Menu

How to Make Children Well Cultured?

Contents hide

1.बच्चों को सुसंस्कृत कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured?),बच्चों को सुसंस्कृत और सभ्य कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured and Civilized?):

  • बच्चों को सुसंस्कृत कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured?) क्योंकि जैसी नींव होती है वैसे भवन का निर्माण होता है।मनुष्य का बचपन वह दर्पण है,जिसमें उसके भावी व्यक्तित्त्व की झलक देखने को मिल जाती है।अतः बच्चों के शुरू से ही पालन-पोषण,शिक्षा-दीक्षा में समुचित ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
  • विश्व के महापुरुषों की जीवनी से स्पष्ट होता है कि उनका बाल्यकाल अनुशासित,सुसंस्कृत,आत्मसम्मान पूर्ण था।उनमें साहस,आत्मविश्वास,धैर्य,संवेदना की उद्दात भावनाएं प्रारंभ से ही विकसित की गई,जिसने उन्हें महामानवों के स्थान पर पहुंचा दिया।
  • इसके विपरीत अपराधी प्रकृति के मनुष्य की जीवनी से पता चलता है कि उनका बाल्यकाल किस प्रकार कुंठाओं से ग्रस्त था,अव्यवस्थित था।बच्चे भावी समाज की नींव होते हैं।जिस प्रकार की नींव होगी,उसी के अनुरूप महल या भवन का निर्माण किया जा सकता है।यदि नींव ही कमजोर होगी तो कैसे उस पर भव्य भवन निर्मित किया जा सकेगा।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Adopt Indian Civilization and Culture

2.माता-पिता बच्चों का निर्माण करें (Parents Build Children):

  • परिवार एक प्रयोगशाला होती है और माता उसकी प्रधान वैज्ञानिक।इस प्रयोगशाला से नए-नए आविष्कार किया जा सकते हैं।यदि इस प्रयोगशाला में सुसंस्कृत एवं आत्मसम्मानी बच्चों का निर्माण करना हो तो उन्हीं के अनुरूप प्रयत्न एवं प्रयोग किए जाने चाहिए।
  • कौन माता-पिता नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे सभ्य की एक कड़ी बनें,उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप बनकर उनका तथा स्वयं का नाम उज्जवल करें।फिर यह सब कैसे होगा? कैसे उनके बच्चे महान बन सकेंगे? इसके लिए माता-पिता को त्याग,परिश्रम तथा अथक प्रयास व लगन के साथ बच्चों की नींव मजबूत बनानी होगी।
  • परिवार एक पाठशाला है और माता-पिता उसके शिक्षक,बच्चा वहां जो भी सीखता है,वही उसके संस्कार बन जाते हैं।बच्चा उस कोमल डाल के समान है,जिसे जिस ओर चाहो मोड़ा जा सकता है या कुम्हार की उस कच्ची मिट्टी के समान होता है,जिससे कुम्हार अपने इच्छानुरूप पात्र बना सकता है।इस कच्ची मिट्टी में जिस प्रकार के संस्कार भरे जाएंगे,उसी के अनुरूप पात्र निर्मित हो जाएंगे।
  • अब यह माँ या परिवार के अन्य सदस्यों पर निर्भर करता है कि वे किस प्रकार के संस्कार बालकों में डालना चाहेंगे?
  • परिवार में माँ ही एकमात्र ऐसी सदस्य होती है,जिसके संपर्क में बच्चा सबसे अधिक रहता है।पालने से लेकर ठीक से होश संभालने तक वह माता के ही पास रहता है।यदि बचपन से बच्चे की ठीक से देखभाल की जा सके तो कोई कारण नहीं की मां उसे बालक ध्रुव,प्रह्लाद,शिवाजी आदि महामानवों की प्रतिमूर्ति न बना सके।
  • प्रारंभ में जब बच्चा छोटा होता है,उसी समय से माता को चाहिए कि वह उसमें उचित संस्कार ठीक ढंग से लालन-पालन करके डाले।इस काल में माँ को चाहिए कि वह स्वयं नियंत्रित रहकर बच्चे का पालन-पोषण करे।
  • जब बालक बड़ा होता है और धीरे-धीरे बातों को समझने लायक हो जाता है,यहीं से उसका वास्तविक शिक्षण प्रारंभ होता है।इस अवस्था में परिवार ही उसकी प्रवेशिका होती है,जिससे वह सब कुछ सीखता है।इसलिए परिवार का वातावरण उचित होना चाहिए।परिवार की व्यवस्था इस प्रकार की हो कि बच्चा हर प्रकार की अच्छी आदतों का अनुकरण कर सके,जो उसके निर्माण में सहायक हो।बाल्यावस्था से ही माँ को बहुत बड़ी भूमिका निभानी पड़ती है।

