है।
- अब अगर यह सच इस सीमा तक अनुभवमूलक है तो इस वास्तविकता पर घोर आश्चर्य का होना स्वाभाविक है कि उसी संतान से मनुष्य का,जो जीवों में निस्संदेह सर्वश्रेष्ठ है,वैमनस्यता इस सीमा तक बढ़ जाती है कि आपसी सामंजस्य असंभव हो जाता है और दो निकटतम पीढियां एक-दूसरे से सर्वथा पार्थक्य में ही जिंदगी का सुकून अनुभव करने लगती हैं।यह और बात है कि,अंततः यह अनुभव सच होता है या सिर्फ भ्रम,लेकिन यह एक ठोस वास्तविकता है कि कम से कम आज का मानव समाज एक ऐसी मनःस्थिति से गुजर रहा है जहां पीढ़ी का अंतराल (जेनरेशन गैप) कुछ ज्यादा ही चौड़ा हो गया है और इसे पाटना अनेक संदर्भों में नामुमकिन की सीमा तक कठिन प्रतीत होता है आखिर इसकी वजह क्या है? दो पीढ़ियों के बीच बढ़ती दूरी के लिए जिम्मेदार कौन है-कोई एक निश्चित पीढ़ी या दोनों पीढ़ियाँ?
- एक ही वृक्ष की शाखाओं का अलग-अलग दिशाओं में विकसित होना तो स्वाभाविक है लेकिन किसी भी शाखा का अपनी जड़ से अलग होना जाहिरा तौर पर अस्वाभाविक है।ऐसा होना समूचे वृक्ष और अंततः सारे गुलशन के लिए हानिकारक है।लिहाजा इसके कारणों पर विचार होना चाहिए ताकि एक अस्वाभाविक अंतर्विभाजन की त्रासदी से बचा जा सके।
- हालांकि दो पीढ़ियों के बीच अलगाव की जरूरत के किसी भी स्थिति में महसूस किए जाने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता लेकिन आमतौर पर देखा यह जाता है कि इसकी शुरुआत संतान के वैवाहिक जीवन में प्रवेश के बाद होती है।तात्पर्य यह कदापि नहीं की अविवाहित संतानों के माता-पिता में मतभेद या अलगाव नहीं हो सकते।कारण चाहे जो भी हो,अलगाव,उपेक्षा सब कुछ इस संदर्भ में भी संभव है लेकिन यह संदर्भ आम नहीं है और इसीलिए उचित होते हुए भी वर्तमान प्रसंग से अलग हटकर इस पर चर्चा करना उचित होगा।लिहाजा पीढ़ियों के टकराव के विश्लेषण को हम उन्हीं संदर्भों तक सीमित रखेंगे जहां यह बाकायदा दो परिवारों-पिता और पुत्र के बीच उभरता है।
- सामाजिक सर्वेक्षण इसके लिए कई कारणों की भूमिका को रेखांकित करते हैं।इन सभी कारकों को मोटे तौर पर तीन शीर्षकों में रखा जा सकता है।एक,अहम या यूं कहे कि वर्चस्व का टकराव,दूसरा उपेक्षा और तीसरा अमानत में खयानत जो है तो सबसे निकृष्ट लेकिन प्रभावशाली सबसे ज्यादा।
3.दो पीढ़ियों में वर्चस्व का टकराव (Clash of supremacy between two generations):
- सर्वप्रथम वर्चस्व के टकराव का प्रश्न।होता यह है कि जब तक बच्चा अपना बोझ संभालने में स्वयं सक्षम नहीं हो जाता,तब तक उसे माता-पिता से प्रत्येक संभव सहयोग की दरकार होती है।कहने की आवश्यकता नहीं कि इसमें ‘मार्गदर्शन’ का तत्त्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है और वह बच्चे को मिलता भी है।लेकिन बढ़ती आयु के साथ बच्चा माता-पिता की ओर से मिलने वाले सहयोग और मार्गदर्शन को अपनी शर्तों एवं अभिरुचियों के साथ लेना चाहता है।जब माता-पिता संतान की इसी उभरती हुई चाहत को नजअंदाज करने की भूल कर बैठते हैं तो दोनों के बीच वर्चस्व के टकराव का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।लेकिन सिर्फ टकराहट का रास्ता तैयार होता है,टकराहट होती नहीं है।
