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How to Make Maths Teaching Effective?

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1.गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं? (How to Make Maths Teaching Effective?),गणित को प्रभावी तरीके से कैसे पढ़ाएं? (Teach Mathematics in an Effective Way?):

  • गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं? (How to Make Maths Teaching Effective?) इसके लिए अर्थात् गणित अध्यापन को प्रभावी बनाने में अध्यापक तथा छात्र-छात्राओं की मुख्य भूमिका होती है।इसमें गणित के अध्यापक की सूझबूझ,अनुभव,दक्षता का बहुत प्रभाव पड़ता है। गणित के अध्यापक को अध्यापन को रोचक बनाने के लिए उसके व्यक्तित्व,चरित्र,विषय का विस्तृत एवं गहरा ज्ञान,गणित के प्रति उचित दृष्टिकोण,गणित विषय के प्रति व्यावसायिक दृष्टिकोण,गणित में होने वाली नवीन खोजों से अप टू डेट रहना इत्यादि बातों से अध्यापन को प्रभावी बनाया जा सकता है।
    शिक्षण को प्रभावी बनाने में अध्यापक,छात्र-छात्राओं,पाठ्यसामग्री तथा वातावरण का सबसे प्रमुख योगदान होता है।गणित शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु निम्न का योगदान है:
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(1.)अध्यापक का उत्तम आचरण,सदाचरण,सदाचार (Good Moral Conduct,Good Conduct):

  • यदि शिक्षण में सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है तो वह है अध्यापक का चरित्र व उत्तम आचरण। गणित को सीखने के लिए सतत प्रयत्न,मनन-चिंतन की आवश्यकता होती है। अध्यापक में ये गुण होते हैं तो स्वाभाविक रूप से छात्र-छात्राओं को अध्यापक से इन गुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा मिलती है।
  • अध्यापक का व्यवहार सदाचार युक्त हो।अर्थात् व्यवहार में इस प्रकार के दूर्व्यसन,अशिष्टता, रूखापन नहीं होना चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं पर दुष्प्रभाव पड़ता हो।अध्यापक ही नहीं बल्कि किसी व्यक्ति भी व्यक्ति के आचरण से ही दूसरा व्यक्ति अधिक सीखता है।यदि अध्यापक बीड़ी-सिगरेट पीता है,गणित पढ़ाने में रुचि नहीं लेता है,छात्र-छात्राओं द्वारा कोई सवाल या समस्या पूछने पर झिड़क देता है,छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करता है तो ऐसा शिक्षण प्रभावी हो ही नहीं सकता है।
  • यदि अध्यापकों को किसी कर्म बारे में सन्देह हो कि उसे वह कर्म करना चाहिए या नहीं तो उसे अपनी अंतरात्मा के आधार पर कर्म के करने या न करने के बारे में निर्णय लेना चाहिए।यदि किसी कर्म को करने से आत्मा में भय,शंका,लज्जा,ग्लानि इत्यादि भाव उत्पन्न हो तो उस कर्म को नहीं करना चाहिए। जिस कर्म को करने से खुशी,प्रसन्नता,आनंद,प्रीति,संतोष इत्यादि भाव उत्पन्न हो तो उस कर्म को करना चाहिए।जैसे कोई अध्यापक बीड़ी-सिगरेट व शराब पीता है तो उसकी आत्मा में भय,शंका,लज्जा,ग्लानि के भाव उठते हैं और उसे यह कार्य करने से आत्मा रोकती है।इसलिए अध्यापक को ऐसे कर्म नहीं करना चाहिए।कहा भी है कि:
  • “सतां हि सन्देहपदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्त: करणप्रवृत्तय:।।
  • अर्थात् सन्देह उपस्थित होने पर सत्पुरुष लोग अपने अंतःकरण की प्रवृत्तियों को ही प्रमाण मानते हैं।अन्त:करण की स्वाभाविक प्रवृत्ति सदाचार ही है और सदाचार से चित्त प्रसन्न होता है।
  • महाभारत में भी कहा है कि:
  • “वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
    अक्षीणो वित्तत: क्षीणो,वृत्ततस्तु हतो हत:।।
  • अर्थात् मनुष्य आचार से ही श्रेष्ठ होता है।धन और विद्या से नहीं।
  • गणित विषय में संकल्पनाओं संबंधित विषय सामग्री है इसलिए इस प्रकार की विषय सामग्री के अध्ययन व अध्यापन के लिए उच्च स्तर के तर्क, चिन्तन-मनन की आवश्यकता होती है जो कि सदाचार का पालन किए बिना संभव नहीं है।सफल गणित अध्यापन के लिए सदाचार का पालन करना जरूरी है।
  • परंतु देखा जाता है कि आजकल के कई शिक्षक बीड़ी-सिगरेट पीते हैं तथा अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करते हैं।ऐसे शिक्षकों के प्रति विद्यार्थियों का आदर नहीं होता है।शिक्षक छात्र-छात्राओं के प्रति समर्पित भाव से नहीं पढ़ाते हैं।उन्हें वेतन मिलता है उसके एवज में पढ़ाते हैं।ऐसे शिक्षक गणित को पढ़ाने की औपचारिकता करते हैं।वे गणित विषय को ही ठीक से नहीं पढ़ाते हैं तो जीवन जीने की कला,जीवन का शिक्षण की उनसे आशा करना तो बेकार है।शिक्षक छात्र-छात्राओं के साथ यार-दोस्त की तरह बर्ताव करते हैं।फिल्मों,गानों को सुनते हैं।घर पर भी माता-पिता फिल्मों,गानों को सुनते व देखते हैं। शिक्षक,माता-पिता का आचरण गलत दिशा में है और बच्चों को शिक्षा देते हैं कि हमारी तरफ ध्यान मत दो और अपनी पढ़ाई करो।इस प्रकार के आचरण से छात्र-छात्राओं का जीवन भव्य और उदात्त नहीं बन सकता है क्योंकि वह अपने से बड़ों से यह चीजें अर्थात् नाच,गाने,मौज मस्ती करना,मटरगश्ती करना,फैशनपरस्ती करना सीखते हैं।

