How to Keep Contentment Maths Students?
1.गणित के छात्र-छात्राएं संतोष कैसे धारण करें? (How to Keep Contentment Maths Students?),गणित के छात्र-छात्राएं किन मामलों में असन्तोषी हों? (In What Cases Should Mathematics Students be Dissatisfied?):
- गणित के छात्र-छात्राएं संतोष कैसे धारण करें? (How to Keep Contentment Maths Students?) यह समझने से पहले यह जान लें कि संतोष धारण करने का अर्थ अकर्मण्य,आलसी,लापरवाह होना नहीं हैं।जब हम शारीरिक रूप से कुछ भी नहीं करते हैं तो इसे अकर्मण्यता कहते हैं।कर्म करने से तो कोई मनुष्य बच नहीं सकता है अब यह कर्म शारीरिक रूप से करें अथवा मानसिक रूप से करें या मानसिक और शारीरिक दोनों के द्वारा करें।अकर्मण्य व निष्क्रिय व्यक्ति शारीरिक रूप से कोई काम नहीं करता है परंतु मानसिक रूप से कर्म करता हुआ रह सकता है।
- असंतोषी,बहुत अधिक महत्वाकांक्षाओं,विशेष चाहत रखने वाला छात्र-छात्रा संतोषी नहीं होता है बल्कि संतोषी छात्र-छात्राएं तो अपने कार्य को (अध्ययन) निष्काम-भाव से पूजा समझकर करता है।जब हम अध्ययन कार्य को निष्काम भाव (कर्मफल में आसक्ति न हो,कर्म का कर्ता न होने का भाव) से करते हैं तो उसका परिणाम जो भी प्राप्त होता है उसको सहज भाव से स्वीकार करते हैं।
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2.संतोष धारण करने का तात्पर्य (Meaning of Being Satisfaction):
- पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव,आधुनिक रहन-सहन,विज्ञान के प्रभाव से हम सुविधाभोगी प्रवृत्ति के होते जा रहे हैं और धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।जैसे-जैसे छात्र-छात्राओं को सुविधाएं उपलब्ध होती जा रही हैं वैसे-वैसे वे कठिन परिश्रम,पुरुषार्थ करने के बजाय आलसी,लापरवाह होते जा रहे हैं।
- पहले के छात्र-छात्राएं चाहे धनवान हों अथवा निर्धन हों गुरुकुल में तप और साधना का जीवन व्यतीत करते थे।विद्याध्ययन को साधना और पूजा समझकर ग्रहण करते थे।
- यदि छात्र-छात्राएं गणित के सवाल हल नहीं कर पाए रहें हों,आपको कोई सहयोग करने वाला नहीं है,शिक्षक आपको सवाल नहीं बता रहे हों,आपके घर वाले पढ़े-लिखे नहीं है इत्यादि की स्थिति को स्वीकार करके बैठ जाए तो यह संतोष धारण करना नहीं हुआ बल्कि असहाय,लाचारी और अक्षमता का प्रतीक है।आपको जो भी अध्ययन के लिए साधन,सुविधाएं उपलब्ध है उससे राजी रहकर हर स्थिति का सामना करना और अध्ययन में आनेवाली अड़चनों को दूर करना सन्तोष है।
- हमें भगवान ने जो कुछ उपलब्ध कराया है उससे सन्तोष धारण करना चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि जितना कुछ भगवान ने हमें उपलब्ध कराया है,दिया है उतनी भी हमारी योग्यता,पात्रता नहीं थी।
- हमें अपने आपसे असंतोष रखना चाहिए और यह विचार करना चाहिए कि मेरे में क्या-क्या कमियां हैं,कौन-कौनसी कमजोरियां हैं इसका आत्म-निरीक्षण करके उन्हें दूर करना चाहिए।उन कमियों और कमजोरियों को दूर करने से हमारा व्यक्तित्त्व निखरता है,हम प्रगति और विकास कर पाते हैं।
