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How to Criticize Yourself for Studying?

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1.अध्ययन के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How to Criticize Yourself for Studying?),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How Do Students Criticize Themselves for Studying Mathematics?):

  • अध्ययन के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How to Criticize Yourself for Studying?) इस कला को विद्यार्थी को स्वयं ही विकसित करना होगा।वास्तविक समालोचना करने वाले व्यक्ति और छात्र-छात्राओं का मिलना बहुत मुश्किल है।कई विद्यार्थी तथा लोग मिलेंगे जो आलोचना के बजाय निंदा करते हैं।आलोचना और निंदा में फर्क यह है कि आलोचना में अपने या दूसरे को सुधारने का उद्देश्य रहता है जबकि निन्दा पीठ पीछे की जाती है और उसमें दूसरे की प्रतिष्ठा गिराने का उद्देश्य रहता है।जब हम निंदा करते हैं तो उसमें एक और भाव रहता है कि हम श्रेष्ठ है और दूसरे ओछे हैं।
  • सही आलोचना करने वाला हमें हमारी अध्ययन में कमियों की ओर संकेत करता है,उनको सुधार करने के उपाय बताता है तथा न सुधारने पर उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है।सही आलोचक हमारी प्रगति व उन्नति में सहायक होता है।
  • आलोचना या समीक्षा करना साबुन से कपड़े धोने के समान है।हम अध्ययन में बरती जाने वाली लापरवाही,कमियों तथा त्रुटियों के प्रति सचेत हो जाते हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं।आलोचना करने की शुरुआत स्वयं से ही करनी चाहिए।यदि हम अपने दोषों,दुर्गुणों,कमियों तथा त्रुटियों को छिपाते हैं तो वे हमारे अंतर्मन में इस तरह चिपक जाते हैं जैसे चुम्बक लोहे के चिपक जाती है।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं साहसी होते हैं जो अपनी आलोचना सुन लेते हैं और अपने को सुधारने की चेष्टा करते हैं।आलोचना से हमें हमारे दुर्गुण दिखाई दे जाते हैं यदि उनको हम दूर नहीं करते हैं तो हमारी निंदा होने लगती है।ऐसी स्थिति में हमें यही सही लगता है कि उन दोष-दुर्गुणों को दूर कर दिया जाए।
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2.आलोचना से डरे नहीं (Don’t be Afraid of Criticism):

  • अध्ययन करने में हम पिछड़ जाते हैं,परीक्षा में असफल हो जाते हैं तो उसका मूल कारण यही है कि हम अपनी आलोचना तथा समीक्षा नहीं करते हैं।हर व्यक्ति तथा छात्र-छात्राओं में कमियां,दोष-दुर्गुण होते हैं।बिल्कुल सर्वगुण संपन्न तथा बिल्कुल दोषयुक्त व्यक्ति का मिलना मुश्किल है।किसी व्यक्ति में दोष अधिक तथा गुण कम मिल सकते हैं अथवा दोष कम तथा सद्गुण अधिक मिल सकते हैं।इस प्रकार दोष और सद्गुण कम-अधिक मिल सकते हैं।
  • आलोचना तथा समालोचना हितकर है परंतु उसकी शुरुआत स्वयं से ही करना चाहिए।गड़बड़ तभी होती है जब हम अपनी त्रुटियों को छिपाते हैं परंतु दूसरों के ऐबो को प्रकट करते हैं।दूसरों की कमियां तथा दोषों को पकड़ने में भूल-चूक हो सकती है परन्तु अपने दोष-दुर्गुणों को तो हम अच्छी तरह जानते हैं याकि जान सकते हैं।उदाहरणार्थ यदि आप त्रिकोणमिति में कमजोर हैं।अपने मित्रों के सामने आप यह स्वीकार करते हैं कि गणित में त्रिकोणमिति के टॉपिक को मैं पढ़ता ही नहीं हूँ तथा त्रिकोणमिति के टॉपिक में कमजोर हूँ।आपके मित्र त्रिकोणमिति के टाॅपिक को पढ़ने की कोई सरल तकनीक बता सकते हैं।उस तकनीक का प्रयोग करके आप पढ़ने का प्रयास करेंगे तो आपमें सुधार होगा।इस प्रकार एक-एक कमियों को दूर करते जाएंगे तो अध्ययन तथा गणित के अध्ययन में सुधार होता जाएगा।
  • जो छात्र-छात्राएं आलोचना तथा समीक्षा करके अपने आपको सुधार लेता है तो उसे दूसरे को सुधार करने का अधिकार भी मिल जाता है।दूसरे छात्र-छात्राओं की आलोचना और समीक्षा तभी करनी चाहिए जब वे आपसे पूछें या वे आलोचना तथा समीक्षा करने का बुरा नहीं मानते हों।ज्यादातर होता यह है कि आलोचना करने से दूसरे छात्र-छात्राएं बुरा मान जाते हैं और आलोचना करने वाले के प्रति द्वेष रखने लगते हैं।
  • त्रुटियों की तरफ ध्यान न दिया जाए तो आदतें बिगड़ती चली जाती है।धीरे-धीरे वे बुरी आदतें इतनी परिपक्व हो जाती हैं कि छुड़ाने पर भी नहीं हटती हैं।सच्चा मित्र बुराइयों से बचाता है,झूठी प्रशंसा नहीं करता है बल्कि हमारे वास्तविक गुणों की प्रशंसा करता है।इस प्रकार आलोचना मित्र का गुण है।नीति में कहा है कि:
  • “पापान्निवारयति योजयते हिताय गुह्यानि गूहति गुणान्प्रकटीकरोति।
    आपद्गतं च न जहानि ददातिकाले सन्मित्रलक्षणमिदे प्रवदन्ति सन्तः।।
  • अर्थात पापों से बचाता है,कल्याण में लगाता है,छिपाने योग्य बातों को छिपाता है,गुणों को प्रकट करता है,आपत्ति में साथ नहीं छोड़ता,समय पर सहायता देता है ये सन्मित्र के लक्षण सन्त लोग बतलाते हैं।
    हमें आलोचना इस चतुराई से करनी चाहिए कि सामने वाला बुरा न माने और उसकी बदनामी तथा द्वेष बढ़ने की नौबत न आए।

