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How to Make Student Life Enjoyable?

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1.विद्यार्थी जीवन को आनंदमय कैसे बनाएं? (How to Make Student Life Enjoyable?),जीवन को आनन्दमय कैसे बनाएं? (How to Make Life Enjoyable?):

  • विद्यार्थी जीवन को आनंदमय कैसे बनाएं? (How to Make Student Life Enjoyable?) यदि विद्यार्थी अध्ययन को श्रद्धा के साथ पूजा समझकर करें और उसमें ऊब व बोरियत महसूस न करें तो परम आनंद की अनुभूति कर सकते हैं।वही विद्यार्थी अध्ययन में ऊंचाइयों को छू सकता है जो अध्ययन को साधना समझकर करें और उसमें डूब जाए।
  • वस्तुत: आनंद सुख व दुःख से परे की अवस्था है जिसे संसार में रहकर या संसार से भागकर जंगल में अनुभव नहीं किया जा सकता है।बल्कि जब हम भीतर की ओर मुड़ते हैं,अंतकरण की ओर रुख करते हैं,आत्मा की अनुभूति करते हैं तब आनंद का अनुभव होता है।
  • जो विद्यार्थी हमेशा होश में अपने जीवन और जगत के कार्य तथा अध्ययन को करता है।अध्ययन में कष्टों,दुःखों,विपत्तियों और कठिनाइयों को भी खेल समझकर सहन करता है और उनसे पार हो जाता है तो असीम आनंद का अनुभव करता है।
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2.आनंद में बाधक (Hindrance to Joy):

  • यदि हमारा मनोमस्तिष्क वर्षों से दुःख के विचारों और नकारात्मक दृष्टिकोण वाला हो चुका है तो आनंद की अनुभूति नहीं हो सकेगी।रचनात्मक विधि से विचार करने के लिए कठोर अनुशासन की आवश्यकता पड़ सकती है,याद रखिए- कोई भी मूल्यवान वस्तु सरलता से नहीं मिलती।प्रसन्नता पूर्ण विचारों का आनंद लेने के लिए आपको बुद्धिमानी से बार-बार प्रयत्न करने पड़ेंगे और अंत में आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
  • कागज कलम लेकर बैठ जाइए और दिन भर में अध्ययन अथवा जीवन के अन्य कार्य करने में आपको जो प्रसन्नता भरे अनुभव हुए हैं,उन्हें लिख डालिए।आप उनकी संख्या और विस्तार देखकर आश्चर्य से भर उठेंगे।जैसे-जैसे आप इनकी सूची बनाने की आदत को आगे बढ़ाएंगे,खुशियों भरे अनुभवों में नए अर्थ मिलने लगेंगे।
  • प्रतिदिन व्यवस्थित रूप से अपने विचारों द्वारा मन में हँसी-खुशी भरी यादों को दोहराइए।अपनी विचार पद्धति को उन मधुर या सुखद अनुभवों में डुबो दीजिए जो आपको जीवन में हुए हैं।आपका मन पुरानी प्रसन्नता पूर्ण यादों का स्वाद पाकर उन्हें दोबारा जीना चाहेगा,उनसे प्रेरित होकर वह भविष्य में उन अनुभवों की रचना करना प्रारंभ कर देगा।प्रसन्नता देने वाली उत्तेजना आपके चेतन मस्तिष्क को भेदकर अवचेतन की गहराई में पहुंच जाएगी।इसके फलस्वरूप आपका व्यक्तित्त्व एक स्थायी प्रसन्नता से भर जाएगा।
  • प्रत्येक विद्यार्थी तथा व्यक्ति जानता है कि वह प्रसन्न कैसे रह सकता है।सभी धर्मग्रंथ और सच्चे धर्मगुरु प्रसन्न रहने की विधियां सिखाते हैं।विधियों की मूल बातें समान ही है।दूसरों से घृणा करना छोड़ दीजिए।सबको निःस्वार्थ भाव से प्रेम करिए।दूसरे लोगों को पसन्द करिए,उन पर क्रोध मत करिए।भय करना त्याग दीजिए।गलत कार्य न करिए और बुरी आदतों में मत पड़िए।
  • अपने बारे में विचार करते रहना छोड़कर दूसरों की भलाई के लिए कार्य करिए।प्रसन्न रहने की विधि हर इंसान जानता है और इसलिए हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि अगर तुम इन चीजों को जानते हो तो उनको करो भी।जब तुम इन चीजों को अपने जीवन में अपनाओगे,तो प्रसन्नता अवश्य प्राप्त करोगे।
  • आनंद की अनुभूति करने का सबसे अच्छा उपाय परमात्मा से प्रार्थना करना है,पूरी आस्था और विश्वास से प्रार्थना करना है कि वह हमें इतनी बुद्धि तथा शक्ति दे कि हम अपने मन को स्वस्थ व सुंदर विचारों से पूर्ण कर सकें,स्वयं आनन्द से रह सकें और दूसरों को भी आनंदित कर सकें।
  • दूसरा उपाय उन पवित्र स्थानों और पवित्र व्यक्तियों से संपर्क रखना है,जो हमें नये उत्साह से जीने की प्रेरणा देते हैं।हमारे धार्मिक ग्रंथ भी जीवन में सच्ची खुशी,विश्वास और व्यवस्था लाने के उपाय बताते हैं।प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह महान् पुरुषों के विचारों और महान् ग्रन्थों का अध्ययन नित्य-नियमित रूप से करें।इससे उसे अपने जीवन को आनन्दमय और सफल बनाने में सहायता मिलेगी।