- वस्तुतः हमें भगवान से,लोगों से शिकायत रहती है और अपने आपसे संतुष्टि रहती है।माता-पिता,अभिभावक,शिक्षकों तथा लोगों से यह शिकायत रहती है कि उन्होंने हमें पुस्तकें,सन्दर्भ पुस्तकें नहीं दिलाई,कोचिंग की व्यवस्था नहीं की,हमें ठीक से नहीं पढ़ाया जाता है।जबकि हम खुद को सही समझते हैं,स्वयं की योग्यता,पात्रता को बहुत अधिक समझते हैं,अपने आपसे संतोष रहता है।ऐसी प्रवृत्ति हमारी उन्नति,प्रगति और विकास में बाधक है।इससे हमारे अंदर अहंकार (तामसिक,राजसिक) उत्पन्न होता है और विद्या ग्रहण करने में बाधक है।
- अब प्रश्न उठता है कि यदि साधन-सुविधाएं न हों तो प्रगति और विकास कैसे संभव है? उत्तर में निवेदन है कि अब्राहम लिंकन के पास तो पुस्तकें पढ़ने के लिए नहीं थी और वे पुस्तकें लेने के लिए मीलों पैदल चलते थे।यदि गणित के सवाल अथवा अन्य विषय के प्रश्न आपसे हल नहीं हो रहे हैं तो गणित के क्षेत्र में आगे कैसे बढ़ा जा सकता है? पहली बात तो यह कि अपनी योग्यता,क्षमता और पात्रता को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।यदि भरपूर प्रयत्न करने से भी सवाल अथवा प्रश्न हल नहीं हो रहे हों,किसी का सहयोग नहीं मिल पा रहा हो तो हीनभावना से ग्रस्त नहीं होना चाहिए।
- संसार में किसी भी व्यक्ति के सभी मनोरथ सिद्ध नहीं होते हैं इसलिए अत्यधिक प्रयत्न करने,यथासंभव अपनी कमजोरियों को दूर करने पर भी सवाल हल नहीं हो रहे हो अथवा प्रश्न को हल नहीं कर पा रहे हो तो उन सवालों को छोड़ देना चाहिए।व्यर्थ संघर्ष करने से समय और शक्ति नष्ट होती है।
- पुनरावृत्ति करते समय अथवा आपके पास खाली समय है तो उन सवालों और प्रश्नों को फिर से हल करने का प्रयास करना चाहिए।दरअसल सवालों को हल करने के सभी तरीके हम नहीं जानते हैं इसलिए उनको हल नहीं कर पाते हैं।चाणक्य नीति में कहा है किः
- “ईप्सितं मनसः सर्वं कस्य सम्पद्यते सुखम्।
दैवाअयत्तं यतः सर्वं तत्मात्सन्तोषमाश्रयेत्।।” - अर्थात् सभी मनोरथ (इच्छाएं) किसी के भी पूर्ण नहीं होते हैं क्योंकि सब कुछ दैव (भाग्य) के अधीन है अतः संतोष धारण करना चाहिए।संतोष ही सुख-शांति का आधार है।
3.किन मामलों में संतोष और असंतोष रखें? (In what Cases Should You be Satisfaction and Dissatisfied?):
- चाणक्य नीति में कहा है कि:
“सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने।
त्रिषु चैव न कर्तव्योअध्ययने तपदानयोः।।” - अर्थात् कामवासना में अपनी पत्नी,घर में उपलब्ध भोजन,उचित और साफ-सुथरे तरीके से प्राप्त आय (धन) से ही संतोष धारण करना चाहिए।अध्ययन (ज्ञान प्राप्ति),पुरुषार्थ (कठिन परिश्रम करने में) और दान (अपनी तृष्णाओं,लिप्साओं,लालसाओं,कामनाओं का त्याग) करने में संतोष धारण नहीं करना चाहिए।यदि छात्र-छात्राएं तथा लोग इस सूत्र का भली-भांति पालन करें तो उनकी प्रगति,उन्नति और विकास में रुकावट नहीं आ सकती है।
- स्वतंत्रता के पश्चात ऐसी जीवनशैली विकसित हो गई है जिसके प्रभाव से छात्र-छात्राएं अछूते नहीं रहे हैं।हमने सादा जीवन और उच्च विचार को अपनी जीवनशैली से निकाल दिया हैं।
- कामवासना का तो छात्र-छात्राओं से कोई संबंध नहीं है उन्हें तो ब्रह्मचर्य धारण करना चाहिए तभी विद्या की प्राप्ति हो सकती है।वैसे भी कामवासना और धन-संपत्ति की तृप्ति हो ही नहीं सकती चाहे वह कितना ही समर्थ और शक्तिशाली हो।हम कितना ही कामवासना को तृप्त करें वह ओर ज्यादा भड़कती है और जीवन ही समाप्त हो जाएगा परन्तु कामवासना तृप्त नहीं हो सकेगी।राजा ययाति ने अपने पुत्रों का यौवन ले लिया परंतु फिर भी कामवासना तृप्त नहीं हुई।