3.आलोचना करने का तरीका (Way of Criticizing):

  • आलोचना स्वयं की भी करनी चाहिए तो दूसरों की भी परन्तु आलोचना का उद्देश्य सुधार करने का होना चाहिए।किसी बदनामी या निंदा करने का भाव नहीं होना चाहिए।
  • यदि दूसरों की आलोचना करनी हो तो सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि उसको एकांत में प्रेमपूर्वक त्रुटियाँ या कमियाँ बताई जानी चाहिए।
  • आलोचना में कमियों तथा त्रुटियों को बताने के साथ-साथ उसकी अच्छाईयाँ भी बताई जाए जिससे आलोचना से हतोत्साहित न हो।
  • अपनी बुराई देखने वाले छात्र-छात्राएं मुश्किल से ही मिलते हैं।बल्कि ज्यादातर छात्र-छात्राएं अपने दोष-त्रुटियों और कमजोरियों के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं या भाग्य अथवा परिस्थिति को कोसते हैं।हमें अपने गुण ही नजर आते हैं और उनका बढ़-चढ़कर दूसरे के सामने प्रशंसा करते हैं।
  • चापलूस से सावधान रहें।चापलूस व्यक्ति पीठ पीछे निंदा करता है और हमारे सामने प्रशंसा करता है।इसलिए हम भ्रम में पड़ जाते हैं।हम अपनी प्रशंसा सुनकर फूलकर कुप्पा हो जाते हैं।इससे हमारा अहंकार बढ़ता है।अनुचित प्रशंसा हमारे अध्ययन और प्रगति में बाधक है।झूठी प्रशंसा से हमारे दोष छिप जाते हैं और धीरे-धीरे वे गहरी जड़े जमा लेते हैं।
  • यदि दोषों,त्रुटियों को खुद में देखने की क्षमता नहीं है और दूसरा कोई सही आलोचक नहीं हो तो हमारी प्रगति अवरूद्ध हो जाती है।बहुत से छात्र-छात्राओं में प्रतिभा होते हुए भी कमियों या त्रुटियों को समय पर न सुधार सकने के कारण पिछड़ जाते हैं।
  • अपने हितेषी,शुभचिंतक तथा निष्पक्ष आलोचक की पहचान करना आना चाहिए।ऐसा आलोचक यदि हमारी त्रुटियाँ तथा कमियां बताता है तो एकांत में आत्म-निरीक्षण करना चाहिए कि वास्तविक में वे त्रुटियां हमारे अंदर मौजूद हैं या नहीं।यदि वे त्रुटियाँ हमारे अंदर है तो उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए।यदि वे कमियां नहीं है,वे कमियाँ हमें जलील करने के लिए बताई गई है।ईर्ष्यावश आरोपित की गई है,हमारे क्रोध व द्वेष को बढ़ाने के लिए बताई गई हैं तो उनकी तरफ ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।ऐसे व्यक्ति को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है।
  • अन्य व्यक्ति अथवा कोई छात्र-छात्रा चिढ़ाने के लिए बुराई करता है,उपहास उड़ाता है अथवा ओछापन दिखाता है तो मानसिक सन्तुलन बनाये रखने की आवश्यकता है।यदि उसकी बातों को दिल पर ले लेंगे तो आपस में कटुता बढ़ेगी,राग-द्वेष से झगड़ा-फसाद भी हो सकता है।वस्तुतः सही और निष्पक्ष आलोचना विचारशील व्यक्ति ही कर सकता है अथवा सच्चा मित्र वास्तविक गुण-दोषों से अवगत कराता है।ऐसे समालोचक और सच्चे मित्र जिनके पास है उन्हें अपने आपको भाग्यशाली ही समझना चाहिए।ऐसे ही समीक्षक द्वारा प्रगति,उन्नति करने का अवसर मिलता है।