3.बच्चों में मिल-जुलकर रहने की आदतों का निर्माण (Building Habits of Living Together in Children):

  • मिल-जुलकर खेलने तथा रहने की बच्चों में तीव्र भावना होती है।यह भावना बनी रहे,इसके लिए उचित वातावरण का होना आवश्यक है।मिल-बाँटकर खाने,एक ही खिलौने से मिल-जुलकर खेलने की आदतों  को बढ़ावा देना,परस्पर मिलकर काम करने की परंपरा डालने से उनमें विश्वमैत्री की भावना का विकास हो सकता है।कभी-कभी माता-पिता बच्चों की छोटी-छोटी बातों से तंग आकर अकारण ही झिड़क देते हैं।इससे बच्चों के मन में हीन भावना घर कर जाती है,जो उनके विकास में बड़ी बाधा पहुंचाती है।
  • अतः बच्चे बेकार के कामों में न उलझे रहे,इसके लिए उनमें रचनात्मक कार्यों के प्रति आकर्षण पैदा किया जा सकता है,जिससे वे क्रियाशील रहें।उन्हें ऐसी प्रेरणा दी जाए,ताकि वे अपना काम स्वयं कर सकें।समय का उपयोग समझ सकें।
  • प्रायः बच्चों में संकोचशीलता मिश्रित भय,झिझक,संकोच आदि की भावना घर कर जाती है।कुछ बच्चे घर में तो बड़े मुखर होते हैं परंतु बाहर जाने पर कुछ बोल भी नहीं सकते,शर्म मिश्रित भय से ग्रसित हो जाते हैं।ऐसी स्थिति से उन्हें व्यवहार कुशल तथा मिलनसार बनाने की चेष्टा करनी चाहिए।इसके लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम,बच्चों की सामूहिक गोष्ठी,छोटे-छोटे नाटक,खेल आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए,इससे बच्चों में धीरे-धीरे आत्मविश्वास की भावना भरने लगेगी तथा मिलनसारिता आएगी।
  • बच्चों में ऐसी भावना भरनी चाहिए कि वह अपने से बड़ों का सम्मान करें।उनसे शिष्टाचार के साथ बात कर सके।इसके लिए यह नितांत आवश्यक है कि बड़े लोग भी बच्चों या अपने से छोटे-बड़ों से कैसा ही व्यवहार करें,जैसी वे बच्चों से अपेक्षा करते हैं।बड़ों को भी बच्चों के साथ शिष्टाचार के साथ पेश आना चाहिए।व्यवहार में नम्रता,शीलता,सज्जनता का पुट रहना आवश्यक है।
  • बच्चों का अपमान न किया जाए,उनके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचाई जाए।अबोध बालक से भी ‘आप’ का संबोधन किया जाए,यदि ‘आप’ नहीं तो कम से कम ‘तुम’ तो कहा ही जाए।’तू’ के शब्द को असभ्य माना जाए।कन्या या पुत्र में कोई अंतर न समझा जाए।दोनों के साथ एकसा व्यवहार किया जाए।
  • बच्चों में धार्मिक भावनाओं का समावेश किया जाना चाहिए,ताकि वे धर्म के मूल्यों को समझ सकें,उनमें भगवान के प्रति श्रद्धा व विश्वास बढ़ सके।इससे वे बड़े होकर अनीतिगामी न हो सकेंगे।इसके लिए प्रारंभ से ही उन्हें सामूहिक प्रार्थना का अभ्यास,महामृत्युंजय मंत्र या कोई भावनापूर्ण प्रार्थना करने की आदत प्रातः एवं सायं डालनी चाहिए।साथ ही साथ उन्हें प्रार्थना के तथा महामृत्युंजय मंत्र के लाभों के बारे में भी बताया जाए।
  • प्रगति का घोंसला छोटी-छोटी आदतों के तिनकों से बुनकर तैयार होता है।देखने में ऐसी आदतें छोटी भले ही हों,परंतु इनका प्रभाव बच्चों के कोमल मन पर बहुत अधिक पड़ता है।इन छोटी-छोटी आदतों में नियमित दिनचर्या भी सम्मिलित है।प्रतिदिन समय पर उठना,शौच,स्नान,मंजन,सफाई आदि की नियमित आदत बच्चों में तथा पूरे परिवार में डालनी चाहिए।
  • इसके साथ ही समय विभाजन से कई तरह के अन्य कार्य करने का यहां तक की मनोरंजन,विश्राम का भी पर्याप्त समय मिल जाता है।बच्चों को समझाया जाए कि नियमित दिनचर्या के क्या लाभ है और अनियमितता से क्या हानियां होती हैं? इन बातों को बच्चों के मन पर अच्छी प्रकार बिठा देना चाहिए ताकि ये छोटी-छोटी आदतें उनके जीवन की नियमित दिनचर्या बन जाए।