- टकराहट के लिए एक खास चीज की जरूरत होती है और वह है माता-पिता का अहंकार।”यह सब कुछ हमने किया है,इस बच्चे को हर प्रकार से हमने तैयार किया है,इसके पास अपना कुछ भी नहीं,जो भी इसके पास है हमारा है,इसका वजूद हमारा आपातमस्तक ऋणी है,इसलिए इसके संबंध में प्रत्येक निर्णय लेने का अंतिम अधिकार हमारा है”-ऐसा अहंकार ही माता-पिता के साथ संतान के वर्चस्व बोध के टकराव को सामने ला देता है।
- कुछ लोग कह सकते हैं कि संतान के संबंध में प्रत्येक तरह के निर्णय देने की भावना के पीछे माता-पिता के भीतर उसके प्रति जड़ जमा चुका है वह स्वाभाविक स्नेहभाव होता है,जिसके तहत वे अपने बच्चों को सदा ‘बच्चा’ ही समझते रहते हैं।लेकिन हम यह बात ठोस मनोवैज्ञानिक आधार पर कह सकते हैं कि वास्तविक स्नेह जहां मौजूद है वहां उसके अधीन किए जाने वाले नितांत हानिकारक कार्यों के खिलाफ भी बगावत नहीं हो सकती।स्नेह के तहत किए जाने वाले कार्य या दिए जाने वाले निर्णयों का उनके गुणावगुण के आधार पर समर्थन या विरोध हो सकता है,इसके अनुचित होने की स्थिति में इनकी खिलाफत पूरी शिद्दत और जिद्द के साथ हो सकती है लेकिन ऐसा करने वाले माता-पिता के साथ में ‘घुटन’ की अनुभूति नहीं हो सकती,उन्हें अपनी व्यवस्था से अलग करने की बात मन में नहीं आ सकती।
- जहां माता-पिता के मन में स्नेहभाव प्रधान है और उनकी ओर से अपनी इच्छाओं,योजनाओं,यहां तक की निर्णय को भी संतानों पर बलात थोपने की कोशिश की जाती है वहाँ देखा जाता है कि संतान माता-पिता को पूरी तरजीह देते हैं।यदि माता-पिता के निर्णय में स्पष्टतः कोई खामी भी दिखाई देती है तो उसे इस तरह गुप्त रूप से,नाटकीय तरीके से दरकिनार किया जाता है कि मां-बाप को पता ही नहीं चलता और उन्हें ऐसा लगता है मानो उन्हीं की बात मानी जाती रही हो।ऐसे परिवारों में माता-पिता की जिद संतानों के लिए कोफ्त या घुटन नहीं,बल्कि दैनिक मनोरंजन का,बौद्धिक व्यायाम का सबब बनती है और पूरा परिवार एक खुशगवार वातावरण में विकसित होता रहता है।घुटन,कोफ्त,विद्रोह और अलगाव तो वहां होते हैं जहां माता-पिता अपने निर्णयों को,इच्छाओं को अपने अहंकार की पुष्टि का जरिया माने हुए हैं।
4.पुत्र द्वारा माता-पिता की उपेक्षा (Neglect of parents by son):
- अब उपेक्षा तत्व का विश्लेषण करें।माता-पिता व बुजुर्गों को ऐसा लगता है कि युवा वर्ग अब उसकी उपेक्षा कर रहा है।वे सोचते हैं-हमने सब कुछ किया,जब तक हमारे भीतर बहुत कुछ करने की सामर्थ्य थी,सबने हमारी ओर देखा,हमसे हमारी सामर्थ्यानुसार सब कुछ पाया।और जब हम अस्ताचलगामी हो रहे हैं तब हमारी ओर देखने की जरूरत भी नहीं महसूस की जाती।
- यह एक व्यावहारिक सत्य है कि बच्चे अपने विवाहोपरांत,अपनी गृहस्थी में जुट जाने के बाद ही माता-पिता व बुजुर्गों की उपेक्षा ज्यादा करने लगते हैं।ऐसा नहीं कि ऐसे बच्चे अपने बुजुर्गों के दाना-पानी की परवाह नहीं करते हैं।करते तो हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सार्थकता के साथ जीने का आकांक्षी होता है।और यहीं उनसे चूक हो जाती है।अपनी गृहस्थी में मस्त तथा अपनी क्षमताओं के प्रति आश्वस्त हो युवावर्ग अपने बुजुर्गों को उनके वजूद की सार्थकता का एहसास कराने से चूक जाता है और निरर्थकता-बोध की यह त्रासदी बुजुर्गों के लिए ऐसे असह्य हो जाती है।यदि मजबूर हैं तो अपने बच्चों के साथ घुटकर जीते हुए वे मौत के लिए दुआ करते हैं और यदि कुछ भी सक्षम हैं तो नई पीढ़ी से अलग हो अपने वजूद की सार्थकता देखने की कोशिश करते हैं।