(2.)छात्र-छात्राओं का आचरण,सदाचार,सदाचरण, नैतिक आचरण (Conduct,Good Conduct,Good Moral Conduct,Moral Conduct of Students):

  • छात्र-छात्राएं आज केवल विद्यालय के शिक्षक से ही नहीं सीखता है बल्कि नेताओं,सोशल मीडिया,समाचार पत्रों,फिल्मों,माता-पिता,संत महात्माओं,अपने मित्रों वातावरण से भी सीखता है।आज अखबारों में,न्यूज चैनल्स में राजनेताओं के बारे में ही अधिकांश खबरें छापी व दिखाई जाती है।इन नेताओं का जैसा चरित्र होता है वैसा ही छात्र-छात्राओं के मन पर प्रभाव पड़ता है और वही सीखता है।अधिकांश नेताओं की कथनी और करनी में फर्क होता है।जनता के सामने आदर्शों की बात करते हैं परंतु अंदर ही अंदर छल-प्रपंच का सहारा लेते हैं।छात्र-छात्राएं भी उनसे यही सब कुछ सीखता है।माता-पिता बालकों को ज्ञानार्जन के उद्देश्य से शिक्षण संस्थाओं में नहीं भेजते हैं बल्कि इस उद्देश्य से भेजते हैं कि गणित का ज्ञान प्राप्त करके इंजीनियरिंग करेगा अथवा कोई ऐसा जॉब करेगा जिससे पैसा व धन-दौलत कमाएगा जिससे उसे प्रतिष्ठा प्राप्त होगी।
  • माता-पिता बच्चों को श्रेष्ठ,सरल,चरित्रवान और विनम्र बनने के लिए विद्यालय में नहीं भेजते हैं। विद्यालय में बच्चों की शिक्षा से संबंधित विकास में माता-पिता शिक्षकों से इन गुणों के विकास की चर्चा ही नहीं करते हैं।ऐसी स्थिति में शिक्षा संस्थान व शिक्षक इन उच्च व दिव्य गुणों के विकास की तरफ ध्यान नहीं देते हैं।आज अधिकांश शिक्षा संस्थान केवल व्यावसायिक हो गए हैं।वे शिक्षा संस्थान में भौतिक सुख-सुविधाएं तो बढ़िया से बढ़िया रखते हैं परन्तु ज्ञान प्रदान करने,बच्चों को उन्नत करने के नाम पर शिक्षा संस्थानों का दिवाला निकला हुआ है।
  • जब माता-पिता ही यह सोचते हैं कि बालक धूर्तता,पाखंड,छल-प्रपंच,झूठ बोलना,बेईमानी करना सीखे तो शिक्षा संस्थानों के कौनसी अटकी पड़ी है जो वे ज्ञान,विद्या,सदाचरण जैसी बातों को छात्र-छात्राओं के जीवन में उतारेंगे,प्रेरित करेंगे।
  • छात्र-छात्राएं पुस्तकों से भी सीखते हैं परंतु रामायण,महाभारत,गीता जैसी पुस्तके पाठ्यक्रम में है नहीं।जो पुस्तके पढ़ाई जाती है उनमें भौतिक शिक्षा प्रदान की जाती है।केवल भौतिक शिक्षा के आधार पर जीवन दिव्य नहीं बन सकता है।आज छात्र-छात्राएं भावशून्य होकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। ऐसी स्थिति में गणित शिक्षा का प्रभावी अध्यापन कैसे हो सकता है?गीता,महाभारत,रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल करने से धर्म-निरपेक्षता के ठेकेदारों के पेट में सांप लोटने लगते हैं।यह कैसी धर्म-निरपेक्षता है जिसमें छात्र-छात्राएं शिक्षा प्राप्त कर उच्छृंखल,अनुदार,अनुशासनहीन,अकर्मण्य, निस्तेज बन रहे हैं।धर्म-निरपेक्षता का यह अर्थ नहीं है कि धर्मविहीन शिक्षण प्रदान किया जाए।