4.अध्ययन करने के लिए आलोचना का दृष्टांत (Illustration of Criticism to Study):

  • संसार में एक ही दृष्टिकोण के व्यक्ति एवं छात्र-छात्राओं का मिलना मुश्किल है।लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की छूट है।कोई भी किसी के बारे में कुछ भी अंट-शंट बकता रहता है।अपना अध्ययन कार्य ही किया जा सकता है अथवा अंटशंट बकने वाले को जवाब दिया जा सकता है।यदि कुछ हानि सहकर उनको जवाब दिया जा सकता है,प्रतिवाद किया जा सकता है तो ठीक है।यदि हानि अधिक होने की संभावना है तब उस तरफ ध्यान ही नहीं देना चाहिए।आप सतर्क,सजग रहेंगे और मनोबल ऊंचा रखेंगे तो ऐसे झूठे आलोचक और निन्दक कुछ समय निंदा-स्तुति करके अपना रास्ता बदल लेंगे।निन्दक और प्रशंसक दोनों से ही हानि होने की संभावना रहती है अतः सावधान दोनों से ही रहना है।जैसे आप गणित में कमजोर है तो प्रशंसक आपकी झूठी प्रशंसा इस तरह से करेगा कि आपमें प्रतिभा तो है,दिमाग तो है परंतु सवाल ही इतना कठिन है जो आपसे हल नहीं हो रहा है।इस प्रकार वह चिकनी-चुपड़ी बातें करके आपको फुलाने में लग जाता है ताकि अपना स्वार्थ सिद्ध कर सके।
  • गणितज्ञ नीलकंठ के आलोचकों की कमी नहीं थी। दरअसल वे गणित पढ़ाते थे तो गणित पढ़ाते-पढ़ाते भारतीय धर्म,संस्कृति की ऐसी बातें बताते थे कि छात्र-छात्राएं गद्गद् हो जाते थे।ज्यों-ज्यों उनकी प्रसिद्धि फैली तो प्रसिद्धि के साथ आलोचक भी पैदा हो जाते हैं।हालांकि वे अपने आलोचकों को इस तरह का जवाब देते थे कि आलोचक उनके मानवीय गुणों के सामने नतमस्तक हो जाता था।
  • एक बार उनके आलोचक ने नीलकंठ को बिल्कुल खरी-खोटी सुनाने का निश्चय किया।वे नीलकण्ठ द्वारा गणित के प्रचार करने के आलोचक थे।उनकी मान्यता थी कि भारत में गणित के प्रचार-प्रसार से नहीं बल्कि भारत में विदेशी निवेश,बड़े-बड़े उद्योग धंधे लगाने,शहरीकरण करने से भारत का विकास होगा।
  • भारतीय धर्म,संस्कृति और गणित के प्रचार-प्रसार से भारत का भला होने वाला नहीं है।वे भारतीय धर्म व संस्कृति को आउट ऑफ डेट मानते थे।
  • नीलकंठ एक बार गणित के भव्य समारोह में शिरकत करने जा रहे थे।उनके आलोचक को भनक लगी तो वे उनसे समारोह के भवन के बाहर मिल गए।उन्होंने गणितज्ञ नीलकंठ को अंटशंट बकना प्रारंभ कर दिया।गणितज्ञ नीलकंठ चुपचाप सुनते रहे और गणित के भव्य समारोह की बिल्डिंग में चले गए।आलोचक भी उनके साथ ही अंदर चले चले गए।अचानक उनको याद आया कि बिना टिकट और अनुमति के अंदर आ गए हैं इसलिए उनकी घबराहट बड़ गई।
  • तभी समारोह में नियुक्त गार्ड उनके पास आया।गणितज्ञ नीलकण्ठ ने उनकी घबराहट ताड़ ली।उन्होंने गार्ड को कहा कि यह मेरे साथ है इनका टिकिट बना दीजिए और परमीशन (permission) दे दें।अब आलोचक पानी-पानी हो गया।उसकी फजीहत होने से गणितज्ञ नीलकण्ठ ने बचा ली थी।तब उन्हें गणितज्ञ नीलकण्ठ की महानता का परिचय हुआ।उन्होंने सोचा कि अपने विरोधी से भी मैत्रीभाव रखते हैं और मन में किसी प्रकार की कटुता नहीं रखते हैं।आलोचक को भी धैर्यपूर्वक सुनते हैं।आलोचक की किसी कटुक्ति से किसी प्रकार का मानसिक संतुलन नहीं खोते हैं।ऐसे थे गणितज्ञ नीलकण्ठ जिनके सामने आलोचक नतमस्तक हो जाते थे।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में अध्ययन के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How to Criticize Yourself for Studying?),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How Do Students Criticize Themselves for Studying Mathematics?) के बारे बताया गया है।

