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How to Develop Children?

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1.बच्चों का विकास कैसे करें? (How to Develop Children?),बच्चों की पहचान कैसे करें? (How to Identify Children?):

  • बच्चों का विकास कैसे करें? (How to Develop Children?) माता-पिता,अभिभावक की यह मुख्य समस्या है।बच्चे सबसे पहले माता-पिता से ही शिक्षा ग्रहण करते हैं अतः परिवार ही बच्चों का विकास करने,उनके व्यक्तित्त्व का निर्माण करने की पहली पाठशाला है।यदि बच्चों की रुचियों,जिज्ञासाओं की पहचान करके उसके अनुसार उनको ढाला जाए तो उनमें उत्तरदायित्व,सहयोग,सद्भावना आदि गुणों का विकास होता है तथा वह एक सुसंस्कृत व सभ्य नागरिक बनता है।
  • यदि माता-पिता बच्चों की रुचि,जिज्ञासाओं,अभिवृत्तियों की उपेक्षा करते हैं तो बच्चा अनगढ़ ही रह जाता है।फिर जैसी परिस्थितियां,वातावरण उसको मिलता है उसी के अनुसार ढलता चला जाता है।
  • यदि घर-परिवार में ईमानदारी,सहयोग,भातृत्व,प्यार,सहिष्णुता आदि का वातावरण है तो बच्चे में भी इन गुणों का विकास भलीभाँति होगा।अन्यथा वह सभी नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर मनमानी करेगा और समाज के प्रति घृणा का भाव लिए समाज विरोधी बन जाएगा।
  • बच्चों का नैतिक विकास उसके पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन से संबंधित है।जन्म के समय उसका अपना कोई मूल्य,धर्म नहीं होता लेकिन जिस परिवार/समाज में जन्म लेता है,उसी तरह का उसका विकास होता है।आज आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को सही प्रेरणा व सही मार्गदर्शन के साथ स्वस्थ पारिवारिक व सामाजिक वातावरण मिले।
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2.अवसर का सदुपयोग करें (Make the Most of the Opportunity):

  • समय की सही पहचान करके अवसरों का पूरा-पूरा फायदा उठाना ही सफल जीवन की कुंजी है।असफल होने का भय वहीं तक रहता है,जब तक हम जोखिम उठाने से डरते हैं।उपलब्धियों,अनुभवों तथा सुखों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि हम जोखिम उठाने से नहीं डरें।हमें भय से नहीं,साहस से अपने जीवन को संचालित करना चाहिए।