  • फिल्मों में ऐसी-ऐसी फिल्में बनाई जाती है जिन्हें बच्चों के साथ बैठकर माता-पिता को नहीं देखनी चाहिए।लेकिन आजकल के माता-पिता देखते ही नहीं बल्कि बढ़-चढ़कर वार्ता करते हैं।उसमें इतनी अश्लीलता परोसी जाती है कि बालक-बालिकाएं कच्ची उम्र में ही उत्तेजना से भर जाते हैं।नायक-नाभिकाओं (अभिनेता-अभिनेत्रियों) की फिल्मी पर्दे पर ओर तरह की भूमिका होती है और वास्तविक जीवन में ओर तरह की भूमिका होती है।फिल्मों में जीवनभर साथ निभाने की कसमें खाते हैं और वास्तविक जीवन में दो-तीन से अधिक बार शादियां करते हुए पाए जाते हैं।
  • जबकि फिल्में ऐसी बनाई जानी चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं के चरित्र का गठन हो सके।उनमें आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा मिले।
  • संत-महात्माओं के आगे प्राचीनकाल में राजा-महाराजाओं का मस्तक झुक जाता था।आज के अधिकांश संत-महात्माओं का काम जनता से पैसा-धन बटोरना रह गया है।आशीर्वाद ऐसा देते हैं और बोलते ऐसा हैं (वाक् चातुर्य) जैसे वास्तव में कोई सिद्ध महात्मा है।कुछ संत-महात्माओं का तो भंडाफोड़ हो गया है जिन्होंने अकूत धन-दौलत लूटकर जमा कर रखा था।पर्दे के पीछे अय्याशी का खेल खेलते थे।जबकि सच्चे संत-महात्माओं का आदर्श ऐसा रहा है जिससे मिलने पर निराश,हताश तथा उदास व्यक्ति के खून में भी तेजस्विता आ जाती है,श्रद्धा जागृत हो जाती है,वह उठ खड़ा होता है।
    तात्पर्य यह है कि गणित शिक्षण में अध्यापक की सबसे बड़ी भूमिका होती है।विषयवस्तु शिक्षक द्वारा ही प्रस्तुत की जाती है।परंतु प्रभावी शिक्षण में छात्र-छात्राओं की भूमिका भी कम नहीं है। छात्र-छात्राओं का आचरण अच्छा हो,अच्छे लोगों से मार्गदर्शन लें,अच्छी बातों को आचरण में उतारे तो गणित शिक्षण प्रभावी ही नहीं बल्कि आनन्दायक हो सकता है।संसार में हर तरह की बातें सीखने को मिल जाएगी।यदि आप सदाचरण,उत्तम,श्रेष्ठ,दिव्य,जीवन को उदात्त, उत्थान व विकास की ओर ले जाने वाले गुणों को सीखना चाहते हैं तो वे बातें भी सीखने को मिल जाएंगी।यदि आप दुराचरण,पतन,जीवन को निस्तेज,गलत दिशा में ले जाने वाली,अवनति की बातें सीखना चाहते हैं तो वे बातें भी सीखने के लिए और सिखाने वाले मिल जाएंगे।

