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How to Change Manners of Life?

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1.जीवन के रंगढंग कैसे बदलें? (How to Change Manners of Life?),जीवन का रंगढंग बदलें (Change Way of Life):

  • जीवन के रंगढंग कैसे बदलें? (How to Change Manners of Life?) यानी जो तौर-तरीके या रंग-ढंग गलत हैं,जो आपको अवनति के मार्ग की ओर ले जाने वाले हैं,उन्हें बदल डालें,उनको जीवन से निकाल फेंके।
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2.निराशावादी नहीं बल्कि आशावादी विचार रखें (Have optimistic views,not pessimistic views):

  • जब तक आपको पूर्ण विश्वास ना हो,तब तक आप कोई कार्य संपन्न नहीं कर सकते।आप बड़े बाजार को छोड़कर,राजमार्ग को त्यागकर,गली-कूचों में फिरते रहेंगे।
  • प्रायः लोग बाजार के बजाय गली-कूचों में फिरते रहते हैं।बाजार में चलते-चलते लापरवाही से उनका कदम किसी गली की ओर उठ जाता है और जब वे उस डगर पर रवाना हो जाते हैं तो उन्हें दोबारा बाजार में आने का साहस नहीं होता।कुछ लोग इसलिए उन्नति नहीं कर सकते कि वे अपने विचार के भाग्य के धनी होते हैं।वे कहते हैं कि जब हमारा भाग्य ही ऐसा है तो फिर प्रयत्न या संघर्ष बेकार है।उनमें हर व्यक्ति किस्मत का धनी होता है और प्रयत्न तथा संघर्ष को एक निरर्थक वस्तु समझकर छोड़ देता है।इसका परिणाम यह होता है कि वे न तो आगे बढ़ सकते हैं और न ही प्रगति कर सकते हैं,बल्कि दिन-प्रतिदिन अवनति की ओर लुढ़कने लगते हैं।
  • मस्तिष्क की समस्त रचनात्मक तथा कल्पनात्मक शक्तियों का दारोमदार आशा पर है।ऐसा कोई कानून नहीं है,जिसके द्वारा हम गेहूं की आशा करते-करते चावल प्राप्त कर सकें।
  • प्रायः लोग निराशावादी विचारों से अपने व्यक्तित्व को,अपने आप को दुःख पहुंचाते रहते हैं।मानव स्थितियों द्वारा नहीं जन्मा है वरन स्वयं स्थितियों को उत्पन्न करता है।
  • मन में कभी यह भ्रम न होने दें कि मुझे असफलता प्राप्त होगी।अपने मन में पुष्ट तथा दृढ़ संकल्प कर लें,पूर्ण विश्वास के साथ कहें कि मुझे संसार में किसी काम के लिए पैदा किया गया है।मैं भगवान की दया और अपने बाहुबल से इस कार्य को संपन्न करूंगा।अपने स्वभाव तथा प्रकृति को इस प्रकार शिक्षित करें कि आप बड़े से बड़ा कार्य संपन्न कर सकते हैं।अपनी आदत-स्वभाव से यह प्रकट न होने दें कि जीवन-भर आपको साधारण काम करने हैं।यदि आप यह अभ्यास करें और आठों पहर निर्माणात्मक और सृजनात्मक विचार अपने सामने रखें कि आपकी यह मानसिक दशा किसी-न-किसी दिन आपके लिए संसार में यश तथा कीर्ति उत्पन्न करेगी और आपकी अभिलाषाएं पूर्ण होंगी।
  • बहुत से छात्र-छात्राएं तथा अभ्यर्थी जिनका मस्तिष्क अच्छी दशा में है और सैकड़ो रुपए रोजाना कमा सकते हैं,अज्ञान के कारण अपनी योग्यता को बहुत ही सीमित कर लेते हैं।तब उनके मस्तिष्क पर संदेह,भय और चिंता के छोटे-छोटे शत्रु एकदम हल्ला बोल देते हैं और उनके मस्तिष्क के अवयवों को लूला-लंगड़ा कर देते हैं।
  • यदि आप कोई महान कार्य करना चाहते हैं तो अपने शरीर तथा मस्तिष्क के उच्चतम स्थिति में रखने का पूरा-पूरा प्रयत्न करें।अपने जीवन को अपने जीवनोद्देश्य के अनुकूल व्यतीत करें।अपने आप को हर ऐसी चीज से बचाएं,जो आपकी शक्ति को शिथिल कर देती है।अपने से भय,शंका और धैर्यहीनता के विचारों को निकाल दें,क्योंकि वे आपके प्रयत्नों पर पानी फेर देंगे।यह भी संभव है कि वे आपको सर्वथा निष्क्रिय कर दें।सदैव अपने आदर्श को सामने रखें और उसी के अनुसार जीवन ढालने का प्रयत्न करें,फिर आप इस योग्य हो सकेंगे कि यथाशक्ति बड़े कार्य कर सकें।
  • हर जगह ऐसे इंसान मौजूद हैं जो महान कार्य करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं,किंतु उनके मस्तिष्क पर उनके शत्रुओं का अधिकार है और वे उन्हें दीमक की भाँति खोखला कर अपंग तथा निष्क्रिय बना रहे हैं।वे इतना ही नहीं जानते कि इन दुष्टों से किस प्रकार पिंड छुड़ाएं।

