How to Keep a Youthful Mindset?
1.युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mindset?),चिर युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mentality?):
- छात्र-छात्राएँ युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mindset?) युवा मानसिकता रखना क्यों जरूरी है? युवा मानसिकता से क्या आशय है? छात्र-छात्राएं युवा मानसिकता क्यों रखें और इसके क्या-क्या फायदे हैं आदि पर इस लेख में चर्चा की जाएगी।
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2.मानसिकता के प्रकार (Types of mentality):
- आपने शायद कभी इस मुद्दे पर विचार किया हो कि हमारे हाथ में केवल वर्तमान का समय होता है। भूतकाल बीत चुका होता है इसलिए हाथ में नहीं होता है और भविष्य काल अभी आया नहीं इसलिए भविष्य काल भी हाथ में नहीं होता है।हाथ में होने से तात्पर्य है हम कुछ भी कार्य अथवा कोई भी रद्दोबदल नहीं कर सकते हैं।हाथ में सिर्फ वर्तमान ही होता है और इसीलिए हम केवल वर्तमान काल ही उपयोग कर सकते हैं।अगर हम भूत या भविष्य काल में खोए रहेंगे,गोते लगाते रहेंगे तो वर्तमान से चूक जाएंगे अर्थात् वर्तमान में कोई कर्म नहीं कर सकेंगे और वर्तमान से चूकना यानी वंचित रहना समय नष्ट करना होगा।समय नष्ट करना ही जीवन नष्ट करना होता है क्योंकि जीवन और समय एक ही चीज के दो नाम है।वर्तमान में हमारा शरीर रहता है और मानसिक चिंतन भूतकाल या भविष्य में चलता रहता है फलतः समय नष्ट करते रहते हैं।
- जो वर्तमान में जी सके वह युवा मानसिकता वाला है क्योंकि जवानी ऐसी उमंग,मस्ती और ऊर्जा से भरी होती है कि आगा पीछा सोच भी नहीं पाती और वर्तमान के एक-एक पल का उपभोग और उपयोग करना चाहती है।जो अतीत में खोया रहता है वह बूढ़ी मानसिकता वाला होता है क्योंकि बूढ़े के पीछे लंबा अतीत होता है,जो कई प्रकार की घटनाओं और यादों से भरा होता है लेकिन भविष्य नहीं होता क्योंकि भविष्य में तो मौत खड़ी दिखाई देती है,अपना अंत दिखाई देता है।तो भूतकाल में खोए रहना बूढ़ी मानसिकता है।
- इसी प्रकार भविष्य में खोए रहना बचपना है,बाल मानसिकता है क्योंकि बच्चे का कोई अतीत नहीं होता सिर्फ भविष्य ही होता है इसलिए बच्चा भविष्य के रंगीन सपने देखता है तरह-तरह की कल्पनाएं और कामनाएं करता है,अनेक प्रकार के मंसूबे संजोता है।आदमी शरीर से बुड्ढा नहीं होता,चित्त की अवस्था से बूढ़ा होता है,मानसिक स्थिति से बूढ़ा होता है।जो वर्तमान में जीते हैं वे हमेशा युवा बने रहते हैं और समय का सदुपयोग करते रहते हैं।
- यह तो हुई मानसिक स्थिति के प्रकार।अब शारीरिक स्थल पर जिंदगी के मोटे तौर पर चार भाग होते हैं: बचपन,जवानी,प्रौढ़ता और बुढ़ापा।जन्म से लेकर जवानी में कदम रखने तक के जीवन को बचपन कहते हैं।इसके बाद एक वय संधिकाल आता है किशोर अवस्था का जो बचपन से जवानी को जोड़ता है।जवानी में कदम रखने के बाद जब तक मन में जोश और तन में शक्ति बनी रहती है तब तक की अवस्था को जवानी कहते हैं।इसके बाद दूसरा वय संधिकाल आता है प्रौढ़ अवस्था का जो जवानी को बुढ़ापे से जोड़ता है।चौथा भाग है बुढ़ापा और बुढ़ापा आकर फिर जाता नहीं है जैसे जवानी जाकर फिर लौटती नहीं,आती नहीं।बुढ़ापा मृत्यु के साथ समाप्त होता है इसलिए बुढ़ापा सबसे ज्यादा मौत के बारे में ही सोचता है अपने अंत के बारे में सोचता है और इसलिए यह शरीर के साथ-साथ मन से भी बुड्ढा हो जाता है।जिंदगी के ये चार भाग शारीरिक तल के हैं मानसिक तल के नहीं।मानसिक तल की बात ऊपर बताई जा चुकी है जिसकी बात शारीरिक तल से अलग है।
3.जिन्दादिली के साथ जिएं (Live with vivacity):
- मानसिक तल पर 25 साल का पट्ठा भी निराशावादी,पस्त हिम्मत और नाकारा मन का यानी मुर्दादिल हो तो बूढ़ा ही हुआ और 60 साल का बुड्ढा भी अगर उमंगभरा,साहसी और सृजनकारी मन रखता हो यानी जिंदादिल हो तो जवान ही होगा तभी तो ‘साठा सो पाठा’ कहा जाता है।उम्र शरीर की होती है विचारों की नहीं,मन की नहीं इसलिए यदि हम चाहें तो किसी भी उम्र तक जवान बने रह सकते हैं बशर्तें हम जीवन पर विचार करें,मौत पर नहीं।सृजन पर विचार करें,विसर्जन पर नहीं।उन्नति पर विचार करें पतन पर नहीं।जैसे हमारे विचार होंगे वैसा हमारा मन होगा,जैसा हमारा मन होगा वैसा हमारा तन होगा।हमें हमेशा जिंदा दिल रहना चाहिए,मुर्दा दिल नहीं क्योंकि मुर्दा दिल रहकर जीना भी कोई जीना है? याद रखें,मरना उतना बुरा नहीं है जितना मरे हुए जीना।जब तक जीना है तब तक जिंदा दिली से जीना होगा।
- जवानी सिर्फ वर्तमान में जीना चाहती है आगा पीछा सोचना नहीं चाहती।उसकी मान्यता होती है कि जवानी चार दिन की है।चार दिनों की चांदनी सोचना नहीं चाहती।चार दिनों की चांदनी और फिर अंधेरी रात।इसलिए युवा जल्दी-जल्दी सब कुछ भोग लेना चाहता है जी भरकर भोग लेना चाहता है इसीलिए प्रायः युवा अति करने लगता है।उनका स्वभाव अतिरेकवादी हो जाता है और यह अति उन्हें अनेक दुःख और झंझटों में फंसा देती है।
- एक बार हम जो आदत डाल लें वह धीरे-धीरे हमारा स्वभाव बन जाती है और हम उसमें पक्के होते जाते हैं और हमें मालूम ही नहीं हो पाता कि हम कितने बदलते जा रहे हैं।बुरा भी चूँकि हमारा हो जाता है तो हमें अच्छा लगने लगता है और हम यह मानने को तैयार नहीं होते कि यह बुरा है।जवानी एक जोश का नाम है,एक तेज बहाव का नाम है,रवानी का नाम है।यह जोश जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है तो होश खो जाता है इसीलिए जवानी में जोश तो होता है होश नहीं होता।जवानी मदहोश बना देती है और मदहोशी की हालत में जो भी काम होंगे वे ठीक नहीं होंगे।
- जोश के साथ होश का होना बहुत जरूरी होता है।बचपन एक जिज्ञासा है,बुढ़ापा एक अनुभव है तो जवानी एक पुरुषार्थ है,पराक्रम है एक अदम्य शक्ति है और जिसने इसका होशपूर्वक सदुपयोग किया उसी का जीवन सफल हो गया।हमें इस शक्ति का उचित उपयोग,सीमित उपयोग और हितकारी उपयोग करना चाहिए वरना बाद में पछताना ही हाथ रह जाता है।हमारी शक्ति,हमारी ऊर्जा जब श्रेय मार्ग पर,ऊपर की तरफ,विकास की ओर,अध्ययन-मनन-चिंतन की ओर बढ़ती है,उठती है तब वह ‘राम’ बन जाती है।और यही जब प्रेय मार्ग पर नीचे की तरफ बहती है तो ‘काम’ बन जाती है।युवावस्था में सही होश रखकर राम और काम में उचित सामंजस्य रखकर अति किए बिना युवा शक्ति का सदुपयोग करना ही दूरदर्शिता व बुद्धिमानी होगी।
- अब सोचने वाली बात यह है कि इस ऊर्जा का सदुपयोग करने वाला कौन है और उसको सही दिशा में कैसे लगाया जाए? इस ऊर्जा का सदुपयोग मन को नियंत्रित रखकर ही किया जा सकता है।मन को नियंत्रित करने के उपाय करके,मनोबल में वृद्धि करके ऊर्जा को सही दिशा में और संतुलित उपयोग किया जा सकता है।यानी यह मन ही है जिससे हम उर्ध्वगति की ओर बढ़ सकते हैं और यह मन ही अधोगति (पतन) की ओर ले जाने वाला है।अतः मन को साधना होगा,मन को साधने के उपाय करने होंगे,मन को बलपूर्वक दबाने के बजाय मन को सही दिशा में लगाना होगा अर्थात् मनोविग्रह के उपाय करने होंगे।
4.मनोनिग्रह कैसे करें? (How to do self-control?):
- यों तो मनोनिग्रह करने के उपाय के बारे में आर्टिकल पोस्ट किए हुए हैं उन्हें जानकर मनोनिग्रह अर्थात् मन को काबू में किया जा सकता है।वर्तमान में जीना ही मन की एकाग्रता है और मन को एकाग्र करके इसे सही दिशा में उपयोग किया जा सकता है।प्रसंगवश मन को एकाग्र करने के बारे में फुटकर रूप से बता देते हैं।मन को बुरे विचारों की ओर से रोकना अर्थात् बुरे विचारों को त्यागना और मन में अच्छे विचारों को करना अर्थात् अच्छे विचारों को धारण करना ही मनोनिग्रह है।
मन ज्योंही बुरे विचारों की तरफ जाए तो उन्हें कंपनी न दे तथा मन में अच्छे विचारों को धारण करें अर्थात् अच्छे विचारों को कंपनी दें तो धीरे-धीरे मन वश में होता चला जाता है। - मन में भले ही थोड़ी देर के लिए ही गंदे और बुरे विचार करें परंतु धीरे-धीरे यह गंदा होता चला जाता है।अतः बहुत सावधान,सतर्क और होश में रहने की आवश्यकता है।मन गंदे विचारों को ग्रहण करता है तो हमें सुकून मालूम देता है और यह पता ही नहीं चलता है कि ये गन्दे विचार हैं,बुरे विचार हैं।उदाहरणार्थ जब हम सोते हैं तो हमारी शारीरिक थकान को दूर करने के लिए यह आवश्यक है परंतु हम आवश्यकता से अधिक सोने की आदत बना लेते हैं तो यही गलत आदत हो जाती है।6-7 घंटे की नींद पर्याप्त होती है परंतु यदि हम इस समय को धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं और 6-7 के बजाय आठ-दस-बारह घंटे सोए पड़े रहें तो यह गलत आदत हो जाती है।
- इसी प्रकार छात्र-छात्राओं के लिए अच्छी आदत है समय पर अध्ययन करना,कड़ी मेहनत करके सही उत्तर लिखकर परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रयास करना।आलस्य व लापरवाही न करना,कड़ी मेहनत करना,अध्ययन-मनन व चिंतन करके अध्ययन में आने वाली अड़चनों को दूर करना।उन्नति,विकास के कार्य करना,अपनी प्रतिभा का विकास करने के प्रयत्न करना,अपनी सुप्त शक्तियों को जगाकर उनका सदुपयोग करना आदि अच्छी आदतें हैं और इनका अभ्यास करना ही चाहिए।
- शरीर पार्थिव तत्वों (पंच तत्वों) से बना है लेकिन मन-मस्तिष्क पार्थिव (भौतिक) तत्वों से नहीं बल्कि विचारों से होने के कारण भौतिक द्रव्यों द्वारा इसको वश में नहीं किया जा सकता है।शारीरिक रूप से थका हुआ व्यक्ति नींद की दवा लेकर सो सकता है और अपनी थकान दूर कर सकता है।परंतु मानसिक विकारों को दूर करने वाली दवा नहीं दे सकते हैं क्योंकि मन को निर्विकार करने वाली कोई दवा उपलब्ध नहीं है।मन के विकारों को दूर करने का एकमात्र उपाय है बुरे विचारों को रोकना और अच्छे विचारों को धारण करना।
- अध्ययन कार्य में व्यस्त रखकर,ध्यान-योग की क्रिया द्वारा,विवेकपूर्वक मन को नियंत्रित किया जा सकता है।अगर मन पहले से ही बुरी आदतों का अभ्यस्त है तो मन के विरुद्ध खड़ा होना होगा और मन से बुरे विचारों को त्यागना होगा तथा अच्छे विचारों को धारण करना होगा। बुरे विचारों का अभ्यस्त होने के कारण मन बुरे विचारों को त्यागने में तथा अच्छे विचारों को ग्रहण करने में आनाकानी करता है परंतु आप होश में रहेंगे,सतत निगरानी रखेंगे,ध्यान-योग का अभ्यास करेंगे तो मन को नियंत्रित किया जा सकता है।
5.छात्र-छात्राएं होशपूर्वक कार्य करें (Students should work consciously):
- छात्र-छात्राएं होशपूर्वक कार्य करें चाहे अध्ययन कार्य हो या अन्य दैनिक नित्य कर्म हों तो अपने समय का सदुपयोग कर सकेंगे,अपने लक्ष्य,अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे।होशपूर्वक कार्य करना ही अनासक्त कर्म करना है।अक्सर निष्काम भाव के विषय में एक प्रश्न उठाया जाता है कि बिना कामना के कर्म किया ही क्यों जाएगा? विद्यार्थी अध्ययन करते हैं अथवा अन्य कोई काम तभी करते हैं जब कोई उद्देश्य,कोई लक्ष्य,कोई प्रयोजन होता है और जब कोई काम किसी प्रयोजन से किया जाएगा तो उसके फल की इच्छा भी की ही जाएगी।फल प्राप्ति के लिए तो कर्म किया जाता है और संसार में कोई भी काम ऐसा नहीं होता जिसको फल प्राप्ति के लिए न किया जाता हो।हम कर्म किए बिना भी नहीं रह सकते क्योंकि कुछ ना करके खाली बैठे रहें तो यह बैठना भी तो कर्म ही हुआ।किसी काम को करना ही कर्म नहीं,बल्कि न करना भी कर्म होता है।अध्ययन करना कर्म है तो अध्ययन न करना भी तो मौज-मस्ती के रूप में कर्म करना ही हुआ।जागना कर्म है तो इसके विपरीत स्थिति याने सोना भी एक कर्म है।
- कर्म करने से बच नहीं सकते और बिना मतलब के,बिना किसी प्रयोजन के और बिना किसी फल की इच्छा के कोई कर्म किया नहीं जा सकता तो अनासक्त भाव से काम करने का तात्पर्य क्या हुआ? जरा गहरे में सोचें तो इन शंकाओं का उत्तर बड़ा सरल है कि कर्म भी करो,फल-प्राप्ति के लिए ही करो,प्रयोजन और उद्देश्य के साथ ही करो पर फल के प्रति आसक्ति रखे बिना करो ताकि जो भी फल मिले उसे सहज भाव से स्वीकार कर दुखी होने से बचे रह सको।दुःख से बचने का अन्य कोई उपाय नहीं है।
- अच्छे काम को करने के लिए धन संपदा के ढेर हों यह जरूरी नहीं।अन्य लोग (सहपाठी,मित्र आदि) भी आपका साथ दें यह भी जरूरी नहीं।शुभ कार्यों में अच्छे लोगों और भगवान की सहायता मिलती है अतः देर सबेर अच्छे कार्य सफल अवश्य होते हैं।मन में निराशा और हीन भावना न लाकर उत्साह और साहस से प्रयत्नशील बने रहना चाहिए।कोई भी फल हो वह पक जाने पर ही रस और स्वाद युक्त होता है और फल तो पकते-पकते ही पकता है।हमें पूरी निष्ठा तथा धैर्यपूर्वक शुभ कर्म करने में जुटे रहना चाहिए।इसका फल क्या होगा और कब पकेगा,यह भगवान पर छोड़ देना चाहिए।यदि नहीं छोड़ेंगे तो भी होगा तो वही,जो होना होगा।