  • मनोवांछित सफलता पाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को परिश्रम करना पड़ता है।परिश्रम भी तब ही हो पाता है,जब अपने ध्येयपूर्ति की लगन लगी हो।अक्सर लोग अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति केवल इसलिए नहीं कर पाते कि उनकी लगन व उनकी इच्छाशक्ति की तीव्रता में कमी होती है।जितनी तीव्रता से कोई कुछ चाहेगा,उतना ही गहन परिश्रम उसके लिए करना होगा।हर बड़ी व्यावसायिक संस्था में हर वर्ष कुछ अफसरों को ऊंचे पदों के लिए चुना जाता है।चुने हुए अफसरों में से अधिकांश स्वयं अतिरिक्त प्रशिक्षण नहीं लेना चाहते और अपनी पदोन्नति के लिए मना कर देते हैं।जो वास्तव में महत्त्वाकांक्षी होते हैं और परिश्रम से डरते नहीं,वे जीत जाते हैं।
  • कुछ लोग अपनी पदोन्नति के लिए अन्य तरीके अपनाते हैं,अफसरों की चाटुकारिता या उनके सामने अपना दुखड़ा रोकर या कुछ ऐसे ही तरीकों से पदोन्नति लेना चाहते हैं कि काम बन जाए।प्रगति करके आगे बढ़ने वाले रोते-घिघियाते नहीं,चुपचाप परिश्रम करते रहते हैं,अपने को सक्षम बनाने में जुटे रहते हैं।जब किसी वरिष्ठ पद पर नियुक्ति का समय आता है,तो वह उसकी जिम्मेदारियां निभाने के लिए पहले से ही तैयार रहते हैं।
  • अवसरों का लाभ वही उठा सकते हैं,जो उनका लाभ उठाने के लिए स्वयं को तैयार रखते हैं।अक्सर मनोवांछित अवसर हमारे सामने होते हैं किंतु उसको हम पहचान नहीं पाते।अपने जीवन की छिपी संभावनाओं को पहचानने के लिए वास्तव में अपने सोचने के ढंग को नकारात्मक न बनाकर सकारात्मक बनाना चाहिए।
  • कभी-कभी एक छोटा-सा गुण भी बड़े कारोबार की प्रेरणा की नींव बन सकता है।अवसर भगवान द्वारा दिया गया वरदान नहीं बल्कि अवसर सदैव हमारे आसपास ही बिखरे रहते हैं।सोचिए,कहीं आप उन्हें खो तो नहीं रहे हैं।स्वयं को सतर्क बनाकर जीवन को ओर सफल एवं संपन्न बनाया जा सकता है।ये अवसर के हीरे उन्हीं के काम के हैं,जिन्हे उन्हें पहचानने की शक्ति,लाभ उठाने की क्षमता और परिश्रम करने की लगन व कठिनाइयों से जूझने का साहस हो।हमें किसी भी अवस्था में कभी भी मन में निराशा नहीं लानी चाहिए।पक्के इरादे के साथ लगकर ही हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
  • आवश्यकता इस बात की है कि हम अवसर को पहचानकर उसे पकड़ें और सफलता के लिए प्रयत्न शुरू कर दें।