3.मन से मनोमालिन्य और निराशा के विचार त्यागें (Discard thoughts of defilement and despair from your mind):

  • कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो प्रातः अपना मानसिक संतुलन खोकर दिनभर के लिए अपनी शक्तियों और योग्यताओं को निरर्थक कर देते हैं।प्रातःकाल क्रोध से उनका चेहरा तमतमाने लगता है,क्रोध के विष से उसके मानसिक अवयवों को धक्का लगता है।उसके आत्मसम्मान को इतनी ठेस पहुंचती है,उन्हें इतना दुख और निराशा होती है कि वे दिनभर कोई कार्य संतोष के साथ नहीं कर सकते।
  • सुबह-सवेरे जब काम पर बैठें तो किसी प्रकार के मनोमालिन्य,निराशा अथवा अधीनता के साथ काम आरंभ ना करें।यदि आप ऐसा करेंगे तो फिर यह समझ लें कि दिनभर सबकुछ आपकी इच्छा के विरुद्ध होता रहेगा।यदि संगीतज्ञ गलत कुंजी से हारमोनियम बजाना आरंभ कर दे तो सुर बेसुरे होंगे या नहीं? इसलिए यदि आप बिल्कुल संतुष्ट रहना चाहते हैं तो सुबह-सवेरे अपने दिमाग के बाजे की गलत कुंजी को न छेड़े,बल्कि सही कुंजी को हाथ लगाएं ताकि आप दिनभर मनोहारी तथा मधुर गाने सुनते रहें।
  • कार्यारम्भ के समय मन में ठान लें कि आप अपने काम में किसी प्रकार की रूकावट या बाधा नहीं पड़ने देंगे।यदि आप अपने जीवन में उन्नति की ओर पदार्पण करना चाहते हैं तो दृढ़ संकल्प कर लें कि आपका हर कल आपके हर आज से बेहतर और उज्ज्वल हो।
  • आपके मन में चाहे कुछ भी हो,मस्तिष्क में चाहे कितने ही ओछे तथा हीन भाव उत्पन्न हों,उनका आपके चेहरे पर प्रतिबिंब ना पड़े,वरन इसके विपरीत आपके चेहरे से दया,हर्ष तथा आनंद प्रकट होना चाहिए।
  • यदि ऐसा करने का यत्न करेंगे तो आप अल्पकाल में ही ऐसे हो जाएंगे।जो दृश्य आप अपनी आंखों के सामने रखेंगे,वही आपके मानस-पटल पर अंकित हो जाएगा।फिर क्या होगा? यही कि आपके दुर्विचार या किसी से प्रतिकार लेने का विचार सब नष्ट हो जाएगा।
  • यदि आप मुट्ठियाँ भींच लें,आपकी भृकुटी तन जाए और आप पागल नजर आएं तो आपको अनुभव होगा कि आपके मानस में भी ऐसे ही विचार उभर रहे हैं।फिर यदि आप प्रफुल्लित दिखाई देने का भी यत्न करेंगे तो वह नहीं हो सकता,क्योंकि वह संभव ही नहीं।
  • शरीर का प्रत्येक अंग उन विचारों,संकल्प तथा अनुभूतियों का आज्ञाकारी है जो मस्तिष्क में जमे हैं और मन पर अधिकार किए हुए हैं।इस विचार तथा संकल्पानुसार हर अवयव की शक्ल बन जाएगी।संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं जो इस अवश्यम्भावी और कठोर व्यवहार को रोक सके।यदि उसे कोई रोक सकता है,उसमें परिवर्तन कर सकता है तो वह विचारों की संपूर्ण क्रांति है,इतनी बड़ी क्रांति कि मन के विचार सर्वथा उल्टे हो जाएं।मन या मस्तिष्क का प्रभाव शरीर पर अवश्य होता है,किंतु उसके भी नियम हैं और ये नियम अटल हैं,जिनमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।
  • यह बात असंभव है कि हम अपने विचारों तथा अनुभूतियों को छिपा सकें।हमारा चेहरा हमारी चुगली खाता है।हम विचार की हथौड़े से उपमा दे सकते हैं,जो हमारे शरीर तथा हृदय पर प्रतिक्षण अपने हस्ताक्षर करता रहता है।इसलिए जो हमारे चेहरे को ध्यान से देखता है,हमारे रहस्य उस पर प्रकट हो जाते हैं।हमारी आदत तथा कर्म और हमारी कथनी व करनी संसार पर हमारा अस्तित्व प्रकट कर देते हैं।
  • विचार मन व मस्तिष्क पर छा जाता है और जीवनोद्देश्य में परिवर्तन कर देता है।वास्तव में बात यह है कि जो बात,विचार या सुझाव मन में आता है,चाहे वह कहीं से आए वह शारीरिक कोषों और कोठरियों पर अंकित हो जाता है।उसका स्वभाव पर प्रभाव पड़ता है और आपके चेहरे से वह प्रकट हो जाता है।