4.अच्छी आदतें डालें और बुरी आदतों से बचाव करें (Develop Good Habits and Avoid Bad Habits):

  • घर में हर किसी को मितव्ययता और सादगी का पाठ पढ़ाया जाए।चटोरपन,फिजूलखर्ची,उद्धत श्रृंगार,गाली-गलौज जैसी बुरी आदतें बच्चों में न पनपने पाए,इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।लाड़-चाव से किसी में भी फजूलखर्च की आदत नहीं डालनी चाहिए।
  • सादगी अपने आप में एक बहुत बड़ा गुण है।बच्चों को इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए।बच्चों को पहनावे का ध्यान रखना चाहिए।
  • बच्चों को स्वच्छ तथा स्वस्थ तो रखा ही जाए,उन्हें आकर्षक भी बनाया जाए परंतु किसी भी दशा में ‘फेशनेबिल’ न बनाया जाए।उन्हें सादगी व सज्जनता का गौरव सीखने दिया जाए।इससे वे सादगी में हीनता का अनुभव नहीं करेंगे।अपनी प्रामाणिकता पर स्वयं संतुष्ट होंगे तथा दूसरों की दृष्टि में वजनदार सिद्ध होंगे।
  • सादगी के साथ ही उन्हें अपने स्वास्थ्य के प्रति भी सजग रहने की शिक्षा दी जाए।बच्चों के स्वस्थ मनोरंजन की भी व्यवस्था होनी चाहिए,जिससे आजकल चल रहे बेढंगे मनोरंजनों के प्रति उनका आकर्षण न हो।बच्चों को साथ लेकर स्वास्थ्यवर्धक स्थानों में,पार्क,दर्शनीय स्थानों में जाना चाहिए तथा कभी अवकाश के दिन या त्योहार के दिन पिकनिक पर निकल पड़ना चाहिए,इससे बच्चों को प्राकृतिक दृश्यों के प्रति प्रेमभावना का विकास होगा।
  • प्रतिस्पर्धा की वह भावना बड़ी खराब है।इसलिए बच्चों को इसके प्रति सजग रहने की शिक्षा दी जानी चाहिए कि वह खेलों में छोटों को उत्साहित किया करें,जिससे उनमें हीन भावना उत्पन्न नहीं होने पाए।बच्चों को राम व भरत के उदाहरण के द्वारा समझाया जा सकता है कि बचपन में राम खेल में जीतने पर भी अपने छोटे भाइयों को जिता देते थे और स्वयं हार जाते थे।
  • माता-पिता को चाहिए कि बच्चों में स्वयं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करें।प्रायः माता-पिता बच्चे के गलत निर्णय पर उन्हें डांट-फटकार लगाते हैं या प्रताड़ित करते हैं,यह गलत है।गलत निर्णय लेने पर भी बच्चों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए तथा उनको प्रोत्साहित करना चाहिए,इससे आत्मविश्वास जागेगा।
  • यदि बच्चों की चहुँमुखी प्रतिभा को विकसित करने में अपना पूरा योगदान दें तो कोई कारण नहीं कि बच्चे सु संस्कृत,सभ्य,आत्म स्वाभिमानी,निडर,आत्मनिर्भर न बनें और नए समाज के आधार स्तंभ न सिद्ध हों।भावी समाज का महल इन्हीं बच्चों द्वारा बनना है।
  • ये बच्चे ही कल के राष्ट्र की तकदीर होंगे या यों कहा जाए,सुसंस्कृत,सभ्य,स्वाभिमानी बच्चे ही सभ्य तथा उन्नत समाज की नींव हैं।
  • ज्यादा लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ भी जाते हैं।अतः अत्यधिक लाड़-प्यार न करें तो प्यार का अभाव भी न होने दें।माता-पिता को कभी भी पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए।
  • प्यार की उपेक्षा बच्चे के बचपन में कैक्टस के कांटे की तरह चुभ जाती है,जो उनके बचपन को घायल कर देती है।उनके कोमल मस्तिष्क में माता-पिता के प्रति भेदभाव की भावना घर कर जाती है।इससे उनके मन में अपराधी प्रवृत्ति की भावना जागृत होने लगती है।बच्चे प्यार की भाषा को अच्छी तरह से समझते हैं।अगर पड़ोस की कोई आंटी उससे प्यार से बोलती है,उपहार देती है,तो बच्चा उन्हीं का हो जाता है।
  • बच्चों से प्यार से बोलें।उन्हें समझिए।हर बच्चे के साथ समान रूप से प्यार बांटें,तभी बच्चों का भविष्य खुशहाल बनेगा।बच्चे भी अपने माता-पिता को प्यार देंगे और उनका प्यार पा सकेंगे।हर बच्चा अपने माता-पिता का लाड़ला होता है।तब उनमें भेदभाव क्यूं होता है? हर माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों के मन में सुरक्षा का भाव जगाएं।बच्चों को भरपूर प्यार दें,उनकी उपेक्षा न करें,तभी उनमें अच्छी आदतों का विकास हो पाएगा।