3.विकास में शिक्षा का महत्त्व (Importance of Education in Development):

  • बचपन में जब किसी बच्चे में यह जानने और निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती कि उसे स्कूल में क्यों भेजा जा रहा है और पढ़ने-लिखने अथवा शिक्षा प्राप्त करने का जीवन में क्या महत्त्व है,शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य क्या हैं? तब तो निश्चय ही प्रश्न माता-पिता अथवा अभिभावकों से पूछा जाना चाहिए।किंतु जब बालक प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करके इस योग्य हो जाए और अपनी रुचि से स्कूल अथवा कॉलेज जाने लगे तो यह प्रश्न बच्चे से ही पूछा जाना चाहिए कि वह शिक्षित क्यों होना चाहता है?
  • वस्तुतः हमारे वर्तमान समाज की यह एक बड़ी समस्या है अभिभावक अपने बच्चों को अंधाधुंध तरीके से स्कूल या कॉलेज भेज रहे हैं और बच्चे स्वयं आगे की कक्षा पास करने मात्र की दृष्टि से पढ़े जा रहे हैं।वास्तव में क्या डिग्री प्राप्त करना ही शिक्षा का उद्देश्य है? यदि हां,तो क्या डिग्री भर प्राप्त करने से व्यक्ति शिक्षित हो जाएगा?यह एक ऐसा प्रश्न है,जिसका समाधान वर्तमान पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने व निश्चित दिशा देने के लिए बहुत जरूरी है।
  • विचारशील व्यक्ति इस तथ्य से भलीभाँति परिचित है कि वर्ष भर तक भारी-भरकम पुस्तकों का बोझ ढोते हुए स्कूल जाते रहना और एक के बाद एक कक्षा पास करते जाना शिक्षा का उद्देश्य नहीं है।शिक्षा का उद्देश्य वस्तुतः विद्यार्थी को सामाजिक दृष्टि से संस्कारित करना तथा उसमें विश्लेषण करने एवं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना है।
  • जैसे-जैसे समाज का विकास हुआ,सामाजिक समस्याओं का आकार भी उसी गति से बढ़ा है।प्रत्येक व्यक्ति का परिवार,घर-बाहर,जाति,समाज और राष्ट्र की अनेक समस्याओं से सरोकार बढ़ा है।उसके जीवन में कितने ही अवसर आते हैं,जब उसे स्वतंत्र रूप से समस्याओं के साथ जूझना पड़ता है और निर्णय लेना पड़ता है।ऐसी स्थिति में व्यक्ति यदि शिक्षित है तो उसका नजरिया दूसरा होगा और यदि अशिक्षित है तो कोई अन्य।शिक्षित व्यक्ति पहले समस्या पर विचार करेगा,उसके पक्ष-विपक्ष पर दृष्टि डालकर उसका विश्लेषण करेगा,फिर उसके दूरगामी परिणामों को सोचकर उस पर निर्णय लेगा।अशिक्षित व्यक्ति इस प्रक्रिया से गुजरे बिना ही समस्या पर कोई ऐसा निर्णय ले सकता है,जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।अतः कहा जा सकता है कि शिक्षित व्यक्ति का कोई भी निर्णय परिष्कृत विश्लेषण से युक्त होता है,जिसके परिणामस्वरूप उसे जीवन को निरंतर बेहतर बनाने के अवसर प्राप्त होते हैं।
  • जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने समाज,अपने देश एवं संपूर्ण मानव जाति के हित की चिंता करता हुआ,अपने कर्त्तव्यों एवं दायित्वों का पालन करे और यह तभी संभव है जब वह शिक्षित होगा।शिक्षा उस दायित्व का बोध कराती है ताकि वह एक अच्छा नागरिक बन सके,अपने हितों की रक्षा भी करे तथा दूसरों के हितों का हनन न करे।साथ ही कमजोर वर्ग को ऊंचा उठाने का प्रयास कर सके।
  • आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है,यदि हमें अपने स्तर को ऊंचा उठाना है,कोई जॉब,पद या प्रतिष्ठा प्राप्त करना है तो हमें प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया से गुजरना होगा।क्योंकि अभ्यर्थी अधिक हैं और अवसर कम।ऐसी स्थिति में प्रतिस्पर्धा से जूझने और वांछित अवसर प्राप्त करने के लिए शिक्षा प्राप्त करना जरूरी है।शिक्षित व्यक्ति अपनी आकांक्षा और योग्यता के अनुसार प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में शामिल हो सकता है और उचित समय पर अवसर प्राप्त कर सकता है।
  • शिक्षा मनुष्य का मानव मूल्यों से सही साक्षात्कार कराती है,उसे दिशा देती है और उच्च स्तरीय सामाजिक जीवन जीने को प्रेरित करती है।शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्रियां हासिल करना नहीं है,अपितु सुसंस्कार सामाजिक जीवन के नए सोपान तैयार करना है।यह बात प्रत्येक विद्यार्थी तथा प्रत्येक अभिभावक को समझनी चाहिए।शिक्षा प्राप्त करने की दिशा में हम पूरी लगन,पूरे मनोयोग से बढ़े ताकि अपना समुचित विकास कर सकें।

4.विकास की जांच (Development Check):