4.चेहरा हमारे हावभाव प्रकट कर देता है (The face reveals our gestures):

  • यदि कोई व्यक्ति हृदय से यह मान ले कि वह सत्य का दामन पकड़ेगा और केवल सही काम ही करेगा तो थोड़े ही समय में उसके मस्तिष्क मस्तक पर पौरुष का प्रताप चमकने लगेगा और वह चेहरे से पराक्रमी तथा प्रतापी लगने लगेगा।
  • बार-बार मुंह बनाने से चेहरा कुरूप हो जाता है,चेहरे के चिन्ह परिवर्तित हो जाते हैं।आपके स्पर्धी की आंखें आपके चेहरे से आपके हार्दिक संकल्पों और हार्दिक दशा का पता चला लेती है।यहां तक कि जो व्यक्ति सदा हंसता रहे,वह प्रसन्नचित बन जाता है।जो हर समय चिंतन करता रहे,वह चिंतक बन जाता है और जो हर समय क्रोध तथा शोक करे,उसके चेहरे तथा आंखों से सदा क्रोध व शोक टपकता रहता है।
  • आपके चेहरे के परिवर्तन से आपकी दुनिया और आपके प्रभावाधीन व्यक्तियों की दुनिया में कुछ-से-कुछ रद्दोबदल हो जाता है।
    जीवन के वाद्य के सुरीलेपन का दारोमदार हर्ष तथा आह्लाद पर है।जिस प्रकार पियानो बजानेवाले को सुर की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए हर तार को उस सुर के अनुसार चलाना पड़ता है,उसी प्रकार भविष्य का मानव वासना,घृणा,द्वेष और वेदना के तारों को ठीक करेगा,ताकि जीवन के वाद्य में किसी प्रकार की प्रतिकूलता और बेसुरापन ना पाया जाए।वह कभी सह नहीं सकेगा कि भगवान की बनाई हुई कोमल पुर्जोंवाली इस इंसानी मशीन से काम लेना आरंभ करे,जबकि उसमें कोई दोष उत्पन्न हो गया हो,जिस प्रकार एक दक्ष साजिंदा अपने बिगड़े हुए बाजे के तार आम लोगों के सामने नहीं छेड़ता।
  • जीवन के इस वाद्य में से दुख,चिंता,निराशा और अन्य प्रतिकूल भावों से बेसुरे तारों को निकाल देना चाहिए,अन्यथा वह अच्छे सुर नहीं बिखेर सकेगा और मनमोहक राग नहीं अलाप सकेगा,जिन्हें सुनाने के लिए प्रकृति ने उसे बनाया है।
    आप इस बात को भली प्रकार हृदयंगम कर लें कि बिना इरादे तथा प्रयत्न के आपको कोई वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती।आप अपने संकल्प और संघर्ष के बल पर ही अपनी इच्छाओं और अभिलाषाओं का उद्यान खिला सकते हैं।
  • यदि आप स्थिरचित्तता के साथ अपने विचारों को सफलता पर केंद्रित करके रखते हैं तो आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि आपको कितना लाभ हुआ है।सदा स्वयं से किसी बड़ी वस्तु,किसी महान कार्य की आशा रखें और संदेह आदि से अपनी योग्यता को ठेस न पहुंचाएं।
  • नियति ने इंसान को बनाया ही ऐसा है कि वह सर्वश्रेष्ठ कार्य अधिकाधिक प्रसन्नता की दशा में ही कर सकता है,उसका सृजन ही हर्षोल्लास से हुआ है।इसलिए जब वह प्रसन्न होता है,उस समय वह श्रेष्ठ योग्यता का स्वामी होता है।
  • प्रतिकूलता और सुरीलेपन का अभाव इंसान के सद्कार्यों का शत्रु है।उसके आराम तथा हर्ष का हत्यारा है।हमारे व्यक्तित्व में जो शक्ति है,यह उसे अधिकाधिक कम करने तथा काटने वाला है।
  • जब मन दुखी तथा कलप रहा हो,आत्मा एवं शरीर में ही अनुकूलता न हो,उस समय सर्वश्रेष्ठ साजिंदा भी पूर्ण एवं स्वतंत्र जीवन का राग नहीं अलाप सकता।
  • लोग नहीं समझने कि लड़ाई-झगड़े,उपद्रव,चिंता,शोक आदि से कितनी मानवीय-शक्ति नष्ट होती है और प्रकृति में दोष उत्पन्न हो जाता है।
  • यदि आपको व्यर्थ ही क्रोध आ जाए अथवा कोई कष्ट या चिंता सताए तो इन विचारों को हृदय में स्थान न दें और न उन पर विचार करें।जब आप उन्हें मन के किसी कोने में भी शरण देंगे या दूसरों को ऐसे विचार रखने की प्रेरणा देंगे,तब आप वैसे ही विचारों को अपने मन में भी ले आएंगे और वे विचार शनैः-शनैः आपके अवयवों को शिथिल कर देंगे।किसी व्यक्ति का कथन है कि बीमारी के बारे में विचार-विनिमय करने की आदत पैदा हो जाएगी तो वे विचार धीरे-धीरे बीमारी के आगे घुटने टेक देंगे।