- छात्र-छात्राओं को तो ब्रह्मचर्य धारण करना ही चाहिए परंतु अन्य लोगों को भी संयम और समझदारी से स्त्री (अपनी पत्नी) के साथ सहवास करना चाहिए।धन-दौलत के मामले में हम सिकन्दर महान् से शिक्षा ले सकते हैं।उसने अकूत धन-संपत्ति और राज्य का भोग किया फिर भी अतृप्त ही रहा,समर्थ तथा शक्तिशाली होते हुए भी उसकी तृप्ति नहीं हुई।इसी प्रकार आहार के मामले में संतोष धारण करना चाहिए।अंट-शंट तथा अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने पर अनेक रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं।
- तप (पुरुषार्थ) में असंतोष इसलिए रखना चाहिए क्योंकि बिना पुरुषार्थ ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है और ज्ञान अनंत है अतः छात्र-छात्राओं को अध्ययन व पुरुषार्थ करने में असंतोष रखना चाहिए।यह बात अपने आपसे असंतोष के बारे में भी मेल खाती है।
- अध्ययन और पुरुषार्थ द्वारा हमारा किया हुआ ही हमारे लिए उपयोगी और सार्थक है।यदि हमारा कार्य जैसे गणित व अन्य विषयों का गृहकार्य,सवालों को हल करने का कार्य,अन्य विषयों का अध्ययन करने का कार्य हमारी एवज में कोई दूसरा करेगा तो हमारा व्यक्तित्त्व अविकसित और लुंजपुंज ही रहेगा।
- विद्यार्थियों को अध्ययन कार्य (पुरुषार्थ) निष्काम भाव से ही करना चाहिए।निष्काम भाव में कर्त्तापन का अभाव और फल में आसक्ति नहीं रहती है।अतः निष्काम भाव से अध्ययन करने में हम दुःख का अनुभव नहीं करते हैं बल्कि आनन्द और संतोष की अनुभूति होती है।
- विद्याग्रहण करना इतना सरल कार्य नहीं है कि तत्काल पूरा हो जाए और उसमें कष्टों और कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।अपनी योग्यता व क्षमता का लगातार विकास करना पड़ता है और उसमें विश्राम करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं रहती है।
4.संतोष के बारे में महत्वपूर्ण बातें (Important Things About Satisfaction):
- (1.)हमें जो सुख,साधन-सुविधाएं प्राप्त हैं उससे राजी रहना,संतुष्ट रहना ही संतोष है।
- (2.)मन में अच्छे विचारों को धारण करने और मन,वचन,कर्म से अपने अध्ययन कार्य में तल्लीन रहने तथा भगवान पर विश्वास रखने पर संतोष की अनुभूति होती है।
- (3.)सदैव शुभ कर्म (अध्ययन कार्य,ज्ञान प्राप्त करना),अच्छे लोगों की संगति करना (व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करने हेतु),कुसंगति (बुरे लोगों का संग न करना),न करना जिससे लोभ,लालच,तृष्णा इत्यादि से बचा जा सके।
- (4.)चिंता नहीं चिंतन करें।चिंतन करने से आपके अध्ययन करने में आने वाली रुकावटों के उपाय सूझते हैं जबकि चिंता हममें असंतोष पैदा करती है और किसी भी समस्या का समाधान नहीं मिलता है।
- (5.)अध्ययन में आने वाली बाधाएं,रुकावटें,मुसीबतें हमारी बुद्धि को परिपक्व और हमारे व्यक्तित्त्व का निर्माण करती है।
(6.)लोभ,लालच,तृष्णा,लालसा इत्यादि को मन में न पनपने दें क्योंकि ये संतोष धारण करने में बाधक हैं।
- (7.)भगवान ने जो कुछ भी उपलब्ध कराया है उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना और उससे कम अपनी आवश्यकताओं को रखना संतोष है।