  • बच्चा अपनी कक्षा के अन्य बच्चों की तुलना में ठीक चल रहा है अथवा नहीं,इसके लिए समय-समय पर आपको उसके अध्यापकों से मिलना चाहिए तथा उसकी प्रगति पत्रिका देखनी चाहिए।यदि बच्चा किसी विषय में कमजोर है,तो उसको स्वयं समय देकर पढ़ाना चाहिए या ट्यूशन का प्रबंध करना चाहिए।
  • पढ़ने के साथ-साथ आपका बच्चा खेलकूद तथा अन्य बच्चों से मिलने-जुलने व बातचीत करने में कैसा है,इस पर भी आपको लगाकर निगरानी रखने की आवश्यकता है।अन्य बच्चों से न मिलने-जुलने वाले,अकेलापन पसंद करने वाले,एकांत में खेलने वाले,कम बात करने वाले,अधिक झगड़ालू,मारपीट तथा जिद करने वाले बच्चे को भी यथासंभव मानसिक उपचार की आवश्यकता होती है।
  • एक ही कक्षा में कई साल तक फेल होने पर यह लगभग निश्चित हो जाता है कि बच्चे का बौद्धिक स्तर सामान्य स्तर से नीचे है।हाईस्कूल तक पहुंचते-पहुंचते मंद बुद्धि का निदान लगभग शत-प्रतिशत हो जाता है।ऐसी स्थिति में माता-पिता को बच्चों के भविष्य के लिए कार्यक्रम निश्चित कर लेना चाहिए।
  • यदि बच्चे का मानसिक विकास इतना कम हुआ है कि उसे जड़-बुद्धि या अल्प-बुद्धि वाले बालक की श्रेणी में रखा गया हो,तो माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के मानसिक स्तर को देखते हुए ओर अधिक समय तक स्कूल भेज कर अपना व उसका समय नष्ट न करें।यदि उपलब्ध हो और संभव हो तो ऐसे बच्चे को मानसिक रूप से अविकसित बच्चों के किसी स्कूल में दाखिल करा देना चाहिए।मंदबुद्धि वाले बच्चे प्रायः उच्च शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं।उनको कुटीर उद्योग या दस्तकारी का काम सिखाना चाहिए।
  • बच्चा बड़ा होकर मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ नागरिक बने,इसका पूर्ण दायित्व माता-पिता अथवा अभिभावकों पर है।उसके विकास में कोई बाधा न पड़े,उसे योजनानुसार शिक्षा और व्यवसाय प्राप्त हो,यह देखना भी उन्हीं का कर्त्तव्य है।
  • बच्चों में किसी भी प्रकार की कमी,रोग अथवा मानसिक समस्या के निराकरण के लिए अपने शहर या पास के शहर में उपलब्ध रोग-विशेषज्ञों,मनोवैज्ञानिकों,मनोरोग चिकित्सकों तथा सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की सलाह भी ली जानी चाहिए।बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ रहें,यह परिवार,समाज तथा देश सबके लिए जरूरी है।

5.बच्चों के विकास का दृष्टांत (Illustration of Child Development):

  • एक युवक बहुत छोटा था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई।अपनी व विधवा मां की जीविका के लिए वह स्कूल की पढ़ाई छोड़कर काम पर लग गया।अपने मित्रों को ऊंची शिक्षा के अवसर मिलते देखकर वह हताश नहीं हुआ,न ही ईर्ष्या से कुंठाग्रस्त हुआ और न ही अपने दुर्भाग्य पर बैठा रोता रहा।
  • उसकी पढ़ाई में दिलचस्पी थी।अतिरिक्त समय में वह पुस्तकें पढ़ता रहा तथा प्राइवेट परीक्षा देता रहा।आगे से आगे की कक्षाओं में उत्तीर्ण होता रहा।
  • हर समय अपने कोर्स की पुस्तकें रखे रहता।जब भी जॉब में समय मिल जाता,वह उन पुस्तकों को पढ़ता।घर पर भी सुबह-शाम पुस्तकों को पढ़ता रहता।इस प्रकार पढ़कर वह उत्तीर्ण होता रहा।
  • अपना ज्ञान बढ़ाता गया और इसी तरह धीरे-धीरे एक मामूली काम करते हुए अपनी मेहनत,लगन व तैयारी के बल पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाया।
  • उच्च शिक्षा की डिग्री मिलने के बाद विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाएं एवं साक्षात्कार देता रहा और एक दिन उसका चयन एक उच्च अधिकारी के पद पर हो गया।उसकी सफलता का रहस्य यही था कि आगे बढ़ने के अवसर सामने आने पर वह उनका पूरा लाभ उठाने के लिए पहले से ही स्वयं को तैयार कर चुका था।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में बच्चों का विकास कैसे करें? (How to Develop Children?),बच्चों की पहचान कैसे करें? (How to Identify Children?) के बारे में बताया गया है।

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6.मूर्ख शिष्य को उत्तीर्ण करना (हास्य-व्यंग्य) (Passing Foolish Disciple) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्रों से):यदि मैं एक मूर्ख छात्र को गणित में उत्तीर्ण कर दूं,तो आप क्या कहोगे?
  • छात्र:सर,प्रिय शिष्यप्रेम।