- निश्चित तौर पर यहां दोष नई पीढ़ी का ही होता है जिसके परिमार्जन के लिए उसे बहुत अधिक श्रम भी नहीं करना है,केवल कहासुनी व गुफ्तगू का एक माहौल बनाना है।इस वातावरण के सृजन की जिम्मेदारी नई पीढ़ी के ऊपर,खास कर पुत्रों की है जिसे न निभा पाने की स्थिति में वे बुजुर्गों की व्यथा के लिए उत्तरदायी बनते हैं।अपनी पत्नियों के लिए लांछन का जरिया तैयार करके वे अनचाहे-अनजाने उनके सम्मान को तो हानि पहुंचाते ही हैं,एक सामाजिक संबंध को संदिग्ध बनाने का घोर अपराध भी करते हैं।
5.कथित तौर पर पढ़े-लिखे युवाओं का व्यवहार (Behaviour of alleged educated youths):
- तीसरा कारक है-‘अमानत में खयानत’।निस्संदेह दो पीढ़ियों के अलगाव का यह सर्वाधिक निकृष्ट कारक है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज के आधुनिक समाज में यही सबसे ज्यादा प्रभावशाली भी है।दुःख तब होता है जब कथित तौर पर पढ़े-लिखे और आधुनिक बन चुके होने का दावा करने वाले युवाओं के मुंह से यह सुना जाता है, “मैं तब तक विवाह नहीं करूंगा जब तक अपना अलग घर नहीं बना लूंगा”, “मेरी तो विवाह से पहले यही शर्त थी कि मेरा पति मुझे लेकर अपने शेष परिवार से अलग रहे”।आए दिन ऐसे विचार सामने आते हैं और ढेर सारे सवाल छोड़ जाते हैं।
- आखिर क्यों युवावर्ग अपने परिवार,माता-पिता के प्रति इतना संदिग्ध होता जा रहा है? उसे यह विश्वास क्यों नहीं कि अपने बुजुर्गों के साथ भी वह सुखी रह सकेगा? कारण की तह में जाने पर जो मूल बात सामने आती है वह यह है कि “मुझे रोज-रोज की खिच-खिच पसंद नहीं,आखिर दो-चार दिन ही तो होते हैं खुशगवार जिंदगी के।उन्हें खामख्वाह कोफ्त में क्यों बिताया जाए।”
- वह जब ऐसे लोगों को पूर्व पीढ़ी के प्रति उनके कर्त्तव्यों की याद दिलाई जाती है तो उनका जवाब होता है, “हमने उन्हें छोड़ा कहां है? हम तो उनको सहयोग देने के लिए सदा तैयार हैं।वे जब चाहे,हमसे पैसे-रुपए या किसी भी सामान की मांग कर सकते हैं।” यह बात समझ से परे नहीं कि जब आर्थिक तौर पर आप अपने शेष परिवार-खासकर बुजुर्गों की मदद करने के लिए तैयार हैं तो यही कार्य उन्हें साथ रखकर क्यों नहीं? जाहिर है कि इसके पीछे नवयुवा वर्ग की एक अत्यंत घिनौनी मानसिकता काम कर रही है जिसके दबाव में अंधे होकर वह मनुष्यता की ‘भावना’ से पतित होकर पशुतामूलक वासना के गर्त में गिरता जा रहा है।सामाजिक तिरस्कार से ही ऐसे युवाओं की मनःस्थिति में सुधार किया जा सकता है।
6.माॅड माता-पिता की कार्यशैली (Working Style of Mod Parents):
- कुछ तथाकथित आधुनिकता की दौड़ में शामिल होने वाले माता-पिता अपने बच्चों को अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का जरिया बनाना चाहते हैं याकि बनाते हैं।स्टेट्स मेंटेन करने के नाम पर अपने बच्चों को वही विषय दिलाना चाहते हैं या पब्लिक स्कूल ‘अंग्रेजी’ माध्यम में पढ़ना चाहते हैं ताकि वे अपने मिलने-जुलने वालों,अपने रिश्ते-नातों में अपनी शेखी बघार सकें।यदि छात्र-छात्रा की सामर्थ्य साइंस मैथ्स या साइंस विषय लेने की क्षमता तथा योग्यता नहीं है तब भी वे उसे जबरदस्ती साइंस मैथ्स या साइंस विषय दिलाते हैं।बच्चा माता-पिता पर निर्भर होता है अतः मन-मसोस कर साइंस विषय ले तो लेता है।परंतु जब उसकी परफॉर्मेंस अच्छी नहीं रहती है तो रोज-रोज उसे माता-पिता से ताने सुनने पड़ते हैं।फलां बच्चे को देखो उसके पास तो इतनी सुविधाएं भी नहीं है फिर भी कक्षा में अव्वल आता है।हमने तुम्हारे लिए अच्छी स्कूल की,कोचिंग की व्यवस्था कर रखी है फिर भी फिसड्डी ही रहते हो।
- विद्यार्थी जब तक माता-पिता पर निर्भर रहता है,तब तक तो ताने सुनता रहता है,लेकिन ज्योंही वह जॉब करने लगता है,सक्षम हो जाता है तो माता-पिता की अवहेलना करने लगता है।फिर माता-पिता को अपने पुत्र से झिड़कियां,अपमान,तिरस्कार मिलता है।कई विद्यार्थी तो निर्भर रहते हुए ही माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने लगते हैं।माता-पिता की इच्छा के अनुसार वे ऐच्छिक विषय नहीं लेते हैं तो यहीं से टकराव चालू हो जाता है और विद्यार्थी विद्रोही हो जाता है।या तो वह घर से भाग जाता है अथवा अपराधी बन जाता है।
- कई माता-पिता बच्चों को शुरू से ही अनुशासन की घुट्टी पिलाने लगते हैं।यह मत करो,वह मत करो,ये करो,इस तरह से करो।हम तुम्हारी उम्र के थे तो सुबह जल्दी उठ जाते थे।मन लगाकर अध्ययन करते थे।माता-पिता व घर-परिवार का भी खूब पालन करते थे।अपने से बड़ों के सामने कभी मुँह नहीं खोलते थे।उनकी हर आज्ञा का पालन करते थे।ऐसे माॅड परिवार व तथाकथित प्रगतिशील माता-पिताओं को यह पता ही नहीं होता है कि बच्चों का पालन-पोषण किस तरह किया जाए,उनमें मौलिक प्रतिभा क्या है,उनको संस्कारवान और चरित्रवान कैसे बनाया जाये।दाब-दबाव से बच्चे तभी तक कहना मानते हैं जब तक वे माता-पिता पर निर्भर होते हैं।ज्योंही ही वे आत्मनिर्भर हो जाते हैं,अपने माता-पिता की अवहेलना करने लगते हैं।
- नीति में कहा है की पांच वर्ष तक बच्चों को लाड-प्यार से समझाना-सिखाना चाहिए और 5 से 15 वर्ष तक कठोर अनुशासन में रखकर उन्हें सीखना चाहिए,शिक्षा दी जानी चाहिए।बच्चों के मनोविज्ञान को समझे बगैर,उनकी मौलिक प्रतिभा को जाने बगैर माता-पिता को अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को लादना कहां तक उचित है? परिपक्व होने पर माता-पिता को मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए।बच्चों के बचपन में ही अलगाव के बीज पड़ जाते हैं या संस्कार के बीज पड़ जाते हैं।
7.जेनरेशन गैप का निष्कर्ष (Conclusion to the Generation Gap):
- उपयुक्त विवेचन का आशय यह कदापि नहीं की पीढ़ीगत वैमनस्य के लिए केवल युवावर्ग ही जिम्मेदार है और बुजुर्गों का दोष होता ही नहीं।सबसे बड़ी बात तो यही है कि व्यक्तित्व निर्माण में पूर्व प्रदत्त संस्कारों की केंद्रीय भूमिका होती है और यह सदैव पूर्व पीढ़ी द्वारा ही अगली पीढ़ी को दी जाती है।यदि संतान परंपरा किसी को कुसंस्कार,कुप्रवृत्ति के चलते अवांछित राह (अवज्ञाकारी,चोर,लुटेरा,बदमाश,अपराधी,हिस्ट्रीशीटर,शराबी,अय्याश,ठग,तस्कर आदि) पर चल पड़ती है तो इसके लिए उसकी पूर्व पीढ़ी जिम्मेदार है और उसका खामियाजा भी उसे भोगना चाहिए।”बोया पेड़ बबूल का,तो आम कहां ते होय”।
- लेकिन मानवीय व्यक्तित्व की यह भी तो विशेषता है कि वह अपना पुनर्निर्माण भी कर सकता है।माना कि माता-पिता,बुजुर्गों से भूल हो सकती है,हो चुकी है,लेकिन इसका यह तो मतलब नहीं की युवा वर्ग,जो मन और शरीर दोनों से मजबूत होता है,अपने आप को बस प्रतिक्रियाजन्य संवेगों का पुंज बनाकर रखें?