3.आनन्द कहाँ और क्या है? (Where is Joy and What is It?):

  • अपने को प्रसन्न करने का एक अन्य उपाय अपने मन को खुशियों से भरे विचारों से लबालब भर लेने का है।परमात्मा को भारतीय मनीषी ‘सच्चिदानंद’ कहते हैं,जिसका अर्थ है:सत्य+चित+आनंद। जगत में तीन चीजें तत्त्व रूप में अनादि अनन्त हैं: प्रकृति,जीवात्मा और परमात्मा।प्रकृति सत (सत्य) है,जीव सत्य और चित्त (चेतन्य) है और परमात्मा सत+चित+आनन्द है।
  • प्रकृति सिर्फ सत्य है,चेतन्य और आनन्दमय नहीं।जीव सत्य भी है और चेतन्य भी पर आनंदमय नहीं।परमात्मा सत्य भी है,चेतन्य भी है और सुख-दुःख से परे होने की वजह से आनंदमय भी है।इसलिए सच्चिदानंद है।
  • आनंद ही ब्रह्म है,आनंद ही सत्य है,आनंद ही परमात्मा है।हमें यह अनुभव करने की आवश्यकता है कि वह आनंदपूर्ण परमात्मा मेरे हृदय में वास करता है।वह और आनंद किसी वस्तु से नहीं मिलता,इसलिए वह सदैव रहता है।सुख तो दुःख रूप में बदल सकता है,पर आनंद नहीं।सुख सांसारिक वस्तुओं में है और आनंद आत्मा में,अपने-आपमें।अतः हमें बिना किसी बात की चिंता किए आनंद से पूर्ण रहना है।
  • हमें परमात्मा की दयालुता,कृपा और प्रेम में विश्वास करते हुए अपने कर्मों को निष्काम भाव से करते जाना है।वह परमात्मा हमें अवश्य आनंद प्रदान करेगा ऐसा भाव रखते हुए जो व्यक्ति समाज की उन्नति और अपनी प्रगति के हित कार्य करता है,वह सदैव आनंद से पूर्ण रहता है।यही गीता का संदेश है और रामायण का सार है।
  • ऋषियों और संतों के शब्दों को ध्यान से पढ़ें,उन पर विश्वास करें और उनका पालन करें तो हममें इतनी शक्ति ऐसा उत्साह और बल आ जाएगा कि हमारा पूरा मन प्रसन्नता से पूर्ण हो जाए।यह आपके जीवन का कायाकल्प कर देगा और आप परमात्मा की अपार कृपा का अनुभव कर एक नए अहोभाव से भर जाएंगे।
  • वर्तमान काल में मनोविज्ञान और परामनोविज्ञान के क्षेत्र में हुई नयी खोजों ने बहुत बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान अध्यात्म और सच्चे धर्म की ओर आकर्षित किया है।मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक नियमों का पालन कर मन की शान्ति तथा प्रसन्नता पाने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।ऐसे अनेक लोग हैं,जिन्होंने इस प्रकार अपने जीवन को आनन्दमय बनाया है।