7.बच्चों का विकास कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Develop Children?),बच्चों की पहचान कैसे करें? (How to Identify Children?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बच्चों को मुख्य रूप से कौन से आचरण सिखाएं? (What Behavior Should We Mainly Teach Children?):

उत्तर:(1.)माफी मांगना:किसी को सॉरी कहने का यह मतलब नहीं कि आप कमजोर हैं,बल्कि यह आपके मजबूत चरित्र को दर्शाता है।बच्चे के लिए आप खुद मिसाल बनें और उन्हें सिखाएँ कि रिश्ते बहस से बढ़कर होते हैं।
(2.)गुंडों-बदमाशों से दूर रहे:हर स्कूल में एक-दो गुंडा-बदमाश जैसे लड़के होते हैं।अगर हम उनसे नफरत करते हैं तो हमें अपने बच्चों को भी उनसे दूर रहने की नसीहत देनी चाहिए।उन्हें दूसरों को समझना और उनका सम्मान करना सिखाएं।
(3.)बराबरी:बच्चों की परवरिश के दौरान उन्हें बताएं कि वह लोगों के रंग,नस्ल और लिंग के आधार पर किसी तरह का भेदभाव न करें।उन्हें अपनी जिंदगी के जरिए ये सिखाएँ कि हर किसी को बराबरी का हक होता है।बच्चे को सिखाने का यह एक महत्त्वपूर्ण आचरण है।
(4.)दूसरों के साथ खुद जैसा आचरण करें:बच्चों को सिखाएँ कि वह खुद के साथ जिस तरह का व्यवहार करते हैं,दूसरों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करें।इससे कोई भी उनके साथ बुरा बर्ताव नहीं करेगा।इससे बच्चा हर अच्छे सामाजिक गुणों के साथ बड़ा होगा।

प्रश्न:2.बच्चों को प्रेरित करने के लिए क्या करें? (What to Do to Motivate Children?):

उत्तर:(1.)अगर बच्चा कक्षा में अच्छे नंबर लाता है या कोई प्रतियोगिता जीतता है,तो उसके हर अच्छे काम को पुरस्कृत करें।इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
(2.)अगर वह कोई फैसला लेना चाहता है,तो उसके कार्यों का चयन व फैसले उसे स्वयं करने दें तथा उसे पूरा करने के लिए उसकी मदद करें।यानी आपको भी पता चलता रहे कि उसके द्वारा लिया गया फैसला कितना सही और कितना गलत है।
(3.)अगर बच्चा कोई नया काम करता है,तो वह जो भी कार्य करें उस गतिविधि की सराहना करें व प्रोत्साहित करते रहें।इसके साथ ही उसके कार्य की प्रेरणा सामूहिक रूप से दें ताकि उसका हौसला बढ़े।

प्रश्न:3.बच्चों से संपर्क रखने के लिए क्या करें? (What to Do to Keep in Touch with Children?):

उत्तर:रात को कुछ समय बच्चों को दें और दिनभर की अपनी बातें उसे बताएं ताकि वह भी अपनी दिनभर की घटनाओं की चर्चा आपसे करें।इसके अलावा आप खाना खाते समय भी बच्चे से पूरी दिनचर्या के बारे में पूछ सकते हैं;क्योंकि उस समय वह पूरी तरह से घर में रहता है मतलब ना तो उसको दोस्तों के साथ खेलना होता है और ना ही टीवी देखना होता है,इसलिए खाने के समय वह खुलकर बात कर सकता है।पढ़ाई के दौरान कोशिश करें कि लगातार पढ़ने का दबाव उस पर न डालें,बल्कि बीच में थोड़ा सा ब्रेक लेते हुए उससे बात करें।इससे आप बच्चे की मानसिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे।
How to Develop Children?

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा बच्चों का विकास कैसे करें? (How to Develop Children?),बच्चों की पहचान कैसे करें? (How to Identify Children?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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