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(3.)गणित की विषयवस्तु,पाठ्यपुस्तक,सहायक पुस्तकें,सन्दर्भ पुस्तकें (Mathematics Topics,Textbooks,Assistant Books,Reference Books):

  • गणित के प्रभावी अध्यापन में गणित विषयवस्तु के चयन की भूमिका भी होती है।हालांकि विषयवस्तु को प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व शिक्षक पर ही होता है।गणित की विषयवस्तु इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं के जीवन से संबंधित करके पढ़ाया जा सके।विषयवस्तु को सुरुचिपूर्ण एवं प्रेरक ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • गणित की विषयवस्तु का प्रभावी अध्यापन में शिक्षक व छात्र-छात्रा के बाद ही स्थान आता है।गीता में भी कहा गया है कि:
  • “उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
    आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।
    बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित:।
    अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।।(अध्याय-6)
  • अर्थात् मनुष्य अपने आप आपही अपने आपको उन्नत करें किन्तु अपने आपको अवनत न करे क्योंकि प्रत्येक प्राणी (अपनी उन्नति तथा अवनति में) अपने आप ही अपना मित्र हैं एवं अपने आप ही अपना शत्रु है अर्थात् यदि कोई प्राणी अपने आपको उत्थान मार्ग में ले जा रहा है तो वह अपने आपका मित्र है और यदि अपने आपको पतन के मार्ग पर ले जा रहा है तो वही अपने आपका अपना शत्रु है।
  • जिस विवेकी पुरुष ने आत्मा के द्वारा ही (अपने आप ही) आत्मा को (मन एवं स्थूल सूक्ष्मादि शरीर को) वश में कर लिया है,वह आत्मा उस आत्मा का बंधु है (परम उपकारक या उद्धार करने वाला है) किंतु जिस व्यक्ति ने अपने मन को वश में नहीं किया है उसका मन ही शत्रुता में (परम अपकार करने में) शत्रु के समान ही आचरण करता है।
  • वस्तुतः देखा जाता है कि यदि छात्र-छात्रा गणित में असफल हो जाता है तो उसका उत्तरदायित्व अपने ऊपर नहीं लेता है बल्कि वह कहता है कि पेपर ठीक नहीं आया था या शिक्षक ने ठीक से नहीं पढ़ाया,परीक्षा प्रणाली गलत है या गणित को पढ़ने का वातावरण ठीक नहीं है।
  • अस्तु गणित विषय में हमारी निष्ठा होगी,भाव होगा तो हम उसे रुचि व जिज्ञासापूर्वक पढ़ेगें तभी जीवन उन्नत और बदलने वाला होगा।परंतु गणित में विषयवस्तु भी जीवन को उठाने वाली होनी चाहिए। यदि गणित की विषयवस्तु को पढ़ने से प्रेरणा नहीं मिलती है,विषयवस्तु जीवन्त नहीं हो उठती है,मन चंचल और उद्विग्न होता है ऐसी विषयवस्तु छात्र-छात्राओं को उठाने में योगदान नहीं दे सकती है।यदि किसी पुस्तक में सैक्सी विषय सामग्री हो तो कितना ही तेजस्वी शिक्षक और छात्र-छात्राएँ हों उससे सदाचरण व उच्च नैतिक चरित्र की बातें नहीं सीखी जा सकती है।जासूसी कहानी हो तो उसे जीवन कैसे उन्नत हो सकता है।विकृत विषयवस्तु छात्र-छात्राओं के जीवन को ऊंचा उठाने के बजाय पतन का कारण ही बनेगी।
  • गणित की विषयवस्तु ऐसी हो जो छात्र-छात्राओं के समस्या समाधान में सहायक हो साथ ही उच्च गणित को पढ़ने के लिए भी प्रेरित करने में सहायक हो।विषय वस्तु केवल छात्र-छात्राओं को डिग्री प्रदान करने में ही काम में न आती हो बल्कि ऐसी विषयवस्तु से मानसिक,बौद्धिक और आत्मिक सौंदर्य खिलता हो,उभरता हो,जाग्रत होता हो।

