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How to Develop Right Attitude to Study?

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1.अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें? (How to Develop Right Attitude to Study?),अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण (Right Approach to Study):

  • अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें? (How to Develop Right Attitude to Study?) क्योंकि अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण ही हमें हमारे जीवन लक्ष्य तक पहुंचा सकता है।यदि अध्ययन करने का दृष्टिकोण सही नहीं होगा तो हम येन-केन प्रकारेण,किसी जायज-नाजायज तरीके से डिग्री हासिल करना चाहेंगे।और आज यही हो रहा है,छात्र-छात्राएं रुपयों के बल पर डिग्री हासिल कर रहे हैं।
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2.अधिकांश छात्र-छात्राओं के पढ़ने का तरीका (The way most students read):

  • आज अधिकांश छात्र-छात्राएं केवल जॉब के लिए,परीक्षा को उत्तीर्ण करने,मनोरंजन के लिए या उथले,घिसे-पिटे तरीके,परंपरागत तरीके से पढ़ते हैं।नतीजा यह है कि डिग्री हासिल करने के लिए वे अध्ययन करना जरूरी नहीं समझते हैं।कॉलेज में नामांकन करा लो,फीस चुका दो और येन-केन-प्रकारेण डिग्री हासिल कर लो।परीक्षा भी नकल करके,अनुचित साधनों का प्रयोग करके उत्तीर्ण कर लेते हैं।
  • हद तो यह है कि इन गलत हरकतों,गलत गोरखधंधों को रोकने के लिए सरकारें भी सोई हुई हैं।उन्हें अपनी सत्ता को बचाए रखना,वोट बैंक की चिंता रहती है।हमने पहले भी एक आर्टिकल पोस्ट किया हुआ है कि विश्वविद्यालय किस तरह डिग्री की रेवड़ियां बांट रहे हैं।जो लोग सक्षम हैं,समाज व देश का नेतृत्व कर रहे हैं,वे लोग भी कान में तेल डालकर सोए हुए हैं,क्योंकि सांप की बाँबी में हाथ कौन दे? कुछ छात्र-छात्राएं ऐसे भी है जो केवल परीक्षा को उत्तीर्ण करने,जॉब करने के लिए अध्ययन करते हैं,गलत तरीके,अनुचित तरीके नहीं अपनाते हैं।परंतु केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने,डिग्री हासिल करने,जाॅब प्राप्त करने से उनके जीवन का रूपांतरण कैसे होगा? व्यक्तित्व का,चरित्र का निर्माण कैसे हो सकता है? जब तक चरित्र का निर्माण नहीं होगा तब तक जीवन में आने वाली समस्याओं,अवरोधों,रूकावटों,बाधाओं का सामना कैसे किया जा सकता है।
  • इसका अर्थ यह नहीं है की परीक्षा के लिए,जॉब के लिए अध्ययन नहीं करना चाहिए।इसका कुल मतलब इतना ही है कि आप परीक्षा के लिए पढ़ें,जाॅब प्राप्त करने के लिए भी पढ़ें परंतु साथ में अपने चरित्र का निर्माण भी करें।
  • आपका यह प्रश्न हो सकता है कि आजकल भौतिक विषय ही पढ़ाए जाते हैं,नैतिक,धार्मिक व आध्यात्मिक विषय के बारे में कुछ नहीं पढ़ाया जाता है।ऐसी स्थिति में गणित,विज्ञान,भौतिक विज्ञान आदि जैसे विषयों से चरित्र का निर्माण कैसे हो सकता है? अगर अलग से नैतिक विषय,व्यावहारिक व जीवनोपयोगी विषयों को पढ़े तो फिर परीक्षा की तैयारी के लिए (भौतिक विषयों) पढ़ाए जाने वाले सब्जेक्ट्स कब पढ़ेंगे और उसके लिए समय कैसे व कहाँ से मिलेगा।
  • कुछ छात्र-छात्राएं पुस्तकों को पढ़ते रहते हैं,सतही तौर पर व उथले तरीके से पढ़ते रहते हैं।खाली समय में या तो गप्पे लगाने या इधर-उधर घूम फिर कर,सोशल मीडिया पर या दोस्तों के साथ घूमने-फिरने में व्यतीत कर देते हैं।कुछ छात्र-छात्राएं मनोरंजन के दृष्टिकोण से पढ़ते हैं।हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप बिल्कुल पढ़ाकू ही बन जाए और दीन-दुनिया से बिलकुल बेखबर रहें।दुनिया में क्या हो रहा है,उसकी तरफ बिल्कुल ध्यान ना दें।कुछ समय का मनोरंजन करना तो ठीक है।इसके अलावा यदि आप समय प्रबंधन करके एकाग्रचित्त के साथ पढ़ेंगे तो कम समय में ही बहुत कुछ और उपयोगी अध्ययन कर सकेंगे।

3.गणित जैसे विषयों का अध्ययन कैसे उपयोगी है? (How are the study of subjects like mathematics useful?):

  • यदि आपको फिर भी ऐसा महसूस होता है कि हमें तो व्यावहारिक ज्ञान अर्जित करने के लिए अन्य पुस्तकें पढ़ने का समय नहीं मिलता है।फिर भी आप गणित,विज्ञान एवं अन्य विषयों को पढ़ते हुए अपने चरित्र का विकास कर सकते हैं।बस आपका अध्ययन करने,पढ़ने का नजरिया सही होना चाहिए,अध्ययन करने की मंशा सही होनी चाहिए।
  • उदाहरणार्थ कुछ विद्यार्थी सवालों या टॉपिक को केवल पढ़ते जाते हैं और कुछ समय बाद उसकी पुनरावृत्ति करते हैं तो उन्हें मालूम होता है कि उन्हें कुछ याद नहीं है।अतः किसी भी विषय को समझकर,नोट्स बनाकर पढ़ें और अपने चरित्र का निर्माण करने के उद्देश्य से पढ़ें।आप सवाल को समझेंगे,यदि वह हल नहीं हुआ तो उस पर विचार-चिंतन करेंगे,अपने मन को एकाग्र करके अध्ययन करने,सवाल हल करने का प्रयास करेंगे,सवालों को हल करने का अभ्यास करेंगे,एक तरीके से हल नहीं होता है तो उसके अन्य विकल्पों पर पर विचार करेंगे।
  • इस तरह गणित का अध्ययन करने से सहज में आपकी एकाग्रता सधने लगती है,बार-बार अभ्यास करने से कठिन परिश्रम करने का गुण विकसित होता है,सवाल हल न होने पर जब उस पर विचार करते हैं तो चिंतन-मनन करने की शक्ति बढ़ती है,कल्पना शक्ति और सृजनात्मकता का विकास होता है।जब आप प्रयत्न करते हैं और सवाल हल हो जाता है तो आपका आत्म-विश्वास बढ़ता है।पुस्तकों पर निर्भरता (पुस्तकीय ज्ञान) कम होती है तथा स्वयं के चिंतन-मनन पर विश्वास बढ़ता है।
  • यदि प्रयास करने पर भी सवाल या प्रश्नावली समझ में नहीं आती है तो आप अपने मित्रों या सहपाठियों से तर्क-वितर्क करते हैं जिससे आप में तर्क-वितर्क और मौलिकता का विकास होता है।इसके अलावा सत्य और असत्य का निर्णय करने की योग्यता का विकास,शीघ्रता से समझने तथा तथ्यों का विवेचन करने की क्षमता का विकास,नियमित रूप से पढ़ने पर आदतों में नियमितता,स्मरण शक्ति का विकास,निष्कर्षों के सत्यापन के प्रति विश्वास,स्पष्टता एवं शुद्धता,क्रियात्मकता एवं कल्पना का समन्वय आदि अनेक गुणों का विकास हो सकता है।
  • तो देखा आपने गणित को हल करने,सवाल हल करने,प्रमेयों और सिद्धांतों हल करने से चरित्र का निर्माण कैसे होता है।शर्त यही कि आपका गणित को पढ़ने का नजरिया सही होना चाहिए।वैसे भी गणित पढ़ने का अर्थ यह नहीं है कि इससे व्यावहारिक जीवन में लाभ हो,क्योंकि अधिकतर लोगों के व्यावहारिक जीवन में उच्च गणित के सिद्धांतों से कोई मतलब नहीं पड़ने वाला होता,फिर भी उसे अच्छे शिक्षण का अंग माना गया है।इसका कारण है कि गणित की शिक्षा से एक विशेष मानसिक विकास होता है,जैसा कि ऊपर बताया गया है।
  • इसी प्रकार अन्य विषयों को सही दृष्टिकोण से पढ़ा जाएगा तो उससे आपको व्यावहारिक लाभ अवश्य होगा।व्यावहारिक ज्ञान की पुस्तकें,नैतिक,धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ें बिना भी आपके उत्तम चरित्र का विकास होता है।परंतु यदि आप केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने,जाॅब प्राप्त करने या डिग्री हासिल करने के दृष्टिकोण से ही पढ़ेंगे तो आप उस विषय के व्यावहारिक लाभों से वंचित हो जाएंगे।
  • यदि आपमें टाइम मैनेजमेंट का पालन करने का गुण है तो समय की कमी नहीं खलेगी।आपको व्यावहारिक,नैतिक व अन्य पुस्तकों को पढ़ने,समझने,चरित्र का निर्माण आदि के लिए समय मिल जाएगा।छात्र जीवन ही ऐसा जीवन है जिसमें आप अध्ययन करके अपने गुणों का विकास कर सकते हैं।आप सही नजरिए से ज्ञान साधना के लिए,उत्तम चरित्र का निर्माण करने के लिए अध्ययन करेंगे तो आपको आनंद महसूस होगा,आपके जीवन का निर्माण होगा।

4.सही नजरिया विकसित करें (Develop the right attitude):

  • एक कोचिंग संस्थान ने अपने दो शिक्षकों को एक गांव में कोचिंग खड़ा करने के लिए भेजा।तीन दिन बाद एक शिक्षक ने कहा मैं शीघ्र लौट रहा हूं क्योंकि यहाँ कोई भी कोचिंग नहीं है,कोचिंग खोलने का ग्राउंड नहीं है।दूसरे शिक्षक ने कहा कि यहां कोई कोचिंग नहीं है अतः पढ़ाने के लिए पूरा फील्ड खाली है और यहाँ अन्य शिक्षकों की भी जरूरत है।आगे भी असीमित संभावनाएं हैं।
  • हमें कोई भी काम दिया जाता है या हम कोई भी काम (अध्ययन वगैरा) करने बैठते हैं तो उसमें मिलने वाली सफलता और असफलता बहुत कुछ उसके प्रति हमारे नजरिए पर निर्भर करती है।यदि हम शुरू से ही मान लें कि ‘इसको करने से क्या फायदा,यह तो होगा ही नहीं’ तो न वह काम पूरा होगा,न उसका अच्छा परिणाम मिलेगा।लेकिन यदि हम सही नजरिए से काम करना शुरू करते हैं,मन में उसका सुफल पाने की आशा लेकर प्रयत्न करते हैं-तो निस्सन्देह सफलता अवश्य मिलती है।पहला शिक्षक,कोचिंग के काम को सतही तौर पर देखकर,निराश हो गया और वापस लौटने लगा।लेकिन दूसरे शिक्षक ने आशा और विश्वास के साथ काम शुरू किया-अपने उद्देश्य को सफल बनाने की कोशिश की और अधीर नहीं हुआ,बल्कि लगातार प्रयत्न करता रहा- तो उसे आशातीत सफलता मिली।कारण यही था कि उसने कार्य को सार्थक नजरिये से देखा।
  • यदि मनुष्य दृढ़ निश्चय कर ले तो ऐसी रुकावटें,उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने से रोक नहीं सकती।बल्कि इससे तो उस व्यक्ति के अनुभवों में और भी बढ़ोतरी होती है।वह व्यक्ति और भी ज्यादा परिपक्व हो जाता है।जार्ज का उदाहरण बताता है कि यदि किसी काम को करने के लिए उचित नजरिया बना लिया जाए और उसे पूरी लगन से किया जाए तो एक न एक दिन सफलता अवश्य आपके कदम चूमेगी।जार्ज ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था कि वह बड़ा होकर कोचिंग व्यवसाय को ही अपनाएगा।वह ऐसा कोई भी क्षण नहीं खोना चाहता था,जिसमें उस व्यवसाय के बारे में कुछ भी जानने-समझने के लिए मिलता हो।वह ऐसे प्रत्येक अवसर को पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है।
  • जॉर्ज जिस कोचिंग में काम करता था,वह सौंपे गए कार्य को नहीं करता था बल्कि वह उस हरेक काम को करता था,जिसको करने की उसमें क्षमता होती और अनुभव होता।उसने कोचिंग में किसी भी कार्य को छोटा-बड़ा नहीं समझा।कभी किसी काम को करने में संकोच नहीं किया।आजकल के युवा जिन कामों को करने में संकोच करते हैं,वह उन तमाम कामों को बिना झिझक कर डालता था।झाड़ू लगाना,सफाई करना या आग जलाना- उसके लिए सब एक जैसा था।उसकी नौकरी (चपरासी) तो छोटी थी,लेकिन उसने महत्त्वाकांक्षा सदा ऊंची ही रखी।उसका यह विचार बना रहा कि समय और कार्य भले ही कैसा भी हो,आदमी के विचार और सोच सदैव ऊंचे रहने चाहिए।
  • उसका काम केवल कोचिंग की सफाई व शिक्षकों को पानी पिलाने का था।लेकिन उसने अवसर का पूरा लाभ उठाया।पुस्तकें पढ़ने की उसकी इच्छा होती थी।कोचिंग की लाइब्रेरी से पुस्तकें लेकर पढ़ता रहता था (खाली समय में,रात को)।कोचिंग के संचालक को कोचिंग चलाने के काम को बड़े ध्यान से देखता,शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके को बड़े गौर से देखता।वह जानना चाहता था की कोचिंग का संचालन कैसे किया जाता है,शिक्षकों को पढ़ाने में किन-किन बातों का ध्यान रखना होता है,इन सभी बातों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करता जा रहा था।वह हर उस बात को जानने का प्रयास करता था,जो कोचिंग के लिए आवश्यक थी।
  • उस कोचिंग के पास एक थिएटर (सिनेमा) हाल था।वहाँ काम करने वाले कई कलाकारों से जाॅर्ज का परिचय हो गया था,यदि वह चाहता तो अपने खाली समय में बिना किसी खर्च के फिल्म देख सकता था।लेकिन उसने समय को इस तरह के मनोरंजन में व्यर्थ गँवाना उचित नहीं समझा।वह सोचता था कि इससे मेरे जीवन के वास्तविक उद्देश्य में रुकावट आ सकती है।थोड़े समय में वह गणित का ज्ञान प्राप्त करने में सिद्धहस्त हो गया,तब उसने संचालक को गणित पढ़ाने का प्रस्ताव रखा।संचालक ने उसका परीक्षण करके कोचिंग में गणित पढ़ाने का अवसर दिया।उसने उस अवसर का भरपूर लाभ उठाया।उसने सारा ध्यान कोचिंग में आने वाले छात्र-छात्राओं को पढ़ाने पर ही केंद्रित कर दिया।और फिर एक दिन उसने उस कोचिंग को खरीद लिया।
  • जॉर्ज का उदाहरण बताता है कि जब एक बार आपका नजरिया किसी काम के प्रति सार्थक रूप से बन जाता है और आप तमाम बाधाओं को पार करके अग्रसर होते हैं-तो सफलता मिलनी निश्चित है।किसी काम के प्रति आपका नजरिया क्या है,यह बहुत छोटी-छोटी बातों से,आपके व्यवहार,काम करने के तरीके,आपकी जीवन शैली और यहां तक कि आपके पहनावे तक से पता चल जाता है।जब आप किसी नौकरी के लिए जाते हैं तो हर मालिक आपसे बात करके,तरह-तरह के प्रश्न करके वास्तव में यही जानना चाहता है कि आप योग्य तो हैं और भी कई योग्य लोग लाइन में खड़े हैं-पर काम के प्रति आपका नजरिया क्या है और क्या वह हमारी कंपनी के लिए सार्थक है?
  • महत्त्वपूर्ण बात यह नहीं है कि पैसा (वेतन) कितना मिलता है और काम क्या है? महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि आप काम करें,उस काम में सफलता प्राप्त करने का नजरिया बनाएं।वेतन और पद आपकी सफलता अपने आप दिलाएंगे।बहुत से युवक कम वेतन के कारण या पद छोटा होने के कारण काम नहीं करते।ऐसा सोचना गलत है।आपको अपनी क्षमताओं की आरंभिक मार्केट वैल्यू पता होनी चाहिए।कुछ इंसान अपनी योग्यता,क्षमता के अनुसार काम पाता है,परंतु अधिकांश युवाओं और लोगों को सबसे नीचे की सीढ़ी पर पैर रखकर ही ऊपर चढ़ना होता है।यदि इस नजरिए से काम करेंगे,तो मंजिल अवश्य मिलेगी।
  • आप अभी विद्यार्थी हैं,आपके सामने पूरा जीवन है।इस विद्यार्थी जीवन में अध्ययन का सही दृष्टिकोण विकसित कर लिया,अपने चरित्र का निर्माण कर लिया तो पूरा जीवन आनंद और सुख से गुजरेगा।विद्याध्ययन में जो कष्ट सहन करता है,वह अपने व्यक्तित्व को गढ़ता है।विद्यार्थी जीवन पूरे जीवन की नींव है,इस जीवन को सोने-खाने,मौज-मजा करने आदि में ही गुजार दिया तो पूरे जीवन भर कष्ट,कठिनाइयों और संघर्षों से गुजारना पड़ेगा और शायद आप उन कष्ट,कठिनाइयां व संघर्षों को सहन ही नहीं कर पाएं,क्योंकि नींव कमजोर होती है तो भवन जल्दी भरभराकर गिर जाता है।विद्याध्ययन करना तप और साधना है।इसलिए जब जागे तभी सवेरा मानकर अपने नजरिए को विकसित करें।अध्ययन करने का सही उद्देश्य समझें और उसके अनुसार ही अपने आप को ढालना प्रारंभ कर दें।
  • का वर्षा जब कृषि सुखाने।समय चूकि पुनि का पछिताने के अनुसार समय व्यतीत होने पर पानी सूखी फसल को हरा-भरा नहीं कर सकता और समय व्यतीत होने के बाद पश्चाताप करने का कोई फायदा नहीं है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें? (How to Develop Right Attitude to Study?),अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण (Right Approach to Study) के बारे में बताया गया है।

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5.कोचिंग की साख नहीं बढ़ी (हास्य-व्यंग्य) (Coaching’s Credibility Do Not Increase) (Humour-Satire):

  • टिंकू:पापा,आपने इस कोचिंग की शुरुआत कब की थी?
  • पापा:यही 3 साल पूर्व।
  • टिंकू:लेकिन इसमें छात्र-छात्राओं की स्ट्रेंथ (साख) तो बढ़ ही नहीं रही है।
  • पापा:तुम्हें कैसे पता?
  • टिंकू:मैं रोज कोचिंग के बाहर खड़े होकर छात्र-छात्राओं को भड़काता हूं कि यह कोचिंग तो खराब है तो वे भाग जाते हैं,वापस चले जाते हैं।

6.अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Develop Right Attitude to Study?),अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण (Right Approach to Study) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सही दृष्टिकोण से विद्यार्थी में किन गुणों का विकास होता है? (What qualities do students develop from the right perspective?):

उत्तर:नियमितता,कठिन परिश्रम,समय की पाबंदी,शुद्धता,स्वच्छता,क्रियात्मकता,धैर्य,समय के प्रति निष्ठा,स्पष्ट कथन,एकाग्रता आदि अनेक गुणों का विकास होता है।

प्रश्न:2.विद्या अर्जित करने का क्या उपाय है? (What is the way to acquire knowledge?):

उत्तर:विद्यार्थी सही दृष्टिकोण रखकर ही विद्या अर्जित कर सकता है।विद्या स्वर्ण है,परंतु भूमि की मिट्टी और मलिनता से लथपथ (कठिन परिश्रम),जब तक प्रयोग की भट्टी में उसे तपाया न जाए उस पर कान्ति और आभा नहीं आती और जब तक कांति ना आए तब तक संसार में उसका उचित मूल्य नहीं लगता।

प्रश्न:3.विद्वता का क्या महत्त्व है? (What is the importance of piercing?):

उत्तर:विद्वता युवकों को संयमी बना देती है।यह बुढ़ापे का आराम है,निर्धनता में धन का काम करती है और धनवानों के लिए आभूषण का काम करती है।
(Learning make young men temperate,is the comfort of old age,standing for wealth with poverty and saving as an ornament to riches.)

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण कैसे विकसित करें? (How to Develop Right Attitude to Study?),अध्ययन करने का सही दृष्टिकोण (Right Approach to Study) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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