4.आनन्द का अनुभव करने के उपाय (Ways to Experience Joy):

  • आज का संसार सुख-शांति और कल्याण का धाम बनने के स्थान पर दुःख,रोग तथा अशान्ति का केंद्र बना हुआ है।चारों ओर निराशा के बादल सर्वदा छाए रहते हैं।फिर भी मानव यह नहीं सोचता है कि ऐसा क्यों है? और स्वार्थवश आंखों को मूँदे अंधकार में बढ़ता चला जा रहा है।जिस शान्ति की ढूँढ है,उससे दूर ही दूर भाग रहा है।यह नहीं सोचता कि संसार में सुख के बदले दुःख क्यों है? स्वास्थ्य के बदले रोग क्यों है? आशा के स्थान पर निराशा क्यों है? निराशावश यही सोचता है कि दुःख भरे संसार में न कोई परमात्मा है और न कोई दिव्यशक्ति।इसके साथ ही वह अपने भाग्य को कोसता है।प्रत्येक सफलता को वह अपने परिश्रम का फल कहता है और विपरीत परिणाम को विधाता की क्रूरता बताता है।यह सब क्यों? क्या यह अनर्थ नहीं? यह विचारशील प्रश्न है।
  • हम अपने अंदर नहीं देखते कि भगवान ने एक कभी समाप्त न होने वाला आनंदमयकोष हमारे शरीर में दे दिया है।हम उस कोश को एक कंजूस की तरह दबाए बैठे हैं और ढूंढते हैं बाह्य वस्तुओं में उस आनंद को।कैसे मिले वह अमूल्य वस्तु,जिन्हें हम ढूंढते फिरें जंगलों में,पर्वतों में,कंदरों में,भौतिक सुविधाओं में,सांसारिक वस्तुओं में।
  • कस्तूरी तो मृग की अपनी नाभि में है,परंतु भटकता फिरता है,वह उसकी प्राप्ति के लिए इधर से उधर।बाहर ढूंढने से उसे कहां मिलेगी? यही अवस्था इस समय मानव की है जो अपने अंतःकरण में छिपे आनंदमयकोष को बाह्य वस्तुओं में ढूंढता फिरता है।
  • उस तपोबल या ब्रह्मतेज को प्राप्त करने के लिए भी मानव को सर्वप्रथम अपनी अंतरात्मा का अन्वेषण करना पड़ता है।जब तक अपना ध्यान बाह्य वस्तुओं से हटकर अंतःकरण में नहीं लगता,तब तक मानव तपोबल या ब्रह्मतेज को प्राप्त नहीं कर सकता जो कि उसके आनंद का साधन है,जिसकी खोज उसे दिन-रात चिंतित कर रही है।
  • वह अखण्ड आनन्द तो तभी प्राप्त होगा,जब मनोवृत्ति अधोगति का परित्याग करके तपोबल द्वारा ऊपर की ओर बढ़ेगी अर्थात् उसके कर्म तथा विचार दोनों ही साथ ही साथ उच्च होंगे।कर्म भी उच्च हो और ज्ञान भी उच्च हो तो आनंद स्वयमेव अनुभव होने लगता है।जैसे की ईशावास्योपनिषद (यजुर्वेद) में कहा है:
  • “विद्याञ्च अविद्याञ्च यस्तद वेद उभयं सह।
    अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्यया अमृतश्नुते।।”
  • अर्थात् जो विद्या (अध्यात्म) और अविद्या (भौतिक ज्ञान) को साथ-साथ जानता है वह भौतिकज्ञान से संसार को पारकर विद्या (अध्यात्म) से अमृत तत्त्व (आनंद) को प्राप्त करता है।
  • अतः जिस मानव को सुख,कल्याण और शांति प्राप्त करने की इच्छा हो,उसे अपना तथा अपनी आत्मा का अन्वेषण करना चाहिए।हर मानव को रात्रि में कुछ समय शांत परिस्थिति में बैठकर आत्मचिंतन करना चाहिए कि मैं कौन हूं? कहां से आया हूं?
  • कहां जाना है? मेरा लक्ष्य क्या है? अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए मैंने जो साधन अपनाएं है,क्या वह मेरे लक्ष्य तक पहुंचाने में समर्थ हैं?
  • जिससे वह अपने आपको पहचान सके और उसके शरीर के पाँचों कोश खुल जाएँ तथा वह सच्चे सुख और शांति को प्राप्त कर सकें।आनंदमय और शांत जीवन द्वारा उसे सच्चिदानंद भगवान में लीन हो जाए जो कि मानव का अंतिम लक्ष्य है।