(4.)वातावरण ,संगत तथा वंशानुक्रम (Environment,Company and Inheritance):

  • वातावरण से तात्पर्य है कि उसके परिवार में यदि पढ़े-लिखे,गणित में शिक्षित हैं,समाज में पढ़े-लिखे और गणित में उच्च शिक्षित व्यक्ति हैं,विद्यालय में गणित पढ़ाने का अनुकूल वातावरण है,इसके अलावा छात्र-छात्राओं से मिलने जुलने वाले,उसके मित्र तथा अन्य संस्थाओं,व्यक्तियों के संपर्क व सहयोग से गणित में छात्र-छात्राओं की प्रतिभा निखरती है।संगत वतावरण में ही समाहित है.समाज के लोगों,मित्रों व अन्य लोगों के साथ-संगत का भी फर्क पड़ता है इसमें पुस्तकों का संगत भी शामिल है.
    वंशानुक्रम से तात्पर्य है कि बालक के पूर्व जन्म में किए गए कर्मों अर्थात् भाग्य का भी योगदान होता है।यदि पूर्व जन्म में बालक के पढ़ने-लिखने के संस्कार होते हैं तो वर्तमान जीवन में उन कर्मों के अनुकूल पुरुषार्थ करने पर वे कर्म सक्रिय होते हैं,खिलते हैं,उभरते हैं।संक्षेप में यदि पूर्व जन्म के कर्म तथा वर्तमान समय का पुरुषार्थ अनुकूल,वातावरण अनुकूल हो तो गणितीय व्यक्तित्व विकसित होता है।दोनों में प्रतिकूलता होने पर प्रतिभा ठीक से नहीं निखरती हैं।

(5.)छात्र साहब की आत्मकथा (हास्य-व्यंग्य) [Student Sahib’s Autobiography (Humor-Satire)]:

  • जो लोग मुझे बहुत बड़ा गणितज्ञ लेखक मानने से इनकार करते हैं उनकी बुद्धि पर तरस आता है।वैसे वे लोग मुझे बहुत बड़ा गणितज्ञ लेखक मान लें तो उनका एक पैसा भी खर्च नहीं होगा।खैर मैंने एक उत्कृष्ट गणितज्ञ लेखक का ढांचा बना लिया है।सिर में तेल लगाने की झंझट से मुक्त और 7 दिन में एक दिन दाढ़ी बनाने से काम चल जाता है।दरवाजे पर कई चौकीदार मिल जाएंगे,जो छात्र-छात्राओं को आने से रोकते हैं और कहते हैं कि हमारे गणितज्ञ लेखक महोदय पढ़ने-लिखने में इतने व्यस्त रहते हैं कि लिखते-लिखते ही सो जाते हैं।जब सोकर उठें तो आकर पढ़ लेना।परिणाम यह हुआ कि छात्र-छात्राओं ने कोचिंग में पढ़ने के लिए ही आना बंद कर दिया।अब तो वे लोग भी नहीं आते हैं जो कभी-कभार हाल-चाल जानने आ जाया करते थे।इतना अकेलापन देखकर अब सोचता हूं कि लिखना-पढ़ना छोड़ कर घर से निकल जाऊं और छात्र-छात्राओं से मिलता रहा हूं।अकेले पड़ा-पड़ा बोर हो जाता हूं।
  • एक दिन ऐसा ही सोच रहा था कि बाहर से आवाज आई आपसे मिलने के लिए छात्र साहब आए हैं। कहते हैं आपसे मिलना जरूरी है।मुझे ताज्जुब हुआ कि मुझसे छात्र साहब मिलने आए हैं।मगर मैंने सोचा कि छात्र साहब आएं हैं तो इन टूटी-फूटी कुर्सियों पर बैठाऊं कैसे?सोचा चलो बाहर खड़ा होकर ही बात कर लेता हूं।मैंने हाथ जोड़कर कहा कि कहिए छात्र साहब कैसे आना हुआ?उन्होंने कहा कि आप मुझे पहचानते नहीं है।मैं आपसे गणित पढ़कर छात्र साहब बन गया हूं।तब मैंने हाँ की मुद्रा में सिर हिलाया।और मैंने कहा कि आगे कहिए क्या कहना चाहते हैं?मन में एक प्रकार की विरक्ति हुई कि एक गणितज्ञ लेखक से मिलने आ गए और न अपने साथ रोमांस लाए,न यौन समस्या की कोई मानसिक उलझन।न इनके पास भौतिकवाद है और न आध्यात्मिकवाद।
  • छात्र साहब ने कहा कि आप गणितज्ञ लेखक हैं।मैं चाहता हूं कि आप मेरा जीवन चरित आपकी वेबसाइट पर डाल दें तो इससे वेबसाइट पर आने वालों को भी बहुत लाभ होगा।मैंने कहा कि अब दुनिया बदल गई है अब छात्र-छात्राएं सोचते हैं कि सेक्सी बम से उनका भला हो सकता है।तब छात्र साहब ने कहा तो ऐसा कीजिए आप मेरे जीवन चरित्र में सेक्सी तड़का लगाकर ही उसे पोस्ट कर दें तो उनका भी भला हो जाएगा।मैंने भी सिर हिलाया और कहा कि आप ठीक कहते हैं।
  • मैंने कहा कि आप अपना जीवन चरित सुनाइए।छात्र साहब ने कहा कि गणित विद्या के बल पर मैं इतना परिश्रम करता हूं कि रात-दिन फुर्सत ही नहीं मिलती है।और जीवन में सादगी इतनी है कि गांधीजी भी मेरी सादगी के आगे पानी भरने लगेंगे।सादगी के मारे मैं खादी भी नहीं पहनता हूं।थोड़ी सी सादा रोटी खाता हूं।जो भी न मिले तो वैसे ही निर्वाह कर लेता हूं। लेकिन मैंने कहा कि इस जीवन चरित्र की उपयोगिता क्या है?तब छात्र साहब ने कहा कि जरूर उपयोगिता है?बोले मैं ओवरटाइम करता हूं परंतु ओवरटाइम के लिए मुझे कुछ नहीं मिलता है। दिन-रात मुझे हर वक्त काम में लगा रहना पड़ता है। आप देखते हैं कर्मचारियों को बिना ओवरटाइम ही समय-समय पर वेतन बढ़ोतरी होती रहती है और प्रमोशन मिलता है वो अलग।उनकी बात सुनकर मन बड़ा विरक्त हो गया।सोचा यह छात्र साहब आलसी हैं और मुफ्त में वेतन बढ़ाने पर तुला हुआ है।ऐसे लोगों को पब्लिसिटी नहीं मिलनी चाहिए।
  • मैंने कहा कि छात्र साहब रात-दिन मिलाकर कितने व्यक्तियों का काम कर लेते हो।छात्र साहब बोले 50 आदमियों का।मैं चौंका।छात्र साहब बोले आप चौंकिए मत।आप प्रत्यक्ष हमारे “कर्मयोग सेंटर” पर आकर जांच कर ले।मैंने उनका फोटो खींचकर और आश्वासन देकर विदा किया।भला यह भी संभव है कि एक छात्र साहब 50 आदमियों का काम अकेला कर ले।गांधीवादी होकर भी सफेद झूठ बोल रहा है।
  • मैंने “कर्मयोग सेंटर” का निरीक्षण किया।वहाँ 50 आदमी काम न करके मोटे तगड़े हो गए हैं और छात्र साहब अकेले काम करते-करते दुबले पड़ गए हैं।अगर वहां कुछ गलत था तो कर्मयोग का अभाव था।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं? (How to Make Maths Teaching Effective?),गणित को प्रभावी तरीके से कैसे पढ़ाएं? (Teach Mathematics in an Effective Way?) के बारे में बताया गया है।

2.गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं? (How to Make Maths Teaching Effective?),गणित को प्रभावी तरीके से कैसे पढ़ाएं? (Teach Mathematics in an Effective Way?) के सम्बन्ध में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.गणित पढ़ाने में आपको किस बात पर जोर देना चाहिए? (What should you emphasize in teaching mathematics?):