- (8.)संतोष का मतलब परिस्थितियों से पलायन करना नहीं है और न ही यथास्थिति को स्वीकार करना है बल्कि हर स्थिति से राजी रहना कि मेरे पास जरूरत से ज्यादा है।
- (9.)संतोषी को जो सुख-शांति और आनंद की उपलब्धि होती है वह लोभ,लालच,लालसा इत्यादि के जाल में फंसने पर नहीं मिलती है।
- (10.)न तो अपने आपको दीन-हीन समझे और न ही अपने आपको श्रेष्ठ,उच्च समझे बल्कि सम्यक (मध्यम) भाव रखना ही संतोष है।
- (11.)अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना और अनावश्यक चीजों की पूर्ति करने का प्रयास न करना,कामनाएं न रखना संतोष है।
- (12.)अच्छी पुस्तकें,सत्साहित्य का अध्ययन करना,स्वाध्याय करना,सत्संगति करना,अच्छे आचार-विचार का पालन करना,आचरण को उत्तम रखना इत्यादि कार्यों से संतोष धारण करना संभव हो जाता है।
5.संतोष धारण करने का दृष्टांत (Parable of Having contentment):
- कोचिंग सेंटर में एक अध्यापक संतोष और अपरिग्रही (आवश्यकता से अधिक का संग्रह न करना) जीवन व्यतीत कर रहे थे।एक शहर से एक विद्वान आए।उन्होंने कोचिंग को भलीभांति देखा और उनसे चर्चा करने लग गया।बहुत देर तक अपने सन्देहों के बारे में जिज्ञासा प्रकट करता रहा।उसकी हर जिज्ञासा और सन्देहों का उस गणितज्ञ ने निवारण किया।अन्त में गणितज्ञ की हालत और कोचिंग सेन्टर की दशा देखकर उसने कहा।आप कितने अच्छे गणितज्ञ हैं,गणित के अलावा भी आपको चरित्र से सम्बन्धित,व्यावहारिक बातों,धर्म-कर्म तथा आध्यात्मिक ज्ञान भी है फिर भी आपने अपने इस छोटे से गांव में कोचिंग सेंटर खोल रखा है।
- वह गणितज्ञ बोले तो फिर मुझे क्या करना चाहिए?वह विद्वान बोला अपने कोचिंग सेंटर का विज्ञापन करो,लोगों में प्रचार-प्रसार करो,कुछ दलालों को कमीशन दो।गणितज्ञ बोला उससे क्या होगा? विद्वान बोला कि तुम्हारी कोचिंग की प्रसिद्धि फैलेगी,तुम्हारी उन्नति होगी,तुम्हारे कोचिंग सेन्टर में बहुत से छात्र-छात्राएं आएंगे और तुम्हारी आय बढ़ेगी।
- गणितज्ञ बोला फिर क्या होगा? वह विद्वान बोला दुनिया में तुम्हारे कोचिंग और तुम्हारा यश व प्रतिष्ठा बढ़ेगी।तुम बहुत बड़े गणितज्ञ बन जाओगे और आराम से अपना जीवनयापन कर सकोगे।ऐशोआराम करोगे,तुम्हारे पास बहुत सी सुख-सुविधाएं होंगी।
- गणितज्ञ बोले कि सुख-शान्ति और आनन्द का जीवन तो मैं आज भी जी रहा हूँ।मेरे परिवार की जरूरतें पूरी हो रही है,मुझे और मेरे परिवार को जितना चाहिए उतना मिल रहा है।मुझे जितना चाहिए उतना कमा लेता हूं और आनन्द से रह रहा हूँ।अब ओर मुझे क्या चाहिए? विद्वान अपने शहर लौट गया और गणितज्ञ उपलब्ध साधनों में ही आनंद,मस्ती और सन्तोष से जीवन बिताने लगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित के छात्र-छात्राएं संतोष कैसे धारण करें? (How to Keep Contenment Maths Students?),गणित के छात्र-छात्राएं किन मामलों में असन्तोषी हों? (In What Cases Should Mathematics Students be Dissatisfied?) के बारे में बताया गया है।
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6.गर्लफ्रेंड की गणित में कमजोरी (हास्य-व्यंग्य) (Weakness in Girlfriend’s Math) (Humour-Satire):
- छात्र ने अपनी गर्लफ्रेंड से कहा:देखो अब तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो परंतु मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि मुझे तुम्हारी गणित में कमजोरी बिल्कुल भी पसंद नहीं है जिसे समय पर दूर कर लो।