5.बच्चों का सुसंस्कृत होने का दृष्टांत (The Parable of a Child Being Cultured):

  • बच्चों को कुसंस्कृत तथा सुसंस्कृत बनाना काफी कुछ माता-पिता,घर-परिवार के सदस्यों तथा शिक्षा संस्थान में मिले वातावरण पर निर्भर करता है।एक परिवार में दो लड़के थे।बड़ा लड़का सुंदर और कुशाग्र बुद्धि का था,लेकिन छोटा लड़का उतना सुंदर और तेज दिमाग का नहीं था।उनके पिताजी बात-बात में बड़े लड़के की प्रशंसा करते थे और प्रोत्साहन देते थे,लेकिन छोटे लड़के की छोटी-छोटी भूलों पर डाँटते-डपटते थे।
  • हमेशा झिड़कियाँ दिया करते थे,तू क्या करेगा,तुझसे तो अच्छा तुम्हारा बड़ा भैया है।पढ़ने लिखने में तेज और बातचीत में कुशल।जब मैं तेरी उम्र का था,तब आठवीं पास कर चुका था और तू ऐसा गधा है कि अभी भी पांचवी कक्षा में पड़ा है।तुझ जैसा नालायक इस खानदान में कोई पैदा नहीं हुआ।
  • धीरे-धीरे इस तरह की झिड़कियों से छोटे बालक में कुसंस्कारों की छाप पड़ गई।उसका मस्तिष्क कुंठित हो गया।उसके मित्र भी कुसंस्कारी मिलते गए और एक दिन उसके कदम अपराध जगत की ओर बढ़ गए।जबकि बड़े लड़के को प्रोत्साहित करने व प्यार देने के कारण वह सभ्य व संस्कारी बन गया।उसकी मित्रता अच्छे बच्चों से होती गई और वह सभ्य और सुसंस्कृत बनता गया।
  • वस्तुतः बहुत अधिक झिडकियों,तानों,डाँट-डपट,तिरस्कार,अपमान करने से बालक कुसंस्कृत हो जाता है।उसमें आत्मविश्वास नहीं रहता।वह किसी के भी सामने अपनी समस्याएं रखने में डरता है।अभिभावकों को ऐसी भूल नहीं करनी चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों को सुसंस्कृत कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured?),बच्चों को सुसंस्कृत और सभ्य कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured and Civilized?) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:Consumerist Culture Hindering in Study

6.गणितज्ञ के मरने की खबर (हास्य-व्यंग्य) (News of Mathematician’s Death) (Humour-Satire):