5.सदा प्रसन्न रहने का तरीका (The way to remain constantly happy):

  • क्रोध को सहने की आदत एक अच्छी आदत है।यदि आपके अंदर आग लगी हुई है,तो बेहतर यही है कि आप धुआं बाहर निकलने न दें;अपनी पीड़ा दूसरों को न बताएं,बल्कि जब उसका विचार आए तो मन को दूसरी ओर प्रवृत्त कर दें और इस प्रकार उसका प्रभाव नष्ट कर दें।दिनभर के परिश्रम के पश्चात आते ही चारपाई या आरामकुर्सी पर लंबे होने की चेष्टा न करें-अपनी लाचारी तथा विवशता प्रकट न करें और यह न कहें कि आप थककर चूर हो गए हैं,बल्कि इसके विपरीत विचार अपने मस्तिष्क में लाएं।आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि आप कितनी जल्दी ताजादम हो गए हैं और आपकी थकान भी दूर हो गई है।
  • यदि आप यह सोचते हैं कि आप अमुक कार्य करने से बिल्कुल थक जाएंगे,उस काम में आपकी सारी शक्ति नष्ट हो जाएगी तो उस विचार को मन से निकाल दें।आपकी दशा के साथ आपके विचारों का बड़ा गहरा संबंध है।यूं समझ लें कि विचार ही शक्ति है।जिस विचार से आपको कष्ट पहुंचता है,तुरंत उसके प्रतिकूल विचार को अपने मस्तिष्क में लाने का प्रयत्न करें तो आपका कष्ट दूर हो जाएगा,क्योंकि मानव प्रकृति की यही विशेषता है।
  • जितनी बार आप अपने थके मांदे और चकनाचूर होने की शिकायत करते हैं,उतनी ही बार अपने मस्तिष्क की सतह पर अमिट तथा अमर आकृतियां बनाते हैं।अत्यंत साहस के साथ उस विचार को पलट दें और उसके विपरीत विचार को मानस-पटल पर अंकित कर लें।पूर्ण विश्वास के साथ घोषणा कर दें कि शक्ति,बल तथा अनुकूलता आपके जन्मसिद्ध अधिकार हैं और आप उन्हें प्राप्त करके रहेंगे।किसी व्यक्ति के लिए यह आवश्यक नहीं,कोई विवशता नहीं कि वह निराशा और कायरता की विपत्तियों सहे,क्योंकि हमारे अंतर में बड़ी-से-बड़ी चिंता और विपत्ति का अचूक निदान विद्यमान है।
  • जिस व्यक्ति को यह अभिलाषा हो कि वह अपनी विपत्तियों और पीड़ाओं को बदल डालेगा तो वह बड़ी सरलता से ऐसा कर सकता है।केवल वैयक्तिक अभ्यास की आवश्यकता है।जो विचार अथवा भ्रम उसे पीड़ित करता है,उसे बदल डालें।फिर क्या होगा? उसकी प्रवृत्ति बदल जाएगी,वह कुछ-से-कुछ हो जाएगा और बिल्कुल नया आदमी बन जाएगा।
  • जिस प्रकार हम दूसरों की पीड़ा पर सांत्वना का मरहम रखते हैं,उसी प्रकार हम अपनी चिताओं और विपदाओं के घावों पर संतोष एवं सान्त्वना का मरहम रख सकते हैं।जिस प्रकार हम दूसरों को प्रोत्साहन देते हैं और निराश होने से वंचित रखते हैं,हम अपने व्यक्तित्व से भी वैसा ही व्यवहार कर सकते हैं।
  • अपने अंतर तथा मस्तिष्क को सदा शुभ तथा अच्छे कार्यों में व्यस्त रखें।कार्यों में इतना मशगूल हो जाएं कि आपको बुरी बातें सोचने और चिंता का अवकाश ही न मिले।प्रसन्नता तथा समृद्धि के शत्रुओं (दुःख,चिंता और निराशाजन विचार) को आपके हृदय में प्रवेश करने का अवसर ही ना मिले।जो व्यक्ति स्वयं को हर वक्त किसी-न-किसी अच्छे काम में लगाए रखता है,वह सदा प्रसन्न रहता है।इसके विपरीत जो व्यक्ति बेकार पड़ा रहता है,कोई काम नहीं करता,उसके मन में बुरे विचार आते रहते हैं और वह चिंताजनक भ्रम तथा भटकाव से ग्रसित रहता है।
  • हमें जीवन-दर्शन ऐसा बना लेना चाहिए कि हर्ष व उल्लास के अपने जन्मसिद्ध अधिकार को अपने शत्रुओं से,जो हर समय इस खजाने की चोरी की ताक में लगे रहते हैं,सुरक्षित रख सकें।हमारा कर्त्तव्य है कि हम पूरे बल तथा शक्ति के साथ हर ऐसे विचार,हर ऐसी बात और अपने मन तथा मस्तिष्क के हर जानी दुश्मन का वीरों की भांति सामना कर सकें,जो हमारे दिमाग में चिंता उत्पन्न करें,जिनसे हमें दुख पहुंचे,जो मानसिक संतुलन से उस निर्मल संतोष को नष्ट-भ्रष्ट कर दे।

6.अपने आपको पहचानें (Identify Yourself):