- आखिर उसे भी तो एक दिन ‘पूर्व’ बनना है और एक ‘उत्तर’ का सामना करना है।तब क्या होगा? इसलिए इस संपूर्ण समस्या का एक ही हल है-आत्मालोचन और तदनुसार सही मायनों में एक प्रगतिशील व्यक्तित्व का निर्माण,जिसमें तमाम विरोधों को सामंजस्यपूर्ण एकता में समेटने का सामर्थ्य निश्चित तौर पर अपने ‘पूर्व’ से ज्यादा होती है,होनी भी चाहिए,क्योंकि इसी में मनुष्य के रूप में जन्म लेने की सार्थकता है।
- उपर्युक्त आर्टिकल में जेनरेशन गैप को कैसे मिटाएं? (How to Obliterate Generation Gap?),दो पीढ़ियों में अलगाव कैसे मिटे? (How to Bridge Separation Between Two Generations?) के बारे में बताया गया है।
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8.खाली पेट अध्ययन न करें (हास्य-व्यंग्य) (Do Not Steady on an Empty Stomach) (Humour-Satire):
- मां:सोमेंद्र,पहले कुछ खा लो फिर अध्ययन करना।
- सोमेंद्र:क्यों माँ!
- माँ:खाली पेट अध्ययन नहीं करना चाहिए।
- सोमेंद्र:अभी स्कूल से शिक्षक से डांट खाकर आया हूं,और अब पिताजी से डांट खानी है।
9.जेनरेशन गैप को कैसे मिटाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Obliterate Generation Gap?),दो पीढ़ियों में अलगाव कैसे मिटे? (How to Bridge Separation Between Two Generations?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.जेनरेशन गैप को मिटाने के लिए माता-पिता क्या करें? (What can parents do to bridge the generation gap?):
उत्तर:माता-पिता को अपना आचरण पवित्र,निर्मल और सदाचार युक्त रखना चाहिए क्योंकि संतान उपदेश के बजाय आचरण से ज्यादा सीखती है।यदि माता-पिता का आचरण सदाचार से युक्त होगा तो संतान भी वैसा आचरण अपनाने का प्रयास करेगी।
प्रश्न:2.जेनरेशन गैप मिटाने के लिए संतान क्या करें? (What should children do to bridge the generation gap?):
उत्तर:उनको (संतान को) माता-पिता से,समाज में,शिक्षा संस्थानों से कैसी ही शिक्षा मिली हो परंतु परिपक्व होने पर अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए।उनकी उचित और सही बातों,सुझावों का पालन करना चाहिए।कोई अनुचित बात वे कह देते हैं तो उसे भी विनम्रता के साथ मना कर देना चाहिए।उन्हें अकेलापन महसूस न होने दें।उनके अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए।
प्रश्न:3.सदाचारी व्यक्ति का क्या प्रभाव पड़ता है? (What is the effect of a virtuous person?):
उत्तर:एक सदाचारी मनुष्य बिना जबान हिलाये सैकड़ों मनुष्यों का सुधार कर सकता है।पर जिसका आचरण ठीक नहीं उसके लाखों उपदेश का कुछ फल नहीं होता।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जेनरेशन गैप को कैसे मिटाएं? (How to Obliterate Generation Gap?),दो पीढ़ियों में अलगाव कैसे मिटे? (How to Bridge Separation Between Two Generations?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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