  • एक गणितज्ञ ने सुबह उठकर अखबार में अपने मरने की खबर पढ़ी तो हैरान रह गया।उसने तुरंत अपने कार्यालय के कर्मचारियों,अधिकारियों को फोन किया और पूछा क्या तुमने मेरे मरने की खबर पढ़ी है।
  • कार्यालय के कर्मचारियों,अधिकारियों ने जवाब दिया,हां!हां! पढ़ी है लेकिन आप बोल कहां से रहे हो? क्या आपका अभी तक आपका अंतिम संस्कार नहीं किया गया।

7.बच्चों को सुसंस्कृत कैसे बनाएं? (Frequently Asked Questions Related to How to Make Children Well Cultured?),बच्चों को सुसंस्कृत और सभ्य कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured and Civilized?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बच्चों में गुणों व अवगुणों का समावेश कैसे होता है? (How Do Children Develop Virtues and Vices?):

उत्तर:किसी भी बच्चे में गुणों व अवगुणों का समावेश उसके पारिवारिक वातावरण के अनुसार होता है।बच्चे को परिवार में जैसा वातावरण मिलेगा,उसके साथ जैसा व्यवहार किया जाएगा,उसका प्रभाव उसके मन पर पड़ेगा।अतः घर-परिवार के सदस्यों को बच्चों को स्नेह,सहानुभूति,विश्वास,शिष्टता,सद्भाव और आदर आदि गुणों से संपन्न करने की आवश्यकता है।
जिस घर में बच्चे माता-पिता या अन्य बड़ों को अकारण लड़ते-झगड़ते,झल्लाते और कलह करते देखेगा,उसमें परिजनों के प्रति आदर व आस्था कैसे जाग सकेगी?घृणा,संदेह और अविश्वास का वातावरण बच्चों के स्वाभाविक संवेगात्मक विकास में बाधक होता है।ऐसी बातों का कुप्रभाव उनके मन-मस्तिष्क का विकास रोक देता है और उनकी गतिविधियां समाज-विरोधी होने लगती है।

प्रश्न:2.बच्चे मानसिक रोग से ग्रस्त क्यों हो जाते हैं? (Why Do Children Suffer from Mental Illness?):

उत्तर:बच्चों को हर समय माता-पिता की सहानुभूति चाहिए।यदि उससे घर में कोई छोटा-मोटा नुकसान हो जाए अथवा उनको चोट लग जाए तो माता-पिता की सहानुभूति की आवश्यकता होती है,न की डांट-फटकार की।सहानुभूति न पाने की स्थिति में बच्चे के कोमल हृदय पर बड़ी चोट पहुंचती है।
बच्चों के प्रति ऐसा व्यवहार उचित नहीं।क्योंकि अतिशय क्रोध या डाँट-डपट से किसी भी क्षण उसका मानसिक और शारीरिक संतुलन बिगड़ सकता है।वह मानसिक रोग का शिकार हो सकता है।

प्रश्न:3.बच्चों में ईर्ष्या का भाव क्यों पैदा होता है? (Why Do Children Develop Jealousy?):

उत्तर:घर में एक से अधिक बच्चे होने पर प्रायः बच्चों में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न हो जाता है।वे बात-बात में एक-दूसरे को दी जाने वाली सुविधा के बारे में ईर्ष्या करके रूठने लगते हैं।ऐसी स्थिति में बच्चों को प्यार से समझाते रहना चाहिए ताकि वह प्रवृत्ति आगे न बढ़े।स्वयं माता-पिता को भी ईर्ष्या व द्वेष से कोसो दूर रहना चाहिए।
दूसरों के देखा-देखी या व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा का भी बच्चों के मस्तिष्क पर विपरीत असर होता है।ऐसी व्यर्थ की तुलना या प्रतिस्पर्धा से बच्चों के बिगड़ने व डांवाडोल होने की भारी संभावना रहती है।खुद से अधिक पड़ोसियों के बच्चों का ख्याल रखने वाले यह भूल जाते हैं कि उनकी बातों का उनके बच्चों पर कितना घातक प्रभाव पड़ रहा है।अतः माता-पिता को बहुत सावधानीपूर्वक बच्चों की परवरिश करने व व्यवहार तथा बातचीत का ध्यान रखना चाहिए।बच्चे अधिकांश बातें माता-पिता व घर-परिवार से ही सीखते हैं अतः जाने-अनजाने में गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों को सुसंस्कृत कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured?),बच्चों को सुसंस्कृत और सभ्य कैसे बनाएं? (How to Make Children Well Cultured and Civilized?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *