How to develop creativity in hindi
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1.सृजनात्मकता कैसे विकसित करें का परिचय ( Introduction to How to develop creativity in hindi),रचनात्मकता के प्रकार क्या हैं? (What are types of creativity?):
- सृजनात्मकता कैसे विकसित करें? (How to develop creativity in hindi):सृजनात्मकता से तात्पर्य है कि कुछ नवीन चीज की खोज,अनुसंधान करना।बालकों की सुप्त प्रतिभा को पहचानते हुए उसे विकसित करने पर आगे जाकर वे सृजनशील बनते हैं।इसलिए बाल्यकाल से बालकों पर माता-पिता,अभिभावक और शिक्षकों को पैनी नजर रखनी चाहिए।
via https://youtu.be/cDrqmQsL9Es
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2.सृजनात्मकता कैसे विकसित करें? (How to develop creativity in hindi),रचनात्मकता के प्रकार क्या हैं? (What are types of creativity?):
- हर बालक में कुछ न कुछ प्रतिभा होती है यदि उस प्रतिभा को तराशा,निखारा,उभारा जाए तो उनमें सृजनात्मकता का विकास होता है।सृजनात्मकता का अर्थ केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं बल्कि व्यावहारिक ज्ञान,चिन्तन-मनन करने और उसको साकार रूप प्रदान करने भी है।यह आवश्यक नहीं है कि बालकों में अध्ययन के क्षेत्र में ही सृजनात्मकता का विकास हो सकता है बल्कि अध्ययन के अलावा भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें उनकी सृजनात्मकता प्रतिभा होती है।जैसे:खेल,भजन,संगीत,चित्रकारिता,मूर्तिकला इत्यादि में भी उनकी सृजनात्मकता विकसित हो सकती है।
- सृजनात्मकता और चिन्तन-मनन में आपस में सम्बन्ध होता है।जो छात्र-छात्राएं सृजनशील होते हैं उनमें चिन्तन-मनन करने की क्षमता का भी विकास होता है।इसका दूसरा पहलू भी है कि यदि बालक-बालिकाओं में चिन्तन-मनन करने की क्षमता होती है वे सृजनशील होते हैं।दरअसल किसी भी नई चीज की खोज करने के बौद्धिक शक्ति अर्थात् चिन्तन-मनन करने की क्षमता का विकास होता है तभी वे ऐसा कर सकते हैं।
- वस्तुतः बालक-बालिकाओं की तरफ माता-पिता, अभिभावक तथा शिक्षक व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं देते हैं अतः उनकी सृजनात्मकता क्षमता का विकास नहीं हो पाता है।
- आधुनिक युग में माता-पिता,अभिभावक धनार्जन करने में इतने व्यस्त रहते हैं कि वे बालकों की तरफ ध्यान ही नहीं दे पाते हैं।धनार्जन करके वे अपने तथा बालकों के लिए अधिक से अधिक भौतिक सुविधाओं को जुटाने में लगे रहते हैं।अपनी आवश्यकताओं (Requirements),सुविधाओं (facilities) की पूर्ति करने तक तो ठीक है परन्तु भोग-विलास (luxury) के साधन जुटाने का कोई अन्त नहीं है।माता-पिता को इतना धन तो जुटाने का प्रयास करना ही चाहिए कि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन सकें।ओर इसके लिए झूठ-पाखण्ड,बेईमानी करने की आवश्यकता नहीं है और न ही बहुत अधिक व्यस्त रहने की आवश्यकता है कि वे अपने बच्चों की तरफ ध्यान देने के लिए समय ही नहीं निकाल सकें।भोग-विलास की वस्तुएं जुटाने का कोई अन्त नहीं है।वैसे भी बालक-बालिकाओं की प्रतिभा कष्टों,विपत्तियों,अभावों में निखरती है।विद्यार्थीकाल तप और परिश्रम करने का समय होता है,साधना करने का समय होता है।इसलिए उन्हें भोग-विलास की वस्तुओं का आदी बनाना उचित नहीं है।
- सृजन का अर्थ होता है रचना,निर्माण।जिन विद्यार्थियों तथा मनुष्यों में सृजनात्मक योग्यता होती है उनमें सहनशीलता,शालीनता तथा रचनात्मकता होती है।
- सृजनात्मकता का अर्थ केवल किताबी ज्ञान प्राप्त करना नहीं होता है बल्कि उनमें रचनात्मकता,परिवर्तनशीलता,उपलब्धि एवं किसी भी कार्य को करने की कुशलता प्राप्त करना होता है।
- विद्यार्थी जीवन से यदि बालकों में सर्जनात्मक योग्यता का विकास किया जाए तथा बालकों की जिस क्षेत्र में रुचि व लगन हो उसे प्रोत्साहित किया जाए तथा उसका विकास करने पर ध्यान दिया जाए तो इससे उनमें निर्णय क्षमता का विकास होता है और वे अपनी समस्याओं,कमजोरियों,अज्ञानता का समाधान आसानी से कर लेते हैं।
- प्रत्येक विद्यार्थी की रुचि,मनोवृत्ति,विचारधारा भिन्न-भिन्न होती है।किसी विद्यार्थी की विज्ञान में,किसी की खेल में,किसी की संगीत में,किसी की अध्यात्म में रुचि होती है और वे इन क्षेत्रों में कुछ नवीन खोज प्रस्तुत करते हैं जिसे वे शिक्षकों,अभिभावकों तथा माता-पिता के समक्ष रखते हैं।उनकी इस प्रतिभा,योग्यता को पहचानकर उसका विकास किया जाए।
- जो बालक वस्तुओं की उपयोगिता,आर्थिक पहलू में रुचि प्रकट करते हैं ऐसे बालक भौतिक आवश्यकताओं पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।ऐसे बालक व्यावहारिक शिक्षा को पसंद करते हैं।उन्हें सैद्धान्तिक और आदर्शवादी शिक्षा में रुचि नहीं होती है।परमात्मा में उनकी आस्था भी होती है तो वे भौतिक संपत्ति,धन-संपत्ति को अर्जित करने की मंशा रखते हैं।
- कुछ बालक आर्थिक क्षेत्र,व्यापार,विज्ञापन आदि को अपने सिद्धांतों के विपरीत मानते हैं उनकी रुचि सामाजिक क्षेत्र के रचनात्मक कार्यों में होती है।
- कुछ विद्यार्थियों की रुचि धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में होती है।वे शुरू से ही भजन,पूजन,धार्मिक तत्त्वों को अपने जीवन में उतारने में रुचि रखते हैं।उन्हें विश्व-ब्रह्माण्ड में परमात्मा की छवि दिखाई देती है।प्रारम्भ से ही वे ध्यान,उपासना,चिन्तन,मनन में रुचि व जिज्ञासा रखते हैं।
- माता-पिता,अभिभावक का सबसे प्रमुख कर्त्तव्य है अपने बालक-बालिकाओं को योग्य बनाना और उनमें संस्कारों का निर्माण करना,उनको शिक्षित करना,उनकी सृजनात्मक क्षमता का पता लगाकर उसको निखारना,तराशना और उभारना।यदि वे उनकी सृजनात्मक क्षमता का विकास नहीं भी कर सकें तो किसी योग्य गुरु अथवा संस्थान का पता लगाकर वहाँ उनको प्रवेश दिलाना,प्रशिक्षण दिलाना।
- उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक बालक की भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में रचनात्मक क्षमता होती है।यह आवश्यक नहीं है कि सृजनात्मक क्षमता को शिक्षा संस्थानों में ही तराशा जाए।माता-पिता,अभिभावकों का भी यह कर्त्तव्य है कि सृजनात्मक क्षमता की पहचान कर उसको विकसित करने में योगदान दें।यदि माता-पिता,अभिभावक व शिक्षण संस्थानों को ऐसे हुनर को विकसित करने का ज्ञान व कौशल नहीं हो तो उन बालकों की सृजनात्मक क्षमता को विकसित करने के लिए योग्य गुरु या प्रशिक्षण संस्थान का पता लगाकर वहां बालक की योग्यता को विकसित करने हेतु प्रवेश दिलाया जाए।ऐसी सृजनात्मक क्षमता को अतिरिक्त समय में विकसित किया जा सकता है।बालकों की सृजनात्मक क्षमता को विकसित करना तप और साधना का कार्य है।यदि हम उस पर ध्यान नहीं देते हैं तो उनकी सृजनात्मक क्षमता मुरझा जाती है अर्थात् उसको पल्लवित होने का मौका नहीं मिलता है और संसार को ऐसी प्रतिभा से वंचित होना पड़ता है जिससे लाभ उठाया जा सकता था।
- उपर्युक्त आर्टिकल में सृजनात्मकता कैसे विकसित करें? (How to develop creativity in hindi),रचनात्मकता के प्रकार क्या हैं? (What are types of creativity?) के बारे में बताया गया है।
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