  • अपने आपको अपनी वास्तविकता का ज्ञान करने की अनुमति दें-इस शक्ति से आपको अपार लाभ होगा।इस प्रकार आप अपनी प्रकृति के विशाल सागर में गोते लगा सकेंगे और आपको ऐसे अनमोल मोती मिलेंगे,जिनके बारे में आपको किंचित भान न था कि वे भी हमारी संपत्ति हैं।
  • हमारा जीवन वस्तुतः अपने यथार्थ को मालूम करने,अपने आप को पालने के लिए एक यात्रा है।हमारी प्रकृति घड़ियों से भरी-पूरी है और वे हमारे जीवन की विविध अवस्थाओं पर खुलती हैं।केवल उस समय जब उन्हें खोलनेवाली चाबी या तो कोई पवित्र अलौकिक पुस्तक होती है या बढ़िया वक्तव्य या भाषण,कोई शुभ उपदेश या किसी ऐसे मित्र की सहायता जो हमारे अंदर वह सब कुछ देखता है,जो दूसरों को या तो दिखाई नहीं देता और यदि दिखाई देता भी है तो वे भ्रम में फंसे रहते हैं।कोई बड़ी भारी और आकस्मिक दुर्घटना या विपदा या हमारे जीवन की कोई महत्त्वपूर्ण घटना एक और चाबी उपलब्ध कर देती है,जिसके लगाने से एक दूसरी घड़ी खुल जाती है और हमारे गुप्त अवयव तथा प्रकट शक्तियों को क्रियाशील कर देती है,जिनके संबंध में हमें इसका विचार भी नहीं आता कि वे हमारे पास थीं या हमारे अधिकार में थीं।कभी-कभी प्रेम-प्रणय के द्वारा यह चाबी मिल जाती है,जो हमारी प्रकृति के गुप्त भंडारों को खोल देती है और हमारे अस्तित्व की सबसे बड़ी खोज का कारण बन जाती है।
  • प्रायः लोगों का विचार यह होता है कि उनके अंतर में कोई ना कोई गुप्त योग्यता अवश्य विद्यमान है-जो कभी ना कभी,किसी-न-किसी प्रकार स्वयंमेव प्रकट हो जाएगी,फिर वे वही कार्य करेंगे जिसके वे पात्र हैं;किंतु यह सर्वथा असत्य ही नहीं,अपितु भ्रम भी है।तथ्य यह है कि जब कोई आकस्मिक विपत्ति हमारे सिर पर आ पड़ती है,हमें कोई आकस्मिक अभियान पूरा करना होता है,उस समय उस आकस्मिक विपत्ति का सामना करने और उस अचानक अभियान को पूरा करने के लिए हम जितनी महान शक्ति प्रकट करते हैं,वह हमारे अस्तित्व और हमारे अहम की एक हल्की-सी झलक दिखाती है,जिसके बारे में यह विचार होता है कि वह कहां से आ गई,इससे पहले तो वह कहीं दिखाई न दी थी।इससे हमें यह शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए कि हमारे अंदर कितनी सुप्त योग्यताएं हैं।हमारे आंतरिक समुद्र की तह में संभावनाओं के कितने बहुमूल्य मोती छिपे हुए हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में जीवन के रंगढंग कैसे बदलें? (How to Change Manners of Life?),जीवन का रंगढंग बदलें (Change Way of Life) के बारे में बताया गया है।