- गर्लफ्रेंड (झल्ला कर):रहने दो,अपने अमूल्य सुझाव को।इसे अपने पास ही रखो,बुरे वक्त में काम आएगा।मुझे गणित की अपनी सारी कमजोरियां पता है परंतु इसी वजह से मैं एक अच्छा-सा बॉयफ्रेंड नहीं बना सकी।
7.गणित के छात्र-छात्राएं संतोष कैसे धारण करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Keep Contentment Maths Students?),गणित के छात्र-छात्राएं किन मामलों में असन्तोषी हों? (In What Cases Should Mathematics Students be Dissatisfied?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.क्या सन्तोष धारण करने में तृष्णा बाधक है? (Is thirst a Hindrance to Having Contentment?):
उत्तर:संतोष का अर्थ है कामनाओं से,इच्छाओं से मुक्त होना और तृष्णा का अर्थ है अधिक से अधिक पाने की चाहत रखना।यदि चाहत पूरी हो जाती है तो तृष्णा से ग्रस्त व्यक्ति उसके प्रति उदासीन हो जाता है तथा ओर अधिक चाहने की इच्छा रखने लगता है।इस प्रकार जीवन का अंत आ जाता है परंतु तृष्णाओं और लालसाओं का अंत नहीं होता है।तृष्णा और संतोष दोनों विपरीत छोर हैं।
प्रश्न:2.तृष्णा से मुक्त कैसे हो सकते हैं? (How Can You Get Rid of Thirst?):
उत्तर:तृष्णा को विवेक के द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।जब व्यक्ति में विवेक अर्थात् भला-बुरा को जानने,पहचानने की बुद्धि जागृत हो जाती है तो तृष्णा को शांत किया जा सकता है।अर्थात् तृष्णा को सद्ज्ञान से ही समाप्त किया जा सकता है क्योंकि तभी मनुष्य को अपने भले,बुरे का ज्ञान होता है और अपने हितकारी कार्यों को ही करता है।
प्रश्न:3.मनोकामना और संकल्प में क्या अंतर है? (What is the Difference Between Willpower and Thirst?):
उत्तर:मनोकामनाएं (सभी) पूरी नहीं होती है जबकि संकल्प पूरे हो जाते हैं।संकल्प कामना से ऊंचे स्तर की है।संकल्प में किसी काम को कर गुजरने का निर्धारण होता है।संकल्प में दृढ़ निश्चय और उसको पूरा करने का व्रत जुड़ा होता है।संकल्प कार्य का पूरा मूल्य भी चुकाना पड़ता है।संकल्प को पूरा करने का धैर्य भी होता है यदि लक्ष्य तक पहुंचने में विलंब या अड़चनें आए तो उसकी पूर्ति हेतु प्रतीक्षा की जाए और तन्मयता पूर्वक उसे ओर करने का साहस जुटाया जाए।
संकल्प में निश्चित लक्ष्य पर पहुंचने के लिए पुरुषार्थ करने की लगन होती है,उसमें फल प्राप्ति की जल्दबाजी नहीं होती है,उसका निश्चय होता है।कामना में देर होने पर व्यक्ति अधीर हो उठता है तथा अड़चनें आने पर उसका सामना करने और कठिनाइयों से जुड़ने का साहस नहीं होता है।
संकल्प में कार्यपद्धति बदलाव की आवश्यकता हो तो उसे करने के लिए सूझबूझ साथ देती है।संकल्प में इच्छाशक्ति और भावनाशक्ति दोनों जुड़ी रहती है जबकि कामना एक प्रकार का भावावेश है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित के छात्र-छात्राएं संतोष कैसे धारण करें? (How to Keep Contenment Maths Students?),गणित के छात्र-छात्राएं किन मामलों में असन्तोषी हों? (In What Cases Should Mathematics Students be Dissatisfied?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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