5.आनन्दमय जीवन का दृष्टांत (A Vision of a Happy Life):

  • एक प्रसिद्ध युवा गणित शिक्षक भ्रमण करते हुए एक शहर में पहुंचे।वहाँ उनकी भेंट एक वृद्ध गणित शिक्षक से हुई।दोनों काफी घुलमिल गए।युवा गणित शिक्षक ने उनके व्यक्तिगत जीवन में काफी रुचि ली।उन्होंने काफी खुलकर बात की।
  • युवा गणित शिक्षक ने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि आपका शिक्षण कार्य,विगत जीवन तो आनंदमय ढंग से व्यतीत हुआ है पर इस वृद्धावस्था में आपको कौन-कौनसे पापड़ बेलने पड़ रहे हैं,यह तो बताइए।वृद्ध गणित शिक्षक मुस्कराया और कहा मैं अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व अपने समर्थ पुत्रों को देकर आनंद में हूँ।छात्र-छात्राएं कोई भी मेरे पास आते हैं कोई सवाल पूछते हैं बता देता हूं,कोई समाधान चाहते हैं तो उसका भी अपने अनुभव के आधार पर समाधान बताता हूं।पालन करना और न करना उनके हाथ की बात है,मैं इस पचड़े में नहीं पड़ता।
  • इसी प्रकार पुत्र-पुत्रवधु जो कहते हैं कर देता हूं जो खिलाते हैं खा लेता हूं और अपने पौत्र-पौत्रियों के साथ हंसता-खेलता रहता हूं।छात्र-छात्राएं अथवा पुत्र-पुत्रवधू कुछ भूल करते हैं,तब भी मैं चुप रहता हूं।मैं उनके किसी कार्य में बाधक नहीं बनता।
  • पर जब कभी वे परामर्श लेने आते हैं,मैं अपने जीवन के सारे अनुभवों को उनके सामने रख,की गई भूल से उत्पन्न दुष्परिणामों की ओर से सचेत कर देता हूं।वह मेरी सलाह पर कितना चलते हैं,यह देखना और मस्तिष्क खराब करना मेरा काम नहीं है।वह मेरे निर्देशों पर चलें ही यह आग्रह नहीं।परामर्श देने के बाद भी यदि वह भूल करते हैं तो मैं चिंतित नहीं होता,उस पर भी यदि वे पुनः मेरे पास आते हैं तो मेरा दरवाजा सदैव उनके लिए खुला रहता है।मैं नेक सलाह देकर उन्हें विदा करता हूं।
  • वृद्ध गणित शिक्षक की बात सुनकर युवा गणित शिक्षक बहुत प्रसन्न हुए।उन्होंने कहा कि वृद्धावस्था में भी छात्र-छात्राओं और अपने पुत्र-पुत्रियों,पुत्र वधूओं,पौत्र-पौत्रियों के बीच रहकर जीवन को आनंदमय कैसे किया जाए,यह आपने बखूबी समझ लिया है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में विद्यार्थी जीवन को आनंदमय कैसे बनाएं? (How to Make Student Life Enjoyable?),जीवन को आनन्दमय कैसे बनाएं? (How to Make Life Enjoyable?) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित म्यूजियम बनवाया (हास्य-व्यंग्य) (Built a Mathematics Museum) (Humour-Satire):