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7.टीचर की मदद (हास्य-व्यंग्य) (Help to Teacher) (Humour-Satire):

  • प्रिंसीपल (छात्रों से):बच्चों,क्या आप अपने गणित शिक्षक को किसी प्रकार मदद करते हैं।
  • सुमित:हां,सर मैंने व्हाइट बोर्ड को धोया।
  • आरती:मैंने उसे रगड़-रगड़कर साफ किया।
  • केशव:मैंने व्हाइट बोर्ड के टुकड़े उठाए।

8.जीवन के रंगढंग कैसे बदलें? (Frequently Asked Questions Related to How to Change Manners of Life?),जीवन का रंगढंग बदलें (Change Way of Life) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.उच्चता की ओर कैसे बढ़ें? (How to move to higher?):

उत्तर:अपने आपको शुभ परामर्श देना स्वयंमेव एक बहुत बड़ी पूंजी और एक सफल व्यवसाय है।सदा ऐसे कार्य करें,ऐसी प्रणाली अपनाएं,जिससे सफलता,उन्नति,उच्चता तथा श्रेष्ठता प्रकट हो।

प्रश्न:2.स्वयं को सुझाव कैसे दें? (How to give yourself a suggestion?):

उत्तर:कोई काम आरंभ करते समय मन में ये शब्द दोहराएं।अब यह कार्य मुझे ही करना है,इस अभियान को चलाना मेरा ही दायित्व है।मुझे अपनी वीरता सिद्ध करनी है और अपना पौरुष प्रदर्शित करना है,वरना संसार मुझे कायर कहेगा,मुझे नामर्द कहकर पुकारेगा और धिक्कारेगा।

प्रश्न:3.स्वयं को उत्प्रेरित कैसे करें? (How to catalyze yourself?):

उत्तर:इस प्रकार के कथन तथा महान व्यक्तियों के उदाहरण कंठाग्र करने चाहिए जो समय-समय पर आपको उत्प्रेरित तथा अनुप्राणित करें और उस समय जब आप धैर्य खो बैठें तो आपको धीरज बंधाएं।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जीवन के रंगढंग कैसे बदलें? (How to Change Manners of Life?),जीवन का रंगढंग बदलें (Change Way of Life) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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