उत्तर:गणित में बच्चों के लिए सीखने के अनुभवों में बच्चे के बौद्धिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए,जो बढ़ावा देने के अवसर प्रदान करता है: (ए) समस्या को सुलझाने की रणनीति; (ख) निगमनात्मक तर्क,जिसमें तार्किक तर्कणा (reasoning logically) और व्यवस्थित रूप से शामिल है;(ग) रचनात्मक सोच,जो की विशेषता है

प्रश्न:2.गणित पढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? (What is the best way to teach mathematics?):

उत्तर:प्राथमिक गणित शिक्षण के लिए 7 प्रभावी रणनीतियाँ
इसे हाथों-हाथ बनाओ (Make it hands-on)।
दृश्यों और छवियों का उपयोग करें (Use visuals and images)।
सीखने में अंतर करने के अवसर खोजें (Find opportunities to differentiate learning)।
छात्रों को अपने विचारों को समझाने के लिए कहें (Ask students to explain their ideas)।
वास्तविक दुनिया के परिदृश्यों से कनेक्शन बनाने के लिए कहानी कहने को शामिल करें (Incorporate storytelling to make connections to real-world scenarios)।
दिखाएँ और नई अवधारणाओं को बताओ (Show and tell new concepts).
अपने छात्रों को नियमित रूप से बताएं कि वे कैसे कर रहे हैं (Let your students regularly know how they’re doing)।

प्रश्न:3.गणित की शिक्षा का मुख्य फोकस क्या है? (What is the main focus of mathematics education?):

उत्तर:प्राथमिक गणित पाठ्यक्रम के लक्ष्य हैं:गणित के सीखने में रुचि को प्रोत्साहित (stimulate) करना।छात्रों को बुनियादी गणितीय अवधारणाओं और कम्प्यूटेशनल कौशल को समझने और प्राप्त करने में मदद करें। छात्रों को रचनात्मकता और सोचने,संवाद करने और समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित करने में मदद करें।

प्रश्न:4.शिक्षक गणित कैसे पढ़ाते हैं? (How do teachers teach mathematics?):

उत्तर:प्रभावी शिक्षक उद्देश्यपूर्ण सीखने के अनुभव पैदा करते हैं
समस्या को हल करने के माध्यम से शिक्षण, हालांकि, इसका मतलब है कि छात्र वास्तविक संदर्भों (real contexts),समस्याओं,स्थितियों (situations) और मॉडल (models) के माध्यम से गणित सीखते हैं।संदर्भ और मॉडल छात्रों को अवधारणाओं के लिए अर्थ बनाने की अनुमति देते हैं।

प्रश्न:5.मैं गणित को और अधिक दिलचस्प कैसे बना सकता हूं? (How can I make teaching maths more interesting?):

उत्तर:गणित को मजेदार बनाने के कुछ बेहतरीन तरीकों को खोजने के लिए पढ़ते रहें और अपने छात्रों को सीखने का प्यार बनाने में मदद करें!
गणित के खेल (Math games).
दृश्य एड्स और चित्र पुस्तकें (Visual aids and picture books)।
आधुनिक तकनीक का उपयोग करें (Using modern technology)।
एक हाथ पर दृष्टिकोण ले लो (Take a hands-on approach).
छात्रों और माता-पिता के साथ संचार को प्रोत्साहित करें (Encourage communication with students and parents)।
अपने छात्रों पर ध्यान केंद्रित करें (Focus on your students)।
निश्चित दिनचर्या से चिपके रहें (Stick to fixed routines)।
वास्तविक वस्तुओं का उपयोग करें (Use real objects)।

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं? (How to Make Maths Teaching Effective?),गणित को प्रभावी तरीके से कैसे पढ़ाएं? (Teach Mathematics in an Effective Way?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

How to Make Maths Teaching Effective?

गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं?
(How to Make Maths Teaching Effective?)

How to Make Maths Teaching Effective?

गणित अध्यापन को प्रभावी कैसे बनाएं? (How to Make Maths Teaching Effective?)
इसके लिए अर्थात् गणित अध्यापन को प्रभावी बनाने में अध्यापक तथा छात्र-छात्राओं की मुख्य भूमिका होती है।

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