  • एक विद्यार्थी की लॉटरी लगी तो उसने गणित म्यूजियम बनवाना शुरू किया।
  • दूसरा विद्यार्थी:यार तू गणित म्यूजियम क्यों बनवा रहा है?
  • पहला विद्यार्थी:क्यों उसमें मैं अकेला ही गणित के सवाल हल करूंगा,टीचर से जब चाहे तब सवाल पूछ लूंगा।कक्षा में बहुत भीड़भाड़ रहती है,पूछने का नंबर ही नहीं आता है।

7.विद्यार्थी जीवन को आनंदमय कैसे बनाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Make Student Life Enjoyable?),जीवन को आनन्दमय कैसे बनाएं? (How to Make Life Enjoyable?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.क्या आनंद के लिए कर्म करना जरूरी है? (Is It Necessary to Work for Pleasure?):

उत्तर:आनंद को पाना चाहते हो तो सत्कर्म और निष्काम कर्म करो।ऊंचा लक्ष्य एक-एक कदम बढ़ाने से ही उसकी समीपता का लक्ष्य पूरा हो सकेगा।इसके लिए एकांत साधना की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।कर्म को त्याग कर कल्पना लोक में विचरने से कुछ काम न चलेगा।सत्कर्मों में निरत रहकर श्वेद बिंदुओं के साथ-साथ आनंद के मणिमुक्तकको का संचय किया जा सकेगा।भगवान को भेंट करने योग्य यही सर्वोच्य हार-उपहार है,जो सत्प्रयासों में बहने वाले श्वेद सीकरों से गूँथा गया है।आनंद खोज के लिए युवाओं की तरह वर्तमान से जूझना पड़ेगा।

प्रश्न:2.आनंद को किसने छीना है? (Who Has Snatched Away the Joy?):

उत्तर:नीरसता,निष्क्रियता,उद्विग्नता,अनर्थ में रुचि ने हमारे जन्मजात आनंद अधिकार को छीना है।जीवन नीरस लगता है क्योंकि सत्प्रयोजन की दिशा में हम निष्क्रिय बने रहते हैं।हम उद्विग्न रहते हैं क्योंकि अकर्म और कुकर्म करके आत्मा को चिढ़ाते और बदले में चपत खाते हैं।यदि आनंद अभीष्ट हो तो निरानंद की दिशा में चल रही दिग्भ्रान्ति यात्रा का क्रम बदलना पड़ेगा।एक क्षण के लिए रुके और देखें कि जो चाहते हैं उसे पाने की दिशा और चेष्टा सही भी है कि नहीं? चिंतन के फलस्वरूप आनंद प्राप्ति का जो महत्त्व बताया गया है उसका आधार यही है कि वस्तुस्थिति को नए सिरे से समझें और जीवन नीति का नए सिरे से निर्धारण करें।

प्रश्न:3.क्या ध्यान व योग से आनंद को पाया जा सकता है? (Can Joy Be Found Through Meditation And Yoga?):

उत्तर:आनंद का चिंतन बुरा नहीं है,पर उसे बीज की तरह गलना और उगना चाहिए अन्यथा वटवृक्ष की छाया में बैठकर सरसता का स्वाद चखना संभव नहीं हो सकेगा।ध्यान और योग की अपनी उपयोगिता है,पर उतने भर से सच्चिदानंद का सानिध्य संभव नहीं।भगवान का कोई स्थिर रूप नहीं,वे सक्रियता के रूप में गतिशील हो रहे हैं।इस विश्व की शोभा,स्वच्छता जिस दिव्य गतिशीलता पर निर्भर है,हम उसका अनुसरण करके ही भगवान प्राप्ति के राजमार्ग पर चल सकते हैं।चिंतन इसके लिए प्रेरणा देता है।लक्ष्य तक पहुंचने के लिए चलना तो पैरों को ही पड़ेगा।भावनाओं में प्राणों की प्रतिष्ठापना कर्मनिष्ठा ही करती है।सत्कर्मों में निरत हुए बिना आनंद की अनुभूति आज तक किसी को भी नहीं हो सकी है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा विद्यार्थी जीवन को आनंदमय कैसे बनाएं? (How to Make Student Life Enjoyable?),जीवन को आनन्दमय कैसे बनाएं? (How to Make Life Enjoyable?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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