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5.गणित के सवाल और बड़बड़ाना (हास्य-व्यंग्य) (Mathematics Questions and Babbling):

  • लक्ष्मी:मैंने सुना है कि तुम्हारे पति महोदय को नींद में बड़बड़ाने की आदत है।वे नींद में ही गणित के सवाल हल करने लगते हैं।
  • सुलक्षणा:हां ऐसा ही है,मगर इससे घबराने की कोई बात नहीं है।
  • लक्ष्मी:क्यों
  • सुलक्षणा:क्योंकि वह इतने आलसी हैं कि उठकर सवाल हल नहीं कर सकते हैं।बस बड़बड़ाते हुए सवाल हल करते हैं।

6.अध्ययन के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (Frequently Asked Questions Related to How to Criticize Yourself for Studying?),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How Do Students Criticize Themselves for Studying Mathematics?) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.सामान्य मनुष्यों का आलोचना करने का क्या तरीका है? (What is the Way to Criticize Ordinary Human Beings?):

उत्तर:चाहे कोई हिमालय के समान स्वच्छ हो तो उसे सिर उठाकर रहने और कठोर व घमंडी का दोष लगा देते हैं।चाहे समुद्र के समान महान क्यों न हो पर उस पर खारे होने का कलंक लगा देते हैं।तात्पर्य है यह कि अत्यधिक गुणी व्यक्ति में वे दोष लगा देते हैं।ओछे व्यक्तियों के लिए इस संसार में महान व्यक्ति कोई है ही नहीं।

प्रश्न:2.निर्भय कौन है? (Who is Fearless?):

उत्तर:संसार में कोई न कोई व्यक्ति भयभीत है।यदि वह भोगी है तो रोग से भयभीत है।ऊँचे कुल का है तो पतन का भय है।धनवान है तो लुटेरों का भय है।दरिद्र है तो भविष्य से,बलवान को विरोधी से,रूपवान को वृद्धावस्था से और सज्जनों को दुर्जनों से भय होता है।मौन रहने में दीनता का,शास्त्र में वाद विवाद का,मन में चंचलता और शरीर में मृत्यु का भय है।इस प्रकार सभी ओर से किसी न किसी प्रकार का भय मनुष्य के सामने रहता है।निर्भय केवल वही है जो भगवान् के प्रति समर्पित है।

प्रश्न:3.आत्म-प्रशंसा क्यों की जाती है? (Why is Self-praise Done?):

उत्तर:निंदा करने में कुछ व्यक्तियों को बड़ा आनंद आता है लेकिन जरा गहरे में सोचे तो निंदा करना दरअसल अपनी प्रशंसा करने का एक ढंग है।हमने किसी को बुरा कहा इसका मतलब हुआ कि उसकी अपेक्षा हम अच्छे हैं।किसी को हमने झूठा या चोर कहा तो हमारा तात्पर्य यह हुआ कि उसकी अपेक्षा हम सच्चे और साहूकार है।यह एक प्रकार से हीन भावना का सूचक है।जो हीन भावना से ग्रस्त होता है उतना ही अधिक दूसरों की निंदा करके परोक्ष रूप से अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की चेष्टा करता है।जो स्त्री-पुरुष सात्विक बुद्धि रखते हैं उन्हें किसी की निंदा करने में रुचि नहीं होती क्योंकि जो वास्तव में भले हैं वे दूसरों में भी भलाई ही देखते हैं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अध्ययन के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How to Criticize Yourself for Studying?),छात्र-छात्राएँ गणित का अध्ययन करने के लिए अपनी आलोचना कैसे करें? (How Do Students Criticize Themselves for Studying Mathematics?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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अध्ययन के लिए अपनी आलोचना कैसे करें?
(How to Criticize Yourself for Studying?)

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इस कला को विद्यार्थी को स्वयं ही विकसित करना होगा।वास्तविक समालोचना करने वाले व्यक्ति
और छात्र-छात्राओं का मिलना बहुत मुश्किल है।

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