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How to develop skill in hindi

1.कौशल का विकास कैसे करें? का परिचय (Introduction to How to develop skill in hindi),दक्षता कैसे विकसित करें? (how to develop efficiency in hindi):

  • कौशल का विकास कैसे करें? (How to develop skill in hindi),दक्षता कैसे विकसित करें? (how to develop efficiency in hindi):दक्षता अर्थात् कौशल का विकास करना आज के छात्र-छात्राओं में एक बड़ी चुनौती है।आधुनिक शिक्षा पद्धति से छात्र-छात्राओं को ऐसा चस्का लग गया है कि वे केवल नौकरी करना पसन्द करते हैं।कोई भी स्किल सीखना तथा परिश्रम करना चाहते ही नहीं है।यही कारण है कि आधुनिक युग में बड़ी संख्या में बेरोजगारी विकराल समस्या धारण कर चुकी है।इन बेरोजगारों में अधिकांश पढ़े लिखे तथा डिग्रीधारी युवाओं की संख्या है।इस आर्टिकल में स्किल का विकास छात्र-छात्राओं में कैसे किया जाए इसके बारे में बताया गया है।
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via https://youtu.be/j-g-_YA8Beo

2.कौशल का विकास कैसे करें? (How to develop skill in hindi),दक्षता कैसे विकसित करें? (how to develop efficiency in hindi):

  • मात्र पुस्तकों का अध्ययन करना,परीक्षा पास कर लेना,पढ़ा हुआ याद कर लेने से कौशल का विकास नहीं किया जा सकता है।बालक यदि परिश्रम से जी चुराता हो,स्वयं का कार्य भी दूसरों से करवाता हो या करवाने की कामना रखता हो,आवारागर्दी या कुसंग पसंद करता हो ऐसी शिक्षा अधूरी ही है और इससे कौशल का विकास नहीं हो सकता है।
  • उपर्युक्त बातें या आदतें बालकों में पड़ जाए तो बालक धीरे-धीरे आलसी होते जाते हैं।वे हर काम के लिए यह इंतजार करते रहते हैं कि कोई ओर उनका यह कार्य कर दे।उनको स्वयं हाथ पैर न चलाना पड़े,काम आगे बढ़कर न करना पड़े।यहां तक कि कुछ बालकों की आदत तो यह हो जाती है कि वे अपना गृह कार्य अन्य बालको से करवाते हैं या दूसरे बालकों से नकल करते हैं।इस तरह से बालक पुरुषार्थहीन बनता जाता है और कोई भी कार्य करने में उनकी दिलचस्पी नहीं रहती है।
  • जो विद्यार्थी आगे बढ़कर कार्य करते हैं।हर कार्य को चाहे वह स्वयं का हो,दूसरों का हो या घर का हो उसे तत्परतापूर्वक व रुचि से करते हैं।ऐसे विद्यार्थी आगे चलकर कर्मठ होते हैं,तेजस्वी होते हैं।ऐसे बालकों से परिवार,समाज व शिक्षा संस्थानों के अध्यापक खुश होते हैं तथा अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं कि उनके प्रयास से इस तरह के होनहार विद्यार्थी तैयार हो सके।
  • जिन विद्यार्थियों के जीवन पुरुषार्थ और कर्मठ युक्त हो जाता है वे अपने समय का सदुपयोग करते हैं तथा जो विद्यार्थी समय का सदुपयोग करना सीख जाता है ऐसे विद्यार्थी विवेकयुक्त,विचारशील,सद्गुणी और प्रगतिशील बन जाते हैं।ऐसे ही विद्यार्थी आगे जाकर संसार में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं और सफलता अर्जित करते हैं।इसके विपरीत जो विद्यार्थी अपने समय को आवारागर्दी,कुसंग या बेकार के कार्यों में,मटरगश्ती में बिताते हैं तो समझना चाहिए कि उन्होंने अपने आपको पतन के गड्ढे में डाल दिया है और अपना भविष्य अंधकारमय बना लिया है।ऐसे बालकों के जीवन में किसी प्रकार के कौशल का निर्माण नहीं होता है और वे हमेशा दूसरों पर आश्रित रहकर अपना जीवनव्यापन करते हैं,स्वयं अपने बलबूते पर खड़े होने का प्रयास नहीं करते हैं।
  • सद्गुणी,प्रगतिशील,सदाचरण युक्त विद्यार्थियों का जीवन,चिन्तन और व्यवहार उच्चकोटि का हो जाता है।जबकि जो विद्यार्थी आलसी होते हैं,अपने समय को बेकार के कार्यों में लगाते हैं उनका समय क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार जैसे दुर्गुणों से युक्त हो जाता है।ऐसे विद्यार्थी यह भूल जाते हैं कि परिवार,समाज व देश के प्रति उनका उत्तरदायित्व क्या है?
  • यदि विद्यार्थी अपने अंदर कौशल का निर्माण करना चाहे तो अध्ययन करने के पश्चात जो समय बचता है उस समय को घरेलू चीजें जो बेकार हो जाती है उनकी टूट-फूट की मरम्मत करने में लगा सकता है इससे उसे नये कौशल की जानकारी तो होती ही है घर की अर्थव्यवस्था भी ठीक रहती है क्योंकि जिन चीजों में थोड़ी सी खराबी आ जाती है और वे काम की नहीं करती है तो घरवालों को नई चीज खरीदनी पड़ती है।परन्तु हम सूझबूझ और अपने कौशल से उसे ठीक कर देते हैं तो घर की अर्थव्यवस्था ठीक रहती है और पुरानी चीज नई हो जाती है।जैसे कपड़े कहीं से फट गया हो उसको सिलना,कुर्सी टूट गई हो उसको ठीक करना,बिजली का कोई उपकरण खराब हो गया हो उसे ठीक करना।इस प्रकार की घर में बहुत सी चीजें हैं जो ठीक हो सकती है।इस प्रकार छोटे-छोटे मरम्मत कार्य करने से केवल पैसे की बचत ही नहीं होती है बल्कि व्यक्तिगत कुशलता,अभ्यास और दिमाग का स्तर बढ़ता है।ज्ञान केवल पुस्तकों से ही नहीं मिलता है। बल्कि ऊपर बताए गए कार्यों से प्राप्त कौशल भी पु पुस्तकीय ज्ञान से कम नहीं समझा जा सकता है।
  • माता-पिता,अभिभावक,समाज और शिक्षा संस्थानों का कर्त्तव्य है कि जो विद्यार्थी अच्छे संग में रहते हैं,अच्छा कार्य करते हैं,शिष्टाचार से बात करते हैं,सादगी में रहना पसंद करते हैं,ईमानदार हैं तथा सत्य बोलते हैं एवं घर के छोटे-मोटे कार्यों को सुधारते हैं उनका उत्साह बढ़ाएं एवं उनकी प्रशंसा करें जिससे विद्यार्थियों को सद्गुण,सभ्यता,शिष्टाचार,संस्कार और हुनर अर्थात् कौशल सीखने की प्रेरणा मिले और इसे वे अपने जीवन का अंग बनाएं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में कौशल का विकास कैसे करें? (How to develop skill in hindi),दक्षता कैसे विकसित करें? (how to develop efficiency in hindi) के बारे में बताया गया है।
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