- परंतु कुछ छात्र-छात्राएं हमेशा भूतकाल या भविष्य काल की चिंता में डूबे रहते हैं।उनके पास बड़िया मंसूबे,भव्य योजनाएं और ऊँचे किस्म के प्लान होते हैं जिनके ताने-बाने में उलझे होने से वे वर्तमान काल का सदुपयोग करने से वंचित रहते हैं।जितना गुजरी हुई बातों में उलझे रहना गलत है उतना ही भविष्य की चिंता में खोए रहना भी गलत है।भूत और भविष्य के चक्कर में वर्तमान को भूल जाना उचित नहीं।जो कल गुजर चुका वह अब कभी लौट कर नहीं आएगा और आने वाला कल कभी आता नहीं क्योंकि वह आता भी है तो ‘आज’ बनकर आता है यानी सच्चाई सिर्फ ‘आज’ है कल नहीं।भूतकाल में जीना ‘मोह’ है,भविष्य में जीना ‘लोभ’ है और वर्तमान में जीना ‘कर्मयोग’ है।वर्तमान में जीने वाला कर्म करने में विश्वास करता है उसके फल यानी भविष्य की चिंता नहीं करता।
- उपर्युक्त आर्टिकल में युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mindset?),चिर युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mentality?) के बारे में बताया गया है।
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6.कक्षा में शोर (हास्य-व्यंग्य) (Noise in Classroom) (Humour-Satire):
- टीना (प्रिंसीपल से):कक्षा में शोर क्यों हो रहा है?
- प्रिंसीपल:गुस्से में,छात्र-छात्राएँ टीचर का सिर खा रहे होंगे।
- टीनाःफिर ठीक है,मैं समझी थी किसी स्टूडेंट की पिटाई हो रही है।
7.युवा मानसिकता कैसे रखें? (Frequently Asked Questions Related to How to Keep a Youthful Mindset?),चिर युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mentality?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.आसक्ति को स्पष्ट करें। (Clarify attachment):
उत्तरःकिसी व्यक्ति,वस्तु अथवा घटना के प्रति मोह रखना,अत्यधिक जुड़ाव रखना आसक्ति है।आसक्ति ही मनुष्य को नीच और दुर्बल बनाने वाली है।
प्रश्न:2.अनासक्ति से क्या आशय है? (What do you mean by detachment?):
उत्तर:कर्मफल और इंद्रिय विषयों में मन न लगाकर कार्य करना ही अनासक्ति है।अनासक्ति रखने से व्यक्ति दुखी नहीं होता,बल्कि परिणाम को सहज भाव से स्वीकार करता है।जैसे छात्र-छात्राएं परीक्षा परिणाम के प्रति अनासक्ति रखेंगे तो अध्ययन में ही मन लगेगा।साथ ही सफलता या असफलता को सहज भाव से स्वीकार करेगा।
प्रश्न:3.क्या अनासक्तिपूर्वक कार्य करना संभव है? (Is it possible to act detachedly?):
उत्तर:कर्म करने की प्रेरणा के कई हेतु होते हैंःकिसी दाब-दबाव से,फल की इच्छा से,आज्ञा पालन से,कर्त्तव्य समझकर आदि से कर्म किए जा सकते हैं,किए जाते हैं।इनमें कर्त्तव्य समझकर कर्म करना ही अनासक्तिपूर्वक कर्म करना होता है जिसमें कर्म करने वाला परिणाम की चिंता-फिक्र नहीं करता है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mindset?),चिर युवा मानसिकता कैसे रखें? (How to Keep a Youthful Mentality?) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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